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 bihar board 8 biology notes | किशोरावस्था की ओर

bihar board 8 biology notes | किशोरावस्था की ओर

किशोरावस्था की ओर

अध्ययन सामग्री―बालक एवं बालिकाओं को शारीरिक बनावट में परिवर्तन, वृद्धि एवं
विकास को ध्यान में रखते हुए पूरे जीवन-काल को चार अवस्थाओं में बाँट दिया गया है। इन
चारों अवस्थओं को उम्र सीमा में भी बाँधा गया है। मानव में 11 वर्ष से 19 वर्ष तक की आयु
में तीव्र गति से विकास एवं वृद्धि होती है। विकास एवं वृद्धि की पहली अवस्था शैशवावस्था
कहलाती है जिसकी अवधि जन्म से लेकर 5 वर्ष तक होती है। 6 वर्ष से 11 वर्ष की अवस्था
बाल्यावस्था यानि दूसरी अवस्था कहलाती है। 11-12 वर्ष से लेकर 18-19 वर्ष तक की
अवस्था किशोरावस्था कहलाता है। किशोरावस्था के बाद की अवस्था प्रौढ़ावस्था कहलाती है
प्रस्तुत अध्याय में किशोरावस्था में होनेवाले परिवर्तन पर प्रकाश डालेंगे। किशोरावस्था
बाल्यावस्था तथा प्रौढ़ावस्था के बीच संक्रमण काल कहलाता है। लड़कियों में लड़कों की अपेक्षा,किशोरावस्था का प्रारंभ एक-दे वर्ष पूर्व ही प्रारंभ हो जाता है। इस अवस्था में होनेवाले परिवर्तन
यौवनारम्भ का संकेत है। इस अवस्था में सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन लड़कों तथा लड़कियों में जनन क्षमता का विकसित होना है। जनन परिपक्वता के साथ ही किशोरावस्था समाप्त हो जाती है।
किशोरावस्था में होनेवाले परिवर्तन-
1. लम्बाई में― किशोरावस्था में शरीर की हड्डियों में तेजी से वृद्धि होती है जिसके कारण हाथ,
पैर की हड्डियाँ बढ़ती हैं और बच्चा लम्बा हो जाता है। 18 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक लड़के तथा लड़कियाँ अपनी अधिकतम लम्बाई प्राप्त कर लेते हैं। बच्चों की लम्बाई माता-पिता से प्राप्त आनुवंशिक लक्षणों पर तो निर्भर करता ही है साथ ही लम्बाई को संतुलित आहार भी प्रभावित करता है।
किशोरावस्था की समाप्ति तक उसकी अनुमानित लम्बाई की गणना
                         वर्तमान लम्बाई (सेमी.)
                 —————————–————-x100
                   वर्तमान आयु में पूर्ण लम्बाई का %
                                      तालिका-1
2. शारीरिक बनावट में― किशोरावस्था में लड़का तथा लड़की दोनों के शारीरिक बनावट
में साफ-साफ परिवर्तन दिखने लगते हैं जो इस प्रकार हैं-
(i) कंधा तथा सीना चौड़ा होना । (ii) लड़कियों में कमर के नीचले भाग की चौड़ाई बढ़
जाती है। (iii) लड़कों में लड़कियों की अपेक्षा माँसपेशियाँ गढ़ीली हो जाती हैं। (iv) लड़कों
के चेहरे पर मूंछ तथा दाढ़ी निकल आते हैं। (v) लड़के तथा लड़कियों में नाभि के नीचे, जाँघ
के ऊपर तथा काँख में बाल निकल आते हैं। (vi) लड़कियों के स्तन में उभार आ जाती है।
3. स्वर में― किशोरावस्था में प्रवेश करते ही लड़कों की आवाज कर्कश तथा लड़कियों की
आवाज मधुर हो जाती है। क्योंकि स्वर यंत्र विकसित होकर बड़ा हो जाता है। स्वर यंत्र लड़कों
के गले के नीचे उभार के रूप में स्पष्ट दिखाई देने लगता है। इस उभार को कंठमणी कहा जाता
है। लड़कियाँ में स्वर-यंत्र की आकृति अपेक्षाकृत छोटी होती है और यह दिखाई नहीं देती है।
4. स्वेद एवं तैल ग्रंथियों तथा जननांगों में― किशोरावस्था में स्वेद-प्रथियों एवं तेल ग्रंथियों
की सक्रियता बढ़ने के कारण चेहरे पर फुंसियाँ, कील और मुँहासे निकल जाते हैं। किशोरावस्था
के अंत तक मानव जननांग पूर्ण रूप से विकसित और परिपक्व हो जाता है। लड़कों में शुक्राणुओं का उत्पादन शुरू हो जाता है। किशोरियों में अण्डाशय परिपक्व होकर अण्डाणु का निर्मोचन करने लगते हैं और ऋतुस्राव या रजोदर्शन शुरू हो जाता है।
5. मानसिक एवं संवेदनात्मक विकास―इस अवस्था में मानव पूर्व की अपेक्षा अधिक
सचेत, चिन्तनशील तथा स्वतंत्र हो जाते हैं। तर्क के आधार पर निर्णय लेने की प्रवृत्ति विकसित
होती है। इस अवस्था में सीखने की अधिक क्षमता होती है। ये सभी परिवर्तन बच्चों में शारीरिक
वृद्धि एवं विभिन्न प्रकार के ग्रंथियों की क्रियाशीलता के कारण उत्पन्न होते हैं।
द्वितीयक लैंगिक लक्षण―लड़कों में दाढी-मूंँछ एवं लड़कियों में स्तन दिखाई देना । काँख,
सीना तथा नाभि के नीचे एवं जांघ के ऊपर के क्षेत्र में बाल निकलना । वृषण द्वारा शुक्राणु एवं
अण्डाशय से अण्डाणु नामक युग्मक उत्पन्न होना इत्यादि विशेष लक्षण इस अवस्था में दिखाई
पड़ते हैं। इन सभी लक्षणों को द्वितीयक लैंगिक लक्षण कहते हैं।
किशोरावस्था में वृषण द्वारा पुरुष हारमोन “टैस्टेस्टोरन” का नाव प्रारंभ हो जाता है जिसके
फलस्वरूप लड़कों में मुंँह तथा दादी निकलने लगता है। अण्डाशय से स्त्री हारमोन एस्ट्रोजन का
उत्पादन शुरू हो जाता है जिससे लड़कियों में स्तन का विकास होने लगता है।
मानव में जनन अवधि―स्त्रियों में जनन अवधि 10-12 वर्ष की आयु से प्रारंभ होकर
सामान्यतः 45-50 वर्ष की आयु तक होती है। पुरुषों में शुक्राणु उत्पादन की क्षमता स्त्रियों की
अपेक्षा 5-7 वर्ष अधिक तक रहती है। 28 से 30 दिनों के अन्तराल पर एक अण्डाशय से
एक अण्डाणु निकलता है। यदि अण्डाणु निषेचित नहीं होते हैं तब अण्डाणु तथा गर्भाशय की
मोटी स्तर रुधिर वाहिकाओं सहित टूटने लगती है जिससे रक्त का प्राव होने लगता है।
ऋतुस्राव या रजोधर्म कहते हैं। यह रक्त स्राव 5 से 6 दिनों तक चलता है। मादा के प्रजनन तंत्र
में इस प्रकार का रचनात्मक एवं क्रियात्मक परिवर्तनों का चक्र प्रत्येक 28 से 30 दिनों के अन्तराल पर चलता रहता है। इसलिए इसे मासिक या ऋतु स्राव चक्र (Menstrual cycle) संक्षेप में M.C. कहते हैं। यह चक्र स्त्रियों में 11-12 वर्ष से प्रारम्भ होकर 45-50 वर्ष की आयु तक चलता है। पहला ऋतुस्राव चक्र किशोरावस्था में होता है जिसे रजोदर्शन कहते हैं।
45-50 वर्ष प्रजनन एवं स्वास्थ्य-ऋतुनाव के दौरान किशोरियों को विशेष सतर्क रहना चाहिए।
की आयु तक पहुंँचते-पहुंँचते यह चक्र प्रायः रूक जाता है। इसे रजोनिवृत्ति कहते हैं।
प्रजनन एवं स्वास्थ्य ― ऋतुस्राव के दौरान किशोरियों को विशेष सतर्क रहना चाहिए। स्राव को
अवशोषित करने के लिए कीटाणु रहित मुलायम सूती कपड़ा जो अच्छी तरह सूखा या अच्छे गुणवत्ता वाला पैड प्रयोग में लाना चाहिए। किशोरावस्था में लड़का एवं लड़की को विशेष ध्यान देना चाहिए। अच्छे स्वास्थ्य के लिए संतुलित आहार, नियमित व्यायाम तथा व्यक्तिगत सफाई अति आवश्यक माना गया है।
इस प्रकार मानव जीवन की चारों अवस्थाओं में किशोरावस्था सबसे महत्वपूर्ण होता है।
लड़कियों के विवाह की न्यूनतम आयु = 18 वर्ष ।
लड़कों के विवाह की न्यूनतम आयु = 21 वर्ष ।
                                  इससे पहले की शादी है।
                                       कानूनन अपराध!
                                                     अभ्यास
1. सही विकल्प पर (√) का चिह्न लगाइए-
(क) किशोरावस्था की अवधि है-
(i) 6 वर्ष से 11 वर्ष
(ii) 11 वर्ष से 19 वर्ष
(iii) 19 वर्ष से 45 वर्ष
(iv) 15 वर्ष से 50 वर्ष
(ख) सीखने  की सबसे अधिक क्षमता होती है-
(i) शैशवावस्था
(ii) प्रौढावस्था
(iii) बाल्यावस्था
(iv) किशोरावस्था
(ग) टेस्टेस्टोरान है―
(i) अन्त:स्रावी ग्रंथि
(ii) स्त्री हारमोन
(iii) पुरुष हारमोन
(iv) (i) तथा (ii) दोनों
(घ) सामान्यतः ऋतुस्राव प्रारंभ होता है-
(i) 20-25 वर्ष में
(ii) 11-13 वर्ष में
(iii) 45-50 वर्ष में
(iv) कभी नहीं
(ङ) बेहतर सेहत के लिए आवश्यक है-
(i) खुब खाना, खुब नहाना
(ii) कम खाना, कम सोना
(iii) दिन में सोना रात में जगना
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-(क) (ii), (ख) (iii), (ग) (iii), (घ) (ii), (ङ) (iv)।
2. सही कथन के सामने (1) गलत कथन के सामने (x) चिह्न लगाइए-
(क) द्वितीयक लैंगिक लक्षण शैशवावस्था में दिखाई देते हैं।                  (×)
(ख) शुक्राणुओं का उत्पादन अण्डाशय से होता है।                            (×)
(ग) पहले ऋतुस्राव को रजोदर्शन कहते हैं।                                      (√)
(घ) युग्मनज का पोषण गर्भाशय में होता है।                                    (√)
(ङ) इन्सुलिन की कमी से घेघा रोग होता है।                                     (×)
3. कॉलम A से शब्दों को कॉलम B के उचित शब्दों से मिलाएँ-
कॉलम A                                कॉलम B
(i) शुक्राणु                             (i) अण्डाशय
(ii) अण्डाणु                          (ii) अन्तःस्रावी ग्रंथि
(iii) हारमोन                          (iii) गर्भाशय
(iv) शिशु                              (iv) वृषण
       उत्तर-(i) (iv), (ii) (i), (iii) (ii), (iv)(iii)।
4. किशोरावस्था से क्या समझते हैं ?
उत्तर-मानव जीवन को चार अवस्थाओं में बाँटा गया है। विकास एवं वृद्धि की पहली अवस्था
शैशवावस्था कहलाता है। जिसकी अवधि जन्म से लेकर 5 वर्ष तक होती है। 6 वर्ष से 11 वर्ष
की अवस्था को बाल्यावस्था कहा जाता है। 11-12 वर्ष से लेकर 18-19 वर्ष तक की अवस्था
को किशोरावस्था कहा जाता है। किशोरावस्था के बाद की अवस्था को प्रौढ़ावस्था कहा जाता है।
किशोरावस्था के किशोर एवं किशोरियों को टीनएजर्स कहा जाता है। किशोरावस्था प्रारंभ
होते ही अनेकों परिवर्तन देखने को मिलती है जो इस प्रकार हैं-
(i) लम्बाई में वृद्धि, (ii) शारीरिक बनावट में परिवर्तन, (iii) स्वर में परिवर्तन, (iv) स्वेद
एवं तैल ग्रंथियों की सक्रियता में वृद्धि, (v) जननांगों में वृद्धि तथा सक्रियता में वृद्धि, (v) मानसिक तथा संवेदनात्मक विकास इत्यादि।
इस प्रकार के परिवर्तनों के आधार पर किशोरावस्था की पहचान हम और आप कर पाते हैं।
5. किशोरावस्था, बाल्यावस्था से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर-मानव जीवन की दूसरी अवस्था को बाल्यावस्था कहा जाता है जिसकी अवधि 6 वर्ष
से 11 वर्ष होती है। इस अवस्था में सीखने की सबसे अधिक क्षमता होती है। इस अवस्था में
बच्चे काफी क्रियाशील होते हैं जो कि उनके नटखट तथा जिज्ञासा को प्रदर्शित करता है। इस अवस्था में बालक लगभग सभी सामाजिक क्रियाकलापों को समझने तथा सीखने में आगे रहते हैं।
दूसरी तरफ मानव जीवन की तीसरी अवस्था किशोरावस्था होती है जो कि सभी अवस्थाओं में
सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इस अवस्था में बालक तथा बालिकाओं की शारीरिक बनावट में
परिवर्तन, वृद्धि एवं विकास साफ-साफ दिखाई पड़ता है। इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप जनन
परिपक्वता आती है। इसी अवस्था में मानव प्रजनन की योग्यता को प्राप्त कर लेते हैं। यौनारम्भ
किशोरावस्था में ही होता है और जनन अंगों में वृद्धि होती है। लड़कों में मूंछ, दाढ़ी निकलती है और लड़कियों का स्तन विकसित होता है। जनन परिपक्वता के साथ ही किशोरावस्था समाप्त हो जाती है।
6. बेहतर सेहत के लिए आप क्या करते हैं ?
उत्तर व्यक्ति का शारीरिक एवं मानसिक रूप से विसंगत मुक्त होना उस व्यक्ति का स्वास्थ्य
कहलाता है। इस विसंगति से बचने के लिए शरीर के प्रत्येक अंग को ऊर्जा की आवश्यकता होती
है और यह ऊर्जा हमें भोजन से प्राप्त होती है। परन्तु यह ध्यान रहे कि किसी भोज्य पदार्थ की
अधिकता यानि किसी भोज्य पदार्थ को अधिक सेवन नहीं करना चाहिए और न ही किसी भोज्य
पदार्थ (पौष्टिक पदार्थ) का कम-से-कम सेवन करना चाहिए इस प्रकार बेहतर सेहत के लिए हमें
संतुलित आहार लेना चाहिए। जिसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन, वसा एवं खनिजों की पर्याप्त मात्रा हो। इसके अलावे साफ-सफाई एवं नियमित व्यायाम आवश्यक है। समय के अनुसार सोना, जगना, पढ़ना-खेलना, खाना इत्यादि होना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण है पानी की साफ-सफाई यानि प्रत्येक व्यक्ति को स्वच्छ पानी तथा अधिक से अधिक पानी ग्रहण करना चाहिए।
                                       ◆◆◆
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