भारतीय दर्शन को समृद्ध करने में बौद्ध धर्म की भूमिका : मूर्तिकला, चित्रकला इत्यादि के माध्यम से भारतीय कला में बौद्ध धर्म के योगदान


भारतीय दर्शन को समृद्ध करने में बौद्ध धर्म की भूमिका : मूर्तिकला, चित्रकला इत्यादि के माध्यम से भारतीय कला में बौद्ध धर्म के योगदान

प्रश्न: बौद्ध धर्म ने न केवल भारतीय दर्शन को समृद्ध किया बल्कि प्राचीन भारतीय कला एवं स्थापत्य पर एक अमिट छाप भी छोड़ी।यथोचित उदाहरणों के साथ व्याख्या कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भारतीय दर्शन को समृद्ध करने में बौद्ध धर्म की भूमिका का वर्णन कीजिए।
  • इसके पश्चात् मूर्तिकला, चित्रकला इत्यादि के माध्यम से भारतीय कला में बौद्ध धर्म के योगदान का वर्णन कीजिए।
  • स्पष्ट कीजिए कि बौद्ध धर्म ने किस प्रकार भारतीय स्थापत्य कला को समृद्ध किया है और इसके आधार पर भारतीय संस्कृति में इसके बहुपक्षीय योगदान का वर्णन कीजिए।

उत्तर

बौद्ध दर्शन, भारतीय दर्शन में “तर्कवाद” के प्रारंभिक सम्प्रदायों में से एक है। इसने प्राचीन भारतीय दर्शन को समृद्ध करने में निम्नलिखित प्रकार से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है: 

  • इसके द्वारा अत्यधिक विलासिता एवं संयम को अस्वीकृत करते हुए मध्यम मार्ग को अपनाने पर बल दिया गया। उस समय समाज में कठोर एवं कर्मकांड युक्त ब्राह्मणवादी प्रथाएँ प्रचलन में थीं।
  • बुद्ध ने ईश्वर और नित्य आत्मा की अवधारणा को अस्वीकार करते हुए तत्कालीन दार्शनिक विचारों में परिवर्तन किया।
  • बुद्ध ने चार आर्य सत्यों की शिक्षा दी और मनुष्य के दुखों के निवारण हेतु अष्टांगिक मार्ग का सिद्धांत दिया।
  • उनके द्वारा पंचशील का सिद्धांत दिया गया जो भारतीय दर्शन के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धांत का आधार है।
  • उन्होंने निर्वाण प्राप्ति हेतु दिव्य/ईश्वरीय हस्तक्षेप (divine intervention) की अपेक्षा व्यक्तिगत प्रयास को महत्व दिया।
  • इसके अतिरिक्त, उनके द्वारा प्रदत्त कर्म की अवधारणा भारतीय दर्शन का एक महत्वपूर्ण भाग है।
  • उन्होंने प्रतीत्यसमुत्पाद (कार्य-कारण) की अवधारणा का प्रतिपादन किया जिसका अर्थ है कि प्रत्येक घटना के लिए कोई कारण उत्तरदायी होता है।  इसके माध्यम से ही लोगों को किसी विचार या तथ्य को तर्क के आधार पर स्वीकारने की प्रेरणा मिली।
  • आधुनिक भारतीय दर्शन के प्रमुख सिद्धांतों, जैसे लोकतंत्र, सामाजिक समानता आदि का आधार बौद्ध संघ में निहित है।

बौद्ध धर्म ने भारतीय कला और स्थापत्य कला को समृद्ध करने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसके अवशेष वर्तमान में भी उपलब्ध हैं। कला: 

  • मौर्यकाल के दौरान एकाश्म स्तम्भों पर विभिन्न बौद्ध अवधारणाओं जैसे- नैतिकता, मानवता और धार्मिकता को बुद्ध से संबंधित प्रतीकों के माध्यम से उत्कीर्ण किया गया है।
  • बुद्ध और बोधिसत्वों की प्रतिमाओं के रूप में बौद्ध मूर्तिकला के अनेक दृष्टान्त गांधार, मथुरा आदि स्थलों से प्राप्त हुए हैं।
  • कई बौद्ध स्मारकों से यक्ष और यक्षिणी की विशाल मूर्तियाँ भी प्राप्त हुई हैं।
  • अजंता गुफाओं में विद्यमान अनेक गुफाएँ बुद्ध के जीवन को समर्पित हैं।
  • यहाँ के भित्तिचित्रों में बौद्ध धर्म का प्रभाव परिलक्षित होता है।
  • बौद्ध कला के अन्य दृष्टान्तों को संगीत, उपासना, नाटक, कविता, पाल शासकों के काल में निर्मित लघुचित्रों आदि के रूप में देखा जा सकता है।
  • भरहुत और सांची स्तूपों में जातक कथाओं का चित्रात्मक प्रस्तुतीकरण किया गया है।

स्थापत्य कला:

बौद्ध धर्म से संबंधित स्थापत्य कला के तीन प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं

  • विहार (मठ): अजंता गुफाएँ, कार्ला गुफाएँ आदि स्थलों पर अनेक विहार हैं। अन्य उदाहरणों में नालंदा (एक शिक्षण केंद्र), नामग्याल मठ आदि शामिल हैं।
  • चैत्य (प्रार्थना सभागृह): जैसे: चट्टान को काट कर बनायी गयीं बराबर गुफाएँ, कार्ला गुफाओं में निर्मित विशाल चैत्य।
  • स्तूप: बुद्ध के अवशेषों पर स्तूप भी स्थापित किए गए थे, जैसे- सांची स्तूप, अमरावती स्तूप आदि। धार्मिक प्रथाओं में  परिवर्तन के साथ, स्तूप धीरे-धीरे चैत्य-गृहों में भी शामिल किए जाने लगे, जैसे- अजंता और एलोरा गुफाओं के परिसर।
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