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 bseb class 10th biology notes | जैव प्रक्रम

bseb class 10th biology notes | जैव प्रक्रम

जैव प्रक्रम
                                         पाठगत प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. हमारे जैसे बहुकोशिकीय जीवों में ऑक्सीजन की आवश्यकता पूरी करने में
विसरण क्यों अपर्याप्त है ?
उत्तर-बहुकोशिकीय जीवों में समस्त कोशिकाएँ वातावरण से सीधे सम्पर्क में नहीं होतीं।
अतः सरल विसरण समस्त कोशिकाओं की आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकता है ।
प्रश्न 2. कोई वस्तु सजीव है इसका निर्धारण करने के लिए हम किस मापदंड का
उपयोग करेंगे?
उत्तर-सजीवों का अपनी संरचनाओं की मरम्मत एवं रखरखाव करना आवश्यक है। ये
समस्त संरचनाएँ अणुओं से मिलकर बनी हैं। इसलिए इनमें हर समय अणुओं को गतिशील रखने
की क्षमता होनी चाहिए । अतः अदृश्य अणुगति जीव के जीवित होने का प्रमाण है।
प्रश्न 3. किसी जीव द्वारा किन कच्ची सामग्रियों का उपयोग किया जाता है?
उत्तर-(i) भोजन-ऊर्जा एवं पदार्थों के स्रोत के रूप में ।
(ii) ऑक्सीजन-भोजन पदार्थों का विखण्डन करके ऊर्जा प्राप्त करने के लिए ।
(iii) जल-भोजन के सही पाचन के लिए तथा शरीर के अन्दर अन्य जैविक प्रक्रियाओं के लिए।
प्रश्न 4. जीवन के अनुरक्षण के लिए आप किन प्रक्रमों को आवश्यक मानेंगे?
उत्तर-अनेक जैव प्रक्रम हैं जो जीवन के अनुरक्षण के लिए आवश्यक हैं। उनमें से कुछ
हैं : (1) पोषण, (ii) श्वसन, (iii) उत्सर्जन, (iv) वहन ।
                                    क्रियाकलाप 6.1
• गमले में लगा एक शबलित पत्ती वाला पौधा लीजिए (उदाहरण के लिए मनीप्लांट या
क्रोटन का पौधा)
• पौधे को तीन दिन अंधेरे कमरे में रखिए ताकि उसका संपूर्ण मंड प्रयुक्त हो जाएं ।
• अब पौधे को लगभग छ: घंटे के लिए सूर्य के प्रकाश में रखिए ।
• पौधे से एक पत्ती तोड़ लीजिए । इसमें हरे भाग को अंकित करिए तथा उन्हें एक कागज
   पर ट्रेस कर लीजिए।
• कुछ मिनट के लिए इस पत्ती को उबलते पानी में डाल दीजिए।
• इसके बाद इसे ऐल्कोहल से भरे बीकर में डुबा दीजिए।
• इस बीकर को सावधानी से जल ऊष्मक में रखकर तब तक गर्म करिए जब तक
ऐल्कोहल उबलने न लगे ।
चित्र 6.1 शबलित पत्ती, (a) मंड परीक्षण से पहले, (b) मंड परीक्षण के बाद
प्रश्न 1. पत्ती के रंग का क्या होता है ? विलयन का रंग कैसा हो जाता है ?
उत्तर-पत्ती का रंग उड़ जाता है तथा यह रंगरहित हो जाती है, क्योंकि क्लोरोफिल एलकोट
में घुल जाता है। घोल का रंग हरा हो जाता है।
• अब कुछ मिनट के लिए इस पत्ती को आयोडीन के तनु विलयन में डाल दीजिए,
• पत्ती को बाहर निकालकर उसके आयोडीन को धो डालिए ।
• पत्ती के रंग का अवलोकन कीजिए और प्रारम्भ में पत्ती का जो ट्रेस किया था उस
इसकी तुलना कीजिए (चित्र 6.1) ।
प्रश्न 2. पत्ती के विभिन्न भागों में मंड की उपस्थिति के बारे में आप क्या निष्का
निकालते हैं?
उत्तर-पत्ती के वे क्षेत्र जो गहरे नीले-काले आयोडीन घोल के कारण हो गए हैं, स्टाचं का
उपस्थिति दर्शा रहे हैं, जबकि वे क्षेत्र जो रंगरहित रह गए हैं, यह दर्शा रहे हैं कि वहाँ स्टार्च निर्माण नहीं हुआ है । यह क्रियाकलाप यह संकेत दे रहा है कि प्रकाश संश्लेषण के लिए क्लोरोफिल आवश्यक है।
                                     क्रियाकलाप 6.2
• लगभग समान आकार के गमले में लगे पौधे लीजिए ।
• तीन दिन तक उन्हें अंधेरे कमरे में रखिए ।
• अब प्रत्येक पौधे को अलग-अलग काँच-पट्टिका पर रखिए । एक पौधे के पास वाच
ग्लास में पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड का उपयोग कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित
करने के लिए किया जाता है ।
• चित्र 6.2 के अनुसार दोनों पौधों को अलग-अलग बेलजार से ढक दीजिए।
• जार के तले को सील करने के लिए काँच-पट्टिका पर वैसलीन लगा देते हैं इससे प्रयोग
  वाधुरोधी हो जाता है।
• लगभग दो घंटों के लिए पौधों को सूर्य के प्रकाश में रखिए ।
• प्रत्येक पौधे से एक पत्ती तोड़िए तथा उपरोक्त क्रियाकलाप की तरह उसमें मंड की
उपस्थिति की जाँच कीजिए।
चित्र 6.2 प्रायोगिक व्यवस्था, (a) पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड के साथ
                    (b) पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड के बिना
प्रश्न 1. क्या दोनों पत्तियाँ समान मात्रा में मंड की उपस्थिति दर्शाती हैं ?
उत्तर-नहीं, दोनों पत्तियाँ स्टार्च की एक ही मात्रा नहीं दर्शाती हैं, क्योंकि दोनों को ही एक
सेटअप में KOH की उपस्थिति के कारण CO2 की भिन्न-भिन्न मात्रा प्राप्त होती है ।
प्रश्न 2. इस क्रियाकलाप से आप क्या निष्कर्ष निकालते हैं ?
उत्तर-यह क्रियाकलाप दर्शाता है कि प्रकाश संश्लेषण के लिए CO2 की मात्रा एक
आवश्यक घटक है।
                                   क्रियाकलाप 6.3
• 1 mL मंड का घोल (1%) दो परखनलियों ‘A’ तथा ‘B’ में लीजिए ।
• परखनली ‘A’ में Iml. लार डालिए तथा दोनों परखनलियों को 20-30 मिनट तक शांत
छोड़ दीजिए।
• अब प्रत्येक परखनली में कुछ बूंदें तनु आयोडीन घोल को डालिए ।
प्रश्न 1. किस परखनली में आपको रंग में परिवर्तन दिखाई दे रहा है ?
उत्तर-परखनली B में रंग बदल गया, क्योंकि इसमें केवल स्टार्च हैं परखनली A में स्टार्च
शर्करा में परिवर्तित हो गया, अत: रंग में कोई परिवर्तन नहीं देखा गया ।
प्रश्न 2. दोनों परखनलियों में मंड की उपस्थिति के बारे में यह क्या इंगित करता है?
उत्तर-यह दर्शाता है कि परखनली B में स्टार्च है, जबकि परखनली A में स्टार्च नहीं है।
प्रश्न 3. यह लार की मंड पर क्रिया के बारे में क्या दर्शाता है ?
उत्तर-यह हमें बताता है कि लार स्टार्च पर क्रिया करते हुए स्टार्च को दूसरे पदार्थ (मालटोज
शर्करा) में परिवर्तित कर देती है।
                                        पाठगत प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. स्वपोषी पोषण तथा विषमपोषी पोषण में क्या अन्तर है ?
उत्तर-स्वपोषी पोषण― जब हरे पादप अपना भोजन क्लोरोफिल तथा सूर्य प्रकाश की
उपस्थिति में CO2 तथा जल का उपयोग करते हुए स्वयं निर्मित करते हैं, तब वे स्वपोषी कहलाते हैं। इस क्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहते हैं।
विषमपोषी पोषण―जब जीव अपना भोजन स्वयं नहीं बनाते हैं, बल्कि अपने भोजन के लिए
दूसरे जीवों पर निर्भर होते हैं, तब वे विषमपोषी कहलाते हैं । उदाहरण के लिए, कवक तथा मानव।
प्रश्न 2. पादप, प्रकाश-संश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री को कहाँ से प्राप्त
करता है?
उत्तर-(i) कार्बन डाइऑक्साइड―पादप वातावरण से CO2 रंध्रों द्वारा प्राप्त करते हैं।
(ii) जल―पादप, जड़ों द्वारा जल का अवशोषण मृदा में से करते हैं तथा पत्तियों तक इसका
परिवहन करते हैं।
प्रश्न 3. हमारे आमाशय में अम्ल की भूमिका क्या है ?
उत्तर-(i) यह आमाशय में अम्लीय माध्यम उत्पन्न कर देता है, जो पेपसिन एन्जाइम की
क्रियाशीलता के लिए आवश्यक है।
(ii) यह भोजन में उपस्थित जीवाणुओं को नष्ट कर देता है
प्रश्न 4. पाचक एंजाइमों का क्या कार्य है ?
उत्तर―भोजन पदार्थ प्राकृतिक रूप से जटिल होते हैं । पाचन एंजाइम जटिल अणुओं को
छोटे तथा सरल अणुओं में परिवर्तित कर देते हैं, जिससे कि वे क्षुद्रांत्र की भित्ती द्वारा अवशोषित
किए जा सकें।
प्रश्न 5. पचे हुए भोजन को अवशोषित करने के लिए क्षुद्रांत्र को कैसे अभिकल्पित
किया गया है?
उत्तर-पाचित भोजन का अवशोषण क्षुद्रांत्र में होता है । क्षुद्रांत्र की संरचना इस प्रकार से
है कि कुल सतही क्षेत्रफल अत्यधिक बढ़ जाता है, जिससे अवशोषण का क्षेत्र भी बढ़ जाता है।
अतः पाचित भोजन अधिक मात्रा में अवशोषित होकर रक्त में पहुँचता है और फिर इसका वहन
सारे शरीर में होता है । क्षुद्रांत्र को अन्दरूनी भित्ती में बहुत बड़ी संख्या में अंगुलियों के समान
दीर्घरोम होती हैं । ये दीर्घरोम भोजन के अवशोषण के लिए एक बड़ा क्षेत्र प्रदान करती हैं।
                                          क्रियाकलाप 6.4
प्रश्न 1. एक परखनली में ताजा तैयार किया हुआ चूने का पानी लीजिए । इस चूने
के पानी में निःश्वास द्वारा निकली वायु प्रवाहित कीजिए [चित्र 6.4(a)] । नोट कीजिए कि
चूने के पानी को दूधिया होने में कितना समय लगता है।
चित्र 6.4 (a) चूने के पानी में वायु पिचकारी/सिरिंज द्वारा प्रवाहित की जा रही है ।
(b) चूने के पानी में वायु निःश्वास द्वारा प्रवाहित हो रही है।
उत्तर-छात्र स्वयं समय नोट करेंगे ।
प्रश्न 2. एक सिरिंज या पिचकारी द्वारा दूसरी परखनली में ताजा चूने का पानी लेकर
वायु प्रवाहित करते हैं । [चित्र 6.4 (b)] । नोट कीजिए कि इस बार चूने के पानी को
दूधिया होने में कितना समय लगता है।
उत्तर-छात्र स्वयं समय नोट करेंगे।
प्रश्न 3. निःश्वास द्वारा निकली वायु में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा के बारे में यह
हमें क्या दर्शाता है ?
उत्तर-पहली स्थिति में चूने का पानी [चित्र 6.4 (a)] दूधिया होने में ज्यादा समय लेता है
बनिस्बत दूसरी स्थिति [चित्र 6.4 (b)] में यह दर्शाता है कि बाह्य श्वसन वाली वायु में सामान्य
वायु की तुलना में अधिक CO2 है । इसलिए बाह्य श्वसन वायु सामान्य वायु की तुलना में चूने
के पानी को जल्दी दूधिया कर देती है। अतः बाह्य श्वसनीय वायु में अधिक CO2 है ।
                                     क्रियाकलाप 6.5
• किसी फल का रस या चीनी का घोल मेफर उसमें कुछ यीस्ट डालिए । एक छिद्र
वाली कॉर्क लगी परखनली में इस मिश्रण को ले लीजिए ।
• कॉर्क में मुड़ी हुई काँच की नली लगाइए । काँच की नली के स्वतंत्र सिरे को ताजा
तैयार चूने के पानी वाली परखनली में ले जाइए।
• चूने के पानी में होने वाले परिवर्तन को तथा इस परिवर्तन में लगने वाले समय के
अवलोकन को नोट कीजिए।
प्रश्न 1. किण्वन के उत्पाद के बारे में यह हमें क्या दर्शाता है ?
उत्तर-यह हमें बताता है कि अन्य उत्पादों (ऐल्कोहल) के साथ CO2 भी एक उत्पाद है।
                                          क्रियाकलाप 6.6
प्रश्न 1. एक जलशाला में मछली का अवलोकन कीजिए। वे अपना मुंह खोलती और
बन्द करती रहती है, साथ ही आँखों के पीछे क्लोमछिद्र (या क्लोमछिद्र को ढकने वाला
प्रच्छद) भी खुलता और बन्द होता रहता है । क्या मुंह और क्लोमछिद्र के खुलने और बन्द
होने के समय में किसी प्रकार का समन्वय है ?
उत्तर-हाँ, वे बारी-बारी से खुलते तथा बन्द होते हैं ।
प्रश्न 2. गिनती कर कि मछली एक मिनट में कितनी बार मुंँह खोलती और बन्द
करती है।
उत्तर-मुंँह का खोलना तथा बन्द होना अलग-अलग मछलियों में तथा विभिन्न प्रकार की
मछलियों में भिन्न-भिन्न होता है। छात्रों को सलाह दी जाती है कि यह वह स्वयं, करें।
प्रश्न 3. इसकी तुलना आप अपनी श्वास को एक मिनट में अन्दर और बाहर करने
से कीजिए।
उत्तर-मछली हमारी तुलना में अधिक तेज श्वसन करती है क्योंकि वायु की तुलना में पानी
में कम ऑक्सीजन होती है।
                                      पाठगत प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. श्वसन के लिए ऑक्सीजन प्राप्त करने की दिशा में एक जलीय जीव की
अपेक्षा स्थलीय जीव किस प्रकार लाभप्रद हैं ?
उत्तर-जो जीव पानी में रहता है, वह अपने चारों ओर पानी में घुला ऑक्सीजन का प्रयोग
करता है । चूँकि पानी में घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम होती है, अत: जलीय जीव
में श्वसन दर अधिक होती है। थलीय जीव, पर्याप्त ऑक्सीजन वाले वातावरण से श्वसन अंगों
द्वारा ऑक्सीजन लेते हैं । अतः जलीय जीवों की तुलना में थलीय जीवों की श्वसन दर काफी
कम होती है।
प्रश्न 2. ग्लूकोज के ऑक्सीकरण से भिन्न जीवों में ऊर्जा प्राप्त करने के विभिन्न पथ
क्या हैं?
उत्तर-ग्लूकोज (छ: कार्बन अणु) विखण्डन का पहला चरण जीवों की कोशिकाओं के
कोशिकाद्रव्य में होता है। यह क्रिया तीन कार्बन अणु यौगिक बनाती है जिसे पायरुवेट कहते है।
पायरुवेट का आगे का विखण्डन विभिन्न जीवों में भिन्न-भिन्न तरीकों से होता है ।
(i) अवायवीय श्वसन-यह क्रिया ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होती है। उदाहरण, योर
में किण्वन के दौरान इस स्थिति में पायरुवेट इथेनॉल तथा CO2 में परिवर्तित हो जाता है
(ii) वायवीय श्वसन-वायवीय श्वसन में पायस्वेट का विखण्डन ऑक्सीजन की उपस्थिति
में होता है । फलस्वरूप CO2 के तीन अणु तथा जल उत्पन्न होता है । वायवीय श्वसन में मुक्त
ऊर्जा अवायवीय श्वसन की तुलना में कहीं अधिक होती है।
(ii) ऑक्सीजन की कमी―कभी-कभी खासकर अत्यधिक व्यायाम के दौरान, जब ऑक्सीजन
की कमी हो जाती है, तब हमारी पेशियों में पायरुवेट, लक्टिक अम्ल (तीन कार्बन अणु यौगिक)
में परिवर्तित हो जाता है। मांसपेशियों में लक्टिक अम्ल के बनने से क्रेम्प होने लगते हैं।
चित्र 65 कोशकीय श्वसन के दौरान ग्लूकोज विखण्डन के विभिन्न मार्ग
प्रश्न 3. मनुष्यों में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन कैसे होता है?
उत्तर-(a) ऑक्सीजन वहन-श्वसन रंजक (हीमोग्लोबिन), जो लाल रक्त कोशिकाओं में
होता है, फेफड़ों में पहुंची हुई वायु में से ऑक्सीजन लेता है। वे ऑक्सीजन को उन ऊतकों तक
ले जाते हैं जहाँ ऑक्सीजन की कमी है।
(b) कार्बन डाइऑक्साइड वहन-कार्बन डाइऑक्साइड जल में अधिक घुलनशील है ।
इसलिए इसका हमारे शरीर में ऊतकों से फेफड़ों तक हमारे रक्त के प्लाज्मा में घुले हुए रूप
में वहन होता है, जहाँ से इसका विसरण रक्त से वायु में होता है और फिर यह नासाद्वारों के
मार्ग से बाहर चली जाती है।
प्रश्न 4. गैसों के विनिमय के लिए मानव-फुफ्फुस में अधिकतम क्षेत्रफल को कैसे
अभिकल्पित किया है?
उत्तर-फेफड़ों (फुफ्फुस) के अन्दर मार्ग में छोटी-छोटी नलिकाओं में विभाजित होता है
जिसे श्वसनी कहते हैं । यह आगे श्वसनिकाओं में विभाजित हो जाती है । श्वसनिकाएँ, जिनका
अन्तिम सिरा गुब्बारे के समान संरचना का होता है, कूपिकाएँ कहलाती हैं । फेफड़ों में स्थापित
ये कूपिकाएँ गैसों के आदान-प्रदान के क्षेत्र को अत्यधिक विस्तृत कर देती हैं । कूपिकाओं की
भित्ति बहुत पतली होती है तथा इनमें अत्यधिक संख्या में रक्त वाहिकाएँ होती हैं, जिसके कारण
गैसों का आदान-प्रदान सुविधापूर्वक हो जाता है।
                                      क्रियाकलाप 6.7
प्रश्न 1. अपने आसपास के एक स्वास्थ्य केन्द्र का भ्रमण कीजिए और ज्ञात कीजिए
कि मनुष्यों में हीमोग्लोबिन की मात्रा का सामान्य परिसर क्या है ?
उत्तर-पुरुष = 13.8 से 17.2 g/dl
        महिला = 12.1 से 15.1g/dl
प्रश्न 2. क्या यह बच्चे और वयस्क के लिए समान है ?
उत्तर-नहीं । बच्चों में 11 से 16 g/dl होता है ।
प्रश्न 3. क्या पुरुष और महिलाओं के हीमोग्लोबिन स्तर में कोई अन्तर है ?
उत्तर-हाँ । प्रश्न 1 का उत्तर देखें।
प्रश्न 4. अपने आसपास के एक पशुचिकित्सा क्लीनिक का भ्रमण कीजिए । ज्ञात
कीजिए कि पशुओं, जैसे भैंस या गाय में हीमोग्लोबिन की मात्रा का सामान्य परिसर
क्या है?
उत्तर-10.4 से 16.4 g/dl
प्रश्न 5. क्या यह मात्रा बछड़ों में, नर तथा मादा जन्तुओं में समान है ?
उत्तर-नहीं, बछड़ों में अधिक होता है ।
प्रश्न 6. नर तथा मादा मानव में व जन्तुओं में दिखाई देने वाले अंतर की तुलना कीजिए।
उत्तर-हीमोग्लोबिन की मात्रा निम्नानुसार है-
पुरुष = 13.8 से 17.2g/dl
महिला = 12.1 से 15.1 g/dl
बच्चे  =11 से 16g/dl
मवेशी = 10.4 से 16.4g/dl
प्रश्न 7. यदि कोई अन्तर है तो उसे कैसे समझायेंगे?
उत्तर-क्योंकि शरीर में O2 तथा CO2 के परिवहन के लिए हीमोग्लोबिन आवश्यक है। पुरुष,
महिलाओं व बच्चों से अधिक परिश्रम करता है। कार्यों की प्रकृति व विविधता के कारण ही
इनमें महिलाओं, बच्चों व मवेशियों की अपेक्षा हीमोग्लोबिन की मात्रा अधिक होती है।
                                        क्रियाकलाप 6.8
• लगभग एक ही आकार के तथा बराबर मृदा वाले दो गमले लीजिए । एक में पौधा
लगा दीजिए तथा दूसरे गमले में पौधे की ऊंचाई की एक छड़ी लगा दीजिए ।
• दोनों गमलों की मिट्टी प्लास्टिक की शीट से ढक दीजिए जिसमें नमी का वाष्पन-न
हो सके।
• दोनों गमलों को, एक को पौधे के साथ तथा दूसरे को छड़ी के साथ, प्लास्टिक शीट
से ढक दीजिए।
प्रश्न-क्या आप दोनों में कोई अन्तर देखते हैं ?
उत्तर-हाँ । जिस गमले में पौधा है, उसकी प्लास्टिक की चादर में पानी की बूंदें नजर आ
रही हैं। वाष्पोत्सर्जन की क्रिया में जो जल वाष्प बनकर उड़ रही है, बूंदों के रूप में नजर आ
रही है जबकि दूसरे गमले में जिसमें लकड़ी है, पानी की बूंदें नजर नहीं आ रही हैं।
                                           पाठगत प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. मानव में वहन तंत्र के घटक कौन से हैं ? इन घटकों के क्या कार्य हैं ?
उत्तर-मनुष्य के वहन तंत्र में हृदय, रुधिर तथा रुधिर वाहिकाएँ होती हैं।
कार्य : (i) हृदय-हृदय एक पम्पिंग अंग है जो शरीर में रुधिर को प्रवाहित करता है। ये
विऑक्सीजनित रुधिर शरीर के विभिन हिस्सों से प्राप्त करता है तथा ये ऑक्सीजनित रुधिर समस्त शरीर में पंप करती है।
(ii) रुधिर-यह तरल संयोजी ऊतक है। इसमें होते हैं-(a) प्लाज्मा, (b) लाल रक्त कणिका,
(c) श्वेत रक्त कणिका तथा (d) रुधिर प्लेटलेट्स ।
प्लाज्मा घुले रूप में भोजन CO2 तथा नाइट्रोजन युक्त उत्सर्जन पदार्थों का परिवहन करता
है। लाल रक्त कणिकाएँ श्वसन गैसों तथा हॉरमोनों का परिवहन करती हैं। श्वेत रक्त कणिकाएँ
शरीर की रक्षा संक्रमणों से करती हैं तथा प्लेटलेट्स घायल अवस्था में रुधिर हानि को रुधिर
का थक्का बना कर रोकती हैं।
(iii) रुधिर वाहिकाएँ-रुधिर वाहिकाओं का एक जाल होता है । वे समस्त शरीर में रुधिर
के परिवहन में सहायता करती हैं।
प्रश्न 2. स्तनधारी तथा पक्षियों में ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रुधिर को अलग
करना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर-शरीर में ऑक्सीजन की सप्लाई प्रभावी तरह से रखने के लिए ऑक्सीजनित तथा
विऑक्सीजनित रुधिर को अलग-अलग रखना आवश्यक है । यह तंत्र उन जन्तुओं के लिए
आवश्यक है जिनको ऊर्जा की आवश्यकता अधिक है। स्तनधारियों तथा पक्षियों में ऊर्जा प्राप्त
करने हेतु ऑक्सीजन की निरन्तर सप्लाई आवश्यक है।
प्रश्न 3. उच्च संगठित पादप में वहन तंत्र के घटक क्या हैं ?
उत्तर-पादपों में परिवहन तंत्र के प्रमुख घटक हैं-
(i) जाइलम, (ii) फ्लोएम ।
(i) जाइलम-इसमें वाहिकाएँ तथा वाहिनिकाएँ होती हैं । जाइलम जल तथा लवणों को
मृदा से पत्तियों तक परिवहित करने में मदद करते हैं।
(ii) फ्लोएम-इसमें चालनी कोशिकाएँ तथा सहचर कोशिकाएँ होती हैं। फ्लोएम, भोजन
पदार्थों को पत्तियों से पादप के विभिन्न हिस्सों में परिवहित करने में मदद करते हैं। इस क्रिया
को स्थानान्तरण कहते हैं।
प्रश्न 4. पादप में जल और खनिज लवण का वहन कैसे होता है ?
उत्तर-जल तथा लवण, मृदा से
पृत्तियों तक जाइलम कोशिकाओं द्वारा
परिवहित होते हैं। जड़, तने तथा पत्तियों
की जाइलम कोशिकाएँ परस्पर जुड़कर
संयोजी-मार्ग बनाते हैं । जड़ों की कोशिकाएँ
मृदा से लवण लेती हैं। ये मृदा तथा जड़
के लवणों की सान्द्रता में फर्क उत्पन्न
कर देता है । इसलिए जल की निरन्तर
गति जाइलम में होती रहती है। एक
परासरण दबाव उत्पन्न होता है और जल
व लवण एक कोशिका से दूसरी कोशिका
में परासरण के कारण परिवहित होते
रहते हैं। वाष्पोत्सर्जन के कारण जल की
निरन्तर हानि होती रहती है तथा चूषण
बल उत्पन्न होता है जिससे जल तथा
लवणों की निरन्तर गति होती रहती है
और जल तथा लवणों का परिवहन होता
चित्र 6.6 पादप में वाष्पोत्सर्जन के दौरान जल की गति
रहता है।
प्रश्न 5. पादप में भोजन का स्थानान्तरण कैसे होता है ?
उत्तर-पादपों में निर्मित भोजन फ्लोएम द्वारा भण्डारण अंगों जैसे जड़, फल, बीज तथा
विकासशील हिस्सों में परिवहित होता है । इस क्रिया को स्थानान्तरण कहते हैं । यह कार्य चालनी कोशिकाओं तथा सहचर कोशिकाओं द्वारा सम्पन्न होता है। भोजन कणों का परिवहन ऊपर तथा नीचे दोनों दिशाओं में होता है।
     स्थानान्तरण की क्रिया एक सक्रिय क्रिया है जिसमें ऊर्जा का प्रयोग होता है । पदार्थों का
स्थानान्तरण पत्ती की कोशिकाओं या भण्डारण के स्थान से फ्लोएम ऊतक में होता है । इसके
लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है जो ए. टी. पी. (ATP) अणु से प्राप्त होती है । यह ऊर्जा
परासरण दाब बढ़ाता है, परिणामस्वरूप जल बाहर से फ्लोएम के अन्दर गति करता है । यह क्रिया भोजन का परिवहन पादपों के समस्त हिस्सों में कायम रखती है।
                                       पाठगत प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. वृक्काणु (नेफरॉन) की संरचना तथा क्रियाविधि का वर्णन कीजिए ।
उत्तर-वृक्काणु की
संरचना-वृक्काणु गुर्दे की
संरचनात्मक इकाई है । इसमें
एक नलिका होती है जो एक
ओर संग्राहक वाहिनी से जुड़ी
रहती है तथा एक कप की आकृति
की संरचना से दूसरी ओर ।
इस कप की आकृति की
संरचना को बोमेन संपुट कहते
हैं। प्रत्येक बोमेन संपुट में
कोशिकाओं के गुच्छे कप के
अन्दर होते हैं जिसे कोशिका
गुच्छ (ग्लोमेरुलस) कहते हैं।
कोशिका में रुधिर एफरेंट
धमनी द्वारा प्रवेश करता है तथा
इफरेंट धमनी द्वारा बाहर निकलता
है।
                                                        चित्र 6.7 नेफरॉन की संरचना
नेफरॉन के कार्य-
(i) छानना-रुधिर, बोमेन संपुट के अन्दर कोशिका गुच्छ की कोशिकाओं द्वारा छाना जाता
है। निस्पंद वृक्काणु के नलिकाकार हिस्सों से गुजरता है । इस निस्पंद में ग्लूकोज, अमीनो अम्ल,
यूरिया, यूरिक अम्ल, लवण तथा जल की अत्यधिक मात्रा होती है ।
(ii) पुनः अवशोषण-जैसे-जैसे निस्पंद नलिका में बहता जाता है, वैसे-वैसे लाभप्रद पदार्थ
जैसे ग्लूकोज, अमीनो अम्ल, लवण तथा जल, विशेष रूप से वृक्काणु को घेरती हुई रुधिर
कोशिकाओं द्वारा अवशोषित कर दिया जाता है। पानी की कितनी मात्रा का पुनः अवशोषण हो,
यह इस बात पर निर्भर करता है कि शरीर को कितने पानी की आवश्यकता है तथा उस उत्सर्जक पदार्थ की मात्रा क्या है जिसका उत्सर्जन होना है।
(iii) मूत्र-पुनः अवशोषण के पश्चात् जो निस्पंद बचता है, उसे मूत्र कहते हैं। मूत्र में घुले
हुए नाइट्रोजनयुक्त उत्सर्जक, जैसे यूरिया, यूरिक अम्ल, अतिरिक्त लवण तथा पानी होता है।
मूत्र कलेक्टिंग डक्टा द्वारा वृक्काणु से एकत्रित हाती है और फिर यूरेटर में ले जाई जाती है।
प्रश्न 2. उत्सर्जी उत्पाद से छुटकारा पाने के लिए पादप किन विधियों का उपयोग
करते हैं?
उत्तर-उत्सर्जक पदार्थों से मुक्ति पाने के लिए पादप निम्नलिखित तरीकों का प्रयोग करते हैं।
(i) अनेक उत्सर्जक उत्पाद कोशिकाओं के धानियों में भण्डारित रहते हैं। पादप कोशिकाओं
में तुलनात्मक रूप से बड़ी धानियाँ होती हैं।
(ii) कुछ उत्सर्जक उत्पाद पत्तियों में भण्डारित रहते हैं । पत्तियों के गिरने के साथ ये हर
जाते हैं
(iii) कुछ उत्सर्जक उत्पाद जैसे-रेजिन या गम, विशेष रूप से निष्क्रिय पुराने जाइलम में
भण्डारित रहते हैं।
(iv) कुछ उत्सर्जक उत्पाद, जैसे टेनिन, रेजिन, गम छाल में भण्डारित रहते हैं । छाल के
उतरने के साथ हट जाते हैं।
(v) पादप कुछ उत्सर्जक पदार्थों का उत्सर्जन जड़ों के द्वारा मृदा में भी करते हैं।
प्रश्न 3. मूत्र बनने की मात्रा का नियम किस प्रकार होता है ?
उत्तर-मूत्र की मात्रा पानी के पुनः अवशोषण पर प्रमुख रूप से निर्भर करती है । वृक्काणु
नलिका द्वारा पानी की मात्रा का पुनः अवशोषण निम्नलिखित पर निर्भर करता है:
(i) शरीर में अतिरिक्त पानी की कितनी मात्रा है जिसको निकालना है।
जब शरीर के ऊतकों में पर्याप्त जल है, तब एक बड़ी मात्रा में तनु मूत्र का उत्सर्जन होता
है । जब शरीर के ऊतकों में जल की मात्रा कम है, तब सांद्र मूत्र की थोड़ी-सी मात्रा उत्सर्जित
होती है।
(ii) कितने घुलनशील उत्सर्जक, विशेषकर नाइट्रोजनयुक्त उत्सर्जक जैसे यूरिया, यूरिक अम्ल
तथा लवण आदि का शरीर से उत्सर्जन होता है।
जब शरीर में घुलनशील उत्सर्जक की अधिक मात्रा हो, तब उनके उत्सर्जन के लिए जल
की अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है । अत: मूत्र की मात्रा बढ़ जाती है।
                                          अभ्यास
प्रश्न 1. मनुष्य में वृक्क एक तंत्र का भाग है जो संबंधित है
(a) पोषण
(b) श्वसन
(c) उत्सर्जन
(d) परिवहन                                   उत्तर-(c) उत्सर्जन
प्रश्न 2. पादप मे जाइलम उत्तरदायी है
(a) जल का वहन
(b) भोजन का वहन
(C) अमीनो अम्ल का वहन
(d) ऑक्सीजन का वहन                   उत्तर-(a) जल का वहन
प्रश्न 3. स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक है
(a) कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल
(b) क्लोरोफिल
(c) सूर्य का प्रकाश
(d) उपरोक्त सभी                              उत्तर-(d) उपरोक्त सभी
प्रश्न 4. पायसवेट के विखंडन से यह कार्बन डाइऑक्साइड, जल तथा ऊर्जा देता है
और यह क्रिया होती है
(a) कोशिकाद्रव्य
(b) माइटोकॉन्ड्रिया
(c) हरित लवक
(d) केन्द्रक                                        उत्तर-(b) माइटोकोन्ड्रिया
प्रश्न 5. हमारे शरीर में वसा का पाचन कैसे होता है ? यह प्रक्रम कहाँ होता है ?
उत्तर-(i) वसा का पाचन क्षुद्रांत्र में होता है
(ii) वसा का पाचन-वसा बड़े ग्लोब्यूल के रूप में क्षुद्रांत्र में उपस्थित होते हैं । इतने बड़े
ग्लोब्यूलों के ऊपर वसा पाचित करने वाले एंजाइम प्रभावी रूप से क्रिया नहीं कर पाते हैं।
यकृत द्वारा स्रावित बाइल रस अग्न्याशय के रस के साथ क्षुद्रांत्र में आता है। वाइल रस
के बाइल लवण वसा के बड़े-बड़े ग्लोब्यूल छोटे-छोटे ग्लोब्यूलों में टूट जाते हैं और इस तरह
एक बड़ा सतही क्षेत्र प्रदान करते हैं जिस पर एंजाइम क्रिया कर सकें।
लाइपेज नामक एंजाइम, जो अग्न्याशय रस में होता है, इमल्सीकरण हुए वसा का विखण्डन
करता है जिसमें लाइपेज एंजाइम होता है जो वसा को वसा अम्ल तथा ग्लिसरोल में परिवर्तित कर देता है।
प्रश्न 6. भोजन के पाचन में लार की क्या भूमिका है ?
उत्तर-(i) लार में लार (सेलाइवरी) एमायलेज एंजाइम होता है जो स्टार्च को शर्करा जैसे
माल्टोज में परिवर्तित कर देता है।
स्टार्च + सेलावरी एमायलेज → शर्करा
(जटिल अणु)                       (सरल अणु)
(ii) लार भोजन को नम करती है जो भोजन के बड़े टुकड़ों को छोटे टुकड़ों में चबाने तथा
तोड़ने में मदद करती है, जिससे कि सेलाइवरी एमायलेज स्टार्च को प्रभावशाली तरीके से पाचित
कर सके।
प्रश्न 7. स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ कौन-सी हैं और उसके
उपोत्पाद क्या हैं?
उत्तर-स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक शर्तें हैं:
(a) जैव कोशिकाओं में क्लोरोफिल की उपस्थिति ।
(b) पादप की कोशिकाओं या हरे हिस्सों में पानी की आपूर्ति का प्रबन्ध या तो जड़ों के द्वारा
या आसपास के वातावरण के द्वारा ।
(c) पर्याप्त सूर्य प्रकाश उपलब्ध हो, क्योंकि प्रकाश संश्लेषण के लिए प्रकाश ऊर्जा
आवश्यक है।
(d) पर्याप्त CO2, जो प्रकाश संश्लेषण के दौरान शर्करा के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण
अवयव हैं।
(e) स्वपोषी पोषण के सह उत्पाद हैं-स्टार्च (शर्करा), जल तथा O2।
प्रश्न 8. वायवीय तथा अवायवीय श्वसन में क्या अन्तर है ? कुछ जीवों के नाम
लिखिए जिनमें अवायवीय श्वसन होता है।
उत्तर-(i)
(i) जन्तु जिनमें अवायवीय श्वसन होता है-यीस्ट तथा परजीवी, जैसे टेपवर्म (फीताकृमि),
एसकेरिस (गोलकृमि) आदि ।
प्रश्न 9. गैसों के अधिकतम विनिमय के लिए कूपिकाएँ किस प्रकार अभिकल्पित हैं?
उत्तर-(i) कूपिका की भित्ती पतली होती है तथा रुधिर वाहिकाओं के जाल से ढकी हुई है
जिससे गैसों का आदान-प्रदान, रुधिर तथा कूपिका के अन्दर भरी हवा के बीच अधिकाधिक हो
सके।
(ii) कूपिका की गुब्बारे के समान संरचना जो गैसों के आदान-प्रदान के लिए सतही क्षेत्र
बढ़ा देती है।
प्रश्न 10. हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी के क्या परिणाम हो सकते हैं ?
उत्तर-रुधिर की औसत हीमोग्लोबिन मात्रा किसी भी लिंग में 14.5g प्रति 100 ml. रुधिर
है । यदि हीमोग्लोबिन की मात्रा रुधिर में कम होती है, इसकी O2 की वहन क्षमता भी घट जाती
है। अतः वह मानव O2 की कमी के लक्षण दर्शाता है, जैसे साँस फूलना जो कि अक्सर लोहे
की कमी से हुए एनीमिया का पहला लक्षण है।
प्रश्न 11. मनुष्य में दोहरा परिसंचरण की व्याख्या कीजिए । यह क्यों आवश्यक है?
उत्तर-मानव में रुधिर प्रत्येक चक्र में हृदय से दो बार गुजरता है। अर्थात् रुधिर से शरीर
में एक बार पहुंँचने के लिए मानव हृदय से दो बार गुजरता है । अतः इसे द्विवहन कहते हैं
इसके अन्तर्गत आता है : (i) सिस्टमिक परिवहन तथा (ii) पलमोनरी परिवहन ।
(i) सिस्टमिक परिवहन-यह बाएँ अलिंद से बाएँ निलय में ऑक्सीजनित रुधिर पहुँचाता
है जहाँ से यह शरीर के विभिन्न भागों में पम्प किया जाता है । विऑक्सीजनित रुधिर शरीर के
विभिन्न हिस्सों से शिरा द्वारा इकट्ठा करके महाशिरा में डाला जाता है और अन्त में यह रुधिर
दाएँ अलिंद में पहुंँचता है । दाएँ अलिंद से बाएँ निलय में जाता है।
(ii) पलमोनरी परिवहन-विऑक्सीजनित रुधिर दाएँ निलय से ऑक्सीजनित होने के लिए
फेफड़ों में भेजा जाता है । ऑक्सीजनित रुधिर फिर से मानव हृदय के बाएँ अलिंद में आता है,
बाएँ अलिंद से बाएँ निलय में, बाएँ निलय से महाधमनी में और फिर सिस्टमिक परिवहन द्वारा
शरीर में।
द्विपरिवहन की आवश्यकता-मानव हृदय का दायाँ तथा बायाँ हिस्सा, ऑक्सीजनित व
विऑक्सीजनित रुधिर को मिलने नहीं देते हैं। ऑक्सीजनित व विऑक्सीजनित रुधिर के अलग-अलग रहने से शरीर में ऑक्सीजन बहुत प्रभावी तरीके से पहुंचती है। मानव के लिए यह बहुत लाभप्रद है क्योंकि यह शरीर के तापमान को नियंत्रित करने के लिए निरन्तर ऊर्जा देती रहती है।
प्रश्न 12. जाइलम तथा फ्लोएम में पदार्थों के वहन में क्या अन्तर है?
उत्तर-पदार्थों के वहन
प्रश्न 13. फुफ्फुस में कूपिकाओं की तथा वृक्क में वृक्काणु (नेफ्रान) की रचना तथा
क्रियाविधि की तुलना कीजिए।
उत्तर-
                                                ◆◆◆
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