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 bihar board 10th class hindi notes | अक्षर-ज्ञान

bihar board 10th class hindi notes | अक्षर-ज्ञान

अक्षर-ज्ञान
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~अनामिका
*कविता का सारांश:-
समकालीन कवयित्री अनामिका ने ‘अक्षर-ज्ञान’ शीर्षक कविता में अक्षर-ज्ञान की प्रक्रिया उसमें आने वाली बाधाओं, हताशाओं और अन्ततः संघर्ष कर असफलता को सफलता में बदलने के संकल्प के साथ सृष्टि की विकास-कथा में मानवे की संघर्ष-शक्ति को रेखांकित किया है।
कवयित्री कहती हैं कि माँ ने बेटे को चौखट या स्लेट देकर अक्षर-ज्ञान देना शुरू किया। लेखन और ज्ञान प्राप्ति की प्रक्रिया को सरल और रोचक बनाने के लिए उसने कुछ संकेत या प्रतीक दिए। बेटे को बताया-‘क’ से कबूतर, ‘ख’ से खरगोश, ‘ग’ से गमला और ‘घ’ से घड़ा
आदि। बेटे ने लिखना शुरू किया। कबूतर का ध्यान करने के कारण ‘क’ चौखट में न अँटा, ‘ख’ भी खरगोश की तरह फुदक गया। इसी प्रकार गमला के चक्कर में ‘ग’ टूट गया और ‘घड़ा के ध्यान में ‘घ’ लुढ़क गया। लेकिन कठिनाई पैदा हुई ‘ङ’ को लेकर। माँ ने समझाया-‘ड’ माँ और बिन्दु (.) उसकी गोद में बैठा बेटा। कोशिश शुरू हुई किन्तु ‘ङ’ सधता ही नहीं था। बहुत कोशिश के बाद भी जब ‘ङ’ की मुश्किल हल न हुई हो तो बेटे की आँखों में आँसू आ गए।
किन्तु ये आँसू ‘ङ’ को साधने के प्रयत्न छोड़ने के न थे, इन आँसुओं में ‘ङ’ को साधने का, असफलता को धता बताने का संकल्प था।
इस कविता के माध्यम से सृष्टि विकास-कथा को प्रस्तुत किया गया है। अक्षर-ज्ञान के क्रम में आने-वाली कठिनाइयाँ मानव-जीवन की कठिनाइयाँ हैं। मनुष्य जीवन-संघर्ष के शुरूआती दौर में डगमगाता है, लड़खड़ाता है, फिर भी चलता है। किन्तु कभी-कभी जीवन में ऐसे क्षण आते हैं जब आदमी बेहाल हो जाता है। उसकी आँखों में आँसू आ जाते हैं किन्तु मनुष्य हारता नहीं,
वह अपनी असफलता को सफलता में बदलने के लिए सन्नद्ध हो जाता है। ये आँसू ही सृष्टि-विकास-कथा के प्रथमाक्षर हैं अर्थात् संघर्ष ही मनुष्य की जिन्दगी की फितरत है । यही इस कविता की भावना है, सार है।
कवि कहता है कि लाख कोशिशों के बावजूद कुछ लोग हैं जो अनाचार के आगे सिर नहीं झुकाते। वे दृढ़तापूर्वक अनुचित कार्य करने से मना कर देते हैं। उनकी ओर से आँख बन्द कर लेने पर भी वे रुकते नहीं, बढ़ते जाते हैं वह संघर्ष ही उनकी ताकत है, मानव के विकास की यही कहानी है।

*सरलार्थ:-
समकालीन हिन्दी कविता में अपनी एक अलग पहचान बनाने वाली कवयित्री और लेखिका के रूप में अनामिका अपने वस्तुपरक और समसामयिक बोध और संघर्षशील वंचित जन के प्रति रचनात्मक सहानुभूति के लिए जानी जाती हैं। स्त्री-विमर्श में सार्थक हस्तक्षेप करनेवाली अनामिका अपनी टिप्पणी के लिए भी उल्लेखनीय हैं।
प्रस्तुत कविता समसामयिक कवियों की चुनी हुईं कविताओं की चर्चित शृंखला ‘कवि ने कहा’ से यहाँ ली गयी है । प्रस्तुत कविता में बच्चों के अक्षर-ज्ञान की प्रारंभिक शिक्षण-प्रक्रिया का वर्णन किया गया है। बच्चों का अक्षर-ज्ञान वैविध्यपूर्ण होता है। उसके मनोभावों को पढ़ना और उसके सहजबोध के द्वारा सिखाना अध्यापक-अध्यापिका के शिक्षण कला का प्रदर्शन होता है। बच्चों को पढ़ाने में स्वयं बच्चा बनना पड़ता है । माँ पहली अध्यापिका होती है। जीवन-बोध का पहला
अक्षर ज्ञान उसी के द्वारा प्राप्त होता है । ‘क’ लिखने की प्रक्रिया पूरी भी नहीं होती है कि ‘ख’ आकर नीचे उतर जाती है । ‘ग’ में बेचैनी दिखती है कि ‘घ’ घड़ा की तरह लुढ़क जाता
वस्तुतः कवयित्री माँ और बेटे के माध्यम से अक्षर-ज्ञान को सहज बोध को अपने ढंग से प्रस्तुत
करना चाहती है। माँ-बेटे अक्षर ज्ञान के लिए अथक परिश्रम करते हैं। फिर भी असफलता ही हाथ लगती है। पहली विफलता पर आँसू छलक जाते हैं । ये आँसू ही अक्षर-ज्ञान का पहला अक्षर है। सृष्टि की विकास की कथा इसी अक्षर-ज्ञान से लिखी हुई है।

पद्यांश पर आधारित अर्थ ग्रहण-संबंधी प्रश्न
1. चौखटे में नहीं अँटता
बेटे का ‘क’
कबूतर ही है न-
फुदुक जाता है जरा-सा!
पंक्ति से उतर जाता है
उसका ‘ख’
खरगोश की खालिस बेचैनी में!
गमले-सा टूटता हुआ उसका ‘ग’
घड़े-सा लुढ़कता हुआ उसका ‘घ’
‘ङ’ पर आकर थमक जाता है
उससे नहीं सधता है ‘ङ’

(i) उपर्युक्त पद्यांश के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर-अनामिका ।

(ii) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस कविता से उद्धृत हैं ?
उत्तर-अक्षर-ज्ञान ।

(iii) चौखटे में क्या नहीं अँटता है?
उत्तर-जब बच्चा ‘क’ लिखता है तब वह चौखटे यानी कोष्ठक में पूर्ण रूप से नहीं अँटता। कोठे से उसका अंग बाहर तक निकल जाता है। इसी पर कवयित्री ने लिखा है कि चौखटे में बच्चे की चंचलता, अल्हड़ता और अबोधता इसमें बाधक बनती है। वह जब ‘क’ लिखता है. उसका ‘क’ नहीं अँटता। इसमें सूक्ष्म मनोविज्ञान का भी चित्रण है।

(iv) उसका ‘ख’ कैसे फुदक जाता है?
उत्तर-उसका ‘ख’ कबूतर की तरह फुदक जाता है। कहने का भाव यह है कि बच्चा बताया है। अबोध है। बाल-सुलभ मन वाला है। भूलें होना तो स्वाभाविक ही है। यहाँ जैसे कबूतर स्थिर न रहता ठीक उसी तरह बचपन भी अस्थिर होता है। भूलें होना तो स्वाभाविक है। इन पंक्तियों में भी कवयित्री ने बच्चे की मनोवैज्ञानिक स्थितियों का चित्रण करते हुए अक्षर-ज्ञान के बारे में हमें

(v) ‘ङ’ को बच्चा क्या समझता है?
उत्तर-‘ङ’ के ड को बच्चा माँ के रूप में मानता है और ‘ड’ के साथ सटे (.) बिन्दु को उसने माँ की गोदी में बैठे बेटा के रूप में माना है।
यहाँ कवयित्री ने सरलता के साथ जटिल प्रयोग प्रस्तुत कर अपनी बौद्धिक क्षमता का परिचय दिया है। बाल सुलभ मन की उर्वरता को रेखांकित किया है । ‘ङ’ अक्षर में कितने गूढ़ भाव छिपे हैं-इस ओर लेखिका ने हमारा ध्यान आकृष्ट करते हुए सृष्टि की महत्ता, बच्चे को
समझदारी, अक्षर-ज्ञान आदि पर एक साथ प्रकाश डालते हुए हमें सोचने पर बिवश कर दिया है कि छोटा-सा ‘ङ’ अक्षर कितना गूढार्थ भाव रखनेवाला है।

2. ‘ङ’ के ‘ड’ को वह समझता है ‘माँ’
और उसके बगल के बिन्दु (.) को मानता है
गोदी में बैठा ‘बेटा’
माँ-बेटे सधते नहीं उससे
और उन्हें लिख लेने की
अनवरत कोशिश में
उसके आ जाते हैं आँसू।
पहली विफलता पर छलके ये आँसू ही
हैं शायद प्रथमाक्षर
सृष्टि की विकास-कथा के।

(i) उपर्युक्त पद्यांश के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर-अनामिका ।

(ii) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस कविता से उद्धृत हैं ?
उत्तर-अक्षर-ज्ञान ।

(iii) ‘अनवरत कोशिश में उसके आ जाते हैं आँस’ पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर-माँ, बेटे को जब अक्षर-ज्ञान कराती है तब अबोध और चंचल बालक बार-बार की कोशिश से थक जाता है ऊब जाता है और रोने लगता है। उसी भाव को कवयित्री ने अपनी कविता में ढाला है। लेकिन यह मात्र सहज भाव वाली कविता नहीं है। इसमें सूक्ष्म भाव भी निहित है। माँ-बेटे के रिश्ते, एक-दूसरे के प्रति मनोवैज्ञानिक संबंध एवं अक्षर-ज्ञान यानी संस्कार पैदा
करने का भाव भी जुड़ा है।

(iv) माँ बेटे में क्या सधते देखना चाहती है?
उत्तर-माँ अपने बेटे को अक्षर-ज्ञान करा रही है वह उसे अक्षर-ज्ञान में निपुण बना पाहती है। कौन माँ अपने बेटे को सुयोग्य नहीं बनाना चाहती है?
बेटे को सुयोग्य, सुपात्र और अक्षर ज्ञान में निपुण बनाने के लिए ही उसे साधना करने को कहती है जिससे वह समर्थ बने।

(v) सृष्टि की विकास-कथा क्या है?
उत्तर-मनुष्य की विकास यात्रा की लंबी पंरपरा है। वह अंधयुग, पाषाण युग, लौह-युग, ताम्र-युग होते हुए आज अत्याधुनिक वैज्ञानिक युग में अपना पाँव पसार चुका है। उसने जंगली और असभ्य संस्कारों को त्यागकर विकसित और चेतनशील मानव के रूप में स्वयं को स्थापित किया है। जीवन के विविध क्षेत्रों में विजय ध्वज फहराते हुए वह आज प्रगति के सर्वोच्च शिखर पर आरूढ़ है। कंदराओं-गुफाओं से चलकर सभ्यता और संस्कृति के उच्च शिखर पर स्वयं को आरूढ़ किया है। उसने जीवन के विविध क्षेत्रों में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया है-वैचारिक या सांस्कृतिक, भौगोलिक, वैज्ञानिक हो हर क्षेत्र में आज उसका विजय ध्वज फहरा रहा है।

बोध और अभ्यास
*कविता के साथ:-
प्रश्न 1. कविता में तीन उपस्थितियाँ है। स्पष्ट करें कि वे कौन-कौन-सी हैं ?
उत्तर-कविता में तीन उपस्थितियाँ हैं-
“पंक्ति से उतर जाता है
गोदी में बैठा बेटा
सृष्टि की विकास-कथा के।”

प्रश्न 2. कविता में ‘क’ का विवरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-माँ बेटा को ‘क’ से कबूतर पढ़ाना-लिखाना चाहती है। उसका ‘क’ पंक्तियों से नीचे उतर जाता है । कबूतर सीखने के क्रम में कबूतर की तरह इधर-उधर फुदकने लगता है। अर्थात् पढ़ने-लिखने के क्रम में उसका हाथ इधर-उधर चला जाता है। अक्षर-ज्ञान से वंचित माँ के मनोभाव को बच्चा जानता है न कि अक्षर को। माँ से प्रेरित होकर बच्चा अक्षर बोध करता है।

प्रश्न 3. खालिस बेचैनी किसकी है? बेचैनी का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-खालिस बेचैनी अक्षर ज्ञान सीखनेवाले शिशु की है। ‘ख’ से खरगोश सीखते समय वह बालक भी खरगोश की तरह इधर-उधर भागने के लिए बेचैन हो जाता है। खरगोश चंचल होता है । वह पिंजरे में बंद नहीं होना चाहता है । बालक माँ के दबाव में आकर पढ़ना नहीं चाहता है। उसका ध्यान इधर-उधर भटक जाता है।

प्रश्न 4. बेटे के लिए ‘ङ’ क्या है और क्यों ?
उत्तर-बेटे के लिए ‘ङ’ उसके माँ का गोंद है। ‘ङ’ अक्षर ज्ञान उसे कठिन लगता है। उसका मन उब जाता है। वह माँ की गोद में बैठना चाहता है। ‘ङ’ को बच्चा माँ समझता है और बिन्दु () को माँ के गोद में बैठा हुआ बेटा समझती है।

प्रश्न 5. बेटे के आँसू कब आते हैं और क्यों ?
उत्तर-बेटा माँ की गोद में बैठना चाहता है । ‘ङ’ अक्षर सीखने में विफलता आ जाती है। बार-बार कोशिश करने पर भी सफलता हाथ नहीं लगती है। हताश और विवश होकर वह अनायास रो पड़ता है। ‘डः’ अक्षर-ज्ञान की विफलता पर ही बेटे को आँसू आ जाते हैं।

प्रश्न 6. कविता के अंत में कवयित्री ‘शायद’ अव्यय का प्रयोग किया करती है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-शायद अव्यय का प्रयोग कर कवयित्री आशा को जागृत की है। अक्षर-ज्ञान में माँ-बेटे को मिली विफलता ही सृष्टि-कल्पना की आशा है। संभवतः सृष्टि-विकास का कथन आँसू से जुड़ा हुआ है । अनवरत कोशिश करने पर जब सफलता हाथ नहीं लगती है तो आँसू
ही बेचैन मन को शान्त करते हैं।

प्रश्न 7. कविता किस तरह एक सांत्वना और आशा जगाती है ? विचार करें।
उत्तर-जिस तरह अक्षर ज्ञान सीखने के क्रम में माँ-बेटे की मनोदशाएँ अंतर्व्यथा से भर उटली हैं। सीखने में मिली विफलता ही सृष्टि-विकास की सफलता की नींव है। असफलता ही सफलता की जननी है । अक्षर-ज्ञान में शिशु के कौतुकपूर्ण चित्रण यह आश भर देता है कि
सृष्टि-विकास के समय भी कौतुकपूर्ण चित्र उभरे होंगे।
वस्तुतः कवयित्री आशान्वित हो वह सांत्वना देती है कि विफलता मिलने पर घबराना नहीं चाहिए। कहीं-कहीं आशा जरूर छिपी हुई रहती है। आशा ही सफलता की सीढ़ी है।

प्रश्न 8. व्याख्या करें :
“गमले-सा टूटता हुआ उसका ‘ग’
घड़े-सा लुढ़कता हुआ उसका ‘घ'”
उत्तर-प्रस्तुत पंक्तियाँ समसामयिक कवयित्री अनामिका द्वारा रचित ‘अक्षर-ज्ञान’ शीर्षक कविता से संकलित है। यहाँ कवयित्री शिशु के अक्षर-ज्ञान की प्रारंभिक शिक्षण-प्रक्रिया के कौतुकपूर्ण चित्रण करती है। शिशु ‘क’ से कबूतर, ‘ख’ से खरगोश सीखने के उपरांत ‘ग’ से
गमला सीखना चाहता है तभी उसका गमला इधर-उधर हो जाता है। ‘घ’ से घड़ा लिखते हुए लुढ़क जाता है। वस्तुतः यहाँ कवयित्री कहना चाहती है कि अक्षर-ज्ञान में शिशु की मनोदशाएँ विक्षुब्ध हो जाती हैं। उसका मन इधर-उधर भटकने लगता है। वह अनमना-सा ‘ग’ से गमला और ‘घ’ से घड़ा पढ़ना-लिखना चाहता है।

भाषा की बात
प्रश्न 1. निम्नलिखित भिन्नार्थक शब्दों का वाक्य-प्रयोग करते हुए अर्थ स्पष्ट करें।
चौखटा-चोखट, बेटा-बाट, खालिस-खलासी-खलिश, थमना-थमकना-थामना, सधना-साधना-साध, गोदी-गद्दी-गाद, कोशिश-कशिश, विफलता-विकलता।
उत्तर- चौखटा —-वह चौखट पर खड़ा है।
चोखट—-चोखट टूट गया ।
बेटा—-वह राम का बेटा है।
बाट—-तुम किसकी बाट देख रहे हो?
खालिस—– वह खालिस बेचैनी में है।
खलासी —– बस का खलासी भाग गया।
खलिश —– उसके खलिश का क्या कहना?
थमना—–उसका पैर थम गया।
थमकना—–पैर-थमकना अच्छी बात नहीं।
थामना—-उसने ईश्वर का दामन थाम लिया ।
सधना—-उसका काम सध गया।
साधना—–उसने अपनी साधना पूरी की।
साध—-उसने अपना काम साध लिया ।
गोदी—-शिशु माँ की गोदी में बैठा है।
गद्दी—–वह गद्दी पर बैठा है
गाद—–कड़ाही में गाद बैठा हुआ
कोशिश—– उसने भरपूर कोशिश नहीं की।
कशिश—–उसकी कशिश देखने में बनती है।
विफलता—– मुझे इस काम में विफलता मिली है।
विकलता—— उसकी विकलता बढ़ गई।

प्रश्न 2. कविता में प्रयुक्त क्रियापदों का चयन करते हुए उनसे स्वतंत्र वाक्य बनाएँ
उत्तर– अँटता—–यह बक्सा चौखट में नहीं अँटता है।
फुदक—— चिड़ियाँ फुदक रही है।
उतरना—- पेड़ से उतरना खतरनाक है।
लुढ़कता—–गेंद लुढ़कता है।
सधता—-उससे यह नहीं सधता है
मानता —-वह अपने गुरु को भगवान मानता है।
छलक—–आँसू छलक पड़े।

प्रश्न 3. निम्नलिखित के विपरीतार्थक शब्द दें-
बेटा, कबूतर, माँ, उतरना, टूटना, बेचैनी, अनवरत, आँसू, विफलता, प्रथमाक्षर, विकास-कथा, सृष्टि।
उत्तर- बेटा-बेटी, कबूतर-कबूतरी, माँ-बाप, उतरना-चढ़ना, टूटना-बचना बेचैनी-शान्ति, अनवरत-यदा-कदा, आँसू-हँसी, विफलता-सफलता, प्रथमाक्षर-अन्त्याक्षर विकास-कथा-अंतकथा, सृष्टि-प्रलय ।

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