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 10th hindi notebook solutions – भारतमाता

10th hindi notebook solutions – भारतमाता

class – 10

subject – hindi

lesson 5 – भारतमाता

भारतमाता
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-सुमित्रानंदन पंत’
*कविता का सारांश:-
भारत कभी धन-धर्म और ज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी था। किन्तु आज? कितना बदला-बदला-सा है यह देश। इसी भारत की यथार्थवादी तस्वीर उता की ‘ग्राम्या’ । संकलित यह कविता हिन्दी के श्रेष्ठ प्रगीतों में है। यहाँ कवि ने भारत का मानवीकरण करते हुए उसका चित्रण किया है।
भारत माता गाँवजासिनी है। दूर-दूर तक फैले हुए इसके श्याम खेत-खेत नहीं, धूल भरे आँचल हैं। गंगा और यमुना के जल, मिट्टी की इस उदास प्रतिमा में आँखों से बरसते हुए जल हैं। दीनता से दुखी भारत माता अपनी आँखें नीचे किए हुए है, होठों पर नि:शब्द रोगन है और युगों से यहाँ छाए अंधकार से त्रस्त, यह अपने घर में ही बेगानी है। सब कुछ इसी का है, किंतु नियति का चक्र है कि आज इसका कुछ नहीं है, दूसरे ने अधिकार जमा लिया है।
इसके तीस करोड़ पुत्रों (कविता लिखे जाने तक भारत की आबादी इतनी ही थी) की दशा यह है कि वे प्रायः नंगे हैं, अधपेटे हैं, इनका शोषण हो रहा है ये अशिक्षित, भारत माता मस्तक झुकाए वृक्ष के नीचे खड़ी है।
भारत के खेतों पर सोना उगता है, पर इस देश को दूसरे अपने पैरों से रौंद रहे हैं, कुठित मन है हृदय हहर रहा है, होंठ थरथरा रहे हैं पर मुँह से बोली नहीं निकल रही। लगता है इस शरत चन्द्रमा को राहू ने ग्रस लिया है।
भारत माता के माथे पर चिंता की रेखाएँ हैं, आँखों में आँसू भरे हैं। मुख-मण्डल की तुलना चन्द्रमा से है किन्तु ‘गीता’ के सन्देश देनेवाली यह जननी मूढ़ बनी है। किन्तु लगता है, आज इसकी अबतक की तपस्या सफल हो रही है, इसका तप-संयम रंग ला रहा है। अहिंसा का सुधा-पान कराकर यह लोगों का भय, भ्रम और तय दूर करनेवाली जगत जननी नये जीवन का विकास कर रही है।

सरलार्थ
छायावाद के चार स्तम्भों में से एक सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित भारतमाता शीर्षक कविता उनकी चर्चित रचना है। कवि प्रवृत्ति से छायावादी हैं, परन्तु उनके विचार उदार मानवतावादी हैं। इनकी प्रतिभा कलात्मक सूझ-बूझ से संपन्न है । युगबोध के अनुसार अपनी काव्यभूमि का विस्तार करते रहना पंत की काव्य-चेतना की विशेषता है।
प्रस्तुत कविता कवि की प्रसिद्ध कविताओं का संग्रह ‘ग्राम्या’ से संकलित है। यह कविता आधुनिक हिन्दी के उत्कृष्ट प्रगीतों में शामिल की जाती है। इसमें अतीत के गरिमा गान द्वारा अबतक के भारत का ऐसा चित्र खींचा गया था जो वास्तविक प्रतीत नहीं होता है। अब तक के
भारत धन-वैभव, शिक्षा-संस्कृति, जीवनशैली आदि तमाम दृष्टियों से पिछड़ा हुआ धुंधला और मटमैला दिखाई पड़ता है। वस्तुतः कवि ने भारत का यथातथ्य चित्र प्रस्तुत किया है। भारत की आत्मा गाँवों में बसती है। ऐसी धारणा रखनेवाली भारतमाता क्षुब्ध और उदासीन है। शस्य
श्यामला धरती आज धूल-धूसरित हो गई है। करोड़ों लोग नग्न, अर्द्धनग्न हैं। अलगाववाद, आतंकवाद, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, सुरसा की तरह फैलते जा रहे हैं। चारों तरफ अज्ञानता और अशिक्षा फैली हुई है। गीता के उपदेश आज किंकर्तव्यविमूढ़ बने हुए हैं। जीवन की सारी भंगिमाएँ धूमिल हो गई हैं। वस्तुतः कवि यथोचित के माध्यम से सम्पूर्ण भारतवासियों को अवगत कराना चाहता है।

पद्यांश पर आधारित अर्थ ग्रहण-संबंधी प्रश्न
(1) “भारत माता ग्रामवासिनी
खेतों में फैला है श्यामल,
धूल-भरा मैला-सा आँचल
गंगा-यमुना में आँसू जल
मिट्टी की प्रतिमा
उदासिनी!”

(i) उपर्युक्त पद्यांश के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर-सुमित्रानंदन पंत ।

(ii) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस कविता से उद्धृत हैं ?
उत्तर-भारत माता ।

(iii) “भारत माता ग्राम वासिनी” से कवि के कहने का आशय क्या है?
उत्तर-उपरोक्त पंक्ति में कविवर पंत के कहने का आशय यह है कि भारत माता ग्रामवासिनी हैं, खेतों की हरियाली में उनका दर्शन होता है। कवि के कहने का तात्पर्य यह है कि
भारत के लोग गाँवों में निवास करते हैं। कवि ने भारतीय जन जीवन पर प्रकाश डाला है।

(iv) माँ का आँचल धूल भरा क्यों है?
उत्तर-भारत माता का आँचल धूल से इसलिए भरा है क्योंकि वह ग्रामवासिनी हैं। गाँवों के खेत-खलिहान, मिट्टी के बने मकान तथा गलियाँ धूल से भरी हुई है। अत: उनका आँचल धूल में लिपटा हुआ एवं मैला है। भारत की बेकारी, गरीबी, अभावग्रस्तता को भी इसके द्वारा चित्रित
किया गया है।

(v) “मिट्टी की प्रतिमा-उदासिनी” यह उक्ति किसके लिए और क्यों कही गई है? अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर-कवि ने भारत माता की पीड़ा, कुंठा तथा अभाव-ग्रस्तता का चित्र प्रस्तुत करते हुए उन्हें मिट्टी की उदास प्रतिमा कहा है क्योंकि वह अपनी वर्तमान दुर्दशा पर मिट्टी की प्रतिमा के समान मौन-मूक हैं। इस पंक्ति में भारत की दुर्दशा की ओर भी कवि का संकेत है। भारत माता
का. मानवीकरण किया गया है।

(2) “दैन्य जड़ित अपलक नत चितवन
अघरों में चिर नीरव रोदन,
युग-युग के तम से विषण्ण मन,
वह अपने घर में
प्रवासिनी!

(i) उपर्युक्त पद्यांश के रचनाकार कौन हैं?
उत्तर-सुमित्रानंदन पंत ।

(ii) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस कविता से उद्धृत हैं ?
उत्तर-भारत माता ।

(iii) ‘दैन्य जनित अपलक नत चितवन’ किसका है और क्यों?
उत्तर-“भारतमाता की आँखें अपनी दीनता, गरीबी के कारण झुकी हुई हैं।

(iv) ‘अधरों में चिर नीरव रोदन’ का क्या तात्पर्य है?
उत्तर-‘अधरों में चिर नीरव रोदन’ का तात्पर्य है रूलाई आ रही है, किन्तु होंठ बंद हैं। खुलकर रो भी नहीं पाती अर्थात् अन्तर की पीड़ा अन्तर में ही छिपी है।

(v) पद्यांश का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर-कवि का कहना है कि गरीबी और दीनता से भारत अर्थात् भारतमाता की आँखें नीची हैं उसकी पलकें भी नहीं झपकतीं। युगों से गुलामी के कारण मन अत्यन्त दुखी है। हालत यह है कि यहाँ का सब कुछ उसका हो, किन्तु गुलामी के कारण यहाँ की चीजों पर उसका अधिकार नहीं है। स्वामिनी होकर भी वह प्रवासिनी है।

(3) तीस कोटि सन्तान नग्न तन,
अर्ध क्षुधित, शोषित, निरस्त्रजन,
मूढ, असभ्य, अशिक्षित, निर्धन,
नत मस्तक,
तरु-तल निवासिनी!

(i) उपर्युक्त पद्यांश के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर-सुमित्रानंदन पंत ।

(ii) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस कविता से उद्धृत हैं ?
उत्तर-भारत माता ।

(iii) भारत की जनता की स्थिति क्या है?
उत्तर भारत की जनता आज धनहीन, वस्त्रहीन है, उसे आधा पेट ही भोजन मिलता है उसका शोषण हो रहा है। यहाँ की जनता अशिक्षा का शिकार है, मूढ़ और असम्य है।

(iv) ‘तरू-तल निवासिनी’ का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-तरू-तल अर्थात् वृक्ष के नीचे वह रहती है जिसको अपना घर नहीं होता, जिसे अपने घर से अचानक बेदखल कर दिया जाता है। भारतमाता की यही स्थिति है। विदेशियों ने भारत पर अधिकार कर लिया है। अतएव, स्वामिनी वृक्ष के तले चुपचाप रहने पर मजबूर है।

(v) पद्यांश का आशय लिखें।
उत्तर-आज भारत की संतान नंगी-अधनंगी भूखी, अधपेटी अस्त्रहीन और शोषित है। विदेशी बुरी तरह शोषण कर रहे हैं। परतंत्रता के कारण अशिक्षित, मूढ़ और बेघर है। विदेशियों ने इन्हें बेघर किया हुआ है और ये लोग उसी तरह जी रहे हैं जैसे वृक्ष के नीचे लोग जीते हैं। तात्पर्य यह कि भारत के लोग ही अब भारत के मालिक नहीं हैं। ये अपने ही घर में बेघर हैं।

(4) “स्वर्ण शस्य पर-पद-तल लुंठित,
धरती-सा सहिष्णु मन कुंठित,
क्रंदन कंपित अधर मौन स्मित,
राहु-ग्रसित
शरदेन्दु हासिनी!”

(i) उपर्युक्त पद्यांश के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर-सुमित्रानंदन पंत ।

(ii) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस कविता से उद्धृत हैं ?
उत्तर-भारत माता ।

(iii) ‘स्वर्ण शस्य पर-पद-तल लुंठित का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-प्रस्तुत पंक्ति में कवि पराधीनता से उपजी भारत की दीन-दशा का चित्रण करते हुए कहता है कि यहाँ के खेतों में सोना उपजता है अर्थात् बहुमूल्य फसलें होती हैं पर फिर भी
भारतमाता अर्थात् भारत दूसरों (विदेशियों) के पैरों तले रौंदा जा रहा है। वस्तुतः धनवान किसी के वश में नहीं होते किंतु भारत में उलटा हो रहा है, संपन्न देश पराधीन बना हुआ

(iv) भारतमाता का मन कैसा और क्यों कुंठित है?
उत्तर-भारत के लोग धरती की भाँति सहनशील होते है ऐसे लोगों का भी मन, हृदय आज गुलामी के कारण कुंठित हैं।

(v) पद्यांश का आशय/सारांश क्या है?
उत्तर-कवि ने इस पद्यावतरण में पराधीन भारत की अवस्था का चित्रण किया है। कवि कहता है कि संपन्न लोग किसी के गुलाम नहीं होते किंतु यहाँ विचित्र स्थिति है। भारत के खेतों
में बहुमूल्य अनाज उपजते है, यह सब भारत का है किंतु यहाँ की जनता विदेशियों के पैरों तले दबी है। धरती की भाँति धीरज रखनेवाले लोग कुंठित हैं। पराधीनता के कारण और दुख से रूलाई आ रही है पर होंठ सिले हैं, अत: वे सिर्फ काँप भर रहे हैं। यहाँ के चन्द्रमा को लगता है,
ने ग्रस लिया है।

(5) चिंतित भृकुटी क्षितिज तिमिरांकित,
नमित नयन नभ वाष्पाच्छादित,
आनन श्री छाया-शशि उपमित
ज्ञान मूढ़
गीता प्रकाशिनी!”

(i) उपर्युक्त पद्यांश के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर-सुमित्रानंदन पंत ।

(ii) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस कविता से उद्धृत हैं ?
उत्तर-भारत माता ।

(iii) “चिंतित भृकुटि क्षितिज तिमिरांकित” कवि ने क्यों लिखा है?
उत्तर-पराधीन भारतमाता अपनी दुरवस्था से चिंतित है और उसकी भृकुटि पर बल पड़े हैं। फिर भी दूर भविष्य में, मुक्ति की कोई किरण दिखाई नहीं पड़ती अर्थात् भविष्य यानी क्षितिज अंधकारपूर्ण नजर आता है। इसी भाव को व्यक्त करने के लिए कवि ने “चिंतित भृकुटि क्षितिज तिमिरांकित” लिखा है।

(iv) ‘नमित नयन नभ वाष्पाच्छादित’ का अर्थ स्पष्ट करते
पंक्ति में प्रयुक्त अलंकार का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-‘नमित नयन नभ वाष्पाच्छाति’ का अर्थ है नयन लज्जा से (पराधीनता की लज्जा) झुके हैं और पूरा आकाश बादलों से घिरा है अर्थात् नयनों से निकले आँसूओं ने वाष्प बनकर बादलों का रूप धारण कर लिया है।
‘नमित नयन नभ’ में अनुप्रास अलंकार है।

(vi) पद्यांश का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-प्रस्तुत पद्यांश में कवि भारतमाता के मुख-मण्डल का वर्णन करते हुए मूढ़ता एवं ज्ञान-भण्डार की चर्चा करता है। कवि कहता है कि इसके मुख-मण्डल की उपमा चन्द्रमा से की जाती है किंतु आज इसी मुख-मण्डल की भवें झुकी हुई हैं, अर्थात् भविष्य (क्षितिज) अंधकारमय लगता है। गुलामी के कारण उसकी नजरें झुकी हुई हैं, आकाश मेघाच्छन्न (वाष्पाच्छादित) है। यहाँ मूढ़ता ने डेरा डाल रखा है जबकि ‘गीता’ जैसे जीवन-दर्शन का यही उद्भव हुआ।

(6) सफल आज उसका तप संयम,
पिला अहिंसा स्तन्य सुधोपम,
हरती जन-मन-भय, भव-तम-भ्रम,
जग-जननी
जीवन विकासिनी!

(i) उपर्युक्त पद्यांश के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर-सुमित्रानंदन पंत ।

(ii) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस कविता से उद्धृत हैं ?
उत्तर-भारत माता ।

(ii) ‘सफल आज उसका तप-संयम’ में किसके तप-संयम के सफल होने की बात कही गई है?
उत्तर-‘सफल आज उसका तप संयम’ के द्वारा कवि बताता है कि भारतमाता ने इतने दिनों जो कष्ट सहन किया है, चुपचाप रहकर जो तपस्या की है, उसका परिणाम निकल आया है।

(iv) “पिला अहिंसा स्तन्य सुधोपन”, हरती जन-मन-भय, भव-तम-भ्रम’ का तात्पर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-पिला अहिंसा… भव तम भ्रम’ का तात्पर्य है कि अपने स्तन का अहिंसा रूपी अमृतमय दूध पिलाकर भारतमाता ने लोगों के मन का भय, भव-तम और भ्रम दूर कर दिया है।
अहिंसा के माध्यम से लोग अब अन्याय का सामना करने को तत्पर हो गए हैं।

(v) कवि ने “जग-जननी जीवन विकासिनी” भारतमाता को क्यों कहा है?
उत्तर कवि का कहना है कि भारत ने ही संसार को वेदों के माध्यम से ज्ञान दिया है और इस प्रकार जीवन जग को जगमग किया है अर्थात् जीने की कला सिखाई है।

बोध और अभ्यास
*कविता के साथ :-
प्रश्न 1. कविता के प्रथम अनुच्छेद में कवि भारतमाता का कैसा चित्र प्रस्तुत करता है ?
उत्तर-प्रथम अनुच्छेद में कवि ने भारतमाता के रूपों का सजीवात्मक रूप प्रदर्शित किया है। गाँवों में बसनेवाली, भारतमाता आज धूल-धूसरित है, शस्य-श्यामला न रहकर उदासीन बन गई है। उसका आँचल मैला हो गया है। गंगा-यमुना के निर्मल जल प्रदूषित हो गये हैं। इसकी
मिट्टी में पहले जैसी प्रतिभा और यश नहीं है। आज वह उदास हो गई है।

प्रश्न 2. भारतमाता अपने ही घर में प्रवासिनी क्यों बनी हुई है ?
उत्तर-अभाव और गरीबी से ग्रसित भारत का चित्र विकीर्ण एवं विकृत हो गया है। दृष्टि झुक गई है। अधरों पर मुस्कान की रेखा नहीं झलकती है बल्कि वे मूक रोदन से फड़फड़ाते
हैं। आज सर्वत्र विषादमय वातावरण बना हुआ है। गुलामी की बेड़ी में जकड़ी हुई वह आज स्वयं अभाव से ग्रसित है। विदेशी वस्तुओं से आज यह पटी जा रही है। आज स्वयं वह प्रवसिनी (बेगानी) की भाँति जीवन जीने के लिए विवश हो गई है ।

प्रश्न 3. कविता में कवि भारतवासियों का कैसा चित्र खींचता है?
उत्तर-कविता में भारतवासियों की विक्षुब्धता, उदासी, दीनता आदि का सजीवात्मक चित्रण किया गया है। सोने की चिड़ियाँ कहलाने वाली भारत माता की संतान नग्न, अर्द्धनग्न और भूखी है। सामंतवादियों के द्वारा शोषित है। अशिक्षा, निर्धनता, आदि के कारण किसी तरह जीवन ढोने
के लिए भारतवासी विवश हैं।

प्रश्न 4. भारतमाता का ह्रास भी राहु ग्रसित क्यों दिखाई पड़ता है ?
उत्तर-विदेशियों द्वारा बार-बार लूटने, रौंदने से भारतमाता का हृदय विकीर्ण हो गया है। मुगलों के बाद अंग्रेजों ने लूटना शुरू कर दिया है आज यह दूसरों के द्वारा रौंदी जा रही हैं। जिस तरह धरती सबका बोझ सहन कर रही है उसी तरह यह भारतमाता भी सबका धौंस, उपद्रव आदि सहज भाव से सहन कर रही है। चंद्रमा अनायास राहु द्वारा ग्रसित हो जाता है उसी तरह यह धरती भी विदेशी आक्रमणकारी सदृश राहु से ग्रसित हो रही हैं।

प्रश्न 5. कवि भारतमाता को गीता प्रकाशिनी मानकर भी ज्ञानमूढ़ क्यों कहता है ?
उत्तर-भारत सत्य-अहिंसा, मानवता, सहिष्णुता, आदि का पाठ सारे विश्व को पढ़ाता था। किन्तु आज इस क्षितिज पर अज्ञानता की पराकाष्ठा चारों तरफ फैल गई है। लूटखसोट,
अलगाववाद, बेरोजगारी आदि जैसी समस्याएँ इसको निःशेष करती जा रही हैं । मुखमण्डल सदा सुशोभित रहनेवाली भारतमाता के चित्र धूमिल हो गये हैं। धरती, आकाश आदि सभी इसके प्रभाव से ग्रसित हो गये हैं। आज सर्वत्र अंधविश्वास, अज्ञानता का साम्राज्य उपस्थित हो गया है। इसी कारण कवि ने इसे ज्ञानमूढ़ कहा है।

प्रश्न 6. कवि की दृष्टि में आज भारतमाता का तप-संयम क्यों सफल है ?
उत्तर-विदेशियों द्वारा बार-बार पद-दलित करने के उपरान्त भी भारतमाता के सहृदयता के भाव को नहीं रौंदा जा सका है। इसकी सहनशीलता आज भी बरकरार है। आज भी यह अहिंसा का पाठ पढ़ाती हैं। लोगों के भय को दूर करती हैं। सबकुछ खो देने के बाद भी यह अपने संतान में वसुधैव कुटुम्बकम की ही शिक्षा देती है। यह भारतमाता के तप का ही परिणाम है कि उसकी संतान आज भी सहिष्णु बनी हुई हैं।

प्रश्न 7. व्याख्या करें:
(क) स्वर्ण शस्य पर-पद-तल लुंठित, धरती-सा सहिषा भन कुंतिः ।
(ख) चिंतित भृकुटि क्षितिज तिमिरांकित, नमित नयन नभ वाष्पाच्छादित ।
उत्तर-(क) प्रस्तुत पंक्ति छायावाद के चार स्तंभों में से एक सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित ‘भारतमाता’ शीर्षक कविता से संकलित है। इसमें कवि ने भारतमाता के रूपों का यथातथ्यों में प्रदर्शित किया है। फसलों से परिपूर्ण रहनेवाली यह धरती आज विदेशियों से रौंदी जा रही है।
वस्तुतः यहाँ कवि ने अंग्रेजों द्वारा भारतवासियों पर किये जानेवाले अत्याचार को सहज बोध से प्रस्तुत किया है। आज भारतवासी धरती की तरह सहिष्णु बने हुए हैं। उनमें प्रतिकार करने की क्षमता नहीं है। अन्याय का प्रतिकार ही न्याय है।
(ख) प्रस्तुत पंक्ति छायावाद के चार स्तम्भों में से एक सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित भारतमाता शीर्षक कविता से संकलित है। इसमें कवि ने भारतमाता के रूपों का चित्रण किया है। पराधीन भारत की स्थिति अत्यंत दयनीय है। अज्ञानता, अशिक्षा, आदि के कारण भारतवासी त्रस्त हैं।
चन्द्रमा से उपमा दी जानेवाली यह धरती आज शोषण, कुसंस्कार, अत्याचार से धूमिल हो गई है। चिंता की रेखाओं से घिरा हुआ जनजीवन, अज्ञान के अंधकार में इधर-उधर भटक रहा है। आकाश अंधकाररूपी बादल से आच्छादित है

भाषा की बात
प्रश्न 1. कविता के हर अनुच्छेद में विशेषण का संज्ञा की तरह प्रयोग हुआ है । आप उनका चयन करें एवं वाक्य बनाएँ।
ग्रामवासिनी, श्यामल, मैला, दैन्य, तन, नीरव, विषण्ण, क्षुधित, चिर, मौन, चिंतित ।
उत्तर- ग्रामवासिनी―― ग्रामवासिनी अंग्रेजों के अत्याचार से त्रस्त थीं।
श्यामल ――श्यामल वर्ण फीका हो गया है।
मैला ――उसका आँचल मैला हो गया है।
दैन्य ――उसकी दैन्य दशा देखने में बनती है।
नत ――उसका मस्तक नत है।
नीरव ――नदी नीरव गति से बह रही है ।
विपण्ण ――उसका हृदय विपण्ण है।
क्षुधित―― क्षुधित मनुष्य ‘कौन-सा पाप’ नहीं करता है ?
चिर ――यह चिर है।
मौन ――आज भारतमाता मौन है।
चिंतित ――उसकी चिंतित मुद्राएँ अनायास आकर्षित करती हैं।

प्रश्न 2. निम्नांकित का विग्रह करते हुए समास स्पष्ट करें :
ग्रामवासिनी, गंगा-यमुना, शरदेन्दु, दैन्यजड़ित, तिमिरांकित, वाष्पाच्छादित, ज्ञानमूढ़, तपसंयम, जन-मय-भय, भव-तम-भ्रम ।
उत्तर-
ग्रामवासिनी –ग्राम में वास करनेवाली –तत्पुरुष समास।
गंगा-यमुना –गंगा और यमुना–द्वन्द्व समास
शरदेन्दु –शरद ऋतु का चाँद–तत्पुरुष समास
दैन्यजड़ित–दैन्य से जड़ित–तत्पुरुष समास
तिमिरांकित–तिमिर से अंकित –तत्पुरुष समास
वाष्पाच्छादित–वाष्प से आच्छादित–तत्पुरुष समास
ज्ञानमूढ़–ज्ञान में मूढ़ –तत्पुरुष समास
तपसंयम –तप में संयम –तत्पुरुष समास
जन-मन-भय –जन, मन और भय — द्वन्द्व समास
भव-तम-भ्रम–अंतर्मन से भ्रमित संसार– तत्पुरुष समास

प्रश्न 3. कविता से तद्भव शब्दों का चयन करें।
उत्तर-भारतमाता, ग्रामवासिनी, खेतों, मैला, आँसू, मिट्टी, उदासिनी, रोदन, घर, तीस, मूल निवासिनी, चिंतित ।

प्रश्न 4. कविता से क्रियापद चुनें और उनका स्वतंत्र वाक्य प्रयोग करें।
उत्तर- नत :-उसका मस्तक नत है।
फैला :-भारत माँ का कटु आँचल फैला है।
क्रंदन:- उसका क्रंदन सुनकर ‘हृदय द्रवित हो गया।
पिला :-उसने हमें अमृत पिला दिया ।
हरती:- धरती सबका संताप हरती है।

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