JAC Board Jharkhand Class 9th Social Science History Solutions chapter - 5- आधुनिक विश्व में चरवाहे
JAC Board Jharkhand Class 9th Social Science History Solutions chapter - 5- आधुनिक विश्व में चरवाहे
भारत और समकालीन विश्व
आधुनिक विश्व में चरवाहे
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
सही विकल्प का चयन करें-
प्रश्न 1. भाबर किसे कहते है ?
(a) ऊँचे पहाड़ों पर स्थित घास के मैदान,
(b) तटीय मैदान,
(c) पहाड़ी क्षेत्रों में सूखे जंगल का इलाका,
(d) इनमें कोई नहीं।
उत्तर-(c)
प्रश्न 2. अफ्रीका का सबसे पुराना चरवाहा कबीला कहलाता है-
(a) बुर्कान,
(b) मासाई,
(c) राइका,
(d) इनमें कोई नहीं।
उत्तर-(b)
प्रश्न 3. महाराष्ट्र का एक महत्त्वपूर्ण चरवाहा समुदाय है-
(a) राइका,
(b) बोरान,
(c) धनगर,
(d) इनमें कोई नहीं।
उत्तर-(c)
प्रश्न 4. जम्मू कश्मीर के चरवाहों को क्या कहा जाता है ?
(a) गुर्जर बकरवाल,
(b) गद्दी,
(c) मजदूर,
(d) मोटिया।
उत्तर-(a)
प्रश्न 5. राजस्थान का एक महत्त्वपूर्ण चरवाहा समुदाय है-
(a) राइका,
(b) बोरान,
(c) धनगर,
(d) इनमें कोई नहीं।
उत्तर-(a)
प्रश्न 6. निम्नांकित में कौन अफ्रीका के चरवाहा नहीं है ?
(a) मासाई,
(b) बोरान,
(c) सोमाली,
(d) धनगर ।
उत्तर-(d)
प्रश्न 7. भारत में चलवासी चरवाहे अपने साथ निम्न जानवर के साथ घुमते हैं-
(a) भेड़ तथा हाथी,
(b) भेड़ तथा बाघ,
(c) भेड़ तथा बकरियाँ,
(d) भेड़ तथा भेड़िया
उत्तर-(c)
प्रश्न 8. 'धार क्या होते हैं ?
(a) मैदानों में बाग,
(b) ऊँचे पर्वतों में चारागाह,
(c) सागरों में फसल,
(d) इनमें कोई नहीं।
उत्तर-(b)
प्रश्न 9. उत्तर प्रदेश, पंजाब, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के चरवाहों के समुदाय को कहते है-
(a) बुग्याल,
(b) राइका,
(c) धंगर,
(d) बंजारा ।
उत्तर-(d)
प्रश्न 10. 'साम्बूरु नेशनल पार्क' किस देश में स्थित है ?
(a) केन्या,
(b) तंजानिया,
(c) नेपाल,
(d) भारत ।
उत्तर-(a)
प्रश्न 11. ऊँचे पर्वतीय प्रदेशों पर स्थित चारागाह को कहा जाता है-
अथवा,
गढ़वाल और कुमाऊँ के इलाके में ऊँचे पहाड़ों में स्थित घास (चारागाह) के मैदान को क्या कहते हैं ?
(a) वुग्याल,
(b) सवाना,
(c) पम्पास,
(d) इनमें कोई नहीं।
उत्तर-(a)
प्रश्न 12. गढ़वाल और कुमाऊँ पहाड़ियों के निचले हिस्से के आसपास सूखे या शुष्क जंगल का इलाका कहलाता है-
(a) बुग्याल,
(b) भाबर,
(c) मंडप,
(d) इनमें कोई नहीं।
उत्तर-(b)
प्रश्न 13. एक ऐसा समुदाय जिसके सदस्य आज भी बड़ी संख्या में भेड़-बकरियाँ पालते हैं-
(a) राइका समुदाय,
(b) गुज्जर बकरवाल समुदाय,
(c) कुरवा समुदाय,
(d) इनमें कोई नहीं।
उत्तर-(b)
प्रश्न 14. सितम्बर-अक्टूबर में कटने वाली फसल को कौन-सी फसल कहते हैं ?
(a) रबी फसल,
(b) खरीफ फसल,
(c) नकदी फसल,
(d) इनमें कोई नहीं।
उत्तर-(b)
प्रश्न 15. परंपरा और रीति रिवाज के आधार पर मिलने वाला अधिकार कहलाता है-
(a) परंपरागत अधिकार,
(b) वंशानुगत अधिकार,
(c) मौलिक अधिकार,
(d) इनमें कोई नहीं।
उत्तर- (a)
प्रश्न 16. 'थार' रेगिस्तान किस प्रदेश में स्थित है ?
(a) राजस्थान,
(b) गुजरात,
(c) हिमाचल प्रदेश,
(d) केरल ।
उत्तर-(a)
प्रश्न 17. मोनपा प्रजाति के लोग कहाँ के जाति थे ?
(a) आसाम,
(b) मणिपुर,
(c) नागालैण्ड,
(d) कर्नाटक ।
उत्तर-(a)
प्रश्न 18. 'रेवड़' किसे कहा जाता है ?
(a) भेड़-बकरियों का झुंड,
(b) गाय का झुंड,
(c) ऊँटों का झुंड,
(d) मवेशियों का झुंड
उत्तर-(a)
प्रश्न 19. भोटिया, शेरपा, किनौरी आदि समुदाय के लोग किस क्षेत्र में रहते हैं ?
(a) पश्चिमी घाट,
(b) हिमालय,
(c) नीलगिरि,
(d) अमरकंटक ।
उत्तर-(b)
प्रश्न 20. 'मासाई लैण्ड' का विस्तार किस पहाड़ तक है ?
(a) किलिमंजारो,
(b) रॉकीज,
(c) ऐंडीज,
(d) एटलस ।
उत्तर- (a)
प्रश्न 21. हिमाचल प्रदेश के चरवाहे समुदाय को किस नाम से जाना जाता है ?
(a) धंगर,
(b) गोल्ला,
(c) मासाई,
(d) गद्दी ।
उत्तर-(d)
अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. बुग्याल का क्या अर्थ है ?
उत्तर- बुग्याल ऊँचे पर्वतों में 12000 फुट की ऊँचाई पर स्थित चरागाह हैं। उदाहरण के लिए पूर्वी गढ़वाल के बुग्याल । यहाँ प्रायः भेड़ चराई जाती हैं।
प्रश्न 2. बुग्याल के प्रमुख लक्षणों को लिखें।
उत्तर- (क) बुग्याल सर्दियों में बर्फ से ढके रहते हैं तथा अप्रैल के बाद वहाँ जीवन दिखाई देता है।
(ख) अप्रैल के बाद सारे पर्वतीय क्षेत्र में घास ही पास दिखाई देती है।
(ग) मानसून आने पर ये चरागाह वनस्पति से ढक जाते हैं तथा जंगली फूलों की चादर फैल जाती है।
प्रश्न 3. चलवासी चरवाहे कौन हैं ?
उत्तर- चलवासी वे लोग हैं जो एक स्थान पर नहीं ठहरते अर्थात् एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते हैं। भारत के कई भागों में चलवासी चरवाहे हैं जो अपनी भेड़ तथा बकरियों के साथ घूमते हैं।
प्रश्न 4. जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश उत्तरांचल के पाँच चलवासी चरवाहों के नाम लिखें।
उत्तर- (क) गुज्जर बक्करवाल,
(ख) गद्दी गड़रिये,
(ग) भेटिया,
(घ) शेरपा,
(ङ) किन्नौरी।
प्रश्न 5. पाँच भौगोलिक भागों के नाम लिखें जहाँ चरवाही का कार्य होता है।
उत्तर- (क) पर्वत,
(ख) पठार,
(ग) मैदान,
(घ) मरुस्थल,
(ङ) वन ।
प्रश्न 6. बंजारे कौन थे ?
उत्तर- बंजारे चरवाहों का प्रसिद्ध कबीला माना जाता है जो देश के एक लम्बे-चौड़े भाग जैसे- उत्तरप्रदेश, पंजाब, राजस्थान, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र आदि में आम पाए जाते थे।
प्रश्न 7. घुमंतू किसे कहते हैं ?
उत्तर- वे लोग जो अपने निर्वाह के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान घूमते रहते हैं उन्हें घुमंतू कहा जाता है।
प्रश्न 8. गद्दी चरवाहे कौन हैं ?
उत्तर- हिमाचल प्रदेश में जो लोग अपने रेवड़ों के साथ पहाड़ों में ऊपर नीचे घूमते रहते हैं उन्हें गद्दी चरवाहे कहते हैं।
प्रश्न 9. गुज्जर मण्डप किसे कहते हैं ?
उत्तर- गुज्जर चरवाहों के कार्यस्थल को गुज्जर मंडप कहा जाता है जहाँ वे रहते हैं। और दूध एवं घी बेचने का काम करते हैं।
प्रश्न 10. भाबर किसे कहा जाता है ?
उत्तर- गढ़वाल और कुमाऊँ में निचली पहाड़ियों में शुष्क वनों के क्षेत्र को भाबर कहा जाता है।
प्रश्न 11. कर्नाटक और आन्ध्र प्रदेश के तीन चरवाहा कबीलों के नाम लिखें।
उत्तर- गोल्ला, कुरुमा और कुरबा आदि।
प्रश्न 12. पहाड़ी चरवाहों की गतिविधियों को कौन-सा ऋतु चक्र प्रभावित करता है ?
उत्तर- सर्दी-गर्मी ।
प्रश्न 13. चरवाहा कबीलों के मुख्य व्यवसाय क्या होते हैं ?
उत्तर- चरवाही, व्यापार और कृषि ।
प्रश्न 14. मासाई कौन हैं ?
उत्तर- मासाई अफ्रीका का सबसे पुराना चरवाहा कबीला है जो दूध और मांस पर अपना निर्वाह करता है।
प्रश्न 15. अफ्रीका के कुछ चरवाहा कबीलों के नाम लिखें।
उत्तर- (क) बेदुईन्स,
(ख) बरबेर्स,
(ग) मासाई,
(घ) सोमाली,
(ङ) बोरान,
(च) तुर्कान।
प्रश्न 16. सूखा चरवाहों को कैसे प्रभावित करता है ?
उत्तर- सूखा चरवाहे का जानी दुश्मन होता है क्योंकि सूखा पड़ने पर उनके पशु मरने लगते हैं और वे स्वयं अर्श से फर्श तक आ जाते हैं।
प्रश्न 17. गुज्जर कहाँ के चरवाहा समुदाय हैं ?
उत्तर- गढ़वाल और कुमायूँ ।
प्रश्न 18. कुरुमा, कुरुबा और गोल्ला कहाँ के चरवाहा समुदाय हैं ?
उत्तर- कर्नाटक ।
प्रश्न 19. पहाड़ी चरवाहों की गतिविधियों को कौन-सा ऋतु चक्र प्रभावित करता है ?
उत्तर- सर्दी-गर्मी ।
प्रश्न 20. सेरेन्गेरी नैशनल पार्क किस देश में स्थित है ?
उत्तर- तंजानिया ।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. परती भूमि नियमावली से चरवाहों के जीवन पर क्या असर पड़ा ?
उत्तर- परती भूमि नियमावली- औपनिवेशिक अधिकारियों को सभी गैर-कृषि भूमि अनुपजाऊ लगी। इस पर न तो कृषि की जाती थी और न ही कोई आय होती थी। यह बेकार बंजर या परती भूमि थी। 19वीं शताब्दी के मध्य से बंजर भूमि के कानून बनाये गए। इन कानूनों के अन्तर्गत बंजर भूमि को ले लिया गया। तथा उसे कुछ चुने लोगों को दे दिया गया। इनमें से कुछ गांव के मुखिया थे। इनमें से कुछ भागों में वास्तव में चरागाह भूमि थी। परिणाम यह हुआ कि चरागाह भूमि की कमी हो गई।
प्रश्न 2. वन अधिनियम से चरवाहों के जीवन पर क्या असर पड़ा ?
उत्तर- उपनिवेशी शासन के समय बहुत से अधिनियम बनाये गए। इन कानूनों के द्वारा कुछ वन जो बहुमूल्य व्यापारिक लकड़ी उत्पन्न करते थे जैसे देवदार या साल, उनको आरक्षित कर दिया गया। इन पर कोई चराई का काम नहीं किया गया। दूसरे वनों को वर्गीकृत किया गया। इनमें जानवरों को चराने के कुछ अधिकार दे दिए गए। उपनिवेशी अधिकारी विश्वास करते थे कि चराई से पौधों की जड़ें
सामप्त हो जाती हैं।
प्रश्न 3. अपराधी जनजाति अधिनियम से चरवाहों के जीवन पर क्या असर पड़ा ?
उतर- 1871 में उपनिवेशी सरकार ने अपराधी जनजाति कानून पास किया। इस कानून के द्वारा दस्तकारों, व्यापारियों, चरवाहें की कुछ जातियों को अपराधी जाति में वर्गीकृत किया। उनको जन्म और प्रकृति से ही अपराधी जाति में वर्गीकृत किया। उनको जन्म और प्रकृति से ही अपराधी बताया गया। एक बार यह कानून लागू होने से ये जातियाँ विशेष वर्गीकृत बस्तियों में रहने लगीं। बिना आज्ञा के उन्हें दूसरे स्थानों पर जाने की आज्ञा नहीं थी। गाँव की पुलिस भी उन पर लगातार नजर रखती थी। ब्रिटिश अधिकारी उन पर (चलवासी लोगों पर) संदेह करते थे। उपनिवेशी सरकार एक स्थायी जनसंख्या पर शासन करने की इच्छुक थी।
प्रश्न 4. चराई कर अधिनियम से चरवाहों के जीवन पर क्या असर पड़ा ?
उत्तर- उपनिवेशी सरकार अपनी आय बढ़ाने के लिए प्रत्येक संभव संसाधन पर अपनी नजर रखती थी। इसलिए भूमि पर, नहर के जल पर, नमक पर यहाँ तक कि जानवरों पर भी कर लगाया गया। चरवाहों को प्रत्येक जानवर पर जिसे दे चरागाह में चराते थे कर देना पड़ता था। भारत में अधिकतर चरागाहों पर उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य तक कर लगा दिया गया था। प्रति जानवर दर कर बढ़ता गया तथा कर एकत्र करने की प्रक्रिया तेज होती गई।
1850 और 1880 के दशकों के मध्य कर इकट्ठा करने का अधिकार नीलाम होने लगा। ये ठेकेदार अधिक से अधिक कर इकट्ठा करने लगे तथा अपने लिए भी लाभ कमाने लगे।
1880 के बाद सरकार चरवाहों से प्रत्यक्ष रूप से कर वसूल करने लगी। प्रत्येक चरवाहे को एक पास दिया गया। प्रत्येक चरागाह पट्टी में प्रवेश करते समय चरवाहे को पास दिखाकर उसका कर चुकाना पड़ता था। मवेशियों की संख्या तथा चुकाए जानेवाला कर पास पर अंकित होता था।
प्रश्न 5. किन क्षेत्रों में बंजारे पाये जाते हैं ? सामान्यतः वे क्या करते हैं ?
उत्तर- बंजारे उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के गाँवों में पाये जाते हैं। वे अपने जानवरों के लिए अच्छे चरागाहों की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं तथा हल चलाने वाले जानवरों व अन्य वस्तुओं को ग्रामीणों को बेचते हैं जिससे अपने लिए चारा और अनाज ले सकें।
प्रश्न 6. महाराष्ट्र के धंगर चरवाहा-समुदाय के जीवन के मुख्य लक्षणों का वर्णन करें।
उत्तर- (क) धंगर चरवाहे महाराष्ट्र के प्रमुख चरवाहा समुदाय हैं। बींसवी शताब्दी के प्रारंभ में इनकी संख्या 4,67,000 थी।
(ख) बहुत से धंगर गड़रिये हैं। ये कुछ कम्बल बनाते हैं और कुछ चमड़े का काम करते हैं।
(ग) ये लोग महाराष्ट्र के मध्य पठार पर मानसून के समय रहते हैं। यहाँ कम वर्षा होती है।
(घ) मानसून में यह क्षेत्र घास चरने का क्षेत्र बन जाता है।
(ङ) अक्टूबर तक धंगर अपने बाजरे की फसल को काट लेते हैं और पश्चिम की ओर चल पड़ते हैं। एक महीने में ये लोग कोंकण प्रदेश में पहुँचे हैं। यहाँ कोंकण के किसान उनका स्वागत करते हैं।
(च) खरीफ की फसल कटने के बाद खेत दूसरी फसल के लिए तैयार किए जाते हैं।
(छ) धंगर भेड़ों और बकरियों के झुंड खेतों को खाद उपलब्ध कराते हैं तथा फसल के डंठलों को खाते हैं कोंकण के किसान धंगरों को चावल की आपूर्ति करते हैं, जो मध्य पठार में कम पैदा होता है, जहाँ धंगर रहते हैं।
(ज) मानसून के आरंभ होने पर ये लोग अपने शुष्क पठार की ओर चलते हैं। क्योंकि भेड़ें मानसून दशाएँ सहन नहीं कर सकतीं।
प्रश्न 7. राइका कहाँ रहते हैं ? उनकी आर्थिक स्थिति और विशेषताएँ लिखें।
उत्तर- राइका राजस्थान के मरुस्थल में रहते हैं।
राइका की आर्थिक स्थिति और विशेषताएँ-
(क) राजस्थान में वर्षा कम होती है इसलिए राइका कृषि करना कठिन समझते हैं। कोई फसल पैदा नहीं हो पाती। इसलिए ये लोग मिश्रित कार्य करते हैं।
(ख) मानसून के समय बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर और बीकानेर राइका अपने घरों में ही रहते हैं जहाँ चरागाह उपलब्ध होते हैं।
(ग) अक्टूबर में जब चारागाह भूमि शुष्क हो जाती है, राइका चारागाह की खोज में बाहर निकलते हैं।
(घ) राइका का एक समूह मारू कहलाता है जो ऊँट पालता है तथा दूसरा समूह भेड़ और बकरी चराता है।
(ङ) इस प्रकार राइका का जीवन चरवाहे का जीवन है।
(च) राइकों को अपने आने-जाने के समय की गणना करनी पड़ती है कि किस समय कहाँ के लिए निकलना है तथा कब कहाँ से वापसी करना है। वे रास्तों में किसानों से मैत्री करते चलते हैं जिससे उन्हें चराई के लिए खेत मिल पाते हैं तथा इसके एवज में खेतों को खाद उपलब्ध हो जाती हैं।
(छ) राइकों का मिश्रित समूह भिन्न कार्य करता है जैसे व्यापार, कृषि आदि।
प्रश्न 8. कनार्टक तथा आंध्र प्रदेश के चलवासी चरवाहों की प्रमुख विशेषताओं की व्याख्या करें।
उत्तर- (क) कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में मध्य पठार घास और पत्थरों से ढका रहता है, जहाँ मवेशी बकरियों तथा भेड़ों का आवास है।
(ख) गोल्ला जानवर चराते हैं और कुरुमा व कुरुबा भेड़-बकरियाँ चराते हैं व कंबल बुनते हैं।
(ग) इन दोनों प्रदेशों की चलवासी जातियाँ वनों में रहती हैं व छोटी कृषि पट्टियों को जोतती है तथा छोटे-छोटे व्यापार में संलग्न रहती है।
(घ) जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तरांचल के पहाड़ी क्षेत्रों की तरह यहाँ ठंड और वर्षा नहीं होती। यह एक शुष्क क्षेत्र है। शुष्क ऋतु में यहाँ के चलवासी तटीय क्षेत्रों को पलायन कर पाते हैं।
(ड) तटीय प्रदेश में भी केवल भैंसें मानसून में अच्छी रहती हैं। दूसरे जानवर शुष्क क्षेत्रों को स्थानान्तर कर दिए जाते हैं।
प्रश्न 9. हिमाचल प्रदेश के गद्दी गड़रियों के जीवन का वर्णन करें
उत्तर- जम्मू-कश्मीर के गुज्जर बकरवाल की भाँति हिमाचल प्रदेश के गद्दी गड़रियों का भी जीवन ऋतु-प्रवास के चक्कर से बंधा हुआ है, अर्थात् गर्मियों में वे ऊँचे पहाड़ों की ओर प्रस्थान करते हैं और सर्दियों में नीचे की ओर, (अर्थात् हिमालय की निचली पहाड़ियों या शिवालिक की पहाड़ियों की ओर) प्रस्थान करते हैं।
अप्रैल के महीने में वे उत्तर की ओर अपनी यात्रा शुरू कर देते हैं और कुछ समय वे लाहौल और स्पीति में ठहरते हैं और जब ऊँचे पहाड़ों की बर्फ पिघलने लगती है और पर्वतीय मार्ग खुल जाते हैं तो वे ऊँचे पर्वतों की ओर चल देते हैं।
सितम्बर के महीने में जब ऊँचे पहाड़ों पर फिर बर्फ गिरने लग जाती है तो ये गद्दी गडरिये नीचे की ओर लौटना शुरू कर देते हैं। कुछ समय वे लाहौल और स्पीति के गाँवों में व्यतीत करते हैं। यहाँ वे ग्रीष्म ऋतु की फसलें (जैसे- चावल आदि) काटते है और शरद ऋतु की फसलें (जैसे- गेहूँ, जौ, चना आदि) बोते हैं। तत्पश्चात् वे अपनी भेड़-बकरियों के साथ आगे नीचे शिवालिक की पहाड़ियों की ओर चले जाते हैं और अप्रैल के शुरू तक वहीं अपने पशुओं को चराते फिरते हैं।
इस प्रकार हिमाचल प्रदेश के इन गद्दी लोगों का जीवन ऋतु-प्रवास से प्रेरित रहता है। अप्रैल में ऊँचे और सितम्बर में नीचे आने का उनका दौरा चलता रहता है और यही इनके जीवन-चक्र की मुख्य विशेषता है।
प्रश्न 10. पहाड़ों पर विचरने वाले चरवाहें और दक्षिण के चरवाहों में क्या अंतर होता है ?
उत्तर- दोनों को ऋतु परिवर्तन के चक्र के अनुसार अपनी चरवाहा कार्यवाइयों को बदलना पड़ता है, परन्तु उनकी इन कार्यवाइयों में काफी अंतर होता है। वनों में घूमने वाले चरवाहों को, जैसे जम्मू-कश्मीर के गुज्जर बकरवाल और हिमाचल प्रदेश के गद्दी चरवाहें को सर्दी-गर्मी से अपनी गतिविधियों में परिवर्तन लाना पड़ता है वहीं दक्षिण के चरवाहों को बरसात और सूखे मौसम से प्रभावित होकर
अपनी गतिविधियों को निश्चित करना होता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. घुमंतू समुदायों को बार-बार एक जगह से दूसरी जगह क्यों जाना पड़ता है ? इस निरंतर आवगमन से पर्यावरण को क्या लाभ हैं ?
उत्तर- घुमंतू समुदायों को अपने पशुओं को कठोर जलवायु से बचाने के लिए तथा चरागाह की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना पड़ता है।
कुछ चलवासी चरवाहे मिलकर भिन्न कार्य करते हैं। जैसे- कृषि, व्यापार और चराई।
आवागमन से पर्यावरण को लाभ-
(क) जानवरों को नई घास चरने के लिए मिलती है।
(ख) बंजारे लोग व्यापार का काम करते हैं। वे हल खींचने वाले जानवर जैसे बैल को बेचते हैं।
(ग) ये जातियाँ किसानों से संपर्क स्थापित करती हैं जिससे खेतों में चराई हो सके तथा पशुओं के मल-मूत्र से मिट्टी को खाद भी मिल जाये।
(घ) पर्यावरण विद्वान तथा अर्थशास्त्री भी यह मानने लगे हैं कि चलवासी जीवन भी जीवन का एक रूप है जो कुद पर्वतीय और शुष्क क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है।
(ङ) उपनिवेशीकरण तथा अन्य कई कारण चरागाहों की कमी को बताते हैं। उदाहरण के लिए चरागाह भूमि पर कृषि की जाने लगी है। चरागाह क्षेत्र कम हो गया है।
(च) चलवासी जीवन से प्राकृतिक वनस्पति को उगने का समय मिलता है। प्रतिबंध से एक ही चरागाह लगातार प्रयोग में आता है इसलिए उसके गुणों में गिरावट आ जाती है। इससे चारे की उपलब्धता में भी गिरावट आ जाती है.
प्रश्न 2. मासाई समुदाय के चरागाह उससे क्यों छिन गए ? कारण बताएँ ?
उत्तर- अकेले अफ्रीका में संसार के चरवाहों की अधिक से अधिक संख्या रहती है। इन चरवाहा समूहों में वहाँ के मासाई कबीले का नाम भी आता है जो मोटे तौर पर पूर्वी अफ्रीका के निवासी हैं। वे दक्षिण कीनिया से लेकर उत्तरी तंजानिया तक के एक लम्बे-चौड़े भाग में रहते है। धीरे-धीरे इन लोगों से पशु चराने के अधिकार निरन्तर छिनते चले गए। ऐसा होने के मुख्य कारण इस प्रकार है-
(क) यूरोपीय साम्राज्यवादी शक्तियाँ, विशेषकर अंग्रेजों और जर्मन निवासियों, की बंदर बाट के कारण मासाई दो शक्तियों में बट कर रह गये। कीनिया पर अंग्रेजों ने अधिकार कर लिया जबकि तंजानिया जर्मनी का उपनिवेश बनकर रह गया। इस बांट से लोगों को अपने बहुत से भागों से हाथ धोना पड़ा।
(ख) श्वेत जातियों के कीनिया और तंजानिया में आते ही अच्छे स्थानों को पाने की उनमें होड-सी लग गई। अच्छी भूमियाँ सब साम्राज्यवादी लोगों ने छीन लीं, बाकी बंजर और बेकार भूमियाँ मासाई लोगों के लिये छोड़ दी गई। इस प्रकार मासाई लोगों के अच्छे चरागाह उनके हाथ से निकल गए।
(ग) कीनिया में अंग्रेजों ने मासाई लोगों को दक्षिणी भागों की ओर धकेल दिया जबकि तंजानिया में जर्मन लोगों ने उन्हें उत्तरी तंजानिया की ओर धकेल दिया। अब वे अपने घर में ही बेगाने बनकर रह गए, अपनी चरागाहों से वंचित और अपनी जन्म भूमि से दूर।
(घ) हर साम्राज्यवादी देश की भाँति अंग्रेजी और जर्मन लोग हर ऐसी भूमि को बेकार मानते थे जहाँ से उन्हें कोई आय न होती हो और कोई भूमिकर प्राप्त न होता हो। इसलिए 19वीं शताब्दी के अंत में उन्होंने बहुत सी ऐसी बेकार भूमि स्थानीय किसानों में बांट दी ताकि वे वहाँ पर खेती करें। फिर क्या था मासाई लोगों की चरागाहों पर भी इन स्थानीय किसानों ने कब्जा कर लिया और वे हाथ मलते ही रह गए।
(ङ) कुछ चरागाहों को आरक्षित वनों में बदल लिया गया और कितने आश्चर्य की बात है कि मासाई लोगों को ही इन आरक्षित स्थानों में घुसने की मनाही कर दी गई। अब ऐसे आरक्षित स्थानों से वे न लकड़ी काट सकते थे और न ही अपने पशुओं को उनमें चरा सकते थे। जो कल चरागाहों के मालिक थे वे अब परदेशी बनकर रह गए।
प्रश्न 3. आधुनिक विश्व ने भारत और पूर्वी अफ्रीकी चरवाहा समुदायों के जीवन में जिन परिवर्तनों को जन्म दिया उनमें कई समानताएँ थीं। ऐसे दो परिवर्तनों के बारे में लिखें जो भारतीय चरवाहों और मासाई गड़रियों, दोनों के बीच समान रूप से मौजूद थे।
उत्तर- दोनों भारत और पूर्वी अफ्रीका के प्रदेश काफी समय तक (18वीं शताब्दी के मध्य से 20वीं शताब्दी के मध्य तक) यूरोपीय उपनिवेशवादियों के अधिकार में रहे। इनमें से तो बहुत भारतीय चरवाहों और अफ्रीकी पशुपालकों पर एक जैसे कानून लादने से जो परिवर्तन देखने को मिले उनमें समानता होना तो स्वाभाविक ही थी।
ऐसे दो परिवर्तनों का ब्योरा नीचे दिया जाता है जिनमें काफी समानताएँ पाई जाती है-
(क) चराने वाली भूमि का नुकसान- भारत में चरागाह भूमियाँ कुछ विशेष लोगों को सौंप दी गई ताकि वे उन्हें कृषि भूमि में बदल लें। अधिकतर ये ऐसी भूमियाँ थीं जिनपर चरवाहे लोग अपने पशुओं को चराते थे। इस परिवर्तन का अर्थ था चरागाहों का हास जो अपने साथ चरवाहों के लिये अनेक समस्याएँ ले आया।
इसी प्रकार मासाई लोगों की चरागाह भूमियाँ न केवल श्वेत यूरोपियों द्वारा हड़प ली गई बल्कि उनमें से बहुत सी स्थानीय किसानों के हवाले कर दी गई ताकि उन्हें वे कृषि-भूमि में बदलने के कारण चरागाहों की संख्या में कमी आई।
(ख) वनों का आरक्षण- दोनों भारत और अफ्रीका में वन क्षेत्रों को आरक्षित में बदल दिया गया और वहाँ के निवासियों को वहाँ से बाहर निकाल दिया गया। अब ये चरवाहे न इन वनों में घुस सकते थे न वहाँ अपने पशु चरा सकते थे और न ही वें वहाँ से लकड़ी काट सकते थे। अधिकतर ये आरक्षित वन वही स्थान थे जो चारवाह जातियों के लिये चरागाहों का काम देते थे। इस प्रकार वनों के आरक्षण से चरागाहों के क्षेत्र में निरन्तर कमी आती गई।
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