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 Bihar Board 12th Music Important Questions Short Answer Type Part 2

Bihar Board 12th Music Important Questions Short Answer Type Part 2

प्रश्न 1.
राग भैरव में तीन आलाप तथा तीन तान लिखें।
उत्तर:
राग भैरव :
Bihar Board 12th Music Important Questions Short Answer Type Part 2 1

प्रश्न 2.
संगीत क्या है ? संक्षिप्त वर्णन करें।
अथवा, संगीत की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
‘संगीत’ शब्द के संधि विच्छेद से सम + गीत प्राप्त होता है। संगीतिक भाषा में किसी भी ताल के प्रारंभिक स्थान या पहले मात्रे को ‘सम’ कहते हैं तथा ‘गीत’ शब्द का अर्थ है गायन। व्यापक अर्थों में गीत के ही अन्तर्गत गायन, वादन तथा नर्तन, तीनों का समावेद होता है। इस प्रकार ‘सम’ अर्थात ‘ताल-लय’ सहित गायन को संगीत कहते हैं।

इस प्रकार गीत, बाध्य और नृत्य ये तीनों मिलकर संगीत कहलाते हैं। वास्तव में ये तीनों कलाएँ गाना, बजाना और नाचना, एक दूसरे से स्वतंत्र है। किन्तु स्वतंत्र होते हुए भी गान के अधीन वादन तथा वादन के अधीन नत न है।

‘संगीत’ शब्द गीत शब्द सम उपसर्ग लगाकर बना है। ‘सम’यानि ‘साहित’ और गीत थानी ‘गान’। गान के सहित अर्थात् अंगमूत क्रियाओं व वादन के साथ किया हुआ कार्य संगीत कहलाता है।
अतः गान के अधीन वादन और वादन के अधीन नर्तन है। अतः इन तीनों कलाओं में गान को ही प्रधानता दी गई है।

प्रश्न 3.
तोड़ा क्या है ?
उत्तर:
तोड़ा का दूसरा नाम है ‘तान’ जो तानने के अर्थ में गृहित होता है। द्रुतगति से किया जाने वाला राग के स्वरों का विस्तार ही तोड़ा अथवा तान की संज्ञा से अभिहित किया जाता है। इसके अनेक प्रकार विद्वानों ने गिनाए है जैसे-सपाट, वक्र, अलंकृत मिश्र आदि तान है।

प्रश्न 4.
आकर्ष क्या है ?
उत्तर:
आकर्ष एक प्रकार का ढंग है। जब मिजराव द्वारा सितार पर दाहिने हाथ की तर्जनी से बाहर से ही प्रहार करते हुए अन्दर की ओर जाया जाता है जिससे ‘दा’ ध्वनि निकलती है तो उसे ही आकर्ष प्रहार कहा जाता है।

प्रश्न 5.
नाद की परिभाषा दें। इसके प्रकारों को लिखें।
उत्तर:
संगीत के काम में आने वाले सुनियोजित तथा सुव्यवस्थित कर्णप्रिय ध्वनि को नाद . कहा जाता है।
नाद के दो प्रकार के होते हैं-
(i) आहत नाद
(ii) अनाहत नाद

(i) आहत नाद – दो वस्तुओं के टकराहट या घर्षण के फलस्वरूप उत्पन्न सुनियोजित एवं सुव्यवस्थित संगीतपयोगी ध्वनि जो इन स्थूल कानों से सुनाई देती है। उसे आहत नाद कहते हैं।
(ii) अनाहत नाद – संगीत साधना अथवा अध्यात्म साधना के द्वारा चित्र को एकाग्र कर ध्यान और समाधि की अवस्था में पहुंचने पर अन्तहृदय में हर क्षण उठने वाली मधुर ध्वनियों की अनुभूति को अनाहत नाद कहते हैं।

प्रश्न 6.
नाद की प्रमुख विशेषताएँ को लिखें।
उत्तर:
नाद की प्रमुख विशेषताएँ निम्न है-

  1. नाद का छोटा अथवा बड़ा होना।
  2. नाद की ऊँचाई-निचाई।
  3. नाद की जाति अथवा गुण।

प्रश्न 7.
श्रुति क्या है ? श्रुतियाँ कितनी है ?
उत्तर:
श्रुति का अर्थ है ‘सुनना’ अर्थात् जो सुना जा सके। संगीत में श्रुति उसे कहा जाता है जिसे सुना जा सकता है। संगीत में श्रुति का मतलब उस ध्वनि से है जिसे सुनकर हम समझ सकें।

संगीत में श्रुतियों की संख्या 22 है।

  1. तीव्रा,
  2. कुमुद्वती,
  3. मन्दा,
  4. छन्दोवती,
  5. दयावती,
  6. रंजनी,
  7. रक्तिका,
  8. रौद्री,
  9. क्रोधा,
  10. बजिका,
  11. प्रसारिणी,
  12. प्रीति,
  13. मार्जनी,
  14. क्षिति,
  15. रक्ता,
  16. सन्दीपनी,
  17. अलापिनी,
  18. मदन्ती,
  19. रोहिनी,
  20. रम्या,
  21. उग्रा,
  22. क्षोमिनी।

प्रश्न 8.
सप्तक क्या है ? इसके भेदों के नाम बताएँ।
उत्तर:
सप्तक उस स्वर समूह को कहा जाता है जिसमें सार, रे, ग, म, प, ध, नि सात स्वर निहित है। ये सभी स्वर सप्तक में सिलसिलेवार होते हैं।
सप्तक के तीन भेद हैं जिन्हें स्थान भी कहा जाता है-

  1. मंद सप्तक,
  2. मध्यमत सप्तक,
  3. तार सप्तक।

प्रश्न 9
स्वर क्या है ? इसके प्रकार बताएं।
उत्तर:
एक सप्तक के अन्तर्गत स्थित ध्वनि के सात खण्डों को स्वर कहते हैं। इसके तीन प्रकार है-

  1. प्राकृत अथवा शुद्ध स्वर
  2. अचरं स्वर तथा
  3. विकृत अथवा चल स्वर।

प्रश्न 10.
नाद एवं श्रृति में भेद करें।
उत्तर:
संगीत के काम में आने वाले सुनियोजित एवं सुव्यवस्थित ध्वनि को नाद कहते हैं जबकि उस ध्वनि या नाद की सबसे छोटी उस इकाई को श्रुति कहते हैं जो कानों से सुनकर स्पष्ट रूप से एक-दूसरे से अलग-अलग पहचानी जासके तथा गायन वादन के क्रम में स्पष्ट रूप से दर्शायी जा सके।

प्रश्न 11.
पाँच अलंकारों के उदाहरण प्रस्तुत करें।
उत्तर:

  • आरोह – सा रे ग रे, रे ग म प, ग म प ग, म प ध प, प ध नि ध, ध नि सां नि।
    अवरोह – सानिधनि. निधपध. धपमप, पमगम, मगरेग, गरे सा रे।
  • आरोह – सारे सारेग, रेग रेगम, गम गमप, मपमपध, पध पधनि, धनि, धनिसां।
    अवरोह – सापं नि सांनिध, निध निधप, धपधपम, पम पमग, मग मगरे, गरे गरेसा।
  • आरोह – साग, रेम, गप, मध पनि, धसां।
    अवरोह – सांध, निपं, धम, पग, मरे, गसा।
  • आरोह – सागरे, रेमग, गपम, मधप, प नि ध, ध सां नि।
    अवरोह – सांधनि, नि पध, धमप, पगम, मरेग, गसारे।।
  • आरोह – सारे, साग, रेग रेम, गम गप, मप मध, पध पनि; धनि धसां।
    अवरोह – सांनि सांध, निध निप, धप धम, पम पग, मग मरे, गरे गसा।

प्रश्न 12.
तान क्या है ? इसके कितने प्रकार है ?
उत्तर:
तान का अर्थ है तानमा या फैलाना अर्थात् गायनं या वादन के क्रम में राग में लगने वाले स्वरों तथा उसके लक्षणों को ध्यान में रखकर द्रुत गति से स्वरों का विस्तार करना तान कहलाता है।
तान के प्रकार- तान के निम्न प्रकार है-

  1. वक्र या कूट तान
  2. अलंकृत तान
  3. सपाट तान या शुद्ध तान
  4. गमक की तान
  5. मिश्र तान
  6. हलक की तान
  7. जबड़े की तान
  8. बोल ताना

प्रश्न 13.
ख्याल क्या है ? इसके प्रकार लिखें।
उत्तर:
ख्याल का अर्थ है परिकल्पना। जिस शैली के अंतर्गत राग में नियम के अनुरूप स्वरों का स्वच्छंतापूर्वक अपनी परिकल्पना में विस्तार किया जाता है वही ख्याल गायन शैली है।
ख्याल गायन के प्रकार-इसके दो प्रकार होते हैं-

  1. बड़ी ख्याल
  2. छोटा ख्याल।

प्रश्न 14.
स्थायी तथा अन्तरा क्या है ?
उत्तर:
गायन में गीत तथा गत की रचना का प्रथम भाग स्थायी कहलाता है किन्तु अन्तरा गीत तथा गत का दूसरा चरण है जिसका प्रसार मध्य तथा तार सप्तकों में किया जाता है।
स्थायी
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प्रश्न 15.
लय क्या है ? लय के विभिन्न प्रकार लिखें।
उत्तर:
गायन, वादन तथा नृत्य में गति को एक समान कायम रखने या बरतने को लय कहते .. हैं। संगीत में समान गति बरतने को ‘लय’ कहते हैं।
लय के तीन प्रकार के होते हैं-

  1. विलंबित लय,
  2. मध्य लय,
  3. द्रुत लयां

प्रश्न 16.
ध्रुपद क्या है ? इसके कितने भाग है ?
उत्तर:
जिस गायन के द्वारा हमारे पूर्वज ध्रुवपद, धमार पद या मोझ प्राप्त करते थे उसे ध्रुवपद कहा जाता है या, जो रूपान्तरित होकर आज ध्रुपद कहलाता है।
ध्रुवपद के चार भाग है-

  1. स्थायी,
  2. अन्तरा,
  3. संचारी,
  4. आभोग।

प्रश्न 17.
राग आसावरी के आरोह, अवरोह एवं पकड़ लिखें।
उत्तर:
राग आसावरी के आरोह, अवरोह एवं प्रकृति निम्न प्रकार है-
आरोह – सा रे म प ध सां
अवरोह- सां, नि, ध प म ग रे सा
पकड़ – ध, म प ग रे सा म प ध ध सां।

प्रश्न 18.
राग कल्याण के आरोह-अवरोह एवं प्रकृति लिखें।
उत्तर:
राग कल्याण के आरोह, अवरोह एवं प्रकृति निम्न प्रकार है-
आरोह – नि रे ग म प ध नि सां।
अवरोह – सां, नि ध प म ग रे सा
प्रकृति – शांत

प्रश्न 19.
राग बागेश्री के आरोह-अवरोह एवं पकड़ लिखें।
उत्तर:
राग बागेश्री के आरोह-अवरोह एवं इसकी पकड़ निम्न प्रकार है-
आरोह – सा नि ध नि सा. म ग म ध नि सा
अवरोह – सा नि ध म ग रे सा
पकड़ – ध नि सा म, म ध नि ध, ग, रे सा आदि।

प्रश्न 20.
राग कामोद के आरोह-अवरोह एवं इसकी प्रकृति लिखें।
उत्तर:
राग कामोद के आरोह, अवरोह एवं इसकी प्रकृति निम्न प्रकार है-
आरोह – सा, रे, प, प ध प, नि ध सां
अवरोह – सां नि ध प, में प ध प्र, ग म प ग ग रे सा
प्रकृति – अर्द्धगंभीर

प्रश्न 21.
राग अल्हैया बिलावल का आरोह-अवरोह लिखें।
उत्तर:
राग अल्हैया बिलावल के आरोह, अवरोह एवं पकड़ निम्न प्रकार है-
आरोह – सां नि ध प, ध नि ध प, म ग म रे सा
अवरोह – सा नि ध प, ध नि ध प, म ग म रे सा
पकड़ – गरे ग प, म ग म रे, ग प ध नि ध प।

प्रश्न 22.
गमक के प्रकार लिखें।
उत्तर:
गमक के निम्न प्रकार है-

  1. काँपन,
  2. आंदोलित,
  3. आहत,
  4. प्लावित,
  5. स्फुरित,
  6. उल्हासित,
  7. हुफित,
  8. त्रिभिन्न,
  9. बली,
  10. तिरिप,
  11. मुद्रित,
  12. लीन,
  13. नमित,
  14. मिश्रित।

प्रश्न 23.
चतुरंग क्या है ?
उत्तर:
स्वयं नाम से यह स्पष्ट है कि इसमें चार वस्तुओं का मिश्रण होता है। ख्याल के शब्द अर्थात् साहित्य, तराना, पखावाज अथवा तबला के बोल तथा सरगम इसमें मिले रहते हैं। यह ख्याल के ही समान गाया जाता है।

प्रश्न 24.
अनभ्यास क्या है ?
उत्तर:
अनभ्यास किसी राग में व्यवहृत किया जाने वाला यह स्वर कहलाता है जिसका प्रयोग उस राग में काफी कम मात्रा में होता है। उदाहरण के लिए राग बागेश्री को लिया जा सकता है जिसमें पंचम स्वर को अनभ्यास बताया जाता है क्योंकि पंचम ‘प’ स्वर का प्रयोग बहुत कम होता है बल्कि यह ‘प’ स्वर उसके आरोह एवं अवरोह दोनों में वर्जित है।

प्रश्न 25.
तिरोभाव तथा आविर्भाव क्या है ?
उत्तर:
तिरोभाव-आविर्भाव क्रिया हिन्दुस्तानी संगीत का एक ऐसा उदाहरण है जिसमें उद्देश्य की प्राप्ति के लिए नियम की क्षणिक अवहेलना की जाती है। इस स्वतंत्रता का उपयोग सब के लिए नहीं, अपितु सक्षम व्यक्ति के लिए संभव है।

हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में एक ओर जहाँ राग-नियमों का पालन अनिवार्य समझा गया है, वहीं दूसरी ओर राग की सुन्दरता बढ़ाने के लिए राग-नियमों में थोड़ी शिथिलता शास्त्र सम्मत बताई गयी हैं। अब कभी राग में सौन्दर्य वृद्धि के लिए किसी सम प्रकृति राग की तनिक छाया ला देते हैं, अथवा जिस राग का गायन-वादन कर रहे हैं, उसके मौलिक स्वरूप की थोड़ी देर के

लिए छिपा देते हैं, तो इस क्रिया को शास्त्रकारों ने तिरोभाव कहा है। तिरोभाव दिखाने के बाद जब, अपने मूल राग में आ जाते हैं तो इसे आविर्भाव कहते हैं। बहुधा लोग इसे आविर्भाव तिरोभाव कह देते हैं, किन्तु यह उचित नहीं, क्योंकि तिरोभाव के बाद ही आविर्भाव क्रिया सम्पन्न होती है। अगर तिरोभाव क्रिया नहीं हुई तो आविर्भाव कैसे हो जाएगी।

प्रश्न 26.
राग के प्रकार बताएँ।
उत्तर:
राग के दो प्रकार हैं-

  1. आश्रय राग – दस थाटों के नाम जिन रागों के नाम पर दिये गये हैं उन रागों को आश्रय राग कहते हैं जैसे – विलावल, भैरव, भैरवी, आसावरी, तोड़ी, कल्याण, खमाज, काफी, पूर्वी, माखा।
  2. जन्य राग – दस आश्रय रागों को छोड़कर अन्य सभी रागों को जन्य राग कहा जाता है।

प्रश्न 27.
निम्न रागों के गायन समय लिखें
1. विहाग
2. कल्याण
3. राग भैरव
4. अल्हैया बिलावल
5. देश
6. आसावरी
7. भीमपलासी
8. बागेश्ररी
9. दुर्गा
10. हमीर
11. कामोद
12. केदार
13. पूर्वी।
उत्तर:
1. विहाग (Vihag) – रात्रि का प्रथम पहर
2. कल्याण (Kalayan yaman) – रात्रि प्रथम पहर
3. राग भैरव (Rag Bhairav) – प्रात:काल
4. अल्हैया बिलावल (Alahiya Bilaval) – दिन का प्रथम पहर
5. देश (Desh) – रात्रि का दूसरा पहर
6. आसावरी (Asawari) – दिन का दूसरा पहर
7. भीमपलासी (Bhimpalasi) – दिन का चौथा पहर
8. बागेश्ररी (Bhageshree) – रात्रि का दूसरा पहर
9. दुर्गा,(Durga) – रात्रि का दूसरा पहर .
10. हमीर (IHameer) – रात्रि का प्रथम पहर
11. कामोद (Kamod) – रात्रि का दूसरा पहर
12. केदार (Kedar) – रात्रि का दूसरा पहर
13. पूर्वी (Purvi) – दिन का चौथा पहर

प्रश्न 28.
निम्न क्या है ?
1. सुषिर
2. धन
3. अवनद्ध।
उत्तर:
1. सुषिर (Sushir) – इस श्रेणी के वाद्यों में स्वरोत्पति फूक या वाय द्वारा होता है। जैसे- हारमोनियम, शहनाई, बांसुरी तथा माउथ आर्गन और क्लारियोनेट आदि।

2. धन (Ghan) – जिन वाद्यों में स्वर लकड़ी या अन्य किसी वस्तु के आघात से निकली है, धन वाद्यों की श्रेणी में आते हैं जैसे-करताल, मंजीरा, खड़ताल, जलतरंग, काष्ठतरंग तथा नलतरंग आदि।
3. अवनद्ध (Avnadh) – अवनद्ध वाद्य लय प्रधान होते हैं जो संगीत में लय कायम रखने तथा ताल दिखलाने के काम आते हैं। इस प्रकार के वाद्यों के मुँह पर चमड़ा मढ़ा हुआ होता है और उनमें स्वरोत्पति हाथ या लकड़ी के आघात द्वारा किया जाता है। इसके अंतर्गत तबला, पखावाज, ठोल, नाल, नागाड़ा आदि वाद्य आते हैं।

प्रश्न 29.
मार्गी संगीत और देसी संगीत के बारे के क्या जानते हैं ?
उत्तर:
मार्गी का अर्थ होता हैं पथिक या. राही। इसे मार्ग संगीत भी कहा जाता है। अर्थात् मार्ग का अर्भ है पथ या रास्ता, एवं संगीत ताल एवं लाय के साथ गायन, वादन तथा नृत्य को कहते हैं। भारत के सभी प्राचीन, मध्यकालीन तथा आधुनिकतम संगीत शास्त्रों ने एक मत से यह स्वीकार किया है कि संगीत ईश्वर दर्शन या मोक्ष प्राप्ति के श्रेष्ठितम साधनों में से एक है।

आज के प्रत्यक्ष सरल पर देखने से यह स्पष्ट है कि हाल के जितने भी संगीतज्ञ जैसे मीरा, सूर तुलसी, गुरुनानक, संत दादू दयाल स्वामी हरिदास दरिया साहब, हजरत निजामुद्दीन औलिया साहब सभी ने संगीतोपासना के द्वारा ही मोक्ष की प्राप्ति की है जो मार्गी संगीत है। इन सभी के द्वारा रचे गए तथा गाये सभी आधात्मिक पद रचनाएँ जैसे ध्रुवपद, भजन, गजल, शब्द, नात, कव्वाली आदि मार्गी संगीत का प्रत्यक्ष प्रमाण है।

देशी संगीत ईश्वर अराधना के लिए किये गये संगीत साधना के अतिरिक्त जनरंजन, मनोरंजन या मनबहलाव के लिए किये जाने वाले संगीत साधना या प्रदर्शन को देशी संगीत कहा जाता है। इसके अंतर्गत शृंगार रस तथा विभत्य रस से परिपूर्ण आज के अधिकांश फिल्मी गीत, गजले, ठुमरा, दादरा, टप्पा, कव्वाली, लोकगीत तथा ख्यान शैली के अंतर्गत उपयुक्त रसों से प्रभावित रचनाएँ देशी गीत कहलाती है।

प्रश्न 30.
राग कामोद और हमीर की तुलना करें।
उत्तर:
राग कामोद और हमीर की तुलना को इस प्रकार से देखा जा सकता है-

  • यद्यपि दोनों ही सम्पूर्ण जाति के राग है फिर भी दोनों की चलन में अन्तर है। इसलिए हमीर को सम्पूर्ण और कामोद को वक्र सम्पूर्ण जाति का राग माना गया है।
  • कामोद के रे प और हमीर में म ध की संगीत विशेष रूप से होती है। कामोद में रे प की संगीत में सर्वप्रथम म से द्रुत मींड के साथ रे पर आते है और तब पंचम पर पहुंचते हैं। संगीतज्ञ हमीर के म ध की संगति में ग से प्रारंभ करते हैं और नि का आभास लेते हैं, जैसे-ग म नि ध।
  • हमीर में ध ग और कामोद के प रे वादी सम्वादी है।
  • कामोद में निषाद अल्प है किन्तु हमीर में नहीं।
  • हमीर के आरोह में ग अथवा म से ऊपर जाते समय या तो पंचम वर्ण्य कर दिया जाता है और या उसके बक्र प्रयोग करते है किन्तु कामोद में पंचम अलंघन स्वर है। इसमें न तो वर्ज्य किया जाता है और न ही बक्र प्रयोग किया जाता है।
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