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 Bihar Board Class 11 Philosophy Solutions Chapter 8 निरपेक्ष न्याय

Bihar Board Class 11 Philosophy निरपेक्ष न्याय Text Book Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
EA एक यथार्थ योग है –
(क) दो आकारों में
(ख) केवल एक आकार में
(ग) सभी आकारों में
(घ) किसी आकार में नहीं
उत्तर:
(ग) सभी आकारों में

प्रश्न 2.
“सभी दवाएँ उपयोगी हैं, सेव उपयोगी है, इसलिए सेव दवा है।” इस न्याय में –
(क) अव्याप्त मध्यवर्ती पद का दोष है
(ख) अनुचित प्रक्रिया दोष है
(ग) चतुष्पदी दोष है
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) अव्याप्त मध्यवर्ती पद का दोष है

प्रश्न 3.
कोई एक आधार वाक्य अवश्य निषेधात्मक होगा –
(क) प्रथम आकार में
(ख) द्वितीय आकार में
(ग) तृतीय आकार में
(घ) चतुर्थ आकार में
उत्तर:
(ख) द्वितीय आकार में

प्रश्न 4.
यदि कोई पद निष्कर्ष में व्याप्त हो और आधार वाक्य में नहीं, तो दोष होगा –
(क) अव्याप्त मध्यम पद का
(ख) अनुचित तरीके का
(ग) चतुष्पदी पद का
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) अनुचित तरीके का

प्रश्न 5.
FERIO एक सही योग है –
(क) प्रथम आकार में
(ख) द्वितीयक आकार में
(ग) चतुर्थ आकार में
(घ) तृतीय आकार में
उत्तर:
(क) प्रथम आकार में

प्रश्न 6.
बारबारा मूड (BARBARA Mood) हैं –
(क) द्वितीय आकार का
(ख) प्रथम आकार का
(ग) तृतीय आकार का
(घ) चतुर्थ आकार का
उत्तर:
(ख) प्रथम आकार का

प्रश्न 7.
न्याय (Syllolism) का अन्य नाम है –
(क) अनुमान
(ख) मध्याश्रित अनुमान
(ग) दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) प्रथम आकार का

प्रश्न 8.
निरपेक्ष न्याय (Categorical Syllogism) के पद होते हैं –
(क) वृहत् पद
(ख) लघु पद
(ग) मध्यवर्ती पद
(घ) ऊपर का सभी
उत्तर:
(घ) ऊपर का सभी

प्रश्न 9.
निष्कर्ष का उद्देश्य क्या कहलाता है?
(क) लघुपद
(ख) वृहत् पद
(ग) मध्यवर्तीय पद
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) लघुपद

प्रश्न 10.
निष्कर्ष का विधेय कहलाता है –
(क) वृहत् पद
(ख) लघुपद
(ग) मध्यवर्ती पद
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) वृहत् पद

प्रश्न 11.
न्याय के सामान्य नियमों की संख्या –
(क) 10
(ख) 16
(ग) 6
(घ) 8
उत्तर:
(क) 10

प्रश्न 12.
यदि किसी न्याय का वृहत् वाक्य अंशव्यापी हो और लघुवाक्य निषेधात्मक हो तो वैध्य निष्कर्ष नहीं होगा। यह न्याय का कौन-सा नियम है?
(क) 10 वाँ
(ख) प्रथम
(ग) 7 वाँ
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) 10 वाँ

प्रश्न 13.
“प्रत्येक न्याय में तीन और सिर्फ तीन पदों का प्रयोग होना चाहिए।” यह न्याय का कौन-सा नियम कहलाता है?
(क) प्रथम
(ख) द्वितीय
(ग) दसवीं
(घ) आठवीं
उत्तर:
(क) प्रथम

प्रश्न 14.
कोई अनुमान न्याय होता है यदि इसमें –
(क) दो पद होते हैं
(ख) तीन पद होते हैं
(ग) चार पद होते हैं
(घ) पाँच पद होते हैं
उत्तर:
(ख) तीन पद होते हैं

प्रश्न 15.
अंशव्यापी वृहत् वाक्य (Particular Major Premise) एवं निषेधात्मक लघुवाक्य (Negative Minor Premise) से होता है –
(क) भावात्मक निष्कर्ष
(ख) निषेधात्मक निष्कर्ष
(ग) कोई निष्कर्ष नहीं
(घ) अंशव्यापी निष्कर्ष
उत्तर:
(ग) कोई निष्कर्ष नहीं

Bihar Board Class 11 Philosophy निरपेक्ष न्याय Additional Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘BARBARA’ न्याय के किस आकार का वैध योग है?
उत्तर:
BARBARA न्याय के प्रथम आकार का वैध योग है।

प्रश्न 2.
न्याय का दसवाँ सामान्य नियम क्या है?
उत्तर:
न्याय का दसवाँ सामान्य नियम है – “यदि किसी न्याय का वृहत् वाक्य अंशव्यापी हो और लघुवाक्य निषेधात्मक हो तो वैध निष्कर्ष नहीं होगा।”

प्रश्न 3.
न्याय के सामान्य नियम की संख्या कितनी है?
उत्तर:
न्याय के सामान्य नियमों की संख्या 10 (दस) है।

प्रश्न 4.
न्याय का प्रथम सामान्य नियम क्या है?
उत्तर:
न्याय का प्रथम सामान्य नियम यह है कि ‘प्रत्येक न्याय में तीन और सिर्फ तीन पदों का प्रयोग होना चाहिए।’

प्रश्न 5.
निरपेक्ष-न्याय में कितने पद होते हैं?
उत्तर:
प्रत्येक न्याय में केवल तीन ही पद होते हैं। वे हैं-वृहत् पद, लघु पद एवं मध्यवर्ती पद।

प्रश्न 6.
लधु पद किसे कहते हैं?
उत्तर:
निष्कर्ष के उद्देश्य को लघु पद कहते हैं।

प्रश्न 7.
वृहत् पद किसे कहते हैं?
उत्तर:
निष्कर्ष के विधेय को वृहत् पद कहते हैं।

प्रश्न 8.
मध्यवर्ती पद किसे कहते हैं?
उत्तर:
जो पद दोनों आधार वाक्य में होते हैं लेकिन निष्कर्ष में नहीं उसे मध्यवर्ती पद कहते हैं।

प्रश्न 9.
वृहत् वाक्य किसे कहते हैं?
उत्तर:
जिस वाक्य में वृहत् पद होता है उसे वृहत् वाक्य कहते हैं।

प्रश्न 10.
न्याय किसे कहते हैं? अथवा, न्याय की परिभाषा दें।
उत्तर:
न्याय मध्याश्रित अनुमान का वह रूप है जिसमें दो आधार वाक्यों से निष्कर्ष निकाला जाता है। जैसे –
आधार – सभी मनुष्य मरणशील हैं।
वाक्य – मोहन मनुष्य है।
निष्कर्ष – ∴ मोहन मरणशील है।

प्रश्न 11.
न्याय का दूसरा नाम क्या है?
उत्तर:
न्याय को ही हम मध्याश्रित अनुमान कहते हैं।

प्रश्न 12.
न्याय में कितने वाक्य होते हैं?
उत्तर:
न्याय में तीन वाक्य होते हैं। इसे हम वृहत् वाक्य, लघुवाक्य एवं निष्कर्ष कहते हैं।

प्रश्न 13.
लघु वाक्य किसे कहते हैं?
उत्तर:
जिस वाक्य में लघु पद होता है उसे वृहत् वाक्य कहते हैं।

प्रश्न 14.
एक उदाहरण द्वारा वृहत् वाक्य, लघु वाक्य एवं निष्कर्ष को दिखावें।
उत्तर:
All men are mortal – Major Premise
Mohan is man – Minor Premise
Mohan is mortal – Conclusion

प्रश्न 15.
न्याय के प्रथम नियम के उल्लंघन से कौन-सा दोष उत्पन्न होता है?
उत्तर:
न्याय के प्रथम नियम के उल्लंघन से चतुष्पद दोष उत्पन्न होते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सिद्ध करें कि अगर किसी अनुमान का वृहद्वाक्य अंशव्यापी हो तथा लघुवाक्य निषेधात्मक हो तो उससे कोई निष्कर्ष नहीं निकल सकता।
उत्तर:
यदि अनुमान का लघुवाक्य निषेधात्मक है, तो वृहद्वाक्य अवश्य ही भावात्मक होगा। प्रश्न में दिया हुआ है कि वृहद्वाक्य अंशव्यापी है। अतः, वृहद्वाक्य हुआ अंशव्यापी भावात्मक (particular affirmative) अर्थात् I। लघुवाक्य निषेधात्मक है, अतः वह E होगा, O नहीं हो सकता, क्योंकि वृहद्वाक्य I है। दो अंशव्यापी वाक्यों से निष्कर्ष नहीं निकलता है।

प्रश्न का तात्पर्य है कि IE से निगमन नहीं निकलता हैं लघुवाक्य निषेधात्मक है, अतः निष्कर्ष भी निषेधात्मक होगा। निष्कर्ष के निषेधात्मक होने से वृहद्पद निष्कर्ष में व्याप्त हो जाता है, जो वृहद्वाक्य I में अव्याप्त है; क्योंकि I के उद्देश्य और विधेय दोनों अव्याप्त रहते हैं। अतः, अनुचित वृहद्पद (illicit major) का दोष हो जाता है। अतः, हम देखते हैं कि जब अनुमान का वृहद्वाक्य अंशव्यापी तथा लघुवाक्य निषेधात्मक होता है तब निष्कर्ष नहीं निकलता है।

प्रश्न 2.
सिद्ध करें कि कोई भी पद निगमन में व्याप्त नहीं हो सकता जो असाधारणवाक्य में अव्याप्त है।
उत्तर:
निगमन तर्कशास्त्र का वह महत्त्वपूर्ण लक्षण है कि निगमन कभी भी अपने आधारवाक्य से अधिक व्यापक नहीं हो सकता, अर्थात् निगमन आधारवाक्य से कम व्यापक रहता है। अतः, अगर हम किसी पद को, जो आधारवाक्य में व्याप्त है, निगमन में व्याप्त कर देते हैं तो इसका अर्थ होगा कि निगमन (या निष्कर्ष) आधारवाक्य से अधिक व्याप्त हो जाएगा। परन्तु, ऐसा हम नहीं कर सकते। यह निगमन तर्कशास्त्र के मौलिक नियम के विरुद्ध होगा।

अतः, यदि आधारवाक्यों में कोई पद अव्याप्त है तो उसके निगमन में व्याप्त नहीं कर सकते। यदि हम ऐसा करते हैं तो अनुमान प्रक्रिया में अनुचित (illicit process) का दोष उत्पन्न हो जाता है। निगमन में दो पद हैं-वृहद्पद आर लघुपद, जो आधार वाक्यों में भी है। अतः, यदि हम वृहद्पद को निगमन में व्याप्त करते हैं जब वह वृहद्वाक्य में अव्याप्त रहता है तब अनुचित वृहद्पद का दोष (the fallacy of illicit major) होता है। इसी प्रकार, जब लघुपद को निगमन में व्याप्त करते हैं जबकि वह लघुवाक्य में अव्याप्त रहता है तब उसे अनुचित लघुपद का दोष (The fallacy of illicit minor) कहते हैं।

उदाहरण:
All students are rich – A
No leaders are students – E
∴ No leaders are rich – E

इसमें अनुचित वृहद्पद का दोष है।

दूसरा उदाहरण:
All teachers are poor – A
Some boys are teachers – A
∴ All boys are poor – A

इसमें अनुचित लघुपद का दोष है।

प्रश्न 3.
सिद्ध करें कि अनुमान से मध्यवर्ती पद को कम-से-कम एक बार व्याप्त होना आवश्यक है।
उत्तर:
मध्यवर्ती पद का अनुमान में बहुत महत्त्व है। मध्यवर्ती पद का कार्य है वृहद्पद तथा लघुपद में संबंध स्थापित करना। वृहद्वाक्य में मध्यवर्ती पद का संबंध वृहद्पद से रहता है तथा लघुवाक्य में लघुपद से। अब मध्यवर्ती पद कम-से-कम एक बार भी व्याप्त नहीं है तो इसका अर्थ होगा कि वृहद्पद का संबंध मध्यवर्ती पद से किसी एक अंश से तथा लघुपद का संबंध मध्यवर्ती पद के किसी दूसरे अंश से है। ऐसी हालत में हम वृहद्पद तथा लघुपद में संबंध स्थापित नहीं कर सकते।

व्याप्त का अर्थ होता है निश्चित। अव्याप्त का अर्थ होता है। अनिश्चित। अगर मध्यवर्ती पद व्याप्त नहीं है, अर्थात् अव्याप्त है तो इसका अर्थ है कि मध्यवर्ती पद अनुमान में अनिश्चित है। जब मध्यवर्ती। पद अनिश्चित है तब वह लघुपद और वृहद्पद में किस प्रकार संबंध M स्थापित कर सकता है? मध्यवर्ती पद तो ठीक घटक या अगुआ की तरह है जो लड़का और लड़की के पक्ष में संबंध स्थापित करता है। अगर अगुआ ही अनिश्चित है तो वह किस प्रकार दो पक्षों को आपस में मिलाएगा?

अतः, मध्यवर्ती पद का कम-से-कम एक बार भी व्याप्त होना आवश्यक है। अगर वह व्याप्त नहीं है तो संबंध स्थापित नहीं हो सकता। एक सांकेतिक उदाहरण लेकर देखें कि अगर मध्यवर्ती पद अव्याप्त है तो संबंध स्थापित नहीं होता है, जैसे All P is M. AllS is M. यहाँ मध्यवर्ती पद M दोनों में अव्याप्त है। इस अनुमान को चित्र द्वारा प्रमाणित करते हैं। चित्र में हम देखते हैं कि M के ऊपरी हिस्से से संबंध है P का तथा M के निचले हिस्से से संबंध है S का। अब Pऔर S के बीच संबंध नहीं हो सकता, क्योंकि दोनों का संबंध मध्यवर्ती पद के दो हिस्सों से है। अतः, मध्यवर्ती पद का कम-से-कम एक बार व्याप्त होना आवश्यक है।

प्रश्न 4.
सिद्ध करें कि यदि दोनों आधार वाक्यों में एक निषेधात्मक हो तो निष्कर्ष अवश्य ही निषेधात्मक होगा।
उत्तर:
यदि दो आधार वाक्यों में एक निषेधात्मक है तो दूसरा अवश्य ही भावात्मक होगा; क्योंकि दो निषेधात्मक वाक्यों से निष्कर्ष नहीं निकलता है। अब यदि अनुमान में कोई आधार वाक्य निषेधात्मक है तो इसका अर्थ है कि उस वाक्य में मध्यवर्ती पद के साथ वृहद्पद या लघुपद किसी एक का संबंध नहीं है। दूसरा वाक्य भावात्मक है, तो इसका अर्थ है कि मध्यवर्ती पद के साथ किसी एक वृहद्पद या लघुपद का संबंध है।

मध्यवर्ती पद का संबंध एक से है तो इससे हम यही निष्कर्ष निकालेंगे कि वृहद्पद और लघुपद दोनों में निषेधात्मक संबंध है। एक उदाहरण से यह स्पष्ट हो जाएगा – मोहन और सोहन में संबंध है, सोहन और यदु में संबंध नहीं है। अतः, मोहन और यदु के बीच संबंध नहीं है। अतः, दो आधारवाक्यों में एक आधारवाक्य निषेधात्मक होता है तो निष्कर्ष अवश्य निषेधात्मक ही होगा। इस नियम का प्रतिलोम भी सत्य है। अगर निष्कर्ष होगा तो एक आधारवाक्य अवश्य ही निषेधात्मक होगा।

प्रश्न 5.
सिद्ध करें कि प्रत्येक न्याय में तीन और केवल तीन पद होते हैं।
उत्तर:
यदि तर्क के लिए मान लें कि न्याय में तीन पद नहीं हैं तो ये पद तीन से कम अर्थात् दो या तीन से अधिक हो सकते हैं। यदि किसी अनुमान में तीन से कम अर्थात् दो पद हैं तो यह न्याय न होकर साक्षात् अनुमान हो जाता है। यदि इसमें चार पद हों तो न्याय में ‘चतुष्पदीय दोष’ (fallacy of four terms) हो जाता है।

किसी भी न्याय में तीन पद होते हैं-वृहत्पद (major term), लघुपद (minor term) तथा मध्यवर्ती पद (middle term)। मध्यवर्ती पद एक माध्यम का कार्य करता है जिसके द्वारा वृहत्पद तथा लघुपद के बीच संबंध स्थापित किया जाता है। इसलिए तीन से कम पदों से न्याय नहीं बन सकता। चार पद यदि एक-दूसरे से पृथक् हों तो फिर दो पदों में संबंध स्थापित नहीं होगा। चार पद रहने से न्याय में दोष उत्पन्न हो जाता है, जिसे ‘चतुष्पदीय दोष’ कहते हैं। यह दोष तीन प्रकार से उत्पन्न हो सकता है –

(a) जब. मध्वर्ती पद द्वयर्थक (ambiguous middle) हो
(b) जब वृहत्पद द्वयर्थक (ambiguous major) हो, और
(c) जब लघुपद द्वयर्थक (ambiguous minor) हो।

उदाहरण (क):
All pages are Indian.
All books are made of pages.
∴ All books are Indian.

इस अनुमान में चार पद हैं। यहाँ ‘pages’ मध्यवर्ती पद है, जिसके दो अर्थ हैं – वृहद्वाक्य में इसका अर्थ ‘नौकर’ है तथा लघुवाक्य में इसका अर्थ ‘पन्ना’ है। इसलिए यहाँ चतुष्पदीय दोष हो जाता है। यह दोष मध्यवर्ती पद के दो अर्थों के कारण हुआ है।

(ख) धोबी की पत्नी स्त्री नहीं है।
धोबिन धोबी की पत्नी है।
∴ धोबिन स्त्री नहीं है।

इस अनुमान में वृहद्पद (स्त्री) दो अर्थों में प्रयुक्त है। वृहद्वाक्य में ‘स्त्री’ का अर्थ ‘iron’ है तथा निष्कर्ष में इसका अर्थ ‘औरत’ है। इसीलिए, इसमें चतुष्पदीय दोष उत्पन्न हो गया है।

(ग) अस्त्र वीरों का सहायक है।
तीर (वाण) एक अस्त्र है।
∴ तीर (नदी का किनारा) वीरों का सहायक है।

यहाँ लघुपद (तीर) द्वयर्थक है। लघुवाक्य में ‘तीर’ का अर्थ ‘वाण’ है तथा निष्कर्ष में इसका अर्थ ‘नदी का किनारा’ है। इसीलिए इस न्याय में चतुष्पदीय दोष उत्पन्न हो जाता है। अतः सिद्ध होता है कि न्याय में केवल तीन पद होते हैं, न उससे कम न उससे अधिक।

प्रश्न 6.
सिद्ध करें कि प्रत्येक न्याय में केवल तीन वाक्य होते हैं।
उत्तर:
प्रत्येक न्याय में केवल तीन वाक्य होते हैं, यही सिद्ध करना है। मान लें कि न्याय में तीन वाक्य नहीं हैं तो इसमें या तो तीन से कम अर्थात् दो वाक्य होंगे या तीन से अधिक वाक्य होंगे। यदि इसमें तीन से कम अर्थात् दो वाक्य हैं तो यह अनुमान साक्षात् अनुमान होगा, न कि न्याय या मध्याश्रित अनुमान। अतः, तीन से कम वाक्य नहीं होंगे। अब यदि इसमें तीन से अधिक वाक्य हैं तो यह एक न्याय न होकर कई न्यायों का समूह होगा। इसलिए न्याय में तीन से अधिक वाक्य नहीं होंगे। अतः यह प्रमाणित होता है कि न्याय में केवल तीन वाक्य होते हैं।

प्रश्न 7.
सिद्ध करें कि यदि दोनों आधार वाक्य-निषेधात्मक हों तो उनसे कोई निष्कर्ष नहीं निकलता।
उत्तर:
किसी भी न्याय में मध्यवर्ती पद का कार्य वृहद्पद तथा लघुपद के बीच संबंध स्थापित करना है। वृहद्वाक्य तथा लघुवाक्य के निषेधात्मक होने का अर्थ है कि मध्यवर्ती पद वृहद्पद से पृथक् है और यह लघुपद से भी पृथक् है। ऐसी स्थिति में यह वृहद्पद तथा लघुपद के बीच संबंध स्थापित करने में असमर्थ है। अतः दोनों आधारवाक्य निषेधात्मक होने से कोई निष्कर्ष नहीं निकलता। यही सिद्ध करना था।

प्रश्न 8.
सिद्ध करें कि यदि दोनों आधार वाक्य अंशव्यापी हों तो उनसे कोई निष्कर्ष नहीं निकलता।
उत्तर:
अंशव्यापी वाक्य दो हैं ‘I’ तथा ‘O’। यदि न्याय के दोनों आधारवाक्य अंशव्यापी हों, तो चार संयोग (combinations) बन सकते हैं – II, IO, OI, OO. इन चारों संयोगों में किसी से भी सही निष्कर्ष नहीं निकल सकता। इसे हम यों सिद्ध कर सकते हैं –
‘II’ आधारवाक्यों में कोई पद व्याप्त नहीं है। अतः, इनसे बने न्याय में अव्याप्त मध्यवर्ती पद का दोष हो जाता है। इसलिए II से सही निष्कर्ष नहीं निकल सकता।

IO तथा OI – इन योगों में एक आधारवाक्य निषेधात्मक है, इसलिए इनके निष्कर्ष निषेधात्मक होंगे तथा इनमें विधेय अर्थात् वृहद्पद व्याप्त होंगे। इन आधारवाक्यों में केवल एक ही पद व्याप्त हो सकता है। वृहद्पद के निष्कर्ष में व्याप्त होने के कारण इसे वृहद्वाक्य में व्याप्त करना आवश्यक है। ‘IO’ योग में वृहद्वाक्य ‘I’ है जिसका कोई भी पद व्याप्त नहीं है। अतः, इसमें अनुचित वृहद्पद का दोष हो जाता है। ‘OI’ योग में वृहद्वाक्य ‘O’ है, जिसका विधेय व्याप्त है।

वृहद्पद को इसका विधेय बना देने से यह दोष तो नहीं होता, परंतु मध्यवर्ती पद अव्याप्त रह जाता है और यहाँ अव्याप्त मध्यवर्ती पद का दोष हो जाता हैं अतः, ‘IO’ तथा ‘O’ से निष्कर्ष नहीं निकल सकता। OO – यहाँ दोनों आधारवाक्य निषेधात्मक है। अतः, इनसे कोई निष्कर्ष नहीं निकल सकता। इस योग में दो निषेधात्मक आधारवाक्यों का दोष (fallacy of two negatives) हो जाता है। अतः, उपर्युक्त विवेचन से सिद्ध होता है कि दो अंशव्यापी आधारवाक्यों से कोई निष्कर्ष नहीं निकलता।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित की जाँच करें।
1. The virtuous alone are happy. He virtuous. Therefore he is happy
उत्तर:
L.F – All happy persons are virtuous – A
He virtuous – A
∴ He is happy – A
यह शुद्ध निरपेक्ष न्याय का उदाहरण है। इसके दोनों आधारवाक्य भावात्मक हैं और मध्यपद दोनों आधारवाक्य में विधेय की जगह पर रहने से अव्याप्त है और न्याय के तीसरे नियम के अनुसार सही निष्कर्ष निकालने के लिए न्याय के दोनों आधारवाक्य में मध्यपद को कम-से-कम एक बार अवश्य ही व्याप्त होना चाहिए, जो इस न्याय में नहीं है। अतः, यह दोषपूर्ण है और इसमें ‘अव्याप्त मध्यपद-दोष’ (Fallacy of Undistributed Middle) है।

2. All students are men. Therefore all men are students.
उत्तर:
L.F. – All students are men. – A
∴ All men are students. – A

यह साक्षात् अनुमान का उदाहरण है। यहाँ A का आवर्तन A में किया गया है जिसके कारण आवर्तन के तीसरे नियम (जो पद आधारवाक्य में व्याप्त नहीं है उसे निष्कर्ष में भी व्याप्त नहीं होना चाहिए) का उल्लंघन हुआ है। आधारवाक्य में ‘men’ अव्याप्त है, परंतु निष्कर्ष में A वाक्य का उद्देश्य होने से व्याप्त हो गया है। अतः, यह गलत आवर्तन का दोष है।

3. Ritu is the teacher of Rupu. Rupu is the teacher of Rupesh. Therefore.. Ritu is the teacher of Rupesh.
उत्तर:
L.F. – Rupu is the teacher of Rupesh. – A
Ritu is the teacher of Rupu. – A
∴ Ritu is the teacher of Rupesh. – A

यह मध्याश्रित अनुमान का उदाहरण है। इस न्याय में तीन पद के बदले चार पद का व्यवहार किया गया है, इसलिए यह न्याय दोषपूर्ण है और इस दोष को ‘चतुष्पद दोष’ (Fallacy of Four Terms) कहते हैं। ये चार पद हैं –

  • Rupu
  • The teacher of Rupesh
  • Ritu तथा
  • The teacher of Rupu.

प्रश्न 10.
अनुचित लघुपद दोष क्या है?
उत्तर:
अनुचित लघुपद का दोष-यह दोष न्याय में तब होता है, जब लघुपद लघुवाक्य में अव्याप्त हों, किन्तु निष्कर्ष में व्याप्त हो। जैसे –
A. All good men are kind.
A. All kind persons are poor persons.
A. ∴ All poor persons are good men.
यहाँ लघुपद (poor persons) लघुवाक्य में ‘A’ का विधेय होने के कारण अव्याप्त है, किन्तु निष्कर्ष में ‘A’ का उद्देश्य होने के कारण व्याप्त है। अतः, यहाँ अनुचित लघुपद का दोष है।

प्रश्न 11.
न्याय के योग पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
योग (Mood) न्याय का वह रूप है जो न्याय के तर्कवाक्यों (आधार का निष्कर्ष) से अथवा आधारवाक्यों से निर्धारित होता है। परिणाम और गुण के अनुसार चार आदर्श तर्कवाक्य होते हैं – ‘A’, ‘E’, ‘I’ और ‘O’। योग के इन्हीं चारों वाक्यों में किन्हीं तीन का सामंजस्य होता है और इनमें किन्हीं तीन तर्कवाक्यों के सम्मिश्रण को न्याय का योग कहते हैं। चारों आकारों के कुल उन्नीस योग यथार्थ माने जाते हैं।

प्रश्न 12.
न्याय के आकारों पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
न्याय का आकार मध्यवर्ती पद के आधारवाक्यों में स्थान के आधार पर निर्धारित होता है। मध्यवर्ती पद वृहद्वाक्य और लघुवाक्य में उद्देश्य और विधेय के स्थान पर रह सकता है। इस प्रकार, न्याय के चार प्रकार के आकार होते हैं-प्रथम आकार, द्वितीय आकार, तृतीय आकार तथा चतुर्थ आकार।

प्रथम आकार के वृहद्वाक्य में मध्यवर्ती पद उद्देश्य के स्थान पर रहता है और लधुवाक्य में विधेय के स्थान पर रहता है। द्वितीय आकार में मध्यवर्ती पद दोनों आधारवाक्यों में विधेय के स्थान पर रहता है। तृतीय आकार में मध्यवर्ती पद दोनों आधारवाक्यों में उद्देश्य के स्थान पर रहता है। चतुर्थ आकार में मध्यवर्तीय पद वृहद्वाक्य में विधेय के स्थान पर तथा लघुवाक्य में उद्देश्य के स्थान पर रहता है।

यहाँ ‘M’ मध्यवर्ती पद, ‘P’ वृहद्पद तथा ‘S’ लघुपद है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मध्याश्रित अनुमान या न्याय क्या है? इसके लक्षण का उल्लेख करते हुए इसका विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
तर्कशास्त्र के महान् विद्वान अरस्तू के अनुसार मध्याश्रित अनुमान न्याय हैं इसमें दो आधार वाक्यों से निष्कर्ष की प्राप्ति होती है। इन दो आधार वाक्यों के बीच एक मध्यवर्ती पद होता है जिसके सहारे ही निष्कर्ष निकाला जाता है। इस मध्याश्रित अनुमान को अरस्तू ने “न्याय” (Syllogism) की संज्ञा दी है। इसकी परिभाषा में कहा गया है –

“A syllogism is a form of mediate deducive inference, in which the con clusion is drawn from premises, taken jointly.” अर्थात् न्याय निगमनात्मक अनुमान का वह रूप है जिसमें दो आधार वाक्यों के सम्मिलन से निष्कर्ष निकाला जाता है, यथा –

All men are mortal – premise
Ram is a man.
∴ Ram is mortal – conclusion

न्याय के लक्षण (Characteristics of Syllogism):
उपर्युक्त परिभाषा के आधार पर न्याय के निम्नलिखित लक्षणों का बोध होता है।

1. न्याय का निष्कर्ष दो आधार वाक्यों के सहारे निकाला जाता है, यथा –
सभी मनुष्य मरणशील हैं,
राम मनुष्य है
∴ राम मरणशील है।
चूँकि इसमें दो आधार वाक्य होते हैं इसलिए इसे मध्याश्रित अनुमान (Mediate Inference) कहते हैं।

2. वह निगमनात्मक अनुमान है इसलिए इसका निष्कर्ष आधार वाक्य से अधिक व्यापक नहीं हो सकता है। We cannot go beyond the data.

3. आधार वाक्य की सत्यता मान ली जाती है। आधार की सत्यता को शक की दृष्टि से नहीं देखना है बल्कि यह देखना है कि आधार वाक्य से नियमानुकूल निष्कर्ष निकलता है या नहीं। अनुमान का रूप सही होना चाहिए। विषय से हमें यहाँ मतलब नहीं है। क्योंकि इसमें Formal truth से ही संबंध है। यथा –

All men are gods.
Ram is a man.
∴ Ram is a god.
इस व्यापकता का रूप एकदम सही है। यदि दोनों आधार वाक्य सत्य मान लिया जाए तो निष्कर्ष भी सत्य मानना है।

न्याय का विश्लेषण (Analysis of syllogism):
बनावट की दृष्टि से न्याय का विश्लेषण निम्नलिखित ढंग से कर सकते हैं।

  • All men are mortal – Premise
  • Ram is a man – Premise II
  • Ram is mortal – conclusion.

यहाँ तीन वाक्य है और प्रत्येक वाक्य में दो पर्दे हैं, उद्देश्य और विधेय (subject and predicate) इसलिए 3 × 2 = 6 पर होनी चाहिए। लेकिन इसमें तीन ही पद की मान्यता दी गई है। क्योंकि प्रत्येक पद दो बार आये हैं। ये तीन पद हैं – (a) लघु पद (Minor term) इसमें conclusion के subject को Minor term (लघु पद) कहते हैं। यह पद बीच वाला वाक्य के subject के स्थान पर भी है (Ram)। इसे वृहत् पद Major term निष्कर्ष के विधेय predicate का वृहत् पद (Major term) कहते हैं और यह प्रथम आधार पर वाक्य का विधेय से भी है – (Mortal)।

मध्यवर्ती पद (Middle term):
जो पद दोनों आधार वाक्यों में होता है लेकिन निष्कर्ष में नहीं उसे मध्यवर्ती पद कहते हैं। यहाँ Man ही middle term है। इस तरह सांकेतिक भाषा में minor term को S, Major term को P तथा Middle term को M कहते हैं। इसमें M ही S and P के बीच संबंध स्थापित कराता है। जैसे – All men are mortal में Man को Mortal से संबंधित किया गया है। इसके दूसरे आधारवाक्य में Ram is a man में राम को Man से संबंधित किया गया है। इसलिए एक ही पद Man से Ram and mortal दोनों संबंधित होने के कारण वे आपस में भी संबंधित हो जाएँगे अर्थात् Ram is mortal होगा।

न्याय में तीन Propositions होते हैं, जैसे –

  • All men are rich.
  • Ram is man.
  • Ram is rich.

इसमें पहले वाक्य को वृहत् वाक्य Major premise कहते हैं, क्योंकि इसमें Major term आया है – Rich और दूसरे वाक्य को लघु वाक्य Minor premise कहते हैं क्योंकि इसमें Minor term आया है – (Ram) और तीसरे वाक्य को निष्कर्ष (conclusion) कहते हैं, जैसे –
∴ Ram is rich तीसरा वाक्य है। इस तरह Syllogism में Major Premise, Minor Premise and conclusion होते हैं। जैसे –
All men are rich – Major premise
Ram is a man – Minor premise
∴ Ram is rich – conclusion.

Major premise में दो Middle term and Major term (M.P.) Minor premise में भी दो पद हैं Minor term and middle term (S-M) तथा conclusion में भी दो पद हैं Minor term and Major term (S-P).

इस तरह Syllogism की रूप-रेखा इस प्रकार बनती है:
Major premise (M-P) Minor premise (S-M), conclusion (S-P)

प्रश्न 2.
न्याय के विभिन्न प्रकारों का वर्णन करें।
उत्तर:
न्याय के प्रकार (Kinds of syllogism):
न्याय दो प्रकार के होते हैं –
(a) शुद्ध (Pure) और
(b) मिश्रित (Mixed)

(a) जिस न्याय में तीनों वाक्य एक ही तरह के होते हैं, उसे शुद्ध न्याय कहते हैं। अर्थात् तीनों categorical हों या तीनों Hypothetical हों या तीनों disjunctive हों, जैसे –
All men are mortal.
Ram is a man.
∴ Ram is mortal. ये तीनों वाक्य categorical हैं।

लेकिन जिस न्याय के तीनों वाक्य एक तरह के नहीं होते हैं, उसे मिश्रित न्याय कहते हैं। . यह mixed syllogism भी तीन तरह के हैं।

  • हेत्वाश्रित निरपेक्ष न्याय
  • वैकल्पिक निरपेक्ष न्याय
  • द्विविधा

इसमें शुद्ध न्याय जिसके तीनों वाक्य categorical propositions होते हैं। यह न्याय तभी सही valid माना जाएगा जब कि वह नियमों का पालन करता हो। अतः इसे न्याय के सामान्य नियम (general syllogism Rules) कहते हैं, जो निम्नलिखित दस हैं।

1. नियम:
Every syllogism must have three and only three terms अर्थात् प्रत्येक न्याय में तीन और केवल तीन पदों का प्रयोग होना चाहिये। जैसा कि हम जानते हैं कि Major term, Minor and Middle term तीन पद होते हैं।

इस नियम के उल्लंघन करने से चतुष्पद दोष (Fallacy of four term) हो जाते हैं। यह दोष तब होता है जब Middle term के दो अर्थ होते हैं, जैसे –

धोबी की पत्नी स्त्री (Iron) नहीं है।
धोबिन धोबी की पत्नी है।
∴ धोबिन स्त्री (औरत) नहीं है।

अस्त्र वीरों का सहारा है।
तीर (वाण) एक अस्त्र है।
∴ तीर (नदी का किनारा) वीरों का सहारा है।

इसमें स्त्री वृहत् पद में कपड़ा iron का अर्थ और निष्कर्ष में स्त्री औरत का अर्थ रखता है। इस तरह तीर लघु पद में दो अर्थ रखता है। इसे चतुष्पद का दोष या द्वयअर्थक का दोष Fallacy of ambiguous or Fallacy of four terms कहते हैं। इस तरह हर न्याय में हर हालत में तीन ही पद होना चाहिए। कम या अधिक नहीं।

2. नियम:
Every syllogism must have three and only three propositions. अर्थात् प्रत्येक न्याय में तीन और केवल तीन वाक्य होने चाहिए। न्याय में तीन ही पद होते हैं इन तीनों पदों में आपस में केवल तीन प्रकार के ही संबंध हैं इसलिए केवल तीन ही तर्क वाक्य बनने की गुंजाइश होती है।

  • मध्य पद का जब वृहत् पद से संबंध स्थापित करते हैं तो वृहत् वाक्य बनता है।
  • मध्य पद का संबंध जब लघु पद से बनता है तब लघु वाक्य बनता है।
  • वृहत् पद तथा लघु पद के आपसी संबंध से निष्कर्ष वाक्य की प्राप्ति होती है, जैसे-सभी जीव ईश्वर की संतान हैं।

सभी मनुष्य जीव हैं।
∴ सभी मनुष्य ईश्वर की संतान हैं।

3. नियम:
Middle term must be distributed at least once. अर्थात् मध्य पद को कम-से-कम एक बार अवश्य होना चाहिए। निष्कर्ष के लिए यह आवश्यक है कि Middle term को कम-से-कम एक बार पूरे रूप से S या P के संबंध हो आंशिक रूप से नहीं। यदि Middle term पूर्ण रूप से एक बार भी आ जाता है अर्थात् व्याप्त हो जाता है तो S या P का पूर्ण रूप से M से संबंध होता है। उस हालत में दूसरे को यदि इसके अर्थ में भी संबंध होता है तो उस अर्थ में S और P संबंधित हो जाते हैं जिससे निष्कर्ष संभव हो जाता है। इसलिए मध्यवर्ती पद को कम-से-कम एक बार व्याप्त होना आवश्यक है।

इस नियम का उल्लंघन:
यदि मध्यवर्ती पद को दोनों आधार वाक्यों में एक बार भी व्याप्त नहीं करते हैं तो इस नियम के उल्लंघन होने से अव्याप्त मध्यवर्ती पद का दोष (Fallacy of undistributed middle) हो जाता है, जैसे –
Some of the unemployed are, idle – I
∴ He is idle – A.
∴ He is unemployed – A.

यहाँ iddle middle term है जो एक बार भी व्याप्त नहीं है क्योंकि पहले में यह I का तथा दूसरे में A का विधेय है जो अपने विधेय को व्याप्त नहीं करते हैं। अतः इस अनुमान में अव्याप्त मध्यवर्ती पद का दोष है। Fallacy of undistributed term. इस तरह I must get the concession, because I am a student and only stu dents get the concession को जब Syllogism में लाते हैं तो इस प्रकार L.F. –
L.F. All who get concession are students. – A
I am a student. – A
∴ I am such who must get the concession. – A

यहाँ दोनों आधार वाक्यों में student ही middle term है जो व्याप्त नहीं है। अतः अव्याप्त मध्यवर्ती पद का दोष है।
हिन्दी में –

(i) सत्यवादी मनुष्य सुखी हैं – A
सभी धनी व्यक्ति सुखी हैं – A
∴ सभी धनी व्यक्ति सत्यवादी हैं – A

(ii) सोहन का पिता मनुष्य है – A
मोहन का पिता मनुष्य है – A
∴ मोहन का पिता सोहन के पिता हैं – A

इन दोनों उदाहरणों में मध्यवर्ती पद सुखी पहले में तथा दूसरे में मनुष्य पद अव्याप्त है, अतः अव्याप्त मध्यवर्ती पद का दोष हो जाता है।

4. नियम:
No term should be distributed in the conclusion which is not distributed in the premise. अर्थात् निष्कर्ष में उस पद को व्याप्त नहीं करना चाहिए जो आधार वाक्य में व्याप्त नहीं है। यह तो साधारण नियम है कि निष्कर्ष आधार वाक्य से अधिक व्यापक नहीं होना चाहिए। अव्याप्त का अर्थ है “कुछ” और व्याप्त का अर्थ है “पूरा”। इसलिए आधार के अव्याप्त पद को निष्कर्ष में व्याप्त नहीं कर सकते हैं। इस नियम के उल्लंघन करने पर दो तरह के दोष हो जाते हैं –

(i) अनुचित वृहत् पद का दोष तथा अनुचित लघु पद का दोष।

(ii) निष्कर्ष में लघु पद तथा वृहत् पद रहते हैं। अतः यह सिद्ध है कि जब लघु पद आधार वाक्य में अव्याप्त हो और निष्कर्ष में व्याप्त हो तो अनुचित लघुपद दोष (Fallacy of illicit minor) हो जाता है और जब वृहत् पद अपने आधार वाक्य में अव्याप्त हो और निष्कर्ष में व्याप्त तब अनुचित वृहत् पद-दोष (Fallacy of illicit major) हो जाता है, जैसे – You are not what, I am a man, therefore you are not a man.

L.F A I/am a man – Major premise
E You/are not/I – Minor premise
∴ You/are not a man – conclusion

यहाँ ‘A man’ major term है। क्योंकि यही निष्कर्ष का Predicate है जो विधेय होने के कारण व्याप्त है परन्तु विधेय होने के कारण आधार वाक्य में यह अव्याप्त है। इस तरह आधार का अव्याप्त Major term निष्कर्ष में आकार व्याप्त हो गया है। इसलिए इसमें अनुचित वृहत् पद-(Fallacy of illicit major term) का दोष है।

(iii) इसी तरह आधार में minor term के व्याप्त नहीं रहने पर यदि निष्कर्ष में उसे व्याप्त कर लिया जाता है तो उत्पन्न दोष को अनुचित लघुपद का दोष (Fallacy of illicit minor) कहा जाता है। जैसे – No tale bearer is trusted and therefore no great talker is to be trusted for all tale bearer are great talkers. इसे L.F. बनाकर Syllogism का रूप देने पर –

E No tale bearer is to be trusted.
A – All tale-bearers are great talkers.
∴ E No great talkers are to be trusted.

यहाँ minor term ‘great talkers’ आधार वाक्य ‘A’ का विधेय होने के कारण अव्याप्त है जो निष्कर्ष में E का उद्देश्य होने के कारण व्याप्त है। अतः अनुचित लघुपद का दोष (Fallacy of illicit minor) का दोष हो जाता है।

(i) All P is M
Some S is not P.
∴ No Sis P

(ii) Some S is P.
No Sis M.
∴ No Sis P.

हाँ पहले वाक्य में Fallacy of illicit minor है तथा दूसरे में Fallacy of illicit manor है।

5. नियम:
If both the premise be negative no conclusion follows. अर्थात् यदि दोनों आधार वाक्य निषेधात्मक हो तो निष्कर्ष नहीं निकलता है। यहाँ हम देखते हैं कि निषेधात्मक वाक्यों में A उद्देश्य और विधेय में मेल नहीं होता है, जैसे-गुलाब लाल नहीं है तो यह निषेधात्मक वाक्य है। इसका अर्थ है कि गुलाब और लाली में मेल नहीं है। इसी तरह यदि दोनों आधार वाक्य निषेधात्मक हैं तो मध्यवर्ती पद को न तो वृहद् पद से मेल होगा न लघु पद से।

इस हालत में मध्यवर्ती पद में मध्यस्थ का काम नहीं कर सकता। इस हालत में दोनों निषेधात्मक वाक्य रहने से निष्कर्ष संभव नहीं है। इस नियम के उल्लंघन करने पर उत्पन्न दोष को निषेधात्मक आधार वाक्यों का दोष (Fallacy of negative premise) कहते हैं। जैसे –

गणेश कार्तिक का भाई नहीं है।
कार्तिक का भाई कृष्णा का दुश्मन नहीं है।
∴ कृष्णा का दुश्मन गणेश नहीं है।

यह न्याय गलत है। क्योंकि यहाँ उभय निषेध दोष (Fallacy of two negative premises) है।
इसी तरह ENo M is P.
E No S is M.
कोई शुद्ध निष्कर्ष नहीं होगा।

6. नियम:
If one premise be negative the conclusion must be negative. अर्थात् यदि कोई एक आधार वाक्य निषेधात्मक हो तो निष्कर्ष अवश्य निषेधात्मक होगा।

प्रमाण:
यदि एक आधार वाक्य निषेधात्मक होगा तो दूसरा अवश्य ही भावात्मक होगा। क्योंकि नियम (5) के अनुसार दोनों आधार वाक्य निषेधात्मक नहीं हो सकते हैं। इसका अर्थ है कि मध्यवर्ती पद को लघुपद और वृहत् पद में से एक के साथ मेल है और दूसरे के साथ मेल नहीं है तो निष्कर्ष निषेधात्मक होगा क्योंकि निषेधात्मक वाक्य में ही दो पदों के बीच मेल का अभाव बताया जाता है। इस नियम का प्रतिकूल भी सत्य है कि यदि निष्कर्ष ही निषेधात्मक हो तो एक आधार वाक्य अवश्य ही निषेधात्मक होगा।

प्रमाण:
यदि निष्कर्ष निषेधात्मक है तो एक आधार वाक्य अवश्य ही निषेधात्मक होगा क्योंकि दोनों आधार वाक्य भावात्मक भी नहीं हो सकते हैं और दोनों निषेधात्मक भी नहीं। हर हालत में एक वाक्यं निषेधात्मक होने पर ही निष्कर्ष निषेधात्मक होगा, यथा –

7. नियम:
(If both premises are affirmative the conclusion must be affir mative) अर्थात् यदि दोनों आधार वाक्य भावात्मक हों तो निष्कर्ष अवश्य भावात्मक होगा।

प्रमाण:
दोनों आधार वाक्य भावात्मक हैं तो इसका अर्थ है कि S और P दोनों को M से मेल है। इसी तरह उन दोनों के बीच भी मेल अवश्य होगा क्योंकि एक ही वस्तु से यदि दो चीजें मेल रखती हैं तो उनमें भी आपस में मेल होता है। अतः यदि S का M से मेल है और P को M से मेल है तो स्पष्ट है कि S और P में मेल है। अर्थात् निष्कर्ष अवश्य ही भावात्मक होगा। इस नियम का प्रतिकूल भी सत्य है कि यदि निष्कर्ष ही भावात्मक रहता है।

तो दोनों आधार वाक्य अवश्य ही भावात्मक होते हैं (If the conclusion be affirmative both the premises must be affirmative) न्याय में यदि दोनों आधार वाक्य स्वीकारात्मक हो तो इसका अर्थ है कि मध्य पद का लघु पद एवं वृहत् पद दोनों से भावात्मक संबंध है। तब निष्कर्ष भी भावात्मक नहीं होगा। इसी तरह जब निष्कर्ष भावात्मक है तो दोनों के दोनों आधार वाक्य निषेधात्मक नहीं हो सकते हैं और ऐसा भी नहीं हो सकता है कि एक भावात्मक और दूसरा निषेधात्मक। अतः हर हालत में यदि निष्कर्ष भावात्मक है तो दोनों ही आधार वाक्य अवश्य ही भावात्मक है।

8. नियम:
If both the premises be particular no conclusion can be inferred. अर्थात् यदि दोनों आधार अंशव्यापी हो तो उससे कोई उचित निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है।

प्रमाण:
अंशव्यापी वाक्य दो हैं I and O। यदि दोनों आधार वाक्य अंशव्यापी हों तो निम्नलिखित योग बनेगा।
I – I, 0 – 0, 0 – I
अब यदि प्रमाणित कर दिया जाए कि इन दोनों में से किसी से सही निष्कर्ष नहीं निकलेगा तो नियम सिद्ध हो जाएगा।

(i) I – I
M.P. I Major Premise
M.S. I Minor Premise
यदि इसमें दोनों आधार वाक्य I है तो मध्य पद से एक बार भी व्याप्त होने का मौका नहीं मिलता है। क्योंकि I वाक्य अपने उद्देश्य और विधेय को व्याप्त नहीं कर पाता है। इसलिए इसमें अव्याप्त मध्यवर्ती पद का दोष हो जाता है। इसलिए सही निष्कर्ष नहीं है।

(ii) O – O
‘O’ Major premise
‘O’ Minor premise.
यहाँ दोनों आधार वाक्य negative हैं इसलिए negative premise का दोष हो जाता है। इसलिए सही निष्कर्ष नहीं होता है।

(iii) I – O
MP I Major premises
MS ‘O’ minor premise
S conclusion

यहाँ एक आधार वाक्य negative ‘O’ है। इसलिए नियमानुसार निष्कर्ष भी negative में होगा। ऐसा होने से उसका विधेय पद P जो कि major term है, व्याप्त हो जाता है। इसलिए नियमानुसार उसे आधार में भी व्याप्त होना चाहिए। इसलिये Major premise में P को व्याप्त करना चाहिए। लेकिन Major premise I है जो किसी पद को व्याप्त नहीं कर पाता है। अर्थात् आधार वाक्य में P व्याप्त नहीं हो पाता है। अतः आधार का अव्याप्त major term निष्कर्ष में आकर व्याप्त हो जाता है। जिससे अनुचित वृहत्पद का दोष हो जाता है। इसलिए इस योग में भी सही निष्कर्ष नहीं निकलता है।

(iv) O – I
MP – O Major premise
MSI – Minor premise
S P – Conclusion.

यहाँ भी निष्कर्ष negative ही होगा क्योंकि एक आधार वाक्य negative है, इसलिए निष्कर्ष में Major term P में विधेय की जगह पर है, अवश्य व्याप्त हो जाएगा। Major premise ‘O’ वाक्य है जिसका विधेय व्याप्त रहता है। इसलिए P को वहाँ विधेय की जगह पर रखना होगा। फलतः मध्य पद उद्देश्य की जगह पर चला जायेगा। जहाँ ‘O’ वाक्य का उद्देश्य होने के कारण अव्याप्त रह जाएगा। इस तरह major term में middle term व्याप्त नहीं हो पाता है।

Minor premise में व्याप्त नहीं हो सकता है। क्योंकि ‘I’ वाक्य है इस तरह मध्य पद को एक बार भी व्याप्त होने का मौका नहीं मिल पाता है। अतः अव्याप्त मध्यवर्ती पद का दोष हो जाता है। इसलिए इस योग से भी सही निष्कर्ष नहीं निकल सकता है। इस तरह यदि दोनों आधार वाक्य अंशव्यापी हो तो कोई न कोई दोष उत्पन्न हो जाता है। अतः निष्कर्ष नहीं हो सकता है।

9. नियम:
If one of the premises be particular, the conclusion must be particular. अर्थात् यदि एक आधार वाक्य अंशव्यापी हो तो निष्कर्ष अवश्य अंशव्यापी होगा। निष्कर्ष में जब एक आधार वाक्य अंशव्यापी है तो दूसरा अवश्य ही पूर्णव्यापी होगा। अतः पूर्णव्यापी और अंशव्यापी की मिलावट से निम्नलिखित संयोग हो सकता है – A – I. I – A, A – O, O – A, E – I, I – E, E – O and O – E। इन संयोगों में E – O तथा O – E के संयोग से कोई भी निष्कर्ष नहीं निकलेगा क्योंकि ये दोनों निषेधात्मक वाक्य हैं और दो निषेधात्मक वाक्य से जो निष्कर्ष निकलता है उसे Fallacy of two negatives कहते हैं।

A – I तथा I – A संयोग-जब आधार वाक्य में एक ‘A’ तथा दूसरा ‘I’ हो तो सिर्फ एक ही पद व्यापक होगा और वह है ‘A’ का उद्देश्य। अव्याप्त मध्य पद दोष से बचने के लिए इस व्याप्त पद को मध्य पद मानना पड़ेगा। आधार वाक्य में एक भी पद व्याप्त नहीं रह जाता है। लघुपद जो निष्कर्ष का उद्देश्य है उसे भी निष्कर्ष में अव्याप्त ही रखना पड़ेगा। क्योंकि यह लघु पद आधार वाक्य में व्याप्त नहीं हैं। अतः A – I तथा I – A के संयोग से निष्कर्ष तो अंशव्यापी ही होगा। A – O तथा O – A का संयोग-आधार वाक्य में यदि एक A हो और दूसरा 0 तो दोनों वाक्यों में दो पद व्याप्त होंगे-A का उद्देश्य तथा ‘O’ का विधेय।

अतः अव्याप्त मध्य पद-दोष से बचने के लिए इन दो व्याप्त पदों में एक को मध्य पद का स्थान देना होगा। अब एक व्याप्त पद बच जाएगा। इस व्याप्त पद को वृहत् पद बनाना होगा क्योंकि यह वृहत् पद निष्कर्ष में व्याप्त हो जाएगा तथा निष्कर्ष निषेधात्मक होगा और निषेधात्मक वाक्य में विधेय व्याप्त होता है। अब आधार वाक्यों में लघुपद अव्याप्त रह जाएगा। अतः अनुचित लघुपद-दोष से बचने के लिए लघुपद को निष्कर्ष में अव्याप्त रखने के लिए निष्कर्ष से अंशव्यापी वाक्य बनाना पड़ेगा। अतः A – O तथा O – A के संयोग से निष्कर्ष वाक्य अंशव्यापी वाक्य होगा।

E – I तथा I – E का संयोग-आधार वाक्यों में यदि एक वाक्य ‘E’ और दूसरा I हो तो दोनों आधार वाक्यों में दो पद व्याप्त होंगे। E – I तथा I – E और वह का उद्देश्य और विधेय होगा। इन दो व्याप्त पदों में एक को मध्य पद मानना होगा। ऐसा करने से अव्याप्त पद का दोष नहीं होगा। एक वाक्य निषेधात्मक है। इसलिए निष्कर्ष भी निषेधात्मक होगा। निष्कर्ष के निषेधात्मक होने से उसका विधेय वृहत् पद व्याप्त होगा।

अतः अनुचित वृहत् पद के दोष से बचने के लिए आधार वाक्य में जो पद रह जाता है, उसे वृहत् पद ही मानना होगा। अब आधार वाक्यों में लघु पद अव्याप्त रह जाता है। अनुचित लघु पंद दोष से बचने के लिए इस लघु पद को निष्कर्ष में भी अव्याप्त रखना होगा और ऐसा तभी संभव है जब निष्कर्ष को अंशव्यापी माना जाए। अतः £1 तथा 1 – 4 के संयोग से भी निष्कर्ष अंशव्यापी वाक्य ही होगा। अतः सभी संयोगों की परीक्षा के बाद निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि आधार वाक्य में यदि एक पूर्णव्यापी और दूसरा अंशव्यापी हो तो निष्कर्ष भी अंशव्यापी ही होगा।

10. नियम:
From particular major and negative minor no conclusion follows अर्थात्. वृहत् वाक्य यदि अंशव्यापी हो और लघु वाक्य निषेधात्मक हो तो कोई निष्कर्ष नहीं निकलता है।

प्रमाण:
यदि Major premise अंशव्यापी हो और minor premise निषेधात्मक हो तो सिद्ध करना है कि सही निष्कर्ष नहीं होगा। चूँकि लघु वाक्य निषेधात्मक है, इसलिए वृहत् वाक्य अवश्य ही भावात्मक होगा। नियम 5 के अनुसार यहाँ पहले से अंशव्यापी दिया हुआ है। इसलिए यह वाक्य होगा। वृहत् वाक्य के I होने के नाते वृहत् पद ‘P’ यहाँ अव्याप्त रह जायेगा।

लेकिन लघु वाक्य के निषेधात्मक होने के कारण निष्कर्ष अवश्य निषेधात्मक होगा। नियम 6 के अनुसार इसका विधेय अर्थात् वृहत् पद ‘P’ व्याप्त हो जाएगा। इस तरह आधार वाक्य का अव्याप्त वृहत् पद पर निष्कर्ष में आकर व्याप्त हो जाएगा जिस कारण से fallacy of illicit major का दोष हो जाएगा। इसलिए यदि वृहत् वाक्य अंशव्यापी हो और लघु वाक्य निषेधात्मक हो तो सही निष्कर्ष नहीं होगा।

प्रश्न 3.
न्याय के आकार की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
न्याय के आकार (Figure of Syllogism):
Syllogism का आकार उसके middle term के स्थान पर निर्भर करता है। वह दोनों आधारों में चार तरह से स्थान ग्रहण कर सकता है। इसलिए syllogism के आकार (Figures) चार तरह के होते हैं।

1. प्रथम आकार (First Figure):
मध्यवर्ती पद (Middle term) major premise में उद्देश्य के स्थान पर और Minor premise में विधेय के स्थान पर होता है, यथा –

2. द्वितीय आकार (Second Figure):
इस आकार में दोनों आधार वाक्यों में मध्यवर्ती पद विधेय के स्थान पर रहता है। जैसे –

4. चतुर्थ आकार (Fourth Figure):
चतुर्थ आकार में मध्यवर्ती पद वृहत् वाक्य के स्थान पर और लघु वाक्य में उद्देश्य के स्थान पर होता है। जैसे –

न्याय के योग (Moods of syllogism):
किसी भी syllogism का moods उसके वाक्यों पर निर्भर करता है। इसलिए mood भिन्न-भिन्न हो जाते हैं। Syllogism कितने प्रकार के हो सकते हैं। इनमें कितने सही और कितने गलत हैं।

इस पर विचार करना है। सबसे पहले ही वाक्य से प्रारम्भ करते हैं। यदि A वाक्य को एक आधार वाक्य मान लिया जाए तो दूसरा आधार वाक्य इसके साथ A या ६या I या 0 हो सकता है। इसलिए निम्नलिखित योग होगा – AO,AE, AI,AO इस तरह EIO को भी एक आधर वाक्य लेकर निम्नलिखित 16 योग होंगे।

इसमें केवल आधार वाक्यों का विचार किया जाए तो उपर्युक्त 16 योग (moods) होंगे और यदि निष्कर्ष का भी विचार किया जाए तो उपर्युक्त में चार moods बनेंगे। जैसे –
AAA – AAE, AAI, AAO इस तरह 16 × 4 = 64 योग बन जाते हैं। ये सभी 64 एक ही आकार में होंगे और चारों आकार में सब 64 × 4 = 256 योग (moods) होंगे। अर्थात् 256 प्रकार के syllogism चारों आकार में होंगे। लेकिन जाँच के दरम्यान केवल 19 (उन्नीस) ही सही हैं और अन्य सभी गलत हैं। अतः 19 को छोड़कर अन्य किसी रूप में अनुमान करने पर वह गलत हो जायेगा।

सही योगों का विचार (Valid moods)
आधार वाक्यों में जो 16 योग देखा गया है उनमें OO, OI, II, EE, EP, OE ये सब नहीं हो सकते हैं क्योंकि ये दोनों अंशव्यापी तथा निषेधात्मक भी हैं। शेष आठ योगों पर विचार किया जाए।

1. AA (Barbara):
यहाँ दोनों आधार वाक्य भावात्मक हैं इसलिए निष्कर्ष भी भावात्मक ही होगा। यहाँ मध्यवर्ती पद वृहत् वाक्य में उद्देश्य की जगह पर व्याप्त है इससे अव्याप्त मध्यवर्ती पर का दोष नहीं होता है फिर P अव्याप्त ही रह जाता है जिससे illicit major का दोष भी नहीं होता है।

इस तरह AA से Aनिष्कर्ष निकालने पर प्रथम आकार में कोई दोष नहीं होता है। अतः यहाँ AAA Valid mood है। इसे Barbara कहते हैं। इस नाम में जितने vowels हैं वे ही योग हैं। इसमें पहला vowel है वह minor premise है और तीसरा vowel है, वह निष्कर्ष है।

Barbara का निष्कर्ष A में होता है, A के बदले I भी निष्कर्ष लिया जा सकता है और ऐसा करने से कोई दोष नहीं होता है। इसलिए AAA योग के बदले AAE लिया जा सकता है। इस हालत में योग का मान Barbara होगा।

2.

यहाँ एक वाक्य निषेधात्मक है इसलिए निष्कर्ष भी निषेधात्मक होगा। इसलिए P निष्कर्ष में व्याप्त हो जाएगा। जबकि वह A में अव्याप्त है। अतः अनुचित वृहत् पद का दोष हो जाता है। अतः AE से कोई निष्कर्ष प्रथम आकार में नहीं हो सकता है।

3.

यहाँ दोनों आधार वाक्य भावात्मक है। इसमें एक अंशव्यापी भी है, अतः निष्कर्ष भावात्मक के साथ-ही-साथ अंशव्यापी I में निष्कर्ष होगा। ऐसा करने पर middle term, major premise में व्याप्त है। आधार में S और P व्याप्त नहीं है इसलिए निष्कर्ष में भी व्याप्त नहीं होंगे। अतः अव्याप्त मध्यवर्ती पद, अनुचित वृहत् पद या अनुचित लघु पद का दोष नहीं होते हैं। अतः IA जिसे Darii कहते हैं, सही योग है।

4.

यहाँ एक आधार वाक्य निषेधात्मक है इसलिए निष्कर्ष भी निषेधात्मक होंगे तब Pव्याप्त हो जाएगा जबकि A में वह अव्याप्त है। इसमें Illicit major का दोष हो जाता हैं अतः AO से सही निष्कर्ष प्रथम आकार में नहीं बनता है।

5.

यहाँ P आधार वाक्य E है जो निषेधात्मक है इसमें P व्याप्त भी है। अतः अनुचित वृहत् पद तथा अव्याप्त मध्य पद का दोष नहीं हो पाता है। इस पर यदि निष्कर्ष E वाक्य रखें तो कोई हानि नहीं है। इस तरह EAE प्रथम आकार में सही योग है। इसे celarent कहते हैं।

6. El – Ferio

आधार वाक्य में निषेधात्मक है। इसलिए निष्कर्ष भी निषेधात्मक होगा। इससे अनुचित वृहत् पद तथा अव्याप्त मध्यवर्ती पद का दोष नहीं बनता है क्योंकि P और M दोनों वृहत् वाक्य में व्याप्त हैं। इसलिए निष्कर्ष लेने पर कोई दोष नहीं है। अतः £ IO प्रथम आकार में सही योग है। इसे Ferio कहते हैं।

7. IA – Invalid

यहाँ पर अव्याप्त मध्यवर्ती पद का दोष हो जाता है। क्योंकि मध्यवर्ती Pमें I का उद्देश्य है और लघु पद में A का विधेय है जहाँ इसे व्याप्त होने का मौका नहीं मिलता है। अतः प्रथम आकार में IA से सही निष्कर्ष नहीं हो सकता है।

8. OA – Invalid

यहाँ भी MO का उद्देश्य और A का विधेय होने के कारण अव्याप्त है। इसलिए अव्याप्त मध्यवर्ती पद का दोष हो जाता है। अतः 0A से प्रथम आकार में सही निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है। इस तरह प्रथम आकार में चार ही Valid moods होते हैं – Barbara (बर्बारा), celarent (सिलारेन्ट), Darii (डराई), Ferio (फेरियो)।

द्वितीय आकार (Second Figure)
इस द्वितीय आकार में उपर्युक्त आठों योगों को देखना है। इस आकार में मध्यवर्ती पद दोनों आधार वाक्यों में विधेय की जगह होता है।

यहाँ पर एक आधार वाक्य निषेधात्मक होने के कारण निष्कर्ष भी निषेधात्मक होगा और Pनिष्कर्ष में व्याप्त हो जाएगा जबकि वह A वाक्य में भी व्याप्त है। अतः अनुचित वृहत् है। अतः अव्याप्त मध्यवर्ती पद का दोष नहीं है। इस तरह E निष्कर्ष होने से कोई दोष नहीं होता है। अतः AEE द्वितीय आकार में सही योग है। इसे Camestres कहते हैं।

यहाँ भी आधार वाक्य निषेधात्मक है जिसके कारण निष्कर्ष भी निषेधात्मक होगा और P व्याप्त रहेगा जो कि E के उद्देश्य के कारण व्याप्त है। अतः अनुचित वृहत् पद तथा अव्याप्त मध्यवर्ती पद से कोई दोष नहीं लग पाता है। लघु वाक्य में लघु पद S के उद्देश्य होने के कारण व्याप्त है। अतः इस निष्कर्ष में व्याप्त करने से कोई हानि नहीं होती है। इस तरह यदि ६निष्कर्ष लिया जाए तो कोई गलती नहीं होगी। अतः EAE द्वितीय आकार का सही होगा है। इसे cesare कहते हैं।

इसमें आधार वाक्य के निषेधात्मक होने के कारण निष्कर्ष भी निषेधात्मक ही होगा जिसमें ‘P’ विधेय के स्थान पर होने से व्याप्त हो जाएगा। लेकिन आधार वाक्य में वृहत् पद ‘O’ वाक्य के उद्देश्य होने के कारण व्याप्त नहीं है। इस तरह आधार का अव्याप्त वृहत् पद निष्कर्ष में व्याप्त हो जाता है। जिसके चलते अनुचित वृहत् पद का दोष हो जाता है। अतः OA का योग नहीं बनता है। इस तरह द्वितीय आकार में भी चार ही valid moods होते हैं Baroco (बैरोको), Festino (फेस्टीनो), Camestres (केमेस्ट्रीज), Cesare (सिसारे)।

तृतीय आकार (Third Figure):
इन उपर्युक्त आठों योगों को तृतीय आकार में देखना है। इस आकार में मध्यवर्ती पद दोनों आधार वाक्यों में उद्देश्य के स्थान पर रहता है।

यहाँ पर दोनों आधार वाक्य भावात्मक है। इसलिए निष्कर्ष भी भावात्मक ही होगा और दोनों में M व्याप्त भी है। किन्तु वृहत् और लघु पद में व्याप्त नहीं है। इसलिये निष्कर्ष में इसे व्याप्त नहीं करना होगा। इस तरह निष्कर्ष I वाक्य होगा, ऐसा करने से कोई दोष नहीं होता है। इस तरह AAI तृतीय आकार का सही योग हैं इसे Darapti कहते हैं।

यहाँ दोनों वाक्यों के भावात्मक होने से निष्कर्ष भी भावात्मक ही होगा। ‘M’ वृहत् वाक्य में व्याप्त हैं जिससे अव्याप्त मध्यवर्ती पद का दोष भी नहीं होता है। इसी तरह I निष्कर्ष निकालने से कोई दोष नहीं होता है। इसलिए All तृतीय आकार का सही योग है जिसे Datisi कहते हैं।

यहाँ पर अनुचित वृहत् पद का दोष है क्योंकि एक आधार वाक्य के निषेधात्मक होने से निष्कर्ष भी निषेधात्मक हो जाता है, जिसमें P व्याप्त हो जाएगा जो आधार में ‘A’ के विधेय होने के कारण अव्याप्त है। इस तरह अव्याप्त वृहत् पद निष्कर्ष में आकार व्याप्त हो जाता है।

यहाँ M दो बार व्याप्त है। निष्कर्ष निषेधात्मक होगा और निष्कर्ष में P व्याप्त रहेगा। आधार में भी P व्याप्त है। क्योंकि यह £ का विधेय है। अतः इससे अनुचित वृहत् पद का दोष नहीं बनता है। लघु वाक्य में S व्याप्त नहीं है। इसलिए निष्कर्ष में भी इसे व्याप्त नहीं करेंगे। फलतः निष्कर्ष ‘O’ वाक्य होगा और इससे कोई दोष भी नहीं होता है। अतः EA से तृतीय आकार का सही योग है। इसे Felapton कहते हैं।

यहाँ पर M वृहत् वाक्य में व्याप्त है और निष्कर्ष के निषेधात्मक होने से यदि P व्याप्त है तो वह वृहत् वाक्य में भी व्याप्त होगा। अतः इससे अव्याप्त मध्यवर्ती पद का दोष या अनुचित वृहत् पद का दोष नहीं बन पाता है। आधार में S व्याप्त नहीं है। इसलिए निष्कर्ष में भी यह अव्याप्त ही रहेगा। फलतः निष्कर्ष ‘O’ वाक्य ही होगा जिसमें कोई दोष भी नहीं है। इस तरह ‘EIO’ तृतीय आकार का सही योग है, जिसे Ferison कहते हैं।

यहाँ M लघु वाक्य में ‘A’ वाक्य के उद्देश्य होने के कारण व्याप्त है। आधार में S और P व्याप्त नहीं है। इसलिए इस निष्कर्ष में भी व्याप्त नहीं करेंगे। निष्कर्ष के उद्देश्य विधेय व्याप्त नहीं होने के कारण यह अवश्य ही I वाक्य होगा। ऐसा करने से कोई दोष भी नहीं होता है। अतः IAI तृतीय आकार में सही योग है। इसे Disamis कहते हैं।

यहाँ भी एक आधार वाक्य निषेधात्मक है। इसलिए निष्कर्ष भी निषेधात्मक ही होगा। फलतः इसका P व्याप्त हो जाएगा जो आधार में ‘O’ के विधेय होने के कारण व्याप्त है। इससे अनुचित वृहत् पद का दोष या अव्याप्त मध्यवर्ती पद का दोष नहीं बन पाता है।

आधार में S व्याप्त नहीं है। अतः इसे निष्कर्ष में व्याप्त नहीं करेंगे। इसलिए निष्कर्ष ‘O’ वाक्य होगा। इस तरह OAO तृतीय आकार का सही योग है, जिसे Bocardo कहते हैं। इस तरह तृतीय आकार में छ: सही valid moods होते हैं – Darāpti (डाराप्टी), Datisi (डाटीसी), Disamis (डीसामीस), Felapton (फेलाप्टन), Ferison (फेरीसन), Bacardo (बोकार्डो)।

चतुर्थ आकार (Fourth Figure):
अब चतुर्थ आकार में इन आठ योगों को देखना है। चतुर्थ आकार में Middle term वृहत् वाक्य में विधेय की जगह पर तथा लघु वाक्य में उद्देश्य की जगह पर रहता है।

यहाँ दोनों आधार वाक्य भावात्मक हैं इसलिए निष्कर्ष भी भावात्मक ही होगा। लघु वाक्य में उद्देश्य के स्थान पर व्याप्त है, किन्तु लघु पद विधेय के स्थान पर होने के कारण व्याप्त नहीं है। इसलिए निष्कर्ष में इसे व्याप्त नहीं करेंगे। फलतः निष्कर्ष I वाक्य होगा। AAI चतुर्थ आकार का valid mood है, जिसे Bramantip कहते हैं।

यहाँ निष्कर्ष निषेधात्मक होगा। क्योंकि एक आधार वाक्य निषेधात्मक. ही है। P निष्कर्ष में यार हो जाएगा जो आधार में भी (A’) के उद्देश्य होने के कारण व्याप्त है। अतः इससे अनुचित वृहत् पद का दोष या अव्याप्त मध्यवर्ती पद का दोष नहीं बन पाता है। M लघु वाक्य के उद्देश्य होने से व्याप्त है। इसलिए E निष्कर्ष लेने से कोई दोष नहीं होता है। अत AEE चतुर्थ आकार का सही योग है, जिसे camenes कहते हैं।

यहाँ पर M दोनों आधार वाक्यों में व्याप्त है। इससे अव्याप्त मध्यवर्ती पद का दोष नहीं लगता है। एक आधार वाक्य निषेधात्मक है। अतः निष्कर्ष भी निषेधात्मक ही होगा। निष्कर्ष में P व्याप्त हो जाता है तो आधार में भी E के उद्देश्य होने के कारण व्याप्त है। अतः इससे अनुचित वृहत् पद का दोष भी नहीं हो पाता है। आधार में S व्याप्त भी नहीं है। इसलिए निष्कर्ष में ‘O’ वाक्य होगा और इससे कई दोष नहीं होता है। इसलिए EAO चतुर्थ आकार का सही योग है, जिसे Fesapo कहते हैं।

यहाँ M में व्याप्त है। एक वाक्य निषेधात्मक है। फलतः निष्कर्ष भी निषेधात्मक ही होगा और ऐसा करने से P व्याप्त हो जाता है। जो आधार वाक्य में भी व्याप्त है। अतः इससे अव्यापत मध्यवर्ती पद का दोष या अनुचित वृहत् पद का दोष नहीं बन पाता है। आधार में S अव्याप्त है। इसलिए इसे निष्कर्ष में भी अव्याप्त ही रखेगा। अतः निष्कर्ष ‘O’ वाक्य होगा और कोई दोष भी नहीं होगा। अतः EIO चतुर्थ आकार का सही योग है, जिसे Fresison कहते हैं।

दोनों आधार वाक्य भावात्मक है। इसलिए निष्कर्ष भी भावात्मक ही होगा। यहाँ M लघु वाक्य में A का उद्देश्य होने के कारण व्याप्त है। अतः यहाँ अव्याप्त मध्यवर्ती पद का दोष नहीं होता है। आधार S और P व्याप्त नहीं है। इसलिए इस निष्कर्ष को भी व्याप्त नहीं करेंगे। अतः निष्कर्ष I वाक्य होगा। इस तरह IAI चतुर्थ आकार का सही योग है। जिसे Dimaris कहते हैं।

यहाँ एक आधार वाक्य निषेधात्मक है। अतः निष्कर्ष भी निषेधात्मक ही होगा। इससे निष्कर्ष का P व्याप्त हो जाएगा लेकिन आधार वाक्य में यह ‘O’ वाक्य का उद्देश्य है। जिसके कारण अव्याप्त है। अतः आधार का अव्याप्त वृहत् पद में निष्कर्ष में आकर व्याप्त हो जाता है। अतः यहाँ अनुचित वृहत् पद का दोष हो जाता है। इस तरह चतुर्थ आकार में पाँच valid moods हैं – Bramantip (ब्रामांटीप), Camenes (केमिनिस), Fesapo (फेसापो), Fresison (फेसीसन), Dimaris (डीमारिस)।

इस तरह से 19 moods valid हैं।
First figure-Barbara, Celarent, Darii, Ferio-4
Second Figure-Baraco, Festino, Camestres, Cesare-4
Third Figure-Darapti, Ditisi, Disamis, Felepton, Bocardo, Ferison-6
Fourth Figure-Bramantip, Camenes, Dimaris, Fesapo, Fresison-5

नोट:
इन योगों के जितने नाम हैं उनके vowels से syllogism के वाक्य देखना हे इसमें पहला vowel है major premise, दूसरा vowel है minor premise और तीसरा vowel है conclusion

जैसे:
Celarent में major premise E है, minor premise A है और conclusion £ है। इसी तरह सबों को देखना होगा।

प्रश्न 4.
न्याय के आकार के विशेष नियमों की जाँच करें।
उत्तर:
Syllogism के जो दस नियम बताये गये हैं वे सामान्य नियम हैं (Second rules)। वे सभी आकार के लिए सत्य होते हैं। इसके अलावा प्रत्येक आकार के भी कुछ नियम हैं, जिन्हें विशेष नियम कहा जाता है।

प्रथम आकार के विशेष नियम:

1. The major premise must be universal

अर्थात् वृहत् वाक्य को अवश्य ही पूर्णव्यापी होना चाहिए।

प्रमाण:
मान लिया कि प्रथम आकार में major premise universal नहीं है तो यह वाक्य particular होगा। इसके अंशव्यापी होने से इसका उद्देश्य जो मध्यवर्ती पद है, अव्याप्त रह जाता है। इसलिए मध्यवर्ती पद वृहत् वाक्य में अव्याप्त रह जाता है। जब कि मध्यवर्ती पद को नियमानुसार कम-से-कम एक बार अवश्य ही व्याप्त होना है जो कि हम लघु वाक्य में ही कर सकते हैं। लघु वाक्य में यह विधेय के स्थान पर है। इसलिए इसे व्याप्त करने के लिए लघु वाक्य को अभावात्मक बनाना पड़ेगा।

तभी विधेय व्याप्त हो सकता है। जब लघु वाक्य में भावात्मक वाक्य है तो वृहत् वाक्य भावात्मक होना चाहिए। क्योंकि दो negative आधार पर कोई निष्कर्ष ही नहीं निकलेगा। इस तरह वृहत् पद भावात्मक और लघु वाक्य अभावात्मक हो जाते हैं। निष्कर्ष अभावात्मक होने से P व्याप्त हो जाता है। अतः वृहत् पद व्याप्त हो जाता है। लेकिन वृहत् वाक्य में वह अव्याप्त है। अतः इससे अनुचित बृहतू पद का दोष होता है। इसलिये प्रथम आकार में syllogism के सही होने के लिए major premise must be universal और यही सिद्ध करना था।

2. The minor premise mut be affirmative. लघु वाक्य को अवश्य भावात्मक होना चाहिए।

प्रमाण:
मान लिया कि प्रथम आकार में minor premise भावात्मक नहीं है तो यह अभावात्मक होगा। लघु वाक्य के अभावात्मक होने से वृहत् भावात्मक हो जाता है और निष्कर्ष अभावात्मक हो जाता है क्योंकि दोनों आधार वाक्य अभावात्मक होने से वृहत् पद (P) जो इसके विधेय के स्थान पर है व्याप्त हो जाता है। क्योंकि वृहत् वाक्य के भावात्मक होने से वृहद् पद (P) इसके विधेय के स्थान पर है अव्याप्त रहता है। इस तरह आधार का अव्याप्त वृहत् पद निष्कर्ष में आकर व्याप्त हो जाता है जो अनुचित है। इसे अनुचित वृहत् पद का दोष कहते हैं। इसलिए प्रथम आकार में सही syllogism के लिए minor premise को भावात्मक रखना ही पड़ेगा और यही सिद्ध करना था।

द्वितीय आकार के विशेष नियम की जाँच –

1. The major premise must be universal. वृहत् वाक्य को अवश्य पूर्णव्यापी होना चाहिए।

प्रमाण:

मान लिया कि द्वितीय आकार में वृहत् वाक्य पूर्णव्यापी नहीं है, तो यह अवश्य ही अंशव्यापी है। अंशव्यापी होने से वृहत् पद P जो इसके उद्देश्य की जगह पर है व्याप्त नहीं होता है। इस तरह निष्कर्ष का विधेय अव्याप्त रह जाता है। निष्कर्ष भावात्मक हो जाने से दोनों आधार वाक्य भावात्मक हो जाते हैं और मध्यवर्ती पद एक बार भी व्याप्त नहीं हो पाता है क्योंकि यह विधेय के स्थान पर है। अतः इसमें अव्याप्त मध्यवर्ती पद का दोष हो जाता है। अतः द्वितीय आकार के syllogism को सही होना है तो major premise अवश्य ही universal होगा और यही सिद्ध होना चाहिए।

2. One of the premises must be negative. अर्थात् आधार वाक्यों में से, एक को अवश्य निषेधात्मक होना चाहिए।

प्रमाण:
यदि आधार वाक्य में से एक वाक्य अभावात्मक द्वितीय आकार में नहीं है तो वे दोनों आधार वाक्य भावात्मक हैं। इस हालत में मध्यवर्ती पद दोनों जगह भावात्मक वाक्य का विधेय होने के कारण अव्याप्त रह जाता है। फलस्वरूप अव्याप्त मध्यवर्ती पद का दोष हो जाता है। इसलिए यदि द्वितीय आकार में syllogism का सही होना है तो एक आधार वाक्य अवश्य निषेधात्मक होगा। दूसरा प्रमाण, द्वितीय आकार में मध्यवर्ती पद दोनों आधार वाक्यों में विधेय की जगह पर होता है। जबकि नियम है कि मध्यवर्ती पद को कम-से-कम एक बार अवश्य ही व्याप्त होना चाहिए। इसलिए यहाँ आधार में मध्यवर्ती पद को व्याप्त करने के लिए विधेय को व्याप्त करना होगा जो अभावात्मक वाक्य में ही संभव है। इसलिए एक आधार वाक्य अवश्य ही अभावात्मक होगा और यही सिद्ध करना था।

3. The conclusion must be negative निष्कर्ष को अवश्य निषेधात्मक होना चाहिए।

प्रमाण:
यदि द्वितीय आकार में निष्कर्ष अभावात्मक न होकर भावात्मक है तब दोनों आधार वाक्य भी भावात्मक ही होगा। ऐसा होने से मध्यवर्ती पद का एक बार भी व्याप्त नहीं होने का मौका मिलता है। फलतः अव्याप्त मध्यवर्ती पद का दोष हो जाएगा। अतः इस दोष से बचने के लिए द्वितीय आकार में निष्कर्ष का अभावात्मक होना जरूरी है और यही सिद्ध करना था।

तृतीय आकार के विशेष नियम की जाँच:

1. The minor premise must be affirmative in the third figure लघु वाक्य को तृतीय आकार में अवश्य ही भावात्मक होना चाहिए।

प्रमाण:

मानलिया कि तृतीय आकार में लघुवाक्य भावात्मक नहीं है तो वह negative है। ऐसा होने से वृहत् वाक्य अवश्य ही भावात्मक होगा और निष्कर्ष अभावात्मक होगा। निष्कर्ष के अभावात्मक होने से वृहत् पद P जो इसके विधेय स्थान पर है व्याप्त नहीं हो पाता है। इस तरह आधार का अव्याप्त वृहत् पद निष्कर्ष में आकर व्याप्त हो जाता है, जिससे illicit major का दोष हो जाता है। इसलिए तृतीय आकार में syllogism को सही होने के लिए minor premise must be affirmative यही सिद्ध करना था।

2. The conclusion must be particular in the third figure. निष्कर्ष को तृतीय आकार में अवश्य ही अंशव्यापी होना चाहिए।

प्रमाण:
मान लिया कि तृतीय आकार में यदि निष्कर्ष अंशव्यापी नहीं है तो यह पूर्णव्यापी होगा। ऐसा होने से S जो लघु पद के उद्देश्य के स्थान पर है व्याप्त हो जाता है। निष्कर्ष में minor term का व्याप्त होने से यह minor premise में भी अवश्य व्याप्त होगा। क्योंकि जब तक कोई पद आधार में व्याप्त नहीं होता है तब तक उसको निष्कर्ष में व्याप्त नहीं कर सकते हैं। चूँकि S आधार में व्याप्त है। अतः लघु वाक्य को अवश्य अभावात्मक वाक्य होना होगा क्योंकि यहाँ minor terms विधेय के स्थान पर है।

लघु वाक्य के अभावात्मक होने से वृहत् वाक्य भावात्मक और निष्कर्ष निषेधात्मक हो जाता है। ऐसा होने से P जो विधेय के स्थान पर व्याप्त हो जाता है, यही major term (P) major premise के भावात्मक होने से और इसके विधेय के स्थान पर होने से अव्याप्त रहता है। इस तरह आधार अव्याप्त हो जाता है, जिससे अनुचित वृहत् पद का दोष हो जाता है। इसलिए तृतीय आकार में syllogism को सही होने के लिए निष्कर्ष को must be particular और यही सिद्ध करना था।

चतुर्थ आकार के विशेष नियम की जाँच –

1. If the major premise be affirmative the minor must be universal in the fourth figure. चतुर्थ आकार में यदि वृहत् वाक्य भावात्मक होता है तो लघु वाक्य अवश्य पूर्णव्यपी होगा।

प्रमाण:

चतुर्थ आकार के वृहत् वाक्य में M विधेय के स्थान पर रहता है। दिया हुआ है कि वृहत् वाक्य भावात्मक है। इसलिए M को वृहत् वाक्य में व्याप्त होने का मौका नहीं मिलता है। क्योंकि भावात्मक वाक्य अपने विधेय पद को व्याप्त नहीं करता है। जबकि ‘M’ को कम-से-कम एक बार अवश्य व्याप्त होना चाहिए जो लघु वाक्य में ही संभव है। चतुर्थ आकार के लघु वाक्य में ‘M’ उद्देश्य के स्थान पर रहता है। इसलिए ‘M’ को यहाँ. व्याप्त करने के लिए minor premise को must be universal होना है क्योंकि पूर्णव्यापी वाक्य जो अपने उद्देश्य पद को व्याप्त करता है। इसलिए चतुर्थ आकार में यदि वृहत् वाक्य भावात्मक है तो लघु वाक्य पूर्णव्यापी वाक्य होगा। यही सिद्ध करना था।

2. If the minor premise be affirmative the conclusion must be particular in the fourth figure यदि लघु वाक्य भावात्मक है तो निष्कर्ष अवश्य ही अंशव्यापी वाक्य चतुर्थ आकार में होगा।

प्रमाण:
दिया हुआ है कि चतुर्थ आकार में लघु वाक्य भावात्मक वाक्य है। हमें प्रमाणित करना है कि इस परिस्थिति में निष्कर्ष अवश्य ही अंशव्यापी होगा। चतुर्थ आकार में minor premise में minor terms (S) विधेय के स्थान पर होता है।

3. दो आधार वाक्यों में यदि कोई भी निषेधात्मक होगा तो वृहत् वाक्य अवश्य ही पूर्णव्यापी होगा। (If either of the premises the negative, the major premise must be universal)

प्रमाण:
चतुर्थ आकार में मध्यपद वृहत् वाक्य में विधेय और लघु वाक्य में उद्देश्य रहता यदि आधार वाक्यों में कोई भी निषेधात्मक होगा तो नियमानुसार निष्कर्ष भी निषेधात्मक होगा। निष्कर्ष के निषेधात्मक होने से उसका विधेय पद (जो वृहत् पद होता है) व्याप्त होगा। अतः अनुचित वृहत् पद-दोष (fallacy of illicit major) से बचने के लिए वृहत् पद को वृहत् वाक्य में भी व्याप्त करना होगा।

वृहत् पद वृहत् वाक्य का उद्देश्य है और किसी भी वाक्य का उद्देश्य तभी व्याप्त होगा, जब उस वाक्य को पूर्णव्यापी माना जाए। अतः वृहत् पद को व्याप्त करने के लिए वृहत् वाक्य को पूर्णव्यापी मानना होगा। इस प्रकार, चतुर्थ आकार में जब एक भी आधारवाक्य निषेधात्मक होता है, तो वृहत् वाक्य पूर्णव्यापी होता है।

4. ‘O’ cannot be a premise in the fourth figure. चतुर्थ आकार में कोई भी – आधार वाक्य ‘O’ नहीं हो सकता है।

प्रमाण:
चतुर्थ आकार में वृहत् वाक्य ‘0’ नहीं होगा। यदि वृहत् वाक्य ‘O’ चतुर्थ आकार में होगा तो लघु वाक्य भावात्मक होगा क्योंकि दो अभावात्मक वाक्य से निष्कर्ष नहीं निकलता है और जब एक आधार वाक्य अभावात्मक है तो निष्कर्ष भी अभावात्मक ही होगा। ऐसा होने से उसका P विधेय पद व्याप्त हो जाएगा जबकि वह अंशव्यापी होने की वजह से अव्याप्त है। फिर इससे अनुचित वृहत् पद का दोष हो जाएगा। अतः वृहत् पद ‘O’ वाक्य नहीं हो सकता है।

इस तरह चतुर्थ आकार में लघु वाक्य भी ‘O’ नहीं हो सकता है। चतुर्थ आकार में यदि लघु वाक्य ‘O’ माना जाए तो वृहत् वाक्य भावात्मक होगा और पूर्णव्यापी होगा। इससे अव्याप्त मध्यवर्ती पद का दोष (Fallacy of undistributed) हो जाएगा। क्योंकि मध्य पद एक बार भी व्याप्त नहीं हो सकता है। इसमें अंशव्यापी वाक्य का उद्देश्य भी अव्याप्त ही रह जाता है। अतः हम इस निष्कर्ष पर आते हैं कि चतुर्थ आकार में लघु वाक्य का ‘O’ नहीं हो सकता है। इस तरह चतुर्थ आकार में कोई भी आधार वाक्य ‘O’ नहीं हो सकता है। इस तरह चतुर्थ आकार में कोई भी आधार वाक्य ‘O’ वाक्य नहीं होगा।

प्रश्न 5.
प्रत्येक आकार में एक-एक सही न्याय बनाएँ जिसका निष्कर्ष हो कुछ लड़के तेज नहीं है और उन योगों के नाम बताएँ।
उत्तर:
L.E. – Some boys are not intelligent – O
दिया हुआ वाक्य ‘O’ है, जो निष्कर्ष है।

प्रश्न 6.
‘भारतीय साधारणतः धर्मनिरपेक्ष है।’ इसे प्रमाणित करने के लिए प्रत्येक आकार में एक-एक वैध न्याय की रचना करें।
उत्तर:
L.F-I. Some Indians are secular यही निष्कर्ष है।

प्रश्न 7.
‘सभी हंस उजले नहीं है’ इस निष्कर्ष वाक्य को प्रमाणित करने के लिए प्रत्येक आकार में एक सही न्याय की रचना करें तथा उन सभी योगों का नाम लिखें।
उत्तर:
L.F. – Some swans are not white. – O

प्रश्न 8.
निम्नांकित की जाँच कीजिए।
(a) None but student of Logic can answer this question. Since he is a student of Logic, he must answer this question.
(b) A is the servant of B. B is the servant of C. Therefore, A is the servant of C.
(c) Most of the unemployed are idle. He is idle. Therefore, he is unem – , ployed.
(d) Ram is not rich for he is not fashionable and only the rich are fashion able.
उत्तर:

प्रश्न 9.
निम्नांकित की जाँच करें।
(क) सोहन अवश्य ईमानदार होगा क्योंकि वह बुद्धिमान है और सिर्फ बुद्धिमान ही ईमानदार होते हैं।
(ख) सिर्फ धनी लोग ही सुखी है। जॉन सुखी नहीं है। इसलिए जॉन धनी नहीं है।
(ग) राम श्याम का मित्र है और श्याम मोहन का मित्र है। इसलिए, राम मोहन का मित्र है।
उत्तर:

यह न्याय दोषपूर्ण है। इसमें चतुष्पदीय दोष है।
चार पद ये हैं –

  • श्याम
  • मोहन का मित्र
  • राम और
  • श्याम का मित्र।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित की जाँच करें।
(a) राम ने श्याम को पराजित किया, श्याम ने मोहन को पराजित किया, इसलिए राम ने मोहन को पराजित किया। (Ram defeated Shyam; Shyam defeated Mohan; therefore, Ram defeated Mohan)
(b) सिर्फ तर्कशास्त्र के छात्र ही इस प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं; आप इस प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं क्योंकि आप तर्कशास्त्र के छात्र हैं। (Students of Logic alone can answer this question; you can answer this question because you are a stu dent of Logic)
(c) हरि ईमानदार नहीं है क्योंकि वह सुखी नहीं है और केवल ईमानदार ही सुखी होते (Hari is not honest because he is not happy and only the honest are happy)
उत्तर:

इस न्याय में अव्याप्त मध्यवर्ती पद का दोष (Fallacy of Undistributed Middle) है। यहाँ मध्यवर्ती पद (student of Logic) दोनों आधार वाक्यों में ‘A’ का विधेय होने के कारण अव्याप्त है। अतः, न्याय दोषपूर्ण है।

इस न्याय में अनुचित वृहद् पद का दोष (Fallacy of Illicit Major) है। वृहद् पद (honest) वृहद् वाक्य में अव्याप्त है, किन्तु निष्कर्ष में व्याप्त है। इसलिए, इस न्याय में उपर्युक्त दोष उत्पन्न हो गया है।

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