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 Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 8 बहुत दिनों के बाद

Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 8 बहुत दिनों के बाद (नागार्जन)

बहुत दिनों के बाद पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
बहुत दिनों के बाद कवि ने क्या देखा और क्या सुना?
उत्तर-
‘बहुत दिनों के बाद’ घुमक्कड़ कवि की देशज प्रकृति और घरेलू संवेदना का एक दुलर्भ साक्ष्य प्रस्तुत करती है। घुमक्कड़ प्रवृत्ति का होने के कारण बहुत दिनों के बाद कवि अपने ग्रामीण वातावरण में आकर पकी-सुनहली फसलों की मुस्कान देखकर आह्वादित हो जाता है। का धान कूटती किशोरियों की कोकिल-कंठी तान सुनकर मंत्र-मुग्ध हो जाता है। उसका जन अ। . उल्लसित हो जाता है।

प्रश्न 2.
कवि ने अपने गाँव की धूल को क्या कहा है? और क्यों?
उत्तर-
कवि नागार्जुन ने अपने गाँव की धूल को चन्दनवर्णी कहा है। ऐसा कहने के पीछे कवि का आशय है कि जिस तरह चन्दन स्निग्धता, सुगंध और शीतलता देता है। ठीक उसी तरह कवि के गाँव की धूल जिसका रंग चंदन की तरह ही है, जिससे ऐसी सोंधी महक आ रही है, उसका स्पर्श चन्दवत्, स्निग्ध और शीतलता प्रदान कर रहा है।

प्रश्न 3.
कविता में ‘बहुत दिनों के बाद’ पंक्ति बार-बार आयी है। इसका क्या औचित्य है? इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर-
घुमक्कड़ी प्रवृत्ति का होने के कारण कवि ‘बहुत दिनों के बाद’ अपने गाँव का उल्लासपूर्ण वातावरण देखकर मंत्र-मुग्ध है। प्राकृतिक विपदाओं से त्रस्त मिथिलांचल में हरियाली देखकर कवि का हृदय कल्पना को ऊँची उड़ान भरने लगता है। बहुत दिनों के बाद कवि को पकी-सुनहली फसलों की मुस्कान तथा धान कूटती नवयौवनाओं की सुरीली तान सुनने को मिलता है। मौलसिरी के ताजे-टटके फूल के सुवास कवि के नासारन्ध्रों में समाती है। प्रकृति की मेहरबानी से गन्ने, ताल-मखाना की हरी-भरी फसलें लहलहाते हुए देखकर कवि ताल-मखाना खाता है और गन्ना चूसता है।

प्राकृतिक विपदाओं से त्रस्त मिथिलांचल प्राय: उजार-बियावान-सा दिखाई पड़ता था। प्रकृति की असीम कृपा से बहुत दिनों के बाद कवि को गंध-रूप-रस-शब्द-स्पर्श सब साथ-साथ भोगने का अवसर प्राप्त हुआ है। कवि कहना चाहता है कि उजड़े उपवन में फिर से हरियाली छा गई है, प्रायः बाढ़ के प्रकोप से आच्छादित भूमि को स्पर्श करने का अवसर भी उसे बहुत दिनों के बाद मिलता है। लंबी इन्तजारी के बाद मिलने वाली ग्रामीण परिवेश का सच्चा सुख मिलना ‘सुख’ के महत्व में चार-चाँद लगा दिया है।

प्रश्न 4.
पूरी कविता में कवि उल्लसित है। इसका क्या कारण है?
उत्तर-
‘बहुत दिनों के बाद’ शीर्षक कविता घुमक्कड़ कवि नागार्जुन की देशज प्रकृति और घरेलू संवेदनाओं का एक दुर्लभ साक्ष्य प्रस्तुत करती है। कवि बहुत दिनों के बाद पकी-सुनहली फसलों की मुस्कान जी-भर देखता है। धान के उपज की प्रचुरता से कोकिल कंठी नवयौवन द्वारा धान कूटते हुए मधुर संगीत फिजाँ में फैला हुआ है जिसे सुनकर कवि मंत्र-मुग्ध हो जाता है। मौलसिरी के ताजे-टटके फूल भी सूंघने को मिलती है।

साथ-ही-साथ चंदनवर्णी धूल को भी अपने तिलक के रूप में माथे पर लगाने का अवसर प्राप्त होता है। कवि का हृदय गाँव की खुशहाली से आह्वादित है। वह जी-भर ताल-मखाना खाता है और गन्ने भी जी-भर चूसता है। कवि को गंध-रूप-रस-शब्द-स्पर्श सब अपनी जन्मभूमि पर साथ-साथ प्राप्त हो जाता है। इस मनोहर तथा मन को आह्वादित करने वाले प्रकृति के मनोरम दृश्य को देखकर कवि भवविभोर हो जाता है। उसका हृदय उल्लास से भर जाता है।

प्रश्न 5.
“अब की मैंने जी-भर भोगे गंध-रूप-रस-शब्द-स्पर्श सब साथ-साथ इस भू पर” इन पंक्तियों का गर्भ उद्घाटित करें।
उत्तर-
प्रतिबद्ध मार्क्सवादी, सहृदय साहित्यसेवी कवि नागार्जुन रचित कविता “बहुत दिनों के बाद” से ली गयी इन पंक्तियाँ में तृप्ति का आख्यान हुआ है। मानव जीवन मृग मरीचिका में व्यतीत हो रहा है। सुख की वांछा में व्यक्ति अपनी जड़ों से कट कर वहाँ पहुँच जाता है जहाँ सारा कुछ मानव निर्मित, कृत्रिम होता है। चाँदनी होती है, चाँद नहीं होता। खूशबू आती है, फूल कागजी होते हैं, रूप मोहित करता है लेकिन मेकअप की मोटी परत चुपड़ी हुई है। भेद खुलने पर, छले जाने पर काफी दुःख होता है, क्लेष होता है और मानव मन अपनी जड़ की ओर लौटता है।

जीवन शहरों और महानगरों जैसे अजगर के गुंजलक में किस स्थिति में है, सभी जानते हैं। उगता सूरज, डूबता सूरज के दर्शन दुर्लभ हो जाते हैं। भागमभाग लगा रहता है। इसी भागमभाग से ऊबकर, भाग कर या निजात पाकर कवि अपने प्राकृतिक परिवेश में लौटा जहाँ मौलसिरी, हर शृंगार, रातरानी, रजनीगंधा जैसे सुगंध बिखेरने वाले फूलों का सान्निध्य मिला, हृदय तृप्त हुए। प्रकृति के विभिन्न अंगों के प्रकृत रूप देखकर धूल धूसरित बालक को देखकर, धान रोपती, काटती, कूटती किशोरियों को गीत गाते देखकर मन को तृप्ति मिली।

पकी फसल की झूमती बालियों को छूने का सुख मिला। खेत-खलिहान से उठने वाली महक। भरते मंजर और चू रहे महुए की सुगंध से मन प्राण तृप्त हुए। लगा जैसे सदियों बीत गयी हो, इन सब का भोग किये हुए। पता नहीं, फिर जीवन के संघर्ष से मुक्ति मिले न मिले। इसलिए कवि ने इन सबका पान, भोग जी भर कर किया।

प्रश्न 6.
इस कविता में ग्रामीण परिवेश का कैसा चित्र उभरता है?
उत्तर-
मार्क्सवादी विचार के कवि नागार्जुन द्वारा रचित कविता “बहुत दिनों के बाद” शीर्षक कविता में ग्रामीण परिवेश अपनी पूर्ण वस्तुवाचकता और गुणवाचकता के साथ उपस्थित है। उत्तर बिहार के नेपाल से सटे मिथिलांचल जिसे ‘धान का कटोरा’ कहा जाता है, में ही बाबा नागार्जुन का गाँव है, जवार है, अपना परिवेश है। यहाँ धान की पकी सुनहली फसल से भरे खेत हैं। धान से चावल निकलाने के लिए श्रमसाध्य उद्योग है और इसी से जुड़ा है श्रम परिहार हेतु “धान कूटनी” का गीत।

वस्तुतः अकृत्रिम अकृत्रिम ग्रामीण परिवेश का हर उपक्रम हर गतिविधि गीत, संगीत से आबद्ध है। शहरों में फूल या तो बिकते हैं, नकली होते हैं बासी होते हैं। यहाँ मौलसिरी, हर शृंगार, रजनीगंधा, रातरानी सब ताजा टटके रूप में प्राप्त होते हैं। इन्हें तोड़ने सजाने की जरूरत नहीं होती। जरूरत होती है, इनके रूप-गंध में स्वयं को निमज्जित करने की। गाँवों की पक्की सड़कें हो भी तो जो मजा पगडंडियों पर स्वयं को साधते हुए चलने का, उससे उड़ती चंदन जैसी धूल में सराबोर होने का है, उसका कहना ही क्या?

शुद्ध देशी घी में भुना हुआ कुरकुराता ताल मखाना खाने का और खेत से ताजे गन्ने तोड़कर अपने दाँतों-जबड़ों से उसे चीर चूस कर आस्वाद लेने का आनंद तो गाँव में ही मिलेगा। जहाँ सब कुछ उपलब्ध है बिना पैसे के, केवल प्यार के दो मीठे बोल खर्च करने पड़ते हैं। ऐसा ही है नागार्जुन का ग्रामीण परिवेश।

प्रश्न 7.
“धान कूटनी किशोरियों की कोकिल-कंठी तान” में जो सौन्दर्य चेतना दिखलाई पड़ती है, उसे स्पष्ट करें।
उत्तर-
अपने गाँव से गहरे जुड़े सरोकर रखनेवालं वैताली कवि नागार्जुन ग्रामीण सौंदर्य के सूक्ष्म द्रष्टा, पारखी और प्रस्तोता हैं।

धान कूटने के लिए ओखल-मूसल या फिर ढेकुली का प्रयोग होता है। ओखल धान रखकर बार-बार मूसल को बीच से पकड़ते हुए हाथ को शिर के ऊपर तक उठाना फिर कुछ झुकतं हुए धान पर प्रहार करना। चूड़ियों की खनखन, आपस में चूहल करती किशोरियों, नारियों और उनके गले से निकले ग्राम्य गीत के बोल, लगे जैसे किसी अमराई में कोयल पंचम का आलाप ले रही हो। यह सारा वातावरण ऐन्द्रिक, चाक्षुष और घ्राण बिम्बों को कोलाज़, प्रस्तुत करता है। कवि का कथन संक्षिप्त है किन्तु उसका सौन्दर्य अति सचेत, चेतनायुक्त और प्रभावी है।

प्रश्न 8.
कविता में जिन क्रियाओं का उल्लेख है वे सभी सकर्मक हैं। सकर्मक क्रियाओं का सुनियोजित प्रयोग कवि ने क्यों किया है?
उत्तर-
देशज प्रकृति और घरेलू संवेदना के ध्वजावाहक प्रकृतिप्रेमी कविवर नागार्जुन ने चिंतन रचना, आचरण के धरातल पर बैठकर जनहित से संबंधित विषयों को कविता के माध्यम से उद्घाटित किया है। कवि के अनुसार शहरी जीवन के सीलन-भरी जिन्दगी की अपेक्षा प्रकृति की उन्मुक्त वातावरण, ग्रामीण परिवेश, सहज, सरस तथा आनन्ददायक होता है। इसकी बोधगम्यता ‘सकर्मक क्रिया’ के सुनियोजित प्रयोग करने में सहज और स्वाभाविक द्रष्टव्य होती है। पात्रों के कार्यों में जीवंतता प्रदान करने के लिए सार्थक क्रियाओं का प्रयोग करना कवि की कल्पना को। यथार्थ से दृढ़तापूर्वक संवेदित करता है।

प्रश्न 9.
कविता के हर बंद में एक-एक ऐन्द्रिय अनुभव का जिक्र है और अंतिम बंद में उन सबका सारा-समवेत कथन है। कैसे? इसे रेखांकित करें।
उत्तर-
“बहुत दिनों के बाद” शीर्षक कविता के हर बंद में एक ऐंद्रिय अनुभव है। हमारी पाँच ज्ञानेन्द्रिय हैं, जिनके माध्यम से सृष्टि का वस्तुमय साक्षात्कर होता है।

प्रथमबंद में पकी-सुनहली फसलों की मुस्कान देखने का, दूसरे बंद में धान कूटती किशोरियों की कोकिल कंठी तान सुनने का, तीसरे बंद में मौलसिरी के ताजे टटके फूल सूंघने का, चौथे बंद में गवई पगडंडी के चन्दनवर्णी धूल का स्पर्श करने का, पाँचवें बंद में ताल मखाना खाने और गन्ना चूसने का ऐन्द्रिय अनुभव वर्णित है और अंतिम बंद में भोगने शब्द कार प्रयोग करते हुए कवि ने समवेत ढंग से ऊपर के ही ऐन्द्रिय अनुभवों को सान्द्रित रूप से प्रस्तुत किया है। गंध का संबंध नाक से, रूप का आँख से, रस का जीभ से, शब्द का कान से, स्पर्श का त्वचा से, अनुभव का भोग होता है। अतः अंतिम बंद ऐन्द्रिय अनुभवों का सारांश ही है।

बहुत दिनों के बाद भाषा की बात

प्रश्न 1.
कोकिलकंठी, चंदनवी में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर-
कोकिलकंठी और चंदनवर्णी में रूपक और उदाहरण अलंकार प्रयोग भेद से उपस्थित है।

प्रश्न 2.
‘मैंने’ सर्वनाम के किस भेद के अंतर्गत है?
उत्तर-‘
मैंने’ सर्वनाम पुरुषवाचक सर्वनाम के अन्तर्गत उत्तम पुरुष के अंतर्गत आता है जिसका कारक ‘कर्ता’ है। मैंने का प्रयोग भूतकाल के निम्न भेदों में आते हैं।

सामान्य भूत-मैंने पुस्तक पढ़ी।
आसन्न भूत-मैंने पुस्तक पढ़ी है।
पूर्ण भूत-मैंने पुस्तक पढ़ी थी।

वैसे पंजाब-हरियाणा में मैंने का प्रयोग वर्तमान काल में होता है, जहाँ इसका अर्थ मुझे, मुझको लिया जाता है।

मैंने खाना है (मुझे खाना है)।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों को तत्सम, तद्भव, देशज और विदेशज समूहों में विभक्त करें
पगडंडी, तालमखाना, गंध, मौलसिरी, टटका, फूल, मुसकान, फसल, स्पर्श, गवई, गन्ना
उत्तर-

  • तत्सम-गंध, स्पर्श
  • तद्भव-फूल, पगडंडी, मौलसिरी।
  • देशज-तालमखाना, टटका, गवई, गन्ना।
  • विदेशज-मुस्कान, फसल।।

प्रश्न 4.
सकर्मक और अकर्मक क्रिया में क्या अंतर है? सोदाहरण स्पष्ट करें।
उत्तर-
सकर्मक क्रिया उसे कहते हैं, जिसका कर्म हो या जिसके साथ कर्म की संभावना हो अर्थात् जिस क्रिया के व्यापार का संचालन तो कर्त्ता से हो, पर जिसका फल या प्रभाव किसी दूसरे व्यक्ति या वस्तु पर अर्थात् कर्म पर पड़े। जैसे-राम आम खाता है। जिन क्रियाओं पर व्यापार और फल कर्ता पर हो, वे अकर्मक क्रिया कहलाती है। जैसे-राम सोता है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित शब्दों के लिए प्रयुक्त विशेष्य बताइए
(i) कोकिल-कंठी,
(ii) पकी सुनहली,
(iii) गँवई,
(iv) चंदनवर्णी,
(v) ताजे-टटकी,
(vi) धान कूटती।
उत्तर-
(i) तान,
(i) फसलों,
(iii) पगडंडी,
(iv) धूल,
(v) फूल,
(vi) किशोरियाँ।

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

बहुत दिनों के बाद लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बहुत दिनों के बाद शीर्षक कविता का परिचय दीजिए।
उत्तर-
नागार्जुन की यह कविता मिथिला की धरती तरौनी जो कवि की जन्मभूमि रही है, की सुरभि से सुरभित है। कवि यथार्थ का शिल्पी और रागात्मक संवेदनाओं का अमर गायक रहा है। अपने गाँव-जवार की प्रति कवि के मन में प्रगाढ़ स्नेह एवं दुलार है। ग्रामीण परिवेश की टटकी छवियों का चित्रांकन ‘बहुत दिनों के बाद’ कविता में सफलतापूर्वक किया गया है। पठित कविता में कवि की सहृदयता, सौन्दर्यानुभूति एवं विशिष्ट रागात्मक संवेदना उकेरी गई है। कवि की संवेदना मानव-जीवन के चित्रण में शहर की अपेक्षा गाँवों के प्रति अधिक उभरी है।

कवि जब रोजी-रोटी की तलाश में देश-देशान्तर की खाक छान रहा था, तब उसे अपने ग्राम ‘तरउनी’ की याद सताने लगती है। यह कविता घुमक्कड़ कवि की ग्रामीण प्रकृति और घरेलू संवेदना का दुर्लभ अहसास कराती है। ‘तरउनी’ मिथिला का एक अदना-सा गाँव है, इस गाँव का अदना कवि यहाँ की मिट्टी से इतना प्रभावित है कि उसे वह गाँव स्वर्ग-तुल्य लगता है। यह कविता उनकी ‘सतरंगे पंखों वाली’ काव्यकृति में संकलित है। कृति का प्रकाशन 1950 ई. में हुआ था।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
बहुत दिनों के बाद कवि ने किस वस्तु को देखकर आँखों का सुख प्राप्त किया? .
उत्तर-
पकी सुनहली फसलों की मुस्कान को देखकर।

प्रश्न 2.
बहुत दिनों के बाद कवि को क्या सुनने का सुख प्राप्त हुआ?
उत्तर-
गाँव में धान कूटती हुई किशोरियों के कोकिल कंठ से निकली तान सुनकर।

प्रश्न 3.
बहुत दिनों के बाद कवि ने किस वस्तु की गन्ध का सुख प्राप्त किया?
उत्तर-
मौलश्री के ढेर सारे टटके फूलों की गन्ध का।

प्रश्न 4.
बहुत दिनों के बाद कवि ने कहाँ की धूल का स्पर्श-सुख प्राप्त किया?
उत्तर-
अपने गाँव की चन्दनवर्णी धूल को स्पर्श करने का सुख प्राप्त किया।

प्रश्न 5.
बहुत दिनों के बाद कवि ने किस वस्तु का स्वाद प्राप्त किया?
उत्तर-
ताल मखाने को खाने और गन्ने को चूसने का।

प्रश्न 6.
बहुत दिनों के बाद शीर्षक कविता में किस बात की अभिव्यक्ति हुयी है?
उत्तर-
बहुत दिनों के बाद शीर्षक कविता में सौंदर्य चेतना की अभिव्यक्ति हुयी है।

प्रश्न 7.
बहुत दिनों के बाद शीर्षक कविता में कहाँ के प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन हुआ है?
उत्तर-
बहुत दिनों के बाद शीर्षक कविता में कवि नागार्जुन ने गाँव की प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन किया है।

प्रश्न 8.
धान कूटती किशोरियों की कोकिल कण्ठी तान में कौन-सा बिंब दिखाई पड़ता है?
उत्तर-
धान कूटती किशोरियों की कोकिल कण्ठी तान में स्राय बिंब दिखाई पड़ता है।

बहुत दिनों के बाद वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

I. निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ

प्रश्न 1.
बहुत दिनों के बाद कविता के कवि हैं?
(क) नरेश सक्सेना
(ख) दिनकर
(ग) अरुण कमल
(घ) नागार्जुन
उत्तर-
(घ)

प्रश्न 2.
नागार्जुन का जन्म कब हुआ था?
(क) 1911 ई०
(ख) 1813 ई०
(ग) 1907 ई०
(घ) 1905 ई०
उत्तर-
(क)

प्रश्न 3.
‘नागार्जुन’ का जन्म स्थान था
(क) बेगूसराय
(ख) मुजफ्फरपुर
(ग) दरभंगा
(घ) मोतिहारी
उत्तर-
(ग)

प्रश्न 4.
‘नागार्जुन’ की कविता का नाम था
(क) बहुत दिनों के बाद
(ख) भस्मांकर
(ग) प्यासी पथराई आँखें
(घ) चंदना
उत्तर-
(घ)

प्रश्न 5.
‘नागार्जुन’ का मूल नाम था
(क) वैद्यनाथ मिश्र
(ख) गोवर्धन मिश्र
(ग) सकलदेव मिश्र
(घ) जगदंबी मिश्र
उत्तर-
(क)

प्रश्न 6.
‘नागार्जुन’ की शिक्षा हुई थी
(क) बंगला में
(ख) हिन्दी में
(ग) संस्कृत में
(घ) उर्दू में
उत्तर-
(ग)

प्रश्न 7.
कवि ‘नागार्जुन’ को कौन-सा जीवन पसंद था?
(क) सधुक्कड़ी
(ख) धुमक्कड़ी
(ग) शहरी
(घ) ग्रामीण
उत्तर-
(ख)

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

प्रश्न 1.
कवि ने गाँव की धूल को ……………… कहा है।
उत्तर-
चन्दवर्णी।

प्रश्न 2.
कवि की कविता में ग्रामीण परिवेश का …………….. उभरता है।
उत्तर-
मार्मिक चित्र।

प्रश्न 3.
नागार्जुन को आधुनिक ……. कहा जाता है।
उत्तर-
कबीर।

प्रश्न 4.
नागार्जुन ने अपनी कविता में मिथिलांचल की …………….. का वर्णन किया है।
उत्तर-
अनुपम छटा।

प्रश्न 5.
बहुत दिनों के बाद कवि गाँव की पक्की सुनहली फसल को देखकर …………….. हो जाता है।
उत्तर-
आह्वादित।

प्रश्न 6.
प्राकृतिक विपदाओं से त्रस्त मिथिलांचल प्रायः …………….. दिखाई पड़ता था।
उत्तर-
उजार-वियावान।

प्रश्न 7.
लंबी इंतजारी के बाद ग्रामीण परिवेश का सच्चा सुख मिलना सुख के महत्व में ……………… लगा दिया है।
उत्तर-
चार चाँद।

प्रश्न 8.
कवि की कविता देशज प्रकृति और घेरलू संवेदनाओं का …………….. प्रस्तुत करती है।
उत्तर-
दुर्लभ साक्ष्य

प्रश्न 9.
ऐन्द्रिय आधार और स्थायी मन-मिजाज का यह कविता एक दुर्लभ और ……………… है।
उत्तर-
अद्वितीय उदाहरण।

बहुत दिनों के बाद कवि परिचय – नागार्जुन (1911-1998)

जीवन-परिचय-
नागार्जुन का जन्म 1911 ई. में बिहार के दरभंगा जिले के सतलखा गाँव (उनके ननिहाल) में हुआ था। वे तरौनी के निवासी थे एवं उनका मूल नाम वैद्यनाथ मिश्र था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत पाठशाला में हुई। 1936 ई. में श्रीलंका जाकर बौद्ध धर्म में दीक्षित जेल की यात्रा भी करनी पड़ी।

1935 में उन्होंने ‘दीपक’ (हिंदी मासिक) तथा 1942-43 में ‘विश्वबंधु’ (साप्ताहिक) पत्रिका का संपादन किया। मैथिली काव्य-संग्रह ‘पत्रहीन नग्न गाछ’ के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कारों से सम्मानित किए गए। 1998 ई. में उनका देहावसान हो गया।

रचनाएँ-बाबा नागार्जुन की प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं-युगधारा, प्यासी पथराई आँखें, सतरंगे पंखों वाली, तालाब की मछलियाँ, हजार-हजार बाँहों वाली, तुमने कहा था, पुरानी जूतियों का कोरस, आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने, रत्नगर्भा, ऐसे भी हम क्या, ऐसे भी तुम क्या, पका है कटहल, मैं मिलिटरी का बूढ़ा घोड़ा, भस्मांकुर (खंडकाव्य)। मैथिली में उनकी कविताओं के दो संकलन हैं-चित्रा, पत्रहीन नग्नगाछ। बलचनमा, रतिनाथ की चाची, कुंभी पाक, उग्रतारा, जुमनिया का बाबा, वरुण के बेटे (हिंदी), पारो, नवतुरिया, बलचनमा (मैथिली) जैसे उनके उपन्यास विशेष महत्त्व के हैं।

भाषा-शैली-नागार्जुन का हिंदी और मैथिली के साथ संस्कृत पर भी समान अधिकार होने के कारण उनकी काव्य भाषा में हाँ एक ओर संस्कृत काव्य परंपरा की प्रतिध्वनि मिलती है, वहीं दूसरी ओर बोलचाल की भाषा की सहजता भी दिखाई देती हैं। उनके काव्य में तत्सम शब्दों के प्रयोग के साथ ही ग्राम्यांचल शब्दों का भी समुचित प्रयोग हुआ है। उन्होंने मुहावरों का भी समावेश अपनी कविताओं में किया है। उन्होंने व्यंग्यपूर्ण शैली का सफल प्रयोग सामाजिक-विसंगतियों के चित्रण में किया है।

साहित्यिक विशेषताएँ-नागार्जुन प्रगतिवादी विचारधारा के कवि हैं। वे जनसामान्य, श्रम तथा धरती से जुड़े लोगों की बात अपनी कविताओं में कहते हैं। वे जन भावनाओं और समाज की पीड़ा को व्यक्त करते हैं। उन्होंने समाज में व्याप्त विषमताओं को देखा है, समझा है, अतः उनका वर्णन स्वाभाविक है। विषय की जितनी विराटता और प्रस्तुति की जितनी सहजता नागार्जुन के रचना संचार में है, उतनी शायद ही कहीं और हो। लोक जीवन और प्रकृति उनकी रचनाओं की नस-नस में रची-बसी है। छायावादोत्तर काल के वे अकेले कवि हैं, जिनकी कविताओं का ग्रामीण चौपाल से लेकर विद्वानों तक में समान रूप से आदर प्राप्त है। जटिल से जटिल विषय पर लिखी गई उनकी कविताएँ इतनी सहज, संप्रेषणीय और प्रभावशाली होती हैं कि वे पाठक के मानस-लोक में बस जाती हैं।

बाबा नागार्जुन कभी मार्क्सवाद की वकालत करते हैं, कभी समाज में व्याप्त शोषण का वर्णन करते हैं और कभी प्रकृति का मनोहारी वर्णन करते हैं। उनकी कविताओं में शिष्टगंभीर हास्य और सूक्ष्म चुटीले व्यंग्यों की अधिकता है।

कवि के मन में श्रम के प्रति सम्मान का भाव है। प्रकृति से भी नागार्जुन को बहुत लगाव है। बादल कवि को मृग रूप में दिखाई देता है। उसने रूपक के माध्यम से बादलों को चौकड़ी करते देखा है।

नागार्जुन संस्कृत भाषा का गंभीर ज्ञान रखते थे। अतः उनकी भाषा संस्कृत शब्दावली से युक्त है। उनकी काव्यभाषा में संस्कृत काव्य परंपरा की प्रतिध्वनि मिलती। वे प्रगतिवादी विचारध रा के कवि हैं, अतः उन्होंने बोलचाल की भाषा का भी प्रयोग किया है। उनकी भाषा में सरता है, स्वाभाविकता है। उन्होंने खड़ी बोली के लोक प्रचलित रूप को अपनाया है। उनकी अभिव्यक्ति एकदम स्पष्ट, यथार्थ और ठोस है। व्यंग्य का बाहुल्य है। लोकमंगल उनकी कविता की मुख्य विशेषता है, इस कारण व्यावहारिक धरातल भी दिखाई देती है। उन्होंने विभिन्न छंदों में काव्य रचना की है और मुक्त छंद में भी। अलंकारों का आकर्षण उनमें नहीं है। आधुनिक कवियों में नागार्जुन का विशेष स्थान है।

बहुत दिनों के बाद कविता का सारांश

वर्तमान के वैताली प्रतिबद्ध मार्क्सवादी, प्रगतिवादी, प्रयोगवादी और जनकवि बाबा नागार्जुन रचित कविता शुद्ध प्रकृति प्रेम की कविता है। जो स्वयं को खोजना चाहता है, स्वयं को परिपूर्ण ऊर्जावान और अर्थवान बनाना चाहता है। वह प्रकृति की गोद में जाता है। प्रकृति से प्रकृत रूप में मिलन की कविता है, बहुत दिनों के बाद।

आधुनिक युग संत्रास, विषाद असंतोष का पर्याय है। जीवन-यापन के लिए आपा-धापी लगी हुई गला काट प्रतियोगिता जारी है। निजता की स्थापना में निजता का छिजन, क्षरण होता जा रहा है। अपने अस्तित्व को पुनः पाने रस पूर्ण, गंध पूर्ण करने के लिए कवि कार्तिक माह में अपने मिथिलांचल स्थिति “तरौनी” गाँव आए। और उसे दूर से धान की सुनहली पकी बालियाँ झूमती मुस्कराती नजर आयीं। इन्हें देखकर कवि का मन प्रसन्न हो गया। ऐन्द्रिय भोग का एक साधन नेत्र है। जो दूर से दृश्य दिखाकर भी तृप्ति प्रदान करती है।

कवि नागार्जुन जब अपने गाँव में प्रविष्ट हुआ तो ओखल में मूसल की मार, ढेंकी की चोट के साथ कोयल-सी मधुर आवाज में गाँव की किशोरियों के गले से गाँव के गीत सुनने को मिले, कानों को भी तृप्ति प्राप्त हुई।

आगे बढ़ा तो मौलसिरी अपनी मादकता अपने अगणित फूलों के माध्यम से बिखेर रही थी। “अंजुली-अंजुली” उठाकर इन फूलों को कवि ने सूंधे, नाक की प्यास भी बूझी। गाँव की पगडंडियों पर खाली पाँव चलते हुए गाँव की मिट्टी धूल का स्पर्श सुख चंदन सुवासित सुख सम प्रतीत हुआ।

अब बारी आई षट्स की पहचान करने वाली जिह्वा की। मिथिला के ताल मखाने में और ईखों (गन्नों) में जो स्वाद है, वह ‘फाइव स्टार’ या काटिनेंटल डिसेज में कहाँ है। जिह्वा के माध्यम से पेट भी भर गया। ऐसी तृप्ति कवि को बहुत दिनों के बाद हुई। यदि वह लगातार इसी परिवेश में रहता तो शायद तब यह कविता नहीं रची जाती।

वियोग, विछोह, असंतुष्टि के कारण प्रकृति के इन उपादानों को देखने, सुनने, सुंघने, छूने और खाने का अवसर मिला। सब कुछ मुफ्त, निःशुल्क शुद्ध, सात्विक और पवित्र अवस्था में। कवि अतिम बंद में ‘भोगे’ शब्द का उपयोग करता है। कहा भी गया है “वीर भोग्य वसुन्धरा धरती” भू का प्रत्येक अवयव, घटक भोग्य है। उपयोगी है। आवश्यकता है प्रकृति के इस योगदान को स्वीकार करने का। आवश्कता है कृत्रिमता का केचुल उतारकर प्रकृत रूप में हम रहें।

‘बहुत दिनों के बाद’ कविता प्रकृति प्रेम की अपने प्रकार की अनूठी कविता है। इसमें उपमा, रूपक और अनुप्रास अलंकार भी सहज चले आये हैं। सम्पूर्ण कविता उल्लास का सृजन करती है। प्रकृति की ओर लौटने का आह्वान करती है।

वास्तव मे, बहुत दिनों के बाद मिथिला के घुमक्कड़ नागार्जुन की देशज प्रकृति और घरेलू संवेदना एक दुर्लभ साक्ष्य को दर्शाती है।

बहुत दिनों के बाद कठिन शब्दों का अर्थ

जी-भर-मन भर, इच्छा भर। किशोरी-नयी उम्र की लड़की। कोकिलकंठी-कोयल जैसे मीठे स्वर वाली। गवई-गाँव की। चंदनवर्णी-चंदन के रंग की। मोलसिरी (मोलिश्री)-एक बड़ा सदाबहार पेड़ जिसमें छोटे-छोटे सुगंधित फूल लगते हैं, बकुल। तालमखाना-एक मेवा जो मिथिला की ताल-तलैया में विशेष रूप से उपजाया जाता है। गन्ना-ईख। पगडंडो-कच्चा-पतला-इकहरा रास्ता। भू-पृथ्वी।

बहुत दिनों के बाद काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. बहुत दिनों के बाद ………………. साथ-साथ इस भू पर। .
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रगतिवादी कवि नागार्जुन की कविता “बहुत दिनों के बाद” से ली गयी है। कवि ने इस कविता में बहुत दिनों के बाद गाँव में रहकर विविध वस्तुओं का सुख भोगने की स्थिति का वर्णन किया है।

कवि कहता है कि बहुत दिनों के बाद इस बार गाँव में रहकर रूप, रस, गन्ध, शब्द और स्पर्श का भरपूर सुख लिया। कवि ने कविता के प्रथम छन्द में पकी सुनहली फसल की मुस्कान का सुख भोगने की बात कही है जो नये सुख के अन्तर्गत आता है। अतः रूप है। दूसरे छन्द में गाँव की किशोरियों द्वारा धान कूटने के समय कोकिल कंठ से गीत गाने या मधुर वार्तालाप करने का वर्णन किया है जो श्रवण सुख का विषय है। यही शब्द है। तीसरे छन्द में मौलश्री के ताजा पुष्पों की गंध सूंघने का वर्णन है जो घ्राण सुख का विषय है अतः गन्ध है।

चौथे छन्द में गाँव की चन्दनी-माटी छूने का वर्णन है जो स्पर्श का विषय है। पाँचवें छन्द में तालमखाना खाने और गन्ने का रस चूसने का उल्लेख है जो रस के अन्तर्गत है। यह स्वाद संवेदना का विषय है। इस तरह इस छन्द में पूर्व के पाँच छन्दों में वर्णित विषयों का समाहार हो गया है। पूर्व के पाँच छन्दों में क्रमशः रूप, शब्द, गन्ध, स्पर्श और रस की व्याख्या है और इस छन्द में इन पाँचों – को सूत्र रूप में पिरो कर कहा गया है। इस तरह सूत्र शैली तथ्य-कथन के कारण ये पतियों महत्त्वपूर्ण है। कथावस्तु के आलोक में यह तत्त्व प्रकाश में आया है।

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