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 bihar board 12 class economics | बाजार संतुलन

bihar board 12 class economics | बाजार संतुलन

बाजार संतुलन
                                 [Market Equilibrium]
                      स्मरणीय बिन्दु (Point of Remember)
1. संतुलन (Equilibrium)-संतुलन उस स्थिति को कहते हैं जहाँ पर परिवर्तन की प्रवृत्ति
नहीं पाई जाती।
2. पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में संतुलन (Equilibrium in Perfectly Competitive
Market)-जब बाजार माँग बाजार पूर्ति के बराबर होती है तब पूर्ण प्रतियोगिता बाजार
में संतुलन की स्थिति उत्पन्न होती है।
3. निश्चित संख्या में संतुलन कीमत तथा मात्रा का निर्धारण (Determination of
equilibrium price and quantity when there fixed are number of
firms)-निश्चित फर्मों की संख्या की स्थिति में बाजार मांग वक्र तथा बाजार पूर्ति वक्र
जहाँ पर आपस में काटते हैं, वहाँ पर संतुलन कीमत तथा संतुलन मात्रा निर्धारित होती है।
4. माँग वक्र के खिसकाव का संतुलन कीमत तथा मात्रा पर प्रभाव (Impact of
Shift of Demand Curve on Equilibrium Price Quantity)-जब माँग वक्र
दाई (बाई) ओर खिसकता है, तब संतुलन मात्रा बढ़ती (घटती) है तथा संतुलन कीमत
बढ़ती (घटती) है, जब फर्मों की संख्या निश्चित है।
5. पूर्ति वक्र खिसकाव का संतुलन कीमत तथा मात्रा पर प्रभाव (Impact of Shift
of Supply Curve on Equilibrium Price and Quantity)-जब पूर्ति वक्र दाई
(बाईं) ओर खिसकता है, तब संतुलन मात्रा बढ़ती (घटती) है और संतुलन कीमत घटती
(बढ़ती) है।
6 माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र में एक साथ खिसकाव का संतुलन कीमत तथा मात्रा पर
प्रभाव (Impact of simultaneous shifts in demand and supply curve on
equilibrium price and quantity)-माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र पर संतुलन कीमत
तथा मात्रा पर पड़ने वाला प्रभाव वक्रों के ढलान तथा खिसकाव की मात्रा पर निर्भर करता
7. फर्मों के स्वतंत्र प्रवेश तथा बर्हिगमन की स्थिति में संतुलन कीमत (Equilibrium
price when there is free entry and exit of firms)-इस स्थिति में संतुलन
कीमत हमेशा फर्मों की निम्नतम औसत लागत के बराबर होती है।
8. फर्मों के स्वतंत्र प्रवेश तथा बर्हिगमन की स्थिति में बाजार माँग वक्र तथा बाजार
पूर्ति वक्र का संतुलन कीमत तथा मात्रा पर प्रभाव (Impact of shifts of market
demand curve and market supply curve on equilibrium price and
quantity)-इस स्थिति में संतुलन कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, संतुलन मात्रा तथा
फर्मों की संख्या में परिवर्तन होता है
9. अधिकतम कीमत के निर्धारण का प्रभाव (Impact of fixing maximun
price)-इससे अतिरिक्त माँग की स्थिति उत्पन्न होती है। इस अतिरिक्त माँग के
समस्या को हल करने में कई दुष्परिणाम सामने आते हैं।
10. न्यूनतम कीमत के निर्धारण का प्रभाव (Impact of fixing minimum
price)-न्यूनतम कीमत के निर्धारण से अतिरिक्त पूर्ति की स्थिति उत्पन्न होती है। इसमें
संसाधन व्यर्थ जाते हैं।
11. बाजार (Market)-बाजार वह प्रणाली है जिसके अंतर्गत विक्रेता एक दूसरे के संपर्क
में आते हैं। इसके लिए निश्चित स्थान होना अनिवार्य नहीं है।
12. बाजार के प्रमुख रूप (Main Forms of Market)-(i) पूर्ण प्रतियोगिता, (ii)
एकाधिकार तथा (iii) एकाधिकारी प्रतियोगिता ।
13. पूर्ण प्रतियोगिता (Perfect Competition)-पूर्ण प्रतियोगिता बाजार की वह स्थिति
है जिसके अंतर्गत किसी वस्तु के क्रेता व विक्रेता अधिक संख्या में होते हैं, विक्रेता
समरूप वस्तुओं का उत्पादन व विक्रय करते हैं । समूचे बाजार में वस्तु एक समान कीमत
पर बेची जाती है।
14. पूर्ण प्रतियोगिता की विशेषताएँ (Features of Perfect Competition)-(i)
विक्रेताओं की अधिक संख्या, (ii) क्रेताओं की अधिक संख्या, (iii) समरूप वस्तुएँ, (iv)
फर्मों का स्वतंत्र प्रयोग एवं बर्हिगमन, (v) पूर्ण ज्ञान, (vi) परिवहन साधनों का अभाव,
(vii) पूर्ण गतिशीलता, (viii) परिवहन लागतों का अभाव, (ix) पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म
का आगम वक्र (मांँग वक्र) Ox-अक्ष के समान्तर होता है।
15. एकाधिकार की विशेषताएँ (Monopoly)-एकाधिकार बाजार की उस स्थिति को
प्रकट करता है जिसमें किसी वस्तु का केवल एक विक्रता होता है। संक्षेप में एकाधिकार
का अर्थ है सभी प्रकार की प्रतियोगिता का अभाव । इस बाजार में फर्म ही उद्योग है और
उद्योग ही फर्म है।
16. एकाधिकार की विशेषताएँ (Characteristics of Monopoly)-(i) एक विक्रेता
तथा अनंक क्रेता, (ii) नई फर्मों के प्रवेश पर प्रतिबन्ध, (iii) बाजार में वस्तु का निकट
स्थानापन्न न होना, (iv) फर्म ही कीमत का निर्धारण करती है, (v) कीमत विभेद संभव,
(vi) ऋणात्मक ढाल वाला किन्तु कम लोचदार माँग वक्र ।
17. एकाधिकारी प्रतियोगिता (Monopolistic Competition)-एकाधिकारी प्रतियोगिता
वह स्थिति है जिसमें मिलती-जुलती वस्तुओं के बहुत से विक्रेता होते हैं। प्रत्येक विक्रेता
की वस्तु अन्य विक्रेताओं से किसी न किसी रूप से भिन्न-भिन्न होती है।
18. एकाधिकारी प्रतियोगिताएंँ की विशेषताएँ (Features of Monopolistic
Competition)-(i) विक्रेताओं की अधिक संख्या, (ii) वस्तु-विभेद (iii) उद्योग में
फर्मों के प्रवेश करने की स्वतंत्रता (iv) विक्रय लागतों का महत्व (v) फर्म की अपनी
कीमत नीति, (vi) गैर-कीमत प्रतियोगिता, (vii) अपूर्ण ज्ञान ।
19. पूर्ण प्रतियोगिता में औसत आगम तथा सीमान्त आगम में संबंध (Relationship
between AR and MR in Perfect Competition)-पूर्ण प्रतियोगिता में AR =
MR. AR तथा MR वक्र दोनों Ox अक्ष के समानान्तर होते हैं।
20. एकाधिकार तथा एकाधिकारी प्रतियोगिता में माँग वक्रों में अंतर (Difference
between demand curves facing monopoly and monopolistic
competition)-एकाधिकारी तथा एकाधिकारी प्रतियोगिता में AR> MR |
एन०सी०आर०टी० पाठ्यपुस्तक एवं परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
(NCERT Textbook and Other Important Questions & Answer for Examination)
                       रिक्त स्थानों का पूर्ति (Fill up the Blanks)
(i) साम्य वह स्थिति होती है जब किसी प्रकार के……….की कोई प्रवृत्ति नहीं होती।
(ii) साम्य के अंतर्गत पूर्ति तथा माँग के संदर्भ में कीमत में……..की कोई प्रवृत्ति
नहीं होती।
(iii) जिस कीमत पर माँग तथा पूर्ति बराबर होते हैं उसे……..कीमत कहते हैं।
(iv) साम्य कीमत पर बाजार में बेची तथा खरीदी जाने वाली मात्रा को……….
कीमत कहते हैं।
(v) एक पूर्ण प्रतियोगी बाजार में साम्य को………अधिक्य मांँग तथा………..
आधिक्य पूर्ति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
(vi) जब कभी बाजार पूर्ति बाजार……….. के बराबर नहीं होगी तब कीमत में परिवर्तन होने
की प्रवृत्ति पाई जाती है।
(vii) माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र के आपसी……….. पर संतुलन की स्थिति उत्पन्न होती है।
(viii) फर्म तभी उत्पादन की धनात्मक मात्रा उत्पन्न करती है जब वस्तु का मूल्य कम से कम
……………के बराबर हो।
(ix) माँग वक्र के दाईं ओर खिसकने से साम्य कीमत और मात्रा में…………..होगी।
(x) माँग वक्र के बाईं ओर खिसकने से साम्य कीमत और मात्रा में……………होगी।
(xi) उपभोक्ताओं की आय में वृद्धि होने पर सामान्य वस्तु का माँग वक्र………….ओर
खिसकेगा।
(xii) उपभोक्ताओं की आय में कमी वृद्धि होने पर सामान्य वस्तु का माँग वक्र…………
ओर खिसकेगा।
(xiii) उपभोक्ताओं की संख्या में वृद्धि होने पर मांग वक्र…………ओर खिसकेगा।
(xiv) आगत वस्तुओं की कीमतों में कमी आने पर पूर्ति वक्र………..ओर खिसकेगा।
(xv) एक उद्योग के फर्मों की संख्या में वृद्धि होने से पूर्ति वक्र……….ओर खिसकेगा।
उत्तर-(i) परिवर्तन (ii) परिवर्तन, (iii) साम्य, (iv) साम्य, (v) शून्य, शून्य, (vi) माँग,
(vii) कटाव, (viii) निम्न औसत परिवर्तनशील लागत, (ix) वृद्धि, (x) कमी, (xi) दाई,
(xii) बाईं, (xiii) दाईं, (xiv) दाई, (xv) दाईं।
                              अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
              (Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1. संतुलन को परिभाषित करें। बाजार को कब संतुलन में माना जाता है ?
अथवा, बाजार संतुलन को परिभाषित करें।
उत्तर-संतुलन वह स्थिति है जिसमें परिवर्तन की कोई प्रवृत्ति नहीं पाई जाती है। बाजार
उस स्थिति में संतुलन में माना जाता है जब बाजार माँग बाजार पूर्ति के बराबर होती है।
प्रश्न 2. हम सब कहते हैं कि बाजार में एक वस्तु की अतिरिक्त माँग है ? [NCERT T.B.Q. 2]
उत्तर-जब बाजार कीमत संतुलन
कीमत से कम होती है तब उस स्थिति
में बाजार में एक वस्तु की अतिरिक्त          
माँग होती है जैसा कि नीचे चित्र में
दर्शाया गया है। चित्र में AB अतिरिक्त
मांँग है।
प्रश्न 3. हम कब कहते हैं कि बाजार में एक वस्तु की अतिरिक्त पूर्ति है ? [NCERT T.B.Q.2]
उत्तर-जब बाजार कीमत संतुलन कीमत से
अधिक होती है तो उस समय बाजार में एक वस्तु
की अतिरिक्त पूर्ति होती है। नीचे चित्र में AB              
अतिरिक्त पूर्ति है।
प्रश्न 4. क्या होगा यदि बाजार में प्रचलित कीमत-
(i) संतुलन कीमत से अधिक है ?
(ii) संतुलन कीमत से कम है ?                         [NCERT T.B.Q.4]
उत्तर-(i) बाजार में अतिरिक्त पूर्ति होगी।
(ii) बाजार में अतिरिक्त पूर्ति होगी।
प्रश्न 5. उस बाजार में जहाँ फर्मों का स्वतंत्र प्रवेश तथा बर्हिगमन होता है वहाँ पर
फर्मों की संतुलन संख्या कैसे निर्धारित होती है ?          [NCERT T.B.Q. 8]
उत्तर-प्रश्न में दी हुई स्थिति में फर्मों की संतुलन संख्या का निर्धारण करने के लिए निम्न
सूत्र का प्रयोग किया जाता है-
         yo
no =——-
         yof
यहाँ, y० = संतुलन कीमत पर कुल पूर्ति
yof = संतुलन कीमत पर एक फर्म की पूर्ति
  no =फर्मों की संख्या
प्रश्न 6. क्या आप किसी एक वस्तु के बारे में सोच सकते हैं जिस पर भारत में
उच्चतम कीमत निर्धारित की गई है ? उच्चतम कीमत निर्धारण के क्या परिणाम हो
सकते हैं?                               [NCERT T.B.Q. 20)
उत्तर-भारत में कुकिंग गैस पर उच्चतम कीमत निर्धारित की गई है। ऐसी स्थिति में
बाजार में वस्तु का अभाव हो जाता है। राशनिंग व्यवस्था लागू की जाती है। लोगों को घटिया
वस्तुएँ मिलती हैं। लोगों को वस्तु प्राप्त करने के लिए लंबी लाइनों में खड़ा होना पड़ता है।
कालाबाजारी की स्थिति उत्पन्न होती है।
प्रश्न 7. राशनिंग से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-राशनिंग से अभिप्राय है एक व्यक्ति के लिए वस्तु के उपयोग की उच्चतम मात्रा
का निर्धारण करना।
प्रश्न 8. कालाबाजारी का क्या अर्थ है ?
उत्तर-कालाबाजारी का अर्थ है कि सरकार द्वारा किसी वस्तु की निर्धारित कीमत से
अधिक कीमत पर गैर-कानूनी ढंग से बेचा जाना ।
प्रश्न 9. बाजार कीमत किसे कहते हैं ?
उत्तर-यह वह कीमत है जो बाजार में एक निश्चित समय पर पाई जाती है। बाजार
कीमत सामान्य कीमत के ऊपर-नीचे घूमती रहती है।
NP सामान्य कीमत है जबकि AB बाजार कीमत है।
प्रश्न 10. फर्मों के स्वतंत्र प्रवेश तथा बर्हिगमन की स्थिति में बाजार कीमत किसके
बराबर होती है?
उत्तर-फर्मों के स्वतंत्र प्रवेश तथा बर्हिगमन की स्थिति में बाजार कीमत न्यूनतम औसत
लागत के बराबर होती है। समीकरण में-P= min ACT
प्रश्न 11. पूर्ण प्रतियोगिता की कोई दो विशेषताएँ लिखें।
उत्तर-(1) एक उत्पाद के क्रेता तथा विक्रेता अधिक संख्या में होते हैं। (2) वस्तुएँ
सजातीय होती हैं।
प्रश्न 12. किस प्रकार के बाजार में परिवहन लागते शून्य मानी जाती हैं ?
उत्तर-पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में परिवहन लागते शून्य मानी जाती हैं।
प्रश्न 13. किस प्रकार के बाजार में फर्म की पूर्ति वक्र अनिश्चित प्रकार होता है ?
उत्तर-एकाधिकारी प्रतियोगिता बाजार में।
प्रश्न 14. एकाधिकार की दो विशेषताएँ लिखें।
उत्तर-(i) एक उत्पाद का उत्पादक/विक्रेता केवल एक ही होता है।
(ii) फर्म ही उद्योग होती है और वह ही वस्तु की कीमत का निर्धारण करती है।
प्रश्न 15. एकाधिकार में औसत आगम वक्र का आकार किस प्रकार का होता है ?
उत्तर-एकाधिकार में औसत आगम वक्र का आकार नीचे की ओर ढालू होता है।
प्रश्न 16. विक्रय लागतें क्या हैं ?
उत्तर-विक्रय लागते व व्यय हैं जो विक्रय के संवर्धन में किये जाते हैं। इसमें समाचार
पत्र, टेलीविजन, रेडियो आदि के माध्यम से विज्ञापन पर किए गये खर्चे शामिल होते हैं।
प्रश्न 17. कीमत विभेदन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-कीमत विभेदन से अभिप्राय है एक फर्म द्वारा अपने उत्पाद की बिक्री भिन्न
विक्रेताओं को विभिनन कीमतों पर करना ।
प्रश्न 18. पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में विक्रय लागते शून्य क्यों होती हैं ?
उत्तर-पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में विक्रय लागतें इसलिए शून्य होती हैं क्योंकि गुण, आकार
व रंग आदि की दृष्टि से प्रत्येक विक्रेता की वस्तु एक समान होती है।
प्रश्न 19. एकाधिकार में सीमान्त आगम वक्र का आकार किस प्रकार का होता है ?
उत्तर-एकाधिकार में सीमान्त आगम वक्र का आकार नीचे की ओर ढलान वाला होता
है।
प्रश्न 20. एकाधिकारी प्रतियोगिता की कोई दो विशेषताएँ लिखें।
उत्तर-(i) बाजार में क्रेताओं तथा विक्रेताओं को अधिक संख्या होना तथा (ii) विभेदीकृत
उत्पादों का होना।
प्रश्न 21. एकाधिकारी प्रतियोगिता फर्म का मांग वक्र अधिक लोचदार क्यों होता
है?
उत्तर-क्योंकि एकाधिकारी प्रतियोगिता में किसी वस्तु की निकट प्रतिस्थापन्न वस्तुएँ
उपलब्ध होती हैं।
प्रश्न 22. बाजार माँग क्या दर्शाती है?
उत्तर-बाजार माँग यह दर्शाती है कि दी हुई कीमतों पर उपभोक्ता कितनी मात्रा में वस्तु
खरीदने के लिए तैयार है।
प्रश्न 23. नीचे दिए चित्र में संतुलन कीमत, संतुलन मात्रा तथा संतुलन बिन्दु को
चिह्नित करें-
प्रश्न 24. अधिक्य पूर्ति कब होती है ?
उत्तर-आधिक्य पूर्ति उस कीमत पर होती है जब Ys >Yd.
प्रश्न 25. श्रम बाजार में श्रम की पूर्ति कौन करते हैं ?
उत्तर-श्रम बाजार में श्रम की पूर्ति परिवार करते हैं।
प्रश्न 26. श्रम बाजार में श्रम की माँग कौन करते हैं?
उत्तर-श्रम बाजार में श्रम की माँग फर्में करती हैं।
प्रश्न 27. श्रम बाजार में श्रम से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-श्रम बाजार में श्रम से अभिप्राय श्रमिकों की संख्या से नहीं है, अपितु श्रमिकों द्वारा
कार्य करने के घंटों से है।
प्रश्न 28. मजदूरी का निर्धारण किस प्रकार होता है?
उत्तर-मजदूरी का निर्धारण उस बिन्दु पर होता है जहाँ पर श्रम की माँग श्रम की पूर्ति
के बराबर होती है।
प्रश्न 29. श्रम की सीमान्त उत्पादकता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-एक अतिरिक्त श्रम की इकाई के लगाने से कुल उत्पाद में जो वृद्धि होती है, उसे
श्रम की सीमान्त उत्पादकता कहते हैं।
प्रश्न 30. सीमान्त आगम से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-उत्पाद की एक अतिरिक्त इकाई के बेचने से कुल आगम में जो वृद्धि होती है,
उसे सीमान्त आगम कहते हैं।
प्रश्न 31. श्रम का सीमान्त आगम उत्पाद किसके बराबर होता है ?
उत्तर-श्रम का सीमान्त आगम उत्पाद सीमान्त आगम तथा श्रम के सीमान्त उत्पाद के
गुणनफल के बराबर होता है।
प्रश्न 32. फर्म किस बिन्दु तक श्रम की नियुक्ति करती है ?
उत्तर-फर्म उस बिन्दु तक श्रम की नियुक्ति करती है जहाँ पर मजदूरी = श्रम की सीमान्त
आगम उत्पाद।
प्रश्न 33. प्रतियोगी फर्म का सीमान्त आगम किस के बराबर होता है ?
उत्तर-प्रतियोगी फर्म का सीमान्त आगम वस्तु की कीमत के बराबर होता है।
प्रश्न 34. पूर्ण प्रतियोगिता में श्रम का सीमान्त आगम उत्पाद किसके बराबर होता
है?
उत्तर-पूर्ण प्रतियोगिता में श्रम का सीमान्त आगम उत्पाद श्रम के सीमान्त उत्पाद के मूल्य
(MRPL = VMPL) के बराबर होता है।
प्रश्न 35. कब तक फर्म अधिक श्रमिक लगाकर अधिक लाभ कमाएगी?
उत्तर-फर्म उस समय तक अधिक श्रमिक लगाकर अधिक लाभ कमाएगी जब तक श्रम
के सीमान्त उत्पाद का मूल्य, मजदूरी दर से अधिक है।
प्रश्न 36. सीमान्त उत्पाद का ह्रासमान नियम क्या बताता है ?
उत्तर-सीमान्त उत्पाद का हासमान नियम यह बताता है कि श्रम की एक अतिरिक्त इकाई
लगाने से श्रम की सीमान्त उत्पादकता कम होती है।
प्रश्न 37. श्रम के माँग वक्र की आकृति किस प्रकार की होती है ?
उत्तर-श्रम की मांँग वक्र नीचे की ओर ढलान वाला होता है।
प्रश्न 38. माँग वक्र के दाईं ओर खिसकने से संतुलन कीमत और मात्रा पर क्या
प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-संतुलन कीमत और मात्रा में वृद्धि होती है।
प्रश्न 39. माँग वक्र के बाईं ओर खिसकने से संतुलन कीमत और मात्रा पर क्या
प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-माँग वक्र के बाईं ओर खिसकने से संतुलन कीमत और मात्रा में कमी आती है।
प्रश्न 40. उपभोक्ता की आय में वृद्धि होने से सामान्य वस्तु का माँग वक्र किस
ओर खिसकता है?
उत्तर-उपभोक्ता की आय में वृद्धि होने से सामान्य वस्तु का माँग वक्र दाईं ओर
खिसकता है।
प्रश्न 41. किसी वस्तु के उपभोक्ताओं की संख्या में कमी आने से माँग वक्र किस
ओर खिसकता है?
उत्तर-किसी वस्तु के उपभोक्ताओं की संख्या में कमी आने से माँग वक्र अपने बाईं ओर
खिसकता है।
प्रश्न 42. आगत की कीमत में कमी आने पर पूर्ति वक्र किस ओर खिसकता है ?
उत्तर-आगम की कीमत में कमी आने पर पूर्ति वक्र दाई ओर खिसकता है।
प्रश्न 43. आगत की कीमत में कमी आने पर संतुलन कीमत तथा मात्रा पर क्या
प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर-आगत की कीमत में कमी आने पर संतुलन कीमत में कमी आएगी और उत्पाद
की मात्रा में वृद्धि होगी।
प्रश्न 44. सरकार किन वस्तुओं का अधिकतम मूल्य निश्चित करती है ?
उत्तर-सरकार गेहूँ, चीनी, मिट्टी का तेल आदि आवश्यक वस्तओं की अधिकतम कीमत
निर्धारित करती है।
प्रश्न 45. सरकार द्वारा निर्धारित अधिकतम कीमत के दो दुष्प्रभाव लिखें।
उत्तर-(i) उपभोक्ताओं को घटिया वस्तुएँ उपलब्ध होंगी।
(ii) वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए लोगों को लंबी-लंबी पंक्तियों में खड़ा होना पड़
सकता है।
प्रश्न 46. किस कारण से (कीमत नियंत्रण या कीमत समर्थन) राशनिंग तथा
कालाबाजार का प्रादुर्भाव होता है ?
उत्तर-कीमत नियन्त्रण से राशनिंग की व्यवस्था होती है और कालाबाजार का प्रादुर्भाव
होता है।
प्रश्न 47. आधिक्य मांँग का बाजार कीमत पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-आधिक्य मांँग से बाजार कीमत में वृद्धि होती है।
प्रश्न 48. निम्नलिखित तालिका की सहायता से संतुलन कीमत तथा मात्रा बताएँ-
उत्तर-संतुलन कीमत 5 रुपए तथा संतुलन 80 इकाइयाँ हैं।
प्रश्न 49. उपर्युक्त प्रश्न में दी गई तालिका के आधार पर बताएं कि यदि कीमत
कम होकर 4 रुपए प्रति इकाई हो जाए तब क्या होगा?
उत्तर-मांँग 80 इकाइयों से बढ़कर 100 इकाइयाँ हो जाएगी और पूर्ति कम होकर 60
इकाइयाँ होगी। इस स्थिति में आधिक्य मांँग की स्थिति उत्पन्न होगी।
प्रश्न 50. वस्तु के स्वाद के पक्ष में परिवर्तन बाजार कीमत और मात्रा पर क्या
प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-बाजार कीमत तथा वस्तु विनिमय की मात्रा में वृद्धि होती है।
प्रश्न 51. उत्पादन कर की दर में वृद्धि से बाजार मूल्य और विनिमय होने वाली
मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-बाजार कीमत में वृद्धि होती है और मात्रा में कमी होती है।
प्रश्न 52. उपभोग की जाने वाली वस्तु की प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत में वृद्धि
होने पर वस्तु की संतुलन कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर-संतुलन कीमत में वृद्धि होगी।
प्रश्न 53. प्रतियोगिता में वृद्धि का संतुलन कीमत तथा मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ता
है?
उत्तर-संतुलन कीमत में कमी आएगी और मात्रा में वृद्धि होगी।
प्रश्न 54. कीमत निर्धारण करने वाली शक्तियाँ लिखें।
उत्तर-कीमत निर्धारण करने वाली दो शक्तियाँ हैं-
(i) माँग शक्ति तथा (ii) पूर्ति शक्ति ।
प्रश्न 55. आधिक्य पूर्ति के लिए कौन-सी कीमत जिम्मेदार है?
उत्तर-आधिक्य पूर्ति के लिए समर्थन कीमत जिम्मेदार है।
प्रश्न 56. पूर्व घोषित समर्थन मूल्य पर कौन आधिक्य माल को खरीदता है ?
उत्तर-सरकार।
प्रश्न 57. सरकार राशनिंग प्रणाली द्वारा कीमत नियन्त्रण प्रणाली को क्यों अपनाती
है?
उत्तर-सरकार राशनिंग प्रणाली द्वारा कीमत प्रणाली को इसलिए अपनाती है ताकि लोग
आवश्यक वस्तुओं को क्रय करने में समर्थ हों।
प्रश्न 58. क्या सरकार द्वारा नियन्त्रित कीमत पर प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकता
की संतुष्टि की जा सकती है ?
उत्तर-नहीं।
प्रश्न 59. कौन-सी कीमत-नियन्त्रण कीमत या समर्थन कीमत साम्य कीमत से कम
होती है?
उत्तर-नियन्त्रण कीमत साम्य कीमत से कम होती है
प्रश्न 60. राशनिंग से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-राशनिंग से अभिप्राय है एक निश्चित अवधि में एक वस्तु की अधिकतम मात्रा
खरीदने पर सीमा लगाना ।
प्रश्न 61. पेटेंट जीवन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-पेटेंट जीवन से अभिप्राय उस अवधि से है जिसमें पेटेंट का अधिकार वैध है।
                                       लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
                         (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1. साम्य को परिभाषित करें। किस स्थिति में बाजार को साम्य अवस्था में
कहा जाता है?                                             (NCERT T.B.Q. 1]
उत्तर-साम्य (Equilibrium)-साम्य उस स्थिति को कहते हैं जब किसी प्रकार के
परिवर्तन होने की प्रवृत्ति नहीं होती। मांँग तथा पूर्ति की दशा में किसी में न तो मांँग में और
न ही पूर्ति में परिवर्तन लाने की प्रेरणा होती है और न ही कीमत में परिवर्तन होने की प्रवृत्ति
होती है।
साम्य बाजार (Equilibrium Market)-बाजार उस दशा में साम्य अवस्था में होता
है जब बाजार में कुल माँग कुल पूर्ति के बराबर होगी। समीकरण में,
yd = ys
यहाँ yd से अभिप्राय बाजार मांँग तथा ys से अभिप्राय बाजार पूर्ति है। साम्य बाजार
में शून्य आधिक्य मांँग तथा शून्य आधिक्य पूर्ति की स्थिति होती है।
प्रश्न 2. क्या होगा यदि बाजार में प्रचलित कीमत-
(i) संतुलन कीमत से अधिक है ? (ii) संतुलन कीमत से कम है।
उत्तर-(i) बाजार में प्रचलित कीमत के संतुलन कीमत से अधिक होने पर यह सोचते
हुए कि दूसरे स्थानों से यहाँ पर अधिक लाभ कमा सकते हैं, फर्में बाजार में प्रवेश करेंगी।
परिणामस्वरूप प्रचलित कीमत पर बाजार में आधिक्य पूर्ति होगी। यह आधिक्य पूर्ति बाजार
मूल्य में कमी लाएगी और बाजार कीमत कम होकर संतुलन कीमत के बराबर हो जाएगी।
(ii) इस स्थिति में बहुत सी फर्मे जिन्हें हानि हो रही होगी वे फर्म इस उद्योग से बाहर
निकल आएँगी । परिणामस्वरूप प्रचलित बाजार मूल्य पर आधिक्य मांँग की स्थिति उत्पन्न
होगी। आधिक्य माँग बाजार मूल्य में वृद्धि लाएगी और बाजार मूल्य संतुलन कीमत के बराबर
हो जाएगी।
प्रश्न 3. उस बाजार में जहाँ पर फर्मे प्रवेश कर सकती हैं या बाहर जा सकती हैं
उसमें फर्मों की संख्या की गणना कैसे की जाती है?      [NCERT T.B.Q. 8]
उत्तर-(i) बाजार में फर्मों की संख्या निर्धारित करने के लिए साम्य कीमत पर मांँगी गई
तथा बेची गई मात्रा को प्रत्येक फर्म की पूर्ति की गई मात्रा से विभाजित किया जाता है।
समीकरण के रूप में,
        yo
no=———
        yof
no=फर्मों की संख्या
yo = साम्य कीमत पर बेची तथा खरीदी गई मात्रा
yof = प्रत्येक फर्म द्वारा पूर्ति की मात्रा ।
मान लीजिए साम्य कीमत पर खरीदी तथा बेची गई वस्तु की मात्रा 180 इकाइयाँ हैं और
प्रत्येक फर्म 30 इकाइयों की पूर्ति करती है। तब फर्मों की संख्या की गणना निम्न प्रकार
होगी-
       yo     180
no=——=——–=6
       yof     30
प्रश्न 4. श्रम बाजार के पूर्ति तथा माँग वक्र किस प्रकार वस्तु बाजार की पूर्ति तथा
माँग वक्र से भिन्न हैं?                                     [NCERT T.B.Q. 17)
उत्तर-श्रम बाजार की पूर्ति तथा मांँग वक्र तथा वस्तु बाजार के पूर्ति तथा मांँग
वक्र में अंतर (Difference between the supply and demand curves in the
labour market and supply and demand curves in the goods market)-श्रमिकों को मजदूरी तथा वस्तुओं की कीमतों का निर्धारण मांँग तथा पूर्ति शक्तियों के अंतर्गत एक जैसी विधि से होता है। श्रम बाजार तथा वस्तु बाजार में आधारभूत अंतर उनके माँग तथा पूर्ति के स्रोतों से है। वस्तु बाजार में वस्तु की माँग परिवारों द्वारा की जाती है जबकि वस्तु की पूर्ति फर्मे करती हैं। परन्तु श्रम बाजार में श्रम की पूर्ति परिवारों की जाती है और फर्म श्रम की मांँग करती है। वस्तु बाजार में वस्तु का अभिप्राय वस्तु की मात्रा से है जबकि श्रम बाजार में श्रम का अभिप्राय वस्तु की मात्रा से है जबकि श्रम बाजार में श्रम का अभिप्राय श्रमिकों द्वारा किए गए काम करने के घंटों से है न कि श्रमिकों की संख्या से।
प्रश्न 5. एक पूर्ण प्रतियोगी फर्म में श्रम के श्रेष्ठ चयन की शर्त क्या है ? [NCERT T.B.Q. 18)
उत्तर-पूर्ण प्रतियोगी फर्म में श्रम में श्रेष्ठ चयन की शर्त (Condition for
optimal choice of labour in perfectly competitive firm)-श्रम बाजार में श्रम की
माँग फर्मों द्वारा की जाती है। श्रम से अभिप्राय श्रमिकों के कार्य के घंटों से है न कि श्रमिकों
की संख्या से। प्रत्येक फर्म का मुख्य उद्देश्य अधिकतम लाभ प्राप्त करना है। फर्म को
अधिकतम लाभ तभी प्राप्त होता है जबकि नीचे दी गई शर्त पूरी होती है-
W = MRPL
MRPL = MR X MPL
पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में सीमान्त आगम कीमत के बराबर होता है और कीमत सीमान्त
उत्पाद के मूल्य के बराबर होती है। अतः श्रम के आदर्श (श्रेष्ठ) चयन की शर्त मजदूरी दर
तथा सीमान्त उत्पाद के मूल्य में समानता है।
प्रश्न 6. मान लीजिए बाजार द्वारा निर्धारित अपार्टमेंट का किराया बहुत अधिक है।
साधारण जनता इतना अधिक किराया देने में असमर्थ है। सरकार किराया नियंत्रण के
द्वारा किराये पर लेने वाले व्यक्ति की सहायता के लिए कदम बढ़ाती है । अपार्टमेंट के
बाजार पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?               [NCERT T.B.Q.25]
उत्तर-अपार्टमेंट के बाजार पर प्रभाव (Impact on the market for apartment)-
किराया नियंत्रण के लागू करने के निम्नलिखित प्रभाव होंगे-
(i) उपभोक्ताओं को घटिया किस्म के घर मिलेंगे। इसका कारण यह है कि अपार्टमेंट
बनाने वालों को कम कीमत मिल रही है। वह अब मकानों के निर्माणों में घटिया माल लगायेंगे
ताकि उत्पादन लागत में कमी आ जाए।
(ii) किराया नियंत्रण से अपार्टमेंट की मांँग में वृद्धि होगी। परन्तु नियंत्रित किराये पर सभी
लोगों को अपार्टमेंट (Apartment) नहीं मिल सकेंगे। अपार्टमेंट के लिए प्रतीक्षा करने वालों
की एक लंबी सूची बन जाएगी।
(iii) क्योंकि नियंत्रित किराये पर अपार्टमेंट लेने वाले सभी व्यक्तियों को अपार्टमेंट नहीं
मिल सकेंगे, अत: कुछ लोग अधिक किराये पर भी अपार्टमेंट लेना पसंद करेंगे। परिणामस्वरूप
किराये वाले अपार्टमेंट की कालाबाजारी आरम्भ हो जाएगी।
                                       दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
                        (Long Answer Type Questions)
प्रश्न 1. पूर्ण प्रतियोगी श्रम बाजार में मजदूरी का निर्धारण कैसे किया जाता है ?
                                                                      [NCERT T.B.Q. 19)
उत्तर-पूर्ण प्रतियोगी श्रम बाजार में मजदूरी का निर्धारण (Determination of
Wage in Perfectly Competitive Labour Market)-श्रम बाजार में परिवार श्रम की
पूर्ति करते हैं और श्रम की माँग फर्मों द्वारा की जाती है। श्रम से अभिप्राय श्रमिकों द्वारा किए
गए काम के घंटों से है न कि श्रमिकों की संख्या से । श्रम बाजार में मजदूरी का निर्धारण उस
बिन्दु पर होता है जहाँ पर माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र आपस में काटते हैं।
मजदूरी निर्धारण में हम यह मान लेते हैं कि श्रम ही केवल परिवर्तनशील उत्पादन का
साधन है तथा मजदूर बाजार में पूर्ण प्रतियोगिता है प्रत्येक फर्म के लिए मजदूरी दी गई
है। प्रत्येक फर्म का उद्देश्य अधिकतम लाभ कमाना है। हम यह भी मानकर चलते हैं कि फर्म
की उत्पादन तकनीक दी गई है और उत्पाद का हासमान नियम लागू है।
जैसा कि प्रत्येक फर्म का उद्देश्य अधिकतम लाभ कमाना है, अत: फर्म उस बिन्दु तक
श्रमिकों की नियुक्ति करती रहेगी जब तक अन्तिम श्रम पर होने वाला अतिरिक्त (Extra) व्यय
उस श्रम से प्राप्त अतिरिक्त लाभ के समान नहीं होता । एक अतिरिक्त श्रम के लगाने की
अतिरिक्त लागत मजदूरी पर (W) कहलाती है और एक अतिरिक्त मजदूर के लगाने से प्राप्त
आय उस श्रम की सीमान्त उत्पादकता (MPL) कहलाती है। उत्पाद की प्रत्येक अतिरिक्त
इकाई के बेचने से प्राप्त होने वाली आय सीमान्त आय (आगम) कहलाती है। फर्म उस बिन्दु
तक श्रम को लगाती है, जहाँ
W = MRPL
यहाँ MRPL = MR×MPL
पूर्ण प्रतियोगी बाजार में सीमान्त आय (आगम) वस्तु की कीमत के बराबर होती है।
अतः सीमान्त आगम उत्पाद सीमान्त उत्पाद के मूल्य के बराबर होता है। जब श्रम के सीमान्त
उत्पाद का मूल्य मजदूरी दर से अधिक होता है तो फर्म एक अधिक इकाई के प्रयोग से अधिक
लाभ कमाएगी । यदि श्रम के किसी स्तर पर सीमान्त उत्पाद का मूल्य मजदूरी दर से कम है,
तब फर्म श्रम की मात्रा कम करके अपने लाभ को बढ़ा सकती है।
प्रश्न 2. मांँग वक्र में शिफ्ट का कीमत पर अधिक तथा मात्रा पर कम प्रभाव होता
है, जबकि फर्मों की संख्या स्थिर रहती हैं। स्थितियों की तुलना करें जब निर्बाध प्रवेश
तथा बर्हिगमन की अनुमति हो । व्याख्या करें।    [NCERT T.B.Q.21]
उत्तर-माँग वक्र में खिसकाव होने पर कीमत में परिवर्तन होता है। मान लीजिए माँग
वक्र दाईं ओर खिसकता है। इस स्थिति में कीमत में अधिक वृद्धि होगी परन्तु मात्रा पर
कम प्रभाव पड़ेगा जैसा कि नीचे के चित्र में दिखाया गया है-
इसका मुख्य कारण फर्मों की संख्या का
निश्चित होना है। नई फर्मों के प्रवेश करने पर
प्रतिबन्ध है। वर्तमान में उत्पादन में अधिक
वृद्धि नहीं कर सकेंगी। मांँग में वृद्धि होने पर
कीमत में अधिक वृद्धि होगी और मात्रा में कम
वृद्धि होगी। इसके विपरीत मांँग वक्र के दाईं ओर                
खिसकने पर कीमत में वृद्धि होगी। कीमत में
वृद्धि होने (अर्थात् लाभ में वृद्धि होने) पर उद्योग
में नई फर्मों का प्रवेश होगा। नई फर्मों के प्रवेश
से पूर्ति में वृद्धि होगी। उद्योग में नई फर्मों का तब
तक प्रवेश होता रहेगा जब तक कीमत कम होकर
साम्य कीमत के बराबर नहीं हो जाती। अत: उस
बाजार में जहाँ पर फर्मों के प्रवेश तथा बर्हिगमन की स्वतंत्रता है वहाँ माँग वक्र के दाईं ओर
खिसकने पर कीमत पर कम प्रभाव पड़ेगा और मात्रा पर अधिक।
प्रश्न 3. एक सामान्य वस्तु के उपभोक्ता की आय में वृद्धि का उस वस्तु की
संतुलन कीमत तथा मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ता है ? एक चित्र की सहायता से
समझाएँ।                                                           [CBSE, 2006]
अथवा, एक वस्तु की मांँग में वृद्धि का उस वस्तु की साम्य कीमत तथा मात्रा पर
क्या प्रभाव पड़ता है ? एक चित्र की सहायता से समझाएँ।
उत्तर-सामान्य वस्तु की संतुलन कीमत तथा मात्रा पर उपभोक्ता की आय में वृद्धि
का प्रभाव (Impact of increase of consumer’s income on the equilibrium
price and quantity of a normal good)-उपभोक्ता की आय में वृद्धि के फलस्वरूप
सामान्य वस्तु की माँग में वृद्धि होती है। माँग वक्र दाईं ओर खिसक जाता है जबकि पूर्ति वक्र
पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता अर्थात् पूर्ति वक्र
अपरिवर्तित रहता है। पूर्ति वक्र के स्थिर रहने पर
तथा माँग वक्र के दाईं ओर खिसकने से साम्य
कीमत में वृद्धि होती है। इस बात का स्पष्टीकरण              
निम्न चित्र द्वारा किया जाता है।
दिए गए चित्र से स्पष्ट है कि मांँग में वृद्धि
के कारण माँग वक्र दायीं और (ऊपर की और)
खिसक कर D1D1 हो जाता है। साम्य कीमत
OP से बढ़कर OP. हो जाती है तथा साम्य मात्रा OQ से OQ1 हो जाती है। साम्य बिन्दु E
से खिसक कर E1 हो गया है।
प्रश्न 4. एक वस्तु की दी गई कीमत पर आधिक्य पूर्ति है । क्या यह संतुलन कीमत
है? यदि नहीं तो, संतुलन कीमत किस प्रकार प्राप्त होगी? (चित्र का प्रयोग करें)
उत्तर-आधिक्य पूर्ति पर कीमत (Price at Excess Supply)-जिस कीमत पर
आधिक्य पूर्ति होती है वह कीमत साम्य कीमत नहीं कहला सकती । संतुलन कीमत पर शून्य
आधिक्य माँग तथा शून्य आधिक्य पूर्ति होती है अर्थात् माँग पूर्ति के समान होती है। चित्र में
DD माँग वक्र तथा SS पूर्ति वक्र है। OP1 बाजार मूल्य है। इस कीमत पर पूर्ति OQ है तथा
मांँग OQ1 है। इसका अर्थ यह हुआ कि उपभोक्ता उतनी वस्तुओं की मांँग नहीं करते जितनी
वस्तुएँ उत्पादक पूर्ति करने को तैयार हैं । अतः यह आधिक्य पूर्ति की स्थिति है। यह आधिक्य
पूर्ति AB या OQ1 के बराबर है। अतः दी हुई
कीमत साम्य कीमत नही है क्योंकि साम्य कीमत
पर पूर्ति माँग के बराबर होती है (अर्थात् शून्य
आधिक्य पूर्ति तथा शून्य आधिक्य मांँग)। आधिक्य
पूर्ति के फलस्वरूप विक्रेताओं/उत्पादकों के बीच
प्रतियोगिता उत्पन्न हो जाएगी। प्रतियोगिता से कीमत              
कम हो जाएगी। कीमत तब तक कम होती
जाएगी जब तक कि आधिक्य पूर्ति शून्य नहीं हो
जाती। अतः कीमत OP से कम होकर OP1 हो
जाएगी। OP कीमत साम्य कीमत है। इस कीमत
पर पूर्ति माँग के बराबर है।
प्रश्न 5. मांँग तथा पूर्ति वक्रों की सहायता से दिखाएंँ कि किस प्रकार जूतों की
कीमतों में वृद्धि होने से जुराबों की कीमत तथा जुराबों के विक्रय तथा क्रय की संख्या
प्रभावित होती है?
उत्तर-जूतों की कीमतों में परिवर्तन का
जुराबों की कीमत तथा उसके क्रय-विक्रय की
संख्या पर प्रभाव (Effect of increase in
price of shoes on the price of socks and            
the number of socks bought and
sold)-जूते तथा जुराबें पूरक वस्तुएँ हैं। पूरक
वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिनका प्रयोग एक साथ किया
जाता है। जूतों की कीमत में वृद्धि होने के
फलस्वरूप जूतों की मांँग में कमी आएगी जैसा
कि संलग्न चित्र में दर्शाया गया है।
जूतों की मांँग में कमी आने के फलस्वरूप
जुराबों की मांँग कम हो जाएगी।
मांँग में कमी आने के फलस्वरूप जुराबों की
कीमतों में कमी आएगी जैसा कि नीचे चित्र से
प्रतीत होता है।
प्रश्न 6. कॉफी की कीमत में परिवर्तन आने से चाय की संतुलन कीमत पर क्या
प्रभाव पड़ेगा? चित्र की सहायता से संतुलन मात्रा पर पड़ने वाले प्रभाव को समझाएँ।
                                                                         [NCERT T.B.Q.11]
उत्तर-कॉफी की कीमत में परिवर्तन का चाय की संतुलन कीमत तथा मात्रा पर
प्रभाव (Effect of change in price of coffee on the equilibrium price and
quantity of tea)-चाय और काफी स्थानापन्न वस्तुएँ हैं । स्थानापन्न वस्तुएँ उन वस्तुओं को
कहते हैं जिनका प्रयोग एक-दूसरे के स्थान पर किया जा सकता है। वस्तु की कीमत और
स्थानापन्न वस्तु की मांँग में प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है। अत: कॉफी की कीमत में वृद्धि होने से
चाय की मांँग में वृद्धि होगी। अत: चाय का माँग वक्र दाईं ओर खिसकेगा जैसा कि चित्र में
दिखाया गया है-
अब नया माँग वक्र DD है जो पूर्ति वक्र
SS को E बिन्दु पर काटता है। अत: नई संतुलन                
कीमत तथा मात्रा क्रमशः OP तथा OQ1 है।
अतः चाय की संतुलन कीमत तथा मात्रा में वृद्धि
होगी।
अब मान लीजिए कि कॉफी की कीमत में
गिरावट आती है। ऐसी स्थिति में काफी की माँग
में वृद्धि होगी तथा चाय की माँग कम हो जाएगी।
चाय की मांँग में कमी आने के फलस्वरूप चाय
की कीमत में कमी होगी जैसा कि नीचे दिए गए
चित्र से पता चलता है-
चाय की मांँग में कमी आने से माँग वक्र
ओर खिसक जाएगा। चित्र में नया माँग वक्र D1D1
है जो पूर्ति वक्र SS को E1 बिन्दु पर काटता है।
अब संतुलन कीमत OP1 तथा संतुलन मात्रा OQ1
है। अत: कॉफी की कीमत में कमी आने पर चाय
की संतुलन कीमत तथा मात्रा में कमी आएगी।
प्रश्न 7. वस्तु की संतुलन कीमत तथा मात्रा में किस प्रकार के परिवर्तन होते हैं
जबकि वस्तु में प्रयोग किए जाने वाले आगतों की कीमतों में परिवर्तन होता है ?
                                                               [NCERT T.B.Q.12]
उत्तर-वस्तु के उत्पादन में प्रयोग किए
गए आगतों की कीमतों में होने वाले परिवर्तन
का वस्तु की साम्य कीमत तथा मात्रा पर
प्रभाव (Impact of changes in prices of
the Inputs used in the production of a
commodity on its equilibrium price and                
quantity)-वस्तु के उत्पादन में प्रयोग किए
जाने वाले आगतों की कीमतों में कमी आने पर
सीमान्त लागत कम होगी। परिणामस्वरूप पूर्ति
वक्र दाईं ओर खिसकेगा। पूर्ति वक्र के दाईं ओर
खिसकने के फलस्वरूप संतुलन कीमत कम होगी तथा मात्रा में वृद्धि होगी जैसा कि संलग्न
चित्र में दर्शाया गया है।
इसके विपरीत यदि आगतों की कीमतों में वृद्धि होती है तब उत्पादन लागत या सीमान्त
लागत में वृद्धि होगी। अतः पूर्ति वक्र बाईं ओर खिसक जाएगा। पूर्ति के बाई ओर खिसकने
से संतुलन कीमत में वृद्धि होगी तथा संतुलन मात्रा में कमी आएगी।
प्रश्न 8. यदि x वस्तु की प्रतिस्थापन वस्तु (Y) की कीमत में वृद्धि होती है, तब
इसका X वस्तु की संतुलन कीमत तथा मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा? [T.B.Q.13]
उत्तर-यदि x की प्रतिस्थापन वस्तु Y की
कीमत में वृद्धि होती है तब Y वस्तु की मांँग में
कमी आएगी और लोग x वस्तु का अधिक प्रयोग
करना आरंभ कर देंगे। फलस्वरूप x वस्तु का                  
माँग वक्र दाईं ओर खिसक जाएगा। माँग वक्र के
दाईं ओर खिसकने से संतुलन कीमत तथा संतुलन
मात्रा में वृद्धि होगी जैसा कि संलग्न चित्र से पता
चलता है।
प्रश्न 9. समर्थन कीमत को विस्तृत रूप में समझायें।
उत्तर-समर्थन कीमत (Support Price)-समर्थन कीमत से अभिप्राय है सरकार द्वारा
कुछ वस्तुओं के उत्पादकों को न्यूनतम कीमत का आश्वासन देना। अगर इस कीमत पर
उत्पादकों का माल नहीं बिकता है तो सरकार स्वयं खरीद लेती है। समर्थन कीमत को Price
Floor भी कहा जाता है। यह किसी वस्तु की एक न्यूनतम कीमत होती है। यह कीमत प्रायः
संतुलन कीमत से अधिक होती है।
सरकार किसी वस्तु की न्यूनतम कीमत तब घोषित करती है जब वह अनुभव करती है
कि मांँग व पूर्ति के संतुलन के आधार पर निर्धारित कीमत उत्पादकों के लिए उपयुक्त नहीं है।
न्यूनतम कीमत का समर्थन कीमत माँग और पूर्ति की शक्तियों को स्वतंत्र रूप से क्रियाशील
होने से रोकती है। भारत सरकार अनेक कृषि वस्तुओं की प्रतिवर्ष न्यूनतम कीमत की घोषणा
करती है। सामान्यतः न्यूनतम कीमत संतुलन कीमत से अधिक होती है। यदि न्यूनतम कीमत
संतुलन कीमत से कम या संतुलन कीमत के बराबर है तब बाजार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
परन्तु यदि न्यूनतम कीमत संतुलन कीमत से अधिक होगी तब बाजार में आधिक्य की स्थिति
उत्पन्न होगी जैसा कि संलग्न चित्र में दिखाया गया है।
चित्र में DD माँग वक्र और SS पूर्ति वक्र
है। ये दोनों वक्र एक-दूसरे को E बिन्दु पर काटते
हैं। अत: OP संतुलन कीमत है। सरकार यह
अनुभव करती है कि OP कीमत उत्पादकों के
लिए उपयुक्त नहीं है। ऐसी अवस्था में सरकार
उत्पादकों के हितों को ध्यान में रखकर वस्तु की
न्यूनतम कीमत OPA (जो कि साम्य कीमत से                  
अधिक है) घोषित करती है। ऐसा करने से मांग
PE से कम होकर PK हो जाएगी और पूर्ति PE से
बढ़कर PL हो जाएगी। स्पष्ट है कि बाजार में
KL के बराबर बिना बिका माल रहा जाएगा।
अत: बाजार में आधिक्य की स्थिति उत्पन्न हो
जाएगी। अतिरिक्त माल खरीदने के लिए सरकार
को तैयार रहना होगा। अर्थात् सरकार अनविका या बचा माल स्वयं खरीदकर और उसे अपने
गोदाम में जमा रखकर आधिक्य की स्थिति पर नियन्त्रण रखने का प्रयत्न करेगी। अपने इस
बफर (अतिरिक्त) स्टॉक का प्रयोग सरकार उस समय कर सकती है जब बाजार में वस्तु की
पूर्ति की कमी हो जाती है।
समर्थन मूल्य के परिणाम (Consequences of Support Price)-समर्थन मूल्य के
निम्नलिखित परिणाम होंगे-
(i) आधिक्य (Surplus)-समर्थन कीमत के परिणामस्वरूप वस्तु की माँग में कमी आ
जाएगी। माँग की मात्रा पूर्ति की मात्रा से कम हो जाएगी। अत: आधिक्य की स्थिति उत्पन्न
हो जाएगी।
(ii) सरकार के द्वारा क्रय (Purchase by Government)-समर्थन कीमत पर
सरकार अनबिका माल खरीदेगी और उसका स्टॉक करेगी। अपने इस स्टॉक का प्रयोग वह
उस समय कर सकती है जब बाजार में वस्तु की पूर्ति कम हो जाती है।
(iii) संसाधनों की बरबादी तथा सरकार के खर्चे में वृद्धि (Wastage of re-
sources and increase in government expenditure)-अनबिके माल के खरीदने
तथा गोदामों में रखने पर सरकार के व्यय में वृद्धि होती है। गोदामों का समुचित रूप में
रख-रखाव नहीं होता । गोदामों में रखा हुआ माल खराब जाता है। माल की गुणवत्ता कम
हो जाती है। अनाज को चूहे आदि खाते रहते हैं। इस प्रकार माल का अपव्यय होता रहता है।
प्रश्न 10. कीमत नियन्त्रण तथा राशनिंग का मांँग तथा पूर्ति पर प्रभाव दर्शाएँ ।
उत्तर-माँग तथा पूर्ति पर कीमत नियंत्रण तथा राशनिंग का प्रभाव (Impact of
Price Control and Rationing on Demand and Supply)-कीमत नियंत्रण से
अभिप्राय सरकार द्वारा किन्हीं विशेष वस्तुओं की कीमत निर्धारित करने से है। वर्तमान में भारत
सरकार अनेक वस्तुओं जैसे पेट्रोल, मिट्टी का तेल, चीनी, कुकिंग गैस आदि की कीमतों पर
नियन्त्रण रखती है।
सरकार जब यह अनुभव करती है कि कुछ
वस्तुओं की पूर्ति कम होने पर उनकी कीमतें इतनी
हो जाती हैं कि साधारण जनता की पहुंच से बाहर
हो जाती हैं, तब ऐसी स्थिति में उपभोक्ताओं के
हितों की रक्षा करने के लिए सरकार वस्तुओं की
उच्चतम् कीमत निर्धारित कर देती है ताकि उत्पादक              
उनकी ऊंँची कीमत वसूल न कर सकें। वस्तु का
अधिकतम कीमत निर्धारित करने का अर्थ है कि
सरकार माँग तथा पूर्ति शक्तियों के स्वतंत्र रूप से
कार्यशील होने में हस्तक्षेप कर रही है। सरकार
द्वारा किसी वस्तु की निर्धारित अधिकतम कीमत साधारणतया साम्य कीमत से कम होती है।
ऐसी स्थिति में बाजार में मांँग पूर्ति से अधिक होगी। बाजार में अभाव की स्थिति उत्पन्न
होगी। आधिक्य माँग की स्थिति हो जाएगी।
चित्र में DD तथा SS क्रमश: माँग तथा पूर्ति वक्र हैं। ये दोनों वक्र एक-दूसरे को E बिन्दु
पर काटते हैं | OP साम्य कीमत होगी तथा PE के बराबर मात्रा का क्रय-विक्रय किया जाएगा।
अब यदि सरकार इस कीमत को ऊंचा समझती है जो वह बाजार में हस्तक्षेप करती हुई वस्तु
की OP1 कीमत (जो साम्य कीमत OP से कम है) निर्धारित करती है। इस कीमत पर बाजार
की पूर्ति PE से कम होकर P1R हो जाएगी और माँग PE से बढ़कर P1S हो जाएगी।
P1S मात्रा P1R मात्रा से अधिक है। दूसरे शब्दों में वस्तु की माँग वस्तु की पूर्ति से
अधिक होगी और आधिक्य मांग की स्थिति हो जाएगी। इस समस्या का समाधान करने के
लिए सरकार राशनिंग की नीति को अपनाएगी। राशनिंग से अभिप्राय है कि एक व्यक्ति के
लिए वस्तु के उपयोग की उच्चतम मात्रा का निर्धारण करना । भारत में गेहूँ, चीनी, मिट्टी का
तेल आदि वस्तुएँ राशनिंग प्रणाली के अन्तर्गत आती हैं।
यदि सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम कीमत सामान्य कीमत से अधिक या बराबर है, तब
इसका बाजार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। परन्तु यदि नियन्त्रण मूल्य साम्य कीमत से कम है,
तब इसके निम्नलिखित परिणाम हो सकते हैं-
(i) आधिक्य मांँग (Surplus Demand)-मांँग पूर्ति से अधिक होगी अर्थात् आधिक्य
मांँग की स्थिति उत्पन्न होगी। सभी व्यक्तियों को सरकार द्वारा निर्धारित कीमत पर वस्तुएँ प्राप्त
नहीं हो सकेंगी।
(ii) अधिक व्यक्तियों में सीमित पूर्ति के आबंटन की समस्या (Problem of
allocation of limited supplies among large number of consumers) –
मांँग होने के कारण सरकार के सामने सीमित पूर्ति के आवंटन की समस्या उत्पन्न होंगी। वस्तु
की पूर्ति की कमी की समस्या को निपटाने के लिए सरकार राशनिंग प्रणाली अपना सकती है।
(iii) कालाबाजारी (Black marketing)-कीमत नियंत्रण से कालाबाजारी का जन्म
होगा। कालाबाजारी से अभिप्राय है किसी वस्तु का कीमत पर गैर-कानूनी ढंग से बेचा जाना ।
(iv) अधिक्य वस्तुओं की गुणवत्ता में कमी (Fall in the quality of products)-
कीमत नियंत्रण से उत्पादक घटियों वस्तुओं की पूर्ति आरम्भ कर देंगे।
प्रश्न 11. बाजार फों की संख्या स्थिर होने पर तथा निर्बाध प्रवेश तथा बर्हिगमन
की स्थिति में मांँग वक्र के स्थानांतरण का संतुलन पर प्रभाव की तुलना कीजिए।
                                                                   [NCERT T.B.Q. 14)
उत्तर-तुलना (Comparison)-जब बाजार
में फर्मों की संख्या निश्चित है, उस अवस्था में
मांँग वक्र के दाई ओर खिसकने से साम्य कीमत
में वृद्धि होगी जैसा कि नीचे रेखाचित्र में दर्शाया                      
गया है।
उपरोक्त चित्र से स्पष्ट है कि मांँग में वृद्धि
के कारण मांँग वक्र दायीं ओर (ऊपर की ओर)
खिसक कर D1D1 हो जाता है। साम्य कीमत
OP से बढ़कर OP1 हो जाती है तथा साम्य मात्रा
OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है। साम्य बिन्दु E
से खिसकर E1 हो गया है।
इसके विपरीत यदि मांँग में कमी आती है
और फर्मों की संख्या स्थिर रहने पर पूर्ति स्थिर
रहती है तब साम्य कीमत तथा मात्रा में कमी
आएगी जैसा कि आगे दिए गए चित्र में दर्शाया
गया है।
उपरोक्त चित्र में DD आरम्भिक मांँग वक्र
तथा SS आरंभिक पूर्ति वक्र है। आरंभिक साम्य
कीमत OP तंधा साम्य मात्रा OQ है। मांँग में
कमी के कारण माँग वक्र बायीं ओर (नीचे की ओर) खिसक कर D2D2) हो जाता है। नई
साम्य कीमत का निर्धारण E2 बिन्दु पर होगा जहाँ नया माँग वक्र पूर्ति वक्र को काटता है। साम्य
कीमत OP से घटकर OP2 हो जाती है तथा साम्य मात्रा OQ से घटकर OQ2 हो जाती है।
अब हम बाजार की उस स्थिति को लेते हैं
जहाँ पर उद्योग में प्रवेश करने तथा उद्योग को
छोड़ने की फर्मों को पूर्ण स्वतंत्रता है। जब मांँग
वक्र दाईं ओर खिसकता है तो P० कीमत पर वस्तु                
की मांँग अधिक होगी और परिणामस्वरूप कीमत
में वृद्धि होगी। परन्तु बाजार का संतुलन P० पर ही
रहेगा।
अत: उद्योग में नई फर्मों का प्रवेश होगा और
वह माँग की पूर्ति करने के लिए उत्पादन करेंगी।
माँग तथा पूर्ति बराबर हो जाएंँगे। परिणामस्वरूप
कीमत कम होकर Po हो जायेगी। चित्र में नया
माँग वक्र DD1 पर साम्य मात्रा Y1E है परन्तु साम्य कीमत अभी भी Po है। यहाँ पर फर्मों
की संख्या प्रारंभिक फर्मों की संख्या से अधिक है।
इसी प्रकार मांँग वक्र के बाईं ओर खिसकने से मांँग वक्र DD2 हो जाता है। ऐसी अवस्था
में Po कीमत पर आधिक्य पूर्ति होगी। अत: कुछ फर्म उद्योग छोड़कर चली जाएंँगी।
परिणामस्वरूप पूर्ति मांँग के बराबर हो जाएगी। अत: कीमत कम होकर Po हो जाएगी।
निष्कर्ष (Conclusion)-अंत में हम इस निष्कर्ष पर पहुंँचते हैं कि फर्मों के प्रवेश तथा
बर्हिगमन की स्थिति में माँग वक्र के खिसकाव का फर्मों की स्थिर संख्या की तुलना में मात्रा
पर अधिक प्रभाव पड़ता है। परन्तु मांँग वक्र के खिसकाव का उस बाजार में जिसमें फर्मों के
प्रवेश तथा बर्हिगमन की स्वतंत्रता है, कीमत व साम्य कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
प्रश्न 12. एक पूर्ण प्रतियोगी बाजार में जिसमें फर्मों की संख्या निश्चित है, कीमत
का निर्धारण किस प्रकार किया जाता है?                  [NCERT T.B.Q. 51]
उत्तर-एक पूर्ण प्रतियोगी बाजार में कीमत का निर्धारण (Determination of
price in a competitive market)-एक प्रतियोगी बाजार में जिसमें फर्मों की संख्या
निश्चित है उसमें कीमत का निर्धारण माँग तथा पूर्ति की सहायता से किया जाता है।
बगल के चित्र में DD तथा SS पूर्ति वक्र
क्रमशः एक वस्तु के बाजार माँग वक्र तथा पूर्ति
वक्र हैं, जो E बिन्दु पर काटते हैं। इस प्रकार OP
संतुलन कीमत तथा OM संतुलित मात्रा का निर्धारण
होता है।
मान लीजिए वस्तु की कीमत OP1 है। इस
कीमत पर उपभोक्ता वस्तु की P1B मात्रा की माँग
करते हैं, जबकि उत्पादक P1B मात्रा बेचना चाहते
हैं। इस प्रकार माँग और पूर्ति में असंतुलन पैदा हो                    
जाएगा। बाजार में अतिरिक्त पूर्ति (AB मात्रा के
बराबर) की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी। अत: OP
कीमत टिक नहीं सकेगी। अतिरिक्त पूर्ति की
स्थिति में उत्पादकों में प्रतियोगिता उत्पन्न हो जाएगी।
अत: कीमत OP1 से कम OP हो जाएगी। इसके विपरीत मान लो बाजार में वस्तु की कीमत
OP2 है। इस स्थिति में अतिरिक्त माँग की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी जैसाकि चित्र से स्पष्ट
है। अतिरिक्त माँग की स्थिति में उपभोक्ताओं में प्रतियोगिता की स्थिति उत्पन्न होगी और
अन्ततः कीमत OP2 से बढ़कर OP हो जाएगी। अतः संतुलन कीमत OP रहेगी।
संतुलन कीमत तथा संतुलन मात्रा के निर्धारण के अधिक स्पष्टीकरण के लिए हम गेहूँ
बाजार का उदाहरण लेते हैं।
उदाहरण-मान लीजिए कि हम गेहूँ बाजार लेते हैं जिसमें एक समान खेत है जो कि गेहूँ
की एक जैसी (एक जैसे गुणवाली) किस्मों का उत्पादन करते हैं। मान लीजिए गेहूँ का माँग
वक्र तथा पूर्ति वक्र नीचे दिया गया है-
yd = 200-P
ys = 200 + P जबकि P≥10 =0 जबकि P<0.
yd तथा ys क्रमश: गेहूँ की माँग तथा पूर्ति को प्रदर्शित करते हैं तथा P गेहूँ की कीमत
(प्रति किग्रा०) को प्रदर्शित करता है।
समीकरण से पता चलता है कि 10 रुपये प्रति किग्रा० कीमत पर गेहूंँ की बाजार पूर्ति
शून्य है। इसका अभिप्राय है कि कोई भी किसान 10 रुपये से कम कीमत पर गेहूँ का उत्पादन
नहीं करेगा। कोई भी उत्पादक तभी किसी वस्तु उत्पादन करता है जबकि वस्तु की कीमत
कम-से-कम निम्नतम औसत परिवर्ती लागत (AVC) के बराबर हो। जब कीमत AVC से
कम होती है तो उत्पादक शून्य मात्रा में उत्पादन करते हैं। अतः प्रत्येक किसान द्वारा गेहूंँ के
उत्पादन की न्यूनतम औसत लागत 20 रुपए प्रति किलोग्राम है। अब हम समीकरण की
सहायता से संतुलित कीमत का निर्धारण करेंगे। हम जानते हैं कि
      yd = ys
200-P=120+P
अथवा, 200-120 =P+P
अथवा, 80=2P
अथवा, P=40
अतः गेहूँ की साम्य कीमत 40 रुपये है।
अब हम संतुलन मात्रा का निर्धारण करेंगे।
yd = 200-P= 200-40 = 160
अथवा, ys = 120+P=120+40 = 160
अतः संतुलन मात्रा 160 किग्रा० होगी।
अब मान लीजिए बाजार कीमत साम्य कीमत (40 रुपये प्रति किग्रा०) से कम है अर्थात्
25 रुपये है। ऐसी स्थिति में-
yd = 200-P= 200-25 = 175 (माँग)
ys = 120+P=120+25=145 (पूर्ति)
अत: 25 रुपये कीमत पर माँग पूर्ति से अधिक होगी।
अब मान लें कि कीमत 45 रुपये (संतुलन कीमत से अधिक) है। ऐसी अवस्था में
yd=200-P= 200-45 = 155 (मांँग)
ys =120+P=120+45 =165 (पूर्ति)
अत: 45 रुपये कीमत पर आधिक्य पूर्ति की स्थिति उत्पन्न होगी।
                                              संख्यात्मक प्रश्नोत्तर
                              (Numerical Type Questions)
प्रश्न 1. मान लीजिए एक प्रतियोगी बाजार में x वस्तु की माँग तथा पूर्ति वक्र नीचे
समीकरण द्वारा दी गई है-
yd=700-P
ys =500+3P for P215 = 0 for P<15.
मान लीजिए कि एक बाजार में एक समान फर्मे हैं। बाजार में 15 रुपये प्रति इकाई पर
x वस्तु की पूर्ति शून्य होने का कारण बताएँ । वस्तु का संतुलन मूल्य क्या होगा? संतुलन
मूल्य पर X वस्तु की कितनी मात्रा का उत्पादन किया जाएगा? [NCERT T.B.Q. 22) ]
उत्तर-प्रश्न में yd तथा ys क्रमशः माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र का प्रतिनिधित्व करते हैं।
PX-वस्तु का मूल्य दर्शाता है। पूर्ति वक्र से हमें ज्ञात होता है कि 15 रुपये प्रति इकाई कीमत
पर पूर्ति शून्य है। इसका अर्थ यह हुआ कि जब वस्तु का मूल्य 15 रुपये से कम होगा तब
कोई भी फर्म x वस्तु का उत्पादन नहीं करेगी। हम जानते हैं कि फर्म किसी वस्तु की
धनात्मक मात्रा का उत्पादन तभी करेगी वस्तु का मूल्य कम से कम फर्म की न्यूनतम
औसत परिवर्ती लागत के बराबर होगा । जब मूल्य AV न्यूनतम AVC से कम होगा तब फर्में
उत्पादन नहीं करेगी। अतःX वस्तु के उत्पादन करने की न्यूनतम औसत लागत 15 रुपये है।
यहाँ पर संतुलन कीमत 15 रुपये है। संतुलन पर पूर्ति वक्र से हमें निम्न पूर्ति मात्रा प्राप्त
होती है-
ys = 500+3P %=500+45 = 545
प्रश्न 2. प्रश्न संख्या 1 में दिए गए समीकरण पर विचार करें। अब यह मान लें कि
x वस्तु का उत्पादन करने वाली फर्मों को प्रवेश करने तथा बर्हिगमन की पूर्ण स्वतंत्रता
है । यह भी मान लें कि x वस्तु का उत्पादन करने वाली फर्मे एक समान है। एक फर्म
का पूर्ति वक्र का समीकरण नीचे दिया गया है-
ysf=8+3P for P ≥ 20 = 0 for P<20
(क) P= 20 का क्या महत्त्व है?
(ख) x वस्तु का बाजार किस कीमत पर संतुलन में होगा?
(ग) फर्मों की संतुलन मात्रा तथा फर्मों की संख्या ज्ञात करें। [NCERT T.B.Q. 23]
उत्तर-(क) P= 20 से पता चलता है कि यह बाजार मांग तथा बाजार पूर्ति के द्वारा
निर्धारित संतुलन कीमत है।
(ख) 20 रुपए कीमत पर X वस्तु का बाजार संतुलन में होगा।
संतुलन कीमत = 700 – p = 700 – 20 = 680
(ग) एक फर्म द्वारा उत्पादित मात्रा = 8 + (3×20) = 68
                        680
फर्मों की संख्या =—— =10
                        68
प्रश्न 3. मान लीजिए नमक के लिए मांग तथा पूर्ति वक्र निम्न समीकरण के द्वारा
किए गए हैं-
yd = 1000 – P
ys = 700 + 2P
(क) संतुलन कीमत तथा मात्रा ज्ञात करें।
(ख) अब मान लीजिए कि नमक के उत्पादन के लिए गैर-साधन कारकों की
कीमत में वृद्धि हो गई है जिसके परिणामस्वरूप नया पूर्ति वक्र है-
ys = 400 + 2P
संतुलन कीमत और मात्रा में क्या परिवर्तन आते हैं ? क्या परिवर्तन आपकी आशा
के अनुकूल हैं ?
(ग) मान लो कि सरकार ने नमक की कीमत पर 3 रुपए कर लगा दिया है। यह
माँग के पूर्ति वक्र को कैसे प्रभावित करता है। नई साम्य कीमत और नई मात्रा क्या
होगी?                                                            [NCERT T.B.Q. 24)
उत्तर-(क) साम्य कीमत पर माँग पूर्ति के बराबर होती है। अत: yd =ys .
अथवा, 100-p= 700+2p
अथवा, -p-2p= 700-1000-3p =-300
अथवा, p=100
अत: साम्य कीमत = 100 रुपये
साम्य मात्रा 1000 – p = 1000 – 100 = 900
अथवा, साम्य मात्र 700 + 2p = 700 + 200 = 900
(ख) 100 – p(yd) = 400 + 2p(ys)
अथवा, -p-2p= 400-1000
अथवा, -3p = -600
                   -600
अथवा,    p =——-=200
                    -3
अतः संतुलन कीमत = 200 रुपए
साम्य (संतुलन) मात्रा = 400 + 2p = 400 + 400 = 800 इकाइयाँ ।
(ग) पूर्ति वक्र अपने बाई और खिसक जाएगा।
प्रश्न 4. मान लीजिए एक विशेष वस्तु के मांँग वक्र तथा पूर्ति वक्र के समीकरण
निम्नलिखित हैं। कीमत तथा मात्रा ज्ञात करने के लिए समीकरण को हल करें-
Qd = 8096-3596P
Qs =500+4000P
उत्तर-साम्य कीमत पर Qd =Qs अर्थात् मांँग की मात्रा पूर्ति की मात्रा के बराबर होती
है।
अतः 8096-3596P=500+4000P
अथवा, -3596P-4000P=500-8096
अथवा, -7596P=-7596
अतः कीमत = 1 रुपया
साम्य मात्रा = 8096-3596 P = 8096-3596 = 4500 इकाइयाँ ।
अथवा, साम्य मात्रा = 500 +4000 P = 500+ 4000 = 4500 इकाइयाँ ।
प्रश्न 5. ऑडियो कैसेट के मांग तथा विपरीत पूर्ति वक्र का समीकरण नीचे दिया
गया है-
P= 2Qs
P= 42Qd.
साम्य कीमत की गणना करें।
उत्तर- P=42Qs
2Qs =P
                  P
अथवा, Qs=—–                    ………(i)
                   2
P = 42-Qd (दिया हुआ है)
P+Qd= 42
अथवा, Qd = 42 – P              ………..(ii)
                      P       42-P
(i) तथा (ii) से,—–=———-
                       2         1
अथवा,      P = 84 – 2P
अथवा,      P+2P= 84
अथवा,    3P = 84
अथवा,      P=28
अत: साम्य कीमत = 28 रुपये।
प्रश्न 6.(क) निम्नलिखित समीकरण से साम्य कीमत तथा मात्रा की गणना करें।
Qd =10 – P
Qs = P
(ख) (i) बाजार में मांँग तथा पूर्ति की क्या स्थिति होगी यदि बाजार मूल्य 7 रुपए
है ? (ii) बाजार में मांँग तथा पूर्ति की क्या स्थिति होगी यदि बाजार कीमत 3 रुपये है ?
उत्तर-(क) साम्य कीमत पर मांँग तथा पूर्ति बराबर होते हैं। अत:
               Qd = QS
अथवा,      10 – P = P
अथवा,      -2P = -10
                   P = 5
साम्य कीमत (माँग पक्ष) = 10 – P = 10 – 5 = 5
अथवा, साम्य कीमत (पूर्ति पक्ष) = P = 5.
(ख) (i) साम्य कीमत 5 रुपए है और बाजार कीमत रुपये है अर्थात् बाजार कीमत साम्य
कीमत से अधिक है। इस स्थिति में बाजार में आधिक्य पूर्ति की स्थिति उत्पन्न होगी।
(ii) अब बाजार कीमत 3 रुपये हैं और साम्य कीमत 5 रुपये है। इसका अर्थ है कि
बाजार कीमत साम्य कीमत से कम है। ऐसी स्थिति में बाजार में आधिक्य माँग होगी।
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