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 Bihar Board Class 8 Social Science History Solutions Chapter 2 भारत में अंग्रेजी राज्य की स्थापना

Bihar Board Class 8 Social Science History Solutions Chapter 2 भारत में अंग्रेजी राज्य की स्थापना

2. भारत में अंग्रेजी राज्य की स्थापना
पाठ का सारांश:
भारत और यूरोप के बीच व्यापार–पहले अंग्रेज भारतीय माल अरब देश के बाजारों सेखरीदते थे। अरब लोग रेगिस्तान के मार्ग से भारत आकर यहाँ का माल अपने देश ले जाते थे और अपने देश में अंग्रेजों को माल ऊंचे दामों पर बेचते थे। इससे अंग्रेज व्यापारियों को उन मालों को अपने देश में बेचने पर कम मुनाफा होता था।
15वीं शताब्दी के आस-पास यूरोप के व्यापारियों ने लाल सागर से होकर स्थल मार्ग से भारत आकर माल खरीदना और अपने देश ले जाकर बेचना शुरू किया। पर, इसमें उन्हें रास्ते में लूट जाने का डर बना रहता था और कई जगह चुंगी (कर) भी देना पड़ता था। अरब व्यापारी भी उन्हें तंग करते थे।
1498 में, पुर्तगाल नाविक वास्कोडिगामा ने यूरोप से होकर अफ्रीका का चक्कर लगाते उत्तमाशा अंतरीप (केप ऑफ गुड होप) के मार्ग से भारत के पश्चिमी तट पर स्थित कालीकट बन्दरगाह पर पहुंचा। वास्कोडिगामा जिन वस्तुओं को भारत से लेकर लौटा, उससे उसे उसकी यात्रा पर हुए खर्च से 60 गुणा लाभ हुआ ।
वास्कोडिगामा को व्यापारिक सफलता से उत्साहित होकर और उसके द्वारा खोजे गये नये समुद्री मार्ग को जानकारी से यूरोप के कई देश व्यापार के लिए भारत में आने लगे। इनमें पुर्तगाल, हॉलैंड, इंग्लैंड, फ्रांस और डेनमार्क की कंपनियाँ प्रमुख थीं। इन्हीं कंपनियों में एक प्रमुख कंपनी थी ब्रिटेन की ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ जो हमारे देश में व्यापार करने आयी पर हमारे देश को अपने अधीन कर 200 वर्षों तक यहाँ शासन की।
ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 31 दिसम्बर, 1600 को इंग्लैंड के कुछ व्यापारियों ने की थी। इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने इस कंपनी को पंद्रह वर्षों के लिए पूरब (एशिया) के देशों के साथ व्यापार करने का एकाधिकार दे दिया।
पुर्तगाल, हॉलैंड, फ्रांस और डेनमार्क देशों की कंपनियों के साथ इंग्लैंड की ईस्ट इंडिया कंपनी के हित टकराने लगे तो उनमें आपस में संघर्ष शुरू हो गया। सारी कंपनियाँ एक जैसी चीजें जैसे बारीक सूती कपड़े, रेशम, मलमल, नील, शोरा, मसाले आदि खरीदती थीं। ये कंपनियाँ सोना देकर भारत से ये सामान खरीदती थी चूंकि वहाँ के उत्पादों की भारत में मांग नहीं थी। एक तरह की वस्तुएं एक से ज्यादा कंपनी बेचती थीं तो उस वस्तु की कीमत यूरोपीय बाजार में कम हो जाती थी। अत: इन कंपनियों में एक-दूसरे को भारतीय बाजार से खदेड़ देने की हिंसक होड़ शुरू हो गयी।
इन कंपनियों द्वारा भारत में खरीदे माल को जहाज पर लादे जाने तक सुरक्षित रखने के लिए ‘फैक्ट्री में रखा जाता था। तब ये फैक्ट्री आज के कारखानों से अलग एक ऐसे गोदाम थे जिसकी किलेबंदी हो सके और इनकी सुरक्षा के लिए सशस्त्र सैनिकों की भर्ती होती थी जिन्हें यूरोपीय
तरीकों से नियमित ट्रेनिंग दी जाती थी जिससे ये सैनिक कई भारतीय राज्यों के सैनिकों की अपेक्षा पूर्णतः कुशल होते थे।
अंग्रेज फ्रांसीसी संघर्ष – अठारहवीं सदी के आरम्भ तक अंग्रेज और फ्रांसीसियों ने अन्य यूरोपीय कंपनियों को भारतीय और एशिया के महत्वपूर्ण बाजार-क्षेत्रों से खदेड़ दिया था। अब उनके बीच संघर्ष शुरू हो गया था। इस समय, भारत में मुगल शासन कमजोर हो गया था।
छोटे-बड़े राज्य अस्तित्व में आ चुके थे जो आपस में लड़ते रहते थे । इन कंपनियों ने इस स्थिति का लाभ उठाकर ऐसे राज्यों को अपने अधीन करने का प्रयास करना शुरू कर दिया। उनसे करों में छूट प्राप्त की तथा उस राज्य में व्यापार के एकाधिकार के बदले में वे इन राज्यों को सैनिक मदद देने का वादा किये।
जब यूरोप में फ्रांस और इंग्लैंड के बीच संघर्ष शुरू हुआ तो भारत में भी इन दोनों कंपनियों –
ईस्ट इंडिया कंपनी और फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच संघर्ष होने लगा जिसकी शुरुआत दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य से हुई। कर्नाटक का सूबा मुगल सामान्य से स्वतंत्र हो गया था। फ्रांसीसी कंपनी का मुख्य कार्यालय इसकी सीमा के काफी करीब था।
सन् 1740 में, फ्रांसीसियों के सैन्य-शक्ति बदती देख, कर्नाटक के नवाब ने उसके खिलाफ एक सेना भेजी जिसे फ्रांसीसियों को छोटी सेना ने हराकर साबित कर दिया कि यदि एक छोटी सेना भी अनुशासित, प्रशिक्षित व नियमित वेतन प्राप्त हो तो बड़ी भारतीय सेना को भी हटा सकती है।
सन् 1750 के आसपास कर्नाटक में उत्तराधिकार का संघर्ष शुरू हुआ। अंग्रेज कंपनी में अपनी पसंद के व्यक्ति को यहाँ का नवाब बनाकर फ्रांसीसियों को तगड़ा झटका दिया।
अंग्रेज और बंगाल – संघर्ष का क्षेत्र अब कर्नाटक के बाद उत्तर पूर्व की ओर बंगाल में स्थानान्तरित हो गया। बंगाल में अंग्रेजों ने कलकत्ता में अपनी फैक्ट्री स्थापित की हुई थी । मुगलों को केन्द्रीय सत्ता के कमजोर पड़ने पर बंगाल के मुगल दीवान मर्शिद कुली खाँ ने स्वयं को स्वतंत्र शासक घोषित कर लिया था पर ये मुगल बादशाह को राजस्व नियमित भेजते थे। उसके बाद 1740 में अलीवर्दी खाँ बंगाल का नवाब बना । उसके बाद उसका नाती सिराजुद्दौला नवाब बना तो उसके परिवार में साजिश और अगदे शुरू हो गए जिससे ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल में हस्तक्षेप करने का मौका मिल गया।
बंगाल पर व्यापार से शासन तक – बंगाल में पहली अंग्रेज फैक्ट्री 1651 में हुगली नदी के किनारे शुरू हुई। व्यापार में वृद्धि हुई तो इस फैक्ट्री के चारों और कम्पनी के अधिकारी और व्यापारी बसने लगे। फिर इस आबादी के चारों ओर किला बना दिया गया जिसका नाम रखा गया फोर्ट विलियम।
1696 में 1200 रुपए देकर अंग्रेजों ने तीन गाँवों-गोविंदपुर, सूवानाती और कालीकाला की जमींदारी यानी लगान एकत्र करने का अधिकार प्राप्त कर लिया। इन्हीं तीनों गांवों को मिलाकर कलकत्ता कहा जाने लगा जिसे अब कोलकाता कहा जाता है।
1717 ई. में कंपनी ने मुगल सम्राट फरखासियर ने तीन हजार वार्षिक कर के बदले बिना कोई अन्य कर दिये बंगाल में व्यापार करने की अनुमति प्राप्त कर ली। इससे बंगाल के राजस्य को काफी नुकसान हो रहा था।
कंपनी को मिली इस छूट से उसके कर्मचारी अपना निजी व्यापार का फायदा उठा रहे थे।
बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला ने कंपनी से नाखुश होकर उस पर धोखाधड़ी का आरोप लागकर उसकी किलाबंदी के विस्तार पर रोक लगा दी। कंपनी ने सिराजुचैला के खिलाफ उसे हराने का प्रयास शुरू किया तो उसने 30,000 सिपाहियों के साथ कपनी के खिलाफ पलासी में युद्ध छेड़ दिया जिसमें सिराजुद्दौला मारा गया और अंग्रेजों ने उसके सेनापति मीरजाफर को बंगाल का नबाब बना दिया । इस लड़ाई के साथ भारत में कंपनी की सत्ता की स्थापना की शुरुआत हुई।
कम्पनी ने सीधे-साधे राजनीतिक सत्ता स्थापित करने के झंझट में फंसना मुनासिब नहीं समझा । उसका ध्यान राजनीतिक सत्ता को अपने चंगुल में रखकर अपने व्यापार को बढ़ाने और मुनाफा कमाने तक सीमित रखा । उसने भारत का जमकर शोषण शुरू कर दिया। उसके कर्मचारी
भी अपना निजी लाभ उठाने के लिए लुट-खसोट मचाने लगे।
मीरजाफर ने इस लूट-खसोट की नीति का विरोध किया तो अंग्रेजों ने उसके दामाद मीरकासिम को 1760 में बंगाल का नबाब बना दिया। उसने इस खुशी में कंपनी को बर्दवान, मिदनापुर तथा चटगांव जिले की जमींदारी सौंप दी। दूसरी तरफ कंपनी के शिकंजे से बचने के लिए अपनी राजमानी मुर्शिदाबाद से जयकर मुंगेर ले गया । वहाँ मजबूत किलेबंदी की और करीब चालीस हजार सैनिकों की फौज तैयार की। यूरोपीय प्रशिक्षकों यानी फ्रांसीसियों की मदद लेकर
सेना को शक्तिशाली और आधुनिक बनाया । उसने कंपनी के खिलाफ मुगल शासक शाह आलम और अवध के नवाब शुजाउद्दौला से भी मदद मांगी।
तीनों की संयुक्त सेना की कंपनी की सेना के साथ बिहार के बक्सर में 1764 में युद्ध हुआ जिसमें भारतीय सेना हार गई। फिर, समझौते के अनुसार कंपनी को बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी और राजस्व वसूली का अधिकार मिल गया ।
दक्षिण भारत और अंग्रेज – दक्षिण भारत में मैसूर राज्य के शासक टीपू सुल्तान ने 1785 में चंदन की लकड़ी, काली मिर्च और इलायची के निर्यात पर रोक लगा दी थी।
टीपू सुल्तान ने फ्रांसीसियों से मित्रता कर अपनी सेना का आधुनिकीकरण किया था जिससे अंग्रेज उसके खिलाफ युद्ध छेड़ दिये और 1799 में श्री रंगपट्टम में टीपू बहादुरी के साथ लड़ते हुए मारा गया।
टीपू की मौत के बाद अंग्रेजों ने वोडियार राजवंश के हाथों मैसूर का शासन सौंपकर अप्रत्यक्ष रूप से मैसूर को अपने अधीन कर लिया।
अंग्रेज और मराठे -1817-19 के युद्ध में मराठे पूरी तरह पराजित हुए और मराठों का क्षेत्र भी पूरी तरह कंपनी के अधीन हो गया ।
कंपनी और पंजाब -रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद पंजाब में अस्थिरता आ गई । इस स्थिति का लाभ उठाकर 1849 में कंपनी ने पंजाब को अपने नियंत्रण में ले लिया।
विलय नीति-कंपनी की ‘विलय नीति’ के तहत यदि किसी शासक की मृत्यु हो जाए और उसका कोई पुत्र न हो, तो कंपनी उस राज्य को अपने नियंत्रण में ले लेती थी। इस नीति के तहत कंपनी ने भारत के कई राज्य, जैसे—सतारा, संबलपुर, उदयपुर, नागपुर और झांसी को अपने नियंत्रण में ले लिया ।
कंपनी हुकूमत की स्थापना – 1856 तक लगभग सम्पूर्ण भारत पर कंपनी का नियंत्रण हो चुका था। 1600 ई० में स्थापित एक व्यापारी कंपनी ने 1856 ई. तक पूरे भारत को अपने अधीन कर लिया था।
अपना लाभ सर्वोपरि— भारत की आन्तरिक कमजोरियों का लाभ उठाकर अंग्रेज यहाँ का वास्तविक शासक बन बैठे। पर, वे सीधे-सीधे शासन अपने हाथों में लेने के बदले अपने लाभ/पर नजर रखे रहे। इसके लिए उन्होंने लूट-खसोट, जोर-जबर्दस्ती, धोखा-धड़ी हर संभव नाजायज तरीके अपनाए।
पाठ के अन्दर आए प्रश्नों के उत्तर
(i) आठवीं शताब्दी में किस देश के व्यापारी भारत में व्यापार करने आए थे ?
उत्तर–आठवीं शताब्दी में अरब देश के व्यापारी भारत में व्यापार करने आए थे।
(ii) 1707 में मुगल बादशाह औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् भारत में कौन-कौन से राज्य बने?
उत्तर-1707 में मुगल बादशाह औरंगजेब को मृत्यु के पश्चात् भारत में जिन नये राज्यों का उदय हुआ उनमें सबसे प्रमुख राज्य थे—बंगाल, अवध और हैदराबाद (निजाम), साथ ही मराठा राज्य, सिक्ख और जाटों के राज्य ।
(¡¡¡) कुछ ऐसे यूरोपीय देशों के नाम बताएँ जो 15वीं से 17वीं शताब्दी के बीच व्यापार करने के उद्देश्य से हमारे देश में आए?
उत्तर-15वीं से 17वीं शताब्दी के बीच व्यापार करने के उद्देश्य से पुर्तगाल ने सबसे पहले भारत में अपनी व्यापारिक पैठ जमा ली थी। पुर्तगाली 15वीं शताब्दी में भारत आये थे। फिर सत्रहवीं शताब्दी में यूरोप के अन्य देश-इंग्लैंड, हॉलैण्ड, (डच), डेनमार्क और फ्रांस के व्यापारियों ने भारत के साथ व्यापार करने के लिए अपनी-अपनी ईस्ट इंडिया कंपनी बनाई।
2. वास्कोडिगामा ने भारत से वापस जाते समय किन-किन वस्तुओं को खरीदा सूची बनाइए।
उत्तर-वास्कोडिगामा ने भारत से वापस जाते समय इन चीजों को खरीदा काली मिर्च, नील, शोरा, सूती कपड़े, रेशम, मलमल के कपड़े और भारत के मसाले।
3. वाणिज्यवाद से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-वाणिज्यवाद का मतलब लाभ कमाने के उद्देश्य से की गई व्यापारिक गतिविधियाँ आती हैं। इसमें किसी देश की संपदा का अंदाजा इसके पास जमा मूल्यवान घातुओं, विशेषतः स्वर्ण की मात्रा पर निर्भर करता है।
4. आजकल की व्यापारिक कंपनियाँ ज्यादा से ज्यादा मुनाफे कमाने के लिए क्या करती हैं?
उत्तर—आजकल की कंपनियाँ ज्यादा से ज्यादा मुनाफे कमाने के लिए भिन्न माध्यमों से अपना खूब प्रचार करती हैं। साथ ही, अन्य कंपनियों के उत्पादों के मुकाबले अपने उत्पादों की कीमत कम करके और छूट, उपहार आदि आकर्षक योजनाएँ बनाकर अपना मुनाफा बढ़ाने का प्रयास करती हैं। इस क्रम में वे अपने उत्पादों की गुणवत्ता को कमतर भी कर देती हैं।
5. आज मुर्शिदाबाद शहर की क्या स्थिति है ? पता करें।
उत्तर-अपने शिक्षक की सहायता से विशेष पता करें। वैसे, आपका मुर्शिदाबाद एक आधुनिक शहर है जहाँ व्यापार के काफी साधन फल-फूल रहे हैं पर पूर्व की तरह इसका महत्व नहीं रहा।
6. कम्पनी की फैक्टरी मद्रास एवं बम्बई में भी थे। आज इन जगहों को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर-आज मद्रास को चेन्नई एवं बम्बई को मुम्बई नाम से जानते हैं।
7. जरा सोचिए बिना शुल्क चुकाए व्यापार करने के क्या परिणाम हुए होंगे?
उत्तर-इससे बंगाल के राजस्व को काफी नुकसान हुआ होगा और अंग्रेजों की तो चाँदी ही बन आयी होगी यानी उन्हें लाभ ही लाभ हुआ होगा।
8. मुंगेर किस नदी के किनारे बसा है तथा मुंगेर किन-किन चीजों के लिए प्रसिद्ध है ? पता करें।
उत्तर-मुंगेर गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है। यह बंदूक फैक्ट्री, सिगरेट फैक्ट्री, कर्ण का किला और माँ चण्डी के स्थान/मन्दिर के लिए प्रसिद्ध है।
9. कंपनी को दीवानी मिलने से क्या-क्या फायदे हुए होंगे?
उत्तर-कंपनी को दीवानी मिलने से कंपनी को इन प्रदेशों से राजस्व वसूली का अधिकार मिल गया। शासन पर अप्रत्यक्ष अधिकार प्राप्त हो गया और व्यापार में खूब लाभ भी प्राप्त हुआ।
10. कंपनी की सफलता के उपयुक्त कारणों में से आपके अनुसार सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारण क्या हो सकता है? इनके अतिरिक्त आप किसी और कारण के बारे में बता सकते हैं?
उत्तर-कंपनी की सफलता में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारण, उपयुक्त कारणों में से मेरे अनुसार यह था कि उनके पास भारतीय सेनाओं से बेहतर तोपें और बंदूक थीं। कंपनी की सफलता का एक अन्य महत्वपूर्ण कारण रहा भारतीय शासकों का आपस में फूट और लगातार आपस में लड़ते रहना जिसके लिए वे विदेशी शक्ति से भी हाथ मिलाने को तैयार रहते थे। अभ्यास:-
आइए फिर से याद करें-
1. रिक्त स्थानों को भरें
(क) भारत और यूरोप के बीच स्थल मार्ग से होनेवाले व्यापार में ………की महत्वपूर्ण  भूमिका थी।
उत्तर-अरब सौदागरों।
(ख) कंपनी द्वारा खरीदा गया माल……. में रखा जाता था।
उत्तर-फैक्टरी।
(ग) एक के बाद एक कई लड़ाइयों ने मराठों को……. कर दिया।
उत्तर–कमजोर ।
(घ)……….. अंग्रेजों के साथ सबसे पहले आर्थिक सहायक संधि को स्वीकार किया
उत्तर-शुजाउद्दौला और शाह आलम ने ।
(ङ)………..’ने विलय नीति का अनुसरण किया ।
उत्तर-अंग्रेजों।
2. सही और गलत बताइए:
(क) यूरोप के व्यापारी भारत में अपना माल बेचने और बदलने में यहाँ से सोने-चाँदी लेने आए थे।
(ख) ईस्ट इंडिया कम्पनी को भारत में व्यापार करने का एकाधिकार मिल गया।
(ग) भारतीय राज्य एकता के अभाव में एक-एक कर अंग्रेजी शासन के अधीन होते चले गए।
(घ) कर मुक्त व्यापार से बंगाल के राजस्व का काफी नुकसान हो रहा था।
(ङ) कंपनी की सेना की जीत हुई, क्योंकि उनके पास भारतीय सेनाओं से बेहतर तोपें और बंदूक थीं।
उत्तर—(क) गलत, (ख) सही, (ग) सही, (घ) सही, (ङ) सही।
आइए विचार करें-
(i) यूरोप की व्यापारिक कंपनियों ने क्यों भारत के राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप करना शुरू किया ?
उत्तर-यूरोप को व्यापारिक कंपनियों का मुख्य उद्देश्य व्यापार में अधिक-से-अधिक लाभ कमाना था। करों में छूट प्राप्त करने के लिए और राज्य में व्यापार के एकाधिकार प्राप्त करने के लिए उन्हें राजनीतिक क्षेत्र से ही ये सुविधाएँ मिल सकती हैं। अत: उन्होंने अपने लिए अधिक
सुविधाएँ पाने के क्रम में राजनीतिक अनुकम्पा प्राप्त करने की कोशिश की। उन्होंने यह भी देखा कि भारतीय राज्य एक-दूसरे से लड़ने में मशगूल हैं और उनमें फूट व वैमनस्य है। इस स्थिति का लाभ उठाने के लिए उन्होंने भारत के राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया।
इससे राजनीतिक सत्ता पर उनकी पकड़ भी मजबूत हो गयी और उन्हें अधिक-से-अधिक व्यापारिक सुविधाएँ भी मिल गयीं।
(ii) अंग्रेज बंगाल पर क्यों अधिकार करना चाहते थे?
उत्तर – बंगाल एक बड़ा और धनी प्रांत था। इसमें आधुनिक बिहार और उडीसा भी शामिल थे। बंगाल पर अधिकार प्राप्त करने का अर्थ होता कि वहाँ से अन्य यूरोपीय कंपनियों को व्यापार से दूर रखना और कुल मुनाफा स्वयं कमाना । अधिक से अधिक मुनाफा कमाने के लिए बंगाल
पर राजनीतिक अधिकार प्राप्त करना अंग्रेजों के लिए जरूरी हो गया था। ऐसी स्थिति बन जाने का अर्थ होता कि कंपनी राज्य में जो भी माल खरीदती, उस पर उसे किसी भी प्रकार का कोई कर नहीं देना पड़ता । अतः इन्हीं व्यापारिक कारणों से अंग्रेज बंगाल पर अधिकार करना चाहते थे।
(ii) क्यों और किन परिस्थितियों में भारतीय शासकों ने सहायक संधि की शर्तों को स्वीकार किया?
उत्तर-1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के बाद कई नये स्वतंत्र क्षेत्रीय राज्यों का उदय हुआ था। इनमें आपसी तालमेल का अभाव था। हर राज्य दूसरों के इलाके हड़पकर अपने राज्य का विस्तार चाहता था। उनमें एकता के अभाव की स्थिति को देखकर अंग्रेज उन्हें अपनी आधुनिक सैन्य सहायता देना चाहते थे ताकि वे अपने पड़ोसी राज्य से लड़कर आसानी से जीत
सकें। इसमें अंग्रेजों का निजी स्वार्थ तो था ही, भारतीय शासक भी इसमें अपना लाभ देख रहे थे कि उनके राज्य क्षेत्र का विस्तार होगा। साथ ही, जो शासक या राज्य अंग्रेजों के व्यापारिक लाभ के रास्ते में बाधा खड़ी करता था, अंग्रेज उसके खिलाफ दूसरे राज्य के सहारे युद्ध छेड़कर उसे हराकर अप्रत्यक्ष रूप से उस राज्य पर कब्जा कर लेते थे। अतः हर परिस्थिति में भारतीय शासकों को अंग्रेजों की सहायक संधि की शर्तों को स्वीकार करना ही पड़ता था।
(iv) पलासी और बक्सर के युद्धों में आप किसे निर्णायक मानते हैं और क्यों ?
उत्तर-जून, 1757 में मुर्शिदाबाद के पास पलासी में बंगाल के नवाब सिराजुउद्दौला के करीब 30,000 सिपाहियों और अंग्रेजी सेना के बीच युद्ध हुआ था। बिना कोई कर दिये बंगाल में व्यापार करने का शाही फरमान अंग्रेजों ने 1717 ई. में मुगल सम्राट फर्रुखसियर से प्राप्त कर लिया था जिससे बंगाल के राजस्व को काफी क्षति हो रही थी। इसी के खिलाफ सिराजुद्दौला ने अंग्रेजों से युद्ध किया पर नवाब सिराजुद्दौला मारा गया। फिर उसके सेनापति मीरजाफर को बंगाल का नवाब बनाकर अंग्रेजों ने भारत में कंपनी की सत्ता की स्थापना की शुरुआत की।
मीरजाफर ने भी जब कंपनी की अनीतियों का विरोध किया तो उसे हटाकर अंग्रेजों ने उसके दामाद मीरकासिम को 1760 में बंगाल का नवाब बना दिया। बाद में वह भी अंग्रेजों की गलत नीतियों के खिलाफ हो गया। उसने मुगल शासक शाह आलम और अवध के नवाब शुजाउद्दौला के साथ मिलकर अंग्रेजों की खिलाफत की।
अंततः, तीनों की संयुक्त सेना के कंपनी की सेना के साथ पश्चिम बिहार के बक्सर नामक स्थान पर 1764 ई. में युद्ध हुआ जिसमें भारतीय सेनाओं की हार हो गई। इस हार के पश्चात् 1765 ई० में शुजाउद्दौला और शाह आलम ने इलाहाबाद में क्लाइव के साथ समझौतों पर हस्ताक्षर किए।
समझौतों के अनुसार ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी मिल गई।
इससे कंपनी को इन प्रदेशों से राजस्व वसूली का अधिकार मिल गया। इससे उन्हें अत्यधिक व्यापारिक फायदा हुआ । अब वे बंगाल विजय के बाद भारत में एक महत्वपूर्ण राजनैतिक शक्ति के रूप में उभरे और धीरे-धीरे पूरे भारत के आर्थिक संसाधनों पर अपना कब्जा जमाने के प्रयास में लग गए।
अतः यह स्पष्ट है कि पलासी की अपेक्षा बक्सर का युद्ध अंग्रेजों के लिए निर्णायक था।
यहीं से वे पूरे भारत पर अपना अधिकार जमाने में सफल हुए। अत: बवसर का युद्ध अधिक निर्णायक था।

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