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 bseb class 8th history | जातीय व्यवस्था की चुनौतियाँ

bseb class 8th history | जातीय व्यवस्था की चुनौतियाँ

जातीय व्यवस्था की चुनौतियाँ
पाठ का सारांश-मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज के बिना उसका कोई अस्तित्व नहीं है। पर मनुष्य ने समाज को पूरी दुनिया में कई वर्गों में बांटकर भेद-भाव को भी जन्म दिया है। भारत के समाज में वर्ग-विभाजन का दंश कुछ ज्यादा ही व्याप्त है। इस क्रम में वर्ग शक्तिशाली तथा अन्य वर्ग कमजोर बने रहे जिनमें असंतोष व्याप्त रहा है।
जाति सुधार हेतु तर्क-प्राचीन भारतीय काल में समाज में काम के आधार पर चार वर्ण थे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र । आगे चलकर इन विभाजनों ने जातियों का रूप धारण कर लिया। इनमें पुन: कई उपजातियाँ बन गईं। इनके बीच सम्बन्धों में धीरे-धीरे संकीर्णता आई,
ऊँच-नीच का भेद-भाव बढ़ा, अन्तरजातीय शादी-विवाह एवं सामाजिक सम्बन्धों पर रोक लग गई। जाति का निर्धारण जो काम के आधार पर था, अब जन्म के आधार पर होने लगा। जाति प्रथा का सबसे कठोर रूप छुआ-छूत की भावना के रूप में प्रकट हुआ। निम्न जातियों को अपवित्र माना गया। उनका सामाजिक बहिष्कार तक किया गया। उन्हें अछूत तक मान लिया गया।
आधुनिक शिक्षा विशेषकर अंग्रेजी शिक्षा के कारण उन्नीसवीं सदी में जाति-व्यवस्था की संकीर्णता और कमजोरियों को सामने लाने और उन्हें दूर करने का प्रयास किया गया। इस सदी में कई सामाजिक आंदोलन हुए जो समाज में सुधार लाना चाहते थे।
पढ़े-लिखे लोग एक ओर तो विदेशी सरकार से आजाद होने की लड़ाई लड़ रहे थे तो दूसरी ओर समाज में जातिगत अन्याय और अनुचित परम्पराओं का भी अंत चाहते थे। इनका उद्देश्य एक प्रगतिशील समाज बनाना था ताकि जातिगत भेदभाव को दूर किया जा सके।
समाज के एक छोर पर शक्ति सम्पन्न ब्राह्मण थे तो दूसरे छोर पर अछूत । उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में ‘निम्न’ जातियों के अंदर से भी जातीय भेदभाव के खिलाफ आवाज उठने लगी थी।
महात्मा ज्योति राव फूले (1824-1890)- महात्मा ज्योति राव फूले जाति व्यवस्था को मनुष्यों की समानता के खिलाफ मानते थे। उन्होंने आर्यवैदिक परम्पराओं का विरोध करने के लिए ‘दीनबंधु’ नामक मराठी पत्रिका निकाली। 1873 में ‘गुलामी’ नाम से निकाली गई अपनी पुस्तक में फूले ने शूद्रों की दासता की तुलना अमरीकी नीग्रो (काले गुलामों) से की। इस प्रकार उन्होंने प्रजाति एवं जाति आधारित शोषण के विश्वव्यापी रूप को भी उजागर किया। जातिगत असमानताओं और शूद्र जातियों की सामाजिक अधीनता तथा आर्थिक पिछड़ेपन के बीच संबंध के बारे में भी ज्योतिराव फूले ने चेतना जगाई।
फूले ने अत्याचार और उत्पीड़न से संघर्ष करने के लिए कई प्रयास किये। उन्होंने ब्राह्मणों के उस दावे को नकारा की आर्य होने के कारण वह औरों से श्रेष्ठ हैं। उनका तर्क था कि आर्यnविदेशी हैं और यहाँ के मूल निवासियों को हराकर उन्हें निम्न मानने लगे हैं। फूले ने गैर ब्राह्मणों का मनोबल बढ़ाया। उन्होंने धार्मिक विचारधारा और जाति प्रथा को पूरी तरह से नकार दिया ।
उन्होंने महाराष्ट्र की सभी निम्न जातियों के लिए एक सामूहिक पहचान बनायी।
वीरशेलिंगम (1848-1919):- दक्षिण भारत में कुंडुकरि वीर शेलिंगम ने सामाजिक असमानता के विरोध में आंदोलन का सूत्रपात किया। निर्धन परिवार में जन्में स्कूल शिक्षक वीरशेलिंगम को आधुनिक तेलुगु गद्य साहित्य का जनक कहा जाता है। दक्षिण भारत में, महिलाओं की चिंताजनक स्थिति को देखकर उन्होंने महिला उत्थान के प्रति जागरूकता पैदा की। विधवा पुनर्विवाह, नारी शिक्षा, महिला मुक्ति जैसी सामाजिक बुराइयों का विरोध कर वे आंध्र के समाज सुधारकों की अगली पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत बन गये ।
नारायण गुरु (1855-1928):- केरल में ऐझावा निम्न जाति में जन्मे नानू आसन (जो बाद में श्री नारायण गुरु के नाम से जाने गये) एक धार्मिक गुरु के रूप में उभरे । उन्होंने जाति के भेदभाव, छुआ-छूत का विरोध किया। पूजा, विवाह और मृतक के अंतिम संस्कार की विधि को सरल किया । समाज के दवे वर्ग को राष्ट्र की मुख्य धारा से जोड़ने का इन्होंने प्रयास किया।
ई. वी. रामास्वामी नायर (पेरियार) (1879-1973) और आत्मसम्मान आंदोलन:-
बीसवीं सदी के आरंभ में गैर ब्राह्मण आंदोलन आगे बढ़ा। ई.वी. रामास्वामी नायर (पेरियार) ने जाति व्यवस्था की आलोचना की और मानव जाति की मौलिक समानता और गरिमा पर बल दिया। वे स्वयं एक संन्यासी थे. और हिन्दू वेद, पुराणों के कट्टर आलोचक भी थे। 1924 में कांग्रेस द्वारा आयोजित एक भोज में जब निम्न जाति को अलग बैठाया गया तबत्र पेरियार ने फैसला लिया कि अछूतों को अपने स्वाभिमान के लिए लड़ना होगा। इसी बात को ध्यान में रख उन्होंने 1925 में स्वाभिमान आंदोलन शुरू किया ताकि गैर ब्राह्मण जाति को जागरूक बनाया जा सके।
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी:- महात्मा गाँधी ने निम्न जातियों के बीच जागरूकता उत्पन्न करने के लिए अनेकों प्रयास किये । अछूतों और दलितों को उन्होंने ‘हरिजन’ नाम दिया । इनका उत्थान करना गाँधीजी का मुख्य उद्देश्य था। इस हेतु उन्होंने अनेक रचनात्मक कार्यक्रम चलाये जिससे छुआछूत की प्रथा कमजोर पड़ी। गाँधीजी ने जाति प्रथा में सुधार के प्रयासों के साथ छुआ-छूत के विरोध, महिलाओं की स्थिति में सुधार और हिन्दू-मुस्लिम एकता को बढ़ाने के महत्वपूर्ण उपाय किये।
बाबा भीमराव अम्बेदकर इन्होंने जातीय भेदभाव और पूर्वाग्रहों को बहुत निकट से महसूस किया था। इनके जीवन का उद्देश्य दलित उत्थान की भावना से प्रेरित था । सामंती दासता के वे प्रबल विरोधी थे। उन्होंने दलितों को शिक्षित होने का आह्वान किया एवं दलितों के वैधानिक और राजनैतिक अधिकारों की मांग रखी। उनके द्वारा मैला ढोने की अमानवीय परम्परा की उन्होंने बड़ी निंदा की।
आज भारत में जिस दर्शन को लोकप्रियता मिली है वह समता, भाईचारा और आजादी आधारित है। आज समाज में निम्न जातियों और दलितों की स्थिति में जो भी सुधार दिखते हैं, उसके पीछे कई सामाजिक आंदोलनों की सार्थक व महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
अभ्यास
आइए फिर से याद करें-
1. सही विकल्प को चुनें।
(i) फूले के द्वारा किस संगठन की स्थापना हुई ?
(क) ब्राह्मण समाज
(ख) आर्य समाज
(ग) सत्यशोधक समाज
(घ) प्रार्थना समाज
(ii) गैर बराबरी विरोधी आंदोलन को केरल में किसके द्वारा प्रारंभ किया गया?
(क) वीरशेलिंगम
(ख) नारायण गुरु
(ग) पेरियार
(घ) ज्योतिराव फूले
(iii) पेरियार के द्वारा कौन-सा आंदोलन प्रारंभ किया गया?
(क) आत्म सम्मान आंदोलन      (ख) जाति सुधार आंदोलन
(ग) छुआछूत विरोधी आंदोलन   (घ) धार्मिक समानता आंदोलन
(iv) हरिजन सेवा संघ महात्मा गांधी के द्वारा किस वर्ष गठित किया गया?
(क) 1932
(ख) 1933
(ग) 1934
(घ) 1935
(v) बाबा भीमराव अम्बेदकर के द्वारा किस वर्ष बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना हुई?
(क) 1921
(ख) 1924
(ग) 1934
(घ) 1945
उत्तर-(i) (ग), (ii) (ख), (iii) (क), (iv) (क), (v) (ख) ।
आइए विचार करें-
1. ज्योतिराव फूले के मुख्य विचार क्या थे?
उत्तर-ज्योतिराव फूले जाति व्यवस्था को मनुष्यों की समानता के खिलाफ मानते थे। उन्होंने जाति व्यवस्था को पूरी तरह से नकार दिया। अछूत वर्ग के खिलाफ अमानवीय व्यवहार और उन्हें सामान्य मानव अधिकार से वंचित रखने की स्थिति ने फूले को जाति प्रथा का प्रबल विरोधी बना दिया था। असमानता के खिलाफ लोगों को जगाना ही उनका मूल उद्देश्य था।
फूले का मानना था कि आर्य विदेशी हैं और भारत के मूल निवासियों को हराकर उन्हें निम्न मानने लगे हैं। उनके अनुसार यह धरती यहाँ के देशी लोगों की यानी कथित निम्न जाति के लोगों की है।
2. वीरशेलिंगम के योगदान की चर्चा करें।
उत्तर–वीरशेलिंगम का पूरा नाम कुंडुकरि वीरशेलिंगम था। दक्षिण भारत में उन्होंने सामाजिक असमानता के विरोध में सशक्त आदोलन चलाया । एक निर्धन परिवार में जन्मे, स्कूल शिक्षक, वीरशेलिंगम ने तेलुगु भाषा में कई लेख लिखे जिसके लिए उन्हें आधुनिक तेलुगु गद्य साहित्य का जनक कहा जाता है। दक्षिण भारत में महिलाओं की स्थिति चिंताजनक थी अत: इनके द्वारा महिला उत्थान के प्रति जागरूकता पैदा की गयी । विधवा पुनर्विवाह नारी शिक्षा, महिला मुक्ति जैसी सामाजिक बुराइयों जैसे विषयों के प्रति उनके उत्साह ने उन्हें आंध्र के समाज सुधारकों की अगली पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत बना दिया। उनके द्वारा चलाया गया जातीय आंदोलन एक प्रेरणा स्रोत के रूप में स्वीकार किया जाता है जिसने दक्षिण भारत में ऐसे दूसरे महत्वपूर्ण संगठनों एवं आंदोलनों को आगे बढ़ाने में सहायता की। इसका परिणाम बीसवीं सदी में चलाये गये आंदोलनों में देखा जाता है
3. श्री नारायण गुरु का समाज सुधार के क्षेत्र में क्या योगदान रहा?
उत्तर–केरल में ऐझावा निम्न जाति में जन्मे नानू आसन जो बाद में श्री नारायण गुरु के नाम से जाने गये, एक धार्मिक गुरु के रूप में उभरे । इन्होंने अपने लोगों के बीच एकता का आदर्श रखा । उन्होंने प्रेरणा दी कि उनके पंथ में जाति का भेदभाव नहीं होना चाहिए और सभी को एक गुरु में विश्वास रखना चाहिए । इनके द्वारा श्री नारायण धर्म परिपालन योगम की स्थापना 1902 मैं हुई। इस संगठन के समक्ष दो उद्देश्य थे, एक छुआ-छूत का विरोध और दूसरा पूजा, विवाह और मृतक के अंतिम संस्कार की सरल विधि ।
इन पंथों की स्थापना चूँकि उन लोगों ने की जो स्वयं निम्न जातियों से थे और उनके बीच ही काम करते थे अत: उन्होंने निम्न जातियों के बीच प्रचलित आदतों और तौर-तरीकों को बदलने का प्रयास किया और उच्च वर्ण के तौर-तरीकों को अपनाने का प्रयास किया, ताकि निम्न जातिय में स्वाभिमान पैदा किया जा सके।
4. महात्मा गाँधी के द्वारा छुआछूत निवारण के क्या उपाय किये गये ?
उत्तर-महात्मा गाँधी ने अछूतों और दलितों को ‘हरिजन’ का नाम दिया । इनका उत्थान गाँधीजी का प्रमुख उद्देश्य था। उनके उद्धार के लिए गाँधीजी के द्वारा अनेक रचनात्मक कार्यक्रम चलाये गये । इन प्रयासों से छुआछूत की प्रथा कमजोर पड़ी। 1932 में गाँधीजी ने हरिजन सेवक संघ स्थापित किया जो उन्हें चिकित्सा और तकनीक संबंधी जानकारी एवं सुविधा पहुँचा सके 1933 में उन्होंने ‘हरिजन’ नामक साप्ताहिक पत्रिका निकाली, जिसमें कई संवेदनशील विषय जैसे हरिजनों का मंदिर प्रवेश, जलाशयों को हरिजन के लिए उपलब्ध कराना शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश आदि का समर्थन किया गया। गाँधीजी ने जाति प्रथा में सुधार के प्रयासों के साथ छुआ-छूत के विरोध, महिलाओं की स्थिति में सुधार और हिन्दू-मुस्लिम एकता को बढ़ाने के महत्वपूर्ण उपाय किये।
5. बाबा साहब भीमराव अम्बेदकर ने जातीय भेद-भाव को दूर करने के लिए किस तरह के प्रयास किए?
उत्तर-अम्बेदकर के द्वारा 1920 के दशक में एक प्रमुख आंदोलन प्रारंभ हुआ। इस आंदोलन को संगठित रूप देने के लिए 1924 में बहिष्कृत हितकारी सभा का गठन हुआ। 1927 में महान सत्याग्रह का आरंभ किया गया ताकि अछूतों के प्रति अपनाई गई भेदभाव की नीति के समाप्त किया जा सके।

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