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 Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions गद्य Chapter 3 आँखों देखा गदर

Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions गद्य Chapter 3 आँखों देखा गदर (विष्णुभट्ट गोडसे वरसईकर)

आँखों देखा गदर पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
अंग्रेजों को किले को समझने में कितने दिन लगे? फिर उन्होंने क्या किया?
उत्तर-
झाँसी का किला बड़ा मजबूत और सुरिक्षत था। बाहरी लोगों के लिए उस पर कब्जा जमाना मुश्किल था। अंग्रेजों ने जब उस पर चढ़ाई की तो वे मोर्चा बाँधने में पहले दो दिन विफल रहे और तीसरे दिन वे मौके समझ गये। जब अंग्रेजों को झाँसी के किले पर चढ़ाई हेतु मौके समझ आ गये तब उन्होंने रात होने पर सभी ठिकाने साधकर साधारण मोर्चे बाँधे और चार घड़ी रात रहते ही किले के पश्चिमी बाजू पर गरनाली तोपों से वार करने लगे।

प्रश्न 2.
लक्ष्मीबाई को पहली बार निराशा कब हुई?
उत्तर-
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का एक अद्भुत वीरांगना थी। वे बड़े साहस और धैर्यपूर्वक किले पर कब्जा जमाने आये अंग्रेजों के मोर्चों को विफल कर रही थी। लेकिन जब उन्होंने देखा कि अंग्रेज रात में ही मोर्चे बाँधकर शहर पर गरनाली तोपों से गोले बरसाने शुरू : कर दिये है, तब उन्हें पहले-पहल निराशा हुई।

प्रश्न 3.
शहर में गोले पड़ने से आम जनता को क्या-क्या कष्ट होने लगें?
उत्तर-
जब अंग्रेजों की ओर से झाँसी शहर में गोले पड़ने लगे, तब वहाँ की जनता को भयंकर परेशानियाँ हाने लगी। गोला जहाँ भी गिरता, वहाँ सौ-पचास आदमियों को घायल कर देता और दस पाँच को तो मौत के मुंह में सुला ही देता। गोला यदि घर पर गिरता तो वह घर जलकर राख हो जाता तथा उसके धक्के से आस-पास के छोटे-छोटे घर भी गिर जाते। गोलों . के गिरने से जहाँ-तहाँ आग लग जाती थी। इस प्रकार सर्वत्र त्राहि-त्राहि मच गई। कोई कहीं भी सुरक्षित महसूस नहीं कर रहा था।

प्रश्न 4.
सातवें दिन सूर्यास्त के बाद क्या हुआ? रात के समय तो क्यों चालू की गई?
उत्तर-
लड़ाई के दौरान सातवें दिन सूर्यास्त के बाद झाँसी की तरफ से पश्चिमी मोर्चे की तोप बंद हो गई, क्योंकि शत्रुओं के बार के आगे वहाँ कोई गोलंदाज टिक नहीं पाया। इस प्रकार शत्रुओं द्वारा जब झाँसी के किले का वह मोर्चा भी तोड़ डाला गया तो उसके प्रतिकार और अपने बचाव में रातों-रात कुशल कारीगरों द्वारा बूर्ज पर मोर्चा बाँधकर तोपें चालू कर दी गई, ताकि असावधान अंग्रेज सैनिकों को मार भगाया जा सके।

प्रश्न 5.
सिपाहियों को जब लगा कि झाँसी अंग्रेजों के हाथ लग जाएगी तो उन्होंने क्या किया?
उत्तर-
हिन्दुस्तानी सिपाहियों ने यह जानते-समझते हुए भी कि अब हमारी हार होने वाली है और झाँसी अंग्रेजों को हाथ लग जाएगी, अपनी हिम्मत न हारी। वे सच्चे शूर-वीर की तरह
और भी दूने-चौगुने उत्साह एवं वेग से उनका मुकाबला करने को तैयार हुए।

प्रश्न 6.
बाई साहब ने सरदारों से क्या कहा? बाई साहब के कहने का सरदारों पर क्या असर पड़ा?
उत्तर-
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी पर आये संकट और अपनी हार देख सब सरदारों को इकट्ठा कर उनका मनोबल बढ़ाया। उन्होने स्पष्ट कहा कि अब तक झाँसी अपने ही बल पर लड़ी है और आगे भी लड़ेगी। इसे पेशवा अथवा किसी दूसरे के बल की कोई दरकार नहीं। बाई साहब के ऐसा कहने का सभी सरदारों पर अनुकूल असर पड़ा। वे सभी ओज एवं तेज से भर गये और मोर्चे बंदी के लिए कठिनतम परिश्रम करने लगे।

प्रश्न 7.
दसवें दिन की लड़ाई का क्या महत्त्व था? दसवें दिन की लड़ाई का वर्णन संक्षेप में करें।
उत्तर-
झाँसी के किलों को जीतने के लिए अंग्रेजों और झांसी के बीच जारी युद्ध का दसवाँ दिन बेहद महत्त्वपूर्ण था। इस युद्ध पर झाँसी का भविष्य निर्धारित होने वाला था। क्योंकि, इधर झाँसी की मदद हेतु तात्या टोपे पंद्रह हजार फौजें लेकर पहुंच चुके थे और उधर कप्तान साहब भी अंग्रजी फौजों के साथ आ धमका था। इस प्रकार उस दिन की लड़ाई एक तरह से निर्णायक लड़ाई समझी जा रही थी।

उस दिन बड़ा भीषण युद्ध हुआ। दोनों ओर के सिपाही जी-जान लगाकर लड़ रहे थे। . आमने-सामने की लड़ाई हो रही थी। बिगुल, नरसिंघों, तोपों इत्यादि से सारा वातावरण थर्रा रहा था। चारों तरफ मार-काट और चीख-पुकार मची थी। किन्तु इस लड़ाई में धीरे-धीरे तात्यां-टोपे एवं एवं झाँसी की रानी पिछड़ने लगी और अंग्रेज फौज भारी पड़ी।

प्रश्न 8.
भेदिए ने लक्ष्मीबाई को आकर क्या खबर दी? लक्ष्मीबाई पर इस खबर का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के नेतृत्व में झाँसी अंग्रेजों से बड़ी बहादुरी से लगातार पिछले ग्यारह दिनों से लड़ रही थी। उस रात जब बाई साबह रात को रोजाना की तरह ही शहर के और किले पर गश्त लगाकर जब बंदोबस्त कर रही थी तो एक भेदिए ने आकर यह खबर दी कि अंग्रेजी फौजी को इतनी मशक्कत के बाद भी अपनी जय मिलती नहीं दिखाई दे रही है और उनका गोला-बारूद भी अब समाप्तप्रायः हो गया। इसलिए कल पहर भर लड़ने के बाद उनका लश्कर. उठ जाएगा।’

भेदिए की उक्त खबर सुनकर बाई साहब को बहुत राहत मिली और असीम आनंद मिला। उनका चेहरा खुशी से खिल उठा तथा उनमें नई शक्ति और साहस का संचार हुआ।

प्रश्न 9.
विलायती बहादुर कौन थे? पाठ में वर्णित उनकी भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर-
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के यहाँ जो पंद्रह सौ मुसलमान बहुत दिनों से नौकर थे, उन्हें ही विलायती बहादर कहा गया है। अंग्रेजों के साथ युद्ध में उनकी भूमिका बड़ी महत्त्वपूर्ण रही थी। वे सब के सब विलायती बहादुर सचमुच बड़े बहादुर थे। जब-जब झाँसी पर विपत्ति आयी, इन विलायती बहादुरों ने अपनी जान की बाजी लगाई और लक्ष्मीबाई को तरफ से ब्रिटिश फौजों को छुट्टी का दूध याद कराया। शत्रुओं से घिरी झाँसी से लक्ष्मीबाई को बाहर निकालने में उनकी भूमिका सर्वथा सराहनीय रही।

प्रश्न 10.
लम्मीबाई को वृद्ध सरदार ने किन-किन अवसरों पर सलाह दी, इसके क्या परिणाम हुए?
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ ‘आँखें देखी गदर’ में वृद्ध सरदार दो अवसरों पर लक्ष्मीबाई को सलाह देता है और दोनों ही बार उसके अच्छे परिणाम निकले हैं। जब पचहत्तर वर्ष का वह वृद्ध सरदार देखता है कि गोरे लोग विलायती बहादुरों की मार से घबराकर भाग गये हैं तथा छुप-छुपकर वार करने लगे है और बाई साहब बढ़ती ही जा रही है तो उसने समझाया कि इस समय आगे जाकर गोलियों का शिकार होना बेकार है। सैकड़ों गोरे अंदर घुस गये है और इमारतों की आड़ से गोलियाँ चला रहे है।

इसलिए इस समय मुफ्त में जान गँवाने से अच्छा है कि आप किले में जाकर दरवाजा बंद करके पहले सुरक्षित हो जाएँ और फिर कोई उपाय सोचे। बाई साहब उसकी बात मानकर वापस आ गई। दूसरी बार जब बाई साहब अंग्रेजी फौजों के वार से झाँसी की बर्बादी और लोगों की त्रासदी को देखते हुए जब अत्यंत खिन्न एवं उदास मन से लोगों की महल के बाहर चले जाने और स्वयं को महल में गोला-बारूद भरकर आग लगा कर जल-मरने की बात कहती हैं तो वही अनुभवी वृद्ध सरदार बड़ी समयोचित सलाह सुझाता है।

वह स्पष्ट समझाता है कि महारानी आपको इस तरह निराश नहीं होना चाहिए। आत्महत्या करना बड़ा पाप है। इससे तो बहुत अच्छा है कि आदमी युद्ध करता हुआ स्वर्ग जीतने का उद्यम करे। इसलिए आपको इस समय धैर्य एवं गंभीरतापूर्वक इस कठिन स्थिति से उबरने का रास्ता निकालना चाहिए। उस वृद्ध सरदार के प्रबोधन क बाद रानी लक्ष्मीबाई को बहुत कुछ धीरज बँधा और वे स्वस्थ हुई। उनकी निराशा दूर हुई तथा उनमें तथा उनमें आशा एवं ओज का संचार हुआ।

प्रश्न 11.
शहर की दीवार पर चढ़ने के लिए अंग्रेजों ने कौन-सी युक्ति सोची?।
उत्तर-
झाँसी के शहर की दीवार पर चढ़ने के लिए अंग्रेजों ने यह उपाय किया कि हजारों मजदूरों के सिर पर घास के हजारों गट्ठर रखे दीवार के पास चले आये। वहाँ मजदूरों ने घास के गट्ठरों को एक पर एक रखकर उनकी सीढ़ि बना दी। इस प्रकार घास के गट्ठरों की बनी सीढ़ी के सहारे अंग्रेज शहर की दीवार पर चढ़कर उस पार से इस पार चले आये।

प्रश्न 12.
गोरे लोगा झाँसी में घुसकर क्या करने लगे? अपने बचाने के लिए लोगों ने क्या किया?
उत्तर-
गोरे लोग झाँसी में घुसते ही कहर ढाने लगे। वे बच्चे बूढ़े और जवान किसी को भी न बख्शते थे। जो भी सामने पड़ता उसे गोली से उड़ा देते या तलवार के वार से काट देते। इसके अतिरिक्त वे लूट-पाट भी करने लगे।

गोरे सिपाहियों के इस आतंक से सबके प्राण काँपने लगे। अतः जान बचाने के लिए जिसे जो उपाय सूझता, वही करता। सभी लोग इधर-उधर भागने लगे। कोई इधर गली में भागा तो कोई घर के तहखाने में दुबका तो कोई खेतो में जा छिपा।

प्रश्न 13.
“मैं महल में गोला-बारूद भर कर इसी में आग लगाकर मर जाऊँगी, लोग रात होते ही किले को छोड़कर चल जाएँ और अपने प्रणों की रक्षा के लिए उपाय करें।” लक्ष्मीबाई ने ऐसा क्यों कहा? इस कथन से उनके व्यक्तित्व का कौन-सा पहलू उभरता है? अपने शब्दों मे लिखें।।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियों को विद्वान लेखक विष्णुभट गोडसे बरसईकर ने लिखा है कि-जब लक्ष्मीबाई ने देखा कि गोरे सिपाही लोग शहर में उपद्रव मचा रहे हैं और निरीहप्रजा बैमौत मारी जा रही है, उसका सर्वस्व बड़ी निर्ममता से लूटा जा रहा है और वह इस दर्द और दुःख से बेहाल और असहाय बनी है तो उनके मन में करुण और दुख भर गया। उन्हें ऐसा लगा कि प्रजा की इस दारुण दशा का जिम्मेदार मै ही हूँ और शोक की इसी अतिशयता में उन्होंने अत्यंत निराश होकर कहा कि लोग रात होते ही किले से बाहर चल जाएँ और अपनी जान बचाएँ। मै इस महल में गोला-बारूद भरकर आग लगा दूंगी और उसी में जलकर भस्म हो जाऊँगी।

उपर्युक्त कथन से रानी लक्ष्मीबाई के चरित्र की स्त्री सुलभ कोमलता, परदुःखकातरता और करुणार्द्रता आदि विशेषताएँ प्रकट होती हैं। साथ ही साथ इससे उनके व्यक्तित्व का यह वीरता से भरा महत्त्वपूर्ण पक्ष भी ध्वनित होता है कि वे शत्रुओं के हाथ पड़ने की अपेक्षा स्वयं मरण को वरण करना अच्छा समझती थी।

प्रश्न 14.
“यहाँ आत्महत्या करके पाप संचय करने की अपेक्षा युद्ध में स्वर्ग जीतना है।” वृद्ध सरदार के इस कथन का लक्ष्मीबाई पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ में लेखक ने देखा कि जब झाँसी में अंग्रेजी द्वारा प्रजा का सर्वस्व बड़ी निर्ममता से लूटा जा रहा था, तब बाई ने महल में गोला-बारुद भरकर आग लगाकर आत्म हत्या की बात कही तो वृद्ध सरदार ने यह कहा कि आत्म हत्या करके पाप संचय करने की अपेक्षा युद्ध में स्वर्ग जीतना उत्तम है, रानी लक्ष्मीबाई के मन में व्याप्त निराशा और दुःख की काली घटा छंट जाता है और उनमें पुनः आशा, ओज एवं वीरत्व का प्रकाश भर जाता है।

प्रश्न 15.
“मै आध सेर चावल की हकदार, मेरी ऐसी रांडमुड़ को विधवा धर्म छोड़कर यह सब उद्योग करने की कुछ जरूरत नहीं थी, परन्तु धर्म की रक्षा के लिए जब इस कर्म में प्रवृत्त हुई हूँ तो उसके लिए ऐश्वर्य, सुख, मान, प्राण सबकी आशा छोड़ बैठी हूँ।” लक्ष्मीबाई के इस कथन की सप्रसंग व्याख्या करें।
उत्तर-
सप्रसंग व्याख्या प्रस्तुत सारगर्भित व्याख्येय गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘दिगंत, भाग-1’ में संकलित ‘आँखों देखा गदर’ पाठ से अवतरित है, जिसके मूल मराठी लेखक पं. विष्णुभट गोडसे वरसईकर तथा हिन्दी अनुवाद अमृतलाल नागर है। जब रानी लक्ष्मीबाई अंग्रजों के सैन्य-व्यूह को वीरतापूर्वक भेदती हुई झाँसी के छोड़ चली तो लेखक भी वहाँ से अन्य लोगों के साथ निकल चले। रास्ते में कालपी से करीब छ: कोस पहले एक जगह उन्होने रात्रि-विश्राम किया। वहीं शोर में एकाएक हल्ला सुन उनकी नींद टूट गई। पहले तो वे बहुत घबराये पर पीछे यह जानकर निश्चित हुए कि ये फौजी दस्ते अंग्रेजी के नहीं, अपितु लक्ष्मीबाई के हैं। बाद में दोनों की पहचान होती है और रानी लक्ष्मीबाई बड़ी निराश मन-स्थिति में यह उद्गार प्रकट करती हैं।

झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई बड़ी वीरतापूर्वक कई दिनों से अंग्रेजों के साथ लड़ाई करती चली आ रही थीं। पर, दुर्भाग्वया दिन पर दिन विजयश्री उनसे दूर ही होती जा रही थी, अत: उनके अंदर निराशा और अवसाद घर कर चुके थे। उसी मनःस्थिति में वे यह हृदयोद्गार व्यक्त करती है कि मुझे किसी भोग-विलास की कोई इच्छा नहीं। मै तो सिर्फ आध सेर चावल की हकदार थी और वह मुझे आसानी से मिल जाता, इसलिए मुझे अपने विधवा-धर्म को परित्याग कर युद्ध-कर्म में प्रवृत्त होने की कोई जरूरत न थी।

किन्तु मै निश्चिंतता का जीवन छोड़ प्रजा एवं धर्म की रक्षा के विचार से युद्ध में कूद पड़ी हूँ और अब, जबकि मैं युद्ध छेड़ चुकी हूँ तो मुझे अपने लिए, सुख ऐश्वर्य मान या प्राण का कोई महत्त्व नहीं। मुझे इनमें से किसी की परवाह नहीं, मैं सबकी आशा छोड़ चुकी हूँ। रानी लक्ष्मीबाई के उपर्युक्त कथन में उनके हृदय की निराशा, प्रजावत्सलता एवं धर्म परायणता का भाव सहज रूप तें अभिव्यक्त है। किन्तु इसका अर्थ यह भी नहीं कि उन्हें अपने किये पर कुछ अफसोस था, बल्कि यह तो युद्ध के दौरान विपक्षी की बढ़ती शक्ति और अपनी पराजय स्थिति से उत्पन्न वीरांगना की सहज, अकृत्रिम प्रतिक्रिया है।

प्रश्न 16.
“आप विद्वान हैं। अत: मेरे लिए पानी न खींचे।” लक्ष्मीबाई के इस कथन से उनके व्यक्तित्व का कौन-सा पहलू उभरता है?
उत्तर-
जब युद्ध करते-करते पूरी तरह थक चुकी झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई को प्यास से परेशान देख लेकख पं. विष्णुट वरसईकर ने मटके से पानी निकालकर उन्हें पानी पिलाना चाहा तभी लक्ष्मीबाई ने कहा कि आप विद्वान व्यक्ति है, इसलिए मेरे लिए पानी न खीचे। मै खुद पी लेती हूँ लक्ष्मीबाई के इस कथन से यह पता चलता है कि उनके दिल में गुणियों-विद्वानों के लिए बड़ा आदर मान-सम्मान का भाव था। वे गुणी जनों से काम कराना अधर्म समझती थीं।

प्रश्न 17.
कालपी की लड़ाई का वर्णन लेखक ने किस तरह किया है? कालपी के युद्ध के तीसरे दिन सिपाहियों ने क्या किया?
उत्तर-
‘आँखों देख गदर’ पाठ के अंतर्गत लेखक ने कालपी की लड़ाई का बड़ा यथार्थपरक वर्णन किया है। कालपी में लगातार तीन दिन लड़ाई चली 1 पेशवा की फौज पहले ही बेकार हो चुकी थी। दिल्ली, लखनऊ, झाँसी वगैरह में भी अंग्रेजी की फतह हो चुकी थी, जिससे गदरवाले निराश हो चुके थे। बहुत-से पुराने अनुभवी सैनिक डर से पलटने छोड़कर चले गये थे। उनके स्थान पर नये लोग भर्ती किये गये। इन नये लोगों में सिपाहियों के साथ चोर, लुच्चे, लुटेरे भी शामिल थे। जिनका लक्ष्य लड़ाई न होकर लूट-पाट करना था।

कालपी में युद्ध के तीसरे दिन जब सिपाहियों को लगा कि अंग्रेजी फौजों से पार पाना मुश्किल है और जीत उन्हीं की होगी, तो उनमें से सैकड़ों लोग युद्ध का मैदान छोड़ शहर में घुसकर दंगा, लूट और स्त्रियों की दुर्दशा करने लगे। इतने में जब अंग्रेजों फौज भी आ गई तो वे सिपाही वहा से भाग चले।

प्रश्न 18.
लक्ष्मीबाई की मृत्यु किस तरह हुई? उनकी वीरता का वर्णन अपने शब्दों में करें।
उत्तर-
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई एक अदभूत और अप्रतिम वीरांगना थी। यदि उन्हें शक्ति एवं साहस की देवी दुर्गा का अवतार कहा जाए, तो कदाचित अनुचित न होगा। झाँसी पर संकट का बादल मंडराया देख साहस की पुतली-सी स्वाभिमानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के सामने घुटने टेकने की बजाय उनसे लोहा लेने के उपाय में लग गई। वे बड़ी कठिन परिश्रम करतीं, रात-रात भर जागकर रणनीति बनातीं और युद्ध के समय स्वयं दौड़-दौड़ कर सैनिकों को मनोबल और उत्साहवर्द्धन करती थीं। फिर भी, जब कालचक्र विपरीत रहा और झाँसी के दुर्ग में अंग्रेज प्रवेश कर गये तो उन्होंने न तो हिम्मत हारी और न ही आत्मसमर्पण किया, बल्कि एक वीर क्षत्राणी की भाँति अपने बहादुर जवानों को साथ लिये शत्रु-सेना को छिन्न-भिन्न करती हुई रणनीति के तहत कालपी पहुँची।

फिर जब मुरार पर अंग्रेजों का हमला हुआ तो तात्या टोपे और राव साहब कि साथ लक्ष्मीबाई ने भी वहाँ भीषण युद्ध किया। मुरार के भीषण संग्राम में ही उन्हें गोली लगी। फिर भी वीरता की प्रतिमूर्ति लक्ष्मीबाई आगे बढ़-बढ़ कर दुश्मनों का सफाया करती रहीं। इसी बीच उनकी जाँघ पर तलवार का करारा प्रहार हुआ और वे घोड़े से गिरने लगीं। यह देख तात्या टोपे ने उन्हें संभाला और घोड़े को आगे बढ़ा दिया। इस प्रकार झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने लड़ाई में कभी भी शत्रुओं को पीठ नहीं दिखाई और युद्ध क्षेत्र में ही वीरगति को प्राप्त हुई। वस्तुतः उनकी वीरता अनुपम थी, जो सदैव वीरों को प्रेरित और अनुप्रमाणित करती रहेगी।

प्रश्न 19.
निम्नलिखित वाक्यों की सप्रसंग व्याख्या करें :

(क) परन्तु निराशा की शक्ति भी कुछ विलक्षण ही होती है।
सप्रसंग व्याख्या-
प्रस्तुत सारगार्मिक पंक्ति पाठ्य-पुस्तक ‘दिगंत, भाग -1’ के ‘आँखों देखा गदर’ पाठ से उद्धत है। इसके लेखक पं. विष्णुभट गोडसे वरसईकर हैं। इसमें 1857 ई. के प्रथम भारतीय स्वाधीनता संग्राम के आँखों देखा हाल का वर्णन किया गया है। झाँसी पर अंग्रेजी फौज हमला बोल चुकी है। झाँसी की मदद को तात्या टोपे भी पहुंचे हुए है। अंग्रेज और झाँसी के बीच भीषण संग्राम छिड़ा है, पर धीरे-धीरे झांसी की फौज पस्त होने लगती है और अंग्रेजों का हौसला बढ़ता जा रहा है। यह पंक्ति उसी संदर्भ में कथित है।

ऐसे तो अंग्रेजों की विजय देख झाँसी में हाहाकार मचा हुआ है, पर यह सच्चे शूर-वीरों की धरती है, जो अपनी आन की रक्षा में जान देना जानते हैं। जिनके लिए दुश्मन के आगे घुटने और यादहयों को यह ठित होने कापक्ति में निरी टेकने की बजाय उन्हें मारते हुए शहीद हो जाना, लाख गुना अच्छा है। सच्चे वीर कभी निराश नहीं होते और यदि कभी निराशा पास फटकती है तो उसी से वे विलक्षण शक्ति-स्फोट कराते है। झाँसी के सिपाहियों को यह जानकर कि निर्मम और निर्दय अंग्रेज ही जीतेंगे और झाँसी उन्हीं के हाथ लगेगी, साहस और शौर्य कुंठित होने की बजाय और बढ़ जाता है। वे और उत्साह एवं मनोबल के साथ युद्ध में जुट जाते हैं। प्रस्तुत पंक्ति में निराशा की विलक्षण शक्ति का संकेत किया गया है।

(ख) भेड़िए जब भेड़ों के झुंड पर झपटते हैं, तब भेड़ों के प्राण की जो दशा होती है वही इस समय लोगों की थी।
सप्रसंग व्याख्या-
प्रस्तुत सारगर्भित पंक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘दिगंत, भाग-1’ में संकलित ‘आँखों देखा गदर’ पाठ से ली गई है। इसके लेखक मराठी के सुप्रसिद्ध विद्वान पं. विष्णुभट गोडसे वरसईकर है। इस पंक्ति के माध्यम से लेखक ने गदर के दौरान झाँसी में अंग्रेजी फौजों के आत्याचार-उत्पात और उससे प्रभावित-भयातुर नागरिकों की असहायावस्था का बड़ा मार्मिक एवं हृदयस्पर्शी वर्णन किया है।

अंग्रेजी फौज झाँसी शहर में घुस चुकी थी और जनता पर बेंइतहा जुल्म ढा रही थी। बच्चा या बूढा जिसे भी सामने पाती; मौत के घाट उतार देती इतना ही नहीं, इन वहशियों ने शहर के एक भाग में आग भी लगा दी, जिससे सर्वत्र हाहाकार मच गया। उस समय निरीह नागरिकों को प्राण बचाने का कोई उपाय न सूझता था। इसी भीषण और करुण दृश्य का वर्णन करते हुए भेड़ों पर भेड़ियों के आक्रमण का उदाहरण दिया गया है। भेड़े अत्यंत निरीह और दुर्बल जीव होती हैं। भेड़िए के सामने उनका कोई वश नहीं चलता। जब भेडिये आक्रमण करते है तो भेड़ों की दशा अत्यंत करुण हो जाती है, उनके प्राण नशों में समा जाते हैं। वह चाहकर भी कुछ नहीं कर सकती, अपनी जान भी नहीं बचा सकती। यही हाल उस गोरे सिपाहियों के आतंक और जुल्म के सामने झाँसी के निरीह एवं निहत्थी जनता की थी। इस पंक्ति के क्रूर सिपाहियों के लिए भेड़िए और निरीह जनता के लिए भेड़ों की उपमा बड़ी सटीक बैठती है।

(ग) आत्महत्या करना बड़ा पाप है, दुःख में धैर्य धारण करके गंभीरतापूर्वक सोचना चाहिए कि उससे बचने के लिए आगे कोई रास्ता निकल सकता है या नहीं।
सप्रसंग व्याख्या-
प्रस्तुत सारगर्भित व्याख्येय पंक्तियों हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘दिगंत, भाग-1 में संकलित ‘आँखें देखा गदर’ पाठसे अवतरित है। इसके लेखक पं. विष्णुभट गोडसे वरसईकर हैं। इन पंक्तियों में लेखक ने जब लक्ष्मीबाई अंग्रजों की विजय और अपनी पराजय के साथ प्रजाजनों की असहायावस्था को देखती हैं तो वे अत्यंत चिन्तित, निराश और उदास-हताश हो जाती हैं।वे कहती है कि प्रजालोग रात में ही भाग कर सुरक्षित स्थान पर चले जाएँ और मै इस महल में गोला बारूद भरकर आग लगाकर जल मरूँगी। उनके इसी कथन पर उनके वृद्ध सरदार का यह सारगर्भित कथन उल्लिखित है।

झाँसी का वह वृद्ध सरदार रानी लक्ष्मीबाई को प्रबोध देता हुआ कहता है कि आप जैसी वीर नारी के लिए ऐसा करना कदापि उचित नहीं। वीर कभी पलायनवादी नहीं होते, वे तो हँसकर संकटों का सामना करते हैं। वास्तव में आत्म हत्या की बात करना कायस्व. यह वीरों का धर्म नहीं। विपत्ति आने पर धैर्य से काम लिया जाना चाहिए और गंभीरतापूर्वक सोचकर आगे के लिए बचाव का रास्ता निकालना चाहिए। इस प्रकार यहाँ वृद्ध सरदार श्रांत-क्लांत तथा निराश-हताश एवं पीड़ित झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई को समयोचित सही सलाह देता है। रान पर इसका तदनुकूल प्रभाव पड़ता है और वे पुनः अपने पुण्य-कर्म में सन्नद्ध होती है। विपत्ति में धैर्य धारण करने की सीख तथा आत्महत्या जैसे कृत्य की निन्दा की बात सर्वथा उचित लगता है।

भाषा की बात।

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों से विशेषण चुनें
(i) दूरबीन से बेचूक निशाना साधकर तोप में पलीता लगाया और तीसरे धमाके में ही अंग्रेजों के उत्तम गोलंदाज को ठंडा कर दिया।
(ii) ये लाल भड़के गोले रात्रि के अंधकार में गेंद की तरह इधर-उधर आसमान में उड़ते हुए बड़े विचित्र लगते थे।
(iii) उस दिन महलों पर ही अंग्रेजी तोपों की शनि दृष्टि थी।
(iv) बहुत-से पुराने तजुर्बेकार पलटनी लोग अपने प्रणों के भय से पलटने छोड़कर चले गए थे।
(v) राव साहब ने कहा कि शत्रु का कहर है; महलों में बड़े धोख होंगे।
(vi) इस तरह बड़ी राजी-खुशी से श्रीमंत राव साहब ने वहाँ अठारह दिन बिताए।
(vii) शहर का प्रबंध बहुत अच्छा कर रखा था।
(viii) कारीगर भी बड़े ही चतुर और काम में निपुण थे।
उत्तर-
इन पंक्तियों में निम्नलिखित विशेषण है-
(i) बेचूक, तीसरे, उत्तम, ठंडा।
(ii) लाल, भडके, बड़े, विचित्र।
(iii) अंग्रेजी, शनि।
(iv) बहुत, पुराने, तजुर्बेकार, पलटनी, अपने।
(v) बड़े।
(vi) बड़ी।
(vii) अच्छा।
(viii) चतुर, निपुण।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों से वाक्य बनाएँ हलचल, हौलदिली, नाकाबंदी, जर्जर, बुर्ज, भाग्य, दूरबीन, मंजिल, भिक्षुक, किला, धूल
उत्तर-
हलचल-(स्त्रीलिंग)-पुलिस के आते ही चारों ओर हलचल मच गई। हौलदिली-(स्त्रीलिंग)-बम की मौजूदगी की अफवाह से रेलयात्रियों में हौलदिली फैल गई। नाकाबंदी-(स्त्रीलिंग)-विद्रोहियों ने गाँव की नाकाबंदी कर रखी है। जर्जर-(पुल्लिंग)-बरसात से सड़क जर्जर हो गया है। बुर्ज-(पुल्लिंग)-संध्या समय लोग किले के बुर्ज पर चढ़ गये। भाग्य-(पुल्लिंग)-सभी का अपना-अपना भाग्य होता है।

दूरबीन-(स्त्रीलिंग)-यह दूरबीन पुरानी है। मंजिल-(पुल्लिंग)-हमें अपनी मंजिल पर पहुँचना है। भिक्षुक-(स्त्रीलिंग)-भिक्षुक को देख किसे दया नहीं आती। किला-(पुल्लिंग)-झाँसी का किला बड़ा मजबूत था। धूल-(पुल्लिंग)-आपके चरणों के धूल भी पावन हैं।

प्रश्न 3.
उत्पत्ति की दृष्टि से निम्नलिखित शब्दों की प्रकृति बताएँ चैत, ग्रीष्म, नागरिक, पल्टन, वायव्य, बहादुर, शहर, बंबों, तंबू, नाकाबंदी, परकोटा, फौज, दालान, किला, खबर, गली, तहखाना, प्राण, ब्रह्मवर्त
उत्तर-

  • चैत – तद्भव
  • ग्रीष्म – तत्सम
  • नागरिक – तत्सम
  • पल्टन – विदेशज
  • वायव्य – तत्सम
  • बहादुर – विदेशज
  • गहर – विदेशज
  • बंबों – अनुकरणात्मक
  • तंबू – देशज
  • नाकाबंदी – संकर (नाका-हिन्दी, बंदी-फारसी)
  • परकोटा – तद्भव
  • फौज – विदेशज
  • दालान – विदेशज
  • किला – विदेशज
  • खबर – विदेशज
  • गली – तद्भव
  • तहखाना – विदेशज
  • प्राण – तत्सम
  • ब्रह्मवर्त – तत्सम।

उत्पत्ति की दृष्टि से शब्द मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं-तत्सम, तद्भव, देशज और विदेशज।

प्रश्न 4.
‘सारी हकीकत सनकर सबके पेट में पानी हो गया और हमारे प्राण भीतर ही भीतर घुटने लगे।’ यहाँ ‘पेट में पानी होना’ और ‘प्राण घुटना’ का क्या अर्थ है? इन मुहावरों के प्रयोग के बिना इस वाक्य को इस तरह लिखे कि अर्थ परिवर्तित न हो।
उत्तर-
पेट में पानी-स्तब्ध रह जाना, प्राण घुटना-भयाक्रांत होना, वाक्य-सारी हकीकत सुनकर सब के सब स्तब्ध रह गये और भयाक्रांत हो गये।

प्रश्न 5.
‘सर कर लिया’ मुहावरा का क्या अर्थ है? पाठ से अलग वाक्य में प्रयोग करें।
उत्तर-
‘सर कर लिया’ मुहावरे का अर्थ है- ‘जीत लिया’ वाक्यगत प्रयोग- 1962 ई. के आक्रमण में चीन ने भारतीय भू-भाग को सर कर लिया।

प्रश्न 6.
‘सीग समाना’ का क्या अर्थ है? वाक्य में प्रयोग करें।
उत्तर-
‘सींग समाना’ का अर्थ है- ‘गुजाइश होना’। दंगे के दौरान जहाँ सींग समाय भाग जाना चाहिए।

प्रश्न 7.
इस पाठ में प्रयुक्त मुहावरों का सावधानी के साथ चयन करें और पाठ के आधार पर उनका अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं करें।

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर।

आँखों देखा गदर लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के महत्व का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर-
हमारे देश में स्वतंत्रता संग्राम की सबसे पहली लड़ाई 1857 ई. में हुई थी। इसमें अन्य सभी देशी राजाओं और रानियों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। इसमें झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का योगदान महत्वपूर्ण माना जाता है। उनहोंने 1857 के गदर में अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध किया था। जब अंग्रेजों ने झासी पर आक्रमण किया तो लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों का डटकर सामना किया और उनसे लोहा लिया। उन्होने अंग्रेजों के विरुद्ध वीरतापूर्वक युद्ध किया। लक्ष्मीबाई अंग्रेजों के बीच घमासान युद्ध हुआ। बहुत-से अंग्रेज सैनिक इस युद्ध में मारे गए। दूसरी झाँसी की रानी अंतिम साँस तक युद्ध करती रही और अंत में वीरगति को प्राप्त हुयी। वास्तव में, भारतीय स्वंतत्रता संग्राम में लक्ष्मीबाई का महत्वपूर्ण योगदान था। वे देश को अंग्रेजों से स्वतंत्र कराना चाहती थीं।

आँखों देखा गदर अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आँखों देखा गदर नाम पाठ के लेखक कौन हैं।
उत्तर-
आँखों देखा गदर नामक पाठ के लेखक विष्णुभट गोडसे वरसईकर हैं।

प्रश्न 2.
आँखों देखा गदर किस प्रकार की रचना है?
उत्तर-
आँखों देखा गदर एक संस्मरण है।

प्रश्न 3.
1857 ई. का गदर किस कारण हुआ?
उत्तर-
चर्बी वाली कारतूस के कारण 1857 ई. का गदर प्रारंभ हुआ।

प्रश्न 4.
1857 ई. के गदर में किन-किन देशी राजाओं ने भाग लिया?
उत्तर-
1857 ई. के गदर में बहादुरशाह जफर, तात्या टोपे, वीर कुंवर सिंह तथा झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई इत्यादि ने भाग लिया।

आँखों देखा गदर वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर।

I. सही उत्तर का सांकेतिक चिह्न (क, ख, ग, या घ) लिखें।

प्रश्न 1.
‘आँखें देखा गदर’ के लेखक हैं
(क) रामचन्द्र शुल्क
(ख) हरिशंकर परसाई
(ग) विष्णुभट्ट
(घ) गोडसे बरसईकर
उत्तर-
(ग)

प्रश्न 2.
‘आँखो देखा गदर’ कहाँ से लिया गया है?
(क) चिन्तामणि
(ख) माझा प्रवास
(ग) झाँसी की रानी
(घ) इसमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ख)

प्रश्न 3.
झाँसी की रानी की मृत्यु किस युद्ध में हुई?
(क) मुरार के युद्ध में
(ख) कालपी के युद्ध में
(ग) कानपुर के युद्ध में
(घ) ग्यालियर के युद्ध में
उत्तर-
(क)

प्रश्न 4.
‘माझा प्रवास’ का भाषांतर किसने किया था?
(क) चिन्तामणि विनायक वैद्य
(ख) जैनेन्द्र
(ग) अमृतलाल नागर
(घ) नामवर सिंह
उत्तर-
(ग)

प्रश्न 5.
अंग्रेजों को किले समझने में कितने दिन लगे?
(क) तीन दिन
(ख) चार
(ग) पाँच दिन
(घ) आठ दिन
उत्तर-
(क)

प्रश्न 6.
सातवें दिन सूर्यास्त के बाद क्या हुआ?
(क) भयंकर तूफान आया
(ख) मोर्चे की तोप बन्द हो गई
(ग) अंग्रेज सैनिक भाग गए
(घ) इनमें से कुछ नहीं
उत्तर-
(ख)

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें।

प्रश्न.
1. शहर पर तोप के गोले शुरू होने से ……………. को बड़ा त्रास हुआ।
2. रात में शहर और किले पर …………. पड़ते थे।
3. परंतु …………… की शक्ति भी कुछ विलक्षण होती है।
4. दुख में धैर्य धारण करके गंभीरता पर्वक ……………… चाहिए।
5. आप विद्वान हैं, अतः मेरे लिए ……………… न खींचे।
उत्तर-
1. रैयत
2. गोले
3. निराशा
4. सोचना
5. पानी।

आँखों देखा गदर लेखक परिचय विष्णुभट्ट गोडसे वरसईकर (1828)

भारम के प्रथम स्वाधीनता संग्राम 1857 के गदर का आँखों देखा विस्तृत विवरण प्रस्तुत करने वाले श्री विष्णुभट गोडसे वरसईकर का जन्म 1828 ई. में महाराष्ट्र राज्य के रायगढ़ जिले के ‘वरसई’ ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम पं. बालकृष्ण भट था। विष्णुभटजी ने स्वाध्याय द्वारा परंपरागत रूप में संस्कृत, मराठी आदि का गहन ज्ञान अर्जित किया था। उनका व्यक्तित्व आकर्षक एवं प्रभावशाली था। गौरवर्ण के ऊँचे और भव्य शरीर वाले विष्णुभटजी विद्वान एवं तेजस्वी पुरूष थे।

पं. विष्णुभट गोडसे वरसईकर कोई पेशेवर लेखक नहीं, अपितु आजीविका से कर्मकांडी और पुरोहित थे। उनकी थोड़ी-बहुत खेती थी, परन्तु अपर्याप्त। परिवार को ऋण मुक्त करने तथा उसके समुचित निर्वाह के लिए धनार्जन हेतु वे उत्तर भारत की ओर आये थे, किन्तु सन् 1857 के गदन में फंस गये। मार्च 1857 में बैलगाड़ी से वे पुणे पहुँचे और वहाँ से इंदौर, अहमदनगर, धुलिया, सतपुड़ा होते हुए मध्यप्रदेश में महू पहुँचे जहाँ उन्हें सिपाहियों से क्रांति की खबरें पहले-पहल मिलीं। सिपाहियों की मनाही के बावजूद वे आगे बढ़ते हुए उज्जैन, धारा होते हुए ग्वालियर पहुँचे।

इस बीच उन्होंने गदर की घटनाओं को बड़ी नजदीक से देखा-सुना था पुनः वे झाँसी आकर फंस गये। वहाँ वे इतिहासप्रसिद्ध वीरांगना झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के प्रत्यक्ष संपर्क में आये और उनका आश्रय तथा विश्वास प्राप्त कर काफी दिनों तक उनके साथ किले में रहे। उन्होंने अनेक कष्ट सहकर उत्तर भारत के कई तीर्थो की यात्रा की और करीब ढाई साल बाद अपने गाँव वरसई वापस लौटे। वहीं उन्होंने अपने प्रिय यजमान श्री चिन्तामणि विनायक वैद्य के अनुरोध पर अपनी यात्रा का आँखों देखा हाल स्मरण के आधार पर लिखा-‘माझाा प्रवास’।

पं. विष्णुभट गोडसे वरसईकर की एक ही रचना है-माझा प्रवास (मेरा प्रवास), जो मूल रूप से मराठी में लिखित है। इस कृति में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई से संबंधित उनके संस्मरण प्रमाणिक रूप में प्रस्तुत हुए है। इसका हिन्दी अनुवाद सुप्रसिद्ध कथाकार और लेखक अमृतलाल नागर ने ‘आँखों देखा गदर’ नाम से बीसवी सदी के चौथे दशक में प्रस्तुत किया। इस प्रकार यह एक उत्कृष्ट यात्रा-संस्मरण है, जिसमें विद्वान लेखक विष्णुभट द्वारा यात्राओं के दौरान देखी-सुनी बातों का बड़ा यथार्थ, जीवंत और चित्ताकर्षक वर्णन हुआ है।

आँखों देखा गदर पाठ का सारांश

भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम 1857 के गदर का आँखों देखा विस्तृत विवरण प्रस्तुत करनेवाले भारतीय विष्णुभट गोडसे की उत्कृष्ट स्मृति ‘माझा प्रवास’ का प्रमाणिक भाषांतर ‘आँखों देखा गदर’ झाँसी प्रवास और लक्ष्मीबाई से जुड़े संस्मरण में अविकल रूप में प्रस्तुत है।

वसंत की विदाई और ग्रीष्म ऋतु के राज्य में एक दिन झांसी शहर के दक्षिणी मैदान में गोरे पलटनों ने तम्बू झाँसी को अपने-अपने खूनी पंजों में गाड़ चुका था। दूसरे दिन गोरे पलटनों ने मोर्चा बाँधकर युद्ध का शंखनाद कर दिया। झाँसी के सैनिकों ने भी अंग्रेजी आक्रान्ताओं को खदेड़ने के लिए रणभेड़ी की दुर्दभि बजा दिया। तीसरे दिन अंग्रेजी पलटनों को शहर या किले के मोर्चा का पता चल गया और उनकी गरनाली तोपें चलने लगीं।

शहर में तोप के गोले की अन्धाधुन्ध बारिस ने रैयतों को भयाक्रान्त कर दिया और छोटे घर खंडहर बनकर गिरने लगे। बाई साहब ने भी अंग्रेजों को ‘ईट का जनाब पत्थर’ से देने के लिए जबरदस्त नाकेबन्दी की। चौथे दिन अंग्रेजों के आक्रमक प्रहार ने किले के दक्षिण बुर्ज को बन्द कराकर हौलदिली फैला दी। दिन-रात लगातार युद्ध होने से शहर जर्जर हो गया। पाँचवें और छठे दिन भी युद्ध अनवरत जारी रहा। सातवें दिन सूर्यास्त के बाद शत्रुओं की तोपों ने बाई साहब के पश्चिमी मोर्चे को तोड़ डाला।

कारीगर की चतुरता से पुनः मोर्चा बन्दी कर तोपों का मुँह खोल देने से अंग्रेज बहुत हताहत हुए। आठवें दिन बड़ा प्रलय मचा तथा घनघोर युद्ध हुआ। इस विकट घड़ी में पेशवा की तरफ से मदद न मिलने से बाई साहब किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई। दसवें दिन कालपी से तात्यां टोपें पन्द्रह हजार फौजों को लेकर झाँसी पहुँचे। परन्तु तात्या टोपी की अकुशलता या हिन्दी सिपहियों को अशूरता ने उन्हें टूटकर भागने पर मजबूर कर दिया।

इस प्रकार युद्ध की विभीषिका लगातार ग्यारह दिनों तक कायम रही। रानी लक्ष्मीबाई स्वयं अपने नेतृत्व में युद्ध का संचालन कुशलतापूर्वक की। परन्तु गोरी पलटनों ने घास की सीढ़ी बनाकर किले में घुस गए और भारी रक्तपात किया। बाई साहब ने भी पन्द्रह सौ विलायती बहादुरों की फौज का नेतृत्व कर अंग्रेजी पलटनों पर कहर ढा दिया। अंग्रेजी पलटनों की भीषण रक्तपात निरापराध प्राणियों की निर्मम हत्या ने बाई साहब को हिलाकर रख दिया। वह निरापराध प्राणियों की हत्या का पापी खुद को समझकर आत्महत्या के लिए उद्धत हो गई। परन्तु एक वृद्ध द्वारा आत्महत्या को महापाप करार देने तथा “आत्महत्या के पाप को संचय करने की अपेक्षा युद्ध में स्वर्ग जितना उत्तम है।” इन शब्दों से प्रभावित होकर वह मर्दाना पोशाक धारण कर अपने फौजों की जत्था के साथ कालपी के रास्ते चल दी।

कालपी के रास्ते में लेखक से उनकी मुलाकात हुई। प्यास से व्याकुल बाई साहब को पानी के लिए तैयार लेखक को मना कर दिया कि ‘आप विद्वान है’। उन्हें खुद कुएँ से पानी खींचकर पीया जिससे उनकी महानता के प्रति उनका सर श्रद्ध से झुक गया। कालपी में युद्ध तीन दिनों तक चला। सैकड़ों की हत्या हुई। युद्ध में हार का अभास मिलते ही बाई साहब, तात्या टोपे और राव साहब जंगलों के लिए निकल गए। ग्वालियर में शिंदे की बहुत पलटनियों ने पेशवा पर मुरार नदी पर गोली चलाने से इंकार कर दिया।

मुरार के घमासान युद्ध में झाँसीबाई को गोली लगी फिर तलवार का करार चोट खाकर महारानी घोड़े से गिरने लगीं। तात्यां टोपे ने उन्हें संभालकर घोड़ा आगे बढ़ा दिया। बाई साहब की नश्वर शरीर को एक जगह लोगों ने चिता पर रखकर तेज को तेज में विलीन कर दिया। रणाणण में क्रान्ति के दूत, मनुजता की पुजारी देवी स्वरूपिणी वीरांगना ने मृत्यु पाकर स्वर्ण जीता। इस प्रकार स्वतंत्रता संग्राम के देदीप्यमान सूर्य सदा के लिए अस्त हो गया। जब तक सृष्टि है, सूर्य और चन्द्रमा, धरती और जगत का अस्तित्व कायम है; उत्साह और शूरता से चमकनेवाली अनुजता के प्रेमाधिकारी, कालदधि का महास्तंभ आत्मा के नभ के तुंग केतू तथा मानवता के मर्मी सुजान, कालजयी, कालोदधि महास्तम्भ महारानी लक्ष्मीबाई का यशोगान इतिहास गाता रहेगा।

आँखों देखा गदर कठिन शब्दों का अर्थ।

बंदोबस्त-प्रबंध। गोलंदाज-गोला दागने वाला। रैय्यत-प्रजा। त्रास-भय। बंबा-पानी वाला बड़ा कनस्तर। नाकाबंदी-घेराबंदी। वायव्य-उत्तर-पश्चिम। बुर्ज-किले का सबसे ऊपरी गोलाकार हिस्सा। हौलदिली-भय, आतंक की मनोदशा। बुरुज-बुर्ज, गुंबद। अप्रतिम-फीका, चमकविहीन। जर्जर-कमजोर, पुराना। पलटन-सेना। नसेनी-सीढ़ी। ग्रास-निवाला। किंकर्तव्यविमूढ़-यह मनोदशा जिसमें कोई उपाय न सूझे। नरसिंहा-एक प्रकार का वाद्ययंत्र जो युद्ध में बजाया जाता है। बिगुल–एक प्रकार का वाद्ययंत्र जो युद्ध में बजाया जाता है। गाफिल-लापरवाह। परकोटा-किले की सुरक्षा दीवार। नादान- भोला।

रिसाला-घुड़सवार। भेदिया-जासूस, भेद बताने वाला। बख्शीश-इनाम। शनि दृष्टि-बुरी नजर। भंबक-बड़ा छेद। गश्त लगाना-पहरा देना। बाजू-बाँह और सहस्त्र हजार। विजन-निर्जन, जनशून्य। दीवानखाना-मुख्य हॉल। शोक विह्वल-दुःख से व्याकुल। आर्तनाद-दुःख से भरी पुकार। जुगत-उपाय, युक्ति। माल-असबाब-समान। चिंताक्रांत-चिंता से घिरा हुआ। महापातकी-महानीय, महापापी। शूर-वीर। खास महल-महल का भीतरी हिस्सा जिसमें राजा-रानी रहते हैं। लश्कर-सेना का पड़ाव। हकीकत-वास्तविकता। सर कर लेना-जीत लेना। आब-आभा, चमक।

युक्ति-उपाय। निरूपाय-लाचार। दत्तक पुत्र-गोद लिया पुत्र। खेड़ा-निर्जन मैदान। किंचित-थोड़ा। आरक्त-लाल। म्लान-मुरझाया हुआ। दैवगति-भाग्य का लिखा। संचय-जमा, इकट्ठा। अर्थ-धन। प्रत्यूष बेला-भोर का समय। लिलार-ललाट, भाग्य। दक्षिणी-दक्षिण में रहनेवाला। ब्रह्मावर्त-पुष्कर के आस-पास का इलाका। तजुर्बेकार-अनुभवी। जाहिरनामा-विज्ञप्ति, प्रकाशित सूची। नौसिखिए-अनुभवहीन। कवायद-परेड। मास-युद्ध में बजाया जाने वाला वाद्य। कारकुन-कर्मचारी। ताकीद-विदित, . चेतावनी, सावधान।

महत्त्वपूर्ण पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या

1. मुसर में घमासान युद्ध छिड़ गया। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई को गाली लगी, लेकिन वे लड़ती रहीं, अंग्रेजों की तलवार का करारा हाथ उनकी जाँघ पर लगा और वे वीरगति की प्राप्ति हुयीं।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ विष्णुभट गोडसे वरसईकर द्वारा रचित आँखें देखा गदर नमक संस्मरण से ली गयी हैं। इन पंक्तियों से यह स्पष्ट होता है कि अंग्रेजों और झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के बीच मुरार में निर्णायक युद्ध हुआ। इस युद्ध में लक्ष्मीबाई ने बड़ी वीरता से युद्ध किया और अंग्रेजों के दाँत खट्टे कर दिए। युद्ध करते ही उन्हें गोली लगी और उनकी जाँघ पर तलवार से वार हुआ। जिसके कारण वे वीरगति को प्राप्त हुयी। इन पंक्तियों से उनके अदम्य उत्साह और वीरता की झलक दिखलायी पड़ती है। इसलिए झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।

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