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 अकबर की प्रशासनिक, धार्मिक, सैन्य और न्यायिक व्यवस्था


अकबर की प्रशासनिक, धार्मिक, सैन्य और न्यायिक व्यवस्था


आज मैं आपको अकबर से related क्या-क्या questions UPSC Prelims या किसी भी General Studies पर based exams में आ सकते हैं, उसकी जिक्र करने वाला हूँ और वह भी point-wise. आशा है आपने Akbar से related मेरा एक पोस्ट पहले भी पढ़ा होगा, नहीं पढ़ा तो इस आर्टिकल को पढ़ने के बाद  आज के पोस्ट में हम आपके साथ Akbar से related important topic share करने जा रहे हैं जैसे अकबर के अधीन सांस्कृतिक और कलात्मक विकास, उसकी राजस्व-व्यवस्था (revenue system), धार्मिक नीति (religious policy), विजय-गाथा (expansion of the empire), केन्द्रीय संगठन (Central Organisation), प्रशासनिक इकाइयाँ (names of Administrative units), सैन्य और न्यायिक व्यवस्था (Military and judicial system), मंत्रिमंडल (his cabinet) और उनमें कार्यरत लोगों के पद/posts के नाम आदि आपसे साझा करेंगे जिसके विषय में परीक्षाओं में अक्सर पूछे जाते हैं.

IMPORTANT INFORMATION ABOUT AKBAR

  1. हुमायूँ के मरने के बाद राजपाठ की जिम्मेदारी बैरम खां ने संभाली क्योंकि अकबर उस समय उम्र में छोटा था. हाँ भले ही बाद में अकबर ने उसे मरवा दिया. इसलिए परीक्षा में आपसे पूछा जा सकता है कि अकबर ने किसे अपने रास्ते से हटा कर सारी शक्ति अपने हाथों में केन्द्रित कर ली?
  2. बैरम को रास्ते से हटाने में अतका खैल ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी जिससे वह अकबर को अपने प्रभाव में ले ले और वही हुआ भी.
  3. यदि हत्या की बात की तो जाए, तो अकबर के हाथ भी खून से रंगे थे, चलिए जानते हैं कि उसने किसको किसको खुद टपकाया या कहिये टपकवाया — पहला तो हुआ बैरम खां, फिर अधम खां, अपने मामा ख्वाजा मुअज्जम और कई अन्य कई सगे-सम्बन्धी. (ऐसे में अकबर को आज के जमाने में बाल सुधार गृह में डाल दिया जाता)
  4. इतिहासकार ऐसा मानते हैं कि जिन परिस्थितियों में अकबर का राज्यारोहण हुआ था, उस समय मुगलों के भारत में अनेक दुश्मन थे, अकबर अगर सभी प्रभावशाली राज्यों पर अपना अंकुश नहीं रखता तो उसके खुद की सत्ता खतरे में पड़ जाती. इसलिए अकबर ने शुरूआती दौर में साम्राज्यवादी नीति को अपनाया.
  5. उसने मालवा, जौनपुर, चुनार, जयपुर, मेड़ता, गोंडवाना, मेवाड़, रणथम्भौर, कालिंजर, मारवाड़ (जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर), गुजरात (अहमदाबाद, खम्बात)आदि कई जगहों पर अपने जीत का परचम लहराया.
  6. मालवा में बाजबहादुर को, जौनपुर में अफगानी शेर खां, चुनार में अफगानी शासक आसफ खां, जयपुर में कछवाहा राजपूत, मेड़ता में जयमल, गोंडवाना (मध्य प्रदेश) में रानी दुर्गावती का अल्पव्यस्क पुत्र वीर नारायण को, मेवाड़ में सिसोदिया राजपूत राणा उदय सिंह, रणथम्भौर में हाड़ा राजपूत राजा राय सुरजन, कालिंजर में राजा रामचंद्र, गुजरात में अहमदाबाद में मुजफ्फर खां और अन्य अनेक सरदारों को और खम्बात में मिर्जाओं (मिर्जा के नेता इब्राहीम हुसैन मिर्जा) और पुर्तगालियों को, बंगाल में दाउद को हराया.
  7. लगातार मिल रही जीतों के बीच अकबर को एक बार हार का भी सामना पड़ा. बंगाल, बिहार और उड़ीसा के शासक सुलेमानी कारारानी ने अकबर को हराया था. अकबर इसलिए हारा क्योंकि वह उस समय गुजरात में अपनी जड़ें जमा रहा था.
  8. अकबर का अंतिम युद्ध खानदेश के साथ हुआ. अली खां जो खुद अकबर का वफादार था, उसका बेटा अकबर की अधीनता स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं था. इसलिए अकबर ने खानदेश पर आक्रमण करने का निर्णय लिया.
  9. 1572-82 का समय अकबर की धार्मिक नीति को समर्पित है. इसी समय इबादतखाना (प्रार्थना भवन) की स्थापना हुई, मजहर की घोषणा हुई और दीन-ए-इलाही अथवा तौहीद-ए-इलाही की स्थापना हुई.
  10. जून, 1579 में अकबर ने फैजी के सुझाव पर इमाम का पद ग्रहण किया जिससे प्रधान सदर और उलेमा के अधिकार अब अकबर के हाथों में आ गए.
  11. अकबर ने खलीफा के सामान स्वयं ही खुतबा पढ़ा और जमींबोस (राजगद्दी के सामने जमीन चूमने की प्रथा) और सिजदा (सम्राट के सामने झुककर अभिवादन करने की प्रथा) की प्रथा आरम्भ की.
  12. अकबर के दरबार में आने-जाने की घोषणा नगाड़ा बजाकर की जाती थी. यह प्रथा चौकी अथवा तस्लीम-ए-चौकी कहलाती थी.
  13. धार्मिक क्षेत्र में अकबर का सबसे महत्त्वपूर्ण और विवादास्पद कार्य था तौहीद-ए-ईलाही अथवा दीन-ए-ईलाही की स्थापना की. 
  14. अकबर के अधीन पाँच प्रमुख मंत्रियों अथवा अधिकारियों का उल्लेख मिलता है – वकील, वजीर अथवा दीवान, सद्र-उस-सद्र, मीर बख्शी और खानसामा (मीर सामाँ).
  15. वजीर प्रशासनिक मामलों के अतिरिक्त वित्त विभाग भी देखता था. वजीर की स्थिति प्रधानमंत्री जैसी थी.
  16. वजीर अथवा दीवानए-आला की सहायता के लिए अनेक पदाधिकारी नियुक्त किये गए थे, जैसे – दीवान-ए-खालसा (राज्य की भूमि की देखभाल करने वाला), दीवान-ए-तन (सरकारी कर्चारियों के वेतन और जागीर की देखभाल करनेवाला), मुस्तौफी (आय-व्यय का निरीक्षक), वाकया-ए-नवीस (राजकीय फरमानों और दस्तावेजों को सुरक्षित रखनेवाला पदाधिकारी) और मुशरिफ (दफ्तर की देखभाल करने वाला).
  17. काजी-उल-कजात प्रधान न्यायाधीश था जो पधान मुफ़्ती की सहयोग से न्याय का कार्य देखता था.
  18. मुहतसिब का मुख्य कार्य यह देखना था कि राज्य की जनता नैतिक नियमों का पालन ठीक ढंग से करे.
  19. मीर-ए-आतिश अथवा दारोगा-ए-तोपखाना शाही तोपखाना का प्रधान होता था.
  20. दारोगा-ए-डाकचौकी सूचना और गुप्तचर विभाग का प्रधान था.
  21. मीर मुंशी का काम बादशाह की आज्ञा और फरमानों को लिखना और उसका उचित प्रसारण करना था.
  22. अकबर ने सेना का संगठन मनसबदारी व्यवस्था के आधार पर किया था. इस व्यवस्था के अनुसार प्रत्येक सरदार और सैनिक पदाधिकारी का मनसब (पद) निश्चित किया गया.
  23. उसने मनसबदारों की दो श्रेणियाँ बनाई थी – जात और सवार.
  24. अकबर की सेना में मनसबदारों की सेना के अतिरिक्त अहदी और दाखिली सैनिकों की टुकड़ियाँ भी थीं.
  25. अकबर ने भूमि और राजस्व-व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण सुधार किए थे. अकबर के समय में राज्य की समस्त भूमि खालसा, जागीर, जमींदारी और सुयूरघल अथवा इनाम में विभाजित थीं.
  26. राज्य की ओर से धार्मिक व्यक्तियों, विद्वानों इत्यादि को वजीफा, इनाम, सुयूरघल अथवा मदादीमशाह के रूप में जमीन दान दी जाती थी.
  27. अकबर के समय जमीन की चार श्रेणियाँ बनायीं गईं – पोलज, परती, छच्छर और बंजर.
  28. लगान वसूली का काम करोड़ी को सौंपा गया. यह व्यवस्था संतोषप्रद नहीं थी इसलिए 1580 ई. में दहशाळा प्रबंध अथवा जाब्ती-व्यवस्था लागू की गई जिसके अनुसार राज्य किसानों से उपज का 1/3 नकद लगान के रूप में लेता था. 
  29. कई क्षेत्रों में कंकूत व्यवस्था (किसानों द्वारा पिछले वर्षों में दी गई लगान के आधार पर अनुमानित लगानप्रचलित थी.
  30. किसानों के लिए तकावी ऋण की व्यवस्था की गई.
  31. सूबे का प्रशासन केंद्र से मिलता-जुलता था. सूबे का प्रधान सूबेदार अथवा सिपहसालार होता था. सूबे के अन्य अधिकारी थे बख्शी, सद्र, काजी, मीरअदल और मुफ़्ती.
  32. कोतवाल, मीरबहार (चुंगी वसूल करने वालातथा वाकिया नवीस भी प्रशासन में सहायता पहुँचाते थे.
  33. सूबा क्रमशः सरकार और परगना में विभाजित था.
  34. सरकार का सर्वोच्च पदाधिकारी फौजदार कहलाता था.
  35. आमिल भूमि-व्यवस्था और लगान-सम्बन्धी कार्य देखता था.
  36. परगना के शासन की जिम्मेवारी शिकदार, आमिल (मुंसिफ), और क़ानूनगो की थी. इनकी सहायता के लिए फोतेदार (कोषाध्यक्षऔर लेखक भी रहते थे.
  37. 1563 ई. में अकबर ने तीर्थयात्रा कर और 1564 ई. में जजिया कर हटा दिया.
  38. अकबर ने एक ऐसा सामजिक वातावरण तैयार करने का प्रयास किया जिसमें राज्य की समस्त जनता मिल-जुलकर सुख-शांति से रह सके. ऐसा मुग़ल साम्राज्य की सुरक्षा और स्थायित्व के लिए आवश्यक था. अकबर की यह नीति सुलहकुल के नाम से विख्यात है.
  39. अकबर के दरबार में 9 प्रमुख व्यक्ति (नवरत्न) स्थाई रूप से रहते थे जिनमें बीरबल अकबर से अत्यधिक निकट था.
  40. अबुलफजल अकबर के दरबार के एक प्रसिद्ध विद्वान् थे जिन्होंने अकबरनामा और आइने-अकबरी की रचना की.
  41. गीता, महाभारत, रामायण, पंचतंत्र, सिहासन बत्तीसी, बाइबल, कुरान इत्यादि का अनुवाद फारसी में हुआ.
  42. अकबर के कार्यों को ध्यान में रहते हुए इतिहासकारों ने उसे एक “राष्ट्रीय सम्राट” (National Monarch) का दर्जा दिया.

मैंने तो अकबर पर यह informative article/essay/लेख लिख दी है. अब आपका काम है कि आप bold-bold fonts में लिखे important topics को याद कर लें. मेरा काम बस यहीं तक था कि आपको बता दूँ कि अकबर से related important टॉपिक exams में क्या-क्या आ सकते हैं!!! अब आप इन्हें याद करें न करें, आपकी इच्छा!

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