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 Bihar Board Class 11 Psychology Solutions Chapter 7 मानव स्मृति

BSEB Bihar Board Class 11 Psychology Solutions Chapter 7 मानव स्मृति

Bihar Board Class 11 Psychology मानव स्मृति Text Book Questions and Answers

प्रश्न 1.
कूट संकेतन, भंडारण और पुनरुद्धार से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
स्मृति एक संज्ञानात्मक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से हम सीखे हुए ज्ञान तथा प्राप्त अनुभवों को संचित करके भविष्य के लिए रखते हैं। स्मृति नामक प्रक्रिया में तीन स्वतंत्र किन्तु अन्तः संबंधित अवस्थाएँ होती हैं –
(क) कूट संकेतन
(ख) भंडारण तथा
(ग) पुनरुद्धार

हमारे द्वार ग्रहण की जाने वाली सूचनाएं जो स्मृति बनकर भविष्य में प्रयोग की जाने योग्य अवस्था में आ जाती हैं, उन सभी सूचनाओं को इन तीन प्रमुख अवस्थाओं (चरणों) से होकर अवश्य गुजरना होता है।

1. कूट संकेतन:
स्मृति का प्रारम्भ इसी पहली अवस्था के रूप में होता है। वांछित सूचनाएँ कूट संकेतन के द्वारा स्मृति तंत्र तक पहुँचता है। तंत्रिका आवेग की उत्पति ज्ञानेन्द्रियों पर बाह्य उद्दीपक के प्रभाव के कारण होती है। उत्पन्न आवेग मस्तिष्क के विभिन्न क्षेत्रों में पुनः प्रक्रमण के लिए ग्रहण कर लिए जाते हैं।

कूट संकेतन के रूप में आनेवाली सूचनाएँ तंत्रिका तंत्र में ली जाती हैं संचित संकेतनों से अभीष्ट अर्थ पाने का प्रयास किया जाता है तथा उसे भविष्य में पुनः प्रक्रमण के लिए सुरक्षित रखा जाता है। अर्थात् कूट संकेतन एक ऐसी विशिष्ट प्रक्रिया है जिसकी सहायता से सूचनाओं को एक ऐसे आकार या रूप में बदल लिया जाता है ताकि वे स्मृति में स्थान पाकर सार्थक रूप में संचित रहे। इस अवस्था को पंजीकरण भी कहा जा सकता है। यह स्मृति की पहली अवस्था है।

2. भंडारण:
सार्थक एवं उपयोगी सूचनाओं को कूट संकेतन के माध्यम से प्राप्त करने के बाद जिस विशेष प्रक्रिया के द्वारा कुछ समय सीमा तक धारण किये रहने की व्यवस्था की जाती है, उस प्रक्रिया को भंडारण कहते हैं। यह स्मृति की द्वितीय अवस्था है। भंडारित सूचना का उपयोग आवश्यकतानुसार आने वाले समय में किया जाता है। इसे ‘याद रखना’ भी कहा जाता है।

3. पुनरुद्धार:
पुनरुद्धार स्मृति की अंतिम एवं तीसरी अवस्था है। इसे ‘याद आना’ भी माना जा सकता है। समस्या समाधान अथवा किसी आवश्यक प्रपत्र को खोजने में हम अपनी चेतना को जगाकर जानना चाहते हैं कि अमुक व्यक्ति का कागज कहाँ मिलेगा और किस तरह इसका अधिक-से-अधिक उपयोग किया जा सकता है। अतः कूट संकेतन से मिली सूचना का भंडारण करने के पश्चात् संचित सूचना को चेतना में लाने (याद करने) की प्रक्रिया को पुनरुद्धार कहा जाता है। इस प्रक्रिया को स्मरण जैसा नाम भी दिया जा सकता है।

प्रश्न 2.
संवेदी, अल्पकालिक तथा दीर्घकालिक स्मृति तंत्र से सूचना का प्रक्रमण किस प्रकार होता है?
उत्तर:
मानव स्मृति को कम्प्यूटर की तरह संवेदनशील बनाने के लिए सूचना का पंजीकरण, भंडारण तथा उसमें आवश्यकतानुसार फेर-बदल करने की क्षमता को आधार बनाकर स्मृति को क्रियाशील स्थिति में लाया जाता है। एटकिंशन तथा शिफ्रिन ने सन् 1968 में स्मृति से संबंधित। एक मॉडल तैयार किया जिसे ‘अवस्था मॉडल’ के रूप में जाना जाता है। ‘अवस्था मॉडल’ के आधार परी स्मृति तंत्र को तीन भागों में बाँट कर अध्ययन किया जाने लगा –
(क) संवेदी स्मृति
(ख) अल्पकालिक स्मृति तथा
(ग) दीर्घकालिक स्मृति
तीनों भागें में से प्रत्येक की अपनी-अपनी विशेषताएँ होती हैं तथा इनके द्वारा संवेदी सूचनाओं के संबंध में भिन्न प्रकार्य निष्पादित किए जाते हैं।

1. संवेदी स्मृति:
देखकर या सुनकर जो भी सूचनाएँ प्राप्त होती हैं उसे सर्वप्रथम संवेदी स्मृति को दिया जाता है। संवेदी स्मृति की संचयी क्षमता तो बहुत अधिक होती है लेकिन धारण अवधि एक सेकेण्ड से भी कम होती है। परिशुद्धता इसकी पहली पसंद होती है। संवेदी स्मृति में संचित सूचनाएँ उद्दीपक की प्रतिकृति की तरह जमा रहती है। उसे चित्रात्मक तथा प्रतिध्वन्यात्मक संवेदी तंत्रिका के रूप में भी अनुभव किया जाता है क्योंकि दृश्य-उत्तर-बिम्ब और ध्वनि-प्रतिध्वनि का अभ्यास कारण स्वयं तंत्रिका ही होती है।

2. अल्पकालिक स्मृति:
प्राप्त सूचनाओं में से कुछ सूचनाओं पर हमारा ध्यान केन्द्रित हो पाता है। ध्यान दी गई सूचनाओं को अल्पकालिक स्मृति के अन्तर्गत स्थान मिलता है। इस श्रेणी की सूचना सामान्यतः 30 सेकेण्ड से भी कम समय के लिए स्मृति तंत्र में बनी रहती है। एटकिंशन एंव शिफ्रिन के मतानुसार अल्पकालिक स्मृति सूचना का कूट संकेतन मुख्यतः ध्वन्यात्मक होता है।

इसे बनाये रखने के लिए निरंतर अभ्यास की आवश्यकता होती है। अर्थात् अल्पकालिक स्मृति में व्यक्ति किसी अनुभूति को 30 सेकेण्ड तक ही रख सकता है। इसे प्राथमिक स्मृति भी कहा जाता है। जैसे, किसी अपरिचित व्यक्ति की दूरभाष संख्या को सुनकर उसे भूल जाना लघुकालिक स्मृति के कारण ही होता है।

3. दीर्घकालिक स्मृति:
कुछ अति आवश्यक सूचनाएँ स्थायी तौर पर अनन्त समय तक संचित रह जाती है। ऐसी सूचनाएँ अल्पकालिक स्मृति की क्षमताएँ धारण अवधि की सीमा को पार कर जाती है, वही दीर्घकालिक स्मृति में प्रवेश कर पाती है। इस श्रेणी की स्मृति के लिए धारण क्षमता व्यापक मानी जाती है दीर्घकालिक स्मृति में जगह पाने वाली सूचनाएँ भूलने से बची रहती है। कभी-कभी पुनरुद्धार विफलता के कारण कुछ सूचनाएँ स्मृति की सीमा से बाहर हो जाते हैं अतः हम उसे भूल जाते हैं। चेतना ग्रन्थि की सहायता से कुछ क्षण तक प्रयास करने पर भूली गई सूचनाएँ स्मृति में आ जाती हैं।

दीर्घकालिक स्मृति को गौण स्मृति भी कहा जाता है। अपना नाम, पता, दूरभाष संख्या, शत्रु-मित्रों के नाम आदि दीर्घकालिक स्मृति में होने के कारण सदा याद रहते हैं। इन तीनों भागों का संक्षिप्त अध्ययन के लिए निम्नांकित तालिका की मदद ली जा सकती है –

प्रश्न 3.
अनुरक्षण एवं विस्तृत पूर्वाभ्यास में क्या अंतर है?
उत्तर:
अनुरक्षण एवं विस्तृत पूर्वाभ्यास दोनों स्मृति-तंत्र से सम्बन्धित है। दोनों की विशेषताओं को अलग-अलग अनुच्छेदों के द्वारा सूचित करके उनमें अंतर बताने का प्रयास किया गया है –

(क) अनुरक्षण पूर्वाभ्यास:
अनुरक्षण पूर्वाभ्यास की महत्ता अल्पकालिक स्मृति के लिए नियंत्रक का कार्य करता है। अनुरक्षण पूर्वाभ्यास के द्वारा सूचना को वांछित समय तक धारित बनाने का प्रयास किया जाता है। अनुरक्षण पूर्वाभ्यास सूचना को अनुरक्षित रहने के लिए सूचना को दुहराने का अभ्यास निरंतर करने की सलाह देता है। अनुरक्षण पूर्वाभ्यास जब रुक जाता है तब सूचना की स्मृति मिटने लग जाती है।

(ख) विस्तृत पूर्वाभ्यास:
विस्तृत पूर्वाभ्यास के प्रयोग से कोई सूचना, अल्पकालिक स्मृति से दीर्घकालिक स्मृति में प्रवेश करती है। अनुरक्षण पूर्वाभ्यास पूर्वाभ्यास के विपरीत, जिसमें मूक या वाचिक रूप से दुहराया जाता है। विस्तृत पूर्वाभ्यास के द्वारा दीर्घकालिक स्मृति में पूर्व निहित सूचना के साथ धारिता के लिए अभीष्ट सूचना को जोड़ने का प्रयास किया जाता है। विस्तृत पूर्वाभ्यास के द्वारा किसी सूचना को उससे उद्वेलित विभिन्न साहचयो के आधार पर कोई व्यक्ति विश्लेषित कर पाता है।

सूचनाओं को संगठित करने, तार्किक ढाँचे में विस्तृत करना तथा समान स्मृतियों के साथ मिलाने, उपयुक्त मानसिक प्रतिमा बनाने जैसी क्रियाओं में विस्तारपरक पूर्वाभ्यास का सक्रिय योगदान होता है। अर्थात् दोनों पूर्वाभ्यास में स्पष्ट अंतर के रूप में कहा जा सकता है कि अनुरक्षण पूर्वाभ्यास जहाँ अल्पकालिक स्मृति के नियंत्रक के रूप में जाना जाता है वहीं दीर्घकालिक स्मृति के विश्लेषण में विस्तारपरक पूर्वाभ्यास का योगदान होता है।

अनुरक्षण पूर्वाभ्यास अल्पकालिक स्मृति की धारिता को विकसित करने का काम करता है वहीं विस्तारपरक पूर्वाभ्यास दीर्घकालिक स्मृति के स्तर को विकसित करता है। अनुरक्षण विधि का विकल्प खंडीयन विधि के रूप में उपलब्ध हो चुका है जबकि विस्तारपरक पूर्वाभ्यास के लिए कोई विकल्प नहीं मिल सका है। सूचना के अवस्था परिवर्तन की व्याख्या करने में अनुरक्षण पूर्वाभ्यास का कोई योगदान नहीं होता है जबकि विस्तारपरक पूर्वाभ्यास अवस्था परिवर्तन की कला को समझता है।

प्रश्न 4.
घोषणात्मक एवं प्रक्रिया मूलक स्मृतियों में क्या अंतर है?
उत्तर:
दीर्घकालिक स्मृति में अनेक प्रकार की सूचनाएं संचित रहती हैं। समुचित अध्ययन के लिए दीर्घकालिक स्मृति का वर्गीकरण किया गया है। पहला वर्गीकर में दो वर्गों को प्राथमिकता दी गई है –
(क) घोषणात्मक तथा
(ख) प्रक्रियामूलक (या अघोषणात्मक)।

इन दोनों वर्गों में मुख्य अंतर निम्न वर्णित हैं –

1. आधार:
घोषणात्मक स्मृति में वैसी सूचनाओं का रखा जाता है जो तथ्य, नाम आदि से संबंधित होते हैं जबकि प्रक्रिया झलक स्मृति में किसी क्रिया के सम्पादन के लिए वांछनीय कौशल से जुड़ी सूचनाएं ली जाती हैं।

2. वर्णन:
घोषणात्मक स्मृति से जुड़ी सूचनाओं का वर्णन मौखिक अथवा लिखित रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है जबकि प्रक्रिया मूलक स्मृति के अन्तर्गत जो सूचनाएँ होती हैं उन्हें शब्दों में सहजता से वर्णित नहीं किया जा सकता है।

3. उदाहरण:
घोषणात्मक स्मृति के उदाहरण हैं – आपका नाम क्या है? भारत की राजधानी दिल्ली है। मेढ़क उभयचर प्राणी है। समुद्र में जल भरा रहता है। चिड़िया घोंसला बनाकर रहती है। जबकि प्रक्रिया मूलक के उदाहरण हैं-साइकिल चलाना, चाय बनाना, नीम की पत्तियों तथा मिरचाई के तीखापन में अंतर व्यक्त करना इत्यादि।

प्रश्न 5.
दीर्घकालिक स्मृति में श्रेणीबद्ध संगठन क्या है?
उत्तर:
दीर्घकालिक स्मृति में बड़े पैमाने पर सूचनाओं का संग्रह होता है जिनका उपयोग कुशलतापूर्वक किया जाता है। सूचनाओं के संबंध में भेद और लक्षण जानने के लिए उन्हें संगठित करना आवश्यक होता है। दीर्घकालिक स्मृति के संबंध में निम्नलिखित प्रश्नों के सही उत्तर के आधार पर सूचनाओं को संगठित किया जाता है –

  1. सूचना किसके संबंध में हैं?
  2. सूचना में प्रयुक्त मुख्य पद किस श्रेणी या जाति का है।
  3. किस तरह के प्रश्नों के उत्तर हाँ या नहीं में दिये जा सकते हैं।
  4. सूचना सामाजिक, मानसिक, आर्थिक किस प्रकार के कारकों पर आधारित है।
  5. स्मृति पर आधारित प्रश्नों के उत्तर देने में कितना समय लिया जाता है।

दीर्घकालिक स्मृति में ज्ञान-प्रतिनिधान की सबसे महत्त्वपूर्ण इकाई संप्रत्यय है जहाँ संप्रत्यय समान लक्षण वाले वस्तुओं अथवा घटनाओं के मानसिक संवर्ग होते हैं। सूचना प्रात्यधिक रूप में प्रतिमाओं के रूप में संकेतित की जा सकती है। सन् 1969 में एलन कोलिन्स तथा रॉस क्युिलियन ने शोध-पत्र के माध्यम से बताया कि दीर्घकालिक स्मृति में सूचना श्रेणीबद्ध रूप से संगठित होती हैं तथा उसकी एक जालीदार संरचना होती है।

संगठन में सूचनाओं को उनके गुणधर्मों के आधार पर संगठित किया जाता है उन्हें श्रेणी सदस्यता के रूप में व्यक्त करते हैं। उदाहरण के रूप में वाक्य संरचना की व्याख्या करके पता लगाया गया कि जैसे-जैसे विधेय किसी वाक्य में कर्ता से पदानुक्रम में दूर होता गया, लोगों ने सूचना सम्बन्धी प्रश्नों के उत्तर देने में अधिक समय लिया।

अतः सूचनाओं को निम्न स्तर और उच्च स्तर के आधार पर संगठित कर लिया जाता है। अर्थात् दीर्घकालिक स्मृति में सामग्री संप्रत्यय, श्रेणियों एवं प्रतिमाओं के रूप में प्रस्तुत होती है तथा श्रेणीबद्ध रूप से संगठित होती है। श्रेणीबद्ध संगठन का सामान्य अर्थ है कि सूचनाओं को गुण अथवा संरचना अथवा प्रकृति या प्रतिमा के आधार पर निम्न स्तरीय सूचना से उच्च स्तरीय सूचनाओं का क्रमबद्ध प्रस्तुतीकरण।

प्रश्न 6.
विस्मरण क्यों होता है?
उत्तर:
विस्मरण या भूलना एक मानसिक क्रिया है जिससे स्मृति तंत्र में संचित स्मृति चिह्न मिट जाते हैं तथा हम ज्ञात साधनों या घटनाओं के संबंध में कोई भी सूचना देने में असमर्थ हो . जाते हैं। विस्मरण के कारण परिचितों को पहचानना या गणितीय सूत्र या नियमों को शुद्ध रूप में बतलाना संभव नहीं रह जाता है।

विस्मरण नामक मानसिक विकृति उत्पन्न होने के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं –

1. चिह्न-हास के कारण विस्मरण:
केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र में स्मृति के द्वारा किये जाने वाले संशोधनों के फलस्वरूप शारीरिक परिवर्तन देखे जाते हैं। शारीरिक विकृति के कारण सूचनाओं को उपयोग से बाहर रहने से स्मृति चिह्न मिट जाते हैं।

2. अवरोध के कारण विस्मरण:
स्मृति भंडार में संचित विभिन्न सामग्री के बीच अवरोध के कारण विस्मरण होता है।

विस्मरण में दो प्रकार के अवरोध उत्पन्न होते हैं –

(क) अग्रलक्षी:
पहले सीखी गई क्रिया विधि आने वाली नई क्रिया विधि के सम्पादन में अवरोध प्रकट करता है।

(ख) पूर्वलक्षी अवरोध:
पूर्वलक्षी अवरोध में पश्चात् अधिगम, पूर्व अधिगम सामग्री के प्रत्यावान में अवरोध पहुंचाता है।

3. पुनरुद्धार असफलता के कारण विस्मरण:
प्रत्याहान के समय पुनरुद्धार के संकेतों के अनुपस्थित रहने या अनुपयुक्त होने के कारण विस्मरण होता है।

प्रश्न 7.
अवरोध के कारण विस्मरण, पुनरुद्धार से संबंधित विस्मरण से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
(क) अवरोध के कारण विस्मरण का आधार संचित साहचर्यों के बीच उत्पन्न प्रतिद्वंद्विता होती है जबकि पुनरुद्धार से संबंधित विस्मरण प्रत्याहान के समय पुनरुद्धार के संकेतों के अनुपस्थित रहने या अनुपयुक्त होने के कारण होता है।
(ख) अवरोध के कारण विस्मरण में दो प्रकार के अवरोध उत्पन्न होते हैं –

1. अग्रलक्षी:
पहले सीखी गई क्रिया बाद में सीखी जाने वाली क्रिया को याद करने में अवरोध उत्पन्न करती है।

2. पूर्वलक्षी:
पश्चात् अधिगम, पूर्व अधिगम सामग्री के प्रत्याहान में अवरोध पहुँचाता है। पुनरुद्धार से संबंधित विस्मरण को वर्गीकृत नहीं किया जाता है।

(ग)

  • अंग्रेजी सीखने के क्रम में पूर्व में सीखी गई भाषा का ज्ञान अवरोध का काम करता है।
  • इसके साथ यह भी ज्ञात है कि कई लक्षणों वाले शब्दों को निश्चित क्रम में प्रस्तुत करने पर उसे कुछ समय बाद यथावत बतलाना संभव नहीं होता है क्योंकि पुनरुद्धार के संकेत समय बीतने पर लुप्त हो चुके थे।

प्रश्न 8.
‘स्मृति एक रचनात्मक प्रक्रिया है’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
स्मृति एक रचनात्मक प्रक्रिया है जहाँ सूचनाएँ व्यक्ति के पूर्व ज्ञान, समझ एवं प्रत्याशों के अनुसार संकेतित एवं संचित की जाती है। मनोवैज्ञानिक बार्टलेट ने क्रमिक पुनरुत्पादन विधि पर आधारित प्रयोग किया जिसमें प्रतिभागी याद की हुई सामग्री को भिन्न-भिन्न समयांतरालों पर प्रत्याहान करते थे। प्रयोग में पाई जाने वाली को बार्टलेट ने स्मृति की रचनात्मक प्रक्रिया को समझने के लिए उपयोगी माना। उन्होंने गलतियों को वांछनीय संशोधनों तथा समयानुकूल अर्थ प्रकट करने का प्रयास मानकर खुशी व्यक्त की।

बार्टलेट ने बताया कि कोई विशिष्ट स्मृति व्यक्ति के ज्ञान, लक्ष्यों, अभिप्रेरणा; वरीयता तथा अन्य कई मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं से प्रभावित होते हैं। स्मृति के कारण ही हम भूतपूर्व अनुभवों और ज्ञान के आधार पर नयी सूचना के विश्लेषण, भंडारण तथा पुनरुद्धार में सहयोग करने की क्षमता प्राप्त करते हैं। इस आधार पर स्पष्ट हो जाता है कि स्मृति के कारण विकास के लिए कई उपयोगी प्रक्रियाओं को सफलतापूर्ण पूरा करने में सहयोग मिलता है अर्थात् स्मृति एक रचनात्मक प्रक्रिया है।

प्रश्न 9.
स्मृति-सहायक संकेत क्या है? अपनी स्मृति सुधार के लिए एक योजना के बारे में सुझाव दीजिए।
उत्तर:
स्मृति को स्थायी, उपयोगी और ऐच्छिक पुनरुद्धार के योग्य बनाने हेतु स्मृति-सुधार संबंधी प्रक्रियाओं का एक संगठन सरल युक्ति पर आधारित होती है। स्मृति सुधार की बहुत सारी युक्तियाँ हैं, जिन्हें स्मृति-सहायक संकेत कहा जाता है। संगठित विधियों की रूप-रेखा पर आधारित ढाँचा बहुत ही उपयोगी होता है। स्मृति सुधार के लिए कई विधियाँ बतलाई गई हैं। जैसे –

1. मुख्य शब्द विधि:
मिलते-जुलते शब्दों का युग्म बनाकर नये शब्दों को अपनी स्मृति में स्थान दिया जा सकता है।

2. स्थान विधि:
स्मृति में रखी जानेवाली सूचनाओं को उनके लिए उपयुक्त स्थानों के साथ याद रखने का प्रयास उपयोगी होता है। जैसे-विद्यालय, अस्पताल, किचेन, बगीचा, दुकान आदि में उपलब्ध सामग्रियों का वर्गीकरण करके नयी सूचना को याद रखना सरल हो जाता है। जैसे, किचन के साथ अंडा, तेल, कड़ाही, ब्रेड, चम्मच आदि नाम सरलता से याद आ जाते हैं।

3. खंडीयन विधि:
यदि सूचना को कई अर्थपूर्ण खण्डों में बाँटकर याद करने का प्रयास किया जाता है तो स्मृति सुगम बन जाती है। जैसे-किसी का दूरभाषा संख्या 186919472004 है तो इसे 1869-1947 तथा 2004 में खंडित करके याद रखना आसान हो जाता है क्योंकि 1869 से गाँधी, 1947 से आजादी तथा 2004 में सुनामी का संबंध है।

4. प्रथम अक्षर तकनीक:
किसी शब्द समूह को याद रखने के लिए प्रत्येक शब्द के पहले अक्षर को लेकर एक नया शब्द बनाकर याद रखना सरल माना जाता है। प्रथम अक्षर तकनीक में शब्द के द्वारा कई शब्दों को स्मृति में रखने की सुविधा मिल जाती है।

जैसे – VIBGYOR से इन्द्रधनुष के सातों रंगों के नाम याद रहते हैं। BISCOMAN से किसी संख्या के सभी लक्षण याद रह जाते हैं। ऊपर वर्णित चार विधियों को स्मृति सहायक-संकेतों पर आधारित माना जाता है जिसे सरल लेकिन जटिल विधियँ मानकर ध्यान से लगभग हटा दिया गया है। स्मृति सुधार के लिए अपेक्षाकृत अधिक बोधगम्य विधियों का प्रचलन प्रारम्भ हो गया है जिसमें स्मृति प्रक्रियाओं में ज्ञान पर बल दिया गया है। नये तकनीकी विधियों से सम्बन्धित सुझाव निम्न वर्णित हैं –

(a) गहन स्तर का प्रक्रमण कीजिए:
मनोवैज्ञानिक कैक एवं लॉकहार्ट के मतानुसार किसी सूचना के सतही गुणों पर ध्यान देने के बजाय उसके अर्थ के रूप में प्रक्रमण किया जाए तो अच्छी स्मृति होती है। सूचना को प्रश्नोत्तर विधि से स्पष्ट करने का प्रयास उपयोगी सिद्ध होता है।

(b) अवरोध घटाइए:
आराम और अभ्यास के बल पर विस्मरण की नौबत आने के पहले ही अवरोध उत्पन्न करने वाले कारकों को निष्क्रिय कर दीजिए।

(c) पर्याप्त पुनरुद्धार संकेत रखिए:
थॉमस और रॉबिन्सन से स्मृति को सुदृढ़ बनाने के लिए PQRST विधि को अपनाने की सलाह दी है। विधि के नाम का प्रत्येक अक्षर एक अर्थपूर्ण संदेश देता है। तो P-Preview-पूर्वअवलोकन, Q-Question-प्रश्न करना, RRead-पढ़ना, S Self-recitation-स्वतः जोर से पढ़ना और T Test-परीक्षण करना।

अर्थात् सम्बन्धित विषय के सम्बन्ध में सभी अर्जित ज्ञान का पूर्वअवलोकन करके विषय से सम्बन्धित सभी संभव प्रश्नों का उत्तर जानिए। प्रश्नोत्तर की खोज के बाद स्वयं ध्वनि के साथ जोर-जोर से पढ़िए तथा उन्हें लिखिए। लिखे गये प्रश्नोत्तरों के आधार पर स्वयं परीक्षण कीजिए कि आप विषय के सम्बन्ध में कितना सही जानकारी रखते हैं। स्मृति सुधार के लिए योजना के बारे में सुझाव प्रस्तुत किया जा सकता है। सुझाव के अनुसार –

  • मात्र विधियों अथवा नियमों की जानकारी रखने से स्मति का विकास नहीं होता है।
  • स्वास्थ्य, रुचि, अभिप्रेरणा, शैक्षणिक प्रसाधनों से परिचय आदि पर पर्याप्त समझ रखकर ही स्मृति को मजबूती प्रदान की जा सकती है।
  • स्मृति सुधार सम्बन्धी युक्तियों के लिए वांछित सामाग्रियों की प्रकृति के अनुसार उनका उपयोग करने की कला का ज्ञान भी अति आवश्यक है।
  • शैक्षणिक योजना बनाते समय ध्यान रखना चाहिए ताकि योजना अवरोध मुक्त रहे, स्मृति के अनुकूल वातावरण मिले तथा पर्याप्त सहयोग की गुंजाइश हो।
  • जहाँ तक युक्तियों के चुनाव का प्रश्न है तो पर्याप्त पुनरुद्धार संकेत रखने वाली युक्ति (PQRST) सर्वोत्तम है।

Bihar Board Class 11 Psychology मानव स्मृति Additional Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
दीर्घकालिक स्मृति किने प्रकार की होती है?
उत्तर:
पहला वर्गीकरण –

  1. घोषणात्मक और
  2. प्रक्रिया मूलक

दूसरा वर्गीकरण –

  1. घटनापरक और
  2. आर्थी स्मृति

प्रश्न 2.
वे कौन-सी स्मृतियाँ हैं जो मानव स्मृति की जटिल एवं गयात्मक प्रकृति को प्रदर्शित करती हैं?
उत्तर:

  1. क्षणदीय स्मृतियाँ
  2. जीवनचरित स्मृति और
  3. निहित स्मृतियाँ ऐसी स्मृतियाँ हैं जो जटिल एवं गत्यात्मक प्रकृति को बतलाती है।

प्रश्न 3.
आर्थी स्मृति का परिचय क्या हैं?
उत्तर:
आर्थी स्मृति सामान्य ज्ञान एवं जागरुकता की स्मृति है। सभी प्रकार के संप्रत्यय, विचार तथा तर्कसंगत नियम आर्थी स्मृति में संचित होते हैं।

प्रश्न 4.
स्मृति मापन की प्रमुख विधियाँ क्या हैं?
उत्तर:
स्मृति मापन की प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं –

  1. मुक्त प्रत्याह्वान (पुनःस्मरण एवं प्रतिभिज्ञान) विधि-इस विधि का उपयोग तथ्य तथा घटना से संबंधित स्मृति के मापन में होता है।
  2. वाक्य सत्यापन कार्य विधि-इस विधि से आर्थी स्मृति का मापन होता है।
  3. प्राथमिक लेप विधि-इसका उपयोग उन सूचनाओं का मापन करने के लिए होता है जिन्हें शाब्दिक रूप में नहीं बताय जा सकता है।

प्रश्न 5.
स्मृतियों का संगठन क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
दीर्घकालीन स्मृति में वृहद मात्रा में सूचनाएं होती हैं। सही समय पर सही सूचना की जानकारी पाने के लिए उन्हें संगठित करना उपयोगी होता है।

प्रश्न 6.
स्कीमा शब्द का प्रयोग किस अर्थ में होता है?
उत्तर:
स्कीमा भूतपूर्व अनुभवों और ज्ञान का एक संगठन है जो आनेवाली नयी सूचना के विश्लेषण, भंडारण तथा पुनरुद्धार को प्रभावित करता है। स्कीमा को एक ऐसी मानसिक ढाँचा के रूप में पहचानते हैं जो इस वस्तु जगत के बारे में अर्जित ज्ञान एवं अभिग्रह का प्रतिनिधिान करता है।

प्रश्न 7.
संज्ञानात्मक लाघव का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
संज्ञानात्मक लाघव का तात्पर्य यह है कि दीर्घकालिक स्मृति की क्षमता का अधिकाधिक एवं कुशलतापूर्वक तथा कम-से-कम व्यतिरिक्तता में उपयोग किया जा सकता है।

प्रश्न 8.
बार्टलेट ने स्मृति के सम्बन्ध में क्या बतलाया है?
उत्तर:
बार्टनेट ने स्मृति को रचनात्मक क्रिया माना है।

प्रश्न 9.
बार्टलेट ने स्मृति समझने के लिए किन अर्थपूर्ण सामग्री का उपयोग किया था?
उत्तर:
बार्टलेट ने अर्थपूर्ण सामग्री के रूप में कहानियाँ, गद्य दंत कथाएँ इत्यादि का उपयोग किया था।

प्रश्न 10.
बार्टलेट ने अपने प्रयोगों से प्राप्त परिणामों की व्याख्या हेतु किस शब्द का उपयोग किया था?
उत्तर:
परिणामों की व्याख्या हेतु बार्टलेट ने स्कीमा शब्द का उपयोग किया था।

प्रश्न 11.
धारण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
जब व्यक्ति किसी विषय को सीखता है तो उसके मस्तिष्क में स्मृति-चिह्नों का निर्माण होता है। अर्थात स्मृति-चिह्नों के रूप में धारण करता है।

प्रश्न 12.
स्मृति क्या है?
उत्तर:
स्मृति एक सामान्य पद है जिसका अर्थ पूर्व अनुभूतियों को दिमाग में इकट्ठा करके रखने की क्षमता होती है।

प्रश्न 13.
स्मृति की समुचित परिभाषा क्या है?
उत्तर:
स्मरण वह मानसिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा भूतकाल में सीखी गई बातें या पूर्व अनुभूतियाँ मस्तिष्क में स्मृति-चिह्नों के रूप में धारणा की जाती हैं और वर्तमान या भविष्य में उसका प्रत्याह्वान या प्रतिभिज्ञान हो जाती है।

प्रश्न 14.
स्मृति-चिह्न क्या है?
उत्तर:
व्यक्ति जब किसी विषय को सीखता है तो उसे स्मृति-चिह्नों के रूप में मस्तिष्क में धारण करता है। इबिंगहॉस ने कहा है कि सीखे गए विषय को मस्तिष्क में स्मृति-चिह्न के रूप में सुरक्षित करते हैं।

प्रश्न 15.
अल्पकालीन स्मृति किसे कहते हैं?
उत्तर:
अल्पकालीन स्मृति से तात्पर्य वैसी स्मृति से होता है जिसमें व्यक्ति किसी अनुभूति को अधिक से अधिक तीस सेकेण्ड तक याद रखता है।

प्रश्न 16.
दीर्घकालीन स्मृति किसे कहते हैं?
उत्तर:
दीर्घकालीन स्मृति के अन्तर्गत वैसी स्मृतियाँ आती हैं जो अधिक समय तक मस्तिष्क में वर्तमान रहती हैं।

प्रश्न 17.
अल्पकालीन और दीर्घकालीन स्मृति में मुख्य अंतर क्या है?
उत्तर:
अल्पकालीन स्मृति की अधिकतम सीमा तीस सेकेण्ड होती है जबकि दीर्घकालीन स्मृति की कोई अधिकतम समय सीमा नहीं होती है।

प्रश्न 18.
स्मृति के तीन तत्वों का नाम बताएँ।
उत्तर:
स्मृति के तीन तत्वों के नाम इस प्रकार हैं –

  1. कूट संकेतन
  2. संचयन
  3. पुनः प्राप्ति

प्रश्न 19.
कूट संकेतन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
कूट संकेतन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके सहारे सूचनाओं को एक ऐसे आकार या। रूप में परिवर्तित कर दिया जाता है कि वे स्मृति में प्रवेश पा सके।

प्रश्न 20.
लघुकालीन स्मृति क्या है?
उत्तर:
लंघुकालीन स्मृति का अर्थ वैसी स्मृति संरचना से होता है जिसमें व्यक्ति किसी विषय या पाठ को अधिक से अधिक 30 सेकेण्ड तक ही धारण करके रखता है।

प्रश्न 21.
दीर्घकालीन स्मृति क्या है?
उत्तर:
दीर्घकालीन स्मृति का अर्थ वैसे स्मृति संचयन से होता है जिसमें स्मृति चिह्नों को कम से कम 30 सेकेण्ड तक अवश्य धारण किया जाता है, लेकिन इसकी कोई अधिकतम समय सीमा नहीं होती है।

प्रश्न 22.
स्मृति के कार्यकारी आधार क्या है?
उत्तर:
किसी सूचना को एक समय तक धारित करना तथा उसका प्रत्याह्वान करना स्मृति का मुख्य कार्यकारी आधार है जो संज्ञानात्मक कार्य की प्रकृति पर निर्भर होता है।

प्रश्न 23.
स्मृति नामक प्रक्रिया में कौन-सी तीन स्वतंत्र किन्तु अंतः संबंधित अवस्थाएँ होती हैं?
उत्तर:

  1. कूट संकेतन
  2. भंडारण तथा
  3. पुनरुद्धार

प्रश्न 24.
अवस्था मॉडल कब और किसने प्रस्तुत किया?
उत्तर:
एटकिंसन एवं शिफ्रिन ने 1968 में अवस्था मॉडल प्रस्तुत किया था?

प्रश्न 25.
किस अवस्था की स्मृति स्थायी होती है?
उत्तर:
दीर्घकालीन स्मृति स्थायी होती है।

प्रश्न 26.
प्रक्रमण स्तर दृष्टिकोण को कब और किसने प्रतिपादित किया?
उत्तर:
प्रक्रमण स्तर दृष्टिकोण ऊक एवं लॉकहर्ट द्वारा सन् 1972 में प्रतिपादित किया गया था।

प्रश्न 27.
बार्टलेट ने स्मरण को किस प्रकार की मानसिक प्रक्रिया माना है?
उत्तर:
बार्टलेट ने स्मरण को पुनः रचनात्मक मानसिक प्रक्रिया माना है।

प्रश्न 28.
इबिंगहाँस के अनुसार स्मरण का स्वरूप कैसा होता है?
उत्तर:
इबिंगहॉस के अनुसार स्मरण का स्वरूप रचनात्मक होता है।

प्रश्न 29.
स्मरण में कौन-कौन प्रक्रिया शामिल होती है?
उत्तर:
स्मरण में मुख्य रूप से चार उपक्रियाएँ शामिल होती हैं-सीखना, धारण करना, प्रत्याह्नान करना तथा प्रतिभिज्ञान करना।

प्रश्न 30.
विस्मरण किसे कहते हैं?
उत्तर:
विस्मरण (भूलना) एक ऐसी मानसिक क्रिया है जिसमें मस्तिष्क में बने स्मृति चिह्न मिट जाते हैं जिसके कारण प्रत्याह्वन तथा पहचानना शून्य स्तर पर पहुँच जाता है।

प्रश्न 31.
विस्मरण में कितने तरह के अवरोध उत्पन्न होते हैं?
उत्तर:
विस्मरण में दो प्रकार के अवरोध उत्पन्न होते हैं –

  1. अग्रलक्षी तथा
  2. पूर्वलक्षी

प्रश्न 32.
विस्मरण के सम्बन्ध में अवरोध सिद्धांत क्या कहता है?
उत्तर:
विस्मरण, प्रत्याह्वान के समय स्वतंत्र रूप से संचित साहचर्यों के बीच प्रतिद्वंद्विता के कारण होता है।

प्रश्न 33.
इबिंगहॉस के अनुसार विस्मरण किस प्रकार की मानसिक प्रक्रिया है?
उत्तर:
इबिंगहॉस के अनुसार विस्मरण एक निष्क्रिय मानसिक प्रक्रिया है।

प्रश्न 34.
इबिंगहॉस के प्रयोग में प्रयोज्य कौन था?
उत्तर:
इबिंगहॉस ने अपना प्रयोग अपने आप पर किया है?

प्रश्न 35.
फ्रायड ने विस्मरण का प्रमुख कारण क्या माना है?
उत्तर:
फ्रायड ने विस्मरण का प्रमुख कारण दमन को माना है।

प्रश्न 36.
स्मृति सहायक संकेत पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है। क्यों?
उत्तर:
स्मृति सहायक संकेतों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है क्योंकि ये बहुत सरल हैं तथा शायद स्मृति कार्यों की जटिलताओं और याद करने में होनेवाली कठिनाइयों का न्यूनानुमान करते हैं। साथ ही साथ अब तकनीकी स्तर पर बोधगम्य उपागम भी उपलब्ध हो चुके हैं।

प्रश्न 37.
थॉमस और रॉबिन्सन के द्वारा बताई गई युक्ति में PQRST का अर्थ क्या है?
उत्तर:
P = Preview (पूर्व अवलोकन), Q = Question (प्रश्न), R = Read (पढ़ना), S = Self recitation (स्वतः जोर से पढ़ना) तथा T = Test (परीक्षण)।

प्रश्न 38.
धारण की जाँच किस आधर पर होती है?
उत्तर:
धारण की जाँच प्रत्याह्वान एवं प्रतिभिज्ञान के आधार पर होती है।

प्रश्न 39.
प्रत्याह्वान क्या है?
उत्तर:
प्रत्याह्वान में व्यक्ति पूर्व में सीखे गए विषयों या पाठों को उसकी अनुपस्थिति में वर्तमान चेतना में लाता है।

प्रश्न 40.
प्रतिभिज्ञान से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
प्रतिभिज्ञान एक ऐसी मानसिक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति पूर्व में सीखे गए विषय को किसी नए विषय सधे अपनी यादाश्त के आधार पर अलग करता है।

प्रश्न 41.
प्रत्याह्वान एवं प्रतिभिज्ञान में क्या अंतर है?
उत्तर:
प्रत्याहान में पूर्व में सीखे गए विषय को उसकी अनुपस्थिति में वर्तमान चेतना में लाते हैं, जबकि प्रतिभिज्ञान में पूर्व में सीखे गए विषय नए विषयों के साथ उपस्थित होता है जिसे अपनी यादाश्त से अलग करना होता है।

प्रश्न 42.
संचयन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
संचयन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें संकेतन द्वारा प्राप्त सूचनाओं एवं उत्तेजनाओं को: कुछ समय के लिए सचित करके रखा जाता है।

प्रश्न 43.
पुनः प्राप्ति का क्या अर्थ है?
उत्तर:
पुनः प्राप्ति एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें आवश्यकता के अनुसार व्यक्ति संचयन में मौजूद सूचनाओं से विशिष्ट सूचना की खोज करता है और उन तक पहुँचने की कोशिश करता है।

प्रश्न 44.
क्रमिक पुनरुत्पादन विधि क्या है?
उत्तर:
क्रमिक पुनरुत्पादन विधि में बार्टलेट ने एक कहानी के प्रयोज्य को सुनाई, प्रयोज्य ने कही कहानी दूसरे को, दूसरे ने तीसरे को क्रम में कहानी सुनाई। इस प्रकार कई प्रयोज्यों के बाद कहानी का रूप बदल गया था।

प्रश्न 45.
उत्तरोत्तर पुनरुत्पादन विधि क्या है?
उत्तर:
इस विधि में एक प्रयोज्य को कहानी सुनाई जाती है और उसका प्रत्याह्वान करवाया जाता है।

प्रश्न 46.
एकाकी पुनरुत्पादन विधि क्या है?
उत्तर:
एकाकी पुनरुत्पादन विधि में कई प्रयोज्यों को एक साथ एक ही कहानी सुनाई जाती है, फिर सभी प्रयोज्यों को बारी-बारी से प्रत्याह्वान करवाया जाता है।

प्रश्न 47.
बार्टलेट ने अपने स्मरण से संबंधित अध्ययन किस विधि से किया?
उत्तर:
बार्टलेट ने अपना अध्ययन तीन विधियों से किया-क्रमिक पुनरुत्पादन विधि, उत्तरोत्तर पुनरुपादन विधि तथा एकाकी पुनरुत्पादन विधि।

प्रश्न 48.
केनेरी क्या है?
उत्तर:
केनेरी एक पक्षी है।

प्रश्न 49.
निस्पंद बिन्दु तथा नामपत्रित सम्बन्ध क्या है?
उत्तर:
जालीदार संरचना के तत्वों को निस्पंद बिन्दु कहते हैं। निस्पंद बिन्दु संप्रत्यय होते है किन्तु उनके बीच के सम्बन्ध को नाम पत्रित संबंध कहा जाता है जो संप्रत्ययों के गुणधर्म या श्रेणी सदस्यता दर्शाते हैं।

प्रश्न 50.
बार्टलेट की अध्ययन-सामग्री क्या थी?
उत्तर:
बार्टलेट ने अपने अध्ययन सामग्री के रूप में कहानियों, चित्रों आदि को रखा।

प्रश्न 51.
इबिंगहॉस की अध्ययन-सामग्री क्या थी?
उत्तर:
इबिंगहॉस की अध्ययन-सामग्री निरर्थक पद थी।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
अल्पकालीन स्मृति की विशेषता का वर्णन करें।
उत्तर:
अल्पकालीन स्मृति की निम्नलिखित विशेषता है, जो इस प्रकार है –

  1. अल्पकालीन स्मृति में स्मृति चिह्नों को अधिकतम 30 सेकेण्ड तक ही संचित करके रखा जाता है।
  2. इस प्रकार की स्मृति में व्यक्ति विषय या पाठ को मात्र एकाध प्रयास में ही सीख लेता है।
  3. इस प्रकार की स्मृति में स्मृति चिह्नों का नाश बहुत तीव्र गति से होता है, क्योंकि वे कमजोर होते हैं।
  4. इस प्रकार की स्मृति का विस्तार सामान्यतः उसे उद्दीपकों से अधिक का नहीं होता है।

प्रश्न 2.
लघुकालीन स्मृति की प्रकृति का वर्णन करें।
उत्तर:
लघुकालीन स्मृति जिसे प्राथमिक स्मृति भी कहा जाता है, से तात्पर्य वैसी स्मृति-संरचना से होता है जिसमें व्यक्ति किसी विषय या पाठ को अधिक-से-अधिक 30 सेकेंड तक ही धारण करके रखता है। इस तरह की स्मृति की विशेषता यह है कि इसमें जो स्मृति चिह्न बनते हैं, उन पर यदि व्यक्ति ध्यान नहीं देता है या मानसिक रूप से उसका रिहर्सल नहीं करता है तो वह उसे तुरंत भूल जाता है।

सामान्यतः इसमें उन विषयों या पाठों से बनने वाले स्मृति चिह्न संचित हो पाते हैं जिन्हें व्यक्ति एकाध प्रयास में सीख लिया होता है। किसी अपरिचित व्यक्ति की दूरभाषा संख्या को एक बार सुनकर 4-5 सेकेण्ड के बाद प्रत्याह्वान करने की कोशिश पर सफल न होना, यह बताया है कि उस दूरभाषा संख्या को 4-5 सेकेण्ड से कम समय तक व्यक्ति धारण करके रख सका। इस तरह की स्मृति संचालन लघुकालीन स्मृति का उदाहरण है।

प्रश्न 3.
दीर्घकालीन स्मृति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
दीर्घकालीन स्मृति, जिसे गौण स्मृति (secondeary memory) भी कहा जाता है, से तात्पर्य वैसे स्मृति संचयन (Memory storage) से होता है जिसमें स्मृति चिह्नों को कम-से-कम 30 सेकण्ड तक तो अवश्य धारण किया जाता है। इसकी कोई अधिकतम समय-सीमा नहीं होती है। शायद यही कारण है कि एक वृद्ध व्यक्ति भी अपने बचपन की अनुभूतियों का प्रत्याह्वान (recall) कर लेता है।

दीर्घकालीन स्मृति की विशेषता यह है कि इससे स्मृति चिह्नों का नाश धीरे-धीरे होता है तथा इसमें उन अनुभूतियों का संचयन होता है जो पर्याप्त अभ्यास (practice) के फलस्वरूप मस्तिष्क में बनते हैं। अपनी दूरभाषा संख्या तथा घनिष्ठ संबंधियों की दूरभाषा, संख्या प्रायः दीर्घकालीन स्मृति में ही संचित होती हैं।

प्रश्न 4.
संचयन क्या है?
उत्तर:
संचयन (Storgae):
स्मृति की दूसरी अवस्था संचयन (storgae) की अवस्था होती है। संचयन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें संकेतन द्वारा प्राप्त सूचनाओं एवं उत्तेजनाओं को कुछ समय के लिए संचित कर रखा जाता है। दूसरे शब्दों में, संचयन की अवस्था में स्मृति में प्रवेश पाचकी सूचनाओं एवं उत्तेजनाओं को कुछ समय के लिए धारित (retained) करके रखा जाता अवस्था को धारण (rentention) भी कहा जाता है।

प्रश्न 5.
प्रक्रमण स्तर का सामान्य परिचय संबंधित मनोवैज्ञानिकों के नाम के साथ लिखें।
उत्तर:
सन् 1972 में कैक और लौकहर्ट नामक दो मनोवैज्ञानिकों ने प्रक्रमण स्तर दृष्टिकोण को प्रतिपादित किया था। इस दृष्टिकोण के अनुसार किसी भी नयी सूचना का प्रक्रमण उसके प्रत्यक्षण और विश्लेषण की विधि पर आधारित है। प्रक्रमण का स्तर यह बतलाता है कि सूचना किस सीमा तक धारित की जाएगी। कैक एवं लॉकहर्ट ने बताया कि सूचना का कई स्तरों (भौतिक या संरचनात्मक) पर विश्लेषण संभव है। प्रक्रमण स्तर पर आधारित प्रयोगों से पता चला कि किसी सूचना के अर्थ को समझना तथा उसे दूसरे संप्रत्ययों, तथ्यों एवं अपने जीवन के अनुभवों से जोड़ना दीर्घकालिक धारण का सुनिश्चित उपाय है।

प्रश्न 6.
आर्थी स्मृति का प्रमुख लक्षण बतावें।
उत्तर:
टालबिन ने घोषणात्मक स्मृति के रूप में आर्थी स्मृति को पहचाना। आर्थी स्मृति का सीधा संबंध उन सूचनाओं की ओर होता है जो सामान्य ज्ञान से संबंध रखते हैं। हमारी जागरुकता से जुड़ी सूचनाएँ आर्थी स्मृति के रूप में संचित रहती हैं। सभी प्रकार के संप्रत्यय, विचार तथा तर्कसंगत नियम आर्थी स्मृति की पूँजी बन जाती है। जैसे, अर्थगत स्मृति के कारण हम अहिंसा का अर्थ स्थायी तौर पर याद रखते हैं। सामान्य ज्ञान के अन्तर्गत हम भारत की राजधानी दिल्ली है, चार और दो मिलकर छः होते हैं, पटना का S.T.D. कोड 0612 है तथा किताब लिखने में ई का प्रयोग गलत है आदि सूचनाओं को हम देर तक नहीं भूलते हैं।

प्रश्न 7.
विस्मरण में अवरोध के जभाव को स्पष्ट करें।
उत्तर:
स्मृति भंडार में संचित तरह-तरह की सूचनाओं के लुप्त हो जाने का प्रमुख कारण अवरोध ही होता है। सीखने और याद करने में विभिन्न पदों के बीच साहचर्य स्थापित हो जाता है। भारी संख्या में जमा हो चुके साहचर्यों में आपसी द्वन्द्व के रूप में प्रतिस्पर्धा होती है जो अवरोधक की तरह कार्य करते हैं। पुनरुद्धार के क्रम में प्रतिस्पर्धा बाधक बनकर स्मृति को क्षति पहुँचाते हैं।

विस्मरण का यह प्रधान कारण है। विस्मरण का यह प्रधान कारण है। अग्रलक्षी अवरोध-पूर्व में प्राप्त की गई सूचना आनेवाली नई सूचना के लिए अवरोधक बन जाता है। अर्थात् पूर्व अधिगम, पश्चात् अधिगम के प्रत्याह्वान में अवरोध पहुंचाता है। इन्हीं अवरोधों के कारण एक भाषा के जानकार को दूसरी भाषा को सीखने में कठिनाई होती है।

प्रश्न 8.
स्मृति वृद्धि के लिए अवरोध को किस प्रकार हटाया जा सकता है?
उत्तर:
अवरोध विस्मरण का प्रमुख कारण है। स्मृति वृद्धि के लिए अवरोधों से मुक्त होना लाभकारी होता है। अवरोध से बचने के लिए अध्ययन के विषयों को इस प्रकार व्यवस्थित की जाती है कि एक विषय के तुरंत बाद लगभग समान लक्षण वाले विषय की बारी न आ जाए। भाषा के बाद गणित के बाद सामाजिक विज्ञान जैसी व्यवस्था करना उपयोगी होता है। असुविधा होने पर अधिगम-अभ्यासों का वितरण करना अच्छा होता है। अर्थात् विषय के बदलने के रूप कुछ देर तक मनोरंजन, खेल या बातचीत में समय व्यतीत कर लेने से पूर्व की स्मृति मजबूत हो जाती है तथा इसका प्रभाव अगले विषय पर नगण्य हो जाता है।

प्रश्न 9.
स्मृति क्या है?
उत्तर:
स्मृति (memory) एक सामान्य पद है जिससे तात्पर्य पूर्व अनुभूतियों (past experiences) को मस्तिष्क में इकट्ठा करके रखने की क्षमता होती है। संज्ञानात्मक मनोवैज्ञानिक जैसे-लेहमैन, लेहमैन एवं बटरफील्ड (Laechman, Laehman & Buterfield) ने स्मृति को परिभाषित करते हुए कहा है कि विशेष समयावधि के लिए सूचनाओं को संपोषित करके रखना ही स्मृति है। समयावधि एक सेकेंड से कम या सम्पूर्ण जीवन काल की भी हो सकती है। मनोवैज्ञानिकों ने स्मृति के धनात्मक पक्ष से तात्पर्य पूर्व अनुभूतियों को याद करके रखने से माना है। अतः कहा जा सकता है कि स्मृति का धनात्मक पक्ष स्मरण (remembering) है तथा ऋणात्मक पक्ष (negative aspect) विस्मरण (forgetting) है।

प्रश्न 10.
कूट संकेतन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
कूट संकेतन (Encoding):
कूट संकेतन में किसी सूचना या बाह्य उत्तेजना (external stimulation) का प्रत्यक्ष करण व्यक्ति उसे एक निश्चित रूप (form) या कूटसंकेत (code) के रूप में तंत्रिका तंत्र (nerous system) में ग्रहण करता है। दूसरे शब्दों में, कहा जा सकता है कि कूट संकेत एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके सहारे सूचनाओं को एक ऐसे आकार या रूप form में परिवर्तित कर दिया जाता है कि वे स्मृति में प्रवेश पा सकें। साधारण बोलचाल की भाषा में स्मृति-चिह्नों (memory traces) का निर्माण होना ही संकेतन कहलाता है। स्मृति की पहली अवस्था कूट संकेतन (encoding) की होती है। इस अवस्था को पंजीकरण (registration) भी कहा जाता है।

प्रश्न 11.
लघुकालीन स्मृति किसे कहा जाता है?
उत्तर:
लघुकालीन स्मृति (short-term momory), जिसे प्राथमिक स्मृति (primary memory) भी कहा जाता है, से तात्पर्य वैसी स्मृति संरचना (memory storage) से होता है जिसमें व्यक्ति किसी विषय या पाठ को अधिक-से-अधिक 30 सेकण्ड तक ही धारण करके रखता है। इस तरह की स्मृति की विशेषता यह है कि इसमें जो स्मृति चिह्न बनते है, उन पर यदि व्यक्ति ध्यान नहीं देता है या मानसिक रूप से उसका रिहर्सल नहीं करता है तो वह उसे तुरंत भूल जाता है।

सामान्यतः इसमें उन विषयों या पाठों से बननेवाले स्मृति चिह्न संचित हो पाते हैं जिन्हें व्यक्ति एकाध प्रयोग में सीख लिया होता है। किसी अपरिचित व्यक्ति की दूरभाष संख्या को एक बार सुनकर 4-5 सेकंड के बाद प्रत्याह्वान करने की कोशिश पर सफल न हो, यह बताय है कि 4-5 सेकण्ड से भी कम समय तक व्यक्ति धारण करके रख सका। इस तरह का स्मृति संचयन (memory storage) लघुकालीन स्मृति का उदाहरण है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
स्मृति से आप क्या समझते हैं? स्मृति के विभिन्न तत्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्मृति का अर्थ एवं परिभाषायें (Introduction and Definition of Memory):
मानव जीवन में मुख्यत: व्यवहार का आधार स्मृति ही होती है। स्मृति के आधार पर ही सामाजिक सम्बन्धों की स्थापना होती है तथा अनेक अनुसंधानात्मक कार्य भी स्मृति पर ही आधारित होते हैं। अतः मानव-व्यवहार का अध्ययन करने के लिये स्मृति का अध्ययन करना आवश्यक है। स्मृति शुद्ध मानसिक प्रक्रिया है। जब व्यक्ति कोई व्यवहार करता है तब उसका अनुभव मानव मस्तिष्क में संचित हो जाता है। अनुभवों के अर्द्धचेतन मस्तिष्क में संचित होने के कारण जब उसी व्यवहार से सम्बन्धित कोई व्यवहार सम्मुख आता है तब वह पूर्व अनुभव जागृत हो जाता है।

अर्द्धचेतन में संचित अनुभवों का पुनः जागृत हो जाना ही स्मृति कहलाता है। यह प्रक्रिया अत्यन्त जटिल मानसिक प्रक्रिया होती है जिसमें अनेक क्रियाओं का समावेश रहता है यथा-सीखना, धारणा, प्रत्यास्मरण तथा प्रत्याभिज्ञा। इन चारों क्रियाओं के सम्मिलित सहयोग को ही स्मृति कहते हैं, इसलिये ये स्मृति के मुख्य तत्व भी कहलाते हैं।

इस प्रकार स्मृति का सामान्य परिचय यह है कि व्यक्ति के अर्द्धचेतन मस्तिष्क में पूर्व अभवों के संचित रूप के पुनः जागृत होने की क्रिया स्मृति कहलाती है किन्तु मनोवैज्ञानिक अध्ययन के लिए यह परिभाषा पर्याप्त नहीं है। मनोवैज्ञानिकों ने स्मृति के स्वरूप को विभिन्न परिभाषाओं द्वारा स्पष्ट किया है जिनका अवलोकन करके स्मृति के मनोवैज्ञानिक स्वरूप को समझने में सरलता. होगी। मनोवैज्ञानिकों द्वारा दी गई स्मृति की कुछ मुख्य परिभाषायें निम्नलिखित हैं –

1. स्टाउट महोदय की परिभाषा:
स्टाउट महोदय के अनुसार, “स्मृति वह प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से पुराने फिर जागृत हो जाते हैं।”

2. स्पीयरमैन की परिभाषा:
स्पीयरमैन ने स्मृति की परिभाषा इस प्रकार दी है कि, “समझ में आनेवाली घटनाओं द्वारा जो स्थायी प्रभाव मस्तिष्क में छोड़ा जाता है, उसके पुनः जागृत होने की स्मृति कहते हैं।” इन दोनों परिभाषाओं में एक अनुभव का मस्तिष्क पर स्थायी प्रभाव तथा उनका पुनः स्मरण जागृत होने की स्मृति कहा गया है।

3. मैक्टूगल के अनुसार:
“घटनाओं की उसी रूप में कल्पना करना जिस रूप में उन्हें पूर्वकाल में अनुभव किया गया तथा उन्हें अपने उसी अनुभव के रूप में पहचानना ही स्मृति है।” इस परिभाषा के अनुसार किसी घटना के पूर्व संचित अनुभव को पुनः उसी रूप में पहचानना स्मृति है।

4. वुडवर्थ की परिभाषा:
वुडवर्थ ने स्मृति की अति सरल परिभाषा करते हुए कहा कि “पूर्व समय में सीखी गई बातों का याद करना स्मृति है।”

उपरोक्त परिभाषाओं द्वारा स्पष्ट है कि स्मृति वह मानसिक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति अपने पूर्व अनुभवों को पुनः अपनी चेतना स्तर पर अनुभव या याद करता है। इस अनुभव अथवा याद करने की प्रक्रिया में व्यक्तियों से स्तर भेद तो हो सकता है किन्तु स्मृति की क्रिया के क्रियान्वयन में कोई भेद नहीं होता। स्मृति के आधार पर ही कल्पना शक्ति की उपज होती है।

यदि स्मरण शक्ति का अभाव हो जाये तो मानव जीवन निष्क्रिय हो जाता है। पागलों में असामान्य व्यवहार का आधर स्मृति का अभाव होना ही होता है। व्यक्तियों के स्तर भेद के अतिरिक्त आयु की दृष्टि से भी स्मृति के स्तर में उतार-चढ़ाव आते हैं। अतः हम कह सकते हैं कि, “स्मृति वस्तुतः चेतन मन का अंग है और इसी से जीवन व्यापार सम्भव होता है तथा मस्तिष्क चेतन एवं अर्द्धचेतन शक्तियों के माध्यम से इस क्रिया को अपनाता है।”

स्मृति के तत्व (Factors of Memory) जैसा कि स्मृति की परिभाषा से स्पष्ट है कि स्मृति एक जटिल मानसिक प्रक्रिया है। यह क्रिया अनेक क्रियाओं का सम्मिलित रूप होती है। अतः इसके स्वरूप को समझने के लिये इसके विभिन्न अंगों को समझना भी आवश्यक है। उक्त परिभाषाओं के अनुसार स्मृति की क्रिया के चार मुख्य अंग हैं – सीखना, धारणा, पुनःस्मरण तथा पहचानना। इनका विस्तृत वर्णन निम्न प्रकार है –

1. सीखना (Learning):
जैसा कि वुडवर्थ की स्मृति की परिभाषा मे स्पष्ट होता है कि, “पूर्व में सीखे गये कार्य को पुनः याद करना ही स्मृति है।” अत: सीखना स्मृति का प्रथम प्रमुख अंग है। सीखने के अभाव में अनुभव का संचय सम्भव नहीं और अनुभव के संचय के बिना स्मृति की क्रिया सम्भव नहीं, इस कारण स्मृति की क्रिया के लिये ‘सीखना’ क्रिया अत्यावश्यक है।

2. धारणा (Retention):
धारणा एक मानसिक क्षमता पर आधरित क्रिया है। कुछ बालक किसी बात को जल्दी याद कर लेते हैं, कुछ बहुत देर से याद कर पाते हैं। धारण कर भेद का कारण अनेक तत्व हैं। इन तत्वों के द्वारा ही धारण की क्रिया होती है, जिनका संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है –

धारणा शक्ति तत्व या आधार (Factors of Retention):
धारणा शक्ति के छः मुख्य तत्व हैं, जिनके द्वारा धारणा शक्ति का स्तर प्रभावित होता है। इनका विवरण निम्न प्रकार है –

(i) मस्तिष्क:
धारणा शक्ति का मस्तिष्क से सीधा सम्बन्ध होता है। जो अनुभव प्राप्त किये जाते हैं उनमें अधिकांश को मस्तिष्क ग्रहण करता है। वे अनुभव अर्द्धचेतन भाग में रहते हैं। मस्तिष्क सीखे हुए अनुभव को क्रमबद्ध करता है। यदि मस्तिष्क प्रबल होता है तब उसमें धारणा शक्ति प्रबल होगी तथा वह प्राप्त अनुभव को अधिक समय तक सुरक्षित रख सकती है। जिनका मस्तिष्क दुर्बल होगा उनकी धारणा शक्ति भी दुर्बल होती है तथा प्राप्त अनुभव को अधिक समय तक संचित नहीं रख सकती। इस प्रकार व्यक्ति की स्मरण शक्ति का स्तर धारणा शक्ति पर ही आधारित होता है तथा धारणा शक्ति का स्तर मस्तिष्क के ऊपर निर्भर है।

(ii) स्वास्थ्य:
स्वस्थ व्यक्ति के नाड़ी तन्तु गतिशील होते हैं और अपना काम उचित रूप से कर सकते हैं। इस प्रकार यदि शरीर स्वस्थ होता है तब उसकी धारणा शक्ति भी प्रबल होती है, इसके विपरीत अस्वस्थता की दशा में व्यक्ति की धारणा शक्ति भी दुर्बल हो जाती है। उदाहरणार्थ, लम्बी बीमारी के कारण व्यक्ति के दुर्बल स्वास्थ्य की स्थिति में उसकी धारणा शक्ति भी दुर्बल भी हो जाती है।

(iii) रुचि और चिन्तन:
धारणा शक्ति का सर्वाधिक सम्बन्ध रुचि और चिन्तन से होता है। रुचिपूर्ण अनुभव को व्यक्ति शीघ्र धारण कर लेता है जबकि अरुचिपूर्ण कार्यों को प्रयत्न के बाद भी धारण नहीं कर पाता और यदि धारण कर भी कर लेता है तो यह धारण करना स्थायी नहीं बन पाता।

(iv) विषय का स्वरूप:
धारण शक्ति सम्बन्धित विषय के स्वरूप पर भी निर्भर करती है। विषय के स्वरूप से अभिप्राय उसकी उद्देश्य पूर्णता एवं सार्थकता से है। विषय जितना उद्देश्यपूर्ण सार्थक होता है उसकी धारणा उतनी ही प्रबल होती है। इसके विपरीत विषय के निरर्थक या उद्देश्यहीन होने पर उसकी धारणा शक्ति भी कमजोर होती है।

(v) सीखने की विधि:
धारणा की प्रबलता सीखने की विधि से भी प्रभावित होती है। यदि किसी कार्य के सीखने की विधि उत्तम है तब उसकी धारणा प्रबल होगी। विषय के स्वरूप के आधार पर सीखने की विधि का निर्धारण करने से सीखे गये कार्य का अनुभव अधिक दिन तक संचित रह सकता है। इसे विपरीत अव्यव-स्थिति पद्धति द्वारा सीखे गये कार्य की धारणा अधिक समय नहीं रह पाती।

(vi) अनुभव:
जिस क्रिया का जितना अधिक अनुभव होता है उसकी धारणा भी उतनी ही प्रबल होती है। अतः अनुभव भी धारणा का महत्त्वपूर्ण अंग है।

3. पुनमरण (Recall):
जब अतीत के अनुभव चेतना में आते हैं, तब उन्हें पुनर्मरण की संज्ञा होती है। पुनः स्मरण की मुख्य विशेषता यह होती है कि इसमें अतीत के अनुभव जैसे वे होते हैं वैसे ही चेतना में नहीं आते। उनमें से अनेक तत्व छूट जाते हैं तथा केवल मुख्य-मुख्य अंश की स्मृति में आते हैं।

कुहलमन ने पुनस्मरण की क्रिया के विषय में कहा कि, “पुनमरण मूल अनुभव की बिल्कुल वैसी की वैसी ही नकल नहीं होती। वस्तुतः वह पुनर्रचना नहीं बल्कि एक रचना मात्र है जो एक ऐसे कल की रचना है, जो मूल वस्तु के पूर्व अनुभव के आधार पर स्वीकृत कर ली जाती है तथा पूर्व प्रत्यक्षीकरण की रचना से बहुत भिन्न होती है।” इस प्रकार पुनमरण पूर्व अनुभवों को याद करने की क्रिया है।

पुनर्मरण के आधार (Factors of Recall):
पुनः स्मरण मुख्य आधार निम्नलिखित हैं –

(i) विचारों का साहचर्य (Association of ideas):
कभी-कभी विचारों के साथ उनसे सम्बद्ध अन्य बातों का भी स्मरण आ जाता है। उदाहरणार्थ ताजमहल के साथ शाहजहाँ का लंका के साथ रावण का तथा महाभारत के साथ श्रीकृष्ण का स्मरण हो जाता है। विचारों के साहचर्य के तीन मुख्य कारण होते हैं –

(अ) समानता:
दो वस्तुओं की पारस्परिक समानता से एक को देखते ही दूसरे का स्मरण हो आता है। जैसे अहिंसा का नाम लेते हैं तो इस सिद्धांत के प्रतिपादक महात्मा गाँधी तथा महावीर जैन का नाम स्मरण आ जाता है।

(ब) विपरीतता:
एक-दूसरे के विपरीत किन्तु परस्पर सम्बन्धित अनुभव भी कुछ स्मरण कराते हैं। जैसे किसी बदमाश को देखकर सज्जन की याद आती है।

(स) सहचारिता:
जब दो विषयों का अनुभव एक साथ हो जाता है तो उसमें से एक का स्मरण होने पर दूसरा भी याद आ जाता है। इसे सहचारिता कहते हैं।

(ii) मानसिक तत्परता:
मानसिक तत्परता से अभिप्राय विचारपूर्वक स्मरण करने से है। जिस अनुभव को पुनः स्मरण करने के लिये व्यक्ति मानसिक रूप से तत्पर होता है वह क्रिया या अनुभव तुरंत पुनः स्मृति में आ जाता है। अतः पुनमरण के लिये मानसिक तत्परता भी प्रभावशाली तत्व है।

(iii) संवेग:
संवेग भी पुनमरण को प्रभावित करते हैं। यदि संवेग अनुकूल होता है तब उसका पुनमरण आसानी से हो जाता है। उदाहरणार्थ, परिवार में किसी की मृत्यु हो जाने पर परिवार के अन्य दिवंगत व्यक्ति का पुनमरण हो जाता है। वह पुनमरण शोक के संवेग के परिणामस्वरूप ही होता है। इसमें विशेष बात यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि संवेग की अनुकूल अनुभूतियों का ही इस अवस्था में पुनः स्मरण होता है, विपरीत का नहीं। जैसे, विवाहादि के समय किसी की मृत्यु का स्मरण नहीं होता है और मृत्यु के समय किसी उत्सव का स्मरण नहीं होता अर्थात् रोमांच के संवेग द्वारा रोमांचक पुनः स्मरण और शोक के संवेग द्वारा शोकायुक्त।

4. पहचानना (Recognition):
स्मृति की प्रक्रिया का समापन पहचान से होता है। स्मृति में याद, धारणा और पुनमरण द्वारा यह स्पष्ट नहीं हो पाता कि विषय क्या है, जब यह निश्चित हो जाता है कि चेतना में आने वाला विषय यह है तब उसे पहचान कहा जाता है। इस प्रकार स्मृति विभिन्न प्रक्रियाओं से होकर गुजरती हुई पहचान पर अपना वृत्त पूर्ण करती है।

स्मृति की प्रक्रिया द्वारा ‘प्रतिमा’ हमारे मस्तिष्क में बन जाता है। किन्तु जब प्रक्रिया का वृत्त पूर्ण हो जाता है तो प्रतिमा स्पष्ट हो जाती है। उदाहरणार्थ-जब कोई व्यक्ति हमारे सम्मुख आता है तब व्यक्ति की आकृति हमारे मस्तिष्क में बन जाती है, हम सोचने लगते हैं कि इस व्यक्ति को कहीं देखा है या इससे कहीं भेंट हुई है।

हम विभिन्न प्रकार से उसके विषय में घटनाओं का स्मरण करके उस पर विचार करते हैं तब उनका पुनरर्मरण करके अन्त में निश्चित हो जाता है कि उसे कहाँ देखा है या उसकी कहीं भेंट हुई है। व्यवहार के अंदर भी हम देखते हैं कि जब कोई व्यक्ति काफी समय बाद हमें मिलता है और हम उसकी ओर अनजान से बने देखते हैं तब वह व्यक्ति अनायास ही कह उठता है कि क्या आपने मुझे ‘पहचाना’ नहीं? यह कहने का उसका अभिप्राय उसकी प्रतिमा के स्पष्ट न होने से ही होता है, तब यकायक हम भी कह उठते हैं कि अरे पहचान लिया कि आप अमुक व्यक्ति हैं, यह उनकी स्मृति के लिए पूर्णता का सूचक होता है।

(i) निश्चित पहचान:
जब हम किसी व्यक्ति को निश्चित रूप से पहचान लेते हैं तथा उससे सम्बन्धित. घटनाओं का भी हमें स्पष्ट स्मरण हो आता है तब इसको निश्चित पहचान कहते हैं।

(ii) अनिश्चित पहचान:
जब हमारे सम्मुख कोई व्यक्ति या वस्तु आती है और हम उसके लिये स्पष्ट पहचान नहीं बना पाते अर्थात् यह तो पहचान लेते हैं कि वह व्यक्ति अपना परिचित है किन्तु उसके सम्बन्धित स्मरण हमें स्पष्ट नहीं हो पाता तब यह अनिश्चित पहचान होती है।

(iii) असत्य पहचान:
जब हम किसी व्यक्ति को पहचानने में असत्य निर्णय ले लेते हैं तब वह असत्य पहचान होती है। उदाहरणार्थ, जब कोई व्यक्ति हमारे सामने आता है और हम किसी अन्य व्यक्ति के साथ उसकी स्मृति को जोड़कर उसे वही समझ लेते हैं तब यह असत्य पहचान होती है।

मनोविज्ञान के अध्ययन क्षेत्र में स्मृति के अंग के रूप में होने वाली पहचान निश्चित पहचान होती है, शेष दोनों भ्रम के क्षेत्र में आती हैं। अतः निश्चित पहचान की पहचानना क्रिया का मनोवैज्ञानिक रूप है।

स्मृति को उत्तम बनाने के साधन:
स्मृति के पूर्ण स्वरूप को समझाने के लिए इसके अर्थ, परिभाषा तथा अंगों को जानने के अलावा इसको उत्तम बनाने के विषय में जानना भी महत्त्वपूर्ण होगा। अच्छी स्मृति बनाने के मुख्य साधन निम्न प्रकार हैं –

(i) उत्तम विधि द्वारा सीखना:
स्मृति का प्रथम मुख्य अंग ‘सीखना’ है। यदि उचित पद्धति द्वारा किसी बात को सीखा जाये तो उसकी स्मृति अच्छी प्रकार होती है। उदाहरणार्थ, यदि हम किसी विषय को उसके अध्ययन के नियमों के अनुसार व्यवस्थित ढंग से पढ़ते हैं तो उसकी स्मृति शीघ्र हो जाती है। इसके विपरीत सीखने की पद्धतियों का उपयोग न करके अव्यवस्थित ढंग से सीखा गया कार्य स्मृति में कठिनता से आता है। अतः उत्तम विधि द्वारा सीखना उत्तम स्मृति का एक अच्छा साधन है।

(ii) प्रबल धारणा:
स्मृति का दूसरा महत्त्व अंग धारण शक्ति है। यदि व्यक्ति की धारणा शक्ति उत्तम होती है तो सीखी गई क्रिया अधिक स्थायी रह सकती है। अन्यथा दुर्बल धारण शक्ति में उत्तम सीखने की विधि भी अधिक सार्थक सिद्ध नहीं होती है। अत: उत्तम स्मृति के लिये प्रबल धारणा का होना भी आवश्यक है।

(iii) निरर्थक तत्वों का विस्मरण:
निरर्थक तत्वों के विस्मरण से अभिप्रेरक विषय से सम्बन्धित गौण बातों को भूल जाने से है। केवल विषय से सम्बन्धित मुख्य बातों को ही हमेशा स्मरण रखना चाहिये। उदाहरणार्थ, कक्षा में पढ़ते समय जो विषय पढ़ाया जा रहा है वही मुख्य होता है शेष अध्यापक के हावभाव, विद्यार्थियों की शरारतें या अन्य अनेक सम्बन्धी घटक गौण होते हैं। अतः विद्यार्थी यदि विषय के अतिरिक्त अन्य घटनाओं को भी धारण कर लेता है जो निरर्थक होती है तो वह विषय की अच्छी स्मृति नहीं कर सकता। विषय के निरर्थक तत्वों का विस्मरण ही अच्छी स्मृति में सहायक होता है।

(iv) उपयोगिता:
उपयोगिता-वही विषय सार्थक होता है जो उपयोगी होता है। अतः उपयोगी बातों का धारणा करना अच्छी स्मृति के लिये आवश्यक है क्योंकि उपयोगी बातों की आवश्यकता पड़ने पर चेतना के स्तर पर आ जाना अच्छी स्मृति का एक लक्षण है।

(v) सत्य पुनस्र्मरण:
अच्छी स्मृति वही कहलाती है जिसमें पूर्व अनुभव वैसे के वैसे ही चेतना के स्तर पर आ जाते हैं। इसके लिये आवश्यक है कि स्मृति को अच्छा बनाने के साधनों का उपयोग किया जाये क्योंकि पुनमरण ‘सीखने की विधि’ और धारणा शक्ति पर निर्भर करता है। इन दोनों को सही प्रकार से क्रियान्वित करने पर ही पुनमरण यथार्थ होता है।

प्रश्न 2.
स्मृति से क्या तात्पर्य है? स्मृति को उन्नत बनाने के उपाय का वर्णन करें।
उत्तर:
स्मृति वह मानसिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा हम अपने गत अनुभव को संग्रहित कर उसे वर्तमान चेतना में लाते हैं।

उन्नत बनाने के उपाय:
स्मृति सुथर की बहुत सारी युक्तियाँ हैं जिन्हें स्मृति सहायक संकेत कहा जाता है जो निम्न है –

प्रतिभा के उपयोग से स्मृति सहायक संकेत:
इस प्रकार की स्मृति सुधार विधि में याद की जानेवाली सामग्री तथा उसके इर्द-गिर्द सुस्पष्ट प्रतिभा की रचना की जाती हैं इसमें 2 प्रमुख विधि है –

1. मुख्य शब्द विधि:
इस विधि में से प्रतिभा विकसित करने में परिचित शब्द से सीखे जाने शब्द का संबंध जोड़ना होता है जैसे MAT शब्द परिचित होने से बच्चा CAT शब्द आसानी से सीख लेता है।

2. स्थान-विधि:
किसी वस्तु को याद करने में उसे संबंधित स्थान से जोड़कर उसकी प्रतिभा मन में लाने से विषय याद रहता है।

संगठन के उपयोग से स्मृति सायक संकेत:
संगठन के अर्थ हैं याद की जानेवाली सामग्री में एक क्रम सुनिश्चित करना है संगठित विषय की स्मृति तेज होती है।

1. खंडीयन विधि:
यदि किसी विषय को याद करना है तो उसे खंड में बाँटकर यादकर उसे क्रम में सजाकर स्मृति को उन्नत बनाया जा सकता है।

2. प्रथम अक्षर तकनीक:
इसमें अक्षर तकनीक को प्रयुक्त करने के लिए याद किए जाने वाले प्रत्येक शब्द के अक्षर को लेकर उससे एक वाक्य या शब्द बनाया जाता है। इसके अलावा स्मृति को उन्नत बनाने के अन्य उपाय हैं –

(a) गहन-स्तर पर प्रक्रमण कीजिए:
किसी सूचना को अच्छी तरह से याद करने के लिए गहन-स्तर पर प्रक्रमण करना चाहिए।

(b) अवरोध घटाएँ:
स्मृति उन्नत बनाने के लिए एक विषय को सीखने के बाद दूसरा ऐसा विषय सीखना चाहिए जिसमें विषय साम्य न हो। इसके अलावा अवरोध को कम करने के लिए अध्ययन के दौरान बीच में आराम करना चाहिए।

(c) पर्याप्त पुनरुद्धार संकेत रखिए:
किसी विषय को याद करते समय उस सामग्री में निहित कुछ पुनरुद्धार संकेतों को पहचान से और अपने याद करने की सामग्री के अंशों को इनसे जोड़ने से स्मृति उन्नत होती है। इस प्रकार कई प्रविधि और उपाय जिसकी सहायता से स्मृति को उन्नत बनाया जा सकता है। गत अनुभव का स्मरण न होना विस्मृति कहलाता है। अर्थात् विस्मृति (या धारण की किसी जाँच) की असमर्थता है।

कारण:

1. चिह्न हास के कारण विस्मरण:
जब हम किसी विषय को याद करते हैं तो उसके चिह्न मस्तिष्क में बन जाते हैं जिसे स्मृति-चिह्न कहते हैं। जैसे-जैसे समय बीतता है स्मृति-चिह्न कमजोर होते जाते हैं। अतः हम विषय को पूरी तरह से भूल जाते हैं इसे अनुप्रयोग सिद्धांत कहा गया है।

2. अवरोध के कारण विस्मरण:
इसे अवरोध सिद्धांत भी कहते हैं इसके अनुसार स्मृति भंडार में संचित विभिन्न सामग्री के बीच अवरोध के कारण विस्मरण होता है सीखने और याद करने में विभिन्न पदों के बीच साहचर्य स्थापित होता है जिससे विषय स्मृति में अक्षत रहता है पुनरुद्धार के समय इसमें अवरोध उत्पन्न होता है जो 2 प्रकार का होता है।

3. अग्रलक्षी अवरोध:
पहले सीखा गया विषय बाद में सीखी गयी क्रिया को याद करने में अवरोध उत्पन्न करता तो अग्रलक्षी अवरोध कहते हैं।

4. पुर्वलक्षी अवरोध:
इसमें बाद में सीखा गया विषय पहले विषय को याद करने में बाधा डालता है।

5. पुनरुद्धार सफलता के कारण विस्मरण:
विस्मरण का एक कारण प्रत्याह के समय पुनरुद्धार के सति का अनुपस्थित रहना भी है पुनरुद्धार के संकेत वे साधन हैं जो हमें स्मृति में संचित सूचना की पुनः प्राप्त करने में मदद करते हैं टलविंग ने अपने सिद्धांत में इसकी विस्मृत: व्याख्या की है। इसके अलावा विस्मरण के कई कारण हैं जैसे विषय का स्वरूप, सीखने की मात्रा, विषय का भावात्मक मूल्य विषय की लंबाई, सीखने की विधि, विषय में रुचि, मस्तिष्क, अद्यात तथा शारीरिक कष्ट, मानसिक, धक्का एवं चिंता, मानसिक पर्यवेक्षण का अभाव।

प्रश्न 3.
लघुकालीन स्मृति तथा दीर्घकालीन स्मृति के अर्थ एवं विशेषताओं को बतलाएँ। इन दोनों के अंतर पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
लघुकालीन स्मृति का अर्थ (Meaning of short-term memory of STM):
लघुकालीन स्मृति को विलियम जेम्स (WilliamJames) ने प्राथमिक स्मृति (Primary memory or PM) भी कहा है। लघुकालीन स्मृति वैसी स्मृति को कहा जाता है जिसमें व्यक्ति किसी अनुभूतियों को मात्र एकाध प्रयास में ही सीख लेता है। शायद यही कारण है कि ऐसी अनुभूतियाँ कमजोर होती हैं। जब व्यक्ति इन अनुभूतियों पर ध्यान देता है या उनका मानसिक रिहर्सल करता है तब उनका विस्मरण नहीं हो पाता है। परंतु, इन तत्वों के अभाव में लघुकालीन स्मृति-चिह्नों का तुरंत लोप हो जाता है जिसके फलस्वरूप विस्मरण विस्मरण होता है।

इस तरह के विस्मरण को चिह्न-आधुत विस्मरण (trace dependent forgetting) कहा जाता है लघुकालीन स्मृति को एक उदाहरण द्वारा इस प्रकार समझ सकते हैं-मान लिया जाए कि कोई व्यक्ति किसी अपरिचित व्यक्ति से किसी कारणवश दूरभाष पर बातचचीत करने के लिए उसकी दूरभाष-संख्या दूरभाष निर्देशिका से प्राप्त करता है। व्यस्त सिगनल मिलने पर वह 15 सेकण्ड के लिए रुककर पुनः उसे डाइल करने की कोशिश करता है।

संभव है इस बार वह दूरभाष-संख्या भूल जाए या संख्या का सही क्रम भूल जाए। यह लघुकालीन स्मृति का उदाहरण होगा, क्योंकि यहाँ व्यक्ति दूरभाष संख्या को अधिकतम समय-सीमा (20-30 सेकंड) से कम ही समय तक संचित रख पाया। लघुकालीन स्मृति को अन्य नामों जैसे सक्रिय स्मृति (active memory) तात्कालिक स्मृति (immediate memory), चयन स्मृति (working memory) एवं लघुकालीन संचयन (short term storage) आदि से भी जाना जाता है। मनोवैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोधों एवं प्रयोगों से STM की कुछ खास विशेषताओं का पता चला है जिनसे इसका अर्थ और अधिक स्पष्ट हो जाता है। अतः इन विशेषताओं का वर्णन यहाँ अपेक्षित है जो इस प्रकार है –

  1. लघुकालीन स्मृति कमजोर (fragile) होती है, परिणामस्वरूप इससे विस्मरण तेजी से होता है।
  2. लघुकालीन स्मृति-उद्दीपनों (stimuli) को हू-ब-हू संचित न करके उन्हें उनकी आवाज (sound) के आधार पर कूटसंकेतीकृत (coding) कर संचित किया जाता है।
  3. मिलर (Miler) के अनुसार STM की संचयनशक्ति (storage capacity) एक समय में 72 अर्थात् अधिकतम 9 तथा न्यूनतम 5 उद्दीपनों की होती है। इसे मनोवैज्ञानिकों ने जादुई संख्या (magic number) कहा है।
  4. लघुकालीन स्मृति की अवधि अधिक-से-अधिक 25-30 सेकण्ड की होती है। पेटरसन एवं पेटरसन (Peterson & Peterson) तथा ब्राउन (Brown) के अध्ययन से इस तथ्य की संतुष्टि होती है। पेटरसन एवं पेटरसन के अध्ययन में तो STM की अधिकतम अवधि 18-20 सेकण्ड की ही पाई गई थी।

दीर्घकालीन स्मृति का अर्थ (Meaning of long term memory or LTM):
दीर्घकालीन स्मृति को विलियम जैम्स (William James) ने गौण स्मृति (secondary memory of SM) भी कहा है। दीर्घकालीन स्मृति से तात्पर्य वैसे स्मृति-संचयन (memory storage) से होता है जिसमें सूचनाओं को व्यक्ति काफी लम्बी अवधि के लिए संचित करता है। इस लम्बी अवधि की न्यूनतम सीमा 20-30 सेकेण्ड तथा अधिकतम सीमा कुछ निश्चित नहीं होती है। संभव है, व्यक्ति किसी सूचना को मात्र 2 घंटे के लिए LTM में संचित रखे या फिर उसे पूरे जीवनकाल के लिए भी संचित रखे। दीर्घकालीन स्मृति की संचय क्षमता (storage capacity) काफी बड़ी होती है और कुछ मनोवैज्ञानिकों ने इसकी क्षमता को असीमित बतलाया है।

इसमें वैसे सूचनाएँ संचित होती हैं जिन्हें व्यक्ति महत्त्वपूर्ण समझता है या जिन्हें वह अभ्यास करके प्राप्त करता है। व्यक्ति की अपनी दूरभाष-संख्या तथा अपने नजदीकी रिश्तेदारों की दूरभाष-संख्या LTM में मुख्य रूप से दो तरह की सूचनाएँ संचित होती हैं। पहली तरह की सूचनाओं का संबंध वैसी सूचनाओं से होता है जो सामयिक घटनाओं (temporal events) के क्रमों (sequences) से संबंधित होते हैं तथा दूसरी तरह की सूचनाओं का स्वरूप कुछ वैसा होता है जो तरह-तरह के संकेतों (symbols) एवं शब्दों के अर्थ आदि से संबंधित होता है। पहली तरह की सूचनाओं को प्रासंगिक स्मृति (episodic memory) तथा दूसरी तरह की सूचनाओं की स्मृति को अर्थगत स्मृति (semantic memory) कहा जाता है। LTM को निष्क्रिय स्मृति (inactive memory) भी कहा जाता है।

LTM के क्षेत्र में किए गए अध्ययनों से इसकी कुछ विशेषताओं (characteristics) का पता चला है जिनसे उसके अर्थ को ठीक ढंग से जाना जा सकता है। ऐसी विशेषताओं में निम्नांकित प्रमुख हैं –

  1. LTM में संचित सूचनाएँ सापेक्ष रूप से (relatively) स्थायी होती हैं जिसके कारण इसे विस्मरण देरी से होता है।
  2. STM में संचित सूचनाएँ मौलिक उद्दीपन से प्राप्त सूचनाओं की कार्बन कॉपी नहीं होती, बल्कि उन्हें अर्थ के आधार पर कूटसंकेतीकृत करके संचित किया जाता है।
  3. LTM में सूचनाएँ संगठित एवं साहचर्यात्मक ढंग से संचित की जाती हैं। इसका मतलब यह हुआ कि जो सूचनाएँ या एकांश आपस में अर्थपूर्ण ढंग से संबंधित होती हैं उन्हें व्यक्ति एक साथ संचित करता है।
  4. LTM में संचित वैसी सूचनाएँ कम सक्रिय होती हैं जो किसी घटना या कार्य के पूरा होने के बाद प्राप्त होती हैं। परंतु वैसी सूचनाएँ जो किसी घटना या कार्य के अधूरा ही रह जाने के फलस्वरूप प्राप्त होती हैं, अधिक सक्रिय होती हैं।

लघुकालीन स्मृति तथा दीर्घकालीन स्मृति में अंतर (Distinction between short term memory and long-term memory):
STM तथा LTM में प्रमुख अंतर निम्नांकित प्रकार के हैं –

1. STM में सूचनाएँ अधिक-से-अधिक:
20-30 सेकण्ड के लिए संचित करके रखी जाता हैं, परंतु LTM में सूचनाओं के संचयन की अधिकतम अवधि अनश्चित होती है। यह एक बेटे की भी हो सकती है, एक दिन की भी या फिर पूरे जीवन-अवधि के लिए।

2. STM में सक्रिय एवं सतत रिहर्सल (rehearsal) की प्रक्रिया चलती रहती है। म प्रक्रिया के बंद होते ही सूचनाओं का विस्मरण प्रारम्भ हो जाता है। LTM के साथ ऐसी बात नहीं है। LIM में ऐसी सक्रियता की जरूरत नहीं पड़ती है, हालांकि यह बात जरूर है कि प्रारम्भ में LTM में सूचनाओं को संचित करने में व्यक्ति को अधिक प्रयास करना आवश्यक हो जाते है, परंतु बाद में यह एक निष्क्रिय प्रक्रिया हो जाती है।

3. STM की संचयन:
क्षमता (storge capacity) सीमित होती है और मिलर की जादुई संख्या (magic number) के अनुसार यह क्षमता 7 ± 2अर्थात् 5 से 9 तक की (किसी एक समय में) होती है। LTM के साथ ऐसी बात नहीं है। LTM की संचयन-क्षमता असीमित (unlimited) होती है। इसकी न तो कोई न्यूनतम और न ही कोई अधिकतम संख्या निश्चित होती है।

4. STM से हुए विस्मरण का आधार स्मृति:
चिह्नों का नाश या ह्रास होना होता है जबकि LTM में हुए विस्मरण का आधार सामान्यतः पुनः प्राप्ति संकेतों (retrieval clues) का अनुपलब्ध होना है। पहली तरह के विस्मरण को चिह्न-आधृत विस्मरण (trace-dependent forgetting) तथा दूसरी तरह के विस्मरण को संकेत-आधृत विस्मरण (clue-dependent forgetting) कहा जाता है।

5. STM में संचित सूचनाओं का प्रत्याह्वान (recall) काफी आसान होता है। व्यक्ति थोड़ा-सा साधारण प्रयास से ही संचित सूचनाओं का प्रत्याह्वान कर लेता है। परंतु LTM से सूचनाओं का सही प्रत्याह्वान (recall) या प्रत्याभिज्ञान (recognition) कर पाता है।

6. STM ध्वनि-संकेतीकरण (phonological or accustic coding) से अधिक प्रभावित होता है जबकि LTM अर्थगत संकेतीकरण (semantic coding) से अधिक प्रभावित होता है। ध्वनि-संकेतीकरण में व्यक्ति शब्दों को उनकी ध्वनि में समानता (जैसे-CAT, MAT, SAT, BAT आदि) के आधर पर मस्तिष्क से संचित करता है तथा अर्थगत समानता में व्यक्ति शब्दों को उनके अर्थ अर्थात् (LARGE, TALL, BIG आदि) के आधार पर मस्तिष्कम में संचित करता है।

7. STM में नवीनता:
प्रभाव (recency effect) अधिक देखने को मिलता है जबकि LTM पर प्राथमिकी प्रभाव (primacy effect) अधिक देखने को मिलता है। शब्दों या एकांशों की सूची अतिम भागों में किया गया प्रत्याह्वान नवीनता-प्रभाव तथा प्रथम भागों से किया गया प्रत्याह्वान प्राथमिकी प्रभाव कहलाता है।

8. STM तथा LTM को न्यूरोदैहिक सबूतों (neurophysiological evidences) के आधार पर एक-दूसरे से भिन्न किया गया है। मिलनर (Milner) के अनुसार कुछ ऐसे नैदानिक सबूत (clinical evidences) मिले हैं जिनमें देखा गया है कि व्यक्ति का LTM गंभीर रूप से प्रभावित था, परंतु STM ठीक था। उसी तरह एक अन्य नैदानिक ने इसमें यह देखा कि व्यक्ति का STM बुरी तरह प्रभावित था परंतु LTM बिल्कुल ठीक था। इन सबूतों के आधार पर मनोवैज्ञानिकों ने यह बतलाया है कि STM तथा LTM दो स्मृति तंत्र हैं जो अलग-अलग नियमों एवं सिद्धांतों से निर्देशित होते हैं।

स्पष्ट हुआ कि STM तथा LTM एक-दूसरे से भिन्न हैं। इन अंतरों के बावजूद कुछ मनोवैज्ञानिकों जैसे लॉकहार्ट एवं क्रैक (Lockhart & Craick) ने यह दावा किया है कि इन दोनों का दो अलग-अलग तंत्र (system) न मानकर एक ही स्मृति तंत्र के दो संबंधित पहलू मानकर चलना अधिक उचित होगा। परंतु उनके विचारों को अधिक समर्थन प्राप्त नहीं है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि फिलहाल इन दोनों को एक-दूसरे से भिन्न समझना ही उपयुक्त है।

प्रश्न 4.
लघुकालीन स्मृति से आप क्या समझते हैं? लघुकालीन स्मृति तथा दीर्घकालीन स्मृति में अंतर बतावें।
उत्तर:
जब किसी पाठ या विषय को व्यक्ति सीखता है तब उससे उत्पन्न स्मृति चिह्न को मस्तिष्क में धारण करके रखता है। स्मृति चिह्न जितना ही अधिक समय के लिए मस्तिष्क में बना रहता है, धारण भी उतने ही अधिक समय के लिए बना रहता है। स्मृति चिह्नों को धारण करके रखने की अवधि को कसौटी मानकर स्मृति के दो प्रकार बताए गए हैं-(क) लघुकालीन स्मृति (short term memory) (ख) दीर्घकालीन स्मृति (long term memory)।

इन दोनों का वर्णन इस प्रकार है –

(क) लघुकालीन स्मृति (Short term memory):
लघुकालीन स्मृति वैसी स्मृति को कहा जाता है जिसमें व्यक्ति किसी अनुभूति को अधिकतम 20 से 30 सेकण्ड के लिए संचित करके रख पाता है तथा अनुभूतियों को वह मात्र एकाध प्रयासों में ही सीख लिया जाता है। कोई भी अनुभूति पहले व्यक्ति की लघुकालीन स्मृति में ही प्रवेश करती है। जब व्यक्ति उस अनुभूति पर ध्यान देता है या उसका मानसिक रिहर्सल करता है तब तो उसका विस्मरण नहीं हो पाता है। परंतु, इन दोनों तत्वों के अभाव में लघुकालीन स्मृति से स्मृति चिह्नों का नाश तेजी से होता है। फलस्वरूप, इसे विस्मरण भी काफी तेजी से होता है।

लघुकालीन स्मृति को एक उदारहण द्वारा इस प्रकार समझाया जा सकता है-मान लिया जाए कि किसी अपरिचित से दूरभाष पर बातचीत करने के लिए हम उसकी दूरभाष संख्या दूरभाष निर्देशिका से प्राप्त करते हैं। ‘व्यस्त सिंगनल’ (busy signal) मिलने पर 20 सेकण्ड रुककर पुनः उसे डायल करते हैं। संभव है कि हम उसकी दूरभाष संख्या भूल जाएँ या संख्या का सही क्रम भूल जाएँ। यह लघुकालीन स्मृति का उदाहरण होगा क्योंकि इससे दूरभाष संख्या को 20 सेकण्ड से कम ही समय के लिए स्मृति संचयन (memory store) में रखा गया था। विलियम जेम्स (William James) ने इसे प्राथमिक स्मृति (Primary memory) कहा है।

(ख) दीर्घकालीन स्मृति (Long term memory):
दीर्घकालीन स्मृति वैसी स्मृति को कहा जाता है जिसमें व्यक्ति किसी अनुभूति को. कम-से-कम 30 सेकण्ड से अधिक समय के लिए निश्चित रूप से संचित करके रखता है। इस तरह की स्मृति में अधिकतम कितने समय तक किसी स्मृति चिह्न को सचित रख जाता है, इसकी कोई समय-सीमा नहीं होती है। शायद यही कारण है कि एक वृद्ध व्यक्ति भी अपने बचपन की अनुभूतियों का आसानी से प्रत्याह्वान कर लेता है।

दीर्घकालीन स्मृति में वैसी अनुभूतियाँ संचित होती हैं जिन्हें व्यक्ति एकाध प्रयास में नहीं बल्कि कई प्रयासों में हासिल करता है। व्यक्ति की अपनी दूरभाष संख्या तथा अपने नजदीकी संबंधियों की दूरभाष संख्या दीर्घकालीन स्मृति में संचित होती है। विलियम जेम्स ने इसे गौण स्मृति (secondary memory) भी कहा है। ऐसी स्मृति में स्मृति चिह्नों का नाश धीरे-धीरे होता है।

लघुकालीन स्मृति तथा दीर्घकालीन स्मृति में अंतर (Distinction between short term memory and long term memory):
इन दोनों तरह की स्मृतियों में मुख्य अंतर निम्नांकित हैं –

  • लघुकालीन स्मृति की संचय अवधि (storage duration) अधिकतम 20 से 30 सेकण्ड की होती है जबकि दीर्घकालीन स्मृति में ऐसी कोई अधिकतम समय-सीमा नहीं होती है।
  • लघुकालीन स्मृति में वैसी अनुभूतियाँ होती हैं जो एकाध बार के प्रयास से उत्पन्न हो जाती हैं। परंतु, दीर्घकालीन स्मृति में केवल वैसी ही अनुभूतियाँ होती हैं जिन्हें व्यक्ति कई प्रयासों में काफी अभिरुचि दिखाकर प्राप्त किए हुए होता है।
  • दीर्घकालीन स्मृति से स्मृति चिह्नों का नाश तेजी से होता है जबकि लघुकालीन स्मृति से स्मृति चिह्नों का नाश धीरे-धीरे होता है। यही कारण है कि दीर्घकालीन स्मृति से विस्मरण की दर काफी धीमी होती है जबकि लघुकालीन स्मृति से विस्मरण की दर काफी तेज होती है।
  • कोई भी अनुभूति पहले लघुकालीन स्मृति में प्रवेश करती है और जब व्यक्ति उसपर ध्यान देता है या उसका मानसिक रिहर्सल करता है तब उसका स्थानांतरण दीर्घकालीन स्मृति में होता है।
  • लघुकालीन स्मृति की संचयन क्षमता (storgae capacity) काफी सीमित होती है जबकि दीर्घकालीन स्मृति की संचयन क्षमता असीमित होती है।

प्रश्न 5.
क्षणदीय स्मृतियाँ, जीवन चरित स्मृति तथा निहित स्मृतियों का सामान्य परिचय दें।
उत्तर:
मानव स्मृति की जटिल एवं गत्यात्मक प्रकृति के अध्ययन के आधार पर दीर्घकालिक स्मृति को तीन प्रमुख दशाओं से जोड़ा जाता है –

1. क्षणदीप स्मृतियाँ:
आश्चर्यजनक अथवा विस्मयकारी घटनाओं के कारण उत्पन्न उदीप्त करनेवाली सूचनाओं पर आधारित स्मृतियाँ होती हैं। क्षणदीप स्मृतियाँ किसी विशेष स्थान, तिथि एवं समय से जुड़े ऐसे चित्र होते हैं जिसकी स्मृति लगभग स्थिर होती है। क्षणदीप स्मृतियों को बनाने हेतु लगातार प्रयासरत रहते हैं।

2. जीवन-चरित स्मृति:
यह किसी व्यक्ति के जीवन से जुड़ी स्मृतियाँ होती हैं। प्रथम 4 – 5 वर्षों तक की स्मृतियाँ बताना लगभग कठिन होता है जिसे बाल्यावस्था स्मृतिलेस कहा जाता है। 20 के दशक की स्मृतियों की संख्या बहुत अधिक होती है। वृद्धावस्था की स्मृतियों ताजी और प्रेरणादायक होती हैं।

3. निहित स्मृतियाँ:
ये स्मृतियों जिनके प्रति कोई व्यक्ति अनभिज्ञ होता है तथा जो स्वचालित रूप से पुनरुद्धत होती है। अंधकार में कम्प्यूटर के कीबोर्ड पर उंगलियों को दौड़ाना निहित स्मृति कहला सकती है क्योंकि यह अनुभव और अभ्यास से प्राप्त ऐसा गुण है जो कब और क्यों उत्पन्न हुआ कोई नहीं बतला सकता है। यह भी पता चला है कि सामान्य स्मृति वाले साधारण लोगों में भी कुछ निहित स्मृतियाँ होती है।

प्रश्न 6.
दमित स्मृतियाँ क्या होती हैं?
उत्तर:
सिगमंड फ्रायड ने बताया है कि लोगों में कुछ अभिधातज अनुभव होते हैं जो संवेगात्मक रूप से दुखदायी होते हैं। धमकी, चोरी, अकाल मृत्यु, धोखा जैसी घटनाओं की याद – भी कष्टदायक होती है। कोई भी व्यक्ति खतरनाक या दुखदायी स्मृति को बनाये रखना नहीं चाहता है। दुखदायी स्मृतियों को लोग अचेतन मन में दमित सामान्य जिन्दगी जीना चाहते हैं।

किसी व्यक्ति के द्वारा कुछ विशेष प्रकार की स्मृति को दबाकर भूल जाने की स्थिति बना लेता है। इस कृत्रिम विस्मरण को दमित स्मृति कहा जा सकता है। दमित स्मृति का कारक भय, आतंक, चिंता, दुख यानी कोई भी भयावह सूचना होती है। यह स्मृति लोप से अलग अवस्था होती है। यह मानसिक विकार भी उत्पन्न कर सकता है। दमित स्मृति की दशा में कोई व्यक्ति जीवन के कठिन यथार्थ के प्रति अपनी आँखें, कान और मन बंद करके, कठिन स्मृति से मानसिक रूप से पालयन कर जाते हैं।

प्रश्न 7.
कार्यकारी स्मृति को वेर्डले के दृष्टिकोण के आधार पर स्पष्ट करें।
उत्तर:
सन् 1986 में मनोवैज्ञानिक बेर्डले ने अल्पकालिक स्मृति का बहुघटकीय दृष्टिकोण का प्रस्ताव रखा था। बेर्डले के अनुसार अल्पकालिक स्मृति निष्क्रिय नहीं होती बल्कि यह एक कार्य-मेज है जिस पर स्मृति अपने विभिन्न रूपों वाली सामग्री को साथ लिए सजी रहती है। जब कभी लोग किसी संज्ञानात्मक कार्यों के लिए आवश्यक मानते हैं तब यह भंडार अपनी स्मृति भंडार से उचित सूचना प्रदान करती है। इस कार्य-मेज का दूसरा नाम कार्यकारी स्मृति है।

कार्यकारी स्मृति के कई घटक होते हैं –

1. स्वनिमिक घेरा:
इसमें ध्वनियों की सीमित संख्या होती है जो अभ्यास के अभाव में दो सेकण्ड के बाद मिटना प्रारम्भ कर देता है।

2. दृष्टि:
स्थानिक स्केच पेड-इसमें चाक्षुष और स्थानिक सूचनाएँ जमा रहती हैं।

3. बेर्डले केन्द्रीय प्रबंधक:
यह सूचनाओं को स्वनिमिक घेरे से, दृष्टि-स्थानिक स्केच पैड से तथा दीर्घकालिक स्मृति संग्रहित करता है। एक सच्चे प्रबंधक के रूप में यह अवधानिक साधनों का निमतन, सूचनाओं का सही वितरण तथा व्यवहार का परिवीक्षण, नियोजन और नियंत्रण करने में अपनी कुशलता का परिचय देता है। अर्थात् कार्यकारी स्मृति के सभी तीनों घटक अपने-अपने कार्यों के द्वारा बेर्डले के दृष्टिकोण का समर्थन करता है।

प्रश्न 8.
विस्मरण या भूलने के स्वरूप एवं कारणों का वर्णन करें। अथवा, भूलना क्या है? भूलने के क्या-क्या कारण हैं?
उत्तर:
भूलना एक ऐसी मानसिक क्रिया है जिसमें मस्तिष्क में बने हुए मृत्यु-चिह्न मिट जाते हैं, जिसके कारण पूर्व सीखे हुए विषय का न प्रत्याह्वान किया जा सकता है और न पहचाना जा सकता है। मनुष्य आजीवन सीखता या भूलता रहता है। वह किसी विषय को चाहे कितनी गहराई से क्यों न सीखे उसे एक दिन अवश्य भूल जाता है। इस प्रकार भूलना मानव जीवन का एक तथ्य माना जाता है।

जब भूलना मानव जीवन का तथ्य है तो उसका स्वरूप क्या है? इसे जानना परमावश्यक है। जब हम किसी विषय को सीखते हैं, तो उसके स्मृति-चिह्न मस्तिष्क में बन जाते हैं। इन्हीं स्मृति-चिह्न के सहारे हम सीखे हुए विषय को याद करते हैं। लेकिन समय के व्यवधान के कारण या मानसिक आघात के कारण ये स्मृति-चिह्न कमजोर होते जाते हैं और मिट जाते हैं। इन्हें मिटने पर सीखे हुए विषय को याद नहीं कर पाते हैं, यानी उसे भूल जाते हैं।

विस्मरण के कारण-विस्मरण के निम्नलिखित प्रधान कारण हैं –

1. पाठ्य-विषय का स्वरूप:
भूलना बहुत अंशों में सीखे गए विषय पर निर्भर करता है। जो विषय अधिक रोचक होता है, उसे व्यक्ति अधिक दिनों तक याद रखता है; क्योंकि उसके स्मृति-चिह्न बहुत दिनों तक बने रहते हैं।

दूसरी ओर, जो विषय निरर्थक या अरोचक होते हैं, उनके स्मृति-चिह्न मस्तिष्क पर दुर्बल बनते हैं और उनका साहचर्य पूर्व अनुभूतियों से मजबूती के साथ स्थापित नहीं हो पाता है। इसका फल यह होता है कि समय-व्यवधान के साथ उन विषयों के स्मृति-चिह्न मस्तिष्क से मिटने लगते हैं और अंत में हम उन्हें भूल जाते हैं। अत: विषय के स्वरूप के कारण सार्थक तथा रोचक विषय की अपेक्षा निरर्थक विषयों को हम जल्दी भूल जाती हैं।

2. शिक्षण की मात्रा:
जिस विषय को पूर्णरूप से नहीं सीखा जाता है, उसे हम शीघ्र भूल जाते हैं। अल्परूप से सीखने के कारण मस्तिष्क में स्मृति-चिह्न अच्छी तरह नहीं बन पाते हैं और शीघ्र ही पुनर्संरचना को (reconstruction) कहा है। चाहे विकृति को या संरचना या पुनसंरचना, इन तीनों प्रतिक्रियाओं से स्मृति में त्रुटि उत्पन्न होती है। मनोवैज्ञानिकों ने इस प्रश्न पर काफी गंभीरता पूर्वक विचार किया है कि स्मृति में इस तरह की त्रुटि के क्या कारण हो सकते हैं। इनके द्वारा इस विषय पर किये गये शोधों के आलोक में निम्नांकित चार कारकों को महत्त्वपूर्ण बतलाया गया है –

  • सरल अनुमान (simple inference)
  • रूढ़ियुक्ति (stereotypes)
  • स्कीमा (Schema)
  • विविध कारक (Miscellaneous factors)

इनका वर्णन इस प्रकार है –

1. सरल अनुमान (Simple inference):
व्यक्ति जब किसी एकांश (items) या घटना को पहली बार देखता है या उसके बारे में सुनता है, तो वह उसके आधार पर कुछ अनुमान (inferences) निकालता है और बाद में जब वह उस मौलिक एकांश या घटना का प्रत्याह्वान करता है, तो उसके स्मृति में उस अनुमान के कारण कुछ त्रुटियाँ अर्थात् संरचनात्मक (construtive) या पुरसँरचनात्मक प्रतिक्रिया उत्पन्न हो जाती है जिसके कारण उस एकांश या घटना या प्रत्याह्वान किया गया अंश पहले से भिन्न हो जाता है।

2. रूढ़ियुक्ति (Stereotypes):
सामाजिक रूढ़ियुक्ति के कारण भी व्यक्ति अपनी स्मृति को नये ढंग से संरचित करता है तथा उसमें विकृति उत्पन्न करता है। रूढ़ियुक्ति से तात्पर्य व्यक्तियों के किसी पूरे समूह या वर्ग के शारीरिक गुणों या शीलगुणों के बारे में लगाये गये अनुमानों से होता हालांकि ऐसा लगाय गया अनुमान शायद ही कभी उस वर्ग के अधिकतर व्यक्तियों के लिए सही होता हो। समाज मनोवैज्ञानिकों द्वारा किये गए प्रयोगों से यह स्पष्ट हुआ कि रूढ़ियुक्ति का प्रभाव सामाजिक अंत:क्रिया पर तो काफी पड़ती है।

3. स्कीमा (Schema):
स्कीमा से तात्पर्य बाह्य वातावरण की वस्तुओं, उद्दीपकों, घटनाओं आदि के बारे में व्यक्ति के ज्ञान तथा उसके पूर्वकल्पनाओं (assumptions) से होता है। अतः स्कीमा का विकास अनुभव (experience) के आधार पर होता है और यह एक तरह का मानसिक ढाँचे के समान होता है जिसके माध्यम से व्यक्ति नयी सूचनाओं को संशोधित कर उसे वर्तमान सूचनाओं से संबंधित करता है एक बार स्कीमा का निर्णय हो जाने पर वे स्मृति में सूचनाओं के कूटसंकेतन (encoding) संचयन (storage) तथा पुनः प्राप्ति (retrieval) को काफी प्रभावित करते हैं और स्मृति में विकृति (distortion) उत्पन्न करते हैं।

4. विविध कारक (Miscellaneous factors):
कुछ मनोवैज्ञानिकों ने स्मृति में उत्पन्न विकृति का कारण उपर्युक्त कारकों के अलावा कुछ अन्य कारकों को मानते हैं। जैसे, कुछ मनोवैज्ञानिकों का मत है कि कूटसंकेतन (econding) के समय मौजूद प्रक्रिया स्मृति में विकृति उत्पन्न करता है। जब व्यक्ति पहली बार किसी विषय या तथ्य को गहण करता है, तो संभव है कि वह उसके विस्तृत संदर्भ पर न ध्यान देकर और मात्र एक सूचना (अर्थात् कब और कैसे यह सूचना प्राप्त हुई) के रूप में ग्रहण करें।

इसी तरह से कभी-कभी व्यक्ति में बाह्य दुनिया (external world) के बारे में एक स्पष्ट प्रत्यक्षण एवं बोध (understanding) की तीव्र इच्छा होती है। इसका परिणाम यह है कि व्यक्ति किसी वस्तु या घटना के प्रत्यक्षण की विस्तृत (details) को इस तरह से भर देता है या पूरा करता है कि समग्र पैटर्न काफी अर्थपूर्ण एवं व्याख्या योग्य लगता है।

इसका स्पष्ट परिणाम यह होता है कि व्यक्ति के स्मृति में विकृति उत्पन्न हो जाती है अर्थात् वह कई महत्त्वपूर्ण चीजों को अपनी ओर से मौलिक घटना में जोड़ देता है। स्पष्ट हुआ कि स्मृति में संरचनात्मक तथा पुनर्संरचनात्मक प्रक्रियाएँ (reconstructive processes) होते रहती हैं जिससे उसमें विकृति उत्पन्न हो जाती है। स्मृति में उत्पन्न इस तरह के विकृति का आशय (implication) कानूनी प्रक्रिया खासकर प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्य (eyewitness testimony) के लिए काफी महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 9.
स्मरण की मुख्य विधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्मरण करने के लिए यदि मनमानी पद्धति अपनाई जाये तो उसके परिणामस्वरूप किया गया स्मरण अधिक नहीं रह पाता। मनोवैज्ञानिकों के समक्ष भी स्मृति के सम्बन्ध में यही समस्या उत्पन्न हुई। इस समस्या के समाधान के लिये मनोवैज्ञानिकों ने अपने प्रयोग किये तथा उनके आधार पर स्मरण के लिये विभिन्न प्रद्धतियों का प्रतिपादन किया। इस समस्त विधियों की अपनी-अपनी विशेषतायें हैं। अतः स्मरण के लिये निम्नलिखित पद्धतियों को अपनाना चाहिये –

1. पुनरावृत्ति स्मरण विधि:
पुनरावृति से अभिप्राय किसी विषय को बार-बार दोहराने से है। अतः इस विधि में एक विषय को बार-बार दोहराकर याद करना पुनरावृति स्मरण विधि कहलाती है। इस प्रद्धति में स्मरण करने केलिये एक विषय को बार-बार दोहराकर याद किया जाता है। उदाहरणार्थ, बच्चे जब किसी कविता को याद करते हैं तो उसे बार-बार दोहराते हैं तथा उस कविता को याद कर लेते हैं।

इस विधि की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें दिये गये विषय को एक दो बार पढ़कर दोहराया जाता है तथा इसके बाद उसे मन में दोराहते हैं। ऐसा करने से विषय का चित्र मस्तिष्क में अंकित हो जाता है। जितनी बार विषय को दोहराया जाता है। उनका चित्र उतना ही स्पष्ट हो जाता है। इस प्रकार वह स्थायी रूप धारण कर लेता है। सार्थक विषयों को स्मरण करने में यह विधि अति उत्तम है। इसके द्वारा दैनिक जीवन के कार्यों को भी बार-बार दोहराकर स्मरण किया जाता है।

2. पूर्ण स्मरण स्मृति:
इस विधि में किसी विषय को एक साथ पूर्ण रूप से याद किया जाता है इसलिये इसको पूर्ण विधि (Whole Method) कहा जाता है। उदाहरणार्थ-यदि किसी बालक को कोई कविता याद करनी होती है तो वह पूरी की पूरी कविता एक साथ पढ़ता है तथा इसी प्रकार अनेक बार उसको पूर्ण रूप से दोहराता है। ऐसा करने से पूरी कविता एक साथ याद हो जाती है।

इस विधि पर मनोवैज्ञानिक श्री लोट्री स्टीफेंस (Lotti Steffens) ने एक प्रयोग किया। उसने एक कविता को पहले पूर्णरूप से अनेक बार पढ़वाया। हर बार पढ़ने पर कविता के स्मरण करने में होने वाली गलतियों को लिखा जाता रहा। इस प्रयोग के परिणामस्वरूप उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि पूर्ण विधि द्वारा स्मरण जल्दी होता है। आशिक विधि द्वारा स्मरण करने से इस विधि द्वारा कम समय लगा।

3. स्मरण की आंशिक विधि:
इस विधि द्वारा स्मरण करने के लिये विषय को विभिन्न भागों में विभक्त कर लिया जाता है तथा एक बार में एक भाग को याद करके बारी-बारी से सभी भागों को कंठस्थ कर लिया जाता है, इस प्रकार यह विधि पूर्ण विधि से एकदम विपरीत है। पेकस्टाइम (Pechstein) नामक मनोवैज्ञानिक ने आशिक विधि और पूर्ण-विधि का एक प्रयोग द्वारा तुलनात्मक परीक्षण किया।

उन्होंने कुछ निरर्थक विषयों को बारह व्यक्तियों को कंठस्थ करने के लिये दिया उनमें से छ: व्यक्तियों को आंशिक पद्धति से तथा छः को पूर्ण विधि से उस सामग्री को कंठस्थ करने के लिये कहा गया। इस प्रयोग के परिणामस्वरूप उसने देखा कि आंशिक विधि से याद करने में पूर्णविधि द्वारा स्मरण की अपेक्षा कम समय लगा। अत: उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि आंशिक विधि द्वारा स्मरण करने में कम समय लगता है।

इस प्रकार कुछ विद्वानों ने आशिक विधि को उत्तम बताया तथा कुछ ने पूर्ण विधि को। किन्तु इन दोनों विधियों को समझने के पश्चात् यह स्पष्ट है कि कुछ विषय सामग्री के लिए आंशिक पद्धति स्मरण के लिए उत्तम है तथा कुछ विषयों के लिए पूर्ण विधि उत्तम है। जैसे निरर्थक तथा अव्यवस्थित सामग्री को स्मरण करने के लिये आशिक पद्धति उत्तम है और व्यवस्थित तथा सार्थक विषय सामग्री पूर्ण विधि द्वारा जल्दी कंठस्थ हो जाती है। इसके अतिरिक्त अधिक लम्बी विषय-सामग्री अंशों में अच्छी याद होती है और छोटी सामग्री पूर्ण विधि से इन दोनों विधियों की उत्तमता व्यक्तिगत भिन्नता से भी प्रभावित होती है। अतः उपरोक्त दोनों ही स्मरण विधियाँ अपने-अपने विषय क्षेत्र के स्मरण के लिए उत्तम हैं।

4. मिश्रित विधि:
मिश्रित विधि आशिक तथा पूर्ण विधि की मिश्रित पद्धति है। इस विधि में दोनों विधियों को अपनाया जाता है। अधिक लम्बे विषयों को कंठस्थ करने के लिये ही इस विधि का प्रयोग किया जाता है। इस विध में एक विषय को पहले पूर्ण विधि द्वारा कंठसी करने का प्रयास किया जाता है तथा बाद में उसे अंशों में विभाजित करके दोहराया जाता है। इस प्रकार अनेक विषयों में यह विधि उत्तम सिद्ध हुई। इस विधि के विषय में मनोवैज्ञानिक काल्पिन ने कहा है, “ये दोनों विधियाँ (आशिक और पूर्ण) एक साथ चलाकर विषय सुगमता से कंठस्थ किया जा सकता है।”

5. क्रमिक तथा समय विभाजन विधि:
इस पद्धति के अनुसार किसी वस्तु को लगातार एक क्रम में याद करने का प्रावधान है। इसमें मानसिक थकान के कारण विश्राम के लिये समय का विभाजन किया जाता है। ऐसा करने से मस्तिष्क की शक्ति शिथिल नहीं होती। प्रयोगों द्वारा यह देखा गया है कि वस्तु याद करते समय यदि विश्राम किया जाये और उस विश्राम के समय में अन्य कोई काम कर लिया जाये तो भी मस्तिष्क की शक्ति नहीं घटती। इस विधि की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें मस्तिष्क तो शिथिल होने से बचा ही रहता है। साथ ही मस्किष्क में याद किये विषय के स्मृति चिह्न स्थायी बन जाते हैं। आजकल इस विधि का अधिक उपयोग किया जाता है।

6. निरंतर स्मरण विधि:
यह विधि क्रमिक विधि के एकदम विपरीत है। इस विधि द्वारा स्मरण करने में पूरे के पूरे समय को लगातार एक ही समय में याद किया जाता है। इसमें बीच-बीच में विश्राम नहीं किया जाता। इस प्रकार यह निरंतर चलने वाली विधि है। जब तक पूरा विषय याद नहीं हो जाता इसमें कोई व्यवधन नहीं डाला जाता। यह विधि सामान्य रूप से छोटी विषय सामग्री को याद करने में अधिक उपयोगी सिद्ध होती है।

7. सक्रिय विधि:
इस विधि में स्मरण के समय शारीरिक सक्रियता पर अधिक बल दिया जाता है। बहुधा इस विधि द्वारा जोर-जोर से बोलकर विषय को याद किया जाता है। इस विधि के विषय में एविंग हाउस और उसके अनुयायिों का मत है कि यह विधि स्मरण की उत्तम विधि है। इसमें याद करते समय एक रोचकता बनी रहती है जिसके कारण विषय जल्दी याद हो जाता है। अधिक रोचक बनाने के लिये कभी-कभी इस विधि को लयात्मक भी बनाया जाता है।

8. मनन विधि:
यह विधि सक्रिय-विधि के एकदम विपरीत है। इसमें याद करते समय विषय को मन ही मन में दोहराया जाता है। इसके साथ शरीर और वाणी दोनों इस विधि में शिथिल होते हैं। यदि विधि एक जटिल विधि है और सामान्य रूप से प्रत्येक व्यक्ति इसका उपयोग नहीं कर सकता, किन्तु फिर भी कुछ विशेष विषयों के स्मरण में यह विधि अत्यन्त लाभदायक सिद्ध होती है। अधिकांश गम्भीर विषयों को समझने में यह विधि प्रयोग में लाई जाती है।

9. बौद्धिक विश्लेषण विधि:
जैसा कि इस विधि के नाम से ही स्पष्ट है कि इसमें विषय को प्रयास करके बौद्धिक विश्लेषण के द्वारा याद किया जाता है। इस विधि द्वारा यह याद किया गया विषय अधिक स्थायी रूप से चेतना स्तर पर अंकित हो जाता है। अतः यह विधि स्मरण की उत्तम विधि मानी जाती है।

10. यांत्रिक विधि:
इस विधि द्वारा याद करने वाले विषय को बिना बौद्धिक विश्लेषण किये सीधे रूप में याद किया जाता है। इस प्रकार यह विधि बौद्धिक विश्लेषण विधि के एकदम विपरीत है, इसमें विषय को बिना विचार के बार-बार दोहराकर याद किया जाता है। यह विधि स्मरण विधियों में अच्छी विधि नहीं मानी जाती क्योंकि इस विधि द्वारा याद किये गये विषय के स्मृति चिह्न अधिक समय तक मस्तिष्क में नहीं टिक पाते। इस विधि को बोध रहित विधि भी कहा जाता है। इसे यांत्रिक विधि इसलिये कहते हैं क्योंकि इसमें व्यक्ति एक यंत्र की भांति काम करता है।

इस प्रकार हमने स्मृति को विभिन्न विधियों का विश्लेषणात्मक अध्ययन करके यह पाया कि स्मरण की कौन-सी विधि सर्वोत्तम है और कौन-सी न्यूनतम है यह निर्णय नहीं किया जा सकता क्योंकि स्मरण की समस्त विधियों की अपनी-अपनी विशेषतायें हैं जिसके आधार पर सभी विधियाँ उत्तम हैं किन्तु यह अवश्य कहा जा सकता है कि प्रत्येक विधि का विषय की प्रकृति के आधार पर ही समस्त विधियाँ उत्तम हैं। उदाहरणार्थ-लम्बे विषय के लिये आंशिक विधि तथा छोटे विषय को स्मरण करने के लिए आंशिक और व्यवस्थित, सार्थक एवं लघु विषय-वस्तु के लिये पूर्ण विधि महत्त्वपूर्ण है। इस प्रकार स्मरण विधि की उत्तमता विषय-वस्तु की प्रकृति पर निर्भर करती है। अत: स्मरण स्मृति की विधियाँ उत्तम हैं।

प्रश्न 10.
विस्मरण के व्यवहारवादी या बाधक सिद्धांत की आलोचनात्मक व्याख्या करें।
उत्तर:
बाधक सिद्धांत या जिसे हस्तक्षेप सिद्धांत भी कहा जाता है, विस्मरण का एक प्रमुख सिद्धांत है। इस सिद्धांत में विस्मरण की व्याख्या व्यवहारवादियों के नियमों के अनुकूल की गई है। इसलिए इसे विस्मरण का व्यवहारवादी सिद्धांत (behaviourstic theory) भी कहा जाता है। बाधक सिद्धांत का दावा है कि जब किसी पूर्व सीखी गई अनुक्रिया या विषय अर्थात् मौलिक विषय या पाठ का व्यक्ति प्रत्याह्वान (recall) करता है तो उस समय उन सभी अनुक्रियाओं या विषयों, जिन्हें वह मौलिक विषय के पहले तथा बाद में सीख चुका होता है, से उत्पन्न स्मृति-चिह्न आपस में अन्तःक्रिया (interaction) करते हैं।

इस तरह की अंत:क्रिया के दो परिणाम होते हैं-सरलीकरण (facilitation) तथा बाधा (interference)। विस्मरण इसी बाधक परिणाम की अभिव्यक्ति करता है। इस तरह का बाधक प्रभाव जितना अधिक होता है, विस्मरण की मात्रा भी उतनी ही अधिक होती है। बाधक सिद्धांत की इस व्याख्या से यह स्पष्ट है कि इसमें विस्मरण का कारण मौलिक विषय के बाद सीखे गए विषय या पाठ (अग्रलक्षी अवरोध) दोनों को बतलाया गया है। फलतः बाधक सिद्धांत के दो मुख्य पहलू हैं जो इस प्रकार हैं –

  1. बाधक सिद्धांत-पूर्वलक्षी या पृष्ठोन्मुख अवरोध (Interference theory retroac tive inhibition) और
  2. बाधक सिद्धांत-अग्रलक्षी अंवरोध (Interference theory:proactive inhibition) इन दोनों पहलुओं का वर्णन निम्नांकित है –

बाधक सिद्धांत-पूर्वलक्षी या पृष्ठोन्मुख अवरोध (Interference theory: retro active inhibition):
पृष्ठोन्मुख अवरोध की व्याख्या बाधक सिद्धांत के अनुसार सबसे पहले मैकग्यूश (McGeoch) द्वारा की गई। इन्होंने इसकी व्याख्या करने के लिए एक विशेष प्राक्कल्पना (hyothesis) बनाई जिसे स्वतंत्र प्राक्कल्पना (independence hypothesis) कहा गया। इस प्राक्कल्पना के अनुसार मौलिक विषय के सीखने से उत्पन्न स्मृति-चिह्न तथा अवरोधक विषय से उत्पन्न स्मृति-चिह्न दोनों ही एक साथ स्वतंत्र रूप से बिना एक-दूसरे को प्रभावित किए संचित रहते हैं।

जब व्यक्ति मौलिक पाठ का प्रत्याह्वान करता है तो मौलिक पाठ के स्मृति-चिह्नों एवं अवरोधक पाठ के स्मृति-चिह्नों के बीच एक तरह की प्रतियोगिता उत्पन्न होती है जिसका परिणाम यह होता है कि मौलिक विषय का प्रत्याह्वान कम हो जाता है, यानी उसकी विस्मरण हो जाता है। मैकग्यूश ने यह भी बतलाया है कि जब मौलिक विषय तथा अवरोधक विषय के बीच समानता होती है तो प्रत्याह्वान के समय दोनों विषयों के स्मृति-चिह्नों में प्रतियोगिता अधिक होती है जिससे व्यक्ति मौलिक विषयों या पाठों का प्रत्याह्वान कम कर पाता है और उसका विस्मरण हो जाता है।

चूंकि मैकग्यूश के इस सिद्धांत में विस्मरण की व्याख्या मौलिक पाठ तथा अवरोधक पाठ के स्मृति-चिह्नों के बीच उत्पन्न प्रतियोगिता के आधार पर होती है, इसलिए इसे अनुक्रिया की प्रतियोगिता सिद्धांत (competition of response theory) भी कहा जाता है । इसे स्थानांतरण सिद्धांत (transfer theory) भी कहा जाता है। क्योंकि मैकग्यूश ने यह भी बतलाया है कि इस प्रतियोगिता के कारण एक तरह का नकारात्मक अंतरण (negative transfer) हो जाता है जिससे मौलिक विषय के प्रत्याह्वान में कमी आ जाती है।

मैकग्यूश ने अपने सिद्धांत में यह भी स्पष्ट किया कि मौलिक विषय या पाठ के प्रत्याहह्वान के समय स्मृति-चिह्नों के बीच हुई प्रतियोगिता की अभिव्यक्ति तीन तरह के सूचक (indices) द्वारा होती है-प्रकट अंत:सूची बलप्रवेश (over interlist iotrusion) जिसमें मौलिक पाठ का प्रत्याह्वान करते समय अवरोधक पाठ (interfering task), स्मृति-चिह्न एक तरह से बलप्रवेश (intrusion) कहते हैं तथा प्रकट अंतरासूची बलप्रवेश (over intraclist intrusion) जिसमें मौलिक पाठ या सूची का प्रत्याह्वान करते समय जिस पद का या एकांश का प्रत्याह्वान करना चाहिए था, उसका प्रत्याहह्वान न करके उसकी जगह व्यक्ति एक-दूसरे पद का प्रत्याह्वान करता है।

अप्रकट बलप्रवेश (covert intrusion) में मौलिक विषय या पाठ का प्रत्याह्वान करते समय अवरोधक पाठ का पद या एकांश व्यक्ति के मन में अपने-आप आ जाता है, फिर उसे गलत समझकर वह प्रत्याह्वान न करके चुप रह जाता है। इन तीनों तरह के बलप्रवेश में प्रथम दो तरह के बलप्रदेश से विस्मरण अधिक होता है।

मनोवैज्ञानिकों द्वारा मैकम्यूश के इस सिद्धांत की कुछ आलोचनाएं निम्नांकित बिन्दुओं पर की गई हैं –

1. मैकग्यूश की इस अनुक्रिया की प्रतियोगिता सिद्धांत की आलोचना मेल्टन एवं इर्विन (Melton & Irvin) द्वारा की गई है। इन लोगों ने अपने प्रयोगात्मक अध्ययनों के आधार पर यह बतलाया है कि विस्मरण का कारण मात्र प्रतियोगिता कारक (competition factor) नहीं होता है, बल्कि अन-अधिगम कारक (unlearning factor) भी होता है जिसकी चर्चा तक इस सिद्धांत में नहीं की गई है।

2. मैकग्यूश के इस सिद्धांत के अनुसार अगर मौलिक विषय या पाठ की लम्बाई अधिक है तो छोटा विषय या पाठ की तुलना में उसका विस्मरण अधिक होगा, क्योंकि बड़ा पाठ या सूची होने पर प्रतियोगी पदों या एकांशों की संख्या अधिक हो जाती है जिससे प्रतियोगिता बढ़ जाती है और उसके प्रत्याह्वान में कमी आ जाती है।

3. बाधक सिद्धांत-अग्रलक्षी प्रावरोध या अवरोध (Interference theory : proac tive inhibition):
बाधक सिद्धांत का दूसरा महत्त्वपूर्ण पहलू अग्रलक्षी अवरोध की वख्या करना है। जब मौलिक विषय या सूची के प्रत्याहवान में कमी वैसे विषय या सूची के सीखने से उत्पन्न स्मृति-चिह्नों द्वारा की गई प्रतियोगिता के कारण होती है जिसे व्यक्ति मौलिक विषय या पाठ के पहले सीख चुका होता है तो इसे अग्रलक्षी अवरोध कहा जाता है। ग्रीनवर्ग तथा अंडरवुड (Greenberg & Underwood) ने एक प्रयोग किया 10-10 विषय की चार सूचियाँ तैयार करके प्रयोज्य को एक-एक करके सीखने के लिए दी और एक-एक करके 48-48 घंटे के बाद उसका प्रत्याह्वान 69% किया जबकि अंतिम सूची का प्रत्याह्वान मात्र 25% किया।

इसका मतलब यह हुआ कि पहली सूची का विस्मरण 31% हुआ जबकि दूसरी सूची का विस्मरण 75% हुआ। प्रयोगकर्ताओं के अनुसार चौथी सूची का विस्मरण इसलिए अधिक हुआ, क्योंकि इसके पहले प्रयोज्य तीन और सूचियों को सीख चुका था। अंडरवुड तथा पोस्टमैन (Underwood & Postmen), स्टार्क तथा फ्रेजर ने भी अपने-अपने प्रयोगों के आधार पर बाधक सिद्धांत द्वारा अग्रलक्षी अवरोध की उक्त व्याख्या का समर्थन किया है।

कुछ मनोवैज्ञानिकों का मत है कि बाधक सिद्धांत द्वारा अग्रलक्षी अवरोध (Proactive inhibition) की प्रदत्त व्याख्या द्वारा एक महत्त्वपूर्ण तथ्य की व्याख्या नहीं होती है। सामान्यतः अवरोधक पाठ विराम अभ्यास (distributed practice) से सीखने पर अविराम अभ्यास (massed practice) से सीखने की अपेक्षा अधिक मजबूत होता है। फलत: ऐसी हालत में अग्रलक्ष्मी अवरोध की मात्रा विराम अभ्यास में अविराम अभ्यास की अपेक्षा अधिक होनी चाहिए। अंडरवुड एवं एक्ट्रैण्ड (Underwood & Ekstrand) ने अपने प्रयोग में इसके विरुद्ध तथ्य पाया है।

दूसरे शब्दों में, इन्होंने प्रयोगात्मक अध्ययन में पाया कि जब अवरोधक सूची को विराम अभ्यास देकर सीखा गया था तो अग्रलक्षी अवरोध की मात्रा कम थी, परंतु जब उसे अविराम अभ्यास देकर सीखा गया तो अग्रलक्षी अवरोध की मात्रा अधिक थी। निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि बाधक सिद्धांत में विस्मरण के दोनों पहलुओं अर्थात् पृष्ठोन्मुख अवरोध तथा अग्रलक्षी अवरोध की जो व्याख्या की गई है वह अपने आप में एक महत्त्वपूर्ण व्याख्या है। यद्यपि कुछ मनोवैज्ञानिक इस सिद्धांत से कुछ बिन्दुओं पर असंतुष्ट अवश्य रहे हैं, फिर भी उसी इस सिद्धांत का कोई सर्वमान्य एवं संगत विकल्प नहीं है।

प्रश्न 11.
विस्मरण के अनुप्रयोग सिद्धांत या ह्रास नियम या एबिंगहॉस नियम की आलोचनात्मक व्याख्या करें।
उत्तर:
विस्मरण का यह सिद्धांत सबसे पहला है। जिसका प्रतिपादन जर्मन मनोवैज्ञानिक एबिंगहाँस (Ebbinghaus) द्वारा 1885 में किया गया। इस सिद्धांत का दावा है कि जब व्यक्ति किसी पाठ या विषय को सीखता है तो उससे उसके मस्तिष्क में कुछ दैहिक परिवर्तन (physiological changes) होते हैं जिन्हें ‘स्मृति चिह्न’ (memory traces) कहा जाता है। सीखने के बाद जैसे-जैसे समय बीतता जाता है, तो इन स्मृति-चिह्नों का मूल कारण बीते हुए समय में मौलिक पाठ या याद किए गए पाठ (विषय) का अनुप्रयोग (disuse) है अर्थात् उसका नहीं दोहराना है। अनुप्रयोग के कारण स्वभावतः स्मृति-चिह्न क्षीण हो जाते हैं जिसके कारण सीखे गए पाठ का विस्मरण हो जाता है।

एबिंगहॉस के इस सिद्धांत की उक्त व्याख्या से यह स्पष्ट है कि इसमें विस्मरण के मुख्य तीन कारण बतलाए गए हैं –

  1. सीखने के बाद समय का बीतने जाना। समय-अंतराल जितना ही अधिक होगा विस्मरण की मात्रा उतनी ही अधिक होगी।
  2. बीते हुए समय में मौलिक पाठ या विषय को नहीं दोहराना अर्थात् उसका अनुप्रयोग (disuse) करना।
  3. समय बीतने और उसमें विषय या पाठ का अनुप्रयोग होने से स्मृति-चिह्नों का ह्रास होना।

यद्यपि यह सिद्धांत अपने समय का एक काफी महत्त्वपूर्ण रहा है, किन्तु आज इसकी मान्यता समाप्त हो गई है। इसकी व्याख्या को पौराणिक व्याख्या माना जाता है। इस सिद्धांत की आलोचना भी काफी हो गई है। इसकी व्याख्या को पौराणिक व्याख्या माना जाता है। इस सिद्धांत की आलोचना भी काफी हो गई है। इसकी प्रमुख आलोचनाओं में निम्नांकित प्रमुख हैं –

1. कई प्रयोगों से यह स्पष्ट हो गया है कि विस्मरण का कारण मात्र समय का बीतना नहीं होता है बल्कि जब व्यक्ति उस समय-अंतराल में नई-नई अनुभूतियों को सीखता है तो इससे पहले सीखे गए पाठ या विषय के प्रत्याह्वान (recall) में बाधा पहुँचती है जिससे भी विस्मरण होता है। मुलर एवं पिल्जेकर (Muller & Pilzecker) ने तथा जेनकिन्स एवं डैलेनबैक (Jankins & Dallenback) ने भी अपने-अपने प्रयोगों से इस तथ्य की संतुष्टि की है कि विस्मरण का कारण समय का बीतना नहीं होता है बल्कि उस समय अंतराल में कुछ नई अनुभूतियों को प्राप्त करना होता है। दूसरे शब्दों में, विस्मरण का कारण पृष्ठोन्मुख अवरोध (retroactive inhibition) होता है।

2. विलोपन (extinction) से मिले तथ्य भी हास या अनुप्रयोग सिद्धांत के प्रतिकूल माने जाते हैं। विलोपन की प्रक्रिया में व्यक्ति के सामने उद्दीपन (stimulus) दिया जाता है और व्यक्ति उस उद्दीपन के प्रति सही अनुक्रिया भी करता है, परंतु अनुक्रिया देने के बाद मात्र पुनर्बलन (reinforcement) नहीं दिया जाता है। इस तरह से इस अध्ययन में उद्दीपन-अनुक्रिया मजबूत होने के बजाय कमजोर होती चली जाती है।

3. स्वतः पुनर्लाभ (spontaneous recovery) तथा संस्मरण (reminiscence) की घटना से भी अनुप्रयोग सिद्धांत की आलोचना होती है। ये दोनों मनोवैज्ञानिक घटनाएँ कुछ ऐसी हैं जिनमें समय बीतने के साथ ही मौलिक विषय या पाठ में हास होने के बदले वृद्धि होती है, हालांकि इस समय-अंतराल में व्यक्ति उस सीखे गए विषय को कभी दोहराता नहीं है।

ऐसी परिस्थिति में सिद्धांत की व्याख्या के अनुसार सीखे गए विषय या पाठ का विस्मरण होना चाहिए था कि उसकी धारणा में वृद्धि होनी चाहिए थी। उपर्युक्त आलोचनाओं को ध्यान में रखते हुए हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि विस्मरण का कारण समय का बीतना नहीं होता। अत: अनुप्रयोग सिद्धांत को विस्मरण का एक वैज्ञानिक सिद्धांत न मानकर एक अनुपयुक्त सिद्धांत कहना अधिक उचित होगा।

प्रश्न 12.
याद करने से संबंधित विधियों तथा नियमों के महत्त्व के अतिरिक्त कर्ता में क्या-क्या अतिरिक्त विशेषताएँ होनी चाहिए?
उत्तर:
स्मृति सहायक संकेत तथा आधुनिक बोधगम्य उपागम के परामर्शों का शत-प्रतिशत पालन करने पर भी कुछ घात अच्छे अंक नहीं प्राप्त कर पाते हैं। सच तो यह है कि ऐसी कोई भी विधि या नियम या शैली या पद्धति नहीं है जो याद करने से संबंधित सारी समस्याओं का समाधान बनकर रातोंरात स्मृति में सुधार ला दे। इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि अपनायी जाने वाली विधियाँ निरर्थक एवं बेकार हैं। अच्छी स्मृति के लिए सभी प्रचलित विधियों के अलावे निम्नांकित कारकों पर भी ध्यान देना आवश्यक है –

  1. शारीरिक स्वास्थ्य
  2. सीखने के प्रति रुचि एवं ललक
  3. सीखने के लिए प्रेरक दृष्टांत
  4. कलम, कागज, पुस्तक, प्रकाश, मेज परिवेश आदि का अनुकूल प्रबंधन

अतः स्मृति के विकास के लिए, सिद्धांत साधन के अलावा सुधार सम्बन्धी युक्तियों को समझने तथा साधनों के संचालन का ज्ञान भी आवश्यक है। आज तकनीकी ज्ञान तो सभी के लिए अनिवार्य बनता जा रहा है।

प्रश्न 13.
विस्मरण वक्र पर नोट लिखें।
उत्तर:
विस्मरण के संबंध में किये गये प्रयोग से यह अनुमान लगाया गया कि शिक्षण के ‘बाद पहले 20 मिनट की अवधि में ही 47% सीखे गए निरर्थक नदों का विस्मरण हो गया, 24 घंटों, अर्थात् 1 दिन के अंतर पर 66%, 2 दिनों में 72%,3 दिनों में 79% विस्मरण हुआ। इससे स्पष्ट होता है कि सीखने के बाद धारण-मध्यांतर काल के प्रारम्भ में विस्मरण बड़ी तेजी के साथ हुआ और धीरे-धीरे जैसे-जैसे समय अंतराल की अवधि बढ़ती गई, विस्मरण की गति भी धीमी होती गई। ऊपर के आँकड़ों से यह स्पष्ट हो जाता है कि सीखने के तीसरे और 31 वें दिन के बीच भूलने की मात्रा 79% – 72% = केवल 7% हुई, जबकि पहले 2 दिनों के अंदर ही वे सीखे गए पदों में 72% पद भूल गए। एबिंगहॉस द्वारा निर्मित उपर्युक्त वक्र की निम्नलिखित कुछ प्रमुख विशेषताएँ हैं –

1. उपर्युक्त विस्मरण:
वक्र को देखने से यह स्पष्ट पता चलता है कि विस्मरण की गति या दर सदा एक-सी नहीं होती। अर्थात् भूलने की गति एक नियमित या स्थिर गत से नहीं बढ़ती। सीखने की क्रिया के तत्काल बाद भूलने की क्रिया बहुत अधिक तीव्र या तेज होती है और जैसे-जैसे समय बीतता जाता है, सीखे गए विषय के शेष अंश अधिक-से-अधिक दृढ़ या स्थायी (fixed) होते जाते हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि व्यक्ति सीखे हुए विषय में से अधिकांश बातों को सीखने के तुरंत बाद ही भूलता है तथा बाद में इसकी (भूलने की) गति धीमी पड़ जाती है, जिससे भूलने की मात्रा अपेक्षाकृत कम होती है।

2. विस्मरण वक्र (forfetting curve) से यह भी स्पष्ट होता है कि भूलने का एक प्रधान कारण समय व्यवधान या अन्तराल की अवधि है। एबिंगहॉस के अनुसार जो अनुभव जितना पुराना होता है, उसकी स्मृति भी उतनी ही क्षीण होती जाती है। इसका अर्थ यह है कि सीखने की क्रिया समाप्त होने के तुरंत बाद उनका अधिकांश विस्मृत हो जाता है।

फलस्वरूप, जैसे-जैसे समय बीतता जाता है, तत्काल भूले हुए अंश उपयोग में नहीं रहते, क्योंकि व्यक्ति न तो उन अंशों को बाद में दुहरा पाता है और न उन्हें मानसिक रूप से पुनर्जीवित ही कर पाता है। फलतः उन अनुभवों का उपयोग नहीं होता। अतः सीखे गए अनुभवों का अनुप्रयोग ही भूलने का कारण है। इस दृष्टिकोण से भूलना एक निश्चेष्ट या निष्क्रिय प्रक्रिया है। अस्तु, सीखना जितना भी पुराना होता जाता है, उसकी स्मृति भी उतनी ही कमजोर पड़ती जाती है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
विस्मरण के स्वरूप को समझने का सर्वप्रथम क्रमिक प्रयास किसने किया:
(a) एबिंगहास
(b) गिब्सन
(c) बार्टलेट
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) एबिंगहास

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