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 BSEB class 9th hindi note – भारतीय चित्रपट- मूक से सवाक फिल्मों तक

BSEB class 9th hindi note – भारतीय चित्रपट- मूक से सवाक फिल्मों तक

BSEB class 9th hindi note

वर्ग – 9

विषय – हिंदी

पाठ 5 – भारतीय चित्रपट- मूक से सवाक फिल्मों तक

भारतीय  : मूक से सवाक फिल्मों तक
                               -अमृतलाल नागर      –   लेखक – परिचय
अमृतलाल नागर का जन्म आगरा जिला के गोकुलपुरा में 17 अगस्त , 1916 ई . को हुआ । गोकुलपुरा उनका ननिहाल था । वे मूलत : गुजराती ब्राह्मण थे । उनके पितामह पंडित शिवराम नागर 1895 ई . में लखनऊवासी हो गए थे । जब नागरजी 19 वर्ष के थे तभी उनके पिता का देहात हो गया । अर्थोपार्जन की विवशता के कारण उनकी विधिवत शिक्षा हाई स्कूल तक ही हुई , किंतु निरंतर स्वाध्याय द्वारा साहित्य , इतिहास , पुराण , पुरातत्व , समाजशास्त्र , मनोविज्ञान आदि विषयों पर तथा हिंदी , अंग्रेजी , मराठी , बंगला आदि भाषाओं पर अधिकार प्राप्त किया । एक छोटी – सी नौकरी के बाद कुछ समय तक मुक्त लेखन एवं हास्यरस के प्रसिद्ध पत्र ‘ चकलस ‘ के संपादन के अनंतर 1940 ई . से 1947 ई . तक कोल्हापुर , मुंबई एवं चेन्नई के फिल्म क्षेत्र में लेखन कार्य किया । 1953 ई . से 1956 ई . तक वे आकाशवाणी , लखनऊ में ड्रामा प्रोड्यूसर के पद पर रहे । तदुपरांत वे स्वतंत्र लेखन करते रहे और हिंदी साहित्य में अपनी स्थाई पहचान बनायी ।
अमृतलाल नागर हिन्दी के गंभीर कथाकारों में संभवतः सर्वाधिक लोकप्रिय हैं । इसका अर्थ यह है कि वे विशिष्टता और रंजकता दोनों तत्वों को अपने कृतियों में समेटने में समर्थ हुए हैं । वे आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रमुख कथाकार , विचारक एवं अनुवादक थे । साहित्य की अनेक विधाओं – कहानी एवं रेखाचित्र , उपन्यास , रिपोर्ताज , भेटवार्ता एवं संस्मरण , अनुवाद में उनका अवदान महत्वपूर्ण है । उन्होंने विशाल साहित्य की रचना की है जिसमें वस्तु – भाव , भाषा शिल्प आदि के धरातल पर प्रयोगों और नवाचारों की बहुलता है । साहित्य – लेखन के अतिरिक्त मुम्बई एवं चेन्नई के फिल्म क्षेत्र में लेखन – कार्य एवं ड्रामा प्रोड्यूसर के रूप में अपनी सर्जनात्मकता को विस्तार दिया है । निरन्तर स्वाध्याय द्वारा इतिहास , पुराण , पुरातत्व , समाजशास्त्र , मनोविज्ञान विषयों पर तथा हिन्दी , गुजराती , मराठी , बंगला एवं अंग्रेजी भाषा पर अधिकार प्राप्त करने के कारण ही वे अच्छे अनुवादक के रूप में दिखाई पड़ते हैं । गूढ़ और विदग्ध हास – परिहास तथा व्यंग्य से परिपूर्ण अपनी कलात्मक भाषा  शैली को देखते हुए अपने समय के रचनाकारों में विशिष्ट हैं।
कहानी का सारांश
‘ भारतीय चित्रपट : मूक फिल्मों से सवाक् फिल्मों तक ‘ शीर्षक निबंध प्रसिद्ध साहित्यकार अमृतलाल नागर के निबंध – संग्रह ‘ फिल्म क्षेत्रे रंग क्षेत्रे ‘ से लिया गया है । अमृतलाल नागर हिंदी के युग प्रवर्तक साहित्यकार होने के साथ – साथ फिल्म लेखन से भी जुड़े थे । इस निबंध में भारतीय फिल्म के उद्भव और विकास की कथा कही गई है ।
उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दियों में कई बड़े आविष्कार हुए जिनकी पहले कोई कल्पना नहीं कर सकता था । ऐसा ही एक अविष्कार था फिल्म । फिल्म के आविष्कार ने मानव जीवन में हलचल मचा दिया । 6 जुलाई 1896 को भारत में पहली बार फिल्म प्रदर्शन मुम्बई में हुआ । इससे जनता के बीच तहलका मच गया । उस समय इसका टिकट एक रुपया था । इसे देखने वालों को कौन कहे इसके बारे में सुनने वालों के भी रोमांच का ठिकाना नहीं था । उस समय की फिल्म आज की फिल्मों की तरह कहानी पर आधारित नहीं होती थी । उसमें छोटी – छोटी तस्वीरें होती थी , किसी में समुद्र स्नान के दृश्य दिखलाए जाते थे तो किसी में कारखाने से छूटते हुए मजदूरोंका दृश्य रहता था । लोग यह देखकर अचंभा में पड़ जाते थे कि तस्वीरें भी चलती – फिरती और नाचती हैं ।
1897 में पहली बार मुम्बई की जनता को फिल्म में कुछ भारतीय दृश्य देखने को मिले । उस जमाने में फिल्मों को वायोस्कोप कहा जाता था ।
भारत में फिल्म निर्माण का काम शुरू करने वाले पहले व्यक्ति सावे दादा थे । अमृतलाल नागर उनसे 1941 में कोल्हापुर में मिले थे । उनका कद गोरा चिट्टा था । वे दुबली – पतली काया वाले व्यक्ति थे । वे एक बड़े कैमरामैन और भारतीय फिल्म व्यवसाय के आदि पुरुष थे । उन्होंने ल्युमीयर ब्रदर्स के प्रोजेक्टर , फोटो डेवलप करने की मशीन का भारतीयकरण कर लिया था । उन्होंने कब्रिज विश्वविद्यालय के प्रथम भारतीय छात्र तथा लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति आर . पी . परांजपे , लोकमान्य तिलक गोखले आदि पर फिल्में बनाई थीं ।
ययय दादा साहेब फाल्के भारतीय फिल्म उद्योग के जनक माने जाते हैं । उनके द्वारा बनाई गई फीचर फिल्म ‘ राजा हरिश्चन्द्र ‘ से पहले एक ‘ भक्त पुंडलीक ‘ नामक फीचर फिल्म बनी थी । ‘ राजा हरिश्चंद्र ‘ में स्त्रियों का पार्ट पुरुषों ने ही किया था । शुरू में भारतीय फिल्म पौराणिक कथानक पर ही बनी । धीरे – धीरे उनके कथानक में विस्तार हुआ । 1930 में पहली बोलने वाली फिल्म ‘ आलम आरा ‘ बनी । यहाँ से भारतीय फिल्मों में नया युग आया ।
पाठ के साथ
प्रश्न 1. उन्नीसवीं और बीसीं शती ने दुनिया को कई करिश्मे दिखाए । लेखक किस करिश्मे का वर्णन विस्तार से किया है ?
उत्तर – लेखक सिनेमा की बात करता है जो 6 जुलाई , सन् 1896 ई . को हिन्दुस्तान के बम्बई शहर में दिखाया गया था । गैस की रोशनी , विजली का चमत्कार , टेलीग्राम टेलीफोन के जादू , रेल – मोटर वगैरह के अलावा सिनेमा का आविष्कार उन्नीसवीं सदी के बीतते जादू बनकर जमाने के लिए सिर पर चढ़कर बोलने लगा । लेखक ‘ सिनेमा ‘ की करिश्मे का वर्णन विस्तार से करता ।
प्रश्न 2. भारतीय चित्रपट में मूक से सवाक् फिल्मों तक के इतिहास को रेखांकित करते हुए दादा साहब फाल्के का महत्व बताइए ।
उत्तर – 1897 ई . में पहली बार बंबई की जनता को रूपहले पर्दे पर कुछ दृश्य देखने को मिले । जिनमें बंबई की नारली पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन का त्योहार , दिल्ली के लाल किले और अशोक की लाट वगैरह के चंद दृश्यों की झलक के साथ – साथ लखनऊ के इमामबाड़े भी पर्दे पर चमके । सबसे पहले भारत में सावे दादा ने छोटी – मोटी बहुत फिल्में बनायीं । भारतीय फिल्म उद्योग के जनक दादा साहब फाल्के ने हरिश्चंद्र से पहले एक फिल्म बनाई जिसका नाम था भक्त पुंडलीक । दादा साहब ने कई फीचर फिल्में बनायीं और उसे उद्योग के रूप में विकसित किया । इसी कारण उन्हें फिल्मी उद्योग का जनक कहा जाता है । राजा हरिश्चंद्र के बाद उन्होंने मोहिनी भस्मासुर नामक दूसरा चित्र दिया । उसका तीसरा चित्र लंकादहन भारत की पहली बॉक्स ऑफिस हिट फिल्म कही जा सकती है । दादा साहब फाल्के अपनी फिल्मों के निर्माता – निर्देशक , लेखक कैमरामेन , प्रोसेसिंग – डेवलपिंग करने वाले , प्रचारक , वितरक सबकुछ एक साथ थे ।
प्रश्न 3. सावे दादा कौन थे ? भारतीय सिनेमा में उनके योगदान को पाठ के माध्यम से समझाइए ।
उत्तर –फिल्मी धंधा को शुरू करने वाले पहले व्यक्ति में सावे दादा का नाम है । लेखक जब 1941 ई . में स्वर्गीय मास्टर विनायक की एक फिल्म संगम लिखने के लिए कोल्हापुर गया था तब शालिनी स्टुडियोज में उनके दर्शन हुए थे । वे अपने जमाने के बहुत बड़े कैमरामैन और भारतीय फिल्म व्यवसाय के आदि पुरुष थे|वे कोल्हापुर के ही थे या पुणे के लेखक को इस विषय में पता नहीं परंतु वे मजे की हिन्दी बोल लेते थे । उन्होंने ल्युमीयर ब्रदर्स से प्रोजेक्टर फोटो डेवलप करने की मशीत या मशी खोपकर भारत में इस धंधे का राष्ट्रीयकरण किया था । साचे दादा ने इंगलैंड जाकर वहाँ से कैम और फ्रांस के सिनेमेटोग्राफी कत्ता विशेषज्ञों से भेंट कर इस उद्योग को स्थापित करने के लिए मात्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त कर लाये थे । सावे दादा ने छोटी – मोटी बहुत फिल्में बनायीं । भारत के प्रसिद्ध गणितज्ञ और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रथम भारतीय छात्र सर आर पी . परांजपे जा सन् 1936-37 के लगभग लखनऊ विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर भी हुए थे उनके स्वागतोत्सव पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाई घौ । इसी तरह लोकमान्य तिलक , गोखले आदि देश के मान्य नेताओं पर भी फिल्म बनाई थी ।
प्रश्न 4. लेखक ने सावें दादा की तुलना में दादा साहब फाल्के को क्यों भारतीयों सिनेमा का जनक माना ? स्पष्ट करें ।
उत्तर – दादा साहब फाल्के को सार्वे दादा की तुलना में भारतीय सिनेमा का जनक इसलिए माना कि दादा साहब फाल्के ने केवल एक ही नहीं वरन् कई फीचर फिल्म एक के बाद एक बनाई और इस प्रकार उन्होंने ही इस उद्योग की नींव जमाई । सावे दादा ने छोटी – मोटी डॉक्यूमेंट्री फिल्में तो बहुत बनायों और समय को देखते हुए पैसा भी अच्छा ही कमाया और यदि पहली फीचर फिल्म भक्त पुंडलीक उन्हों की बनायी सिद्ध हो तो भी उनकी अपेक्षा दादा साहब फाल्ने को ही फिल्मों का जनक मानना उचित है क्योंकि फाल्के ने एक नहीं कई फीचर फिल्में बनायो और फिल्मी उद्योग को उद्योग के रूप में स्थापित किया ।
प्रश्न 5. भारतीय सिनेमा के विकास में पश्चिमी तकनीक के महत्व को रेखांकित करें।
उत्तर – सिनेमा का आविष्कार भी पश्चिम में ही हुआ है । वह पश्चिम से भारत आया तो जाहिर सी बात है कि तकनीक पश्चिम का ही होगा । फ्रांस के ल्यूमीवर ब्रदर्स के एजेंट ने उन्नीसवीं सदी के इस जिंदा तिलस्मात को दिखलाने के लिए भारत लाये थे । बंबई के अलावा कलकत्ते में भी मिस्टर स्टीवेंसन नाम के एक अंग्रेज सज्जन ने स्टार थियेटर की स्थापना करके फिल्मी धंधा को बढ़ाना शुरू किया । उस जमाने में इसे वायोस्कोप के नाम से जाना जाता था बंबई – कलकत्ते की इन विदेशी कंपनियों ने भारत के अन्य नगरों में भी चलती – फिरती तस्वीरों के तमाशा दिखाने आरंभ किए थे । ये कंपनियां अपने प्रोजेक्टर और फिल्में लेकर विभिन्न नगरों में जातीं और विज्ञापनों के सहारे इस करिश्मे का प्रदर्शन किया करती थीं । सावेदादा ने इंगलैंड एवं फ्रांस के सिनेमेटोग्राफी विशेषज्ञ से तकनीक हासिल की । सावे दादा ने ल्यूमीयेर ब्रदर्स से प्रोजेक्टर फोटो डेवलप करने की मशीन खरीदकर भारत में इस धंधे का एक तरह से राष्ट्रीयकरण कर उसे सामान्यजन की वस्तु बनाया ।
प्रश्न 6. अपने शुरुआती दिनों में सिनेमा आज की तरह किसी कहानी पर आधारित नहीं होते थे क्यों ? अपनी कल्पना से उत्तर दीजिए ।
उत्तर – अपने शुरुआती दिनों में सिनेमा आज को तरह किसी कहानी पर आधारित इसलिए नहीं होते थे क्योंकि तकनीक विकसित नहीं था जो सबको समेटकर एक फीचर फिल्म दिखला सके । कहानी में पात्र होते हैं , संवाद होता है , पात्र से चरित्र में बदलता है । इस कारण से छोटी – छोटी तस्वीरें ही दिखलायी जाती थीं वह भी मूक । किसी में समुद्र स्नान के दृश्य दिखलाए गए और किसी में कारखाने से छूटते हुए मजदूरों का दृश्य , ऐसे ही जीवन की हल्की – फुल्को झाँकियाँ देखकर लोगबाग बड़े खुश हो जाते थे ।
प्रश्न 7. भारत में पहली बार सिनेमा कब और कहाँ दिखाया गया ?
उत्तर – 6 जुलाई , 1886 ई . को बंबई के आज जहाँ प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूजियम की इमारत और उसके पास की चौरहे पर काले घोड़े की मूर्ति खड़ी है उसके आस – पास ही किसी जगह उस जमाने का वाटसन होटल था । वहीं पर भारत का पहला सिने प्रदर्शन हुआ |
प्रश्न 8. सिनेमा दिखलाने के लिए अखबारों में क्या विज्ञापन निकला ? इस विज्ञापन का बंबई की जनता पर क्या असर हुआ ?
उत्तर – सिनेमा दिखलाने के लिए अखबारों में विज्ञापन निकला कि जिंदा तिलस्मात देखिए । फोटुएँ आपको चलती – फिरती दौड़ती दिखलाई पड़ेंगी । टिकट एक रुपया । इस विज्ञापन ने बंबई की जनता में तहलका मचा दिया । छोटी – मोटी तस्वीरें देखकर , हल्की – फुल्की झाँकियाँ देखकर लोगबाग बड़े खुश हो जाते थे ।
प्रश्न 9.  1897 ई . में पहली बार बंबई की जनता को रूपहले पर्दे पर कुछ भारतीय दृश्य देखने को मिले । उन दृश्यों को लिखें ।
उत्तर – इन दृश्यों में बंबई की नारली पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन का त्योहार , दिल्ली के लाल किले और अशोक की लाट वगैरह चंद दृश्यों की झलक के साथ – साथ लखनऊ के इमामबाड़े भी रूपहले पर्दे पर चमके ।
प्रश्न 10. भारत में फिल्म उद्योग किस तरह स्थापित हुआ ? इसकी स्थापना किन – किन व्यक्तियों ने योगदान दिया ?
उत्तर – भारत में फ्रांस के ल्यूमीयर ब्रदर्स के एजेंट द्वारा दिखलाने के बाद कई विदेशी कंपनियों ने बंबई , कलकत्ते तथा भारत के अन्य नगरों में चलती – फिरती तस्वीरों के तमाशे दिखाने आरंभ कर दिए थे । ये कंपनियाँ अपने प्रोजेक्टर और फिल्में लेकर विभिन्न नगरों में जाती और विज्ञापनों के सहारे उस करिश्मे का प्रदर्शन किया करती थीं । भारत में इस नए काम को शुरू करने वाले सावे दादा थे । इन्होंने ल्यूमीयर ब्रदर्स के प्रोजेक्टर फोटो डेवलप करने की मशीन खरीद कर भारत में इस धंधे का एक तरह से राष्ट्रीयकरण कर दिया । उसके बाद दादा साहब फाल्के ने इसे फिल्म उद्योग का रूप दिया । इस क्रम में जे . एफ . मादन ने मादन थियेटर की स्थापना कर इसके विकास में योगदान दिया । तीसरे दशक में सबसे महान फिल्म हस्ती बाबूराव पेंटर थे । आज के सुप्रसिद्ध निमार्ता – निर्देशक श्री व्ही . शांताराम , स्वर्गीय बाबूराम पेंडारकर , भालजी पेंडारकर तथा स्वर्गीय मास्टर विनायक आदि फिल्मी हस्तियों के वे गुरु थे । इस दशक में नामी स्टार हुए जिन्होंने फिल्म के विकास में बहुत बड़ा योगदान दिया । जिनमें जिल्ली , जुबैदा , डॉ . विलोमारिया , सुलोचना , माधुरी , अर्मलीन , पृथ्वीराज कपूर इत्यादि ।
प्रश्न 11. जे . एफ . मादन का भारतीय फिल्म के विकास में योगदान रेखांकित करें ।
उत्तर – बंबई की ही कलकत्ते में एक पारसी व्यवसायी जे . एफ . मादन जिन्होंने मादन थियेटर नामक सुप्रसिद्ध संस्था की स्थापना की थी । सन् 1917 ई . में एलफिंसटन बाइस्कोप कंपनी नामक फिल्म संस्था चलाई और दादा साहब फाल्के की तरह ही वे भी फीचर फिल्म बनाने लगे । इस तरह सन् 1913 से 1920 तक फिल्मों में क्रमश : पौराणिक कथानक ही अधिकतर होते थे , जिस पर जे . एफ . मादन ने कई फिल्में बनायीं । इनकी सभी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर खूब सराही गयीं । 1930 में मादन ने बोलती फिल्म शीरी – फरहाद बनाई । भाषा की बात प्रश्न 1. निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखिए : उत्तर – दाँतों तले उँगली उबाना – आश्चर्यचकित होना । श्रीगणेश होना – आरंभ होना ।
प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों का संधि – विच्छेद करें :
उत्तर –संगम -सम् + गम
विद्यालय  -विद्या + आलय
स्वागतोत्सव- स्वागत+ उत्सव
हरिश्चंद्र – हरिश + चंद्र ।
प्रश्न 3. निम्नलिखित शब्दों का प्रत्यय बताएँ ।
उत्तर – बंबइया -इया
स्वर्गीय -ईय
अच्छाई -आई
व्यक्तित्व- त्व
चश्माधारी -धारी ।
प्रश्न 4. निम्नलिखित शब्दों का लिंग निर्णय करते हुए वाक्य बनाएँ अथवा , वाक्य – प्रयोग द्वारा लिंग स्पष्ट करें ।
उत्तर – टेलीग्राम- ( पु . ) टेलीग्राम आया है ।
आँख- ( स्त्री . ) उसने आँख मारी ।
सिनेमा- ( प . ) सिनेमा दिखाया गया ।
टिकट- ( पु . ) टिकट एक रुपया था ।
होटल- ( पुं . ) वह वाटसन होटल में ठहरा था । फिल्म- ( स्त्री . ) दीपक की फील्म अच्छी साबित हुई।
व्यवसाय- ( पु . ) अनिल का विनीत के साथ अच्छा व्यवसाय है ।
प्रश्न 5. निम्नलिखित शब्दों के उपसर्ग बताएँ ।
उत्तर – विज्ञापन- वि
प्रचारक -प्र
विनायक- वि
सुप्रसिद्ध -सु
सुख्यात- सु
प्रश्न 6. निम्नलिखित वाक्यों से कोष्ठक में दिए गए निर्देश के अनुरूप पद चुनें ।
उत्तर-( क ) आँखें अचंभे से फट पड़ीं । ( कारक चिह्न ) -से ।
( ख ) अमेरिका में कुछ कहीने पहले इस तमाशे को दिखाया गया था । ( कारक चिह्न ) = में , को ।
( ग ) सावे दादा ने छोटी – मोटी बहुत फिल्में बनायीं । ( विशेषण = बहुत । )
( घ ) दुर्भाग्यवश मैं उसके निर्माता का नाम भूल चुका हूँ । ( अर्थ की दृष्टि से वाक्य ) = खेदवाचक ।
( ङ ) मुझे अच्छी तरह से याद है । ( सर्वनाम ) = मुझे ।
प्रश्न 7. निम्नलिखित शब्दों के समानार्थी शब्दों को लिखें ।
उत्तर – बाजार -मेला
करिश्मा -चमत्कार
आविष्कार- खोज
व्यवसाय -धंधा ,व्यापार,लेन – देन
खरीदना- क्रय करना
प्रारंभ -आरम्भ , शुरुआत , श्रीगणेश ।
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