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 Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Short Answer Type Part 4 in Hindi

Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Short Answer Type Part 4 in Hindi

प्रश्न 1.
व्यवसाय में लाभ की क्या भूमिका है ?
उत्तर:
किसी भी व्यवसाय को स्थापित करने और उसे चलाने का उद्देश्य लाभ कमाना है, इसलिये व्यवसाय में लाभ की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। वास्तव में व्यवसाय में लाभ की भूमिका को निम्नलिखित विचार-बिंदुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

  • साहसी को जोखिम उठाने का पुरस्कार देने के लिए।
  • हानियों से बचाव के लिये।
  • विनियोक्ताओं को पर्याप्त प्रतिफल प्रदान करने के लिए।
  • विस्तार एवं आधुनिकीकरण कार्यक्रमों हेतु कोष प्रदान करने के लिए।
  • व्यवसाय के जोखिमों का सामना करने के लिए व व्यवसाय में बने रहने के लिए।

प्रश्न 2.
साझेदारी व्यापार के तीन लाभ बताइए।
उत्तर:
जब दो या दो से अधिक व्यक्ति आपस में समझौता करके किसी व्यापार की स्थापना करते हैं और इसके लाभ-हानियों को आपस में बाँटते हैं तो ऐसे व्यापार को साझेदारी व्यापार कहा जाता है, साझेदारी व्यापार के तीन लाभ या गुण निम्नलिखित हैं-

(i) सुगमता से स्थापना-एकाकी व्यापार के समान साझेदारी व्यवसाय को स्थापित करने में किसी भी कानूनी अथवा वैधानिक औपचारिकताओं का सामना नहीं करना पड़ता है। इसके निर्माण अथवा स्थापना में प्रारंभिक व्यय भी अधिक नहीं होते हैं। व्यापार चलाने के लिये दो व्यक्ति आपस में समझौता करके इसे प्रारंभ कर सकते हैं।

(ii) पंजीयन करना अनिवार्य नहीं-भारतीय साझेदारी अधिनियम के अनुसार, साझेदारी का पंजीयन अनिवार्य न होकर ऐच्छिक है। अतः यदि साझेदार यह समझें कि फर्म का पंजीयन कराना उनके हित में है तो उसका पंजीयन करा सकते हैं अन्यथा नहीं, इसके विपरीत कम्पनी का पंजीयन कराना अनिवार्य है।

(iii) संबंध-विच्छेद में सुविधा-किसी विपरीत अनुबंध के अभाव में साझेदारी में कोई भी साझेदार उचित सूचना देकर साझेदारी से अपना संबंध-विच्छेद कर सकते हैं। यही नहीं किसी साझेदार के दोषी पाए जाने पर शेष सभी साझेदारी की सर्वसम्मत पर उसे साझेदारी से निकाला भी जा सकता है।

प्रश्न 3.
कम्पनी व्यवसाय को परिभाषित करें।
उत्तर:
कम्पनी व्यवसाय का अर्थ संयुक्त पूँजी कंपनी के व्यवसाय से लगाया जाता है। इसका व्यवसाय कम्पनी के नियमों और शर्तों के आधार पर होता है। संयुक्त पूँजी वाली कम्पनी लाभ के लिए बनायी गयी एक ऐच्छिक संस्था है जिसकी पूँजी हस्तांतरित अंशों में अविभाजित होती है। अर्थात् इसके अंश साधारणतया खरीदे तथा बेचे जा सकते हैं। सदस्यों का उत्तरदायित्व साधारण तथा सीमित होता है। इसका अस्तित्व स्थायी होता है एवं विधान द्वारा निर्मित कृत्रिम व्यक्ति है, जिसका व्यवसाय एक सार्वमुद्रा (Common seal) द्वारा शासित होता है। कोई व्यक्ति । कम्पनी के ऊपर तथा कम्पनी भी व्यक्ति के ऊपर अभियोग चला सकती है।

कम्पनी व्यवसाय के अर्थ को स्पष्ट करने के लिये इसकी विभिन्न परिभाषाएँ दी गयी हैं। डॉ. विलियम आर. स्प्रीगल ने कम्पनी व्यवसाय की परिभाषा देते हुए कहा है कि “निगम राज्य की एक रचना है जिसका अस्तित्व उन व्यक्तियों से पृथक होता है जो कि उसके अंशों अथवा अन्य प्रतिभूतियों के स्वामी होते हैं।”

प्रो० हैने के अनुसार “कम्पनी विधान द्वारा निर्मित एक कृत्रिम व्यक्ति है जिसका उसके सदस्यों से पृथक स्थायी अस्तित्व होता है और जिसके पास सार्वमुद्रा होती है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं के विस्तृत अध्ययन के बाद निष्कर्ष रूप में इसकी उपयुक्त परिभाषा निम्न शब्दों में दी जा सकती है-“संयुक्त पूँजी वाली कम्पनी एक वैधानिक कृत्रिम व्यक्ति है, जिसका समामेलन किसी निश्चित उद्देश्य से भारतीय कम्पनी अधिनियम के अंतर्गत होता है, अस्तित्व सदस्यों से पृथक होता है, सदस्यों का दायित्व सामान्यतः सीमित होता है और इसकी एक सार्वमुद्रा होती है जिसके अंतर्गत समस्त कार्य सम्पन्न होते हैं।

प्रश्न 4.
प्रविवरण क्या है ?
उत्तर:
प्रविवरण जारी करने का उद्देश्य प्रस्तावित कंपनी के बारे में विनियोगकर्ताओं को परिचित करवाना तथा उन्हें इसके अंश क्रय करने के लिए प्रेरित करना है। विनियोगकर्ताओं के हितों के संरक्षण के लिए प्रविवरण की विषय-सूची का नियंत्रण कानून द्वारा होता है।

प्रविवरण से आशय ऐसे सूचना पत्र, परिपत्र, विज्ञापन या अन्य किसी दस्तावेज से है जिसमें इसके अंशों या ऋणपत्रों का अभिदान अथवा क्रय करने या इसके पास जमाएँ कराने हेतु जनता को अपने प्रस्ताव देने के लिए आमंत्रित किया जाता है। इस प्रकार प्रविवरण में ऐसा कोई भी दस्तावेज शामिल नहीं होता है जो जनता से जमाएँ आमंत्रित करता है अथवा कम्पनी के अंश या ऋणपत्र खरीदने के लिए जनता से प्रस्ताव आमंत्रित करता है। . एक प्रविवरण के आवश्यक तत्त्व निम्नलिखित हैं-

  • इसमें जनता को आमंत्रण अवश्य दिया जाना चाहिए।
  • आमंत्रण कम्पनी द्वारा या कम्पनी की ओर से दिया जाना चाहिए।
  • आमंत्रण इसके अंशों या ऋणपत्रों या ऐसे अन्य संलेखों को क्रय करने के लिए होना चाहिए।

प्रश्न 5.
आंतरिक व्यापार को परिभाषित करें।
उत्तर:
एक ही देश की सीमाओं के अंतर्गत होने वाला व्यापार आंतरिक व्यापार कहलाता है। आंतरिक व्यापार को घरेलू व्यापार अथवा अन्तर्देशीय व्यापार भी कहा जाता है। इसका अर्थ एक राष्ट्र की सीमाओं के अंदर वस्तुओं का क्रय-विक्रय करना है। इसमें वस्तुओं का भुगतान राष्ट्रीय मुद्रा में किया जाता है। इस प्रकार भारत में आंतरिक व्यापार में व्यापारियों के मध्य केवल भारत में किए गये वस्तुओं के लेन-देन शामिल हैं। बहुत से थोक व्यापारी, फुटकर व्यापारी तथा वाणिज्य अभिकर्ता घरेलू व्यापार करते हैं। वे उत्पादक एवं उपभोक्ताओं के मध्य कड़ी का कार्य कहते हैं। आंतरिक तथा घरेलू व्यापार का मुख्य उद्देश्य देश भर में वस्तुओं एवं सेवाओं का वितरण सुविधाजनक बनाना है।

प्रश्न 6.
प्रबन्ध में दक्षता क्या है ?
उत्तर:
किसी भी व्यावसायिक संस्था के कुशल नियंत्रण और संचालन को ही प्रबंध कहा जाता है। व्यवसाय की सफलता के लिये कुशल प्रबंध पर निर्भर करती है। इसलिए प्रबंध में दक्षता का होना आवश्यक है। जब व्यापारिक संस्था का प्रबंध कार्य पूरी कुशलता के साथ अच्छी तरीके से किया जाता है तो इसी को प्रबंध में दक्षता कहा जाता है। एक प्रबंधक में प्रबंध संबंधी जब सभी गुण और दक्षता पाये जाते हैं तभी वह व्यवसाय का कुशल प्रबंध और संचालन कर सकता है। परिणामस्वरूप व्यावसायिक संस्था अपने उद्देश्य में सफल होती है। कुशल प्रबंध और संचालन दक्षता पर निर्भर करता है। जब प्रबंधक प्रबंध के संबंध में पूर्ण दक्ष रहते हैं तभी वह कुशलतापूर्वक प्रबंध कर कार्य कर सकता है।

प्रश्न 7.
स्कंध विपणन के क्या कार्य हैं ?
उत्तर:
स्कन्द विपणन से आशय एक ऐसे संगठित बाजार से है जहाँ कम्पनियों, सरकारी व अर्द्ध-सरकारी संस्थाओं द्वारा निर्गमित की गई प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय किया जाता है। प्रतिभूतियों के अंतर्गत अंश, ऋणपत्र, बंधपत्रों आदि को सम्मिलित किया जाता है।

स्कन्ध विपणन के कार्य निम्नलिखित हैं-
1. वर्तमान प्रतिभूतियों में तरलता व विपणता पैदा करना – शेयर बाजार पहले से निर्गमित की गई प्रतिभूतियों में व्यवहार करने वाला बाजार होता है। जहाँ विभिन्न प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय नियमित रूप से होता रहता है अर्थात् इस बाजार के माध्यम से निवेशक जब भी चाहें अपने धन का प्रतिभूतियों में निवेश कर सकते हैं और जब चाहें निवेश को पुनः धन में बदल सकते हैं। प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय के लिए तैयार बाजार का होना उनकी विपण्यता को बढ़ाता है और .धन के निवेश में तरलता पैदा करता है।

2. प्रतिभूतियों का मूल्य निर्धारण – शेयर बाजार प्रतिभूतियों में व्यापार करने के लिए प्लेटफॉर्म उपलब्ध करता है। यहाँ माँग व पूर्ति की शक्तियाँ स्वतंत्रता से कार्य करती हैं। इस प्रकार प्रतिभूतियों के मूल्य का निर्धारण होता है।

3. व्यवहारों की सुरक्षा – शेयर बाजार संगठित बाजार होते हैं। वे निवेशकों के हितों की सुरक्षा का पूरा प्रबंध करते हैं। प्रत्येक शेयर बाजार के अपने नियम व उपनियम होते हैं। वहाँ व्यवहार करने वाले प्रत्येक सदस्य को इनका पालन करना होता है। इनका उल्लंघन करने वाले सदस्यों की सदस्यता को समाप्त कर दिया जाता है।

4. आर्थिक विकास में योगदान – शेयर बाजार प्रतिभूतियों में तरलता का गुण पैदा करता है। इससे निवेशकों को दो लाभ प्राप्त होते हैं – प्रथम, प्रतिभूतियों के बाजार भाव में परिवर्तन का लाभ उठाया जा सकता है तथा द्वितीय, धन की आवश्यकता पड़ने पर उन्हें बाजार भाव पर कभी भी बेचा जा सकता है। शेयर बाजार द्वारा प्रदान किए जाने वाले ये लाभ लोगों को अपने धन को प्रतिभूतियों में निवेश के लिए प्रेरित करते हैं। इस प्रकार लोगों का धन उद्योगों में लगने से आर्थिक विकास सम्भव होता है।

प्रश्न 8.
विज्ञापन के मुख्य लक्षणों का वर्णन करें। अथवा, विज्ञापन के मुख्य विशेषताओं का उल्लेख करें।
उत्तर:
विज्ञापन के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं-

  1. विज्ञापन सदैव अव्यक्तिगत होता है, अर्थात् कभी कोई व्यक्ति आमने-सामने विज्ञापन नहीं करता है।
  2. विज्ञापन द्वारा संदेश सार्वजनिक रूप से जनसाधारण के पास पहुँचाया जाता है।
  3. विज्ञापन का उद्देश्य ग्राहकों को विज्ञापित सामग्री का क्रय करने के लिए प्रेरित करना है।

प्रश्न 9.
उदारीकरण के अर्थ को लिखें।
उत्तर:
उदारीकरण वह नीति है जिसमें सरकार द्वारा किसी भी व्यवसाय को चलाने के लिए कुछ उदारवादी कदम उठाये जाते हैं। दूसरे शब्दों में, उदारीकरण एक ऐसी नीति है जिसमें सरकार द्वारा व्यवसायी को व्यवसाय चलाने के लिए कुछ रियायतें दी जाती हैं। परिणामस्वरूप, उसका व्यवसाय फलता-फूलता है और वह अपनी व्यावसायिक उद्देश्य को प्राप्त करता है। उदाहरण के लिए, आरक्षित उद्योगों के द्वार निजी क्षेत्र के लिए खोल दिए गये हैं। विदेशी फर्मों को अधिक रियायतें दी गयी हैं। हमारे देश में भी उदारीकरण की नीति को अपनाया जा रहा है जिससे कि भारतीय अर्थव्यवस्था संतुलित बन सके।

प्रश्न 10.
संगठन प्रक्रिया के विभिन्न चरणों को समझाइए।
उत्तर:
संगठन प्रक्रिया प्रबंध की एक ऐसी प्रक्रिया है जो संख्या को निर्धारित उद्देश्यों एवं लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए बनाया जाता है। यह भिन्न-भिन्न प्रतिभाओं एवं योग्यताओं वाले व्यक्तियों को आपस में मिलाती है और उन्हें सुनिश्चित संबंधों, समन्वय तथा सम्प्रेषण द्वारा एक संगठन में बाँधती है। इस प्रकार संगठन की स्थापना के लिए विभिन्न कदमों को उठाना पड़ता है, जिन्हें संगठन प्रक्रिया के नाम से जाना जाता है। संगठन प्रक्रिया के अन्तर्गत उठाए जाने वाले प्रमुख कदम निम्नलिखित हैं-

  • संस्था के उद्देश्यों एवं लक्षणों का निर्धारण करना।
  • विभिन्न क्रियाओं का निर्धारण करना।
  • क्रियाओं का श्रेणीबद्ध किया जाना या समूहीकरण करना।
  • कर्मचारियों के बीच कार्य का आबंटन करना।
  • अधिकार, सत्ता, कर्तव्यों एवं दायित्वों की व्याख्या करना।
  • अधिकारों का सौंपा जाना इत्यादि।

प्रश्न 11.
नियोजन की सीमाओं का वर्णन करें।
उत्तर:
नियोजन की निम्नलिखित सीमाएँ होती हैं-

  • नियोजन पर किये गये व्यय से लागत व्ययों में वृद्धि होती है।
  • नियोजन में यदि परिवर्तन किया जाए तो बाधाएँ आती हैं।
  • नियोजन में पक्षपातपूर्ण निर्णय किये जाते हैं।
  • संकट काल में नियोजन करना संभव नहीं है।
  • नियोजन बहुत अधिक खर्चीली प्रक्रिया है। इसको तैयार करने में बहुत अधिक समय, श्रम तथा धन का अपव्यय होता है।

प्रश्न 12.
“अधिकार का भारार्पण किया जा सकता है, उत्तरदायित्व का नहीं।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अधिकार का भारार्पण किया जा सकता है, परन्तु उत्तरदायित्व का नहीं। इस कथन को निम्नलिखित प्रकार से समझाया जा सकता है-

अधिकार सौंपने से आशय अधीनस्थों को निश्चित सीमा के अंतर्गत कार्य करने का केवल अधिकार देना है। एक उच्च अधिकारी के लिए यह संभव नहीं होता कि वह अपने समस्त अधिकारों का प्रयोग करके बड़े संगठन के सभी कार्यों को स्वयं पूरा कर ले। इसलिए ऐसे उच्चाधिकारियों के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वे अपने अधिकारों का भारार्पण (Delegation) अधीनस्थों को करें।

उत्तरदायित्व के सम्बन्ध में उल्लेखनीय बात है कि कोई भी प्रबंधक अपने दायित्व का सौंपना या प्रतिनिधान (delegation) नहीं कर सकता। हाँ, अन्य व्यक्तियों से सहायता ली जा सकती है, किन्तु दायित्व मूल व्यक्ति का ही रहता है। उदाहरण के लिए, एक कम्पनी की दशा में प्रबंध संचालन अपने कर्तव्यों के लिए संचालन मण्डल के प्रति उत्तरदायी होता है। वह अपने कार्य-भार को हल्का करने के उद्देश्य से अन्य लोगों की सहायता लेता है तथा उन्हें आवश्यक अधिकार भी प्रदान करता है। परन्तु यदि अधीनस्थ व्यक्ति के आचरण से कम्पनी को कोई हानि होती है तो संचालक मण्डल के सम्मुख प्रबंध संचालक ही उत्तरदायी होगा।

उपर्युक्त अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि केवल अधिकार का भारार्पण किया जा सकता है। उत्तरदायित्व का नहीं।

प्रश्न 13.
भर्ती के विभिन्न बाह्य स्रोतों की सची बनाइए।
उत्तर:
भर्ती के विभिन्न बाह्य स्रोतों की सूची निम्नलिखित हैं-

  • रोजगार कार्यालय,
  • शिक्षण संस्थाएँ,
  • वर्तमान कर्मचारी का सिफारिश,
  • श्रम-संघ,
  • अन्य संस्थाओं के कर्मचारी,
  • विशिष्ट संस्थाएँ,
  • संगठन में से ही पदोन्नति करके,
  • स्थानांतरण करके,
  • भूतपूर्व अधिकारी,
  • वर्तमान कर्मचारियों के मित्रगण एवं रिश्तेदार।

प्रश्न 14.
कार्य पर प्रशिक्षण एवं कार्य से दूर प्रशिक्षण में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:
कार्य पर प्रशिक्षण (On the Job Training) – इस प्रथा के अन्तर्गत कर्मचारियों को सीधे काम पर लगाकर प्रशिक्षण दिया जाता है। इससे कर्मचारी काम भी सीखता है और उत्पादन भी करता है। वह यहाँ पर अपनी भूल को तुरन्त सुधारने का प्रयत्न करता है। इसकी लागत भी कम आती है।

कार्य से दूर प्रशिक्षण (Off the Job Training) – कार्य पर प्रशिक्षण का सबसे बड़ा दोष यह है कि प्रशिक्षण की सफलता प्रशिक्षण की निजी योग्यता एवं रुचि पर निर्भर करती है। अब इस कमी को दूर करने के लिए कार्य से दूर प्रशिक्षण का सहारा लिया जाता है। इसके अन्तर्गत एक पूर्व नियोजित कार्य के अनुसार व्यापक प्रशिक्षण दिया जाता है। विशेष पाठ्यक्रम, भूमिका निर्वाह, व्यावसायिक क्रीड़ा, बहुपद प्रबन्ध, संवेदनशील प्रशिक्षण इत्यादि कार्य से दूर प्रशिक्षण की प्रमुख विधियाँ हैं।

प्रश्न 15.
प्रबंध के निर्देशन कार्य के तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
निर्देशन प्रबंध का एक प्रमुख कार्य है। निर्देशन के चार प्रमुख तत्त्व होते हैं, जो इस प्रकार हैं-

  • अभिप्रेरणा (Motivation) – व्यक्तियों को अच्छा उत्साह तथा पहल भावना के साथ कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करना है।
  • नेतृत्व (Leadership) – प्रभावपूर्ण नेतृत्व व्यक्तियों में काम कराने के लिए जादुई असर करता है।
  • पर्यवेक्षण (Supervision) – आशातीत परिणामों को प्राप्त करने तथा योजनानुसार तरीके से कार्य कराने की दिशा में सुपरवाइजर काम पर नजर रखकर प्रभावपूर्ण निष्पादन का रास्ता तैयार करता है।
  • संदेशवाहन (Communication) – संदेशवाहन निर्देशन का मूल-बिन्दु है।

प्रश्न 16.
स्थायी पूँजी की आवश्यकता को प्रभावित करनेवाले घटकों को लिखें।
उत्तर:
अलग अलग उपक्रमों में स्थायी पूँजी की आवश्यकता अलग-अलग होती है। स्थायी पूँजी की आवश्यकता को प्रभावित करने वाले विभिन्न तत्त्व हैं जो निम्नलिखित हैं-

(i) व्यवसाय के प्रकार (Types of Business) – व्यवसाय आकार एवं प्रकृति पर निर्भर करता है कि कितनी स्थायी पूँजी की आवश्यकता होगी। निर्माणी संस्थाओं में स्थायी पूँजी की अधिक आवश्यकता होती है, क्योंकि उन्हें भूमि; भवन, मशीन, औजार, फर्नीचर आदि क्रय करने होते हैं। इसी प्रकार सामाजिक उपयोगिता की संस्थाएँ जैसे–रेलवे, बिजली विभाग, जल विभाग संस्थाओं में अधिक स्थायी पूँजी की आवश्यकता होती है, क्योंकि उन्हें स्थायी सम्पत्तियों पर अधिक विनियोग करना होता है। दूसरी ओर व्यापारिक संस्थाओं में चल सम्पत्तियों पर अधिक विनियोग करने की आवश्यकता होती है। इनमें कार्यशील पूँजी की अधिक आवश्यकता होती है।

(ii) व्यवसाय का आकार (Size of the Business) – व्यवसाय के आकार से भी स्थायी पूँजी प्रभावित होती है। बड़े व्यवसाय गृहों में बड़ी मशीनों की आवश्यकता होती है जिनके क्रय पर अधिक स्थायी पूँजी की आवश्यकता होती है।

(iii) उत्पादन तकनीक (Technique of Production) – स्थायी पूँजी की आवश्यकता संस्था द्वारा अपनाई गई उत्पादन तकनीक पर निर्भर करती है। जिन संस्थाओं में गहन-पूँजी तकनीक अपनाई जाती है वहाँ स्थायी पूँजी की आवश्यकता अधिक होती है। इसके विपरीत जिन संस्थाओं में गहन श्रम तकनीक अपनाई जाती है वहाँ स्थायी पूँजी की आवश्यकता कम होती है।

(iv) अपनाई गई क्रियाएँ (Activities Undertaken) – संस्था द्वारा अपनाई गई क्रियाओं पर भी स्थायी पूँजी की आवश्यकता पर निर्भर करती है। यदि उत्पादन एवं वितरण दोनों प्रकार की क्रियाएँ अपनाई जाती हैं तो स्थायी पूँजी की आवश्यकता अधिक होगी। इसके विपरीत यदि केवल निर्माण अथवा व्यापारिक क्रियाओं का ही निष्पादन किया जाता है तो स्थायी पूँजी की आवश्यकता कम होगी।

प्रश्न 17.
विक्रय संवर्द्धन की प्रमुख विशेषताएँ कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
विक्रय संवर्द्धन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • विक्रय संवर्द्धन विक्रय बिन्दु पर ग्राहकों के ध्यान को वस्तुओं और सेवाओं के लिए आकर्षित करता है।
  • विक्रय संवर्द्धन वस्तुओं और सेवाओं को ग्राहकों की ओर ले जाने वाली क्रियाओं का समूह है।
  • विक्रय संवर्द्धन उत्पाद, सम्पत्ति या सेवा के मौद्रिक हस्तांतरण की इच्छा की जन घोषणा है जो संकेतों, प्रदर्शनों, डाक एवं अन्य अनियमित विपणन क्रियाओं द्वारा की जाती है।
  • विक्रय संवर्द्धन में उन अनियमित क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है जो कि उपभोक्ताओं एवं व्यापारियों को माल खरीदने के लिए प्रेरित करती है।
  • विक्रय संवर्द्धन में विज्ञापन, वैयक्तिक विक्रय तथा प्रकाशक को सम्मिलित नहीं किया जाता है।

प्रश्न 18.
प्रबंध की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
प्रबंध की परिभाषा विभिन्न विद्वानों ने दी है जो इस प्रकार है-
(i) जॉर्ज आर० टैरी के अनुसार, “प्रबंध एक पृथक् प्रक्रिया है जिसमें नियोजन, संगठन, वास्तविकता तथा नियंत्रण को सम्मिलित किया जाता है तथा इसका प्रयोग व्यक्तियों और साधनों द्वारा उद्देश्यों को निर्धारित और प्राप्त करने के लिए किया जाता है।”

(ii) कून्ट्ज और ओ’डेनेल के अनुसार, “प्रबंध एक सार्वभौमिक तथा निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जो बदलते हुए वातावरण में संगठन के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एक ऐसा आन्तरिक वातावरण तैयार करती है जिसमें कुछ व्यक्ति समूहों में काम करते हुए चुने गए उद्देश्यों तथा लक्ष्यों को प्राप्त कर सकें।”

प्रश्न 19.
समय अध्ययन तथा गति अध्ययन में अंतर बताएँ।
उत्तर:
किसी भी उतपादन क्रिया को करने में लगने वाले समय की एवं उसका रिकॉर्ड रखना ही समय अध्ययन कहलाता है जबकि गति अध्ययन वह विज्ञान है जिसके द्वारा अनावश्यक निर्देशित तथा अकुशल गति से होने वाली क्षति को रोका जा सके। इसमें मशीन या श्रमिक की किसी क्रिया को करने में होने वाली हरकतों का अध्ययन करना होता है।

प्रश्न 20.
क्रियात्मक संगठन क्या है ? इसकी विशेषताएँ क्या हैं ?
उत्तर:
क्रियात्मक संगठन विशिष्टीकरण के सिद्धान्तों पर आधारित है। इस प्रणाली के अन्तर्गत प्रबंध का विभाजन इस प्रकार किया जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति को कम-से-कम काम करना पडे। प्रत्येक कार्य को यथासंभव छोटी-छोटी उपक्रियाओं में विभाजित कर दिया जाता है और प्रत्येक व्यक्ति को कार्य उसकी रूचि के अनुसार सौंप दिया जाता है। प्रत्येक श्रमिक का प्रबंध में से केवल एक अधिकार द्वारा ही संबंध रहता है जो उसे आवश्यक आदेश देता है।

क्रियात्मक संगठन की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • एक विशिष्ट कार्य के संबंध में आदेश देने का अधिकार एक वरिष्ठ विशेषज्ञ को दे दिया जाता है।
  • इस संगठन में नियोजन और क्रियान्वयन कार्यों को अलग-अलग कर दिया जाता है।
  • इस संगठन में प्रत्येक कार्य का विभाजन विशिष्टीकरण के आधानर पर छोटी-छोटी क्रियाओं में किया जाता है।
  • इस संगठन में आदेश की एकता के स्थान पर आदेश की अनेकता पाई जाती है अर्थात् श्रमिक को किसी एक अधिकारी की अपेक्षा अनेक अधिकारियों (आठ नायकों) से आदेश प्राप्त होते हैं।
  • इस संगठन में विशेषज्ञ केवल परामर्श ही नहीं देते, बल्कि उन्हें अपने क्षेत्र में सम्पूर्ण संगठन में आदेश देने का अधिकार होता है।
  • इस संगठन में अधिकारों व दायित्वों का विभाजन, विभागों के आधार पर न होकर कार्यों के आधार पर होता है।

प्रश्न 21.
भर्ती क्या है ? यह चयन से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर:
भर्ती से आशय एक ऐसी प्रक्रिया से है जिसके द्वारा भावी कर्मचारियों की खोज की जाती है और उन्हें उपक्रम में कार्य करने के लिए आवेदन पत्र देने के लिए प्रेरित किया जाता है। एडवीन बी. फिलिप्पो के अनुसार, “भर्ती भावी कर्मचारियों की खोज करने और उन्हें रिक्त कार्यों के लिए आवेदन करने के लिए प्रेरणा व प्रोत्साहन करने की प्रक्रिया होती है।”

भर्ती और चयन में अन्तर इस प्रकार है-
Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Short Answer Type Part 4, 1

प्रश्न 22.
नियोजन किस प्रकार नियंत्रण को संभव बनाता है ?
उत्तर:
नियोजन प्रबंध के नियंत्रण कार्यों को संभव बनाता है। इसलिए इसको नियंत्रण का आधार माना जाता है। नियोजन द्वारा संस्था के उद्देश्यों को निर्धारित करके संस्था में कार्यरत सभी विभागों एवं व्यक्तियों को बता दिया जाता है कि उन्हें कब, क्या और किस प्रकार करना है। उनके कार्य, समय, लागत आदि के बारे में प्रमाप (Standards) निश्चित कर दिए जाते हैं। नियंत्रण में कार्य पूरा होने पर वास्तविक कार्य की तुलना प्रमाणित कार्य के साथ करके विचलनों (Deviations) का पता लगाया जाता है। ऋणात्मक विचलन आने पर अर्थात् कार्य इच्छानुसार पूरा न होने पर संबंधित व्यक्ति को उत्तरदायी ठहराया जाता है। वास्तविक कार्य का माप, विचलन की जानकारी व श्रमिक को उत्तरदायी ठहराना नियंत्रण के अंतर्गत आता है। इस प्रकार नियोजन के अभाव में नियंत्रण सभव नहीं है। इसलिए कहा जाता है कि नियोजन नियंत्रण को संभव बनाता है।

प्रश्न 23.
विज्ञापन को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए सुझाव दीजिए।
उत्तर:
विज्ञापन को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए निम्नलिखित सुझाव इस प्रकार है-

  1. विज्ञापन का शीर्षक आकर्षक होना चाहिए।
  2. विज्ञापन में चित्रों का प्रयोग करना चाहिए।
  3. विज्ञापन का मूल्य मितव्ययी होना चाहिए।
  4. विज्ञापन में आकर्षक सीमा रेखा का प्रयोग करना चाहिए।
  5. विज्ञापन में उत्तर के लिए कूपन का प्रयोग भी होना चाहिए।
  6. विज्ञापन में रंगों का उचित प्रयोग होना चाहिए।
  7. विज्ञापन में प्रभावपूर्ण नारे का भी प्रयोग होना चाहिए।

अतः इस प्रकार उपर्युक्त तथ्यों को ध्यान में रखकर एक विज्ञापन को अधिक प्रभावपूर्ण बनाया जा सकता है।

प्रश्न 24.
उपभोक्ता के हितों की रक्षा के लिए भारत सरकार ने कई कानून बनाए हैं। विवेचना कीजिए।
उत्तर:
उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए भारत सरकार ने कई कानून बनाए हैं जिनमें उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 पास किया गया है। इस अधिनियम में उपभोक्ताओं को विभिन्न अधिकार प्रदान किये गये हैं। जैसे-मूल आवश्यकताओं की पूर्ति होना। ये आवश्यकताएँ भोजन, मकान, कपड़ा, बिजली, पानी शिक्षा और चिकित्सा इत्यादि की सुविधाएँ प्रदान की गयी है। इसी तरह जागरूकता के अधिकार भी दिए गए हैं। इसके अन्तर्गत चयन के लिए उपभोक्ताओं को विक्रेताओं द्वारा सही जानकारी प्रदान करना है। उपभोक्ताओं को वस्तुओं का चुनाव करने की सुविधा दी गयी है जिससे कि उपभोक्ता अपनी मनपसंद की वस्तुएँ उचित मूल्य पर प्राप्त कर सकें।

इसके अतिरिक्त उपभोक्ताओं का शोषण और धोखाधड़ी नहीं हो इसके लिए भी कानून बनाए गये हैं। इसके अतिरिक्त यदि उपभोक्ताओं को गुणवत्ता वाली वस्तुएँ उचित मूल्य पर प्राप्त नहीं होती है। साथ ही यदि दुकानदार किसी प्रकार का कोई गलत आचरण करता है और मूल्य के अनुसार वस्तुएँ नहीं देता है तो कानून द्वारा उपभोक्ताओं को उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज करने का अधिकार भी दिया गया है। उपभोक्ता फोरम से सुनवाई होने पर कानूनी रूप से उपभोक्ताओं को क्षतिपूर्ति के रूप में मुआवजा प्राप्त होने का अधिकार भी दिया गया है।

प्रश्न 25.
एक उपभोक्ता के लिए ‘चुनने का अधिकार’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
एक उपभोक्ता के लिए चुनने के अधिकार का अर्थ यह होता है कि उपभोक्ता संरक्षण के अनुसार उपभोक्ता जब किसी वस्तु को खरीदता है तो उसं विभिन्न क्वालिटी की वस्तुओं को चुनकर खरीदारी करता है। इससे उपभोक्ता के हितों की सुरक्षा होती है। वास्तव में जब कोई उपभोक्ता वस्तुओं की खरीदारी करते समय वस्तुओं को चुनकर खरीदता है तो इसे चुनने का अधिकार कहा जाता है।

प्रश्न 26.
नेतृत्व का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
नेतृत्व का अर्थ किसी व्यक्ति के उस गुण से लगाया जाता है जिसके आधार पर वह अनुयायियों के समूह का मार्ग-प्रदर्शन करता है तथा नेता के रूप में उनकी क्रियाओं का संचालन करता है। प्रबंध के क्षेत्र में नेतृत्व की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका है।

नेतृत्व को परिभाषित करते हुए कुण्ट्ज एवं ओडोनेल ने कहा है कि “नेतृत्व कला व्यक्तियों को प्रभावित करने की प्रक्रिया है जिसमें वे स्वेच्छा तथा उत्साह से संगठनात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करेंगे।”

प्रश्न 27.
विज्ञापन एवं व्यक्तिगत विक्रय के बीच कोई दो अन्तर बताइए।
उत्तर:
व्यक्तिगत विक्रय तथा विज्ञापन विक्रय के बीच पाये जानेवाले दो अन्तर निम्नलिखित हैं
(i) व्यक्तिगत विक्रय एक ऐसी विक्रय की विधि है जिसमें क्रेता और विक्रेता दोनों आमने-सामने होते हैं। विक्रेता द्वारा क्रेता के सामने वस्तुएँ प्रस्तुत की जाती है और क्रेता को संट करते हुए वस्तुओं का विक्रय किया जाता है। दूसरी ओर विज्ञापन विक्रय का एक ऐसा माध्यम है जिसमें वस्तुओं की बिक्री करने के लिए व्यापारी कंपनी विभिन्न माध्यमों से विज्ञापन कार्य करते हैं। आमलोग उसे पढ़कर अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ खरीदते हैं।

(ii) व्यक्तिगत विक्रय में अधिकतर ग्राहकों के संदेह का तुरन्त समाधान किया जाता है। दूसरी ओर विज्ञापन के द्वारा विक्रय होने से ग्राहकों के वस्तुओं के संदेहों का तुरन्त समाधान नहीं . हो सकता है।

प्रश्न 28.
कार्य पर प्रशिक्षण का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
कार्य पर प्रशिक्षण के अन्तर्गत कर्मचारियों को सीधे काम पर लगाकर प्रशिक्षण दिया जाता है। इससे कर्मचारी काम भी सीखता है और उत्पादन भी करता है। वह यहाँ पर अपनी भूल को तुरन्त सुधारने का प्रयत्न करता है। इसकी लागत भी कम आती है।

प्रश्न 29.
पर्यवेक्षण के महत्व के दो बिन्दु लिखिए।
उत्तर:
पर्यवेक्षण के महत्व के दो बिन्दु निम्नलिखित हैं-

  • पर्यवेक्षण के द्वारा कर्मचारियों को एक टीम के रूप में संगठित करके उनकी कार्यक्षमता का प्रयोग करता है। यह कर्मचारियों में अनुशासन तथा समन्वय स्थापित करता है।
  • पर्यवेक्षण का महत्व इसलिए है कि यह संस्था के विभाग में कर्मचारियों को समय-समय पर अधिक-से-अधिक काम करने की प्रेरणा देता है। साथ ही यह मालिकों और श्रमिकों तथा कर्मचारियों के बीच मधुर संबंध बनाये रखने में अपनी भूमिका निभाता है।

प्रश्न 30.
पूँजी बाजार के दो अंग कौन-से हैं ?
उत्तर:
पूँजी बाजार के दो अंग इस प्रकार हैं-
(i) स्कंध विनिमय बाजार – आधुनिक युग में स्कन्ध विपणि किसी भी देश के पूँजी बाजार का एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। स्कंध विपणि से आशय ऐसे संगठित बाजार से है जहाँ पर अंश ऋण-पत्रों सरकारी एवं अर्द्धसरकारी प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय किया जाता है।

(ii) व्यावसायिक बैंक – यह भी पूँजी बाजार का एक प्रमुख अंग है। व्यावसायिक बैंक एक ऐसा बैंक है जो जनता के बचत को अपने यहाँ विभिन्न खातों में सुरक्षित रूप में रखता है और आवश्यकता पड़ने पर अपने ग्राहकों को कर्ज भी प्रदान करता है। व्यावसायिक बैंक से ग्राहक कर्ज के रूप में पूँजी प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 31.
बजटीय नियंत्रण क्या है ?
उत्तर:
बजटीय नियंत्रण का अर्थ व्यावसायिक प्रगति की योजनाओं को बजटों के रूप में निर्धारित करने और उसके विकास को इस बजटीय लक्ष्यों के अनुसार संचालित व नियंत्रित करने से है। सरल शब्दों में बजटीय नियंत्रण बजट अनुमानों तथा वास्तविक परिणामों में तुलना करने की क्रिया को कहते हैं।

जार्ज आर० टेरी (George R. Terry) ने बजटीय नियंत्रण को निम्न रूप में परिभाषित किया है- “यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा वास्तविक कार्यकलापों को पता लगाया जाता है। फिर बजट अनुमानों से उसकी तुलना की जाती है, जिससे उपलब्धियों की पुष्टि की जा सके अथवा बजट अनुमानों में समायोजन करके या अन्तरों के कारणों का सुधार करके अन्तरों को दूर किया जा सके।”

प्रश्न 32.
‘क्रियाओं का पैमाना’ स्थायी पूँजी की आवश्यकता को कैसे प्रभावित करता है ?
उत्तर:
स्थायी सम्पतियों के बढ़ाने में जो धन खर्च होता है, उसे स्थायी पूँजी कहा जाता है। स्थायी पूँजी की आवश्यकता विभिन्न तत्वों द्वारा प्रभावित होता है जिनमें क्रियाओं का पैमाना भी एक है। जब व्यपारिक क्रियाओं का पैमाना बड़ा होता है तो स्थायी पूँजी की अधिक आवश्यकता होती है क्योंकि क्रियाओं का पैमाना बड़ा होने से व्यावसायिक क्रियाओं के लेन-देन बड़े पैमाने पर होते रहते हैं। इसलिए स्थायी पूँजी की आवश्यकता बड़ी मात्रा में होती है।

प्रश्न 33.
‘विक्रय संवर्द्धन विज्ञापन को प्रभावी बनाता है।’ कैसे ?
उत्तर:
सामान्य बोलचाल की भाषा में विक्रय संवर्द्धन का अर्थ उन सभी क्रियाओं से लगाया जाता है जो बिक्री में वृद्धि करने के उद्देश्य से की जाती है। विक्रय संवर्द्धन करने के लिए विज्ञापन को प्रभावशाली बनाना आवश्यक है। इसीलिए यह कथन सही है कि विक्रय संवर्द्धन विज्ञापन को प्रभावी बनाता है। जब विज्ञापन अच्छी तरह से किया जाता है तो व्यापारिक संस्था में विक्रय संवर्द्धन तेजी से होता है।

प्रश्न 34.
कार्यात्मक संगठन के दो लाभ दीजिए।
उत्तर:
कार्यात्मक संगठन के दो लाभ निम्नलिखित हैं-

  • कार्यात्मक संगठन में विशिष्टीकारण का तत्व पाया जाता है। इसमें सभी क्रियाओं के आधार पर विभिन्न भागों में बाँटकर प्रत्येक कार्य एक विशेषज्ञ को सौंपा जाता है और विशिष्टीकरण के लाभ प्राप्त किये जाते हैं।
  • कार्यात्मक संगठन का एक लाभ यह भी है कि इसके द्वारा संगठन के सभी अधिकारियों, प्रबंधकों और कर्मचारियों की कार्य-कुशलता में वृद्धि होती है।
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