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 Bihar Board 12th Home Science Important Questions Long Answer Type Part 5

Bihar Board 12th Home Science Important Questions Long Answer Type Part 5

प्रश्न 1.
कपड़ों के संग्रह से पूर्व कुछ नियम क्या है जिनका पालन करना चाहिए ?
अथवा, कपड़ों के संग्रहन से पूर्व पालन करने वाले नियमों का उल्लेख करें।
उत्तर:
कपड़ों के संग्रहण से पूर्व कुछ नियमों का पालन करना होता है। वे नियम निम्नलिखित हैं-

  1. एक बार पहन चुके वस्त्र को आलमारी में न टाँगें, क्योंकि उससे पसीने की महक आती है। पहनने के बाद वस्त्र को अच्छी प्रकार से हवा लगायें जिससे पसीने की महक दूर हो जाए।
  2. छिद्र, हुक, बटन का निरंतर निरीक्षण करें। वस्त्रों को रखने से पूर्व उधड़े भागों को सिल लें।
  3. वस्त्रों को संग्रह करने के लिए समाचार-पत्र का कागज उत्तम होता है, क्योंकि काली स्याही से वस्त्रों पर कीड़े नहीं लगते हैं।
  4. चमड़े के कोट तथा जैकेट को साफ कर पोंछ कर और सूखने से बचाने के लिए हल्का तेल लगाकर रखना चाहिए।
  5. वस्त्रों को कीड़ों से बचाने के लिए कपड़ों पर कीड़े मारने की दवा छिड़कनी चाहिए।
  6. बरसात के मौसम में कपड़ों को फंगस से बचाने के लिए चमड़े के कपड़ों को हवा लगा देनी चाहिए।
  7. गीले कपड़ों को कभी भी अलमारी में न रखें क्योंकि उनमें फफूंदी लग सकती है।
  8. प्रयोग के बाद कपड़ों से पिन निकाल देनी चाहिए अन्यथा कपड़े पर जंग के निशान पड़ सकते हैं।

प्रश्न 2.
अपने परिवार के लिए वस्त्र खरीदते समय आप किन-किन बातों को ध्यान में रखेंगी?
उत्तर:
अपने परिवार के लिए वस्त्र खरीदते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए-
1. उद्देश्य- सर्वप्रथम इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि वस्त्र किस उद्देश्य से खरीदा जा रहा है। सदैव प्रयोजन के अनुरूप ही कपड़ा खरीदना चाहिए। क्योंकि विभिन्न कार्यों के लिए एक समान कपड़ा नहीं खरीदा जा सकता। जैसे-विवाह, जन्म दिन, त्योहार आदि पर कलात्मक कपड़े खरीदे जाते हैं।

2. गुणवत्ता- विभिन्न किस्म के वस्त्रों की भरमार बाजार में होती है। हमें अपनी आवश्यकता के अनुसार उत्तम गुण वाले कपड़े का चयन करना चाहिए। उत्तम किस्म के कपड़ों का चयन करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए। जैसे-टिकाऊपन, धोने में सुविधाजनक, पसीना सोखने की क्षमता, रंग का पक्कापन, बुनाई, विभिन्न प्रकार की परिसज्जा आदि।

3. मूल्य- वस्त्रों को खरीदते समय उसके मूल्य पर भी ध्यान देना चाहिए। सदैव अपने बजट के अनुसार ही कपड़ा खरीदनी चाहिए।

4. ऋतु- सदैव मौसम के अनुसार वस्त्र खरीदनी चाहिए। गर्मी में सूती तथा लिनन के वस्त्र खरीदनी चाहिए, क्योंकि इसमें कोमलता, नमी सोखने की क्षमता तथा धोने में सरलता होती है। सर्दियों में ऊनी तथा रेशम के बने वस्त्रों का प्रयोग करना चाहिए।

5. विश्वसनीय दुकान- सदैव विश्वसनीय दुकान से वस्त्र खरीदना चाहिए, क्योंकि इसमें धोखा की संभावना कम होती है।

प्रश्न 3.
डिजाइन के सिद्धान्तों का वर्णन करें।
उत्तर:
डिजाइन के निम्नलिखित सिद्धान्त हैं-
1. संतुलन- संतुलन का अर्थ समता, स्थिरता तथा विशिष्टता से है। किसी भी परिधान का निर्माण करते समय संतुलन का ध्यान रखना आवश्यक है। संतुलन द्वारा ही स्थिरता प्रदान की जाती है। संतुलन दो प्रकार का होता है-पहला स्थायी संतुलन तथा दूसरा अस्थायी संतुलन।

2. लयबद्धता- लय का अर्थ है-गति। अर्थात् एक छोर से दूसरे छोर तक बिना बाधा के घूम सके। परिधान में किनारे, कंधों, कॉलर, गला सबसे अधिक आकर्षित करते हैं। यदि ये रेखाएँ अव्यवस्थित हों तो पहनने वाले का व्यक्तित्व भी नहीं उभरता।

3. बल या दबाव- किसी भी परिधान के जिस विचार को प्रमुखता दी जाती है उसे दबाव कहते हैं। केन्द्रीय भाव या भांव की एकता दबाव होती है तथा बाकी नमूनों के गौण भाग होते हैं। कोई भी डिजाइन बल के अभाव में आकर्षक नहीं लगती है।

4. अनुपात- डिजाइन में समानुपात का सिद्धान्त शेष सभी सिद्धान्तों से महत्त्वपूर्ण है। समानुपात के सिद्धान्त के अनुसार किसी भी पोशाक के विभिन्न भागों के बीच अनुपात हो जिससे पोशाक सुन्दर और आकर्षक लगे। वस्त्रों में ठीक माप और अनुपात द्वारा ही उन्हें आकर्षक बनाकर व्यक्तित्व को आकर्षक बनाया जा सकता है।

5. एकता तथा अनुरूपता- डिजाइन के सभी मूल तत्त्वों यानि रेखाएँ, आकृतियाँ, रंग, रचना आदि पहनने वाले व्यक्ति तथा जिस अवसर पर उसे पहनना हो, एक साथ चले तथा व्यक्तित्व, गुण तथा अवसर के अनुरूप हो तो ऐसे डिजाइन को सुगठित डिजाइन कहते हैं। अतः किसी भी नमूने में एकता होना आवश्यक है।

प्रश्न 4.
घर पर की जाने वाली कपड़ों की धुलाई की प्रक्रिया के चरण लिखिए।
उत्तर:
वस्त्रों की धुलाई के सामान्य चरण (General steps of washing Clothes)-

  • मैला होने पर वस्त्रों को शीघ्र धोना चाहिए विशेषकर त्वचा के सम्पर्क में आने वाले वस्त्रों को हर बार पहनने के पश्चात् धोना चाहिए विशेषकर त्वचा के सम्पर्क में आने वाले वस्त्रों को हर बार पहनने के पश्चात् धोना चाहिए। मैले वस्त्रों को दोबारा पहनने से उनमें उपस्थित मैल कपड़े पर जम जाती है और फिर उसे साफ करना मुश्किल हो जाता है। इसके अतिरिक्त कपड़े द्वारा सोखा पसीना भी उसके रेशों को क्षति पहुँचाता है।
  • मैले वस्त्रों को उतार कर किसी एक जगह पर टोकरी अथवा थैले में डालकर रखना चाहिए। मैले वस्त्रों को इधर-उधर फेंकना नहीं चाहिए अन्यथा धोते समय इकट्ठी करने में परेशानी होती है और समय भी लगता है।
  • धोने से पूर्व कपड़ों की उनकी प्रकृति के अनुसार अलग-अलग कर लेना चाहिए जैसे सूती, रेशमी व ऊनी कपड़ों को अलग-अलग विधि द्वारा धोया जाता है। इसी प्रकार सफेद व रंगीन कपड़ों को भी अलग-अलग करना आवश्यक है क्योंकि यदि थोड़ा बहुत रंग भी निकलता हो तो सफेद कपड़े खराब हो सकते हैं।
  • धोने से पूर्व फटे कपड़ों की मरम्मत कर लेनी चाहिए तथा उन पर लगे धब्बों को दूर कर लेना चाहिए।
  • धोने के लिए वस्त्र के कपड़े की प्रकृति के अनुरूप साबुन अथवा डिटरजैन्ट का चयन करना चाहिए।
  • वस्त्र को अधिक आकर्षक बनाने के लिए प्रयोग में आने वाली अन्य सामग्री का चयन भी कर लेना चाहिए जैसे रेशमी वस्त्रों के लिए सिरका, गोंद आदि।
  • वस्त्रों को धोने से पूर्व धोने के लिए प्रयोग में आने वाले सभी सामान को एकत्रित कर
    लेना चाहिए।
  • वस्त्रों की प्रकृति के अनुरूप धोने की सही विधि का प्रयोग करना चाहिए। उदाहरण के लिए कुछ कपड़ों जैसे रेशम अधिक रगड़ सहन नहीं कर पाते हैं, अतः इन्हें हाथों के कोमल दवाब से ही धोना चाहिए।
  • वस्त्रों को साफ पानी में भली प्रकार धोकर उनमें से साबुन अथवा डिटरजैन्ट अच्छी तरह निकाल देना चाहिए अन्यथा वे वस्त्रों के तन्तुओं को कमजोर कर देते हैं।
  • वस्त्रों से भली प्रकार साबुन निकाल लेने के पश्चात् उनमें उपस्थित अतिरिक्त पानी निकाल. देना चाहिए।
  • सुखाने के लिए सफेद वस्त्रों को उल्टा धूप में सुखाना चाहिए तथा रंगीन वस्त्रों को छाया में सुखाना चाहिए अन्यथा उनके रंग खराब होने की सम्भावना रहती है। सफेद वस्त्रों को अधिक समय तक धूप में पड़े रहने से उन पर पीलापन आ जाता है।
  • वस्त्रों के आकार को बनाए रखने के लिए उन्हें हैंगर पर अथवा इस प्रकार लटकाना चाहिए कि उन पर किसी भी प्रकार का अनावश्यक खिंचाव न पड़े।
  • सूखने के पश्चात् उन्हें इस्तरी करके रखना चाहिए।

प्रश्न 5.
धुलाई की विभिन्न विधियों के बारे में लिखें।
उत्तर:
धुलाई क्रिया एक वैज्ञानिक कला है और अन्य कलाओं के समान ही इसके भी कुछ सिद्धान्त हैं। सिद्धान्तों का अनुसरण नियमपूर्वक करना तथा आवश्यकतानुसार इनमें कुछ-कुछ परिवर्तन करना, धोने की क्रिया धोने वाले की विवेक-बुद्धि पर निर्भर करती है। वैसे इस प्रक्रिया में धैर्य अभ्यास दोनों का ही अत्यधिक महत्त्व है। अभ्यास के सभी सिद्धान्तों के अंतर्निहिक गुण-दोष स्वतः सामने आ जाते हैं और धुलाई करने वाला स्वत: ही समझ जाता है कि कौन सिद्धान्त किस प्रकार और कब पालन योग्य है और उसके दोषों को किस प्रकार दूर करना संभव है।

घरेलू प्रयोग में तथा सभी पारिवारिक सदस्यों के परिधानों में तरह-तरह के वस्त्र प्रयोग भी आते हैं। सूती, ऊनी, रेशमी, लिनन, रेयन और रासायनिक वस्त्र तथा मिश्रण से बने वस्त्र भी रहते हैं। वस्त्रों के चयन सम्बन्धी किस्में भी एक-दूसरे से अलग रहती है। अतः धुलाई सिद्धान्तों का अवलोकन अनिवार्य है। उनका अनुसरण आवश्यकतानुसार ही करना चाहिए। अनुचित विधि के प्रयोग से वस्त्र के कोमल रेशों की घोर क्षति पहुँचाती है। उचित विधि के प्रयोग से वस्त्रों का प्रयोग सौन्दर्य स्थायी और अक्षुण्ता रहता है और वह टिकाऊ होता है, साथ ही कार्यक्षमता बढ़ती है।

धुलाई क्रिया दो प्रक्रियाओं के निम्नलिखित सम्मिलित रूप का ही नाम है-
(i) वस्त्रों को धूल-कणों और चिकनाई पूर्ण गंदगी से मुक्त करना तथा (ii) धुले वस्त्रों पर ऐसा परिष्करण देना जिससे उनका नवीन वस्त्र के समान सुघड़ और सुन्दर स्वरूप आ सके। गन्दगी को दूर करने का तरीका तथा वस्त्रों को स्वच्छ करने की विधि मुख्यतः वस्त्र के स्वभाव तथा धूल और गन्दगी की किस्म पर निर्भर करती है।

गन्दगी जो वस्त्रों में होती है वह दो प्रकार की होती है- (a) रेशों पर ठहरे हुए अलग धूल-कण तथा (b) चिकनाई के साथ लगे धूल-कण।

कपड़े धोने की विधियाँ
कपड़े धोने की विधियाँ निम्नलिखित हैं-
(i) रगड़कर- रगड़कर प्रयोग करके केवल उन्हीं वस्त्रों को स्वच्छ किया जा सकता है जो मजबूत और मोटे होते हैं। रगड़ क्रिया को विधिपूर्वक करने के कई तरीके हैं। वस्त्र के अनुरूप तरीके का प्रयोग करना चाहिए।

(a) रगड़ने का क्रिया हाथों से घिसकर- रगड़ने का काम हाथों से भी किया जा सकता है। हाथों से उन्हीं कपड़ों को रगड़ा जा सकता है जो हाथों में आ सके अर्थात् छोटे कपड़े।

(b) रगड़ने का क्रिया मार्जक ब्रश द्वारा- कुछ बड़े वस्त्रों को, जो कुछ मोटे और मजबूत भी होते हैं, ब्रश से मार्जन के द्वारा गंदगी से मुक्त किया जाता है।

(c) रगड़ने का क्रिया घिसने और सार्जन द्वारा- मजबूत रचना के कपड़ों पर ही इस विधि का प्रयोग किया जा सकता है।
(ii) हल्का दबाव डालकर- हल्का दबाव डालकर धोने की क्रिया उन वस्त्रों के लिए अच्छी रहती है। जिनके घिसाई और रगड़ाई से क्षतिग्रस्त हो जाने की शंका रहती है। हल्के, कोमल तथा सूक्ष्म रचना के वस्त्रों को इस विध से धोया जाता है।

(ii) सक्शन विधि का प्रयोग- सक्शन (चूषण) विधि का प्रयोग भारी कपड़ों को धोने के लिए किया जाता है। बड़े कपड़ों को हाथों से गूंथकर (फींचकर) तथा निपीडन करके धोना कठिन होता है। जो वस्त्र रगड़कर धोने से खराब हो सकते हैं, जिन्हें गूंथने में हाथ थक जा सकते हैं और वस्त्र भी साफ नहीं होता है, उन्हें सक्शन विधि की सहायता से स्वच्छ किया जाता है।

(iv) मशीन से धुलाई करना- वस्त्रों को मशीन से धोया जाता है। धुलाई मशीन कई प्रकार की मिलती है। कार्य-प्रणाली के आधार पर ये तीन टाइप की होती है-सिलेंडर टाइप, वेक्यूम कप टाइप और टेजीटेटर टाइप मशीन की धुलाई तभी सार्थक होती है जब अधिक वस्त्रों को धोना पड़ता है और समय कम रहता है।

प्रश्न 6.
धब्बे छुड़ाने की प्रमुख विधियाँ क्या है ?
उत्तर:
दाग-धब्बे मिटाने की प्रमुख विधियाँ (Main Methods of Stain Removal)- दाग हटाने के लिए निम्नलिखित विधियों का प्रयोग करते हैं-

  • डुबोकर- इस विधि से दाग छुड़ाने के लिए दाग वाले वस्त्र को अभिकर्मक में डुबोया जाता है। इसे रगड़कर हटाया जाता है और फिर धो दिया जाता है।
  • स्पंज- इस विधि में कपड़े के जिस स्थान से दाग हटाना हो उसे ब्लॉटिंग पेपर रखें तत्पश्चात् स्पंज के साथ अभिकर्मक लगाएँ तथा उसे रगड़कर स्वच्छ कर लें।
  • डॉप विधि- इस विधि का प्रयोग करते समय कपड़े को खींचकर एक बर्तन में रखकर इसे उस पर ड्रापर से अभिकर्मक टपकाया जाता है।
  • भाप विधि- इस विधि का प्रयोग करते समय उबलते हुए पानी से निकलती हुई भाप से दाग हटाया जाता है।

प्रश्न 7.
रेडिमेड कपड़े क्यों लोकप्रिय होते जा रहे हैं ?
अथवा, रेडिमेड कपड़े की लोकप्रियता के क्या कारण हैं ?
उत्तर:
रेडिमेड कपड़े की लोकप्रियता के निम्नलिखित कारण हैं-

  • ये कपड़े खरीदकर पहन लिये जाते हैं।
  • ये कपड़े सुन्दर तथा फैशनेबल डिजाइन में मिल जाते हैं।
  • ये कपड़े सस्ते होते हैं।
  • सिलवाने के झंझट से बचने के लिए लोग रेडिमेड कपड़े खरीदते हैं।
  • उपभोक्ता अधोवस्त्र रेडिमेड ही लेना चाहते हैं, क्योंकि ये पहनने, धोने और संभालने में आसान है।
  • निर्माता उपभोक्ता की जरूरत के अनुसार कपड़ा तैयार करवाता है।

प्रश्न 8.
गर्भावस्था में आप किस प्रकार के वस्त्रों का चुनाव करेंगी ?
उत्तर:
गर्भावस्था में स्त्रियों की शारीरिक संरचना में परिवर्तन आ जाता है। उनका पेट तथा वक्ष-स्थल उभर आता है तथा उन्हें पसीना भी बहुत आने लगता है। इसलिए उनके शरीर के लिए वस्त्रों का चुनाव अच्छी तरह करना चाहिए।

  • पेन्टीज अधिक कसी नहीं होनी चाहिए
  • शरीर पर कसे हुए वस्त्र नहीं होने चाहिए।
  • अच्छे रंगों और अच्छे कपड़े का वस्त्र बना होना चाहिए जो शरीर पर अच्छा लगे।
  • गर्भावस्था में अधिक महंगे कपड़े नहीं खरीदें एवं
  • वस्त्र पहनने और खोलने में सुविधाजनक हो।

प्रश्न 9.
किस वस्त्र की गुणवता की जाँच करने के लिए छ: बातों का ध्यान रखेगी ?
उत्तर:
वस्त्रों की गुणवत्ता के कुछ चिन्ह हैं, जिन्हें आपको खरीदने के पहले उसके गुणवत्ता को जांचना चाहिए-

  • कपड़ा- कपड़े में सिलवटें, फिकापन नहीं होना चाहिए तथा टिकाऊपन होना चाहिए। सिलवटें जाँचने के लिए निचोड़ कर परीक्षण करें। अपनी स्थिति के अनुरूप देख-रेख कर जाँच करके लें।
  • सिलाई- सिलाई मजबूत टिकाऊ हो।
  • अस्तर- इनसे वस्त्रों को उचित आकार तथा किनारों के साथ ही सम्पूर्णता दिखे। इस काम के लिए जो भी कपड़ा लिया जाय वह साथ वाले कपड़े के अनुरूप ही होना चाहिए।
  • बंधक- बंधक के अनुसार उचित आकार के होने चाहिए। वे कपड़े से बिल्कुल मिलने चाहिए।
  • ट्रिम- ट्रिम अच्छी तरह जुड़ी हुई एवं समन्वित होनी चाहिए। पोशाक के प्रदर्शन से अनाकर्षित नहीं होनी चाहिए।
  • ब्राण्ड के नाम- परिचित अच्छी तथा स्थापित कम्पनी का लेबल विशुद्ध गुणवत्ता निर्देशित न कर सकें। जो कि इस बात से परिचित न हों

प्रश्न 10.
गुणवत्ता की दृष्टि से एक सिली-सिलाई सलवार कमीज/फ्रॉक खरीदने से पहले आप कौन-सी छः बातों का निरीक्षण करेंगी ?
उत्तर:

  1. अच्छी टैक्सटाइल मिल द्वारा निर्मित कपड़ा खरीदना। उत्तम स्तर के कपड़े के लिए हमेशा अच्छी टैक्सटाइल मिल द्वारा निर्मित तैयार कपड़े खरीदने चाहिए।
  2. आजकल तैयार वस्त्रों का चलन बहुत हो गया है और नई कम्पनियाँ वस्त्र तैयार करने लगी हैं।
  3. कपड़े की किस्म और सिलाई देख लेनी चाहिए।
  4. इन्हें बनाने के लिए बहुत अच्छी किस्म के कपड़े तथा सिलाई के लिए अच्छे धागों का प्रयोग होना चाहिए।
  5. कई बार धोने पर इनका रंग निकल जाता है या सिलाई उधड़ जाती है या फिर फिटिंग ठीक न होने के कारण ये शीघ्र ही फट जाते हैं। अत: केवल अच्छी कम्पनियों द्वारा निर्मित तैयार कपड़े ही खरीदने चाहिए।
  6. सेल आदि से कपड़े की किस्म की पूर्ण जानकारी करने के पश्चात् विश्वसनीय फुटकर (Retail) दुकान से कपड़ा खरीदना।।

प्रश्न 11.
साबुन और डिटर्जेन्ट में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
साबुन और डिटर्जेन्ट में निम्नलिखित अंतर हैं-
साबुन:

  1. साबुन वसीय अम्ल के लवण होते हैं। उनका निर्माण वसा तथा क्षार के मिश्रण से होता है।
  2. साबुन घरेलू स्तर पर भी आसानी से बनाये जा सकते हैं।
  3. साबुन अपेक्षाकृत महँगे पड़ते हैं।
  4. कठोर जल निष्क्रिय होते हैं इसलिए इनकी बहुत अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है।

डिटर्जेन्ट:

  1. डिटर्जेन्ट कार्बनिक यौगिक होते हैं जो संतृप्त तथा असंतृप्त दोनों ही प्रकार के हाइड्रोकार्बन से बनाये जाते हैं।
  2. ये रसायनों के द्वारा बनाये जाते हैं तथा फैक्टरियों में ही निर्मित होते हैं।
  3. ये साबुन से सस्ते होते हैं।
  4. ये कठोर जल में उतने ही सक्रिय होते हैं जितने मृदु जल में इनकी अतिरिक्त मात्रा नहीं मिलानी पड़ती है।

प्रश्न 12.
धब्बों के विभिन्न प्रकार क्या हैं ?
अथवा, दाग-धब्बों को कितने श्रेणी में बाँटा गया है ?
उत्तर:
दाग-धब्बों को पाँच श्रेणी में बतलाया गया है-

  • प्राणिज्य धब्बे- प्राणिज्य पदार्थों के द्वारा लगने वाले धब्बे को प्राणिज्य धब्बे कहते हैं। जैसे-अण्डा, दूध, मांस और मछली आदि।
  • वानस्पतिक धब्बे- पेड़-पौधों से प्राप्त पदार्थों द्वारा लगे धब्बे को वानस्पतिक धब्बे कहते हैं। जैसे-चाय, कॉफी, सब्जी और फल-फूल आदि।
  • खनिज धब्बे- खनिज पदार्थों के द्वारा लगे धब्बों को खनिज धब्बे कहते हैं। जैसे-जंग व स्याही आदि। इन धब्बों को दूर करने के लिए हल्के अम्ल का प्रयोग करते हैं तथा हल्का क्षार लगाकर वस्त्र पर लगे अम्ल के प्रभाव को दूर कर दिया जाता है।
  • चिकनाई वाले धब्बे- घी, तेल, मक्खन व क्रीम आदि पदार्थों से लगने वाले धब्बे चिकनाई वाले धब्बे होते हैं।
  • अन्य धब्बे- पसीना, धुआँ तथा रंग के धब्बे ऐसे होते हैं जिन्हें उपरोक्त किसी भी श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है।

प्रश्न 13.
भारत में जल प्रदूषण के स्रोत क्या हैं ? अथवा, जल प्रदूषण के कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर:
जल प्रदूषण के निम्नलिखित कारण है-

  • घरेलू अपशिष्ट- स्नान करने, कपड़े धोने, पशुओं को नहलाने, बर्तन साफ करने आदि बजहों से जल के स्रोत प्रदूषित हो जाते हैं।
  • मल- खुले क्षेत्रों में मानव और पशुओं द्वारा मल त्याग करने से मल वर्षाजल के साथ मिलकर जल स्रोतों में मिल जाता है और जल प्रदूषित हो जाता है।
  • औद्योगिक अपशिष्ट- उद्योगों से निकल रहा अपशिष्ट पदार्थ जिसमें कार्बनिक पदार्थ मौजूद होते हैं, सीधे जल स्रोतों में प्रवाहित किए जाते हैं। इससे जल प्रदूषित हो जाता है।
  • कृषि अपशिष्ट- हरित क्रांति की वजह से कृषि में नई तकनीकों के साथ ही रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशक आदि का प्रयोग तेजी से बढ़ा है। विभिन्न कृषि पद्धतियों के कारण मिट्टी के कटाव में भी वृद्धि हुई जिससे नदियों के प्रवाह में बाधा उत्पन्न हुई और इनके किनारे कटाव का सामना कर रहे हैं। झीलें तथा तालाब सपाट होते जा रहे हैं। इनका जल मिट्टी एवं कीचड़ के जमाव की वजह से दूषित हो रहा है।
  • उष्मीय प्रदूषण- परमाणु ऊर्जा आधारित विद्युत संयंत्रों में अतिरिक्त भाप के माध्यम से विद्युत उत्पादन की प्रक्रिया द्वारा उष्मीय प्रदूषण फैल रहा है।
  • तैलीय प्रदूषण- औद्योगिक संयंत्रों द्वारा तेल एवं तेलीय पदार्थों के नदियों एवं अन्य जल स्रोतों में किए जा रहे प्रवाह के कारण जल प्रदूषित हो रहा है।
  • धार्मिक अपशिष्ट- धार्मिक पूजा-पाठ, मूर्तियाँ एवं पूजा सामग्रियों, फूल-माला आदि का. विसर्जन नदियों में किया जाता है। इस कारण नदियों का प्रदूषण कई गुणा बढ़ जाता है।।

प्रश्न 14.
गृह प्रसव एवं अस्पताल प्रसव का तुलनात्मक विवरण दें।
अथवा, गृह प्रसव एवं अस्पताल प्रसव में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:
गृह प्रसव एवं अस्पताल प्रसव में निम्नलिखित अन्तर हैं-

  • गृह प्रसव असुरक्षित और जोखिम भरा होता है जबकि अस्पताल में प्रसव कराना सुरक्षित और कम जोखिम वाला होता है।
  • घर में प्रसव के लिए अनुकूल वातावरण नहीं होता है, जबकि अस्पताल में रहता है।
  • घर में प्रसव होने पर जचा-बच्चा दोनों को खतरा है, जबकि अस्पताल में दोनों सुरक्षित रहते हैं।
  • घर में साफ-सफाई की समुचित व्यवस्था नहीं रहने के कारण बीमारी की संभावना रहती है, जबकि अस्पताल में साफ-सफाई की व्यवस्था रहती है। अतः बीमारी का खतरा कम जाता है।
  • घर में प्रशिक्षित नर्स उपलब्ध नहीं होती है, जबकि अस्पताल में प्रशिक्षित नर्स और डॉक्टर दोनों उपलब्ध होते हैं।
  • प्रसव में व्यवधान उत्पन्न होने पर तुरन्त उचित समाधान नहीं हो पाता है, परन्तु अस्पताल में प्रसव के समय व्यवधान होने पर शीघ्र उपचार की व्यवस्था हो जाती है, क्योंकि अस्पताल में चिकित्सक उपलब्ध रहते हैं।

प्रश्न 15.
प्रसवोपरान्त देखभाल के पहलू क्या है ?
उत्तर:
प्रसव के उपरान्त प्रसूता की उचित देखभाल आवश्यक है। इसके लिए मुख्य रूप से निम्न बातों पर ध्यान देना चाहिए-
1. विश्राम- प्रसव पीड़ा से प्रसूता बहुत थक जाती है और कमजोरी महसूस करती है। इसलिए उसे आराम करना चाहिए। करीब 15 दिनों तक उसे विस्तर पर ही आराम करना चाहिए। इसके बाद नवजात शिशु के छोटे-मोटे काम करना चाहिए। भारी काम नहीं करना चाहिए।

2. आहार- प्रसव में काफी रक्तस्राव होता है। प्रसव के बाद भी एक माह तक रक्त स्राव होते रहता है। इससे वह कमजोर हो जाती है तथा शरीर में खून की कमी हो जाती है। साथ ही उसे शिशु को स्तनपान करना होता है। इसलिए उसके आहार पर विशेष ध्यान देना चाहिए। उसका आहार संतुलित एवं उत्तम होना चाहिए। उसके आहार में दूध, बादाम, अण्डा, दलिया, छिलके वाली दाले तथा माँस का समावेश होना चाहिए। फलों तथा हरी सब्जियों का सेवन करना चाहिए। अधिक मिर्च-मसाले तथा तले-भूने गरिष्ठ आहार से परहेज करना चाहिए।

3. सफाई का ध्यान- प्रसव के बाद स्त्री के प्रजनन अंगों की सफाई होनी चाहिए। बाद में भी नियमित रूप से इसकी सफाई होनी चाहिए। मूत्राशय एवं आँतों की सफाई का भी ध्यान रखना चाहिए। सफाई नहीं होने पर संक्रामक रोग होने की संभावना रहती है। प्रसूता के वस्त्र साफ तथा धुला होना चाहिए।

4. नियमित व्यायाम- प्रसव के साथ शरीर के कुछ भागों में विशेष परिवर्तन आ जाता है। यदि उचित व्यायाम न किया जाए तो शरीर बेडॉल हो जाता है। प्रसव के उपरान्त व्यायाम करने से शरीर स्वाभाविक रूप में आ जाता है तथा स्वस्थ रहता है।

प्रश्न 16.
एक किशोरी के लिए परिधानों के चुनाव में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर:
किशोरियों के लिए परिधान या वस्त्र का चयन सबसे कठिन होता है, क्योंकि वे परम्परागत कपड़ों के बजाय कुछ नया, अलग तथा अनोखा वस्त्र पहनना चाहते हैं। उनकी इच्छा होती है कि वे सबसे अलग दिखें और उनकी एक अलग पहचान हो। वे वर्तमान प्रचलित फैशन के अनुरूप ही वस्त्र पहनना चाहती है और अपनी सहेलियों से वस्त्रों द्वारा ही प्रशंसा एवं स्वीकृति प्राप्त करना चाहती है। इसलिए उनके वस्त्र ऐसे हो जो-

  1. उनपर खिले, सुन्दर लगे और उनके आत्म सम्मान को बढ़ाए।
  2. वस्त्र अश्लील न हो।
  3. वस्त्र कोमल, लचीले तथा विभिन्न अलंकरणों द्वारा सजाए हुए हो।
  4. वस्त्र शरीर की बनावट, त्वचा, आँखों तथा बालों के रंग के अनुरूप होने चाहिए।
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