Advertica

 bihar board class 11 economics | ग्रामीण विकास

bihar board class 11 economics | ग्रामीण विकास

ग्रामीण विकास

              ( Rural Development ) .
               पाठ्यक्रम ( Syllabus )
>ग्रामीण विकास का अर्थ , ग्रामीण विकास से जुड़े कुछ मुद्दे , ग्रामीण क्षेत्र का भारत के सर्वांगीण विकास में महत्त्व , ग्रामीण विकास में साख और विपणन की भूमिका , आजीविका के स्थायित्व के लिए उत्पादन गतिविधियों में विविधता का महत्त्व , धारणीय विकास में जैविक कृषि का महत्त्व ।
» याद रखने योग्य बातें ( Points to Remember ) :-
1. ग्रामीण विकास ( Rural Developmant ) – ग्रामीण विकास से अभिप्राय उन सब घटकों के विकास से है जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सर्वांगीण में पिछड़ गए हैं। 2. ग्रामीण विकास का महत्त्व ( Importance of Rural Development ) – यह राष्ट्रीय विकास का केन्द्र है । महात्मा गाँधी के अनुसार भारत की वास्तविक प्रगति का तात्पर्य शहरी औद्योगिक केन्द्रों के विकास से नहीं , अपितु मुख्य रूप से गाँवों के विकास से है । भारत की वास्तविक उन्नति के लिए विकसित ग्रामीण भारत का निर्माण करना होगा ।
3. ग्रामीण विकास के लिए सुझाव ( Suggestions for Rural Development ) ( i ) अनाज , फल सब्जियों के उत्पादन में लगे कृषक समुदायों को उत्पादकता बढ़ाने में विशेष सहायता देना , ( ii ) सभी के लिए शिक्षा को सर्वोच्च वरीयता , ( iii ) गैर – कृषि उत्पादक क्रिया – कलापों के लिए अधिक सुविधाओं की उपलब्धता , घर और कार्यस्थल पर स्वच्छता सम्बन्धी सुविधायें उपलब्ध कराना , ग्रामीण साख और विपणन व्यवस्था का समुचित विकास करना , कृषि गतिविधियों में विविधता लाना , धारणी विकास को बढ़ावा देना आदि ।
4. ग्रामीण क्षेत्रकों में साख ( Credit and Marketing in Rural sector ) – स्वतन्त्रता से पूर्व छोटे / सीमान्त कृषक ब्याज की ऊंची दर पर व्यापारियों से ऋण लेते थे । स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत सरकार ने उनको ऋण देने के लिए नाबार्ड की स्थापना की ।
5. आधुनिक ग्रामीण बैंक की संस्थागत रचना – इसके अनेक बहु एजेन्सी संस्थान हैं-
6. ग्रामीण बैंक का मूल्यांकन ( Evaluation of Rural Bank ) – ग्रामीण बैंक ने किसानों को अनेक प्रकार के ऋण दिये हैं , परन्तु अभी हमारी बैंकिग व्यवस्था उचित नहीं बन पाई है ।
7. ग्रामीण बैंकिंग व्यवस्था के उचित न होने के कारण- ( i ) औपचारिक साख संस्थाओं का चिरकालिक निम्ननिष्पादन तथा ( ii ) किसानों द्वारा बड़े पैमाने पर किश्तों का न चुका पाना प्रमुख है ।
8. कृषि विपणन ( Agriculture Marketing ) – यह वह प्रक्रिया है जिसमें देश भर में उत्पादित कृषि पदार्थों का संग्रह , भण्डारण , प्रसंस्करण , परिवहन , पैकिंग , वर्गीकरण और वितरण आदि किया जाता है ।
9. स्वतन्त्रता से पूर्व विपणन प्रणाली में दोष ( Defects of Agricultural Marketing system ) –
( i ) मोडयों में कपटपूर्ण पद्धति , ( ii ) उचित गोदामों तथा भण्डार गृहों का अभाव ,
( iii ) पर्याप्त आंकड़ों एवं सूचनाओं का अभाव ,
( iv ) मध्यस्थों की अधिकता , ( v ) विवशतापूर्ण विक्रय , ( vi ) कृषि उत्पादन का क्षतिग्रस्त होना ।
11. कृषि विपणन प्रणाली में किए गए सुधार ( Reforms in Agricultural Marketing System ) –
( i ) बाजार का नियमन , ( ii ) भण्डारगृहों तथा गोदामों की व्यवस्था करना , ( iii ) किसानों को अपने उत्पादों का उचित मूल्य सुलभ कराना , ( iv ) नीतिगत साधन ।
12. वैकल्पिक क्रय – विक्रय ( Agriculture Media of sale and Purchase ) – पंजाब , हरियाणा और राजस्थान में अपनी मंडी , पुणे में हड़पसार मंडी , आंध्र प्रदेश में रायचूनाज नामक फल सब्जी मंडियों और तमिलनाडु में उझावर मण्डी के कृषक बाजार । 13. जैविक कृषि – यह खेती करने की वह विधि है जो पर्यावरणीय संतुलन को पुन : स्थापित करके उसका संरक्षण और संवर्धन करती है ।
14. जैविक कृषि के लाभ-
( i ) जैविक कृषि के आगत सस्ते होते हैं । इसी कारण इन पर निवेश से प्रतिफल अधिक मिलता है ।
( ii ) जैविक कृषि में निर्यात से भी अच्छी आय हो सकती है ।
( iii ) जैविक कृषि हमें अधिक स्वास्थ्यकर भोजन कराती है ।
( iv ) इसमें श्रम आगतों का प्रयोग परम्परागत कृषि की अपेक्षा अधिक होता है । अत : यह भारत जैसे देश के लिए अधिक उपर्युक्त होगा ।
15. जैविक कृषि को लोकप्रिय बनने के उपाय-
( i ) नई विधियों का प्रयोग करने में किसानों में इच्छा शक्ति तथा जागृति उत्पन्न करना ।
( ii ) जैविक कृषि संवर्धन के लिए उपयुक्त नीतियों का निर्माण करना ।
( iii ) विपणन की समस्याओं का समाधान करना । पाठ्यपुस्तक एवं परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
( Textbook and Other Important Questons for Examination )
                अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न
      ( Very Short Answer Type Questions )
प्रश्न 1. ग्रामीण विकास क्या है ?
उत्तर – ग्रामीण विकास से अभिप्राय ग्रामीण अर्थव्यवस्था के उन घटकों के विकास पर बल देना है , जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सर्वांगीण विकास में पिछड़ गए हैं ।
प्रश्न 2. ग्रामीण विकास के लिए हमें क्या – क्या करना चाहिए ? ( कोई दो बिन्दु लिखें ) ।
उत्तर – ग्रामीण विकास के लिए हमें अनाजों , फलों , सब्जियों के उत्पादन में लगे कृषक समुदायों को उत्पादकता बढ़ाने में विशेष सहायता देनी होगी । गैर कृषि उत्पादक क्रियाकलापों जैसे खाद्य प्रसंस्करण , स्वास्थ्य सुविधाओं को अधिक उपलब्ध करवाना होगा।
प्रश्न 3. 1990 ई ० के दशक में कृषि की संवृद्धि दर घटकर कितनी रह गई थी ?
उत्तर -1990 ई ० के दशक में कृषि की संवृद्धि दर घटकर 2.3 % रह गई थी ।
प्रश्न 4. 1990 ई ० के दशक में कृषि की संवृद्धि दर में कमी का कारण लिखें ।
उत्तर -1991 ई ० के बाद सार्वजनिक निवेश में आई गिरावट के कारण 1990 ई ० के दशक . में कृषि की संवृद्धि दर में कमी आई ।
प्रश्न 5. किन कारणों से ग्रामीण विकास में बाधाएं आ रही हैं ?
उत्तर – अपर्याप्त आधारिक संरचना , उद्योग तथा सेवा क्षेत्रक में वैकल्पिक रोजगार के अवसरों के अभाव और अनियत रोजगार में वृद्धि आदि के कारण ग्रामीण विकास में बाधायें आ रही हैं ।
प्रश्न 6. धारणीय विकास से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर – धारणीय विकास से अभिप्राय विकास की उस प्रद्रिया से है जो भावी पीढ़ी को आवश्यकताओं को पूरी करने की योग्यता के बिना कोई हानि पहुँचाये वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करती है । प्रश्न 7. कृषि साख से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर – कृषि साख से अभिप्राय है – कृषि के लिए खाद , बीज , ट्रैक्टर , हल आदि खरीदने , पारिवारिक खर्चे और शादी , मृत्यु तथा धार्मिक अनुष्ठानों के लिए कृषकों द्वारा ऋण लेना ।
प्रश्न 8. कृषि साख के मुख्य साधन लिखें ।
उत्तर – कृषि साख के मुख्य साधन हैं- ( i ) साहूकार , ( ii ) सहकारी साख समितियाँ , ( iii ) व्यावसायिक बैंक , ( iv ) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक , ( v ) भूमि विकास बैंक ।
प्रश्न 9. नाबार्ड का पूरा नाम लिखें ।
उत्तर – नाबार्ड का पूरा नाम राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक
( National Bank for Agricultural and Rural Development ) है ।
प्रश्न 10. नाबार्ड की स्थापना कब की गई थी ?
उत्तर – नाबार्ड की स्थापना 1982 ई ० में की गई थी ।
प्रश्न 11. एस , एच . जी . का पूरा नाम लिखें ।
उत्तर – एस . एच . जी . का पूरा नाम स्वयं सहायता समूह ( Self Help Group ) है ।
प्रश्न 12. 2003 ई ० के अन्त तक कितने साख प्रदान करने वाले स्वयं सहायता समूह भारत में कितने भागों में काम कर रहे थे ?
उत्तर – लगभग 7 लाख ।
प्रश्न 13. हमारी ग्रामीण बैंकिंग व्यवस्था अभी तक उचित नहीं बन पाई है । इसके कारण लिखें ।
उत्तर – निम्न कारणों से हमारी ग्रामीण बैंकिंग व्यवस्था अभी तक उचित नहीं बन पाई है-
( i ) औपचारिक साख संस्थाओं का चिरकालिक निम्न निष्पादन ।
( ii ) किसानों द्वारा बड़े पैमाने पर किश्तों को नहीं चुका पाना ।
प्रश्न 14. कृषि विपणन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर – कृषि विपणन वह प्रक्रिया है जिससे देश भर में उत्पादित कृषि पदार्थों का संग्रह , भण्डारण , प्रसंस्करण , परिवहन , पैकिंग वर्गीकरण और वितरण आदि किया जाता है ।
प्रश्न 15.कितने कृषि उत्पादों के लिए न्यूनतम समर्थन कीमत सुनिश्चित की गई है ?
उत्तर -24 कृषि उत्पादों के लिए न्यूनतम समर्थन कीमत सुनिश्चित की गई है । रख – रखाव करता है ? प्रश्न 16. भारतीय खाद्य निगम किन – किन खाद्यान्नों के सुरक्षित भण्डारण का रख – रखाव करता हैं ?
उत्तर – भारतीय खाद्य निगम गेहूँ और चावल के सुरक्षित भण्डारण का रख – रखावं करता है ।
प्रश्न 17. नीतिगत साधनों का क्या ध्येय है ?
उत्तर – नीतिगत साधनों का ध्येय किसानों को उचित दाम दिलाना तथा गरीबों को सस्ते कीमत पर वस्तुएँ उपलब्ध करवाना है ।
प्रश्न 18. सरकार के अनेक प्रयलों के बाद भी आज तक कृषि मंडियों पर किन लोगों का वर्चस्व बना हुआ है ?
उत्तर – सरकार के अनेक प्रयत्नों के बाद भी आज तक कृषि मंडियों पर निजी व्यापारियों ( साहूकारों , ग्रामीण राजनीतिज्ञ , सामंता , बड़े व्यापारियों तथा अमीर किसानों ) का वर्चस्व बना हुआ है ।
प्रश्न 19. सरकारी संस्थाएँ तथा सहकारिताएँ सकल कृषि उत्पादन के कितने प्रतिशत अंश के आदान – प्रदान में सफल हो पाई हैं ?
उत्तर – सरकारी संस्थाएँ तथा सहकारिताएँ सकल कृषि उत्पादन के मात्र , 10 प्रतिशत अंश के आदान – प्रदान में सफल हो पाई हैं ।
प्रश्न 20. कृषि उत्पाद के वैकल्पिक क्रय – विक्रय माध्यम के कुछ उदाहरण दें ।
उत्तर – पंजाब , हरियाणा और राजस्थान में अपनी मंडी , पुणे की हडपसार मंडी , आन्ध्र प्रदेश की रायचूनाज नामक फल – सब्जी मंडियों तथा तामिलनाडु की उझावर मंडी के कृषक बाजार कृषि उत्पाद वैकल्पिक क्रय – विक्रय माध्यम के कुछ उदाहरण हैं ।
प्रश्न 21. विविधीकरण के दो पहलू लिखें ।
उत्तर – विविधीकरण के दो पहलू हैं- ( i ) फसलों के उत्पादन के विविधीकरण से सम्बन्धित , ( ii ) श्रम शक्ति को खेती से हटाकर अन्य सम्बन्धित कार्यों तथा गैर – कृषि क्षेत्रक में लगाना ।
प्रश्न 22. विविधीकरण के लाभ लिखें ।
उत्तर- ( i ) विविधीकरण द्वारा खेती के आधार पर आजीविका कमाने में जोखिम को कम करता है । ( ii ) यह ग्रामीण जन समुदाय को उत्पादक और वैकल्पिक धारणीय आजीविका का अवसर उपलब्ध करता है ।
प्रश्न 23. भारत का अधिक भाग कृषि में किस ऋतु की फसल से जुड़ा रहता है ?
उत्तर- भारत में अधिक भाग खरीफ की फसल से जुड़ा रहता है ।
प्रश्न 24. भारत की बढ़ती हुई श्रम – शक्ति के लिए अन्य गैर – कृषि कार्यों में वैकल्पिक रोजगार की आवश्यकता क्यों है ?
उत्तर – क्योंकि कृषि क्षेत्र पर पहले से ही बहुत बोझ है।
प्रश्न 25. गैर कृषि अर्थतंत्र के गतिशील उपघटक लिखें।
उत्तर – कृषि प्रसंस्करण उद्योग , खाद्य प्रसंस्करण उद्योग , चर्म उद्योग , तथा पटसन उद्योग ।
प्रश्न 26. पशुपालन में कौन – कौन सी प्रजातियाँ हैं ? उत्तर – पशुपालन में गाय , भैंस , बकरियाँ , मुर्गी – बत्तख आदि बहुतायत में पाई जाने वाली प्रजातियाँ हैं।
प्रश्न 27. पशुपाल के लाभ लिखें ।
उत्तर – लाभ : ( i ) पशुपालन से परिवार की आय में स्थिरता आती है । ( ii ) इससे खाद्य सुरक्षा , परिवहन , ईंधन , पोषण आदि की व्यवस्था भी परिवार की अन्य खाद्य उत्पादक ( कृषि गतिविधियों में अवरोध के बिना ) प्राप्त हो जाती है ।
प्रश्न 28. आज पशुपालन क्षेत्रक देश के कितने छोटे या सीमान्त किसानों और भूमिहीन श्रमिकों को आजीविका कमाने का वैकल्पिक साधन सुलभ करा रहा है ?
उत्तर – आज पशुपालन क्षेत्र देश के 7 करोड़ छोटे व सीमान्त किसानों और भूमिहीन श्रमिकों को आजीविका कमाने का वैकल्पिक साधन सुलभ करा रहा है ।
प्रश्न 29. पशुपालन में सबसे बड़ा अंश किसका है और कितना है ?
उत्तर – पशुपालन में सबसे बड़ा अंश मुर्गीपालन का है। यह अंश 42 प्रतिशत है ।
प्रश्न 30. ऑप्रेशन फ्लड क्या है ?
उत्तर – ऑप्रेशन फ्लड विश्व का सबसे बड़ा एकीकृत डेयरी विकास कार्यक्रम है ।
प्रश्न 31. 1960-2002 की अवधि में देशमें दग्ध उत्पादन कितना बढ़ा है ?
उत्तर – 1960-2002 की अवधि में देश में दुग्ध उत्पादन चार गुणा से अधिक बढ़ा है ।
प्रश्न 32. ऑप्रेशन फ्लड का मुख्य उद्देश्य क्या है ? उत्तर – ऑप्रेशन फ्लड का मुख्य उद्देश्य डेयरी सहकारी सीमितियों को संगठित करके ग्रामीण दुग्ध उत्पादकों और शहरी उपभोक्ताओं के बीच कड़ी स्थापित करना है ।
प्रश्न 33. ऑप्रेशन फ्लड के अन्तर्गत क्या – क्या क्रियाएँ की जाती हैं ?
उत्तर – ऑप्रेश्न फ्लड के अन्तर्गत सभी किसान अपना विक्रय योग्य दूध एकत्रिक करके उसकी गुणवत्ता के अनुसार प्रसंस्करण करते हैं और फिर उसे शहरी केन्द्रों में सहकारिता के माध्यम से बेचा जाता है ।
प्रश्न 34.आजकल देश के समस्त उद्योग का कितना प्रतिशत अंश अंतर्वर्ती क्षेत्रों से प्राप्त होता है ?
उत्तर -49 प्रतिशत ।
प्रश्न 35. आजकल देश के समस्त मत्स्य उत्पादन का कितना प्रतिशत अंश महासागरीय क्षेत्रों से प्राप्त हो रहा है ?
उत्तर -51 प्रतिशत ।
प्रश्न 36. मत्स्य उत्पादन सकल घरेलू उत्पाद का कितना प्रतिशत है ?
उत्तर -1.4 प्रतिशत ।
प्रश्न 37. सागरीय उत्पादों में प्रमुख राज्य कौन – कौन से हैं ?
उत्तर – सागरीय उत्पादों में प्रमुख राज्य केरल , गुजरात , महाराष्ट्र और तमिलनाडु हैं ।
प्रश्न 38. मछुआरों की मुख्य समस्याएँ लिखें ।
उत्तर – मछुआरों की प्रमुख समस्याएँ इस प्रकार हैं ( i ) सामाजिक , आर्थिक स्तर का नीचा होना , ( ii ) निम्न रोजगार , ( iii ) प्रति व्यक्ति निम्न आय , ( iv ) अन्य कार्यों की ओर श्रम के प्रवाह का अभाव , ( v ) उच्च निरक्षरता दर तथा ( vi ) गंभीर ऋणग्रस्तता । प्रश्न 39. भारत में विभिन्न प्रकार के बागान उत्पाद लिखें ।
उत्तर – फल , सब्जियाँ , रेशेदार फसलें , औषधीय तथा सुगन्धित पौधे , मसाले , चाय कॉफी के उत्पादन में बगान उत्पादन का बहुत बड़ा योगदान है ।
प्रश्न 40.बागवानी का महत्त्व लिखें ।
उत्तर – बागवानी रोजगार का अवसर प्रदान करती है । यह भोजन और पोषण उपलब्ध कराने में योगदान देती है ।
प्रश्न 41. किस अवधि को स्वर्णिम क्रान्ति के आरम्भ का काल माना जाता है ?
उत्तर – 1991-2003 ई ० की अवधि को ‘ स्वर्णिम क्रान्ति ‘ के आरम्भ का काल माना जाता है ।
प्रश्न 42. भारत किन फलों के उत्पादन में आजीविका का अग्रणी देश माना जाता है ?
उत्तर – भारत आम , केला , नारियल , काजू जैसे फलों के उत्पादन में आज विश्व का अग्रणी देश माना जाता है ।
प्रश्न 43. फल , सब्जियों के उत्पादन में हमारा विश्व में कौन – सा स्थान है ?
उत्तर – फल , सब्जियों के उत्पादन में हमारा विश्व में दूसरा स्थान है ।
प्रश्न 44. बागवानी को बढ़ावा देने के लिए क्या – क्या किया जाना चाहिए ?
उत्तर – बागवानी को बढ़ावा देने के लिए बिजली , शीतगृह व्यवस्था , विपणन माध्यमों का विकास , लघु स्तरीय प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना और प्रौद्योगिकी की उन्नयन और प्रसार के लिए आधारिक संरचनाओं में निवेश किया जाना चाहिए ।
प्रश्न 45. कृषि विपणन से आपका क्या अभिप्राय है ?
( What do you mean by agriculture marketing?)
उत्तर – कृषि विपणन से अभिप्राय उस प्रक्रिया से है जिससे देश में उत्पादित कृषि पदार्थों का संग्रह , भण्डारण , प्रसंस्करण , परिवहन , बैंकिंग वर्गीकरण और वितरण आदि किया जाता है ।
                   लघु उत्तरात्मक प्रश्न
         ( Short Answer Type Questions )
प्रश्न 1. ग्रामीण विकास का क्या अर्थ है ? ग्रामीण विकास से जुड़े मुख्य प्रश्नों को स्पष्ट करें ।
( What do you mean by rural development ? Bring out the key issues in rural development . ) उत्तर – ग्रामीण विकास का अर्थ – ग्रामीण विकास मूलत : ग्रामीण अर्थव्यवस्था के उन घटकों के विकास पर ध्यान केन्द्रित करने पर बल देता है जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सर्वांगीण विकास में पिछड़ गए हैं । ग्रामीण विकास से जुड़े मुख्य प्रश्न- ( i ) साक्षरता और कौशल का विकास , ( ii ) स्वास्थ्य , ( iii ) उत्पादक संसाधनों का विकास , ( iv ) आधारिक संरचना का विकास , ( v ) कृषि अनुसंधान का विस्तार और सूचना प्रसार की सुविधाएँ तथा ( vi ) निर्धनता निवारण और सामाज के कमजोर वर्गों की जीवन दशाओं में महत्त्वपूर्ण सुधार के विशेष उपाय ।
प्रश्न 2. ग्रामीण विकास में साख के महत्त्व की चर्चा करें ।
( Discuss the importance of credit in rural development . )
उत्तर – ग्रामीण विकास में साख का महत्त्व ( Importance of Credit in Rural Growth ) – कृषि वित्त , कृषि विकास कार्यक्रमों का एक मुख्य आधार है क्योंकि पर्याप्त वित्त के अभाव में कृषि वित्त कार्यक्रमों की सफलता सम्भव नहीं । कृषकों को निम्नलिखित उत्पादक तथा अनुत्पादक कार्यों के लिए ऋणों की आवश्यकता होती है ।
( i ) उत्पादक क्रियाएँ ( Productive Activities ) – कृषकों को बीज , खाद , कीटनाशक दवाइयों , कृषि यन्त्र आदि क्रय करने के लिए , भूमि सुधार करना , सिंचाई की व्यवस्था करना आदि कार्यों के लिए ऋण की आवश्यकता होती है । इन ऋणों से देश में कृषि विकास को प्रोत्साहन मिला है ।
( ii ) अनुत्पादक क्रियाएँ ( Unproductive Activities ) – किसान को अपने पारिवारिक निर्वाह खर्च और शादी , मृत्यु तथा धार्मिक अनुष्ठानों के लिए ऋण का सहारा लेना पड़ता है ।
प्रश्न 3. गरीबों की ऋण आवश्यकताओं की पूर्ति करने में अति लघु साख व्यवस्था की भूमिका की व्याख्या करें ।
( Explain the role of micro – credit in meeting credit requirements of the poor . )
उत्तर – अति लघु साख व्यवस्था के अन्तर्गत प्रत्येक सदस्य को न्यूनतम अंशदान देना पड़ता है । न्यूनतम अंशदानों से एकत्रित राशि में से जरूरतमंद सदस्यों को ऋण दिया जाता है । उस ऋण की राशि छोटी – छोटी आसान किश्तों में लौटाई जाती है । च्याज की दर भी उचित रखी जाती है । यह व्यवस्था सदस्यों में मितव्ययिता की भावना पैदा करती है । इसमें ऋण लेने वालों का शोषण नहीं होता । मार्च 2003 ई . के अन्त तक लगभग 7 लाख लोग ऋण प्रदान करने वाले सहायता समूह के रूप में देश के अनेक भागों में कार्य कर रहे हैं ।
प्रश्न 4. सरकार द्वारा ग्रामीण बाजारों के विकास के लिए किए गए प्रयासों की व्याख्या करें ।
( Explain the steps taken by the government in developing rural markets . )
उत्तर – सरकार द्वारा ग्रामीण बाजारों में विकास के लिए कई प्रयास किए गए हैं । उनमें प्रमुख निम्नलिखित हैं-
( i ) बाजार का नियमन ( Regularising the Market ) – व्यवस्थित एवं पारदर्शी विपणन की दशाओं का निर्माण करने के लिए बाजार का नियमन किया गया । इस नीति से कृषक और उपभोक्ता दोनों ही वर्ग लाभान्वित हूए हैं।
( ii ) भौतिक आधारिक संरचनाओं का प्रावधान ( Provision of Physical Infrastructures ) – सड़कों , रेलमार्गों , भण्डार गृहों , गोदामों , शीतगृहों और प्रसंस्करण इकाइयों के रूप में भौतिक संरचनाओं का प्रावधान किया गया है ।
( iii ) उचित मूल्य दिलवाना ( Fair prices ) – सरकार ने किसानों को सरकारी विपणन द्वारा अपने उत्पादों का उचित मूल्य सुलभ कराने की व्यवस्था की है । ( iv ) नीति साधन -( a ) 24 कृषि उत्पादों के लिए न्यूनतम समर्थन कीमत सुनिश्चित की गई है ।
( b ) भारतीय खाद्य निगम द्वारा गेहूँ तथा चावलों के सुरक्षित भण्डार का रख – रखाव किया जाता है । ( c ) राशन की दुकान के माध्यम से चीनी तथा गेहूँ का वितरण ।
प्रश्न 5. कृषि विपणन प्रक्रिया की कुछ बाधाएँ वताएँ ?
( Mention some obstacles that hinder the mechanism of agricultural marketing . )
उत्तर – कृषि विपणन प्रक्रिया में कुछ बाधाएँ निम्नलिखित हैं-
( i ) तौल में हेरा – फेरी होना ।
( ii ) किसानों को बाजार में कृषि उत्पादों के प्रचलित भावों का पता न होना ।
( iii ) माल रखने के लिए अच्छी भण्डारण सुविधाएँ न होना ।
( iv ) कृषि उत्पादन का क्षतिग्रस्त होना ।
प्रश्न 6. स्वर्णिम क्रान्ति की व्याख्या करें ।
( Explain the term ‘ Golden Revolution ‘ . )
उत्तर – स्वर्णिम क्रान्ति – 1991-2003 ई ० की अवधि को ‘ स्वर्णिम क्रान्ति ‘ के आरम्भ का काल मानते हैं । इसी अवधि में बागवानी में सुनियोजित निवेश बहुत ही अधिक उत्पादक सिद्ध हुआ और इस क्षेत्र के एक धारणीय वैकल्पिक रोजगार का रूप धारण किया । भारत आम , केला , नारियल , काजू जैसे फलों और अनेक मसालों के उत्पादन में तो आज विश्व का अग्रणी देश माना जाता है । कुल मिलाकर फल , सब्जियों के उत्पादन में हमारा दूसरा स्थान है । बागवानी में लगे बहुत से कृषकों को आर्थिक दशा में काफी सुधार हुआ है । ये उद्योग अब अनेक चित लोगों के लिए भी आजीविका को बेहतर बनाने में सहायक हुए हैं ।
प्रश्न 7. जैविक कृषि का प्रयोग करने वाले किसानों को आरम्भिक वर्ष में किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है ?
( Enlist some problems faced by farmers during the initial years of organic farming . )
उत्तर – जैविक कृषि का प्रयोग करने वाले किसानों को आरम्भिक वर्ष में निम्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है-
( i ) प्रारम्भिक वर्षों में जैविक कृषि की उत्पादकता रसायनिक कृषि से कम रहती है ।
( ii ) जैविक उत्पादों के रासायनिक उत्पादों की अपेक्षा शीघ्र खराब होने की संभावना रहती है ।
( iii ) बेमौसमी फसलों का जैविक कृषि उत्पादन बहुत सीमित होता है ।
प्रश्न 8. जैविक कृषि क्या है ? यह धारणीय विकास को किस प्रकार बढ़ावा देती है ?
( What is organic farming and how does it promote sustainable development ? )
उत्तर – जैविक कृषि – जैविक कृषि खेती करने की वह पद्धति है जो पर्यावरणीय संतुलन को पुनः स्थापित करके उसका संरक्षण और संवर्धन करती है ।
  जैविक कृषि तथा धारणीय विकास – रसायनिक आगतों से उत्पादित खाद्य की तुलना में जैविक विधि से उत्पादित भोज्य पदार्थों में पोषण तत्त्व अधिक होते हैं । अत : जैविक कृषि हमें अधिक स्वास्थ्यकर भोजन उपलब्ध कराती है । इसके अतिरिक्त जैविक कृषि में श्रम आगतों का प्रयोग परम्परागत कृषि की अपेक्षा अधिक होता है । अतः भारत जैसे देशों में यह अधिक आकर्षण होगा । इसके अतिरिक्त ये उत्पाद विषाक्त रसायनों से मुक्त तथा पर्यावरण की दृष्टि से धारणीय विधियों द्वारा उत्पादित होते हैं । इस तरह जैविक कृषि धारणीय विकास को बढ़ावा देती है ।
प्रश्न 10. आजीविका को धारणीय बनाने के लिए कृषि का विविधीकरण क्यों आवश्यक है ?
( Why is agricultural diversification essential for sustainable livelihoods ? )
उत्तर – विगत वर्षों से रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का हमारे स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है । भारत में परम्परागत कृषि पूरी तरह रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर आधारित है। इस तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए आजीविका को धारणीय बनाने के लिए कृषि का विविधीकरण आवश्यक है ।
प्रश्न 11. कृषि विपणन के कुछ उपलब्ध वैकल्पिक माध्यमों की उदाहरण सहित चर्चा करें ।
( What are the alternative channels available for agricultural marketing ? Give some examples . )
उत्तर – यदि किसान स्वयं ही उपभोक्ता को अपना उत्पादन बेच सके तो उसे उपभोक्ता द्वारा चुकाई गई कीमत का अपेक्षाकृत अधिक अंश प्राप्त होगा । पंजाब , हरियाणा और राजस्थान में कृषक बाजार इसी प्रकार से विकसित हो रहे हैं । इस प्रकार से विकसित हो रहे वैकल्पिक क्रय – विक्रय माध्यम के कुछ प्रमुख उदाहरण इस प्रकार हैं-
( i ) आंध्र प्रदेश की रायचूबाज फल मंडी ।
( ii ) तमिलनाडु की उझावर मंडी ।
( iii ) पुणे की हाड़पसार मंडी ।
                दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न
      ( Long Answer Type Questions )
प्रश्न 1. जैविक कृषि के लाभ और सीमाएँ स्पष्ट करें । ( Identify the benefits and limitations of organic farming . )
उत्तर – जैविक कृषि के निम्नलिखित लाभ हैं-
 ( i ) जैविक कृषि में प्रयोग किए जाने वाले आगत सस्ते होते हैं और इसी कारण इन पर निवेश से प्रतिफल अधिक होते हैं ।
( ii ) जैविक कृषि उत्पादों की काफी माँग विश्व के अन्य देशों में है । अत : इनके निर्यात से भी काफी अच्छी आय हो सकती है ।
( iii ) रासायनिक आगतों से उत्पादित खाद्य की तुलना में जैविक विधि से उत्पादित भोज्य पदार्थों में पोषण तत्त्व भी अधिक होते हैं । अतः जैविक कृषि हमें अधिक स्वास्थ्यकर भोजन उपलब्ध करवाती है । ( iv ) जैविक कृषि में श्रम आगतों का प्रयोग परम्परागत कृषि की अपेक्षा अधिक होता है । अतः भारत जैसे देश में यह अधिक आकर्षक होगी । जैविक कृषि को सीमाएँ – जैविक कृषि की मुख्य सीमाएँ निम्नलिखित हैं-
( i ) जैविक कृषि संवर्धन के लिए उपयुक्त नीतियों का अभाव है ।
( ii ) जैविक कृषि के उत्पादों के विपणन की समस्या है ।
( iii ) प्रारंभिक वर्षों में जैविक कृषि की उत्पादकता रासायनिक कृषि से कम रहती है । अतः बहुत बड़े स्तर पर छोटे और सीमान्त किसानों के लिए इसे अपनाना कठिन होगा ।
( iv ) जैविक उत्पादों को रासायनिक उत्पादों की अपेक्षा शीघ्र खराब होने की भी संभावना रहती है । ( v ) बे – मौसमी फसलों का जैविक कृषि में उत्पादन बहुत सीमित होता है ।
प्रश्न 2. विविधीकरण के स्रोत में से पशुपालन , मत्स्यपालन और बागवानी के महत्त्व पर टिप्पणी लिखें ।
( Bring out the importance of animal husbandry , fisheries and horticulture as a source of diversification . )
उत्तर – विविधीकरण के स्रोत ( Source of Diversification ) – विविधीकरण के कई स्रोत हैं । उनमें मुख्य पशुपालन , मत्स्यपालन और बागवानी हैं । इन तीनों स्रोतों के महत्त्व का नीचे वर्णन किया गया है ।
( i ) पशुपालन ( Animal Husbandary ) – छोटे और सीमान्त किसानों , कृषि मजदूरों और अन्य ग्रामीण निर्धनों की एक बड़ी संख्या लाभप्रद रोजगार प्राप्त करने के लिए पशुधन पर निर्भर है । पशुपालन देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है । यह क्षेत्र ऊन , खालें और चमड़ों जैसे जन – उपयोग के अनेक उत्पादों की व्यवस्था करता है । छोटे व सीमान्त किसानों और भूमिहीन श्रमिकों को बेहतर पशुधन उत्पादन के माध्यम से धारणीय रोजगार विकल्प का स्वरूप प्रदान किया जा सकता है । पशुपालन में गाय , भैंस , बत्तख , मुर्गियों आदि का पालन निहित है । पशुपालन से परिवार की आय में स्थिरता आती है । साथ ही खाद्य सुरक्षा , परिवहन , ईंधन , पोषण आदि की व्यवस्था भी परिवार की अन्य खाद्य उत्पादक कृषक गतिविधियों में अवरोध के बिना प्राप्त हो जाती है । आज का पशुपालन क्षेत्रक देश के 7 करोड़ छोटे व सीमान्त किसानों और भूमिहीन श्रमिकों को आजीविका कमाने के वैकल्पिकं साधन सुलभ करा रहा है ।
( ii ) मत्स्य पालन ( Fishing ) – मत्स्य उद्योग को देश को खाद्यान्न पूर्ति , पोषक तत्व , रोजगार के अवसर तथा निर्यात आय में वृद्धि करने को दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माना जाता है । इस उद्योग में देश ने गौरवशाली वृद्धि की है । भारत में मत्स्य उत्पादन सकल घरेलू उत्पाद का 14 प्रतिशत है ।
( iii ) बागवानी ( Gardening ) – इसे उद्यान विज्ञान भी कहते हैं । बागवानी उद्योग के अंतर्गत फल , सब्जियाँ , रेशेदार फसलें , औषधीय तथा सुगन्धित पौधे , मसाले , चाय , कॉफी इत्यादि उत्पाद आते हैं । ये उत्पाद रोजगार के साथ – साथ भोजन और पोषण उपलब्ध कराने में बहुत बड़ा योगदान दे रहे हैं । इनसे हमें विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है । बागवानी में सुनियोजित निवेश बहुत ही उत्पादक सिद्ध हुआ और इस क्षेत्रक ने एक धारणीय वैकल्पिक रोजगार का रूप धारण कर लिया है । बागवानी में लगे लगभग सभी कृषकों की आर्थिक दशा में काफी सुधार हुआ है । ये उद्योग अनेक वचित वर्गों के लिए भी आजीविका को श्रेष्ठ बनाने में सहायक हो गए हैं । अनुमानत : इस समय देश की 19 प्रतिशत श्रम शक्ति को इस क्षेत्र से रोजगार मिल रहा है ।
प्रश्न 3. भारत में ग्रामीण विकास में ग्रामीण बैंकिंग व्यवस्था की भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
( Critically evaluate the role of the rural banking system in the process of rural development in India . )
उत्तर — भारत में ग्रामीण विकास में ग्रामीण बैंकिंग व्यवस्था की भूमिका का मूल्यांकन – बैंकंग व्यवस्था के त्वरित विकास का ग्रामीण कृषि और गैर – कृषि उत्पादन , आय और रोजगार पर सकारात्मक प्रभाव रहा है । विशेष रूप से हरित क्रान्ति के बाद से किसानों को साख सेवायें और सुविधायें देने तथा उनकी उत्पादन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अनेक प्रकार के ऋण देने में इन्हीं ने सहायता दी है । अब तो अकाल बीते युग की बात हो गई है । हम खाद्य सुरक्षा की उस मंजिल पर पहुंच चुके हैं कि हमारे सुरक्षित भण्डार भी बहुत पर्याप्त माने जा रहे हैं किन्तु अभी भी हमारी बैंकिंग व्यवस्था उचित नहीं बन पाई है । इसका प्रमुख कारण है । औपचारिक साख संस्थाओं का चिरकालिक निम्न निष्पादन और किसानों द्वारा बड़े पैमाने पर किश्तों का नहीं चुका पाना । कृषि ऋणों की वसूली नहीं हो पाने की समस्या बहुत गंभीर है । अनेक अध्ययनों से यह ज्ञात हुआ है कि लगभग 50 प्रतिशत व्यतिकामी इच्छित व्यतिकामी हैं । ये व्यक्ति ग्रामीण बैंक व्यवस्था के सुचारु संचालन के लिए एक गंभीर खतरा बन चुके हैं जिसे नियंत्रित करने की आवश्यकता है ।
  अत : सुधारों के बाद से बैंकिंग क्षेत्र के प्रसार एवं उन्नति में कमी हुई है । स्थिति में सुधार लाने के लिए बैंकों को अपनी कार्य – प्रणाली में बदलाव लाने की आवश्यकता है ताकि वे केवल ऋणदाता और ऋण लेने के बीच एक सेतु का काम करें । उन्हें किसानों को बताना कि वे अपने वित्तीय स्रोतों का कुशलतम प्रयोग कर सकें ।
प्रश्न 4. सरकार द्वारा कृषि सुधार के लिए अपनाए गए चार उपायों की व्याख्या करें ?
( Explain four measures taken by the government to improve agricultural marketing . )
उत्तर – कृषि विपणन के विभिन्न पहलुओं को सुधारने के लिए किए गए चार प्रमुख उपाय निम्न थे-
( i ) बाजार का नियमन – पहला कदम व्यवस्थित एवं पारदर्शी विपणन को दिशाओं का निर्माण करने के लिए बाजार का नियमन करना था । इस नीति से कृषक और उपभोक्ता , दोनों * ही वर्ग लाभान्वित हुए हैं । हालाँकि , लगभग 27,000 ग्रामीण क्षेत्रों में अनियत मंडियों को विकसित किए जाने की आवश्यकता है , जिससे ग्राम्य क्षेत्रों को मंडियों की वास्तविक क्षमताओं का लाभ उठा पाना संभव हो सके ।
( ii ) भौतिक आधारित संरचनाओं का विकास – दूसरा महत्त्वपूर्ण उपाय सड़कों , रेलमार्गों , भंडारगृहों , गोदामों , शीतगृहों और प्रसंस्करण इकाइयों के रूप में भौतिक आधारिक संरचनाओं का प्रावधान किया जाना था । किन्तु , अभी तक वर्तमान आधारिक सुविधाएं बढ़ती मांग को देखते हुए अपर्याप्त सिद्ध हुई हैं , जिन्हें सुधारने की आवश्यकता है ।
( iii ) उत्पादों का उचित मूल्य – तीसरे उपाय में सरकारी विपणन द्वारा किसानों को अपने उत्पादों का उचित मूल्य सुलभ कराना है । गुजरात राज्य तथा देश के अन्य कई भागों में दुग्ध उत्पादक सहकारी समितियों ने ग्रामीण अंचलों के सामाजिक तथा आर्थिक परिदृश्य का कायाकल्प कर दिया है । किन्तु , अभी भी कुछ स्थानों पर सहकारिता आन्दोलन में कुछ कमियाँ दिखाई देती हैं । इनके कारण हैं – सभी कृषकों को सहकारिताओं में शामिल नहीं कर पाना , विपणन और प्रसंस्करण सहकारी समितियों के मध्य संबंध सूत्रों का न होना और अकुशल वित्तीय प्रबंधन ।
( iv ) नीतिगत साधनों की उपलब्धता – चौथे उपाय के अन्तर्गत वे साधन हैं – जैसे- ( a ) कृषि उत्पादों के लिए न्यूनतम समर्थन कीमत सुनिश्चित करना : ( b ) भारतीय खाद्य निगम द्वारा गेहूँ और चावल के सुरक्षित भंडार का रख – रखाव और ( c ) सार्वजनिक वितरण प्रणाली ( राशन व्यवस्था ) के माध्यम से खद्यान्नों और चीनी का वितरण । इन साधनों का ध्येय क्रमश : किसानों को उपज के उचित दाम दिलाना तथा गरीबों को सहायिकी युक्त ( Subsidised ) कीमत पर वस्तुएँ उपलब्ध कराना है । यद्यपि सरकार के इन सभी प्रयासों के बाद भी आज तक कृषि मंडियों पर निजी व्यापारियों ( साहूकारों , ग्रामीण राजनीतिज्ञ सामंतों , बड़े व्यापारियों तथा अमीर किसानों ) का वर्चस्व बना हुआ है । सरकारी संस्थाएँ और सहकारिताएँ संकल कृषि उत्पादन के मात्र 10 प्रतिशत अंश के आदान – प्रदान में सफल हो पा रही हैं – शेष अभी भी निजी व्यापारियों के हाथों में ही हैं ।
प्रश्न 5. ग्रामीण विविधीकरण में गैर कृषि रोजगार का महत्त्व समझाइये ?
( Explain role of non – farm employment in promoting rural diversification . )
उत्तर – आज ग्रामीण क्षेत्रों को अनेक प्रकार के उत्पादक कार्यों की ओर उन्मुख कर वहाँ एक नए उत्साह और स्फूर्ति का संचार करना आवश्यक हो गया है । यही ग्रामीण विविधीकरण है । ये कार्य हो सकते हैं – डेरी उद्योग , मुर्गी पालन , मत्स्य पालन , फल – सब्जी उत्पादन और ग्रामीण उत्पादन केन्द्रों व शहरी बाजारों ( विदेशी निर्यात बाजारों सहित ) के बीच संपर्क सूत्रों की रचना । इस प्रकार , कृषि उत्पादन में लगे निवेश पर अधिक प्रतिलाभ अर्जित करना संभव हो पाएगा । यही नहीं , आधारिक संरचना जैसे , साख एवं विपणन , कृषक – हित – नीतियाँ तथा कृषक समुदायों एवं राज्य कृषि विभागों के मध्य निरंतर संवाद और समीक्षा इस क्षेत्र की पूर्ण क्षमता को प्राप्त करने में सहायक हैं । आज हम पर्यावरण और ग्रामीण विकास को दो अलग – अलग विषय मान कर व्यवहार नहीं कर सकते । नई पर्यावरण – मित्र प्रौद्योगिकी विकल्पों के अविष्कार या प्राप्ति की भी आवश्यकता है , जिससे विभिन्न परिस्थितियों का सामना होने पर भी हम धारणीय विकास की दिशा में अग्रसर हो पाएँ । इन विकल्पों में से प्रत्येक ग्राम्य समुदाय अपनी स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप चयन कर सकता है । अत : हमारा पहला काम तो सभी उपलब्ध विधियों में से सर्वश्रेष्ठ की पहचान कर उसे चुनना ही होगा । नाकि इस ‘ व्यावहारिक प्रशिक्षण ‘ प्रक्रिया को और गति प्रदान की जा सके ।
प्रश्न 6. ‘ सूचना प्रौद्योगिकी ‘ धारणीय विकास तथा खाद्य सुरक्षा की प्राप्ति में बड़ा महत्त्वपूर्ण योगदान करती है । टिप्पणी लिखें ।
( Information technology plays a very significant role in achieving sustainable development and food security ‘ – comments . )
उत्तर – हम जानते हैं कि सूचना प्रौद्योगिकी ने भारतीय अर्थव्यवस्था के अनेक क्षेत्रों में क्रान्तिकारी परिवर्तन ला दिया है । अब 21 वीं सदी में देश में खाद्य सुरक्षा और धारणीय विकास में सूचना प्रौद्योगिकी के निर्णायक योगदान के विषय में सर्वसम्मति बन चुकी है । इस सम्मति का कारण है कि अब सूचनाओं और उपयुक्त सॉफ्टवेयर का प्रयोग कर सरकार सहज ही खाद्य । असुरक्षा की आशंका वाले क्षेत्रों का समय रहते पूर्वानुमान लगा सकती है । इस प्रकार समाज ऐसी विपत्तियों की संभावनाओं को कम या पूरी तरह से समाप्त करने में भी सफल हो सका है । कृषि क्षेत्र में तो इसे विशेष योगदान हो सकते हैं । इस प्रौद्योगिकी द्वारा उदीयमान तकनीकों , कीमतों , मौसम तथा विभिन्न फसलों के लिए मृदा की दशाओं को उपयुक्तता की जानकारी का प्रसारण किया जा सकता है । सबसे महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि सूचना प्रौद्योगिकी ने एक ज्ञान आधारित अर्थतंत्र का सूत्रपात कर दिया है – जो औद्योगिक क्रांति से हजार गुना अधिक शक्तिशाली है । स्वयं में सूचना प्रौद्योगिकी कुछ भी नहीं बदल सकी , किन्तु यह जानमानस में बसी सृजनात्मक संभाव्यता और उनके ज्ञान संचय के यंत्र के रूप में कार्य कर सकती है । इससे ग्रामीण क्षेत्रों में उच्च स्तर पर रोजगार के अवसरों को उत्पन्न करने की संभाव्यता भी है । भारत के अनेक भागों में सूचना प्रौद्योगिकी का प्रयोग ग्रामीण विकास के लिए हो रहा है ।
Previous Post Next Post