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 Bihar Board 12th Hindi Book 50 Marks Solutions पद्य Chapter 3 भारत माता ग्रामवासिनी

Bihar Board Class 12th Hindi Book 50 Marks Solutions पद्य Chapter 3 भारत माता ग्रामवासिनी

भारत माता ग्रामवासिनी अर्थ लेखन

प्रश्न 1. अर्थ स्पष्ट करें
भारत माता ग्राम वासिनी
खेतों में फैला है श्यामल
धूल-भरा मैला-सा आँचल
गंगा-यमुना में आँसू-जल
मिट्टी की प्रतिमा उदासिनी
उत्तर-
कवि श्री सुमित्रानंद पंत कहते हैं कि भारतमाता ग्रामवासिनी है अर्थात् भारतमाता की आत्मा गाँव में निवास करती है। भारतीय किसान, खेतों में काम करते हैं। केवल किसान ही नहीं, बल्कि पूरा परिवार खुले आकाश के नीचे प्रात:काल से संध्या तक, खेतों और मैदानों में खेती तथा पशु चरण कार्य में लगे होते हैं। फिर भी वे बहुत ही गरीब और पिछड़े हुए हैं। धूल-भरा मैला-सा आँचल उनकी गरीबी का चिह्न है। उनका उदास चेहरा, आँसू भरी आँखें दुःख की प्रतिमा है। कवि की कल्पना है कि भारतमाता अपने संतानों को दु:खी देख कर आँसू बहाती है। गंगा-यमुना में भारतमाता के आँसू जल प्रवाह के रूप में बह रहे हैं। .

प्रश्न 2.
अर्थ स्पष्ट करें
तीस कोटि सन्तान नग्न तन,
अर्थ क्षुधित, शोषित, निरस्त्रजन,
मूढ़, असभ्य, अशिक्षित, निर्धन
नतमस्तक तरू तल निवासिनी।
उत्तर-
कवि श्री सुमित्रानंद पंत कहते हैं कि भारतमाता जो ग्रामवासिनी है अत्यंत दु:खी है। उसको इस बात के लिए अधिक दुःख है कि महानगरों में विकास कार्य हुआ है। यहाँ की चमक-दमक और आर्थिक खुशहाली की तुलना में गाँव की बदहाली चिंता का विषय बन गया है।

गाँव की. तीस करोड़ से अधिक जनता को नग्न तन, भूखा, अभावग्रस्त और शोषित देखकर भारतमाता दु:खी और उदास है। क्योंकि गाँव के निवासी असभ्य, अशिक्षित तथा निर्धन होने के कारण पिछड़े हुए हैं। अधिकतर लोग तो ऐसे भी हैं कि रहने का निवास स्थान नहीं रखते हैं। वृक्षों के नीचे निवास करते हैं।

प्रश्न 3.
अर्थ स्पष्ट करें
स्वर्ण शस्य पर पद-तल लुंठित,
धरती-सा सहिष्णु मन कुंठित,
क्रन्दन कंपिता उधर मौन स्मित
राहु ग्रसित,
शरदेन्दु हासिनी।
उत्तर-
कवि श्री सुमित्रानंदन पंत कहते हैं कि कहने को तो भारतमाता की धरती बहुत ही उपजाऊ है, प्राकृतिक सम्पदा से समृद्ध है, लेकिन भारतवासी निर्धन हैं। उनका मन कुंठित है। कवि भारतमाता को दुःख की प्रतिमा के रूप में प्रस्तुत करने के बाद, भारतवासियों से आशा करता है कि अहिंसा, सत्य और तप संयम के मार्ग पर चल कर वे अवश्य सफल होंगे। जग जननी भारतमाता जीवन विकासिनी के रूप में हमारे लिए मार्गदर्शक बन कर आयगी।

प्रश्न 4.
अर्थ स्पष्ट करें
चिंतित मृकुटि क्षितिज तिमिरांकित
नामित नयन नभ वास्पाच्छादित
आनन-श्री छाया-शशि उपमित,
ज्ञान मूढ़, गीता प्रकाशिनी।
उत्तर-
पंत ने भारतमाता के मूर्त स्वरूप का मानवीकरण करते हुए उसकी मानसिक स्थितियों का विवेचन किया।

कवि कहता है कि भारतमाता की मृकुटि पर चिंता की रेखाएँ उभर गयी हैं। क्षितिज पर

मुखमंडल पर चन्द्रमा की सुंदर छाया दृष्टिगत होती है। जो मूढ़ है उनको गीता-ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित करनेवाली हैं।

इस पंक्तियों का मूल भाव यह है कि भारतमाता का स्वरूप विराट है। अपनी संततियों की पीड़ा, क्लेश, अभावग्रस्तता एवं मूढ़ता से भारतमाता चिंतित हैं। वह हर जन-जन में गीता ज्ञान चाहती है।

प्रश्न 5.
अर्थ स्पष्ट करें
सफल आज उसका तप संयम,
पिला अहिंसा स्तन्य सुधो पभ,
हरती जन-मन भय, भव-तम-भ्रम
जग-जननी, जीवन-विकासिनी।
उत्तर-
महाकवि पंत ने उपरोक्त काव्य पंक्तियों में भारतमाता के जीवंत स्वरूप का चित्रण करते हुए उनकी मनोभावनाओं को सटीक चित्रण किया है। कवि कहता है कि आज भारतमाता का संयमित तपस्या सफल सिद्ध हुई है। अपने स्तन से अहिंसा रूपी उत्तम सुधा का पान कराकर जन-जन के मन का भय का हरती हैं। साथ ही भाव रूपी अंधकार एवं भ्रम से भी मुक्ति दिलाती हैं। भारतमाता जगत की जननी हैं। वे जीवन को विकास के शिखर पर पहुँचाने वाली माँ है।

उपरोक्त पंक्तियों में कवि ने भारत माँ के स्थूल स्वरूप का जीवंत रूप में चित्रण किया है। उस जीवंत स्वरूप में मानवीय गुणों का उल्लेख किया है साथ ही अपनी संततियों की रक्षा, प्रगति, सेवा के लिए चिंतित करुणामयी माँ का चित्रण किया है।

इस कविता का मूल भाव यह है कि भारतमाता करुणामयी हैं, दयामयी हैं। उन्हें अपने सपूतों के सुख-दुख की चिंता है। उनके भीतर भौतिक चाहे आध्यात्मिक किसी भी प्रकार का ताप, यह भ्रम नहीं रहे, यही उनकी कामना है।

भारत माता ग्रामवासिनी अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतमाता की आत्मा कहाँ निवास करती है?
उत्तर-
भारतमाता की आत्मा गाँवों में निवास करती है।

प्रश्न 2.
भारतीय कृषक की गरीबी का चिह्न क्या है?
उत्तर-
भारतीय कृषक की गरीबी का चिह्न है धूल-भरा मैला-सा आँचल।

प्रश्न 3.
भारत माता के आँसू के रूप में कौन निरन्तर बहती रहती है?
उत्तर-
गंगा और यमुना।

प्रश्न 4.
हमारा परम सौभाग्य क्या है?
उत्तर-
हमारा परम सौभाग्य भारतमाता की संतान होने का है।

प्रश्न 5.
भारतमाता की धरती कैसी है?
उत्तर-
भारतमाता की धरती अत्यधिक उर्वरा है।

प्रश्न 6.
‘बूढ़ा चाँद’ किसी रचना है?
उत्तर-
सुमित्रानन्दन पंत की।

प्रश्न 7.
भारतमाता ग्रामवासिनी शीर्षक कविता में कवि ने भारत माता को किस रूप में चित्रित किया है?
उत्तर-
कवि ने भारतमाता को देश की आत्मा गाँवों में निवास करनेवाली माँ के रूप में चित्रित किया है।

प्रश्न 8.
“भारतमाता ग्रामवासिनी”, किसकी रचना है?
उत्तर-
‘सुमित्रानंदन पंत’ की।

प्रश्न 9.
“युगवाणी” किसकी रचना है?
उत्तर-
सुमित्रानंदन पंत की।

प्रश्न 10.
श्री सुमित्रानंदन पंत को “चिदम्बरा” के लिए कौन-सा पुरस्कार मिला था?
उत्तर-
ज्ञानपीठ।

भारत माता ग्रामवासिनी लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित कविता “भारत माता ग्रामवासिनी” का सारांश लिखिए।
उत्तर-
प्रकृति के सुकुमार कवि श्री सुमित्रानंदन पंत ने “भारत माता ग्रामवासिनी” शीर्षक कविता में भारत माता को देश की आत्मा कहा है जिसको गाँव में निवास करने वाली माँ के रूप में चित्रित किया गया है। यह माँ अपनी करोड़ों संतानों को भूखा, नंगा, अभावग्रस्त और . शोषित देखकर अत्यन्त दुखी और उदास है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सुमित्रानंदन पंत के जीवन और व्यक्तित्त्व का एक सामान्य परिचय प्रस्तुत करें।
उत्तर-
प्रकृति के सुकुमार कवि के नाम से व्याख्यात सुमित्रानंदन पंत का जन्म सन् 1900 ईस्वी में हुआ और जीवन के 70 वसन्त देखने के उपरान्त सन् 1970 ईस्वी में उनका परलोकवास हुआ। जन्म के कुछ ही साल बाद मातृहीन हो जाने के कारण उनका पालन-पोषण पिता और. दादी की देख-रेख में हुआ। अल्मोड़ा जिले के कौसानी नामक ग्राम में जन्म ही नहीं उनकी आरंभिक शिक्षा-दीक्षा भी हुई थी।

समित्रानन्दन पंत सन 1918 ई. में मँझले भाई के साथ बनारस आ गये और जयनारायण हाई स्कूल में पढ़ने लगे। सन् 1919 ई. में प्रयाग के म्योर कॉलेज में भर्ती हुए। मँझले भाई के कहने पर सन् 1921 ई. में कॉलेज छोड़ दिया पर सुकूमार चेतना से युक्त व्यक्तित्त्व होने के चलते सत्याग्रह में सक्रिय भाग नहीं ले सके। उसके बाद किसी शिक्षण संस्थान में संबंद्ध नहीं हुए पर स्वाध्याय और काव्य-सृजन को अबाध रूप में जारी रखा।

सुमित्रानन्दन पंतजी में काव्य-सृजन का आरंभ उनकी सात वर्षों की उम्र से ही हो गया था। तब वे चौथी कक्षा के छात्र थे। तब से 1918 ई. तक के काल को उन्होंने अपने काव्य का आरंभिक काल माना है। अल्मोड़ा की प्रकृति के साथ ही बड़े भाई के द्वारा ‘मेघदूत’ सस्वर पाठ और उनके धार्मिक वातावरण ने उनके बाल मन को गहराई तक प्रभावित किया। सन् 1918 ई. के पूर्व ही वे अल्मोड़ा अखबार बेंकटेश्वर समाचार और सरस्वती जैसी उच्चस्तरीय साहित्यिक पत्रिका के नियमित पाठक हो चुके थे।

वाराणसी के प्रवास-काल में पंतजी को रवीन्द्रनाथ टैगोर, सरोजनी नायडू और वडंसवर्थ जैसे रोमांटिक अंग्रेजी कवि के काव्य से परिचित होने का मौका मिला। काशी में उन्होंने प्रभृत रचनाएँ भी की जिनमें उपर्युक्त महाकवियों का गहरा प्रभाव पड़ता है। सन् 1922 ई. में “उच्छवास” का प्रकाशन हो चुका था। लेकिन उनकी काव्य प्रतिभा का पूर्ण विकास पल्लव में दिखाई पड़ता है। “पल्लव” का प्रकाशन सन् 1928 ई. में हुआ था। “उच्छावास” ग्रंथी, पल्लव, गुंजन और ज्योत्सना पंतजी के छापावादी काल की प्रमुख रचनाएं हैं।

“युगान्त” का प्रकाशन सन् 1936 ई. में हुआ और उसमें ही सर्वप्रथम पंतजी ने छायावाद युग के अंत की घोषणा कर, प्रगतिवाद के पथ पर अपनी काव्य यात्रा के आरंभ की सूचना दे दी। ‘ग्राम्या’ और ‘युगवाणी’ उनकी प्रगतिवादी कविताओं के प्रतिनिधि संग्रह हैं। लेकिन तबकी प्रगतिवादी सिद्धांतवादिता की शुष्कता के साथ उनका सुकुमार कलाकार मन अधिक दिनों तक नहीं चल सका और सन् 1940 के बाद प्रगतिवाद की संकीर्णता से उन्होंने अपने को मुक्त कर लिया।

सन् 1931 ई. में पंतजी कलाकांकर में कुँवर ब्रजेश सिंह के आतिथ्य में रहे थे और अपनी “नौका बिहार” शीर्षक प्रसिद्ध कविता की रचना वहीं की थी।

सन् 1943 ई. में पंतजी भारत भ्रमण किया था और उसी दौरान मद्रास में महर्षि अरविन्द के उर्ध्व चेतनावाद के संपर्क में आये थे। अरविन्द का उनके तत्कालीन काव्य पर गहरा प्रभाव दिखाई पड़ाता है। लेकिन कुछ काल के उपरांत उसकी सीमा से बाहर आ उन्होंने सवात्मवाद

को अपना लिया था। पंतजी सन् 1950 ई. में ‘आल इण्डिया रेडियो’ परामर्श दाता के पद पर नियुक्त हुए इस पद पर वे 1957 ई. तक रहे थे। “कला और बूढ़ा चाँद” पर साहित्य अकादमी और चिदम्बरा पर ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी पंतजी सम्मानित किये गये थे।

सुमित्रानन्दन पंतजी जीवनभर कबीर रहे। दोहरे लम्बे घुघराले सजे बाल पर सौंदर्य से दीपित मुख मण्डल से युक्त उनका व्यक्तित्त्व काफी आकर्षक था। काव्य पात के समय उनके गले का माधुर्य श्रोताओं को मुग्ध कर लेता था।

उनके प्रमुख काव्य ग्रंथ निम्नलिखित है-

  • उच्छवास 1920 ई.
  • ग्रंथि 1920 ई.
  • वीणा 1927 ई.
  • पल्लव 1928 ई.
  • गुंजन 1932 ई.
  • युगान्त 1936ई.
  • युगवाणी 1939 ई.
  • ग्राम्या 1940 ई.
  • स्वर्ण किरण 1947 ई.
  • स्वर्णधूल 1947 ई.
  • उत्तरा 1949 ई.
  • चिदम्बरा 1959 ई.
  • कला और बूढ़ा चाँद 1959 ई.
  • लोकायतन 1964 ई.

भारतमाता ग्रामवासिनी कवि-परिचय – सुमित्रानंदन पंत (1900-1970)

सुमित्रानंदन पंत हिन्दी के कालजयी कवि हैं। उनका जन्म 20 मई, 1900 ई. को उत्तरांचल राज्य के कौसानी में हुआ था। बचपन में माँ के प्यार से वे वंचित हो गये। पिता और दादी की छाया में उनकी काव्य प्रतिभा के पंख अल्मोडा की नैसर्गिक सुषमा के बीच खुले। 1918 में अपने मँझले भाई के साथ बनारस आने पर उनका सम्पर्क सरोजनी नायडू और कविवर रवीन्द्रनाथ टैगोर के साथ हुआ। सरोजनी नायडू के सम्पर्क में आने पर वे अंग्रेजी की रोमांटिक काव्यधारा से परिचित हुए।

पंतजी के काव्य में जग जीवन के सामाजिक, भौतिक और नैतिक मूल्यों की प्रेरणा के साथ-साथ आध्यात्मिक उन्नयन का स्वर भी मिलता है। युगान्त से प्रारम्भ ‘प्रगतिशीलता ग्राम्य’ या तक चली और उसके बाद अरविन्द से प्रभावित होकर स्वर्ण धूलि और उत्तरा की रचना की। उनकी इन रचनाओं में अरविन्द दर्शन के नव मानवतावाद के दर्शन होते हैं। काव्य के अतिरिक्त उन्होंने नाट्य, कहानी और निबंध की भी रचना की लेकिन उनकी प्रसिद्धि मूलतः कवि के रूप में ही है। शब्द शिल्पी के रूप में विख्यात उनकी काव्य गाथा कवि की कल्पना और मन की तरंग के अनुरूप ही माधुर्य एवं प्रसाद गुण से मुक्त और व्यंजक है।

पंतजी ने हिन्दी साहित्य को एक नया आयाम दिया, हिन्दी की सेवा के प्रति उनकी देन से प्रभावित होकर उन्हें ‘कला और बूढ़ा चाँद’ पर साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिला। चिदम्बरा पर उन्हें ‘ज्ञान-पीठ’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-

  • उच्छवास,
  • ग्रंथि,
  • वीणा,
  • पल्लव,
  • गुंजन,
  • युगान्त,
  • युगवाणी,
  • ग्राम्या,
  • स्वर्ण किरण,
  • स्वर्णधूलि;
  • उत्तरा,
  • रजत शिखर,
  • कला और बूढ़ा चाँद,
  • ज्योत्सना (नाटक),
  • लोकायतन। विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
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