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 Bihar Board 12th Hindi संक्षेपण Important Questions

Bihar Board 12th Hindi संक्षेपण Important Questions

कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक विचारों और भावों की अभिव्यक्ति संक्षेपण कहलाता है। संक्षिप्तता, सरलता, स्पष्टता और पूर्णता संक्षेपण के प्रमुख गुण है। संक्षेपण की भाषा सरल एवं स्पष्ट होनी चाहिए।

संक्षेपण बनाते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है-

  1. संक्षेपण मूल गद्यांश का एक-तिहाई में लिखा जाना चाहिए। जैसे 90 शब्दों का संक्षेपण 30 शब्दों में होना चाहिए।
  2. एक संक्षप्ति एवं उपयुक्त शीर्षक होना चाहिए।
  3. मूल अवतरण की अच्छी तरह पढ़कर समझ लेना चाहिए।
  4. मूल अवतरण का पूर्ण भाव एवं विचार संक्षेपण में आना चाहिए।
  5. मूल अवतरण में दिए गये महावरों, समानार्थक शब्दों क्लिष्ट पदों एवं उदाहरणों का परित्याग करना चाहिए।
  6. संक्षेपण में समस्त पदों का प्रयोग होना चाहिए।
  7. मूल अवतरण और संक्षिप्त अवतरण की शब्द संख्या का उल्लेख होना चाहिए। (क) एक या दो बार प्रारूप (रफ) बनाना चाहिए।

प्रस्तुत उदाहरण

1. अनुशासन की आवश्यकता छात्र जीवन के लिए सबसे अधिक है। केवल विद्यालय में ही नहीं वरन् परिवार एवं समाज में भी अनुशासन के नियमों का पालन करना चाहिए। उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि पूरी सृष्टि और पूरा ब्रह्मांड भी अनुशासन में बंधा है। जीवन में अनुशासन न हो तो हम आसानी से अराजकता का शिकार हो जायेंगे।

शीर्षक अनुशासन

अनुशासन छात्र जीवन के अतिरिक्त समाज में भी अपेक्षित है। पूरी सृष्टि अनुशासनबद्ध है। अनुशासन हीनता अराजकता है।

मूल अवतरण – 58
संक्षेपण – 19

2. इस धरती पर योग्य और कर्मशील लोग ही जी पाते हैं। अयोग्य और कर्महीन धीरे-धीरे समाप्त हो जाते हैं। योग्य जन ही जीते हैं, यह पश्चिम की उक्ति नहीं, यह तो गीता की उक्ति है।

शीर्षक-योर जन्म

योग्य जन ही जीते हैं। अयोग्य धीरे-धीरे समाप्त हो जाते हैं।

मूल अवतरण – 35
संक्षेपण – 11

3.मनुष्य-रूपी तलवार की धार-चरित्र है। अगर इस धार में तीक्ष्णता है तब यह तलवार भले ही लोहे की हो, अपने काम से अधिक कारगर सिद्ध होती है। इसके विपरीत यदि इस तलवार की धार मोटी है, भद्दी है तो तलवार सोने की ही क्यों न हो हमारे किसी काम की नहीं हो सकती है। इसी प्रकार यदि किसी काम की नहीं हो सकती है। इसी प्रकार यदि किसी का चरित्र नष्ट हो गया हो तब वह मनुष्य मुर्दे से भी बदतर है।

गोषक वविध का महत्त्व

जिस प्रकार तलवार में उसकी धार की तीक्ष्णता का महत्त्व है, उसी प्रकार मनुष्य में उसके चरित्र का। चरित्र-भ्रष्ट व्यक्ति धार-हीन तलवार की भाँति व्यर्थ है।

मूल अवतरण – 72
संक्षेपण – 20

4. सच तो यह है कि कोई भी साहित्य समाज से कटकर जीवित नहीं रह सकता। यदि युग का सत्य, सामाजिक यथार्थ तथा सामान्य जन-जीवन की संस्कृति साहित्य में नहीं उभरी, तो साहित्य की संज्ञा से वह विरल समझा जायेगा। जहाँ तक साहित्य में वैयक्तिकता का सृजन-पक्ष है, वह नितांत सीमित एवं द्वन्द्वात्मक ही है। वैयक्तिकता भी सामाजिक सरोकार की मोहताज है। जिन कृतियों में वैयक्तिकता रखी होती है, वहाँ सामाजिक चेतना लाभप्रद हो जाती है।

शीर्षक : साहित्य और समाज

संक्षेपण – साहित्य समाज से कटकर नहीं रह सकता। जिस साहित्य में सामाजिक चित्रण नहीं, वह साहित्य नहीं। साहित्य में वैयक्तिकता, सामाजिक चेतना को लुप्तप्राय कर देती है।

मूल अवतरण में शब्द-संख्या – 71
संक्षेपित शब्द-संख्या – 22

5. मनुष्य-रूपी तलवार की धार चरित्र है। अगर इस धार में तीक्ष्णता है तब वह तलवार भले ही लोहे की हो, अपने काम से अधिक कारगर सिद्ध होती है। इसके विपरीत यदि इस तलवार की धार मोटी है, भद्दी है तो तलवार सोने की ही क्यों न हो हमारे किसी काम की नहीं हो सकती है। इसी प्रकार यदि किसी का चरित्र नष्ट हो गया हो तब वह मनुष्य मुर्दे से भी बदतर है।

शीर्षक: चरित्र का महत्त्व

संक्षेषण – जिस प्रकार तलवार में उसकी धार की तीक्ष्णता का महत्त्व है, उसी प्रकार मनुष्य में उसके चरित्र का। चरित्र-भ्रष्ट मनुष्य धार-हीन तलवार की भांति व्यर्थ है।

मूल अवतरण में शब्द-संख्या – 72
संक्षेपण में शब्द-संख्या – 20

6. चारों ओर हाहाकार मचा है। लोग दाने-दाने के लिए तरस रहे हैं। आखिर क्यों न तरसें? अब पहले की तरह अन्न नहीं उपजता। उपजे भी कैसे? धरती को हम सदियों से जोतते कोड़ते चले आ रहे हैं। उसे हम उचित मात्रा में न खाद-पानी देते हैं न विश्राम। इसलिए धरती हमसे रूठ गई है और अकाल बार-बार पड़ते हैं।

शीर्षक : “अन्नाभाव का हाहाकार”

संक्षेपण- समुचित अनुपात में खाद पानी नहीं देने के चलते धरती की अनुर्वरता बढ़ गयी है फलतः अन्नाभाव की स्थिति में सर्वत्र हाहाकार मचा है।

मूल अवतरण में शब्द-संख्या – 62
संक्षेपण में शब्द-संख्या – 17

7.कविता से रस प्राप्त होता है। उसे जो पढ़ते हैं वे तन्मय हो जाते हैं और इस तरह थोड़ी देर के लिए आपा भूल बैठते हैं। आपा भूलना एक मानी में मोक्ष है। इस माने में कहा जा सकता है कि कविता मोक्ष का एक साधन है।

शीर्षक : “मोक्ष का साधन कविता”

संक्षेपण- आपा भूलना मोक्ष है। कविता मोक्ष का साधन है। कारण कविता पढ़ने से आदमी आपा भूल जाता है।

मूल अवतरण में शब्द संख्या – 92
संक्षेपण में शब्द-संख्या – 13

8.लाखों सिर एक साथ सिजदे में झुक जाते हैं फिर सब-के-सब एक साथ खड़े हो जाते हैं, एक साथ झुकते हैं और एक साथ घुटने के बल बैठ जाते हैं। कई बार यही क्रिया होती है जैसे बिजली की लाखों बत्तियों एक साथ प्रदीप्त हों और एक साथ बुझ जाएं और यह क्रम चलता रहे। कितना, अपूर्व दृश्य था। जिसकी सामूहिक क्रियाएं, विस्तार और अनन्तता, हृदय को श्रद्धा, गर्व और आत्मानन्द से भर देती थी, मानो प्रातृत्व का एक सूत्र इस सभी आत्माओं को एक कड़ी में पिरोये डुए है।

शीर्षक : ईद का नमाज

संक्षेपण-ईद के अवसर पर लाखों लोगों का एक साथ झुकना, उठना एवं घुटने के बल बैठना एकात्मकता और भाईचारे का आनन्दायक त्योहार है।

मूल अवतरण में शब्द-संख्या – 92
संक्षेपण में शब्द-संख्या – 18

9. मोहनदास गांधी का जन्म 1869 में हुआ था। वह करमचंद गाँधी के सबसे कनिष्ठ पुत्र थे। करमचंद गांधी गुजरात की रियासत में प्रधानमंत्री रह चुके थे। मोहनदास गांधी किशोरावस्था में उच्चतर शिक्षा के लिये इंगलैंड गये। बैरिस्टर की डिग्री प्राप्त करने के बाद, वह एक व्यापारी फर्म के कानूनी प्रतिनिधि के रूप में दक्षिण अफ्रीका गये।

शीर्षक : प्रोहनदास गाँधी

संक्षेपण- करमचंद गाँधी के कनिष्ठतम पुत्र मोहनदास गाँधी का जन्म 1869 में हुआ था। बैरिस्टरी करने के बाद वे कानूनी प्रतिनिधि के रूप में दक्षिण अफ्रीका गये।

मूल अवतरण की शब्द-संख्या – 46
संक्षेपण की शब्द-संख्या – 19

10. आज के अधिकांश अंग्रेजी पढ़े-लिखे व्यक्ति अपने देश की प्रत्येक चीज को अपमान की दृष्टि से देखते हैं और उसे अपनाने में अपनी मानहानि समझते हैं। उनके विचार से पर्व बेकार हैं। वे फिजूलखर्ची के साधन हैं, पर बेकार नहीं हैं। वे बड़े-बड़े मनोवैज्ञानिकों के दिमाग की उपज हैं, कम पढ़े-लिखे आदमियों की थोथी दलील नहीं। जीवन कंटकमय है, इसमें उलझन है। सदा उलझन में फंसे रहने पर हमारे जीवन की धज्जियां उड़ जाएंगी। इसलिए, जीवन में ऐसे क्षणों की आवश्यकता है जब हम खुलकर हँस सकें, उलझन से निकलकर कुछ गा सकें। हमारे पर्व ऐसे ही क्षण हैं। हमारे देश में पर्यों की कमी नहीं है। शायद ही कोई ऐसा महीना होगा, जिसमें कोई पर्व नहीं हो।

शीर्षक : भारत में पर्व-त्योहारों का महत्त्व

संक्षेपण- भारत पर्व-त्योहारों का देश है। नए अंग्रेजी पढ़े लिखे लोग पर्व-त्योहारों को फालतू एवं उपेक्षणीय समझते हैं पर ये कोरी-फिजूलखर्ची नहीं। ये बड़े मनोवैज्ञानिक दिमागों की उपज हैं। ये हमारी उलझनभरी जिन्दगी में आनंद और उल्लास के क्षण देते हैं।

मूल अवतरण में शब्द-संख्या – 102
संक्षेपित शब्द-संख्या – 29

11. विद्वानों का कथन बहुत ठीक है कि नम्रता ही स्वतंत्रता की धात्री व माता है। लोग भ्रमवश अहंकार-वृत्ति को उसकी माता समझ बैठते हैं, पर वह उसकी सौतेली माता है जो उसका सत्यानाश करती है। चाहे वह संबंध ठीक हो या न हो, पर इस बात को सब लोग मानते हैं कि आत्म-संस्कार के लिए थोड़ी बहुत मानसिक स्वतंत्रता परम आवश्यक है, चाहे उस स्वतंत्रता में अभिमान और नम्रता दोनों का मेल हो और चाहे वह नम्रता से ही उत्पन्न हो। यह बात तो निश्चित है कि जो मनुष्य मर्यादापूर्वक जीवन व्यतीत करना चाहता है, उसके लिए यह गुण अनिवार्य है जिसमें आत्मनिर्भरता आती है और जिसे अपने पैरों के बल खड़ा होना आता है।

शीर्षक : नम्रता गणों की जननी है

संक्षेपण- नम्रता व्यक्ति में अनेक गुणों को जन्म देती है। यह व्यक्ति में शालीनता और स्वतंत्रता का संस्कार पैदा करती है। अहंकार अंततः इन गुणों को नष्ट करता है। विनयशील व्यक्ति मर्यादा का रक्षक, स्वाभिमानी, आत्मनिर्भर और स्वावलम्बी होता है।

मूल अवतरण में शब्द-संख्या – 120
संक्षेपित शब्द-संख्या – 34

12. प्रायः देखा जाता है कि विद्यार्थी अपने स्वास्थ्य की तरफ बहुत ही कम ध्यान देते हैं। वे जितने अधिक विद्या-व्यसनी होते हैं उतना ही कम ध्यान स्वास्थ्य की ओर देते हैं। वे भावी अनिष्ट परिणाम पर ध्यान न देकर अपने अमूल्य स्वास्थ्य की आहुति देते हुए विद्योपार्जन के लिए दिन-रात कठिन परिश्रम करते जाते हैं, परन्तु जब भयंकर रोगों से आक्रान्त होते हैं, तब उनकी वही दशा होती है जो भयसूचक संकेत को न देखकर धड़ाके के साथ चली आती हुई रेलगाड़ी की होती है। इसलिए इस बात को ब्रह्म वाक्य की तरह सदा स्मरण रखना चाहिए कि आठों पहर बैठे रहकर लगातार कठिन मानसिक परिश्रम करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। यदि सिपाही बन्दूक • चलाने के लिए बन्दूक को सुखा कर न रखे अथवा कारीगर अपने औजारों को साफ न रखे, तो ठीक समय पर अपना काम कदापि नहीं कर सकता है। इसी प्रकार विद्यार्थी अपने स्वास्थ्य को ठीक-ठीक न रखकर सम्यक् अध्ययन नहीं कर सकता।

शीर्षक : विद्याथीं और स्वास्थ्य

संक्षेपण- विद्यार्थी अपनी पढ़ाई की धुन में स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं देते हैं। इसलिए वे भयंकर रोगों से आक्रान्त हो जाते हैं। दिन-रात बैठकर मानसिक परिश्रम करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। जिसका स्वास्थ्य ठीक नहीं वह अच्छी तरह विद्या अध्ययन नहीं कर सकता है। अतः विद्यार्थी को अपने स्वास्थ्य पर पर्याप्त ध्यान देना चाहिए।

मूल अवतरण की शब्द-संख्या – 158
संक्षेपित अवतरण की शब्द-संख्या – 53

13.अपने देश की यात्रा से हम अपने विभिन्न राज्य, रीति-रिवाज, खान-पान, रहन-सहन, वेशभूषा, आचार-व्यवहार, पर्व-त्योहार, भाषा-साहित्य, कृषि-व्यापार, तीर्थनगर, कल-कारखाने, उद्योग-धंधे, नदी-पहाड़ इत्यादि न मालूम कितनी चीजों की जानकारी प्राप्त करते हैं। इससे जाति-वर्ग की संकीर्णता समाप्त होती है। इसी प्रकार, विश्व-भ्रमण से विभिन्न देशों के धर्म, दर्शन, राजनीति, इतिहास, साहित्य; सभ्यता, संस्कृति, भूगोल इत्यादि की जानकारी होती है, हमारी संकीर्णताएँ दूर होती हैं, साथ-ही-साथ हममें विश्व-बंधुत्व की भावना भी विकसित होती है।

शीर्षक : यात्रा से लाभ

संक्षेपण-अपने देश की यात्रा से हमें अपने विभिन्न राज्यों की सामाजिक, आर्थिक, , धार्मिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक आदि जानकारी मिलती है और इसी भांति विश्व-भ्रमण से विश्व के विभिन्न देशों की। इससे हमारी संकीर्णताएं दूर होती हैं और विश्व-बंधुत्व की भावना विकसित होती है।

मूल अवतरण में शब्द-संख्या – 124
संक्षेपण की शब्द-संख्या – 35

14. भारत.की सभ्यता, दर्शन और सौन्दर्य पर विदेशी सदैव मुग्ध होते रहे हैं, पर आज न भौतिक समृद्धि में और न ज्ञान में हमारा कोई महत्त्वपूर्ण स्थान है। जिसके आँगन में मानवता खेली, जहाँ उसने संस्कार प्राप्त किया, जहां प्रथम ज्ञानोदय हुआ, जहाँ का प्रकाश पाकर दुनिया प्रकाशित हुई, उसी देश में हम नंगे, भूखे, निरक्षर और परमुखापेक्षी, अधिवासी हैं। हमने अपने पूर्वजों के । गौरव को हास्यास्पद बनाया; हमने एक महती सम्पदा प्राप्त करके भी उसे नष्ट कर दिया-उसका उपयोग न जाना। हमने दुनिया में अपनी और अपने देश की उपेक्षा देखी और सुनी। क्या, देश को हम पर अभिमान होगा? देवता भी इसकी भूमि के लिए तरसते थे-वे भी इसका गौरव गान करते थे और आज हम हैं कि अपना सिर ऊँचा करके दुनिया की ओर देख नहीं सकते।

शीर्षक : विश्व-गुरु भारत की अधोगति

संक्षेपण-जिस भारत की सभ्यता, दर्शन और सौंदर्य पर विदेशी मुग्ध रहे, जो विश्व का गुरु रहा, उसी के निवासी भारतीय आज भौतिकता और ज्ञान के क्षेत्र में पिछड़ कर परमुखापेक्षी हो गये हैं। इस देवदुर्लभ भारत के निवासियों के लिए यह दुखद बात है।

मूल अवतरण की शब्द-संख्या – 120
संक्षेपित अवतरण की शब्द-संख्या – 43

15. कवि का काम है कि वह प्रकृति विकास को खूब ध्यान से देखे। प्रकृति की लीला का ओर-छोर नहीं। प्रकृति अद्भुत खेल खेला करती है। एक छोटे से पूपल में वह अजीव कौशल दिखलाती है। वे साधारण के ध्यान में नहीं आते। वे उनकी समझ में नहीं आते, पर कवि अपनी सूक्ष्म दृष्टि से प्रकृति के कौशल अच्छी तरह देख लेता है, और उनका वर्णन भी वह करता है। जिस कवि में प्राकृतिक दृष्टि और प्रकृति के कौशल देखने और समझने की जितनी ही अधिक शक्ति होती है, वह उतना ही महान कवि होता है।

शीर्षक : कवि-कर्म और प्रकृति

संक्षेपण-कवि प्राकृतिक विकास की लीला को अपनी सूक्ष्म दृष्टि से देखता है तथा उसका वर्णन कर अपनी अभिव्यक्ति-क्षमता और सूझ का परिचय भी देता है। यह काम साधारण से संभव नहीं।

मूल अवतरण की शब्द-संख्या – 92
संक्षेपित अवतरण की शब्द-संख्या – 31

16. मनुष्य की अनेक मानसिक शक्तियों में कल्पना शक्ति भी एक अद्भुत शक्ति है। यद्यपि अभ्यास से यह कई गुणा अधिक हो जाती है, पर इसका सूक्ष्म अंकुर किसी-किसी के अंत:करण में प्रारंभ से ही रहता है। इसे ही प्रतिभा के नाम से पुकारा जाता है और कवियों की रचनाओं में जिसका उद्गार पूर्ण विकास पाता है। महान कवियों की कल्पना शक्ति पर चित्त चकित और मुग्ध । हो जाता है, तर्क-वितर्क की भूल-भूलैया में चक्कर मारने लगता है और अंततः यही महसूस करता । है कि यह चमत्कार या तो किसी पुराने संस्कार का परिणाम है या फिर ईश्वर प्रदत्त शक्ति है। कवियों का अपनी कल्पना शक्ति के द्वारा ब्रह्मा के साथ होड़ करना भी अनुचित नहीं है क्योंकि ब्रह्मा ने तो जो भी बन पड़ा-एक ही बार में रचकर अवकाश पा लिया, परन्तु कविगण नित्य नवीन रचनाएँ गढ़ने में जाने कितनी निर्माण चातुरी दिखलाते हैं।

शीर्षक : कल्पना शक्ति

संक्षेपण-कल्पना शक्ति अभ्यास से बढ़ती है। इसी का सूक्ष्मतम रूप प्रतिभा है। कवि कल्पना संस्कारवश या ईश्वरीय देन का फल होती है। इसके बल पर कविगण ब्रह्मा से भी होड़ करने में सक्षम हैं क्योंकि उनकी सृष्टि से कम विविधता, विलक्षणता और सौंदर्य कवि की रचनाओं में नहीं होता।

मूल अवतरण की शब्द-संख्या – 143
संक्षेपित शब्द-संख्या – 48

17. राजेन्द्र बाबू को देखकर साधारण पढ़े-लिखे देहाती को प्रम हो जाता था। मगर उनकी सादगी में बनावट नहीं होती थी। प्रतिभा के धनी होने पर भी उनमें अहंकार नहीं था। काँग्रेस का अध्यक्ष बनने के बाद भी कई बार उन्हें साधारण इक्के पर सवार कहीं जाते देखा जा सकता था। उनकी सादगी वस्त्रों तक ही सीमित नहीं थी, वरन् उनके हृदय में बैठ गयी थी-उनके स्वभाव का अंग बन गयी थी।

शीर्षक : राजेन्द्र बाबू की विलक्षणता

संक्षेपण- स्वाभाविकता और सादगी से साधारण देहाती दिखनेवाले राजेन्द्र बाबू निर्मल हृदय भी थे। सचमुच उनकी सादगी बाहर से अधिक आंतरिक और अक्षुण्ण रहनेवाली थी।

मूल अवतरण की शब्द-संख्या – 72
संक्षेपित शब्द-संख्या – 24

18. हिन्दुओं का विश्वास है कि स्थूल जड़ शरीर अथवा उसके भीतर रहने वाले मन नामक सूक्ष्म शरीर भी वस्तुतः मनुष्य नहीं-मनुष्य इन सबसे भी ऊँचा और श्रेष्ठ है, कारण, स्थूल शरीर और परिणामी है और मन का भी वही हाल है परन्तु इन सबसे परे आत्मा नामक जो अनिर्वचनीय वस्तु है उसका न आदि है और न अन्त। आत्मा, मृत्यु नामक अवस्था से परिचित नहीं। इसके सिवाय एक और खास बात है, जिसमें हमारे साथ-साथ और जातियों का मतभेद है। वह यह कि आत्मा एक देह का अन्त होने पर दूसरी देह धारण करती है। ऐसे करते-करते देह ऐसी अवस्था में पहुंचती है, जब उसे फिर शरीर धारण करने की कोई आवश्यकता तक नहीं रह जाती। वह मुक्त हो जाती है।

शीर्षक : हिन्दू धर्म में आत्मा का अस्तित्व

संक्षेपण- हिन्दू धर्म के अनुसार ‘मनुष्य’ इस स्थूल शरीर और मन से ऊंचा है। यह आत्मा है, .अनादि और अनन्त। आत्मा की मृत्यु नहीं होती। वह एक शरीर त्यागकर दूसरा शरीर धारण करती है। लेकिन मुक्त होने पर शरीर धारण नहीं करती।

मूल अवतरण की शब्द-संख्या – 121
संक्षेपित अवतरण की शब्द-संख्या – 40

19. प्रेमचंद के संबंध में जिज्ञासा का अर्थ यह है कि प्रेमचंद ने दुनिया को क्या दिया है और इस दान में नवीनता और ताजगी कितनी है? फिर प्रेमचंद ने संसार और मानव-समाज को जिस नवीन दृष्टिकोण से देखा है उसमें कितनी सच्चाई है? यदि हमारे विचारों और पूर्ववर्ती संस्कारों को झकझोरने की क्षमता न हो और हम प्रभावित न हो पायें तो उनकी रचनाओं और स्थापनाओं को स्वीकार नहीं किया जा सकता। वह जमाना बीत गया, जब लेखक सदा शकित रहता था। अब जमाना बदलने के साथ ही हम नवीन कृतियों में चिन्तन और विचारों की ताजगी देखना चाहने लगे हैं। यदि कोई रचनाकार मात्र पुरानी बातों को दुहराता रहे तो उसकी कृति व्यर्थ हो जाएगी।

शीर्षक : प्रेमचंद की महानता

संक्षेपण- प्रेमचंद ने दुनिया को क्या दिया-यह जिज्ञासा स्वाभाविक है। उनकी रचनाएँ सोचने-विचारने को विवश करती, कौतूहल जगाती तथा मौलिकता की कसौटी पर भी खरी उतरती हैं। सचमुच विचाराभिव्यक्ति की नवीनता ही ग्रंथ और ग्रंथकार को श्रेष्ठ बनाती है।

मूल अवतरण की शब्द-संख्या – 117
संक्षेपित शब्द-संख्या – 39

20. हम हिन्दी को अंग्रेजी का स्थान नहीं दिलाना चाहते। हमारी दृष्टि में हिन्दी कदापि वह भाषा नहीं है, न.हम उसे वह भाषा बनने देंगे, जो एक बलात लादी गई औपनिवेशिक एकरूपता का साधन और हथियार हो। हमारी दृष्टि में हिन्दी वह भाषा नहीं है, न हम उसे वह भाषा बनने देंगे जो अन्य भारतीय भाषाओं के विरोध में उन्हें नीचे रखने के लिए उनकी प्रतिभा को कुंठित करने और कुठित करने के बाद हीनतर बनाने के लिए झूठे अहंकार को प्रश्रय देकर एक स्थायी सर्वसाधनसंपन्न शासकवर्ग की वाणी बने और बनी रहे। हम हिन्दी के नाम पर वह स्थान छेक लेना और छेके रहना नहीं चाहते, जो हिन्दीतर भाषा-भाषी प्रदेशों में उनकी अपनी-अपनी भाषा का है, होगा और होना चाहिए।

शीर्षक : राष्ट्रभाषा हिन्दी का वास्तविक स्वरूप

संक्षेपण- इस देश में हिन्दी विशुद्ध राष्ट्रसंपर्क की भाषा होगी। इसे अंग्रेजी की प्रतिस्पर्धा में नहीं उतारना है। अंग्रेजी औपनिवेशिक साम्राज्यवाद के विस्तार की भाषा रही है। उसने हिन्दी ही नहीं सभी भारतीय भाषाओं का प्रादेशिक स्वत्व छीना है। राष्ट्रभाषा हिन्दी ऐसा कभी नहीं करेगी।

मूल अवतरण की शब्द-संख्या – 111
संक्षेपित शब्द-संख्या – 34

21. दुःख का बड़ा कारण है अपने-आप में ही डूबे रहना, हमेशा अपने ही विषय में सोचते रहना। हम यों करते तो यों होते। वकालत पास करके ही मिट्टी खराब की, इससे कहीं अच्छा होता कि नौकरी कर ली होती। अगर नौकरी है तो यह पछतावा कि वकालत क्यों नहीं कर ली। लड़के नहीं है तो फिक्र मारे डालती है कि लड़के कब होंगे। लड़के हैं तो रो रहे हैं कि ये क्यों हुए। अगर न होते तो कितने आराम से जिंदगी कटती।

शीर्षक : अपने-आप में डुबे रहना दुःख का बड़ा कारण

संक्षेपण-अपने-आप में डूबे रहना या अपनी तकलीफों का रोना रोते रहना दुःख का सबसे बड़ा कारण है। ऐसा आदमी बेकार की बातें सोचकर मन-ही-मन पछताता और दुःखी होता रहता है।

मूल अवतरण की शब्द-संख्या – 78
संक्षेपित शब्द-संख्या – 26

22. देशभक्त अपनी मातृभूमि को सच्चे हृदय से प्यार करता है। यदि एक ओर उसे अपने स्वर्णिम अतीत पर गर्व है, तो दूसरी ओर वह अपने भविष्य को भी उज्ज्वल बनाना चाहता है। वह सदैव समाज में क्रांति चाहता है। वह समाज में प्रचलित रूढ़ियों और अंधविश्वासों तथा उन परंपराओं और परिपाटियों के विरुद्ध क्रांति करता है, जो देश की उन्नति के पथ में बाधाएँ हैं। लोगों में एकता, प्रेम और सहानुभूति उत्पन्न करना, उनमें राष्ट्रीय, सामाजिक एवं नैतिक चेतना जागृति करना और उन्हें कर्तव्यपरायण तथा अध्यवसायी बने रहने के लिए प्रोत्साहन देना ही देशभक्ति है।

शीर्षक : सच्ची देशभक्ति

संक्षेपण- देशभक्त में सच्चा देशप्रेम होता है। वह अपने अतीत पर गर्व नहीं करता, भविष्य का निर्माण भी करना चाहता है। वह सामाजिक रूढ़ियों का विरोध करता है और लोगों में सद्भाव, बहुमुखी चेतना एवं कर्मठता का विकास करता है। सच्ची देशभक्ति यही है।

मूल अवतरण की शब्द-संख्या – 95
संक्षेपित शब्द-संख्या – 44

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