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 bihar board class 9 history solution | कृषि और खेतिहर समाज

bihar board class 9 history solution | कृषि और खेतिहर समाज

bihar board class 9 history solution

class – 9

subject – history

lesson 8 – कृषि और खेतिहर समाज

कृषि और खेतिहर समाज

महत्त्वपूर्ण तथ्य  -लैटिन भाषा के अनुसार एग्रीकल्चर अर्थात् कृषि का अर्थ भूमि की जुताई
होता है। हालांकि कृषि के अंतर्गत पशुपालन, वानिकी तथा मत्स्य पालन आदि भी आते हैं।
प्राचीन अवशेषों के अनुसार कृषि की शुरुआत नव पाषाणकाल में हुई थी। सिन्धु नदी
जलोढ़ मिट्टी बहाकर अपने साथ लाती थी तथा इसे बाढ़ वाले मैदानों में छोड़ जाती थी जिससे
पैदावार बढ़ जाती थी। हड़प्पा काल में भी हल प्रयोग करने का प्रमाण मिलता है। फसल काटने
के लिए शायद पत्थर के हौसयों का प्रयोग होता था। सिंधु सभ्यता के लोग मुख्यत: गेहूँ, जौ, राई,
कपास, मटर, अनाज आदि उपजाते थे। इसके अलावा वे तिल तथा जी भी उपजाते थे। मोहेजोदड़ो,
हड़प्पा तथा कालीबंगा में अनाज को बड़े-बड़े कोठारों में पारिश्रमिक चुकाने तथा संकट के समय
काम आने के लिए जमा किया जाता था। सबसे पहले कपास सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों ने ही
उपजाई थी।
भारत एक कृषिप्रधान देश है। कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है। भारत
की 51% भाग कृषि योग्य है तथा दो-तिहाई जनसंख्या कृषि पर निर्भर रहती है। भारत में भूमि
उपजाऊ है लेकिन मानसून पर निर्भरता तथा अनेक कारणों से कृषक अंतिम समय तक अपने
उत्पादन को लेकर अनिश्चित रहते हैं। आजादी के पहले की तुलना में आजादी के बाद की स्थिति
में काफी सुधार आया है।
बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है तथा इसकी 80% जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। राज्य का
लगभग 70% भूमि कृषि योग्य है। बिहार के अधिकांश भाग मैदानी है तथा सदियों से यहाँ कृषि
हो रही है। कृषि के वाणिज्यीकरण, औद्योगिकीकरण तथा आधुनिक तकनीक से परिचित न होने
के कारण कृषि आज भी पुराने तरीके से ही होती है। कृषि पर जनसंख्या को बढ़ते बोझ,
अनुपस्थित भू-स्वामित्व, सिंचाई की कमी, बिखरे खेत, अपर्याप्त खाद, खेती के पुराने ढंग तथा
बीजों की समस्या के कारण प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम है।

बिहार की कृषि के अंतर्गत चार फसलें बोयी जाती हैं:-

(i) भदई फसलें-ये फसलें मई-जून में बोयी जाती हैं तथा अगस्त-सितम्बर में काट लीजाती हैं। मक्का, ज्वार, बाजरा, जूट, उड़द, सनई, महुआ इत्यादि इस मौसम की प्रमुख फसलें हैं।
(i) अगहनी फसलें-इनकी बुआई जुलाई-अगस्त में होती है और नवम्बर-दिसम्बर में ये
तैयार हो जाती हैं। धान, कुलथी, तिल, आलू, तेलहन, सब्जी, मकई, कपास, गन्ना, पटसन इत्यादि
इसकी मुख्य फसलें हैं।
(iii) रबी फसलें-ये बसंत ऋतु की फसलें हैं। इसकी बुआई अक्टूबर-नवम्बर में होती है
तथा यह मार्च-अप्रैल तक तैयार हो जाती है । इन फसलों में अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती
है। प्रमुख फसलों में गेहूँ, जौ, चना, मटर, सरसों, मसूर, अरहर इत्यादि हैं।
(iv) गरमा फसलें-ये ग्रीष्मकालीन फसलें हैं। इसकी बुआई मार्च-अप्रैल में होती है तथा
कटाई जून में होती है। फसलों के ग्रीष्मकालीन धान, मकई, मूंग, चना, आम, केला, तरबूज,
ककरी, सब्जियाँ एवं प्याज प्रमुख हैं।
बिहार की फसलों को उनकी प्रकृति के आधार पर निम्नलिखित वर्गों में बाँटा गया है
(1) खाद्य फसलें-धान, गेहूँ, मक्का, ज्वार-बाजरा, चना, जौ, दलहन, तेलहन इत्यादि।
(ii) व्यावसायिक फसलें या नकदी फसलें-गन्ना, पटसन, कपास, तम्बाकू, आलू,
तेलहन, दलहन, लाल मिर्च इत्यादि।
(ii) पेय फसलें-चाय
(iv) रेशेदार फसलें-कपास, जूट, रेशम इत्यादि।
(v) मसालें-लालमिर्च, लहसुन, हल्दी, धनिया, मेंथी इत्यादि।
बिहार की प्रमुख फसलें
(i) चावल या धान-यह बिहार की प्रमुख फसल है। यह उष्णा जलवायु की फसल है
जो 20°-200°C तक की तापमान में दोमट मिट्टी में उपजाई जाती है। धान के अंतर्गत सर्वाधिक
भूमि रोहतास जिला में है।
(ii) गेहूँ-गेहूँ बिहार की दूसरी प्रमुख फसल है। यह शीतोष्ण कटिबंधीय फसल है। इसके
लिए बोते समय 10-15°C तथा पकते समय 20°C-30°C तक की तापमान की जरूरत होती है।
वर्षा 50 cm-75 cm तक होनी चाहिए तथा इसके लिए हल्की दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है।
(iii) मकई या मक्का-यह गर्म एवं आई जलवायु की फसल है। इसके लिए 25°C
30°C तक का तापमान अच्छा होता है। वर्षा 50 cm-100 cm के बीच होनी चाहिए। इसके लिए
नाइट्रोजन युक्त गहरी दोमट युक्त मिट्टी अच्छी होती है।
विभिन्न प्रकार की खेतियाँ
भारत की लगभग 70% जनसंख्या कृषि पर निर्भर करती है। यहाँ विभिन्न प्रकार की खेती
करने का प्रचलन है। खेती के तरीकों में झूम खेती, पारम्परिक खेती तथा गहन खेती का प्रचलन है।
,
(i) झूम खेती-सभ्यता की शुरुआत में जंगलों को आवश्यकतानुसार काट कर खेती की
जाती थी। आज भी पहाड़ी इलाकों में आदिवासी समाज में झूम खेती की जाती है। आदिवासी
समाज पृथ्वी को अपनी माता समझते हैं तथा उसपर हल नहीं चलाना चाहते। अत: वे वर्षा से
पहले जंगल में आग लगा देते हैं तथा राख पर बीज छिड़क देते हैं लेकिन इस खेती से पर्यावरण
पर असर पड़ता है।
(ii) पारम्परिक खेती-इसके तहत फसल उत्पादन से ही कुछ बीज वे अगले फसल के
लिए रख देते थे। सिंचाई के लिए वर्षा पर निर्भर रहते थे। अधिकांश कृषि कार्य जानवरों द्वारा
कराया जाता था। अत: पारम्परिक कृषि से उत्पादन ज्यादा नहीं होता था। मिट्टी की उर्वरा शक्ति
धीरे-धीरे कम होती जाती थी। लेकिन आज भी इसी तरीके से खेती की जाती है।
(iii) गहन खेती-गहन खेती का अर्थ होता है एक ही खेत में अधिक फसल लगाना। जिन
क्षेत्रों में सिंचाई संभव हुई है वहाँ किसान उर्वरकों तथा कीटनाशकों का प्रयोग करने लगे हैं। इससे
प्रति हेक्टेयर कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई है।
बोझ अत: दो खाद्यान्न फसलों के बीच एक दलहनी फसल लगायी जाती है जिसे फसल चक्र कहते
(iv) फसल चक्र-एक ही फसल हमेशा लगाने से भूमि की शक्ति कम होने लगती है।
हैं। दलहनी फसलों की जड़ों की गांठ में नाइट्रोजन स्थिरीकरण जीवाणु होते हैं जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं।

(v) मिश्रित खेती-एक खेत में एक ही समय में दो या तीन फसल लगाने की विधि को
मिश्रित खेती कहते हैं।
(vi) रोपणी खेती-यह एक विशेष प्रकार की झाड़ी अथवा वृक्ष कृधि है जिसे 1920
शताब्दी में अंग्रेजों ने शुरू किया था। इसमें अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है। इसके अन्तर्गत
रखर, चाय, कहवा, कोको, मसाले, नारियल तथा फेल इत्यादि आते हैं। इस प्रकार की कृषि
उत्तर-पूर्वी भारत के पर्वतीय क्षेत्रों, पश्चिम बंगाल के हिमालयी क्षेत्रों, प्रायद्वीपीय भारत के
नीलगिरी, अन्नामलाई की पहाड़ियों में होती है।
आज बढ़ती हुई जनसंख्या की पूर्ति के लिए फसल उत्पादन बढ़ाने की आवश्यकता है।
सरकार भी ऋण मुहैया करवाती है तथा फसल बीमा के माध्यम से कम उत्पादन होने पर क्षतिपूर्ति
करती है। बिहार में होनेवाली प्रमुख व्यावसायिक फसलों में केला, लीची तथा गन्ना प्रमुख हैं।
बिहार में केले की खेती हाजीपुर एवं नवगछिया इलाके में होती है। मुजफ्फरपुर का इलाका शाही
लीची के लिए जाना जाता है। गन्ना की खेती पूर्णिया, सहरसा एवं पश्चिमी चम्पारण आदि इलाके
में की जाती है।
भारत में कृषि की स्थिति सुधारने के लिए उसे उद्योग का दर्जा देने की जरूरत है। कृषकों
को व्यावसायिक फसलों तथा उद्योग आधारित कच्चे माल का उत्पादन करना चाहिए। इससे उनको
रहन-सहन का स्तर बढ़ेगा तथा आमदनी भी बढ़ेगी।
कृषकों को कृषि के लिए पारंपरिक खेती की बजाए वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
वैज्ञानिक पद्धति से उत्पादन में बढ़ोतरी होती है। उन्नत बीजों के प्रयोग से कम समय में अच्छी
खेती प्राप्त हो जाती है। उर्वरक का प्रयोग करने से भूमि पुनः उर्वर हो जाती है। कीटनाशी,
खरपतवारनाशी के प्रयोग से खेती को नष्ट होने से बचाया जा सकता है। आधुनिक यंत्रों की मदद .
से कृषि-कार्य समय पर पूरा हो जाता है एवं समय की भी बचत होती है।
अत: कृषि के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण काफी लाभदायक है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
1. दलहन फसल वाले पौधे की जड़ की गाँठ में पाया जाता है

(क) नाइट्रोजन स्थिरीकरण जीवाणु (ख) पोटाशियम स्थिरीकरण जीवाणु
(ग) फॉस्फेटी स्थिरीकरण जीवाणु (य) कोई नहीं
उत्तर-(क)
2. शाही लीची बिहार में मुख्यतः होता है

(क) हाजीपुर (ख) समस्तीपुर (ग) मुजफ्फरपुर (घ) सिवान उत्तर-(ग)
3. रबी फसल बोया जाता है

(क) जून-जुलाई (ख) मार्च-अप्रैल. (ग) नवम्बर (घ) सितम्बर-अक्टूबर उत्तर-(ग)
4. केला बिहार में मुख्यतः होता है

(क) समस्तीपुर (ख) हाजीपुर (ग) सहरसा (घ) मुजफ्फरपुर उत्तर-(ख)
5. चावल, बिहार के किस जिले में सबसे ज्यादा उत्पादन करता है?
(क) सिवान (ख) रोहतास (ग) सीतामढ़ी (घ) हाजीपुर उत्तर-(ख)
6. – गरमा फसल किस ऋतु में होता है?
(क) ग्रीष्म ऋतु , (खु) शरद ऋतु (ग) वर्षा ऋतु (घ) वसंत ऋतु उत्तर-(क)
7.रेशेदार फसल को चुनें
(क) आम
(ख) लीची
(ग) धान
(घ) कपास
उत्तर-(घ)
8.अगहनी फसल को चुने
(क) चावल
(ख) जुट
(ग) मूंग
(घ) गेहूँ
उत्तर-(क)

उपयुक्त शब्दों द्वारा रिक्त स्थानों की पूर्ति करें:

1.कपास एक……..फसल है। (रेशेदार)
2.मक्का………..फसल है। (खाद्य)
3.भारत एक………प्रधान देश है।(कृषि प्रधान)
4.भारत की………तिहाई जनसंख्या कृषि पर निर्भर है।(दो तिहाई)
5. एग्रिकल्चर लैटिन भाषा के दो शब्दों…….तथा……..से बना है।(एग्रोस, कल्चरा)
6. चावल सर्वाधिक………..जिला में उत्पन्न होता है।
उत्तर-रोहतास।
7. बिहार की कृषि गहन निर्वाहक प्रकार की है, जिसके अन्तर्गत वर्ष में ……………फसलें बोयी या काटी जाती हैं।
उत्तर-चार।
8. चावल के लिए………….जलवायु की आवश्यकता है।
उत्तर-ठष्णाई।
9.गेहूँ के लिए ………….मिट्टी चाहिए।
उत्तर-हल्की दोमट।
10. मकई के लिए……………..जलवायु की आवश्यकता है। उत्तर-गर्म एवं आई।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. भारत में मुख्यतः कितने प्रकार की कृषि होती है ?
उत्तर-भारत में मुख्यतः चार प्रकार की खेती होती है।
प्रश्न 2. रबी फसल और खरीफ फसल में क्या अंतर है ?
(१)रबी फसल
(२)खरीफ फसल
१(i) इनकी बुआई अक्टूबर-नवम्बर में तथा कटाई मार्च अप्रैल में होती है।
(ii) इनमें सिंचाई की अधिक आवश्यकता पड़ती है।
(iii) प्रमुख फसलों में गेहूँ, जौ, चना, मटर,सरसों, मसूर, खेसारी, अरहर इत्यादि प्रमुख हैं।
२(i) इनकी बुवाई मई-जून में तथा कटाई अगस्त सितंबर में होती है
(¡¡) इनमें सिंचाई की अधिक आवश्यकता नहीं होती
(¡¡¡) प्रमुख फसलों में मक्का, ज्वार ,बाजरा ,उड़द, सनई, मरवा प्रमुख हैं

प्रश्न 3. पादप-संकरण क्या है?
उत्तर-पादप संकरण एक वैज्ञानिक पद्धति है, जिसके तहत उच्च प्रकार के बीजों के किस्मों का विकास किया जाता है।

प्रश्न 4. मिश्रित खेती क्या है ?
उत्तर-खेती की वह विधि जिसमें एक ही समय में एक ही खेत में दो या तीन फसलें उगाई जाती हैं। इस विधि में एक ही समय में विभिन्न प्रकार के फसलों की खेती होती है।

प्रश्न 5. हरित क्रांति से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-1960 के दशक में हरित क्रांति की वजह से खाद्यान्न उत्पन्न में आशा से अधिक बढ़ोतरी हुई थी। इसमें कृषि के लिए उच्च वैज्ञानिक तकनीक का प्रयोग होता है। पादप द्वारा उच्च किस्म के बीजों का विकास का उनका प्रयोग करते हैं जिससे समय से पूर्व अच्छी फसल प्राप्त हो जाती है। उर्वरक, पीड़क-नाशी, खरपतवारनाशी, आदि का प्रयोग तथा विकसित सिंचाई और आधुनिक कृषि यंत्रों के प्रयोग से कृषि एक व्यवसाय के रूप में विकसित हुई।

प्रश्न 6. गहन खेती से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-जब सिंचाई करना संभव हो गया, तो किसानों ने उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग बड़े पैमाने पर करना शुरू किया। कृषि की विभिन्न प्रक्रियाओं को पूरा करने के लिए मशीनों का प्रयोग शुरू होने लगा। गहन खेती का अर्थ है एक ही खेत में अधिक फसल लगाना।

प्रश्न 7. झूम खेती से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-आदिवासी समाज पृथ्वी को अपनी माता के समान मानते हैं, और उस पर हल चलाना चाहते, इस लिए वे खेती करने के लिए एक विशेष प्रकार की विधि अपनाते हैं, जिसे झूम खेती कहते हैं। इसके अंतर्गत वे वर्षा का मौसम आने से पहले जंगलों में आग देते थे, और
उसके राख पर बीज छिड़क देते थे। वर्षा होने पर उस बीज में से पौधे निकलने लगते थे।

प्रश्न 8. फसल चक्र के बारे में लिखें।
उत्तर-एक ही जमीन पर हमेशा एक ही फसल उगाने से उस खेत की उर्वरा-शक्ति कम होने लगती है। इसलिए, दो खाद्यान्न फसलों को उगाने के बीच में एक दलहन फसल उगाई जाती है, जिससे खेत की उर्वरा-शक्ति बनी रहती है। इस विधि को फसल चक्र कहते हैं।दो खाद्यान्न फसलों के बीच दलहन फसलें इसलिए लगायी जाती हैं, क्योंकि दलहन फसली के जड़ों की गाँठ में नाइट्रोजन स्थिरीकरण जीवाणु पाए जाते हैं, जो वातावरण के नाइट्रोजन का स्थिरीकृत करके भूमि की उर्वरा-शक्ति बढ़ाते हैं।

प्रश्न 9. रोपण या बगानी खेती से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-19वीं शताब्दी में अंग्रेजों ने एक प्रकार की कृषि की शुरुआत की थी, जिसे रोपण कृषि कहते हैं। यह एक विशेष प्रकार की झाड़ी कृषि अथवा वृक्ष कृषि है। यह एकल फसल कृषि है। इस खेती में रबड़, चाय, कहवा, कोको, मसाले, नारियल और फलों में सेब, अंगूर, संतरा आदि की खेती की जाती है। इस प्रकार की खेती करने के लिए अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है। इस प्रकार की खेती भारत की उत्तर-पूर्वी पर्वतीय क्षेत्रों में, पश्चिम बंगाल के उप हिमालयी क्षेत्रों
तथा प्रायद्वीपीय भारत के नीलगिरी, अन्नामलाई व इलायची की पहाड़ियों में की जाती है।

प्रश्न 10. वर्तमान समय में ग्रामीण अर्थव्यवस्था में परिवर्तन के उपाय बतावें।
उत्तर-वर्तमान समय में ग्रामीण अर्थव्यवस्था में परिवर्तन के लिए ग्रामीणों को आधुनिक कृषि का प्रयोग करना चाहिए। वैसी फसलों का उत्पादन होना चाहिए जिससे अधिक आमदनी हो। कृषकों के आर्थिक लाभ के लिए सरकार को ऋण मुहैया करवाना चाहिए तथा बीमा के द्वारा फसल उत्पादन को संरक्षण भी प्रदान करना चाहिए। इससे उत्पादन की बढ़ोतरी होती है तथा लोगों को रोजगार भी मिलता है।

(दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर)
प्रश्न 1. भारत एक कृषि प्रधान देश है, कैसे ?
उत्तर-भारत एक कृषि प्रधान देश है, और भारतीय समाज एक कृषक समाज है। कृषि को भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ कही जाती है। क्योंकि भारत के कुल राष्ट्रीय आय का लगभग 35% कृषि से प्राप्त होता है। भारत के कुल आबादी का 23 हिस्सा कृषि पर निर्भर है। विश्व की 11% भूमि कृषि योग्य है वहीं भारत की 51% भूमि कृषि योग्य है। भारत के पास विशाल स्थल भू-भाग हैं जो उच्च गुणवत्ता की भूमि पाई जाती है।
अत: भारतीय समाज एक खेतिहर समाज है।

प्रश्न 2. कृषि में वैज्ञानिक दृष्टिकोण लाभदायक है। कैसे ?
उत्तर-कृषि में वैज्ञानिक दृष्टिकोण लाभदायक है, पारंपरिक खेती से किसानों की उपज अच्छी नहीं होती। एक ही बीज के बार-बार प्रयोग से बीज की गुणवत्ता क्षीण हो जाती है। वहीं एक ही प्रकार की फसल बार-बार लगाने से मृदा की उर्वरा-शक्ति भी घट जाती है। सिंचाई के लिए वर्षा पर निर्भरता के कारण अतिवृष्टि या अनावृष्टि से फसल नष्ट हो जाती थी।
वही वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने से उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है। उन्नत बीजों के प्रयोग से कम समय में ही अच्छी फसल प्राप्त होती है। उर्वरक के प्रयोग से मिट्टी की उत्पादन क्षमता बनी रहती है। कीटनाशी तथा खरपतवारनाशी के प्रयोग से फसल को नष्ट होने से बचाया जा सकता है। सिंचाई के तरह-तरह के साधनों के प्रयोग से पौधों में नमी बनी रहती है। आधुनिक यंत्रों के कारण कृषि-कार्य संभव हो पाता है और समय की बचत भी होती है।

प्रश्न 3. “बिहार में कृषि मानसून के साथ जुआ है।” कैसे ?
उत्तर-बिहार में कृषि में सिंचाई के लिए वर्षा पर निर्भर रहना पड़ता है। यदि अनावृष्टि हुई तो सूखे की स्थिति हो सकती है और यदि अतिवृष्टि हुई तो बाढ़ से भी फसल तबाह हो सकती है। अर्थात् कृषक अंतिम समय तक अपने उत्पादन को लेकर अनिश्चित रहते हैं।
सिंचाई के लिए वर्षा पर इसी निर्भरता के कारण कहा जाता है कि बिहार में कृषि मानसून है।

प्रश्न 4. कृषि सामाजिक परिवर्तन का माध्यम हो सकता है। कैसे?
उत्तर-वैज्ञानिक विधियों को अपनाने से कृषि के उत्पादन में वृद्धि होती है। कृषि के अधिशेष तथा उद्योग आधारित कच्चे माल की अत्यधिक उत्पादन से कृषकों की अर्थव्यवस्था सुद्ध होगी। अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होने से उनके रहन-सहन का स्तर बढ़ेगा। लोग उच्च शिक्षा की और अग्रसर होंगे। आमदनी बढ़ने से लोग यंत्रीकृत खेती की शुरुआत करेंगे।
इस प्रकार कृषि सामाजिक परिवर्तन का माध्यम हो सकता हैं।

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