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 bihar board 9th class hindi notes | रेलयात्रा

bihar board 9th class hindi notes | रेलयात्रा

bihar board 9th class hindi notes

वर्ग – 9

विषय – हिंदी

पाठ 9 – रेलयात्रा

  रेलयात्रा                                    
     -शरद जोशी
            लेखक – परिचय

शरद जोशी का जन्म मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में 21 मई , 1931 ई , को हुआ । इनका बचपन कई शहरों में बीता । कुछ समय तक सरकारी नौकरी में रहने के बाद इन्होंने लेखन को ही आजीविका के रूप में अपना लिया । इन्होंने आरंभ में कुछ कहानियाँ लिखीं फिर पूरी तरह व्यंग्य लेखन ही करने लगे । इन्होंने व्यंग्य लेख , व्यंग्य उपन्यास , व्यंग्य कॉलम के अतिरिक्त हास्य – व्यंग्यपूर्ण धारावाहिकों की पटकथाएँ और संवाद भी लिखे । हिंदी व्यंग्य को प्रतिष्ठा दिलानेवाले प्रमुख व्यंग्यकारों में शरद् जोशी भी एक हैं । 1991 ई . में इनका देहांत हो गया ।
शरद जोशी की प्रमुख व्यंग्य कृतियाँ हैं – परिक्रमा , किसी बहान , जीप पर सवार इल्लियाँ तिलस्म , रहा किनारे बैठ , दूसरी सतह , प्रतिदिन । दो व्यंग्य नाटक – अंधों का हाथी और एक था गधा । एक उपन्यास – मैं केवल मैं , ऊर्फ कमलमुख बी.ए. । शरद जोशी की भाषा अत्यंत सरल और सहज है । मुहावरों और हास – परिहास का हल्का स्पर्श देकर इन्होंने अपनी रचनाओं को अधिक रोचक बनाया है ।

कहानी का सारांश

‘ रेल यात्रा ‘ विख्यात व्यंग्यकार शरद जोशी को व्यंग्य रचना है । शरद जोशी के व्यंग्य तिलमिला कर रख देने वाले होते हैं । इस रचना में उन्होंने भारतीय रेल की दुव्यवस्था का वर्णन करने के साथ भारतीय समाज और व्यवस्था की पोल भी खोली है । सभी कभी न कभी रेल यात्रा करते हैं और इस दौरान होने वाली परेशानियों से परिचित भी हैं पर लेखक ने इस रचना में उन परेशानियों का ऐसा चित्रण किया है कि वे हृदय में हल जाते हैं ।
अक्सर भारत सरकार के रेल मंत्री दावा करते हैं कि भारतीय रेल तेजी से उन्नति कर रहा है । लेखक इस दावे की हँसी उड़ाते हुए कहता है कि मुंबई से उसका दिल्ली आना ही प्रगति है और कहीं तो प्रगति दिखाई ही नहीं दे रही है ।
भारतीय रेल की यात्रा दुर्गति भरी होती है । तभी तो इस छोटी सी रोजमर्रा की बात के लिए हम ईश्वर से सफल करने की प्रार्थना करते हैं । रेल यात्रा में भीड़ ही भीड़ मिलती है । इसमें यात्री के ऊपर समान रहता है तो कहीं समान के ऊपर यात्री रहते हैं । रेल प्रशासन को इससे कहीं कोई मतलब ही नहीं रहता है । मानो उसका काम सिर्फ लोगों को एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाना है , चाहे इसके लिए लोगों को बोरा में भर कर ले जाना पड़े यात्रियों के सुख – सुविधाओं से उसे कुछ लेना – देना ही नहीं है ।
आरक्षण करा लेने से रेल यात्रा सुखद हो जाती है पर यदि कभी बिना आरक्षण के यात्रा करनी हो तो दुर्दशा हो जाती है । रेल में चढ़ने की जगह नहीं होती है समान रखने बैठने की बात तो दूर है । लेखक मुम्बई के लोकल ट्रेनों में होने वाली फजीहत को याद करता है ।
यहाँ के ट्रेनों का कोई टाइम नहीं होता है । वे अक्सर लेट चलती हैं । कहीं रूक जाती हैं । पटरी से उतरना उनका आम बात है । ट्रेन दुर्घटनाएँ भी प्राय : होते रहती हैं । भीड़ में ऊँघते यात्री – एक – दूसरे से टकराते रहते हैं । कोई पायदान पर लटक यात्रा करता |

पाठ के साथ

प्रश्न 1. मनुष्य की प्रगति और भारतीय रेल की प्रगति में लेखक क्या देखता है ?

उत्तर – मनुष्य की प्रगति एवं भारतीय रेल की प्रगति में लेखक ने समानता दिखाने का प्रयास किया है । आज भारतीय रेल की जो स्थिति है , उसमें जो व्याप्त अव्यवस्था है , वैसे ही मनुष्य के जीवन में अव्यवस्था को देखता है लेखक । यहाँ लेखक ने भारतीय रेल की प्रगति की उदाहरणस्वरूप रखकर भारतीय समाज और राजनीति में हो रहे प्रगति को सामने लाने का प्रयास किया है । जिस तरह से रेत को मुम्बई से दिल्ली जाना होता है , उसमें सवार यात्री मेरे या जीय उसको तो अपने स्थान पर जाना है । उसमें चाहे धक्कम धुक्का हो , चाहे यात्री खड़े यात्रा कर हो , रेल को प्रगति करना है । ठीक उसी प्रकार से भारतीय नीति व्यवस्था में जनता को चाहे कितना हो कष्ट क्यों न झेलना पड़े राजनेता को कुर्सी मिल गया । क्या सिर्फ कुर्सी बची रहे इसको देखना है । लेखक ने यहाँ भारतीय रेल की अस्त – व्यस्तता , अव्यवस्था के बहाने भारतीय राज ज्यवस्था को पोल खोली है ।

प्रश्न 2. आप रेल की प्रगति देखना चाहते हैं तो किसी डिब्बे में घुस जाइए – लेखक यह कहकर क्या दिखाना चाहता है ?

उत्तर – लेखक ने यहाँ सच्चाई को परखने के लिए , रेल की प्रगति को सही ढंग से समझने लिए , उस प्रगति के जड़ तक पहुँचने के लिए किसी डिब्बे में घुस कर डिब्बे में व्याप्त स्थिति से परिचय करवाना चाहा है । रेल की प्रगति किस तरह से हो रहा है इस सच को गहराई से जानने के लिए किसी डिब्बे में घुस जाने की बात कहते हैं । रेल चलती रहती है । कहीं रूक जाती है घंटों , उसी तरह राजनीतिक पार्टियों में भी कई अड़चने आती हैं , देश के रास्ते में आते हैं तो यह को बेचारी रेल है । यहाँ पर शरद जोशी ने राजनीतिक व्यवस्था पर व्यंग किया है और इस माध्यम से करना चाहते हैं । सच्चाई को जानना है तो गहराई में घुस कर देखिए । आज रेलगाड़ी में भयंकर मौड़ होती है । इस भीड़ के कारण आम जनता को ढेर सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है . पक्का – मुक्की , जिसकी लाठी उसकी भैंस ‘ इत्यादि पर यह रेल अव्यवस्थित ढंग से किसी तरह चल रही है । इनसे नेताओं को कोई लेना – देना नहीं है । यदि आप आम जनता की परेशानियों को देखना चाहते हैं तो रेल के डिब्बे में घुसकर देखिए ।

प्रश्न 3. भारतीय रेलें हमें किस तरह का जीवन सिखाती हैं ?

उत्तर – लेखक ने यहाँ भारतीय रेलों के माध्यम से राज्य के मंत्री , सत्ता में आने वालों पर व्यंग्य किया है । जिस तरह से रेल में जो चढ़ गया उसकी जगह , जो बैठ गया उसकी सीट , जो लेट गया उसका बर्थ । ठीक सत्ता में आने के पहले ऐसे ही प्रक्रिया से गुजरते हैं मंत्री लोग । जिसमें मनोबल है , आत्मबल है , शारीरिक बल और दूसरे किस्म के बल हैं उसे यात्रा करने से कोई नहीं रोक सकता है । ऐसे ही लक्षण के लोग मुख्यमंत्री बनते हैं । लेखक ने दर्शाने का प्रयास किया है । भारतीय रेलें इसमें यात्रा करने के बाद ऐसा ही जीवन सिखाता है कि जो जीता वही सिकन्दर , जो छला उसी का जमीन , जो लेटा उसका वर्थ , टिकट का क्या महत्व । सत्ता में आ गए हैं बस अपना राज है तो करना है करता है । चाहे जनता कष्ट में हो तो क्या हुआ मंत्री तो आराम से सोया है । सब अपना है ऐसे ही दृश्य को लेखक ने राज व्यवस्था में व्याप्त अनीति को दिखाने का प्रयास किया है । जब कुर्सी मिल ही गया तो क्या ये तो भगवान की देर है इतना संघर्ष किए फिर मिला अपनी जन्नत है । इस तरह के जीवन को सिखाती है भारतीय रेल ।

प्रश्न 4. ‘ ईश्वर आपकी यात्रा सफल करें । ‘ इस कथन से लेखक पाठकों को भारतीय रेल की किस अव्यवस्था से परिचित कराना चाहते हैं ?

उत्तर – ईश्वर आपकी यात्रा सफल करें| इस कथन से लेखक ने पाठकों को भारतीय रेल की प्रशासन हीनता से परिचय करवाया है| रेल में जो प्रशासनिक अव्यवस्था है उससे परिचय करवाते हुए लेखक कहना चाहते हैं , ईश्वर ही एक सहारा है , जिसके नाम पर भीड़ में भी जाना मिल जाती है । भारतीय रेल को तो सिर्फ अपना कर्म करना है । एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाना है । डिब्बे में कोई सो कर जा रहा है और कोई खड़े – खड़े तो वहाँ प्रशासन नहीं ईश्व की दुहाई पर खड़े व्यक्ति को बैठने को मिल जाता है इसलिए तो ईश्वर आपकी यात्रा सफल का स्टेशन पर लिखा रहता है । अगर ईश्वर आपके साथ , टिकट आपके हाथ , पास में सामान का और जेब में पैसा ज्यादा है तो आप मंजिल तक पहुँच पाएँगे । भारतीय रेलों को तो कर्म करना है ‘ फल की चिंता नहीं करनी जिसे जाना है वो तो जाएगा ही लेट कर , बैठ कर , सोकर , टाँग पसार कर , जिसमें आत्मबल है , दूसरे किस्म का भी बल है । उसे यात्रा करने से नहीं रोक सकता । वे व्यक्ति जो शराफत और अनिर्णय के मारे होते हैं वे क्यू में खड़े रहते हैं , वेटिंगलिस्ट में पड़े रहते हैं । ट्रेन स्टार्ट हो जाती है और वे सामान लिये दरवाजे के पास खड़े रहते हैं । इसलिए कि इनके पास ईश्वर नहीं होता सिर्फ टिकट होता है । ईश्वर ही तो है जो ट्रेन में चढ़ पाते हैं , सीट ग्रहण कर पाते हैं । प्रशासन के चक्कर में ट्रेन खुल गई , टिकट वाले स्टेशन पर ही हैं । यहाँ लेखक ने भारतीय रेल प्रशासन पर करारा व्यंग्य किया है और भारतीय शासन – व्यवस्था में अव्यवस्था की ओर इशारा किया है ।

प्रश्न 5. जिसमें मनोबल है , आत्मबल , शारीरिक बल और दूसरे किस्म के बल हैं , उसे यात्रा करने से कोई नहीं रोक सकता । वे जो शराफत और अनिर्णय के मारे होते हैं , वे क्यू में खड़े रहते हैं , वेटिंग लिस्ट में पड़े रहते हैं । यहाँ पर लेखक ने भारतीय सामाजिक व्यवस्था के एक बहुत बड़े सत्य को उद्घाटित किया है जिसकी लाठी उसकी भैंस ‘ इस पर अपने विचार संक्षेप में व्यक्त कीजिए ।

उत्तर – यहाँ पर लेखक ने भारतीय सामाजिक – राजनीतिक व्यवस्था को उद्घाटित करते हुए कहा है कि जिस व्यक्ति के पास मनोबल है , शारीरिक बल है और दूसरे किस्म का बल है , उसे अपनी मनमानी करने से कोई नहीं रोक सकता । वह चाहे कुकर्म ही क्यों न करे यश उसको मिलेगा ही । गलती क्यों न करे पुरस्कार भी उसको को मिलेगा । अनैतिक क्यों न हो समाज में प्रतिष्ठा और चर्चा भी उसी की होगी । नहीं तो वह कुछ भी कर देगा । वैसे व्यक्ति जे शराफत और अनिर्णय के मारे होते हैं वे क्यू में खड़े रहते हैं , वेटिंगलिस्ट में पड़े रहते हैं । यहाँ पर लेखक ने समाज में सोचने – विचारने , सही रास्ते पर चलने वाले को दर्शात हुए कहना चाहा है कि ऐसे किस्म के व्यक्ति को मौका ही नहीं मिल पाता आगे बढ़ने को और जस का तस खड़े रह जाते हैं । लाठी वाले भैंस पीट कर ले जाते हैं । जिसकी लाठी उसकी भैंस समाज में व्याप्त कुरीतियों को सामने लाने का प्रयास है लेखक का ।

प्रश्न 6. निम्नलिखित पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट करें :

( क ) दुर्दशा तब भी थी ; दुर्दशा आज भी है । ये रेलें , ये हवाई जहाज , ये सब विदेशी हैं । ये न हमारा चरित्र बदल सकती हैं और न भाग्य ।

उत्तर – यहाँ पर लेखक ने भारतीय राज – व्यवस्था में व्याप्त अव्यवस्था की ओर इशारा किया है । वे कहना चाहते हैं कि जिस प्रकार रेल विदेशी है , हवाई जहाज विदेशी है जो पहले हमारे देश में नहीं था और भारतीय लोगों की जो दुर्दशा पहले थी यात्रा को लेकर , जो कठिनाइयाँ पहले थी आज भी हैं । रेल चल गई तो क्या , हवाई जहाज उड़ती है तो क्या ? दुर्दशा तो वही है । ठीक उसी प्रकार हमारे राजनीतिक व्यवस्था में व्याप्त नीति अंग्रेजों की है तो जनता पर कोड़ा बरसाया करता था । वही नीति तो आज भी है । सारा कष्ट जनता को सहना पड़ता है हमारी दुर्दशा भारत आजाद होने के पहले था वही आज भी है । इस तरह से लेखक ने व्यंग्य किया है कि विदेशी नीति ने हमारा न ही चरित्र बदल सकती है और न ही भाग्य ।

( ख ) भारतीय रेलें हमें सहिष्णु बनाती हैं । उत्तेजना के क्षणों में शांत रहना सिखाती है । मनुष्य की यही प्रगति है ।

उत्तर– उपयुक्त पंक्ति के माध्यम से लेखक ने व्यक्ति के आलस्य भरे अंदाज और बैठे-बिठाए अपना उल्लू सीधा करने वालों पर व्यंग्य किया है ।
इन्हीं आलस्य को लेखक प्रगति रूप में देखते हैं जिसका नाम सहिष्णुता एवं शांति देते हैं । भारतीय रेल में एक ऊंघता हुआ यात्री दूसरे ऊँघते हुए यात्री के कंधे पर टिकने लगता है । आधी रात को ऊपर की बर्थ पर लेटा यात्री नीचे के बर्थ पर लेटे यात्री से पूछता है – यह कौन – सा शन है । यानि एक व्यक्ति के निकम्मेपन , आलस्य दूसरे ऊँघते हुए यात्री के कंधे पर टिकने लगता है , दूसरे के कंधे पर अपना दायित्व थोपना चाहता है और स्वयं को अभार रखना चाहता है आज का व्यक्ति , इस ओर इशारा है लेखक का । दूसरी तरफ आधी रात को ऊपर की बर्थ पर लेटा यात्री नीचे की बर्थ पर लेटे यात्री से पूछता है – यह कौन – सा स्टेशन है ? यानि सोये हुए बर्थ वाले जान लेना चाहता है कि कौन – सा स्टेशन तक पहुँच गया हूँ । सोकर ही अपनी प्रगति को जान लेना चाहता है । नीचे बर्थ पर लेटे व्यक्ति भी ऊपर वाले से कम नहीं वह भी कहना चाहता है अबे चुपचाप सो , डिस्टर्व क्यों करता है । नीचे वर्थ वाले ये भी सोचते हैं , नहीं वह भारतीय रेल की यात्री है , वह मातृभूमि पर यात्रा कर रहा है । वह जानना चाहता है भारतीय रेल ने अभी कहाँ तक प्रगति कर ली है ? ये सोचकर नीचे बर्थ वाले घुप्प अंधेरे में मातृभूमि को पहचानने का प्रयत्न करता है पर सोकर ही यह सोच लेता है पता नहीं किस अनचाहे सिगनल पर भाग्य की रेल रूकी खड़ी है और आलस्य से पता लगाए बिना सोया ही रहता है । ऊपर बर्थ वाले अपने प्रश्न को दोहराता है , नीचे वाले खामोशी को दोहराता है । यहाँ ऊपर बर्थ वाले और नीचे बर्थ वाले दोनों सोकर ही दुनियाँ को जान लेना चाहता है । ठीक इसी प्रकार आम व्यक्ति चाहता है कि बैठे बिठाए दुनियाँ का सारे ऐस मौज मिल जाए , नेम , फेम , प्रतिष्ठा मिल जाए । बिना मेहनत के ही फल की इच्छा करना इस ओर लेखक ने ध्यान दिलाने का प्रयास किया है , जो असम्भव है । इन्हीं खामोशी एवं चुप्पी को , निकम्मेपन को लेखक ने प्रगति कहा है । मनुष्य की इन आलसीपन पर व्यंग्य है ।

( ग ) “ भारतीय रेलें हमें मृत्यु का दर्शन समझाती हैं और अक्सर पटरी से उतरकर उसकी महत्ता का भी अनुभव करा देती है ।

” उत्तर – उपर्युक्त पक्ति द्वारा लेखक ने भारतीय रेल की अस्त – व्यस्तता , अव्यवस्था के बहाने शासन – व्यवस्था में अनियमितता को दर्शाया है । भारतीय समाज में राजनीति के चाल – चरित्र को सामने लाने का प्रयास है । भारतीय रेल में जिस प्रकार से व्यक्ति यात्रा करते हैं कई घंटे खड़े होकर , कष्ट सहकर , बोरे की तरह जाक लगाकर यात्रा करते हैं जो भारतीय रेल के अव्यवस्था का प्रमाण है । उसी प्रकार भारतीय राजनीतिक – सामाजिक व्यवस्था में आज इतनी अव्यवस्था , कुरीति , कुनीति ये सारे व्यक्ति को इतना व्यस्त कर दिया है कि दिमाग शांत ही नहीं रहता , बेचैन रहता है जिससे ऊबकर आदमी मरने को तैयार हो जाता है । इसी को लेखक ने मृत्यु का दर्शन कहा है । जिस तरह से अक्सर अव्यवस्था के कारण भारतीय रेल पटरी से उतर कर उसकी महत्ता को अनुभव करा देती है उसी प्रकार से प्रशासनिक एवं राजनीतिक व्यवस्था में अव्यवस्था के कारण हुए घटना से पता चलता है कि इस व्यवस्था में कितना दम है । इसी को लेखक ने मृत्यु का दर्शन कहा है ।
( घ ) “ कई बार मुझे लगता है कि भारतीय मनुष्य भारतीय रेलों से भी आगे है । आगे – आगे मनुष्य बढ़ रहा है , पीछे – पीछे रेल आ रही है । “

उत्तर – उपर्युक्त पंक्ति में भारतीय रेल की अव्यवस्था , उसमें यात्रा करने की असुविधा , भीड़ – भाड़ , पावदान से लटकना , असमय , समय पर न पहुँचना इत्यादि अव्यवस्थाओं को दिखाते हुए लेखक ने भारतीय राज व्यवस्था में इससे भी कहीं ज्यादा अव्यवस्था होने परिचय करवाया है और कहने का साहस किया है कि आज के मनुष्य भारतीय रेल में भीड़ भाड़  अस्त व्यस्त था  की भांति अपने जीवन को भी इतनी ही व्यस्तता में  ढालकर प्रगति कर रहा है रेल में क्या व्यस्तता है ? इससे बढ़कर आज हमारे भारतीय राजनीतिक जीवन में व्यस्तता है जिसके पीछे यहाँ लेखक कहना चाहता है कि भारतीय रेल भारतीय राज – व्यवस्था का अनुकरण करते  और उसके पीछे – पीछे चल रहे हैं ।

प्रश्न 7. रेल यात्रा के दौरान किन – किन परेशानियों का सामना करना पड़ता है पठित पाठ के आधार पर बताइए ।

उत्तर – रेल यात्रा के दौरान जिन परेशानियों को झेला जाता है उन परेशानियों पर लेखक । तीखा व्यंग्य किया है और कहा है “ बड़े आराम की मंजिल छोटे आराम से तय होती है । इस तरह बड़ी पीड़ा के सामने छोटी नगण्य है । ” जब किसी के पिता की मृत्यु हो जाती है , खबर सुनते ही वे भारतीय रेल में सवार होक यात्रा करने लगते हैं – भीड़ , धक्का – मुक्का , धुक्का – फजीहत , गाली – गलौज । वे सब कुछ सहन करते खड़े हैं । पिताजी मर गए हैं । बड़ी पीड़ा के सामने छोटी पीड़ा नगण्य है , रेल में जितना भी कठिनाइयाँ सहना पड़े सब सहन कर लेते हैं । तमाम परेशानियों को इसलिए झेला करते हैं क्योंकि उनके पिता की मृत्यु हो गयी है । अपने पिता से बिछुड़ने का काफी कष्ट है तो यह छोटा – मोटा कष्ट क्या मतलब रखता है । यहाँ राज – व्यवस्था में व्याप्त गलती की ओर लेखक का इशारा है कि इतने – इतने बड़े गलती करने वाले राजनेता हैं ही तो छोटे – छोटे गलती क्या मायन रखता है । होता है तो होने दो दिक्कत क्या है । इस प्रकार से लेखक ने बड़ी गलती करने वालों के लिए छोटी – छोटी गलती अक्सर आम बात है , इस तथ्य को स्पष्ट किया है |

प्रश्न 8. रेल विभाग के मंत्री कहते हैं कि भारतीय रेलें तेजी से प्रगति कर रही हैं । ठीक कहते हैं । रेलें हमेशा प्रगति करती हैं । इस व्यंग्य के माध्यम से लेखक भारतीय राजनीति व राजनेताओं का कौन – सा पक्ष दिखाना चाहता है । अपने शब्दों में बताइए ।

उत्तर – यहाँ पर लेखक ने रेल विभाग के मंत्री द्वारा कहे गये – भारतीय रेल तेजी से प्रगति कर  रही है – इन वाक्यों – पर व्यंग्य किया है और कहना चाहता है कि भारतीय रेल एवं शासन – व्यवस्था अपने निकम्मेपन में प्रगति की है । अपनी असफलता में तेजी से बढ़ोत्तरी की है । यहाँ पर भारतीय राजनीति व राजनेताओं का विफल होने के अपने वादे , इरादे पर खड़े न उतरने के पक्ष को लेखक दिखाना चाहता है । लेखक ने बहुत ही खूबसूरत व्यंग्य – ‘ हमेशा प्रगति कर रही है ‘ यानि आज के राजनेता अव्यवस्था को , कुरीति को , अकर्म को , इत्यादि अन्य कुसंगतियों को हमेशा बढ़ावा ही देना चाहते । इसलिए भारतीय रेल भी प्रगति कर रही है । इसी लहजे में इन पंक्तियों में लेखक ने राजनेताओं के विफलता में हो रहे प्रगति पर व्यंग्य किया है ।

प्रश्न 9. संपूर्ण पाठ से व्यंग्य के स्थल और वाक्य चुनिए और उनके व्यंग्यात्मक आशय स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर – रेल – यात्रा में लेखक ने पहला व्यंग्य किया है- ” रेल विभाग के मंत्री द्वारा कहे जाने पर कि देखिए जो प्रगति की राह में रोड़े कहाँ नहीं आती । राजनीतिक पार्टियों में आते हैं |
देश के रास्ते में आते हैं , तो यह बेचारी रेल है ।
रेल की प्रगति देखना है किसी डिब्बे में घुस जाइए ।
ईश्वर आपकी यात्रा सफल करें ।
ईश्वर के सिवा आपका है कौन ?
भारतीय रेलों में तो यह है आत्मा से परमात्मा और परमात्मा से आत्मा ।
भारतीय रेलों का काम उसे पहुंचा देना भर है ।
जिसमें मनोबल है , आत्मबल है , शारीरिक बल और दूसरे किस्म के बल हैं , उसे यात्रा करने से कोई नहीं रोक सकता ।
भारतीय रेल हमें जीवन जीना सिखाती हैं ।
जो चढ़ गया उसकी जगह , जो बैठ गया उसकी सीट , जो लेट गया उसका बर्थ ।
अगर आप वह सब कर सकते हैं तो राज्य की मुख्यमंत्री भी हो सकते हैं ।
भारतीय रेल साफ कहती है जिसमें दम उसके हम ।
आत्मबल चाहिए मित्रो ।
ये लें , ये हवाई जहाज , ये सब विदेशी हैं ।
ये न हमारा चरित्र बदल सकती है , न ही भाग्य ।
बड़ी पीड़ा के सामने छोटी पीड़ा नगण्य है बड़े आराम की मंजिल छोटे आराम से तय होती है ।
असली यात्री वो जो खाली हाथ है , टिकट का बोझ उसे सहन नहीं ।
भारतीय रेलें चिंतन के विकास में बड़ा योगदान देती हैं ।
ऊपर वाले अपने प्रश्न को दोहराता है मैं अपने खामोशी को , इत्यादि प्रत्येक वाक्य में कुछ – न – कुछ व्यंग्य छिपा है जो भारतीय रेल की अस्त – व्यस्तता , अव्यवस्था के बहाने भारतीय राज – व्यवस्था की पोल खोलती है|

प्रश्न 10. इस पाठ में व्यंग्य की दोहरी धार है , एक विभिन्न वस्तुओं और विषयों की ओर तो दूसरी अपनी अर्थात् भारतीय जन की ओर । पाठ से उदाहरण देते हुए यह प्रमाणित कीजिए ।

उत्तर – इस पाठ में निश्चित रूप से व्यंग्यकार ने दोहरी धार का प्रयोग किया है । एक ओर तो इस पाठ में भारतीय रेल में व्यवस्थाहीनता , भीड़ – भार , धक्कम – धुक्का , जो सीट छाप लिया उसका , जो सो गया उसका बर्थ , जिसमें अलग किस्म का बल उसका रेल यानि भारतीय रेलों में व्याप्त भ्रष्ट एवं अव्यवस्था को सीधे – सीधे सामने रखते हैं , वहीं इन्हों कुव्यवस्था को आधार बनाकर भारतीय सामाजिक , राजनीतिक स्थिति पर प्रहार किया है ।
एक तरफ तो भारतीय रेलों में अनेक घटनाओं , स्थितियों , व्यवस्था अव्यवस्थाओं का प्रतिबिम्ब रखता है और उसी को तीर बनाकर राज व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्ट नीति पर प्रहार करते हैं । एक ही उदाहरण से दो काम करते हैं इसलिए इस पाठ में दोहरी धार है जो दोनों ओर अपनी धारदार शब्दों से वास्तविकता को सामने लाने में कामयाब है ।
लेखक ने इस पाठ के माध्यम से अपने यथार्थ में जो छिपे पहलू हैं , जो सामने आना नहीं चाहता उसे सामने लाकर लोगों से परिचय करवाकर उसका पोल खोलने में कामयाबी पाया है । जिसका उदाहरण भारतीय रेलों में अव्यवस्था का प्रतीक – भारतीय राजनीकि – सामाजिक व्यवस्था की तुलना से है ।

प्रश्न 11. भारतीय रेलें चिंतन के विकास में योगदान देती हैं । कैसे ? व्यंग्यकार की दृष्टि से विचार कीजिए ।

उत्तर – व्यंग्यकार ने भारतीय रेलों को चिंतन के विकास में योगदान देने वाली इसलिए कहा है कि प्राचीन मनीषियों ने कहा है कि जीवन की अंतिम यात्रा में मनुष्य खाली हाथ रहा है । उन मनीषियों की बातों को याद दिलाकर लेखक यह कहना चाहता है कि जब रेल में यात्री यात्रा कर रहा होता है उस समय उनके जीवन का कोई ठिकाना नहीं होता है कि कब रेल एक्सीडेंट हो जाए और जीवन समाप्त हो जाए । क्योंकि रेलों में एक्सीडेंट होना आम बात है । कभी सिगनल – मेन शराब के नशे में धुत , तो कभी स्टेशन मास्टर ।
लेखक का विचार है कि जब यात्रा कर रहे यात्री को ये विश्वास ही नहीं कि कब क्या हो जाएगा फिर क्यों न खाली हाथ ट्रेन में सफर करे । जिसे टिकट भी भारी लगता वही सच्चे यात्री है उनको सीट भी मिल जाता है । यही चिन्तन के विकास में योगदान देती है खाली हाथ तो तिम यात्रा की जाती है जिसका एक उदाहरण भारतीय रेल भी है।

प्रश्न 12. टिकट को लेखक ने देह धरे को दंड क्यों कहा है ?

उत्तर– यहाँ पर लेखक ने टिकट को देह धरे को दंड इसलिए कहा है कि भारतीय रेल इतनी भीड़ होती है कि कई घंटों तक शरीर को हिलाना – डुलाना भी मुश्किल पड़ जाए । फिर यात्रा जो कर रहे हैं इसका भी तो वजन है , उसी का टिकट है । लेखक कहना चाहता है कि में जो देह का भार ढोता है उसी का टिकट दण्ड है । यात्री यह सोचता है काश सिर्फ आत्मा है होता तो कितने अच्छे से यात्रा कर लेता । लेखक ने भीड़ से आहत यात्री के मनोभाव को सवा सामने रखकर कहना चाहा है कि टिकट देह धरे को दण्ड है ।

प्रश्न 13. किस अर्थ में रेलें मनुष्य को मनुष्य के करीब लाती हैं ?

उत्तर – रेल में ऊंघते हुए यात्री एक – दूसरे के कंधे पर टिकने लगता है । यहाँ लेखक ने आपर दायित्व से बचने वालों पर भयंकर व्यंग्य किया है यानि खुद ऊँघने वाले व्यक्ति , दूसरे ऊँघने वास के कंधे पर टिकना चाहता है । आज की राजनीतिक व्यवस्था ऐसी ही है । राजनेता खुद तो विफल है ही , जो विफलता से बार – बार जूझ रहा है उसी पर फिर से बोझ डालना चाहता है न खुद में सामर्थ्य है न दूसरे में , फिर भी दूसरे के कंधे पर बोझ पटकना चाहता है और यही कारण है कि लेखक दर्शाना चाहता है कि मनुष्य निरर्थकता को और निरर्थकता के करीब जोड़ता है , इसी अर्थ में भारतीय रेलें मनुष्य को मनुष्य के करीब लाता है ।

प्रश्न 14. ‘ जब तक एक्सीडेंट न हो हमें जागते रहना है ‘ लेखक ऐसा क्यों कहता है !

उत्तर – लेखक एक्सीडेंट की बात इसलिए करता है कि भारतीय राजनीतिक – प्रशासनिक व्यवस्था में लगातार हो रहे भ्रष्टाचार की सिलसिलेवार को रूकता हुआ नहीं देखता यह और बढ़ता ही जाता है । लेखक यहाँ इस नीति के अंतिम परिणाम को देखना चाहता है इसीलिए जागते रहने और एक्सीडेंट की बात करते हैं । लेखक का मत है कि जब तक इस व्यवस्था में लिप्त लोगों को कुव्यवस्था वाद का महक नहीं लगता तब तक वे बैठने वाले नहीं , उसे चैन कहाँ । वे उथल – पुथल मचाया ही करते हैं , जागा ही करते हैं । साजिस रचा ही करते हैं । इसका जब तक उन्हें अन्तिम परिणाम नहीं मिल जाता उसे चैन कहाँ । इस अर्थ में लेखक ने उन व्यक्ति को संयमी कहकर व्यंग्य किया है । लेखक ने व्यंग्य के लहजे में कहना चाहा है कि जब तक एक्सीडेंट नहीं हो जाता , उनका जीवन खत्म नहीं हो जाता तब तक वैसे लोग भगदर , कुव्यवस्था में वृद्धि ही करेगा ।

भाषा की दात

प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों में से विदेशज शब्दों को छाँटिए ।

उत्तर – रोजमर्रा- विदेशज
मंत्री- तत्सम
अनंत -तत्सम
सीट -विदेशज
स्टेशन -विदेशज
चिंतन- तत्सम
वर्थ -विदेशज
लोकल- विदेशज
यात्री -तत्सम
ईश्वर -विदेशज
स्टार्ट -विदेशज
फौरन- विदेशज
थुक्का – फजीहत- विदेशज
प्राचीन- तत्सम
काम -तद्भव
हाथ -तद्भव
शराफत -विदेशज ।

प्रश्न 2. निम्नलिखित वाक्यों में से अव्यय को रेखांकित करें ।

उत्तर– ( क ) अरे जिसे जाना है , वह तो जाएगा । -जिसे
( ख ) सारी रेलों को अंतत: ऊपर जाना है । -को

( ग ) उधर प्लेटफार्म पर यात्री खड़े इसका इंतजार कर रहे हैं । -उधर
( घ ) जो संयमी होते हैं , वे रात भर जागते हैं । -वे

( ङ ) मगर क्या करें ? -क्या
( छ ) इसलिए असली यात्री वो , जो हो खाली हाथ ।- वो, जो

प्रश्न 3. निम्नांकित शब्दों की विग्रह करें एवं समास बताएँ|

उत्तर – रेलयात्रा-  रेल की यात्रा- तत्पुरुष समास रेलविभाग- रेल का विभाग -तत्पुरुष समास
अनंत -जिसका अंत नहीं- नञ समास
अनचाहा- ना चाहते हुए -नञ समास
अनजाना- ना जानते हुए -नञ  समास ।

प्रश्न 4. निम्नांकित तद्भव शब्दों का तत्सम रूप लिखिए ।

उत्तर – गाँव -ग्राम
काम -कार्य
हरदी- हल्दी |||

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