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 Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions गद्य Chapter 7 सिक्का बदल गया

Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions गद्य Chapter 7 सिक्का बदल गया (कृष्णा सोबती)

सिक्का बदल गया पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
शाहनी के मन में किस बात की पीड़ा है, फिर भी वह शेरा और हसैना के समक्ष हल्के से हंस पड़ती है। क्यों?
उत्तर-
भारत विभाजन का समय है। पाकिस्तान से हिन्दू घरबार छोड़ कर भारत आ रहे हैं। उन लोगों में शाहनी भी एक महिला है जो अपना घर-द्वार छोड़ने की तैयारी में हैं। उनका सब कुछ छूट रहा है। हरे-भरे खेत, विशाल महल सब कुछ छूट रहा है। इसी बात की पीड़ा है शाहनी के मन में।

जब शाहनी चनाब नदी से स्नान कर लौट रही है, उस समय उसकी भेंट शेरा और हसैना स होती है। दोनों आपस में झगड़ने लगते हैं। शाहनी बीच-बचाव करती है। शाहनी को यह भी पता है कि रात में कुल्लूवाल के लोग वहाँ आये थे। शेरा भी उस बैठक में सम्मिलित था। शाहनी को मारने की जिम्मेदारी उसे ही सौंपी गई थी। शाहनी यह सब कुछ समझती है बावजूद वह दोनों को अपना स्नेह देती है और हँस पड़ती है।

प्रश्न 2.
शेरा कौन है और उसके साथ साहनी का क्या संबंध है?
उत्तर-
शेरा ‘सिक्का बदल गया’ प्रस्तुत कहानी का एक प्रमुख पात्र तथा शाहनी का नौकर है। कथानायिका शाहनी के साथ उसका नजदीकी संबंध है। वह शाहनी का मातहत रहा है और अपनी माँ जैना के मरने के बाद शाहनी के पास ही रहकर पला-बढ़ा है।

प्रश्न 3.
शेरा के भीतर प्रतिहिंसा की आग क्यों है?
उत्तर-
शेरा मुसलमान है। वह उन दंगाइयों में सम्मिलित है जो पाकिस्तान में रह रहे हिन्दुओं को मारते थे और कुछ को घर-द्वार, जमीन-जायदाद, सोना-चाँदी, रुपये-पैसे छोड़ कर देश छोड़ने को मजबूर करते थे। भारत में बसे मुसलमान भी मारे जा रहे थे एवं भारत से निकाले जा रहे थे। शेरा के मन में प्रतिहिंसा का भाव था।

शेरा के मन में शाहनी के प्रति भी हिंसा का भाव है। वह सोचता है कि शाहनी को अपना घर-द्वार छोड़ना ही है। शाहनी को वह मारना भी चाहता है। उसके मन में यह भाव भी आता है कि शाहजी (शाहनी के स्वर्गवासी पति) ने भी उनलोगों से सूदखोरी करके धन कमाया है। ऐसा सोचते हुए प्रतिहिंसा की आग शेरे की आँखों में उतर आई। गड़ासे की याद आ गई। लेकिन शाहनी की ओर देखकर रूक गया। शाहनी ने उसे अपने बेटे के समान पाला था। यह बात उसे याद आ गई।

प्रश्न 4.
शाहनी अपना घर छोड़ते हुए भी विरोध में एक स्वर नहीं निकाल पाती। ऐसा क्यों।
उत्तर-
शाहनी को मालूम है कि भारत का विभाजन हो गया है। शाहनी को अपना घर छोड़ते हुए अपार दुःख और कष्ट होता है। उसने इस दिन की कभी कल्पना भी नहीं की थी। फिर भी, वह विरोध में एक स्वर भी नहीं निकाल पाती है तो इसका कारण यह है कि वह भीतर से पूरी तरह टूट चुकी है ओर सामने आयी विपरीत एवं अपरिवर्तनीय परिस्थिति की हकीकत भली-भाँति समझ चुकी है।

प्रश्न 5.
शाहनी के हाथ शेरा की आँखों में क्यों तैर गये?
उत्तर-
शेरा अपनी माँ मृत्यु के पश्चात् शाहनी के पास रहकर ही पला-बढ़ा है। किन्तु, कठिन कालचक्र के फेर में फंसकर वह फिरोज के साथ उसकी हत्या करने एवं उसके सारे सामानों को लूटने की दुरभिसंधि कर लेता है। किन्तु, उसके अंदर मानवता अभी शेष है। अतः उस भयानक कृत्य के पूर्व उसकी आँखों में शाहनी के हाथ तैर जाते हैं, जिन हाथों से वह कटोरा भर दूध पिया करता था।

प्रश्न 6.
शेरा की फिरोज के साथ क्या बात हुई थी?
उत्तर-
शेरा की फिरोज के साथ यह बातचीत हुई थी कि वह शाहनी को मार देगा और . . उसके सारे सामनों को आधे-आधे बाँट लेगा।

प्रश्न 7.
जबलपुर में आग क्यों लगाई गई थी? धुआँ देख साहनी क्यों चिंतित हो गई थी?
उत्तर-
जबलपुर में लगी आग सुनियोजित षड्यंत्र का हिस्सा थी। वह आग दहशत फैलाने के उद्देश्य से लगाई गई थी। जब वहाँ आग लग गई, तो आसमान में उठे धुओं को देखकर शाहनी पोर्ट गोल्डेन सीरिज पासपोर्ट अत्यंत चिंतित हो गई, क्योंकि उसके सगे-संबंधी, नाते-रिश्तेदार सब वहीं रहते थे।

प्रश्न 8.
दाऊद खाँ की कैसी स्मृतियाँ शाहनी से जुड़ी हैं?
उत्तर-
दाऊद खाँ एक थानेदार है। ट्रक पर हिन्दू जमा हो रहे हैं। उन्हें हिन्दुस्तान की सीमा पर पहुँचना दाऊद खाँ की ड्यूटी है। जब ट्रक शाहनी की हवेली के सामने खड़ी हुई तो दाऊद खाँ पुलिस की अकड़ के साथ शाहनी के दरवाजे पर पहुंचा। सहसा दाऊद खाँ ठिठक गया। वही शाहनी है जिसके शाहनी उसके लिए दरिया के किनारे खेमे लगावा दिया करते थे। यह तो वही शाहनी है, जिसने उसकी मंगेतर को सोने के कनफूल मुँह दिखाई में दिये थे। यही स्मृतियाँ दाऊद खाँ की शाहनी से जुड़ी हैं।

प्रश्न 9.
भागोवाल मसीत के लिए शाहनी ने दाऊद खाँ को क्या दिया था?
उत्तर-
दाऊद खाँ थानेदार था। एकदिन वह शाहनी के घर आया। भागोवाल मसीत (मस्जिद) के लिए शाहनी ने दाऊद खाँ को मांगने पर पूरी की पूरी राशि तीन सौ रुपये दे दिये थे।

प्रश्न 10.
थानेदार दाऊद खाँ बार-बार शाहनी से नकद रखने का आग्रह करता है। तब भी शाहनी नहीं रखती है। क्यों?
उत्तर-
शाहनी अपना घर छोड़ हिन्दुस्तान आ रही है। वह अपनी हवेली से बेहद प्यार करती है। बिना कुछ लिए वह घर छोड़ देती है। इस पर दाऊद खाँ जो थानेदार है, बार-बार शाहनी से कुछ नकद रख लेने का आग्रह करता है। लेकिन शाहनी नकद नहीं रखती है। वह दाऊद खाँ को जवाब देती है-“नहीं बच्चा, मुझे इस घर से नकदी प्यारी नहीं। यहाँ की नकदी यही रहेगी।” शाहनी के इस उत्तर से दाऊद खाँ निरुत्तर हो गया। शाहनी अपनी हवेली से बेहद प्यार करती थी।

प्रश्न 11.
दाऊद खाँ क्यों चाहता है कि शाहनी हवेली छोड़ते हुए कुछ साथ रख ले।
उत्तर-
थानेदार दाऊद खाँ शाहनी का बहुत आभारी और उपकृत है। शाहनी ने समय-समय पर उसकी मदद की थी। अत: वह भी अपनी सलाह से शाहनी को भविष्य के संकटों से निबटने हेतु कुछ नकद साथ रखने को कहता है। उसकी व्यावहारिक बुद्धि जानती है कि संकट के समय में पास की पूँजी बड़ी काम आती है। इसी सदिच्छा और आत्मीयता वश दाऊद खाँ चाहता है कि शाहनी हवेली छोड़ते हुए कुछ नकद पैसे साथ रख ले।

प्रश्न 12.
दाऊद खाँ को शाहनी के पास खड़े देखकर शेरा ने क्यों कहा-“खाँ साहिब, देर हो रही है।”
उत्तर-
शाहनी हवेली छोड़ने वाली थी। घर से निकलने में ममता आ रही थी। अपना घर सदा के लिए छोड़ना था। पाकिस्तान छोड़कर भारत आना था। शाहनी हवेली की ड्योढ़ी पर आकर खड़ी थी। इसी बीच थानेदार दाऊद खाँ को बीती हुई बातें याद आ जाती हैं। शाहनी ने उसकी मंगेतर को सोने के कनफूल मुँह दिखाई में दिये थे। यह स्मृति दाऊद खाँ झकझोर देती है। दाऊद को सहानुभूति आ जाती है।

वह बार-बार शाहनी को कुछ साथ लेने की सलाह देती है। जब वह सोना चाँदी साथ ले लेने को कहता है तो शाहनी जवाब देती है है-“सोना चाँदी। मेरा सोना तो एक-एक जमीन में बिछा है।” दाऊद खाँ निरूत्तर हो जाता है। वह फिर कहता है-शाहनी, कुछ नकदी जरूरी है। इस पर शाहनी कहती है-“नहीं बच्चा, मुझे इस घर से नकदी प्यारी नहीं। यहाँ की नकदी यहीं रहेगी।”

प्रश्न 13.
शाहनी किसके सुख-दुख की साथिन थी?
उत्तर-
शाहनी अपनी हवेली छोड़ने जा रही हैं। गाँव के सभी लोग इकट्ठा होने लगे। शाहनी गाँव के सभी बड़े-बूढ़ों, बूढी-बूढ़ियों के सुख-दुख की साथी थी। जब शाहनी ने अपनी ड्योढ़ी के बाहर पैर रखा तो सभी बुढ़ियाँ रो पड़ी क्योंकि शाहनी सबके सुख-दुख में हाथ बँटाती थी।

प्रश्न 14.
चलते समय इस्माइल ने शाहनी से क्या कहा?
उत्तर-
हवेली छोड़कर जाते समय शाहनी से इस्माइल ने यह कहा कि “शाहनी, कुछ कह जाओ। तुम्हारे मुँह से निकली (अ) सीस झूठी नहीं हो सकती।” इस्माइल के इस कथन से साहनी के बारे में लोगों की धारणा का पता चलता है।

प्रश्न 15.
खूनी शेरे का दिल क्यों टूट रहा था?
उत्तर-
शेरा शाहनी का नौकर था। खूनी शेरे का दिल इसलिए टूट रहा था कि माँ के मरने के बाद शाहनी ने ही उसे दूध पिलाकर पाला-पोसा था। उसके सामने उसे दूध पिलाकर पालने वाली, उस पर प्यार का हाथ फेरने वाली शाहनी जा रही थी और वह चाहकर भी कुछ न कर सकता था।

प्रश्न 16.
शाहनी शेरे को क्या आशीवाद देती है?
उत्तर-
ट्रक पर बैठते समय शाहनी के पीछे गाँव के लोग शोकाकुल थे। सारा वातावरण गमगीन हो गया था। कोई आशीर्वाद माँग रहा था। कोई पछता रहा था। उसी बीच शेरे आगे बढ़कर शाहनी का पाँव छूता है और कहता है-‘शाहनी, कोई कुछ नहीं कर सका। राज भी पलट गया।’ शाहनी ने काँपता हुआ हाथ शेरे के सिर पर रखा और रूक-रूक कर कहा-

“तैनू भाग ‘जगण चन्ना (ओ चाँद तेरे भाग्य जागे)। शाहनी का यह आशीर्वाद सांकेतिक था। शाहनी की सम्पत्ति शेरे को ही मिलने वाली थी। शेरे ने दंगाइयों के साथ बहुत कत्ल किये थे। शाहनी की मृत्यु भी उसे ही करनी थी, लेकिन वह कर न सका। तब भी शेरे के भाग जगने वाले थे। शाहनी का आशीर्वाद भी उसे मिला।

प्रश्न 17.
शाहनी के जाने पर लोगों के मन में क्या अफसोस होता है?
उत्तर-
शाहनी पाकिस्तान छोड़कर भारत आ रही हैं। वह अपना सब कुछ गंवा चुकी हैं। गाँव के लोग भी दु:खी हैं। लोग अफसोस कर रहे हैं। शेरे कहता है-कोई कुछ नहीं कर सका। अर्थात् शाहनी को कोई रोक नहीं सका क्योंकि राज ही पलट गया था। दाऊद खाँ सोच रहा है-“कहाँ जायेगी कैसे रहेगी? कितना अच्छा व्यवहार था उसका हम सबके साथ। वह सबों का खबर रखती थी और सबकी मदद करती थी।” लोग बोल रहे थे-“शाहनी मन में मैल न लाना। कुछ कर सकते तो उठा न रखते। वक्त ही ऐसा है, राज पलट गया है।”

प्रश्न 18.
‘शाहनी चौंक पड़ी। देर-मेरे घर में मुझे देर। आँसुओं की भंवर में न जाने कहाँ से विद्रोह उमड़ पड़ा।’-इस उद्धरण की सप्रसंग व्याख्या करें।
उत्तर-
सप्रसंग व्याख्या-प्रस्तुत व्याख्या पंक्तियाँ कृष्णा सोबती रचित हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘दिगंत, भाग-1’ में संकलित कहानी ‘सिक्का बदल गया’ से उद्धृत हैं। वातावरण बड़ा गमहीन है। सद्विचारों एवं सद्व्यवहारों से युक्त बड़ी हवेली की एकमात्र स्वामिनी शाहनी अन्यत्र जाने को विवश-बाध्य है। थानेदार दाऊद खाँ उससे बुरे समय के लिए कुछ नकद साथ रख लेने का भाव भरा आग्रह कर रहा है। पर, शेरा इस शक के कारण कि वह कुछ माल मार रहा है, देर होने की बात उठाता है। इसी पर शाहनी की दो-टूक होती मन:स्थिति को व्यजित करने वाली प्रस्तुत पंक्तियाँ आयी हैं।

शाहनी हवेली की एकमात्र स्वामिनी रही है, पर आज उसे छोड़ जाना है। क्योंकि . परिस्थितियों के कठिन संघात से देश बँट चुका है। अब किसी के करने से कुछ होने जानेवाला नहीं। देश की सीमा के विभाजन के साथ ही लोगों के दिल भी बँट चुके हैं। उक्त परिस्थितियों . में मन में आवेगों के तूफान को संभाले शाहनी के दिल में शेरा का यह कथन तीर-सा चुभता है। ओह? यह भी कैसा दिन? अपने ही घर में उसे देर हो रही है और वह कुछ नहीं कर सकती। वह आँसुओं की भँवर में डूब-उतरा रही है। थोड़ी देर के लिए उस शांत-संयत दिल में भी विद्रोह उमड़ पड़ता है।

उसे लगता है कि वह इन सबके प्रति विद्रोह कर दे, जाने से इनकार कर दे, पर अंततोगत्वा परिस्थितियों के कठोर यथार्थ के आगे कुछ नहीं कर पाती है, आँसूओं के घूट पीकर रह जाती है।

यह प्रसंग बड़ा ही मार्मिक है। शाहनी अपने पुरखों के घर में है। वह एक बड़े घर की रानी है। शेरे जैसे लोग उसके ही अन्न पर पले हैं और उसे ही उसके ही घर में देर होने की बात कहते हैं। ‘देर हो रही है।’ यह वाक्य शाहनी के कानों में गूंजने लगता है। अपना वतन, अपनी जमीन अपना घर छोड़ने का यह दृश्य बड़ा ही मार्मिक है।

प्रश्न 19.
घर छोड़ते समय शाहनी की मनोदशा का वर्णन अपने शब्दों में करें।
उत्तर-
कृष्णा सोबती लिखित कहानी ‘सिक्का बदल गया’ शीर्षक के केन्द्र में शाहनी नामक पात्रा है। इसी के इर्द-गिर्द सारी कहानी घटित होती है। वह स्वभाव से अत्यंत उदार और उच्चाशय है। वह शाहनी की पत्नी के रूप में आपार वैभव की स्वामिनी रह चुकी है, किन्तु उसका मानव-सुलभ सत्वगुण सदा जाग्रत रहा है। वह सबों से हिल-मिलकर रहनेवाली है। पर, कालचक्र में पाकर जब भारत का विभाजन होता है तो उसे वह स्थान छोड़ने को मजबूर होना पड़ता है। उस हवेली और उसके आस-पास की सारी-चीजों से उसका हार्दिक अपनत्व और ममत्व है।

अत: उन्हें छोड़ते समय वह दुःख एवं करुण भावनाओं की उत्ताल तरंगों में गिरती-पछड़ती है। भाग्य ने भी कैसा दिन दिखाया है उसे? जो हवेली, खेत-खलिहान, बाग-बगीचे सहित तमाम लोग उसके अपने थे, आज सभी बेगाने हैं। साथ में पति और पुत्र तक नहीं। इस प्रकार लेखिका ने घर छोड़ते समय शाहनी की मनोदशा अत्यंत करुण, पीड़ित एवं दयनीय है।

प्रश्न 20.
निम्नलिखित वाक्यों की सप्रसंग व्याख्या करें:
(क) जी छोटा हो रहा है, पर जिनके सामने हमेशा बड़ी बनी रही है, उनके सामने वह छोटी न होगी।

सप्रसंग व्याख्या-
प्रस्तुत सारगर्भित पंक्तियाँ सोबती लिखित कहानी गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘दिगंत, भाग-1’ में संकलित ‘सिक्का बदल गया’ से अवतरित है। स्वतंत्रता-प्राप्ति के साथ ही भारत का विभाजन भी हो गया। कहानी की सर्वप्रमुख पात्रा शाहनी विभाजन-जन्य मारक स्थितियों की शिकार है। उसे अपनी हवेली छोड़नी पड़ रही है। लोगों का हुजूम उमड़ा पड़ा है। उसके मन में एक बार पुनः हवेली को अंदर से देख की तीव्र इच्छा होती है, पर वह. अपनी कमजोरी को प्रकट नहीं होने देती। प्रस्तुत वाक्य वहीं का है।

अपनी हवेली को अंतिम, बार फिर से देख लेने की लालसा के बावजूद उसकी देहरी से बाहर निकली शाहनी के मन में तीव्र अंतर्द्वन्द्व है। एक ओर यदि वह उसे जीभर पुनः देखना चाहती है तो दूसरी ओर उसके ध्यान में वहाँ जुटे वे सभी लोग भी हैं जो कभी उसकी मातशाती करते थे। उनके सामने वह हमेशा बड़ी बनी रही है और अपना बड़प्पन दिखाती रही है। सभी उसकी उँगलियों पर नाचते थे। यह सारा कुछ उसका अपना था। उसके समान वहाँ कोई न था। पर आज स्थिति की विडंबना है उसे अपना सारा कुछ छोड़ कर जाना पड़ रहा है।

कितनी दारुण और दयनीय दशा है यह फिर भी वह उन लोगों के सामने अपनी कमजोरी नहीं दिखाएगी। यह उसके स्वभाव के अनुकूल नहीं वह हमेशा बड़ी रही है तो आज भी अपनी दीनता प्रदर्शित न करेगी और दया की भीख न माँगेगी और न ही हवेली के प्रति अपनी कोमल भावनाओं का इजहार करेगी। यद्यपि उसका जी अपने-ही-आप छोटा हो रहा है। प्रस्तुत पंक्तियों में शाहनी का स्वाभिमान एवं बड़प्पन झलकता है।।

(ख) आस-पास के हरे-हरे खेतों में से घिरे गाँवों में रात खून बरसा रही थी।
सप्रसंग व्याख्या-
प्रस्तुत सारगर्भित पंक्ति में देश-विभाजन की त्रासदी पर लिखित बहुचर्चित एवं बहुप्रशंसित कहानी ‘सिक्का बदल गया’ से उद्धत है। सुप्रसिद्ध लेखिका कृष्णा सोबती ने कहानी के अंत में इस पंक्ति के माध्यम से दिल हिलाकर रख देने वाली उस स्थिति को साकार कर दिया है, जो भारत-विभाजन के फलस्वरूप उत्पन्न हुई थी और जिसकी टीस एवं कसक आज भी यथावत है।

स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही भारत का विभाजन हो चुका है, मुल्क बँट गया है, सिक्का बदल गया है। कथानायिका शाहनी इस दुःसह वेदना से दुःखी है। वह अपनी बहुमूल्य निधि हवेली, जिसके साथ उसकी न जाने कितनी स्मृतियाँ, कितने संवेदन स्थायी रूप से संयुक्त हैं, छोड़कर चली गई या कहिए ले जाई गई। उपस्थित जन समूह निर्वाक और निस्पंद है। मानों जीवन का स्त्रोत सूख गया और निर्जीवता ही शेष है।

उसी समय की हृदयविदारक स्थिति को अपनी सशक्त लेखनी के माध्यम से उकेरती हुई लेखिका कहती है कि तब जब सबकी श्रद्धा भाजन शाहनी चली गई चारों ओर अँधेरा छा गया। गाँव हरे-भरे खेतों से घिरे थे लेकिन हरे खेतों के बीच बसे हिन्दू गाँवों में रात के खून बरसा रही थी, अर्थात् रात में हिन्दुओं का कत्ल हो रहा था। गाँव में खून की होली खेली जा रही थी। कहीं कोई जीवन की हलचल नहीं। ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि राज पटल गया और सिक्का भी बदल गया था। लोग भी बदल गये हैं।

प्रश्न 21.
प्रस्तुत कहानी का शीर्षक “सिक्का बदल गया’ कहाँ तक सार्थक है? अपना मत दें।
उत्तर-
किसी भी रचना का शीर्षक उसका द्वार होता है जिसे देखकर ही अन्दर आने की इच्छा-अनिच्छा होती है। अगर द्वार आकर्षक है तो अंदर झाँकने या अन्दर की बात जानने की उत्सुकता स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होती है। अत: रचना का शीर्षक आकर्षक होना अत्यावश्यक है। दूसरी बात है रचना की संक्षिप्तता और रचना के मूल भाव का संवहन करना।।

उक्त दोनों ही दृष्टि से ‘सिक्का बदल गया’ कहानी शीर्षक अत्यन्त ही उपयुक्त है। कहानी का शीर्षक पढ़ते ही यह जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि ‘सिक्का बदल गया’ आखिर है क्या? यह शीर्षक आकर्षक है और कहानी का भाव जानने के लिए पाठक को बाध्य करता है। कहानी का शीर्षक यह स्पष्ट करता है कि राज बदल गया है। परिस्थितियाँ बदल गई हैं। कहानी की शुरूआत भी इसी भाव से होती है कि परिस्थितियाँ बदल गई हैं, राज्य बदल गया है। शाहनी को अनुभव हो गया है कि उसे अपना घर-द्वार, जमीन-जायदाद सबकुछ छोड़ना होगा। ऐसा होता भी है। कहानी अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँचती है। शाहनी घर छोड़ ट्रक पर बैठ जाती है, सिक्का बदल गया है पूर्णतः सार्थक समचीन और सटीक है यह शीर्षक।

सिक्का बदल गया भाषा की बात

प्रश्न 1.
इस कहानी में पंजाबी भाषा के कई वाक्य हैं। उन्हें हिन्दी में अनूदित करें।
उत्तर-
(a) ऐ मर गई एँ-रब्ब तैनू मौत दे।
ऐ मर गई क्या, भगवान, तुझको मौत दे।

(b) ऐ आई यां-क्यों छावेले तड़पना एं?
यह यहाँ आई, क्यों सबेरे-सबेरे तड़पते हो।

(c) रब्बू ने एही मंजूरसी-भगवान को यही मंजूर है।
(d) रब्ब तुहानू सलामत रक्खे बच्चा खुशियाँ बक्शे………..भगवान तुम्हें सुरक्षित रखें, खुशियाँ दें।
(e) तैनू भाग जगण चन्नाः-ओ चाँद, तेरे भाग्य जागें।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची लिखें। दरिया, आसमान, सूर्य, आँख, पानी, सोना, पुत्र, घर
उत्तर-

  • शब्द – पर्यायवाची शब्द
  • दरिया – प्रवाहिता, नदी, सरिता
  • आसमान – आकाश, नभ, गगन
  • सूर्य – दिनकर, भास्कर, दिवाकर आँख
  • आँख – लोचन, नयन, नेत्र पानी
  • पानी – जल, नीर, अंबू सोना
  • सोना – स्वर्ण, कंचन
  • पुत्र – बेटा, लड़का, सुत
  • घर – गृह, निकेतन, आलय

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों के बहुवचन बनाइए दुलहन, नजर, हवेली, कोठरी, साथी, आँसू, देवता
उत्तर-

  • एकवचन – बहुवचन
  • नजर – नजरें।
  • हवेली – हवेलियाँ
  • कोठरी – कोठरियाँ
  • साथी – साथियों
  • आँसू – आँसू (हमेशा बहुवचन)
  • देवता – देवताओं

प्रश्न 4.
‘पर-पर वह ऐसा नहीं-सामने बैठी शाहनी नहीं, शाहनी के माथ उसकी आँखों में तैर गए।’ यहाँ ‘आँखों मैं तैर गए’ का क्या अर्थ है?
उत्तर-
यहाँ ‘आँखों में तैर गए’ का अर्थ है-याद आ गय।

प्रश्न 5.
‘शाहनी, आज तक ऐसा न हुआ, न कभी सुना, गजब हो गया, अंधेर पड़ गया। यहाँ ‘अंधेर पड़ गया’ मुहावरा है। मुहावरे के प्रयोग के बिना इसी वाक्य को इस प्रकार लिखें कि अर्थ परिवर्तित न हो।
उत्तर-
‘शाहनी, आज तक ऐमा न हुआ न कभी सुना, गजब हा गया, अनर्थ हो गया’

प्रश्न 6.
‘जमीन तो सोना उगलती है।’ यहाँ सोना उगलने में क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
‘जमीन सोना उगलती है’ से तात्पर्य यह है कि जमीन से धन-धान्य, फसलें, आदि उपजती हैं।

प्रश्न 7.
सलामत एक भाववाचक संज्ञा है। इसका विशेषण रूप हुआ सलीम। ऐसे ही नीचे के शब्दों के विशेषण रूप लिखें
महारत, रहमत, तिजारत, शराफत, शरारत
उत्तर-

  • संज्ञा – विशेषण
  • महारत – महारती
  • रहमत – रहीम
  • तिजारत – तिजारती
  • शराफत – शरीफ
  • शरारत – शरारती

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

सिक्का बदल गया लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सिक्का बदल गया कहानी का देश-काल लिखें।
उत्तर-
इस कहानी का काल अर्थात् समय आजादी मिलने के साथ हुआ। भारत-विभाजन है। इस घटना के कारण धर्म के आधार पर आबादी का स्थानान्तरण हुआ। भारत के अनेक मुस्लिम परिवार पाकिस्तान गये और पाकिस्तान क्षेत्र की पूरी हिन्दू-सिक्ख आबादी भारत आ गयी। इस कहानी का स्थान पश्चिमी पंजाब है, जहाँ चिनाब नदी के किनारे एक गाँव में बसे धनाढ्य परिवार की अकेली विधवा महिला को अपना सब कुछ छोड़कर भारत आना पड़ता है, क्योंकि, उस क्षेत्र में मुस्लिम आबादी अधिक है और वह क्षेत्र विभाजन के क्रम में पाकिस्तान के हिस्से में चला जाता है। अतः इस कहानी का देश अर्थात् स्थान पंजाब का पश्चिमी भाग है और काल . अर्थात् समय भारत-विभाजन, अर्थात् 15 अगस्त, 1947 के तुरंत बाद का।

प्रश्न 2.
‘सिक्का बदल गया’ का अभिप्राय या कहानी के शीर्षक की सार्थकता बतावें।
उत्तर-
इस कहानी में सिक्का सत्ता का प्रतीक है। आजादी देने के साथ अंग्रेजों ने भारत को दो टुकड़ों में बाँटने का इन्तजाम कर दिया। इसका प्रभाव यह पड़ा कि पाकिस्तान क्षेत्र के हिन्दुओं को भारत आना पड़ा। यहाँ सिक्का बदलने का अर्थ है राजपाट बदलना, राजपाट अंग्रेनों का नहीं रहा और भमि दा गष्ट्रों में बँट गयो। जहाँ कल तक हिन्दू-मुसलमान दोनों थे वहाँ अब मुसलमानों का इम्लामी शासन-कायम हा गया। अतः हिन्दुओं के लिए तीन विकल्प शेष रह गये-

  • मुसलमान बनकर रहो,
  • भारत जाओ,
  • कत्ल हो जाओ।

इसी के कारण मुस्लिम आबादी वाले गाँव की अकली मालकिन साहनी को अपनी जमीन, हवेली और अपार धन छोड़कर चला जाना पड़ता है।

सिक्का बदल गया अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
शाहनी के प्रति शेरा के भाव क्या हैं?
उत्तर-
शेरा दुविधाग्रस्त है। वह अपने साथियों के साथ होकर शाहनी को मारकर हवेली लूट लेना चाहता है। लेकिन शाहनी के द्वारा बचपन में दिये गये स्नेह का स्मरण आते ही उसके हाथ रुक आते हैं।

प्रश्न 2.
गाँव वाले शाहनी को किस दृष्टि से देखते हैं?
उत्तर-
गाँव वाले शाहनी को अपने और प्रेम की दृष्टि से देखते हैं। वे नहीं चाहते हैं कि शाहनी जैसी स्नेहमयी मालकिन जाये लेकिन वे परिस्थिति के आगे विवश हैं।

प्रश्न 3.
गाँव छोड़ने के समय शाहनी की मनःस्थिति कैसी है?
उत्तर-
शाहनी के मन में कभी-कभी पुराना शासिका भाव और मोह उभरता है, लेकिन वह यथार्थ परिस्थिति को समझ रही है। अतः भीतर से दुःखी और मोहग्रस्त होते हुए भी ऊपर से निर्विकार होकर चली जाती है।

प्रश्न 4.
सिक्का बदलने का अभिप्राय क्या है?
उत्तर-
कल तक शाहनी गाँव की मालकिन थी। आज उसका गाँव भिन्न धर्म वाले देश का भाग बन गया है। अतः उसे भिखारिन की तरह अपना सब कुछ छोड़ना पड़ रहा है। समय का यही परिवर्तन सिक्का बदलने का अर्थ है।

प्रश्न 5.
सिक्का बदल गया नामक पाठ किसकी रचना है?
उत्तर-
सिक्का बदल गया कृष्णा सोबती द्वारा लिखित रचना है।

प्रश्न 6.
सिक्का बदल गया नामक पाठ किस प्रकार की रचना है?
उत्तर-
सिक्का बदल गया पाठ एक संस्मरण है।

प्रश्न 7.
साहनी ने हवेली क्यों छोड़ा?
उत्तर-
जब भारत का विभाजन हुआ तो साहनी ने भारत आने के लिए अपना घर छोड़ दिया।

प्रश्न 8.
दाझुद खाँ क्या चाहता था?
उत्तर-
दाद खाँ यह चाहता था कि साहनी हवेली को न छोड़े। साथ ही वह यह भी चाहता था कि यदि साहनी हवेली छोड़ती है तो वह अपने साथ कुछ आवश्यकता की वस्तु रख लें क्योंकि दाझुद खाँ को साहनी के प्रति सहानुभूति थी।

सिक्का बदल गया वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

I. सही उत्तर का सांकेतिक चिह्न (क, ख, ग या घ) लिखें।

प्रश्न 1.
‘सिक्का बदल गया’ किनकी रचना है?
(क) कृष्णा सोबती
(ख) भोला पासवान शास्त्री
(ग) कृष्ण कुमार
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(क)

प्रश्न 2.
‘सिक्का बदल गया’ की पृष्ठभूमि है
(क) आजादी की लड़ाई
(ख) भारत का विभाजन
(ग) भारत-पाक संबंध
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ख)

प्रश्न 3.
शेरा कौन था?
(क) शाहनी का बेटा
(ख) शाहनी का नौकर
(ग) दाऊद खाँ का पुत्र
(घ) इनमें से कोई नहीं
उतर-
(ख)

प्रश्न 4.
किसने कहा-‘मेरा सोना तो एक-एक जमीन में बिछा है।’
(क) दाऊद खाँ
(ख) शेरा
(ग) शाहनी
(घ) फिरोज
उत्तर-
(ग)

प्रश्न 5.
शाहनी के मन में किस बात की पीड़ा थी?
(क) नि:संतान होने की
(ख) जन्मभूमि छोड़ने की।
(ग) पति की मृत्यु की
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ख)

प्रश्न 6.
शेरा शाहनी को क्यों मारना चाहता था?
(क) शाहनी की सम्पत्ति हथियाने के लिए
(ख) पुरानी दुश्मनी के कारण
(ग) अपनी बात मनवाने के लिए
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(क)

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें।

प्रश्न 1.
……………..की आग शेरे की आँखों में उतर आई।
उत्तर-
प्रतिहिंसा

प्रश्न 2.
…………………कुआँ भी आग नहीं चल रहा।
उत्तर-
जम्मीवाला

प्रश्न 3.
मेरा सोना तो एक-एक……………..में बिछा है।
उत्तर-
जमीन

प्रश्न 4.
आस-पास के हरे-हरे खेतों से घिरे गाँवों में रात……………बरसा रही थी।
उत्तर-
खून

प्रश्न 5.
लेकिन…………….यह नहीं जानती कि सिक्का बदल गया है।
उत्तर-
बूढ़ी शाहनी।

सिक्का बदल गया लेखक परिचय कृष्णा सोबती (1925)

आधुनिकता बोध की श्रेष्ठा कथाकार एवं महिला लेखिका (पं० पंजाब, जो अभी पाकिस्तान का हिस्सा है) में सन् 1925 में हुआ था। वे अपनी आजीविका के लिए नौकरी पेशा आदि न अगनाकर स्वतंत्र लेखन में ही लगी रही। सम्प्रति, वे नई दिल्ली के निवासी हैं और एकांतभाव से साहित्य-रचना का कार्य कर रही हैं। उनके उल्लेखनीय साहित्यिक अवदानों के लिए उन्हें अनेक पुस्कारों एवं सम्मानों से पुरस्कृत एवं विभूषित किया गया है। जैसे-साहित्य अकादमी सम्मान, हिन्दी अकादमी का शलाका सम्मान, साहित्य अकादमी की महत्तर सदस्यता, बिहार का राजेन्द्र शिखर सम्मान सहित अन्य अनेक राष्ट्रीय पुरस्कार उन्हें प्राप्त हैं।

वस्तुतः स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कथा साहित्य में कृष्णा सोबती का अत्यंत महत्त्वपूर्ण एवं विशिष्ट स्थान है। उनका नाम हिन्दी के एक बड़े, समर्थ एवं सशक्त रचनाकारों में लिया जाता है। यद्यपि कृष्णा एक महिला कथाकार हैं, तथापि ऐसा नहीं कि उनका कथाकार व्यक्तित्व महिला होने की किसी रियासत या खासियत पर जिन्दा है। वास्तव में उनके कथा-साहित्य की मूलभूत शक्ति, सामर्थ्य एवं वैशिष्ट्य उनके महिला होने पर मुनहसर नहीं, प्रत्युत स्त्रोत और जड़ें, उनके विशाल एवं गहरे जीवनानुभाव, कल्पनाशील कथात्मक प्रतिभा, अद्भुत भाषा-सामर्थ्य, कलात्मक अंतर्दृष्टि और मनस्वी बौद्धिकता में हैं।

यह शक्ति-सामर्थ्य उनकी रचनाधर्मिता को कभी बासी नहीं होने देती। वे नित्य नई ताजगी और उत्साह के साथ अपने नये-पुराने अनुभवों के भीतर से नई भाव-भंगिमा के साथ नई कृति प्रस्तुत कर देती हैं। उनके कथा-साहित्य में नारी सुलभ कोमल भावनाओं एवं संवेदनाओं की स्वाभाविक रूप से भरपूर अभिव्यक्ति हुई हैं। उनका व्यक्ति, समाज, परिवेश और प्रकृति के साथ नित्य नया संबंध है, जिससे वे हमेशा अपने समय के साथ बनी रहती हैं।

उनमें परिवेश और मानवचरित्रों के अंतर्मन में बैठने तथा मानव-संबंधों के नये-नये रूपों, भंगिमाओं को समझने और तदनुरूप लेखन के माध्यम से अभिव्यक्त करने की अद्भुत शक्ति है। यही कारण है कि उन्होंने हिन्दी तथा साहित्य को कई अविस्मरणीय चरित्र प्रदान किये हैं।

कृष्णा सोबती की कथा भाषा विविधतापूर्ण और बहुरूपिणी है। उसमें संस्कृत, उर्दू, पंजाबी और अन्य देशज विरासतों का सम्यक् सम्मिश्रण है। वे अपनी भाषा को पात्र, परिवेश एवं परिस्थिति के अनुरूप कलात्मक रूप देने में दक्ष हैं। इससे पाठकों को उसमें वास्तविक जीवन – प्रतीति होती है।

निश्चय ही कृष्णा सोबती आज की हिन्दी कहानी-लेखिकाओं के बीच अत्युच्च स्थान और दिशिष्ट मान-सम्मान की अधिकारिणी हैं। उनकी प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार हैं

उपन्यास-यारों के यार, जिन्दगी नामा (साहित्य अकादमी से पुरस्कृत), दिलो दानिश, ऐ लड़की, समय सरगम आदि।

कनी-संग्रह-डार से बिछुड़ी, मित्रों मर जानी, बादलों के घेरे सूरजमुखी, अंधेरे के आदि। शब्दचित्र-संस्मरण-हम हशमत, शब्दों के आलोक में आदि।

सिक्का बदल गया पाठ का सारांश

कृष्णा सोबती द्वारा रचित कहानी “सिक्का बदल गया” हिन्दी की प्रसिद्ध कहानी है। कृष्णा सोबती के पास भारत विभाजन का दर्द भरा निजी अनुभव है। कृष्णा सोबती के कथा . साहित्य में प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दोनों रूपों में भारत विभाजन एक त्रासदी के रूप में उपस्थित पाते हैं। वास्तव में भारत विभाजन एक राष्ट्रीय त्रासदी है जिसकी स्मृति लोक-मानस में अमिट है।

प्रस्तुत कहानी “सिक्का बदल गया” भारत विभाजन की इसी पीड़ा भरी पृष्ठभूमि को लेकर लिखी गई है। कहानी में भारत के उस हिस्से (पाकिस्तान) की रहने वाली शाहनी अपनी दु:खद स्मृतियाँ, संबंध, खेत, हवेली और जैसे अपनी पूरी जिन्दगी को छोड़ शरणार्थी होकर इस पार (शेष भारत) आती हैं क्योंकि सिक्का बदल चुका है, मुल्क बँट गया है। निजाम बदल गया है।

शाहनी बूढी हो चली है। दंगाइयों ने उसकी हवेली की सारी सम्पत्ति लूट ली है। वह घर में अकेली है। उसे यह अनुभव हो गया है कि उसके स्वयं अपने असमियों ने ही उससे मुख मोड़ लिया है। वे ही उसके खून के प्यासे हो गये हैं। शेर उसका आसामी है। वह भी दंगाइयों से जा मिला है। शाहनी का कत्ल करने की जिम्मेदारी उसे सौंपी गई है। . शाहनी चिनाब के किनारे भोर में ही अंतिम दर्शन को जाती है। चिनाब की रेत आज खामोश नजर आ रही है। दूर तक कही कोई नजर नहीं आ रहा था। पर नीचे रेत में अगणित पाँवों के निशान थे।

शाहनी कुछ सहज-सी गई। सब कुछ भयानक-सा लग रहा था। शाहनी पिछले पचास वर्षों से यहाँ नहाती आ रही है। पचास वर्ष पहले एक दिन यही वह दुल्हन बनकर उतरी थी। स्नान कर वह घर की ओर चलती है। रास्ते में दूर तक फैला हुआ उसका हरा-भरा खेत है। वहीं शेरे और उसकी बीबी हसैना दोनों रहते हैं। शाहनी को देखते शेरा अपनी पत्नी से झगड़ने लगता है। शेरा अपने पास गडाँसा रखे हुए है, लेकिन शाहनी को देखते वह सहम जाता है।

उसे बचपन के दिन याद आ जाते हैं। वह शाहनी के उन दोनों हाथों को देखकर सहम जाता है जिन हाथों ने उसे जगा-जगाकर दूध पिलाया था। शेरा अपना निर्णय बदल देता है। वह शाहनी को घर पहुँचा देता है। शाहनी सब कुछ चुपचाप समझती हुई अपनी हवेली के पास पहुँचती है। उस गाँव में उसके रिश्तेदार रहते थे। वह समझ जाती है कि जबलपुर गाँव को जलाया जा रहा है।

हवेली पहुँच शाहनी ने शून्य मन से ड्योरी पर कदम रखा। शाहनी दिन भर वहीं पड़ी रही। मानो पत्थर हो गई है। अचानक रसूली की आवाज सुनकर चौंक गई। पता चला कि शरणार्थियों को लेने ट्रकें आ रही हैं। रसूली ने शाहनी का हाथ थाम लिया। शाहनी धीरे-धीरे खड़ी हो गई। सारा गाँव हवेली के पास खड़ा था। सभी शाहनी के आसानी ही थे। लेकिन आज उसका कोई नहीं था। आज वह अकेली है। बेगू और इस्माइल दोनों शाहनी के निकट पहुँचते हैं। वे कहते हैं कि शाहनी, अल्लाह को यही मंजूर था। शाहनी के कंदम डोल गये। चक्कर आया और दीवार से जा ठहराई। वह बेजान-सी हो गई थी।

शाहनी का गाँव से निकलता छोटी-सी बात नहीं थी। पूरे गाँव के लोग खड़े थे शाहनी की हवेली के सामने। शाहनी ने किसी का बुरा नहीं किया था। लेकिन समय बदल चुका था। कोई उसकी सहायता के लिए आगे नहीं बढ़ा। इसी बीच थानेदार दाऊद खाँ आता है। ट्रक के आने का संदेश पहुँचाता है। दाऊद खाँ भी थोड़ी देर के लिए शाहनी को देख ठिठक जाता है।

हिम्मत जुटा कर वह शाहनी को अपने साथ कुछ नकदी रख लेने की सलाह देता है। लेकिन शाहनी इनकार कर देती है। यहाँ शाहनी के दो वाक्य बड़े ही मार्मिक हैं। जब दाऊद खाँ कुछ सोना-चाँदी अपने साथ रख लेने की सलाह देता है तो शाहनी जवाब देती हैं- “सोना-चाँदी? बच्चा वह सब तुम लोगों के लिए है। मेरा सोना तो एक-एक जमीन में बिछा है।” जब कुछ नकदी रख लेने की सलाह देता है तो शाहनी जवाब देती है-

“नहीं बच्चा, मुझे इस घर से नकदी प्यारी नहीं। यहाँ की नकदी यहीं रहेगी।”

भा इसी बीच शेरा आता है और दाऊद खाँ से बोलता है-“खाँ साहिब, देर हो रही है।” शेरा की यह बात सुनकर शाहनी चौंक जाती है। उसका मन बोल उठता है-“देर-मेरे घर में मुझे दे !” शाहनी अपने पुरखों का घर छोड़ते समय थोड़ा-सा भी विचलित नहीं होती। सोचती है-जिस घर में मैं रानी बनकर आयी थी उस घर से रोकर नहीं शान से निकलूंगी। अपने पुरखों के घर की शान एवं मान को कायम रखेगी। उसने ऐसा ही किया। उसने अपने पुरखों की हवेली को अंतिम बार देखा और दोनों हाथ जोड़ लिये-यही अंतिम दर्शन था, यही अंतिम प्रणाम था।

शाहनी ट्रक पर जाकर बैठ गई। सबों को आशीर्वाद दिया। ट्रक चल दी। शाहनी को कुछ पता नहीं-ट्रक चल रही है या वह स्वयं चल रही है। आँखें बरस रही हैं। हवेली के एक-एक भाग उसकी आँखों के सामने घूम रहे हैं। शाहनी सब कुछ समझ रही थी कि राज बदल गया है, सिक्का बदल गया है।

इस प्रकार प्रस्तुत कहानी एक शरणार्थी की दारूण-व्यथा की करुण कहानी है। इस दारूण यथार्थ के आगे हिंदू और मुसलमान होना सचमुच कितना सतही और कुछ तुच्छ लगता है। सचमुच में, यह कहानी एक साथ कई कोणों से सोचने और महसूस करने के लिए हमारे आगे बहुत कुछ रख देती है।

कठिन शब्दों का अर्थ खद्दर-खादी। दरिया-नदी। अंजलि-दोनों हथेलियों की मिलाकर बनाया हुआ गड्ढ़ा। अगणित-जिसकी गिनती न की जा सके। नीरवता-शान्ति। असामियाँ-वह जिसने लगान पर जोतने के लिए खेत लिया हो। शटाले-फसल की डंठलों का पूला। ड्योढ़ी-दरवाजा। खेमे-शिविर। मसीत-मस्जिद। कगारे-किनारे। जिगरा-कलेजा, उदारक। दारे-द्वार। लीग-मुस्लिम लीग के संदर्भ में। सीस-अशीर्वाद, आशीष। पसार-घर के आगे का मैदान, अहाता। साफा-पगड़ी जिसकी छोर छटक रही हो। बरकत-वृद्धि, इजाफा। सलामत-सुरक्षित।

महत्त्वपूर्ण पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या

1. आज शाहनी नहीं उठ पा रही। जैसे उसका अधिकार आज स्वयं ही उससे छूट रहा है। शाह जी के घर की मालकिन………….लेकिन नहीं, आज मोह नहीं हो रहा। मानो पत्थर हो गयी हो।
व्याख्या-
सिक्का बदल गया शीर्षक कहानी से ये पंक्तियाँ ली गयी हैं। लेखिका हैं कृष्णा सोबती। नदी से स्नान कर शाहनी अपनी हवेली आती है। आज वातावरण बदला हुआ है। भारत विभाजन ने हिन्दू-मुस्लिम दोनों को एक-दूसरे का शत्रु बना दिया है। कहानी उस क्षेत्र की है जहाँ मुस्लिम आबादी बहुसंख्यक है, वातावरण में हिंसा और आगजनी से उत्पन्न भय व्याप्त है। शाहनी इस बात को भाँप रही है। वह आकर अपनी हवेली में लेट जाती है और शाम तक लेटी रह जाती है। आज उठने की चेतना मरी हुई सी है।

उसे लगता है कि आज तक घर, खेत, फसल और सोने-चाँदी की बोरियाँ उसकी मुट्ठी में थीं। लेकिन आज यह अधिकार-भाव स्वयं उसे छोड़ रहा है। एक क्षण के लिए अधिकार भाव सजग होता है-वह शाहजी के घर की मालकिन है, लेकिन दूसरे क्षण यह भाव भी उड़ जाता है। वह धन और ऐश्वर्य के मोह से आविष्ट नहीं हो पाती है। वह लगभग पत्थर की तरह जड़ हो गयी है। मानो यह इन सब चीजों को पकड़ कर रखने वाली ताकतों से वह परिपक्ष हो गयी है।

ये पंक्तियाँ वस्तुतः परिस्थिति से उत्पन्न विवशता और वृद्धावस्थाजन्य शक्तिहीनता से उत्पन्न निर्विकार मन:स्थिति को सूचित करती हैं।

2. यह नहीं कि शाहनी कुछ न जानती हो। वह जानकर भी अनजान बनी रही। उसने कभी बैर नहीं जाना। किसी का बुरा नहीं किया। लेकिन बूढी-शाहनी यह नहीं जानती कि सिक्का बदल गया है।
व्याख्या-
‘सिक्का बदल गया’ शीर्षक कहानी की इन पंक्तियों में कहानीकार ने बड़े मार्मिक ढंग से अपनी कहानी के शीर्षक की अर्थवत्ता को अभिव्यक्ति दी है। शाहनी ने वातावरण को सूंघ कर अनुमान कर लिया था कि हिन्दू-मुस्लिम दंगा हो रहा है और वह असुरक्षित है। लेकिन वह जानकर भी अनजान बनी रही। क्योंकि एक जो उसकी विवशता थी कि कहाँ जाये? क्या करे, तय नहीं कर पा रही थी, दूसरे, उसके भीतर मानवता का विश्वास था कि उसने किसी से कभी बैर नहीं किया।

किसी का बुरा नहीं किया, हिन्दू-मुसलमान का भेद उसके मन में नहीं आया, अपने मुसलमान आसामियों को पुत्रवत्-स्नेह किया। तब उसे कोई क्यों पराया समझेगा। लेकिन लेखिका का कहना है कि ये बातें तो ठीक हैं लेकिन शाहनी एक बात से अनभिज्ञ थी कि जब सत्ता बदल जाती है तब मानवता का कोई मूल्य नहीं रह जाता। राजनीति और धर्म के उन्माद की आँधी मनुष्यता ओर अपनापन के सारे मूल्यों को उड़ाकर फेंक देती है। केवल पशुता रह जाती है और पशुता के व्यक्ति के गुण या भावना से मतलब नहीं होता।

3. देर-मेरे घर में मुझे देर ! आँसुओं के भंवर में न जाने कहाँ से विद्रोह उमड़ पड़ा। मैं पुरखों के इस बड़े घर की रानी और यह मेरे ही अन पर पले हुए….नहीं, यह सब कुछ नहीं।
व्याख्या-
व्याख्या की इन पंक्तियों में कृष्णा सोबती ने शाहनी के भावों के उतार-चढ़ाव को चित्रित किया है। अल्पसंख्यक हिन्दुओं को सुरक्षित कैम्प में ले जाने के लिए ट्रक आ गया है। विदा करने वाले लोग जल्दी करने के लिए कह रहे हैं। शाहनी सब कुछ छूटने की पीड़ा से आँसुओं में डूब-उतर रही है। बार-बार देर हो रही है सुनकर एकाएक उसका तेज जाग उठता है।

ये मेरे ही अन्न पर पले हुए आसामी मुझे मेरी ही सम्पदा छोड़कर जाने हेतु देर-देर रट रहे हैं। मैं इस सम्पदा की मालकिन और ये अतिथि समझ रहे हैं। उसका अधिकार भाव विद्रोह के रूप में फूट पड़ना चहता है, आँसुओं का भंवर विलुप्त हो जाता है। लेकिन दूसरे क्षण वह अपने पर नियंत्रण कर लेती है। वास्तविकता को स्वीकार कर समझौता कर लेती है। नहीं यह विद्रोह एक स्वामिनी भाव व्यर्थ, अपुयोगी है असत्य हैं।

4.शाहनी रो-रोकर शान से………….ड्योढ़ी से बाहर हो गयी।
व्याख्या-
इन पंक्तियों में लेखिका ने शाहनी के चरित्र की निर्णायक स्थिति और स्वाभिमानी मुद्रा का चित्रण किया है। शाहनी तय कर लेती है कि जब जाना निश्चित है, यहाँ रहना मृत्यु को गले लगाना है, तब वह तय करती है कि वह शान से मालकिन भाव से घर छोड़ेगी ताकि वे उसके आसामी उसे जाते हुए भी मालकिन समझें कायर, कमजोर और भिखारिन नहीं। अतः वह अपने लड़खड़ाते कदमों को संभालती है और दुपट्टे से आँखें पोंछकर अपने भीतर निहित नारी सुलभ दुर्बलता और अनिश्चित भविष्य की पीड़ा को झटक कर भाग देती है और अंतिम बार हवेली को देखकर प्रणाम की मुद्रा में हाथ जोड़कर गर्वदीप्त भाव से मन को बल प्रदान करती हुई चल पड़ती है।

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