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 Bihar Board 12th Hindi Book 50 Marks Solutions पद्य Chapter 1 रहीम के दोहे

Bihar Board Class 12th Hindi Book 50 Marks Solutions पद्य Chapter 1 रहीम के दोहे

अर्थ लेखन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित दोहे का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
रहिमन वे नर मर चुके, जे कहुँ माँगन जाहिं।
उनते पहले वे मुए, जिन मुख निकसत नाहिं॥१॥
उत्तर-
इस दोहे में रहीम कवि कहते हैं कि माँगना एक अपमानजनक कार्य है। मांगने वाले व्यक्ति मृत समान होते हैं। उनमें लाज, शर्म और मार्यादा इत्यादि का अभाव होता है। पहले अन्दर का आत्मबल मर जाता है, फिर धीरे-धीरे मानसिक और शारीरिक शक्ति समाप्त हो जाती है। ऐसा असहाय, निर्बल व्यक्ति मृत समान होता है। उसकी सेवा करना, सहयोग देना, मानव का कर्तव्य है। दया करना धर्म है लेकिन यदि ऐसे निर्बल और असहाय मांगने वाले व्यक्ति को दान देने से कोई हाथ खींचता है। साधन रखते हुए भी यदि कोई धनवान व्यक्ति असहाय की सेवा नहीं करता है तो रहीम कवि कहते हैं कि असहाय और निर्बल से पहले वह धनवान मर चुका होता है जिसके मुँह से नकारात्मक शब्द निकलते हैं।

इस दोहे में दान, दया, सहयोग को उत्तम कार्य के रूप में पेश किया गया है। माँगना यदि एक सामाजिक बुराई है, तो धन रखते हुए सहयोग न देना कंजूसी या कठोरता नहीं बल्कि मानव- . हीनता का कार्य है और ऐसा व्यक्ति वास्तव में मृत समान होता है। .

प्रश्न 2.
निम्नलिखित दोहे का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरै, मोती मानुस चून॥२॥
उत्तर-
इस दोहे में कवि रहीम ने पानी शब्द के श्लिष्ट प्रयोग द्वारा उनके अर्थों में उसके महत्त्व पर प्रकाश डाला है। रहीम कहते हैं कि पानी का अनिवार्य महत्त्व होता है। इसलिए हर मूल्य पर इसकी रक्षा की जानी चाहिए। इसके अभाव में मोती, मनुष्य और चूना के लिए तो कुछ भी नहीं बच जाता है।

मोती, मनुष्य और चूना इन तीनों के संदर्भ में पानी के अलग-अलग तीन अर्थ निकालते हैं। मोती के संदर्भ में इसका अर्थ चमक है, जिसे आभा या उर्दू में आब भी कहते हैं। आब पानी : की ही उर्दू पर्यायवाची शब्द है। इस आब या पानी अर्थात् स्वाभाविक चमक के समाप्त हो जाने पर मोती रत्न भी सर्वथा मूल्यहीन हो जाता है। इसलिए इसकी रक्षा की जानी चाहिए।

मनुष्य के संदर्भ में पानी का अर्थ प्रतिष्ठा है। व्यक्ति की प्रतिष्ठा नष्ट हो जाने पर उसका कोई मूल्य नहीं रह जाता। उसमें निरर्थकता आ जाती है। प्रतिष्ठित व्यक्ति को पानीदार व्यक्ति भी कहा जाता है। प्रतिष्ठा चले जाने के बाद उसके पास कुछ नहीं बंच जाता। इसलिए हर मूल्य पर उसे पानी अर्थात् प्रतिष्ठा की रक्षा करनी चाहिए।

चूने के संदर्भ में पानी का अर्थ जल है। जल सूख जाने पर चूना किसी उपयोग के लायक नहीं रह जाता। उसे खाने या लगाने की उपयोगिता तभी तक रहती है जबतक उसमें पानी रहता है। पानी समाप्त हो जाने के बाद अनुपयोगी धूल जैसा रह जाता है। इसलिए हर सूरत में उसके लिए पानी की रक्षा करनी चाहिए।

श्लेष अलंकार के उदाहरणं के रूप में यह दोहा सबसे अधिक प्रसिद्ध है। इसमें पानी श्लिष्ट पद है। शिल्ष्ट का अर्थ होता है-अनेक अर्थों वाला है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित दोहे का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
रहिमन, जिह्वा बावरी, कहि गयी सरग-पतार।
आपु तो कहि भीतर गयी, जूती खात कपार॥३॥
उत्तर-
इस दोहे में कवि रहीम कहते हैं कि जिह्वा के महत्त्व को समझना चाहिए। बोली एक अमूल्य धन है। अच्छी और मीठी बोली हमें सम्मानित करती है। हमारी प्रतिष्ठा, हमारे भाव और भाषा से बढ़ती है। उसके विपरीत यदि कोई अपनी जिह्वा से अपशब्द निकालता है, किसी का दिल दुःखाने वाला अपमानजनक शब्द बोलता है तो उस दुष्ट व्यक्ति को जूतों से स्वागत किया जाता है। उसके कपार जूतों के चोट से घायल हो जाते हैं। इस प्रकार जिह्वा के कारण ही अपमानित होना पड़ता है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित दोहे का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
नाद रीझि जन देत मृग, नर धन हेतु-समेत।
ते रहीम पसु ते अधिक, रीझेहु कछू न देत॥४॥
उत्तर-
इस दोहे में कवि रहीम ने धन के लिए हाय-हाय करने वाले कपण व्यक्तियों को पशुओं से भी अधिक निकृष्ट माना है। क्योंकि मधुर संगीत सुनकर हिरण अपने प्राण दे देती है लेकिन धनलोलुप व्यक्ति प्रसन्न होकर कुछ भी नहीं देता है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित दोहे का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
धनि रहीम जल पंक को, लघु जिय पियत अघाई।
उदधि बड़ाई कौन है, जगत पियासो जाई॥५॥
उत्तर-
रहीम कवि कहते हैं कि पंक में जमा हुआ जल ही धन्य है, क्योंकि छोटे-छोटे जीव-जंतु, पशु-पक्षी पंक-युक्त जल पीकर अपनी प्यास बुझाते हैं।

जल का अथाह भण्डार रखने वाले समुद्र की बड़ाई कौन करे क्योंकि उसके खारापन के कारण सारा संसार बिन प्यास मिटाये ही रहता है।

कवि के कहने का मूलभाव यह है कि आकार-प्रकार के श्रेष्ठता साबित नहीं होती। गुणवत्ता के आधार पर ही किसी भी महत्ता सिद्ध होती है।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित दोहे का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
रहिमन, राज सराहिये, ससि सम सुखद जो होई।
कहा बापुरो भानु है, तपै तरैयनि खोई॥६॥
उत्तर-
इस दोहे में रहीम कवि कहते हैं कि शशियानी चंद्रमा के समान शीतल एवं लिग्ध सुख देनेवाला ही राजा सराहनीय है। जिस राजा में दया, न्याय, रक्षा, सुरक्षा और करुणा है वहीं सुखदायी है। निष्ठुर और अत्याचारी राजा तो पुजा को दुःख ही देता है।

सूर्य तो बड़ा है किन्तु दिनभर अपने ताप से सबको कष्ट पहुंचाता है। वह राजा सदृश होकर भी दिनभर अपनी उष्णता से बेचैन किए रहता है।

इन पंक्तियों का मूलभाव यह है कि बड़ा होने का अर्थ है-उसमें कल्याणकारी भावना हो, सुखदायी पल सुलभ हो। अगर उसके रहने से कष्ट ही कष्ट मिले तो बड़ा होने की महत्ता नहीं रह जाती है।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित दोहे का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
ज्यों रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो करै, बड़े अंधेरो होय॥७॥
उत्तर-
इस दोहे में रहीम कवि कहते हैं कि जैसी गति दीपक की होती है, ठीक वहीं गति कुल के कपूत की होती है। दीप को जलाने पर चारों तरफ प्रकाश तो फैलाता है किन्तु उसके निकट अंधेर नहीं अंधेरा रहता है।

ठीक उसी प्रकार जब किसी खानदान में पुत्र की पैदाइश होती है तो प्रसन्नता की लहर दौड़ जाती है। चारों तरफ खुशियाँ ही खुशियाँ छा जाती है। लेकिन वही पुत्र कपूत के रूप में आगे . बढ़ने लगता है यानि सयाना होने पर खानदान की प्रतिष्ठा को विनष्ट कर देता है। इस दोहे के मूलभाव यह है कि कपूत कभी भी कुल-वंश के लिए शोभनीय या लाभकारी नहीं होता। उसके कुकूत्सों से खानदान की प्रतिष्ठा घूल-घुसरित हो जाती है।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित दोहे का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
माँगे घटत रहीम पद, कितौ करौ बड़ काम।
तीन पैर बसुधा करी, तऊ बावनै नाम॥८॥
उत्तर-
इस दोहे में कवि रहीम कहते हैं कि माँगने से मनुष्य की महत्ता घट जाती है चाहे वह कितना ही बड़ा काम क्यों न करे। विष्णु ने मात्र तीन पग चलकर पूरी पृथ्वी को नाम लिया फिर भी वह वामन ही कहलाते हैं। अर्थात् माँगना एक घटिया काम है जो मान और मर्यादा को कम करता है।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित दोहे का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
रहिमन, निज मन की व्यथा, मन ही राखो गोय।
सुन अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय॥९॥
उत्तर-
इस दोहे में कवि रहीम कहते हैं कि यह संसार बहुत ही कुटिल है। इसलिए कवि ने अपनी व्यथा दूसरों के सामने न प्रकट करने की सलाह दी है, क्योंकि कोई व्यक्ति दु:ख बाँटता नहीं है लेकिन दु:ख का मजाक जरूर उड़ाता है।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित दोहे का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
जो रहीम ओछौ बढ़े, तो अति ही इतराइ।
प्यादा सों फरजी भयो, टेढ़ो-टेढ़ो जाइ॥१०॥
उत्तर-
इस दोहे में कवि रहीम कहते हैं कि क्षुद्र लोग अपी जरा-सी समृद्धि या विकास पर इठलाने लगते हैं। वे लोग शतरंज के प्यादों के समान हैं, जो मात्र फर्जी बनने पर ही टेढ़ी चाल चलने लगते हैं।

रहीम के दोहे अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
रहीम का पूरा नाम क्या था?
उत्तर-
रहीम का पूरा नाम अब्दुर्रहीम खान-खाना था।

प्रश्न 2.
रहीम के पिता का नाम क्या था?
उत्तर-
रहीम के पिता का नाम बैरम खाँ था।

प्रश्न 3.
अकबर ने रहीम को कहाँ की जागीर दी थी?
उत्तर-
अकबर ने रहीम को पाटन की जागीर दी थी।

प्रश्न 4.
रहीम के कितने ग्रंथ आज उपलब्ध हैं?
उत्तर-
रहीम के कुल ग्यारह ग्रंथ आज उपलब्ध हैं।

प्रश्न 5.
रहीम लिखित दोहावली में कितने दोहों का संग्रह है?
उत्तर-
तीन सौ दोहों का।

प्रश्न 6.
रहीम के अनुसार भीख माँगना कैसा कार्य है?
उत्तर-
रहीम के अनुसार भीख माँगना एक अपमानजनक कार्य है।

प्रश्न 7.
रहीम ने ‘पानी’ शब्द का अर्थ कितने अर्थों में अपने पद्य में प्रयोग किया है?
उत्तर-
रहीम ने ‘पानी’ शब्द का प्रयोग तीन अर्थों में किया है-

  • मोती के संदर्भ में-चमक।
  • मनुष्य के संदर्भ में-प्रतिष्ठा
  • चूना के संदर्भ में-जल

प्रश्न 8.
धन के लिए हाय-हाय करने वाले को रहीम ने क्या कहा है?
उत्तर-
धन के लिए हाय-हाय करने वाले को रहीम ने पशु से भी अधम कहा है।

प्रश्न 9.
कवि रहीम का जन्म किस ईस्वी में हुआ था?
उत्तर-
1556 ई. में

प्रश्न 10.
बैरम खां की हत्या कहाँ हुई थी?
उत्तर-
गुजरात के पाटन नगर में

प्रश्न 11.
कवि रहीम की पदवी क्या थी?
उत्तर-
खान खाना।

प्रश्न 12.
रहीम के दोहों की भाषा क्या है?
उत्तर-
अवधी।

प्रश्न 13.
“नगर शोभा” किसकी काव्य रचना है?
उत्तर-
रहीम की।

प्रश्न 14.
“वरवै नायिका-भेद’ किस भाषा का सर्वोत्तम ग्रंथ है?
उत्तर-
अवधी का।

प्रश्न 15.
कवि रहीम की कुल कितनी रचनाएँ हैं? उत्तर-11

रहीम के दोहे लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘रहिमन वे नर मर चुके’ का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
किसी से याचना करने वाला नीचे गिर जाता है।

रहीम कवि कहते हैं कि वे नर मर चुके हैं जो कहीं कुछ माँगने जाते हैं। माँगने से मनुष्य का मान-गौरव नीचे गिर जाता है।

लेकिन, उनसे भी पहले वे नर मर चुके हैं, जो माँगने पर नहीं कह देते हैं। अर्थात् यदि किसी ने विवशतावश कुछ माँग ही दिया है, तो उसे दे देना चाहिए।

निष्कर्षतः मनुष्य को अपना आत्मगौरव बनाए रखना चाहिए।

प्रश्न 2.
‘रहिमन पानी राखिए’ का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर-
कविवर रहीम के इस दोहे में ‘पानी’ के तीन अर्थ प्राप्त होते हैं-चमक, इज्जत और जल। रहीम कवि कहते हैं कि जीवन में पानी की सार्थकता विशद्-विस्तृत है। इसे हर हालत में बचाकर रखना चाहिए। पानी के बिना सब सूना-सूना हो जाता है।

उदाहरण देते हुए कवि ने बतलाया है कि इन तीनों चीजों में क्रमश: मोती का पानी अर्थात् मोती की चमक; मनुष्य का पानी अर्थात् मनुष्य की इज्जत या बड़प्पन और चूने का पानी अर्थात् चूने की चिपकने की शक्ति है।

इन तीनों अर्थों में चमक, इज्जत और जल के रूप में पानी को परिभाषित किया गया है। पानी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। दोहा इस प्रकार है

‘रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न उबरे, मोती, मानुष, चून॥

प्रश्न 3.
‘रहिमन निज मन की व्यथा’ का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
इस दोहे में रहीम ने मनुष्य के ईर्ष्यालु स्वभाव पर चोट की है।

रहीम कवि कहते हैं कि अपने मन की व्यथा, मन के दर्द, हृदय की टीस को मन में ही छिपाकर रखना चाहिए। उसे किसी के सामने प्रकट नहीं करना चाहिए। उसे सुनकर वे मन-ही-मन प्रसन्न होने लगते हैं। वे दूसरों के दर्द को जानकर इठलाने लगते हैं। उसे कम करने का प्रयास कोई श्रोता नहीं करता है।

निष्कर्षतः, हमें अपने हृदय में लगी चोट को यथाशक्ति-यथासम्भव छिपाकर रखना चाहिए।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
रहीम के दोहे का सारांश लिखें।
उत्तर-
रहीम का पूरा नाम अब्दुर्रहीम खनखाना था। वे मध्ययुगीन दरबारी संस्कृति के प्रतिनिधि कवि हैं। रहीम अपने वरवै छन्द के लिए प्रसिद्ध हैं।

प्रस्तुत पाठ में संकलित दोहों में जीवन को मानवीय दृष्टि से सुन्दर और प्रीतिकर बनाने के उद्देश्य से सामान्य जीवन से ली गई उपमाओं एवं रूपकों द्वारा जीवन-धर्म गहरी बातें अत्यन्त सहज एवं सरस भाषा में कही गई हैं।

प्रथम दोहे में मनुष्य के आत्म गौरव महिमा का बखान किया गया है। दूसरे दोहे में मनुष्य के जीवन में पानी के महत्त्व को व्यजित किया है। जैसे-एक ही पानी है जो मोती, मनुष्य तथा चूने की सार्थकता प्रदान करता है। तीसरे दोहे में विवेक शून्य जीभ के द्वारा होने वाले अनर्थ का वर्णन किया है। चौथे दोहे में रहीम ने धन के लिए हाय-हाय करने वाले कृषण व्यक्तियों को पशुओं से भी अधिक निकृष्ट माना है। पांचवें दोहे में कवि ने चन्द्रमा और सूर्य की तुलना की है जिसमें चन्द्रमा अपनी शीतल रोशनी से सबको आनन्द और सूर्य अपने ताप से सबको झुलसा देता है।

छठे दोहे में कुपुत्र की तुलना दीपक से की है। सातवें दोहे में कवि ने मांगने को निकृष्ट माना है। आठवें दोहे में कवि ने मनुष्य को अपनी व्यथा दूसरों से नहीं कहने की सलाह दी है क्योंकि वह उपहास का पात्र बन जाता है। नौवें दोहे में कवि ने जलपंक और समुद्र की बड़ी हिन्दी ही सटीक तुलना की है जिसमें जलपंक पीकर छोटे जीवन संतुष्ट होते हैं मगर समुद्र में खारापन के कारण लोग प्यासे रह जाते हैं।

सारांशतः कवि ने अपने रोचक दोहे के माध्मय से मानव जीवन में आनेवाले गुण-दोषों की . बड़ा ही सफल चित्रण किया है।

प्रश्न 2.
कवि रहीम के जीवन का एक संक्षिप्त परिचय लिखिए।
उत्तर-
जिन मुसलमान कवियों ने अपनी कविताओं द्वारा साहित्य को समृद्धि प्रदान की है उनमें . रहीम, अति महत्त्वपूर्ण हैं। उनके नीतिपूरक दोहों की लोकप्रियता को देखकर अन्दाजा नहीं लगाया जा सकता कि उन महान कवि का जीवन विविधताओं से ही नहीं विषमताओं से भी भरा रहा होगा। सम्राट अकबर ने प्रतिपालक, अभिभावक और मंत्री बैरम खां के पुत्र के रूप में रहीम का जन्म 1556 ई. में हुआ था। कुल सत्तर वर्षों तक जीवित रहने के उपरांत सन् 1626 ई. में उनका देहावसान हुआ।

रहीम का पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना था। रहीम शब्द का अर्थ रहम करने वाला होता है और रहीम के व्यक्तिगत स्वभाव पर इस नाम की पूरी सार्थकता दिखाई पड़ती थी। वे स्वभाव से ही दानी, दयालु, विद्या प्रेमी और कवि तो थे ही, एक सफल दरबारी और बहुत उच्चकोटि के योद्धा भी थे। केशव दास, गंग, मंडल, नरहरि आदि रीतिकालीन कवियों ने रहीम की प्रशंसा की है।

रहीम के पिता बैरम खाँ ने अकबर का पालन-पोषण किया था और जब गुजरात के पाटन नगर में बैरम खाँ की हत्या कर दी गई, तब पाँच वर्षीय रहीम के लाल-पालन का दायित्व स्वयं अकबर ने पूरा किया। रहीम आरंभ से ही अपनी चहुमुखी प्रतिभा तथा दक्षता की बदौलत लगातार सफलताओं की सीढ़ियाँ चढ़ते गये। सन् 1572 ई. में गुजरात की चढ़ाई से प्रभावित होकर सोलह वर्षीय रहीम को अकबर ने पाटन की जागीर प्रदान कर दी थी।

उसके चार वर्षों बाद गुजरात पर विजय पाने के उपरांत उन्हें वहाँ की सूबेदारी मिली। विभिन्न अवसरों पर अपनी दक्षताओं का परिचय देते हुए उन्होंने अकबर को इतना प्रभावित किया था कि उसने उन्हें मरि अर्जुः खान-खाना और वकील की पदवी से सम्मानित किया था। शाहजादा दनियाल की मृत्यु तथा अबुल-फजल की हत्या के बाद तो उन्हें संपूर्ण दक्षिण का पूरा अधिकार मिल गया था। इस तरह अकबर के जीवन काल में रहीम की पद-प्रतिष्ठा में लगातार वृद्धि होती रही।

जहाँगीर के भी शासन काल के आरंभिक खण्ड में उन्हें पूर्ववत सम्मान मिलता रहा, पर 1623 ई. में जब शाहजहाँ ने सल्तनत के विरुद्ध झंडा उठाया तो रहीम ने उनका साथ दिया, पर विद्रोह की असफलता ने उन्हें घोर विपन्नता में डाल दिया। 1625 ई. में उन्होंने जहाँगीर से क्षमा याचना कर ली और उन्हें पुनः खान-खाना की उपाधि वापस मिल गई। उसके एक ही साल बाद उनका स्वर्गारोहण हुआ।

सामाजिक तथा राजनैतिक रूप से असीमित प्रतिष्ठा, पद तथा यश प्राप्ति का अनुभव तो उन्हें मिल ही चुका था। जिन्दगी के बयालीसवें वर्ष में ही पत्नी-शोक भी देखना पड़ा। यही नहीं एक मात्र पुत्री के वैधव्य और पुत्रों के असामयिक निधन की पीड़ाएँ भी उन्हें झेलनी पड़ी थी। संपूर्ण दक्षिणा खण्ड की सूबेदारी का सुख प्राप्त कर चुके रहीम को घोर विपन्नता के दिन . भी गुजारने पड़े थे।

स्वभाव से हमेशा मुक्तहस्त दानी रहे रहीम की विपन्नता में सबसे बड़ी पीड़ा यह रही थी कि याचकों को वे कुछ दे नहीं पाते थे। शायद इसलिए उन्हें कहना पड़ा था कि “यारो यारी छोडिए अब रहीम वे नाहि।”

रहीम कवि ही नहीं बहुभाषाविद् भी थे। संस्कृत और हिन्दी के अलावा ने फारसी, अरबी और तुर्की के भी अच्छे ज्ञाता थे।

रहीम के काव्य पर संस्कृत साहित्य का भी प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। लेकिन वे रीतिकाल धारा के ही कवि माने जायेंगे। उनकी नगर शोभा, नायिका भेद और वरवै नामक काव्य-पुस्तकें विशेष प्रसिद्ध हैं, पर वे कुल ग्यारह ग्रन्थों के रचयिता माने जाते हैं।

ये हैं-

  • नगर शोभा
  • नायिका भेद
  • वरवै
  • शृंगार सोरठ
  • पदनाष्टक
  • रहीम काव्य
  • खेट कौतुक जातकम
  • रास पंचाध्यायी
  • वकेआत बाबरी का अनुवाद (तुर्की से फारसी)
  • फारसी दीवान
  • दोहावली’ (तीन सौ दोहों का संग्रह)

इनमें अनेक अबतक अप्राप्य हैं। फिर भी इनसे स्पष्ट हो जाता है कि रहीम की प्रतिभा राजनीति, साहित्य और कविता में ही नहीं ज्योतिष में भी दखल रखती थी।

प्रश्न 3.
रहीम के दोहे पर अपना विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर-
रहीम एक ऐसे कवि हैं, जिन्होंने जीवन के विविध क्षेत्रों में अपनी लेखनी साधिकार चलायी है। बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न कविवर रहीम ने भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, धर्म, नीति, प्रेम, शृंगार, सत्संग, स्वाभिमान, परिहास इत्यादि विविध विषयों को न केवल काव्य में स्थान दिया है, – बल्कि जीवन के व्यावहारिक क्षेत्रों में उनकी मौलिक देन आज भी प्रासंगिकतापूर्ण मानी जाती है।

रहीम के दोहों में नीति, ज्ञान, भक्ति और शृंगार के ललित दर्शन होते हैं। इन दोहों की यह विशेषता है कि ये मानव-हृदय पर अत्यन्त गहरे रूप में अपना प्रभाव डालती हैं। नीति-सम्बन्धी जो दोहे रहीम ने रचे हैं, उनमें मानव जीवन को नवीन प्रेरणा और नयी चेतना प्रदान की गयी है। एक दोहा कितना प्रेरक है, इसका उदाहरण द्रष्टव्य है-

‘रहिमन वे नर मर चुके, जे कहुँ माँगन जाहिं।
उनते पहिले वे मुए, जिन मुख निकसत नाहिं।।

निष्कर्षतः, रहीम को प्रसिद्धि केवल नीति सम्बन्धी दोहों के कारण ही हुई है। ये इसलिए ‘आज लोकप्रियता के शिखर पर हैं कि इनका चिंतन आज भी मानव जाति को नवीन प्रेरणा व चेतना प्रदान करता है।

रहीम के दोहे कवि-परिचय – (1556-1626)

कविवर रहीम मुगल सम्राट अकबर के सेनापति बैरम खाँ के पुत्र थे। इनका जन्म 1556 ई. में हुआ था। इनका पालन-पोषण शाही परिवार की छत्रछाया में हुआ था। कविवर रहीम बाल्यावस्था से ही कुशाग्र बुद्धि के थे। साहित्य में उन्हें विशेष लगाव था। वे संस्कृत, अरबी, फारसी और हिन्दी भाषा के उत्कृष्ट विद्वान थे। वे एक म हान सेनानी भी थे। रहीम अकबर की सभा के नवरत्नों में से एक थे। रहीम का पूरा नाम अब्र्दुर रहीम खानखाना था।

कविवर रहीम को इस्लाम और हिन्दू संस्कृति का पूर्ण ज्ञान था। भक्त कवि तुलसी उनके बड़े ही प्रिय एवं सहमान्य थे। रहीम का व्यक्तित्त्व निराला था। वे बड़े दानी भी थे। वे अपनी प्रतिभा के बल पर सेनानायक के साथ-साथ मंत्री पद पर भी बहुत दिनों तक सुशोभित रहे। भक्ति काल के कृष्ण भक्त कवियों की तरह वे भी कृष्ण भक्ति में गहरे जुड़े थे। उनके जीवन का अनुभव व्यापक एवं संसार के सुख-दुःख दोनों ही पहलुओं से जुड़ा था। यही कारण है कि उनके नीतिपरक दोहे इतने मार्मिक बन पड़े हैं। उनकी रचनाओं में सरसता, नीति और मार्मिकता का संयोग देखते ही बनता है।

अनेक दृष्टियों से रहीम हिन्दी के काव्यजयी कवियों में से एक हैं ब्रजभाषा के काव्य कलश को अपनी रस माधुरी से परिपूर्ण करने वालों में वे अग्रगण्य कवि हैं। उनके काव्य पर संस्कृत, साहित्य का भी प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। बरवै नायक भेद में ‘बरवै’ जैसे छंद के सहारे कवि ने बड़ी मार्मिक शृंगारिक अभिव्यक्ति की है। उनकी भाषा सरल, सहज और सुबोध है।

कविवर रहीम की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-

  • बरवैनायिका-भेद,
  • श्रृंगार सोरठा,
  • मदनाष्टका,
  • रहीम सतसई।

इसके अतिरिक्त उन्होंने राम पंचाध्यायी नामक एक अन्य काव्य की भी रचना की है।

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