Advertica

 Bihar Board 12th Music Important Questions Short Answer Type Part 1

Bihar Board 12th Music Important Questions Short Answer Type Part 1

प्रश्न 1.
वर्ण क्या है ? इसके प्रकारों के नाम लिखें।
अथवा, वर्ण किसे कहते हैं ? वर्ण कितने प्रकार के होते हैं ? सविस्तार लिखें।
उत्तर:
स्वरों के विभिन्न क्रम अर्थात् चाल को वर्ण कहते हैं। मोटे तौर-से स्वरों की चलन चार प्रकार की हो सकती है या दूसरे शब्दों में वर्ण चार प्रकार के होते हैं। ‘अभिनव राग मंजरी’ में कहा गया है-‘गान क्रियोच्यते वर्णः’ अर्थात् गाने की क्रिया को वर्ण कहते हैं।

  • स्थायी वर्ण-जब कोई स्वर एक से अधिक बार उच्चारित किया जाता है तो उसे स्थायी. वर्ण कहते हैं। जैसे-रेरे, गग, मम आदि।
  • आरोही वर्ण-स्वरों के चढ़ते क्रम को आरोही वर्ण कहते हैं। जैसे-सा रे ग म।
  • अवरोही वर्ण-स्वरों के उतरते हुए क्रम को अवरोही वर्ण कहते हैं। जैसे-नि ध प म ग रे,सा।
  • संचारी वर्ण- उपर्युक्त तीनों वर्गों के मिश्रित रूप को संचारी वर्ण कहते हैं। इसमें कभी तो कोई स्वर ऊपर चढ़ जाता है तो कभी कोई स्वर बार-बार दोहराया जाता है। दूसरे शब्दों में संचारी वर्ण में कभी आरोही, कभी अवरोही और कभी स्थायी वर्ण दिखाई देता है। जैसे-सा सा रे ग म प ध प म प म ग रे सा।

प्रश्न 2.
राग देश का संक्षिप्त परिचय लिखें।
उत्तर:
यह राग बिला बल थाट से उत्पन्न माना गया है जिसके आरोह-अवरोह में राग भूपाली के समान म तथा नि स्वर वर्जित है। परन्तु धैवत तथा सम्वादी स्वर गंधार होने के कारण यह उत्तरांग प्रधान होकर भूपाली के सर्वथा विपरीत है, इस राग का धैवत तार षडज से सांध–माध-सां इस प्रकार लिया जाता है, जबकि भूपाली का गंधार स्वर पंचम से मीड लेकर “म” इस प्रकार प्रयुक्त होता है। यह प्रातः कालीन राग है । इसका चलन हमेशा उत्तरांग में इस प्रकार ग प साध सा-ध सा- होता है।

साथ ही “सांप-ध-प” की स्वर संगति सौंदर्य प्रदान करती है। इन दोनों रागों के समान आरोह-अवरोह के अन्य दो राग “जैत कल्याण” तथा “पहाड़ी” राग भी हैं परंतु उनका वादी-सम्वादी स्वर क्रमशः प-सा तथा सा-प होने से इन दोनों रागों से पृथक हो जाते हैं। आयुर्विज्ञान की दृष्टि से राग देशकर पित्त-वातजन्य होने के कारण कफजन्य रागों का शमन करता है।

प्रश्न 3.
कहरवा ताल को ठाह तथा दुगुन में लिखें।
अथवा, कहरवा ताल का ठाह और दुगुन की लयकारी लिखें।
उत्तर:
विभाग – 8. ताली – 1 और खाली 5वें मात्रा पर। ‘ताल की ठाठ-
Bihar Board 12th Music Important Questions Short Answer Type Part 1 1
ताल की दुगुन –
Bihar Board 12th Music Important Questions Short Answer Type Part 1 2

प्रश्न 4.
लय को परिभाषित करें।
अथवा, लय के विषय में लिखें।
उत्तर:
संगीत में गायन, वादन और नृत्य की गति को लय कहा जाता है। हमारे नित्य प्रति । के व्यवहार में कोई-न-कोई लय अवश्य रहती है। चलने फिरने, लिखने-पढ़ने, बोलने-चिल्लाने आदि में ऐसा नहीं होता कि कुछ शब्द शीघ्रता से बोलते हो, कुछ को धीरे से और कुछ शब्दों के बीच जहाँ भी चाहे जितनी देर तक रुक जाते हो, बल्कि उन सब में भी समान गति रहती है। . संगीत में भी समान गति रहती है। संगीत में समान गति को लय कहते हैं।

प्रश्न 5.
राग भैरव का संक्षिप्त परिचय लिखें।
अथवा, राग भैरवी की परिभाषा लिखें।
उत्तर:
राग भैरवी थाट का आश्रय राग है। इसके रे-ग-ध-नि कोमल तथा मध्यम शुद्ध है। जाति संपूर्ण है। वादी मध्यम व संवादी षड्ज है। गायन समय प्रातः काल का प्रथम प्रहर हो। विद्वान लोग इसमें जब शुद्ध ऋषम लगा देते हैं तब इसे सिन्धु-भैरवी कहते हैं। सा रे म प ध प से गुणकली की मग रे ग सा रे सा की तरह शुद्ध ऋषम सा रे ग म मे म गे सा रे स की तरह तीव्र मध्यम का प्रयोग कर देते हैं। स रे ग प म ग रे ग स रे स-की तरह ‘बिलासाखानी तोडी और ग म घ, नि सं से मालकोष की छाया उत्पन्न कर देते हैं। इस प्रकार इसमें अनेक रागों की छाया उत्पन्ने कर दी जाती है। इसका आरोह-अवरोह इस प्रकार है-स रे ग म प ग म प ध नि सं सं नि ध प म ग रे सा
स्वरूप – म ग, स रे स, ध नि सा

प्रश्न 6.
मूर्च्छना की परिभाषा लिखें।
अथवा, मूर्च्छना किसे कहते हैं ?
मूर्च्छनाएँ कितने प्रकार की होती हैं ?
उत्तर:
किन्हीं भी सात स्वरों की पंक्ति का क्रमानुसार आरोह और अवरोह को मूर्च्छना कहते हैं। प्रत्यक्ष व्यवहार में इसका प्रयोग षड्ज को और षड्ज के द्वारा बाकी स्वरों को दूसरे स्थानों पर सरकाना अथवा स्वर पक्ति का केन्द्र बदलना है। भारत नाट्यशास्त्र के समय में दो ही विकृत स्वर थे। सात शुद्ध स्वर और ‘अंतर-गंधार और ‘काकली निषाद’। ये दो विकृत मिलाकर कुल नौ स्वरों में ही संगीत की रचना होती थी। विकृत स्वरों के अभाव में संगीत का क्षेत्र दो ही ग्रामों तक सीमित हो जाता है इसलिए इस अभाव को दूर करने के लिए भरत ने मूर्च्छना की व्यवस्था की। मूर्छना के द्वारा इन्हीं नौ स्वरों से अनेक स्वर सप्तक बनते थे। इस प्रक्रिया में आरंभिक स्वर प्रत्येक बार बदला जाता था और उससे प्रारम्भ कर कुल सात स्वरों को स्थापित किया जाता था। परन्तु ऐसा करते समय स्वरों के बीच के अन्तराल नहीं बलते जाते थे। उदाहरण के लिए अगर मन्द निषाद से आरम्भ करके आकार में स्वर गाएँगे तो यह दूसरा सप्तक बनता है ‘नि सा रे ग म प ध नि’।

इसी प्रकार मन्द धैवत से मध्य धैवत तक बिलावल के आकार में गाएं, तो आसावरी का स्वर सप्तक होता है।
‘ध नि सा रे ग म प ध’।
व्यवहार में दो ही ग्राम है-षड्ज ग्राम और मध्यम ग्राम, अत: दो ग्रामों से निकली हुई 14 मूर्च्छनाएँ उपयोग में लाते थे।

प्रश्न 7.
ताल क्या है?
उत्तर:
गायन, वादन तथा नृत्य में समय के नापने की मात्रा कहते हैं तथा कई मात्राओं के अलग-अलग संचयन को ताल कहते हैं। जैसे-सात मात्रा के इस संचयन
Bihar Board 12th Music Important Questions Short Answer Type Part 1 3

प्रश्न 8.
राग देश में 16 मात्राओं को दो तान लिखें।
उत्तर:
राग देश में 16वीं मात्रा की तानें :
(i) निसा गम पध मप निध निसां रेसां निसां
निध निध पध मंप मप पम मरे सासा
(ii) गम पध निसां मरें गर्म मरें सांसी
गरें सांनि धप मप निध पम गरें सांसां

प्रश्न 9.
केदार राग का आरोह-अवरोह और पकड़ लिखें।
उत्तर:
यह राग कल्याण थाट का जनक राग माना जाता है । इसमें दोनों मध्यम तथा अन्य स्वर शुद्ध लगते हैं.। वादी म और सम्वादी सा है । आरोह में टै, ग, व अवरोह में केवल ग वज्य है । इसलिए इसकी जाति औडव-षाडव है । इसके गाने-बजाने का समय रूड़ी का प्रथम पहर है।
आरोह-सा म, म प, ध प, नि ध सां।
अवरोह-सां नि ध प, मे प ध प, म रे सा।
पकड़-सा म मप, मेप धप, म रे सा।

प्रश्न 10.
झपताल की ठाह तथा दुगुन की लयकारी लिखें।
उत्तर:
विभाग-4, ताली-1, 3. 8 पर तथा खाली 6वें मात्रे पर।
ताल की ठाठ (स्थायी)-
Bihar Board 12th Music Important Questions Short Answer Type Part 1 4
नाति नाधीं धीना
3

प्रश्न 11.
किसी सायंकालीन राग का परिचय दें।
अथवा, राग मारवा का परिचय लिखें।
उत्तर:
सायंकालीन राग मारवा का परिचय-
समय – सायंकाल – थाट – मारवा
वादी – रे – साम्वाद – गे
जाति – षाडव-षाडव – वर्जित स्वर – प
आरोह – नि रे ग म ध नि सां
अवरोह – सां नि ध म ग र सा
पकड़ – नि रे, नि ध म, ध म ग रे इत्यादि

यह राग मारवा थाट का आश्रय राग माना गया है। इसके आरोह-अवरोह में पंचम स्वर वर्जित है। यह संध्याकालीन संधिप्रकाश राग है। अधिकांश गुणिजन इसका वादी कोमल ऋषभ तथा सम्वादी शुद्ध धैवत मानते हैं परंतु एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बात यह है कि वादी-सम्वादी का अर्थ ही है वादी स्वर स्वर के साथ सम्वाद रखने वाला स्वर। यदि दोनों स्वरों में किसी प्रकार का (षडज मध्यम या षडज पंचम भाव से) सम्वाद नहीं है तो “सम्वादी” शब्द ही अपने आप में अर्थहीन हो जाता है। फिर तो इस शब्द की परिभाषा तथा व्याख्या ही बदल दी जानी चाहिए।

प्रश्न 12.
अलंकार क्या है ? समझाइए।
अथवा, अलंकार क्या है ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
अलंकार का अर्थ है आभूषण या गहना। अर्थात् स्वरों की वह क्रमबद्ध श्रृंखला जिसे लगाने पर राग की सुन्दरता बढ़े, अलंकार या पलटा कहते हैं। यह तीन वर्णों अर्थात् स्थायी, आरोही तथा अवरोही वर्गों पर आधारित रहता है। जैसे-
(क) सारेग, रेगम, गमप, मपध, पधनि, धनिसां, सांनिध, निधप, धमप, पमग, मगरे, गरेसा।
(ख) सारे, सारेग, रेगरेगम, गमगमप, मपमपध, पधपधनि, धनिधनिसां, सानि, सानिध, निधनिधप, धप धपम, पम पमग, मगमगरे, गरेगरेसा।

इस प्रकार राग के जाति भेद से राग में लगने वाले स्वरों से विभिन्न अलंकारों का सृजन किया जाता है जो राग को आभूषित कर सुन्दरता प्रदान करता है। साथ ही विद्यार्थियों को गायन के लिए गला तैयार करने तथा वादन के लिए हाथों की तैयारी में अलंकार का महत्त्वपूर्ण योगदान . होता है। अलंकार को पलटा कहा जाता है।

प्रश्न 13.
रूपक ताल को ठाह, लय और द्विगुन में लिखें।
उत्तर:
(ठाह लय)-मात्रा 7
Bihar Board 12th Music Important Questions Short Answer Type Part 1 5

विभाग 3, पहला विभाग 3 मात्राओं का और शेष विभाग 2-2 मात्राओं का। ताली 1, 4, 6 मात्रा पर।
Bihar Board 12th Music Important Questions Short Answer Type Part 1 6

प्रश्न 14.
ध्रुपद तथा धमार में अंतर समझाइए।
उत्तर:
ध्रुपद – कतिपय विद्वानों ने इसे मध्यकालीन शैली भी कहा है। हमारे पूर्वजों को इससे मोक्ष की प्राप्ति होती थी। यह गंभीर प्रकृति की गायन शैली है। ध्रुपद के चार भाग हैं जिन्हें स्थायी, अन्तरा, संचारी एवं आभोग कहा जाता है।

ध्रुपद की रचनाएँ हिन्दी एवं ब्रजभाषा में उपलब्ध होती है। यह सूलताल मत्तलाल आदि कई तालों में गाया जाता है। इसमें स्वर विस्तार ऊँ, हरि ऊँ, नारायण से किया जाता था पर बाद में उसकी जगह पर नोभ-तोभ आदि निरर्थक शब्द जोड़ दिया गया। इसमें ताने नहीं ली जाती है।

धमार – यह गीत एक प्राचीन प्रकार है। यह धमार ताल में होता तथा इसमें अधिकतर राधा-कृष्ण और गोपियों की होली का वर्णन मिलता है। कुछ लोग इसे हीरो भी कहते हैं। इसमें ध्रुपद के समान नोभ-तोभ का आलाप तथा लयकारी दिखाते हैं। दुगुन, तिगुन, चौगुनआड़ आदि लायकारियाँ अधिकतर गीत शब्दों द्वारा दिखाते हैं और गमक का खूब प्रयोग करते हैं। इसमें खटकें अथवा तीन के समान स्वर-समूह वयं है। संगीतज्ञ इसमें सरगम भी बोलते हैं किन्तु यह ख्याल के सरगमों से भिन्न रहता है। ध्रुपद अथवा धमार के प्रत्येक अंग में गंभीरता की रक्षा आवश्यक है।

कुछ लोग तो इसे होरी कहते हैं किन्तु यह उचित नहीं हैं क्योंकि गीत का एक दूसरा प्रकार भी है जिसे होली कहते हैं। . होली और होरी में केवल सा और र का अन्तर है। अतः लेखक का यह सुझाव है कि गीत के इस प्रकार को धमार भी कहा जाय और दूसरे प्रकार को होली अथवा होरी। धमार के साथ पखावाज बजाने की परम्परा है। कभी-कभी पखावाज के न रहने पर तबले का भी प्रयोग किया जाता है। धमार का एक उदाहरण द्वारा देखा जा सकता है-
लाल मोरी चूनर भी भिंगेगी।
अबीर गुलाल जिन छाड़ों मोह पे।
जिनही पै डारो जेहि रहत तो रे संग।

प्रश्न 15.
ग्राम क्या है ?
अथवा, ग्राम के विषय में लिखें।
उत्तर:
ग्राम संवेदी स्वरों का समूह है जिसमें श्रुतियाँ व्यवस्थित रूप से विद्यमान हों और मूर्च्छना – तान, वर्ण, अलंकार इत्यादि की आश्रय हो।
ग्राम का अर्थ है ‘स्वरों का समूह’। ग्राम तीन हैं-
1. षड्ज ग्राम
2. मध्यम ग्राम
3. गांधार ग्राम। नाट्य शास्त्र में केवल दो ग्रामों का उल्लेख है – षड्ज तथा मध्यम। तृतीय ग्राम जो कि गांधार ग्राम के नाम से विख्यात है, भरत के द्वारा उल्लेखित नहीं है। नाट्यशास्त्र के काल तक इस ग्राम का व्यवहार से लोप हो गया था।

(i) षड्ज ग्राम-इसमें षड्ज स्वर चतुःश्रुति, ऋषभ त्रिश्रुति, गांधार द्विश्रुति, मध्यम चतुःश्रुति, पंचम चतुःश्रुति, धैवत त्रिशुति व निषाद द्विश्रुति होता है।
षड्ज ग्राम-कुल श्रुति (22)
Bihar Board 12th Music Important Questions Short Answer Type Part 1 7

(ii) मध्यम ग्राम – इसमें मध्यम चतुःश्रुतिक, पंचम त्रिश्रुतिक, धैवत चतुःश्रुतिक, निषाद् द्विश्रुतिक, षड्ज चतुःश्रुतिक, ऋषभ त्रिश्रुतिक और गंधार द्विश्रुतिक है।
मध्यम ग्राम (कुल श्रुति 22)
Bihar Board 12th Music Important Questions Short Answer Type Part 1 8
मध्यम ग्राम और षड्ज ग्राम में केवल इतना ही अंतर है कि मध्यम ग्राम में प 17वीं श्रुति से एक श्रुति उतरकर 16वीं श्रुति पर आ जाता है।

(iii) गांधार ग्राम-इसमें षड्ज स्वर त्रिश्रुति, ऋषभ द्विश्रुति, गांधार चतुःश्रुति, मध्यम, पंचम और धैवत त्रिशुति और निषाद चतुःश्रुति होता है।

प्रश्न 16.
गमक क्या है? इसकी विशेषता लिखें।
उत्तर:
गम्भीरतापूर्वक स्वरों के उच्चारण को गमक कहते हैं। गायन में गमक निकालने के लिए हृदय पर जोर लगाते हैं। शारंगदेव ने ‘संगीत रत्नाकर’ में गमक की परिभाषा इस प्रकार दी है।

स्वरस्य कंपो गमकः श्रोतृ-चित-सुखावहः
अर्थात् स्वरों के ऐसे कंपन को गमक कहते हैं, जो सुनने वालों के चित्त को सुखदाई हो । प्राचीन काल में स्वरों के एक विशेष प्रकार के कंपन को जो सुनने में अच्छी लगे, गमक कहते थे। उस समय गमक के 15 प्रकार माने जाते थे, जैसे-कपित, स्फुटित, आंदोलित, लीन इत्यादि। आधुनिक समय में न तो गमक को प्राचीन अर्थ में और न गमक के प्राचीन प्रकारों के नाम प्रयोग किए जाते हैं। बल्कि गमक के 15 प्रकारों में से अधिकांश खटका, मुर्की, मींड, जमजमा आदि के नाम से प्रयोग किए जाते हैं।

प्रश्न 17.
तीनताल का ठाह तथा दुगुन की लयकारी लिखें।
उत्तर:
विभाग – 4 वाली – 1,5,13 ठास पर तथा खाली 9वें मात्रा पर।
ताल की ठाह (स्थायी)-
Bihar Board 12th Music Important Questions Short Answer Type Part 1 9
ताल की दुगुन-
Bihar Board 12th Music Important Questions Short Answer Type Part 1 10

प्रश्न 18.
राग केदार का संक्षिप्त परिचय दें।
उत्तर:
राग केदार कल्याण थाट का जन्य राग माना गया है। इसमें दोनों मध्यम तथा अन्य स्वर शुद्ध लगते हैं। वार्दी म और संवादी सा है। आरोह में टे, ग व अवरोह में केवल ग वर्ण्य है, इसलिए इसकी जाति औडव-षाड़व है। इसके गाने-बजाने का समय रात्रि का प्रथम प्रहर है।

आरोह- सा म, म प, ध प, नि ध सां।
अवरोह- सां नि ध प, मे प ध प , म रे सा।
पकड़- सा म मप, मेप धप, म रे सा।

विशेषता-
1. तीव्र म आरोह में पंचम के साथ और शुद्ध म आरोह-अवरोह दोनों में प्रयोग किया जाता है। कभी-कभी अवरोह में ध से म को आते समय (मीड के साथ) दोनों में एक साथ प्रयोग किया जाता है जो बडा ही मनोरंजक मालम होता है।

2. राग विवरण के अंतर्गत यह बताया गया है कि इस राग में गंधार स्वर वर्ण्य है किन्तु अवरोह में कभी-कभी मध्यम पर ग का अनुलगन कण लगाया जाता है, जैसे-सा म ऽ ऽ ग पा इस कण के प्रयोग से राग की सुंदरता बढ़ती है तथा स प्रयोग करने से राग हानि नहीं होती, अतः यह कण अनिवार्य नहीं है।

3. हमीर के समान इस राग में कभी-कभी अवरोह में सुंदरता बढ़ाने के लिए कोमल नि विवादी स्वर के नाते प्रयोग किया जाता है, जैसे-सां ध नि प, मे प धप म।
न्यास के स्वर – सा म और प।
समप्रकृति राग – हमीर और कामोद।

प्रश्न 19.
राग देश का आरोह, अवरोह एवं पकड़ लिखें।
उत्तर:
आरोह – नि सा रे म प नि सा
अवरोह – सानि धप धम ग रे ग नि सा।
पकड़ – म प ध ड म ग रे, गडनि सा।

प्रश्न 20.
वादी और सम्वादी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
अथवा, वादी और संवादी स्वर क्या है?
उत्तर:
वादी – किसी भी राग में प्रयुक्त होने वाली सभी स्वरों में एक स्वर प्रमुख या प्रधान होता है उसे वादी स्वर कहते हैं। उसे अंश स्वर या ‘जीव स्वर’ भी कहते हैं। वादी स्वर की प्रमुखता ही किसी भी राग की पहचान का आधार स्तम्भ है। बहुत से राग ऐसे हैं जिनके आरोह-अवरोह एक समान है परन्तु वादी और संवादी स्वरों के बदल जाने से राग का नाम, उसका देश कर तथा जैसे कल्याण एवं राग-विलास तथा रेका आदि।

सम्वादी- राग में लगने वो सभी स्वरों में वादी स्वर को छोड़ एक अन्य उपर्युक्त स्वर होता है जिसे संवादी स्वर कहते हैं। यह वादी स्वर का अनुपूरक होता है।

प्रश्न 21.
राग बिहाग क्या है ?
अथवा, राग बिहाग का संक्षिप्त परिचय लिखें।
उत्तर:
इस राग की रचना बिलावल थाट से मानी गयी है। इसके आरोह में रे, ध स्वर वर्ण्य है और अवरोह में सातों स्वर प्रयोग किए जाते हैं। इसलिए इसकी जाति औडव-सम्पूर्ण है। वादी स्वर गंधार और संवादी निषाद है। रात्रि के प्रथम प्रहर में इसे गाया-बजाया जाता है। तीव्र व अल्प और शेष स्वर शुद्ध लगते हैं।

आरोह-नि सा ग, म प, नि सां।
अवरोह-सां नि, ध प, मे प ग म ग, रे सा।
पकड़-नि सा ग म प, मे प ग म ग, रे सा।

प्रश्न 22.
अलंकार को परिभाषित करते हुए चार अलंकार लिखें।
उत्तर:
अलंकार को संगीत में पलटा भी कहा गया है। राग की सुन्दरता की अभिवृद्धि के लिए प्रयुक्त उस स्वर-श्रृंखला को अलंकार कहा जाता है जो क्रमबद्ध होता है। पलटा की संख्या 5040 है। इस प्रकार स्वराभ्यास के लिए प्रयुक्त साधन को अलंकार या पलटा कहा जाता है।

चार अलंकारं निम्नलिखित हैं-

  1. आरोह – सा रे ग रे, रे ग म ग, ग म यग, म य ध य, य ध नि ध, ध नि सां नि।
    अवरोह – सांनिधीन, निधमध, धपमय, पमगम, मगरेग, गरे सा रे।
  2. आरोह – सारे सारेग, रेग, रेगम, गम गमय, मय मैपध, पध पधनि, धानि धनिसां।
    अवरोह – सानि सानिध, निध निधय, धय धयम, पम पमग, मग मगरे, गरे गरिसा।
  3. आरोह-साग, रेम, गय, मध, पनि, धसां।
    अवरोह – सांध, निय, धम, पग, मरे, गसा।
  4. आरोह – सागरे, रेमग, गयम, मधय, पनिध, धानि।
    अवरोह – सांधनि, निपध, धमय, यगम, मरेग, गसारे।

प्रश्न 23.
सग क्या है ? इसकी विशेषता लिखें।
अथवा, राग क्या है ? राग की कितनी जातियाँ है ?
उत्तर:
राग उस सुसज्जित स्वर समूह को कहते हैं जो अन्तस में किसी लक्ष्य-विशेष की ओर जोड़ते हैं जिससे आनंद की प्राप्त होती है।
प्राचीन काल में रागों को ईश्वर से जोड़ने वाला बताया जाता था।

राग की तीन जातियाँ मान्य हैं-

  1. औडव
  2. षाडव एवं
  3. सम्पूर्ण।

इनमें क्रमश: 5, 6 और 7 स्वर प्रयोग होते हैं। यथा-भूपाली मारवा, बिलावल, कल्याणदि। आरोह-अवरोह के हिसाब से इनकी संख्या 9 है जिन्हें औडव-सम्पूर्ण, षाडव-सम्पूर्ण, सम्पूर्ण-सम्पूर्ण आदि नामों से जाना जाता है।

प्रश्न 24.
दादरा ताल को ठाह, लय और द्विगुन में लिखें।
उत्तर:
दादरा ताल – मात्रा 6, विभाग 2, ताली 1 और खाली 4 पर
Bihar Board 12th Music Important Questions Short Answer Type Part 1 11

प्रश्न 25.
राग भीमपलासी का आरोह, अवरोह एवं पकड़ लिखें।
उत्तर:
राग भीमपलासी का आरोह, अवरोह एवं पकड निम्नलिखित है-
आरोह – नि सा ग म प नि सां।
अवरोह – सां नि ध प, म प ग म, ग रे सा।
पकड़ – नि सा म, म प ग म, ग र सा।

प्रश्न 26.
आलाप और तान में अंतर बताइए।
उत्तर:
तान-तान का अर्थ है तानना या फैलाना अर्थात् गायन या वादन के क्रम में राग में लगने वाले स्वरों तथा उसके लक्षणों को ध्यान में रखकर द्रुत गति से स्वरों का विस्तार करना तान कहलाता है। तान के निम्न प्रकार है-

  1. वक्र या कूट तान
  2. अलंकृत तान
  3. सपाट तान या शुद्ध तान
  4. गमक की तान
  5. मिश्र तान
  6. हलक की तान
  7. जबड़े की तान
  8. बोल ताना

आलाप या आलापचारी-“शास्त्रीय गायन के आरंभ में किसी भी राग का स्वर विस्तार या उसका प्रसार ‘आलाप’ कहलाता है। यह राग के आरोह-अवरोह में लगने वाले स्वरों, उसके वादी-सम्वादी तथा उसकी प्रकृति का आधार लेकर किया जाता है। प्रदर्शन के आरंभ में आलाप के ही द्वारा कलाकार किसी भी राग के रूप का निर्माण करता है। इसके अन्तर्गत वह मीड़, गमक, खटका. मी आदि का भी प्रयोग करता है। इसे गायन तथा विशेष रूप से तंत्रनादन के रूप में “आलापचरी” भी कहा जाता है। वर्तमान गायन शैली में आलाप करने की दो विधियाँ हैं

  1. लोम-तोम आलाप
  2. आधार का आलाप।

प्रश्न 27.
शुद्ध रे-ध वाले रागों को कब गाया जाता है ? सविस्तार लिखें तथा कुछ रागों का उदाहरण दें।
उत्तर:
रे कोमल, ग शुद्ध वाले रागों के पश्चात् रे-ध, शुद्ध वाले रागों के गाने की. बारी आती है। इसमें बिलावल, समाज और कल्याण थाट के राग आते हैं, जैसे-बिलावल, भूपाली, खमाज, कल्याण, केदार आदि । इस वर्ग के रागों में विशेषता यह पायी जाती है कि इनमें सदैव शुद्ध गंधार प्रयोग किया जाता है। इस वर्ग के रागों का समय 7 से 10 बजे सुबह तथा 7 से 10 बजे तक रात्रि माना गया है। कुछ विद्वान इस वर्ग की अवधि 7 से 12 बजे तक मानते हैं। परन्तु पहला मत ठीक मालूम पड़ता है।

रे ग शुद्ध वाले रागों के वर्ग में म का स्थान कुछ कम नहीं है। 7 से 10 बजे तक सुबह गाए जाने वाले रागों में तीव्र मध्यम की प्रधानता मानी गई है। 7 से 10 बजे तक सुबह में गाए जाने वाले रागों में वादी स्वर सत्तक के उत्तरांग से व संवादी पूर्वांग से होता है।

प्रश्न 28.
कहरवा ताल को परिचय सहित लिखें।
उत्तर:
कहरवा ताल (मात्राएँ – 8)
Bihar Board 12th Music Important Questions Short Answer Type Part 1 12
विभाग – 2, प्रत्येक विभाग 4 – 4 मात्राओं का, ताली 1 मात्रा पर खाली 5वीं मात्रा पर।
Bihar Board 12th Music Important Questions Short Answer Type Part 1 13

प्रश्न 29.
धमार ताल का ठाह, लय और द्विगुन परिचत सहित लिखें।
उत्तर:
धमार ताल- (मात्राएँ – 14)
विभाग-4, ताली- 1, 6, 11 और खाली 8 वीं मात्रा पर।
Bihar Board 12th Music Important Questions Short Answer Type Part 1 14

प्रश्न 30.
राग बिहाग का आरोह, अवरोह व पकड़ लिखें।
उत्तर:
बिहाग :
आरोह – नि, सा, ग, म, प, नि, सां।
अवरोह- सां नि, ध प, मे प ग म ग, रे सा।
पकड़-नि सा, ग म प, मे प, ग म ग, रे मा।

Previous Post Next Post