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 bihar board class 10 hindi | मेरे बिना तुम प्रभु

bihar board class 10 hindi | मेरे बिना तुम प्रभु

मेरे बिना तुम प्रभु
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-रेनर मारिया ‘रिल्के’
*कविता का सारांश:-
‘मेरे बिना तुम प्रभु’ रेल्के की चर्चित कविता है। इस कविता में कवि ने बताया है कि भगवान् का अस्तित्व भक्त पर ही निर्भर है। भक्त के बिना भगवान एकाकी और निरूपाय है।
कवि कहता है कि हे प्रभु ! जब मैं न रहूँगा तो तुम्हारा क्या होगा? तुम क्या करोगे? मैं ही तो तुम्हारा जलपात्र हूँ, जिससे तुम पानी पीते हो। अगर टूट गया तो या तुम्हें जिससे नशा होता है, तो मेरे द्वारा उन्हें प्राप्त मदिरा सूख जाएगी अथवा स्वादहीन हो जाएगी। दरअसल मैं ही तुम्हारा आवरण हूँ, वृत्ति हूँ। अगर नहीं रहा तो तुम्हारी महत्ता ही समापत हो जाएगी। मेरे प्रभु! मैं न रहा तो तुम्हारा मंदिर-मस्जिद-गिरजा कौन बनाएगा? तुम गृहहीन हो जाओगे? कौन करेगा तुम्हारी पूजा-अर्चना ?
दरअसल, मैं ही तुम्हारी पादुका हूँ जिसके सहारे जहाँ जाता हूँ तुम जाते हो । अन्यथा तुम भटकोगे।
कवि पुनः कहता है कि मुझसे ही तुम्हारी शोभा है। मेरे बिना किस पर कृपा करोगे? कृपा करने का सुख कौन देगा? जानते हो प्रभु, यह जो कहा जाता है कि सूरज का उगना-डूबना सब प्रभु की कृपा है, वह भी मैं कहता हूँ और इस प्रकार तुम्हें सृष्टिकर्ता बताने-बनाने का कार्य भी मेरा ही है। मुझे तो आशंका होती है कि मैं न रहा तो तुम क्या करोगे? कवि के कहने का तात्पर्य यह है कि ईश्वर को मनुष्य ने ही स्वरूप दिया है, महिमा-मंडित किया है, सर्वेसर्वा बनाया है। भगवान की भगवत्ता महत्ता तथा महानता मनुष्य पर आधारित है।
कहने का अर्थ यह है कि विराट सत्य और मनुष्य एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं।

*सरलार्थ:-
पाश्चात्य कवियों में ‘रेनर मारिया रिल्के’ का नाम आसानी से लिया जा सकता है। इन्होंने आधुनिक यूरोप के साहित्य को अपने गहरे भावबोध तथा संवेदनात्मक भाषा और शिल्प से काफी प्रभावित किया है। इनकी काव्यशैली गीतात्मक है और भावबोध में रहस्योन्मुखता है।
यह कविता विश्व कविता के भाषांतरित संकलन ‘देशान्तर’ से ली गयी है। रिल्के का आधुनिक विश्व कविता पर के प्रभाव है। भक्त और भगवान दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। भक्त के बिना भगवान भी एकाकी और निरूपाय है । कवि कहना चाहता है कि भगवान की भगवनता भी भक्तों की सत्ता पर ही निर्भर करती है। भक्त ही ईश्वर की वृत्ति और वेश है। भक्त ही
ईश्वर की चरण-पादुका है। वस्तुतः यहाँ कवि कहना चाहता है कि व्यक्ति और विराट सत्य एक-दूसरे पर निर्भर हैं। प्रेम के धरातल पर अत्यन्त पावनतापूर्वक यह कविता इस सत्य को
अभिव्यक्त करती है।

पद्याश पर आधारित अर्थ ग्रहण-संबंधी प्रश्न
जब मेरा अस्तित्व न रहेगा, प्रभु, तब तुम क्या करोगे?
जब मैं तुम्हारा जलपात्र, टूटकर बिखर जाऊँगा?
जब मैं तुम्हारी मदिरा सूख जाऊँगा या स्वादहीन हो जाऊँगा?

(i) उपर्युक्त पद्यांश के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर-रेनर मारिया रिल्के ।

(ii) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस कविता से उद्धृत हैं ?
उत्तर-मेरे बिना तुम प्रभु ।

(iii) जब मनुष्य का अस्तित्व नहीं रहेगा तब क्या होगा?
उत्तर-जब मनुष्य का इस धरती पर अस्तित्व नहीं रहेगा तब ईश्वर का महत्त्व भी शून्य हो जाएगा। ईश्वर का नाम लेनेवाला कोई नहीं रहेगा।

(iv) ‘जलपात्र’ शब्द किसके लिए आया है?
उत्तर-जलपात्र शब्द मनुष्य के लिए आया है।

(v) ईश्वर का मदिरा रूप कौन है?
उत्तर-ईश्वर का मदिरा रूप मनुष्य है। जब मनुष्य का महत्त्व घट जाएगा तब ईश्वर का नाम लेनेवाला कोई नहीं बचेगा।

2. मैं तुम्हारा वेश हूँ, तुम्हारी वृत्ति हूँ
मुझे खोकर तुम अपना अर्थ खो बैठोगे?

(i) उपर्युक्त पद्यांश के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर-रेनर मारिया रिल्के ।

(ii) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस कविता से उद्धृत हैं ?
उत्तर-मेरे बिना तुम प्रभु ।

(iii) मनुष्य किसका वेश है?
उत्तर-ईश्वर का वेश ही मनुष्य है। मनुष्य ही ईश्वर का प्रतिरूप है।

(iv) मनुष्य किसकी वृत्ति है?
उत्तर-मनुष्य ईश्वर का सृजन रूप है। वह ईश्वर की वृत्ति है।

(v) किसे खोकर ईश्वर अपना अर्थ खो बैठेगा?
उत्तर-मनुष्य को खोकर ईश्वर अपना अर्थ या महत्त्व खो बैठेगा।

3. मेरे बिना तुम गृहहीन निर्वासित होगे, स्वागत-विहीन
मैं तुम्हारी पादुका हूँ, मेरे बिना तुम्हारे
चरणों में छाले पड़ जाएँगे, वे भटकेंगे लहुलुहान!

(i) उपर्युक्त पद्यांश के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर-रेनर मारिया रिल्के ।

(ii) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस कविता से उद्धृत हैं ?
उत्तर-मेरे बिना तुम प्रभु ।

(iii) किसके बिना ईश्वर गृहविहीन और निर्वासित होकर जीवन जिएंगे।
उत्तर-मनुष्य के बिना ईश्वर का अस्तित्व नहीं रहेगा। मनुष्य ने ही उन्हें मंदिरों, मस्जिदों, गिरिजाघरों में स्थापित कर पूजा-वंदना किया है और उनको महत्त्व दिया है।

(iv) ईश्वर की चरण-पादुका कौन है?
उत्तर-ईश्वर की चरण-पादुका मनुष्य है। मनुष्य ही पादुका बनकर उनके पैरों को सम्मान देता है, शीश नवाता है, धोता है और घायल होने से बचाता है। कहने का मूल भाव यह कि उनके महत्त्व को बरकरार रखता है।

(v) किनके चरणों में छाले पड़ जाएँगे?
उत्तर-ईश्वर के चरणों में छाले पड़ जाएँगे।

4. तुम्हारा शानदार लबादा गिर जाएगा
तुम्हारी कृपादृष्टि जो कभी मेरे कपोलों की
नर्म शय्या पर विश्राम करती थी
निराश होकर वह सुख खोजेगी
जो मैं उसे देता था-

(i) उपर्युक्त पद्यांश के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर-रेनर मारिया रिल्के ।

(ii) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस कविता से उद्भुत हैं ?
उत्तर-मेरे बिना तुम प्रभु ।

(iii) किसका शानदार लबादा गिर जाएगा?
उत्तर-ईश्वर का शानदार लबादा गिर जाएगा, कहने का मूल भाव यह है कि ईश्वर का नाम लेनेवाला ही जब नहीं रहेगा तब नाम स्वयं ही लुप्त हो जाएगा। यहाँ शानदार लबादा का अर्थ है-नामरूपी लबादा का जीवन-जगत से लुप्त हो जाना। ‘ईश्वररूपी लबादा ओढ़कर ही हम
लोक जगत से मुक्ति पा सकते हैं। यह लबादा द्वि-अर्थी भी है। शरीररूपी लबादा जब नष्ट हो जाएगा, कृपा दृष्टि के अभाव में कपोलों पर आनंद की रेखाएँ मिट जाएँगी तब निराशा छा जाएगी मुख लुप्त हो जाएगा। आनंद नहीं रहेगा।

(iv) तुम्हारी कृपादृष्टि से क्या का तात्पर्य है?
उत्तर-तुम्हारी कृपादृष्टि का संबंध ईश्वर की कृपादृष्टि से है। बिना ईश्वर की कृपा के इस जीवन का क्या मोल?

(v) “निराश होकर वह सुख खोजेगी” पंक्ति किस संदर्भ में कही गयी है?
उत्तर-कवि कहता है कि ईश्वर की कृपा के बिना कुछ भी संभव नहीं हो सकता। जब निराशा के बीच मनुष्य जिन्दा रहने के लिए सुख की खोज करेगा तब उसे ईश्वर की कृपादृष्टि चाहिए। बिना कृपादृष्टि के सुख नहीं मिलेगा और न शांति ही मिलेगी। भटकाव की स्थिति बन जाएगी। अतः, ईश्वरीय कृपादृष्टि सारी समस्याओं के निराकरण में सहायक सिद्ध होगी।

5. दूर की चट्टानों की ठंडी गोद में
सूर्यास्त के रंगों में घुलने का सुख

(i) उपर्युक्त पद्यांश के रचनाकार कौन हैं ?
उसर-रेनर मारिया रिल्के ।

(ii) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस कविता से उद्धृत हैं ?
उत्तर-मेरे बिना तुम प्रभु ।

(iii) चट्टानों की ठंढी गोद का भाव क्या है?
उत्तर-सूर्य की किरणें जब चट्टानों पर पड़ती है तो वे पिघलकर तरलता को प्राप्त हो जाती है, ठीक उसी प्रकार मनुष्य भी ईश्वरीय कृपा से तरलता तथा करुणा को प्राप्त करता है। यही जीवन का मूल अर्थ है तरल होना, सरल होना, करुणा, दया से ओत-प्रोत होना।

(iv) सूर्यास्त का रंग कैसा होता है?
उत्तर-संध्या बेला में सूर्यास्त का रंग हल्का लालिमायुक्त होता है जो बड़ा ही सुखकर और ज्ञानवर्द्धक होता है।
मनुष्य का जीवन भी सूर्यास्त के लालिमायुक्त रंगीन रूप से युक्त है। जीवन भी सार्थक तभी हो सकता है जब उसमें लालिमा हो, रंगीन रूप हो, सौंदर्ययुक्त हो।

(v) रंगों में घुलने का सुख का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर-प्रकृति की छटा निराली है। सूर्यास्त बेला में सूर्य की रंगीन किरणें चट्टानों पर जब पड़ती हैं तब चट्टानों की चमक बढ़ जाती है। चट्टानें पिघलकर तरलता को प्राप्त होती है। ठीक उसी प्रकार मनुष्य का जीवन भी ईश्वरीय कृपा से तरलता, संवेदनशीलता को प्राप्त कर सुखकर और आनंदमय बन जाता है। प्रकृति की कृपा का क्या कहना? प्रकृति और मनुष्य के बीच ऐसा
सूक्ष्म संबंध है जिसकी व्याख्या पूर्णरूप से नहीं की जा सकती।

6. प्रभु, प्रभु मुझे आशंका होती है
मेरे बिना तुम क्या करोगे?

(i) उपर्युक्त पद्यांश के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर-रेनर मारिया रिल्के ।

(ii) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस कविता से उद्धृत हैं ?
उत्तर-मेरे बिना तुम प्रभु ।

(iii) कवि क्या आशंका प्रकट करता है?
उत्तर-कवि कहता है कि जब इस धरती पर इन्सान यानी मनुष्य नहीं रहेगा तब ईश्वर के अस्तित्व पर भी प्रश्न-चिह्न खड़ा हो जाएगा।

(iv) प्रभु को संबोधित करते हुए कवि क्या पूछना चाहता है?
उत्तर-कवि संबोधन के माध्यम से ईश्वर और मनुष्य के बीच के सबंधों और महत्त्व को जानना चाहता है।

(v) मेरे बिना तुम क्या करोगे?
उत्तर-उपर्युक्त काव्य पंक्तियों के माध्यम से कवि ईश्वर से प्रश्न पूछता है कि हे प्रभो! जब मनुष्य नहीं रहेगा, तब तुम क्या करोगे? यहाँ सृष्टि के महत्त्व के साथ मनुष्य और ईश्वर के बीच के अटूट संबंधों को व्याख्यायित कर सूक्ष्म बातों पर ध्यान आकृष्ट किया गया है। सृष्टि
नहीं रहेगी तो ईश्वर का महत्त्व भी नगण्य हो जाएगा। दोनों का महत्त्व तभी है, जब दोनों का अस्तित्व बरकरार रहे।

बोध और अभ्यास
*कविता के साथ :-
प्रश्न 1. कवि अपने को जलपात्र और मदिरा क्यों कहता है ?
उत्तर-कवि भलीभाँति जानता है कि भक्त और भगवान दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। ये पृथक् नहीं किये जा सकते हैं। मदिरापान करनेवाला जलपात्र अपने साथ अवश्य रखता है। जलपात्र के बिना मदिरापान कैसे किया जा सकता है। ठीक उसी प्रकार भगवान की गुणगाथा भक्त के बिना कैसे गाई जायेगी। इसी कारण कवि अपने को जलपात्र और मदिरा कहता है।

प्रश्न 2. आशय स्पष्ट कीजिए-
तुम्हारा वेश हूँ, तुम्हारी वृत्ति हूँ
मुझे खोकर तुम अपना अर्थ खो बैठोगे?”
उत्तर-भक्त और भगवान एक ही सत्तापुंज के आधार हैं। भगवान भक्त के सत्य पर ही आधारित है। यही भगवान की वृत्ति और वेश है । उसे खोना अपनी वृत्ति को खो देना है। अपना अलग साम्राज्य स्थापित कर भगवान भक्त को दरकिनार नहीं कर सकता है। उसकी भगवतता भक्त की सत्ता पर निर्भर करती है।

प्रश्न 3. शानदार लबादा किसका गिर जाएगा और क्यों?
उत्तर-शानदार लबादा भगवान का गिर जायेगा। भक्त की खीझता भगवान के लिए घातक हो सकती है। विराट सत्य की उपाधि धारण करनेवाला भगवान भक्त के कारण ही प्रतिष्ठित है। भक्त की अनदेखी करनेवाले भगवान अपने सत्ता से विमुख हो जाते हैं। भक्त ही भगवान को परमसत्ता पर स्थापित करता है।

प्रश्न 4. कवि किसको कैसा सुख देता था?
उत्तर -कवि ईश्वर में विश्राम करने के क्रम में सुख देता था। निराश मन से सुख की खोज में इधर-उधर भटकनेवाली दृष्टि में कवि अपना समस्त सुख समर्पण कर देता था। कवि यहाँ भक्त का प्रतीक है। भक्त ईश्वर के लिए अपना सर्वस्व समर्पण करने में नहीं हिचकता है।

प्रश्न 5. कवि को किस बात की आशंका है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-कवि भक्त के माध्यम से कहना चाहता है कि भगवान की जीवन शैली भक्त पर ही निर्भर है। सभी कार्य क्षेत्रों में हाथ बंटाने के उपरान्त ही ईश्वर कार्य करने के लिए अभिप्रेरित होते हैं। कवि की आशंका है कि यदि भक्त न हो तो ईश्वर अपने कार्यक्षेत्र से विमुख होकर
निस्पंद पड़े रहेंगे। सार्वभौमिक सत्ता पर राज्य स्थापित करने के लिए ईश्वर को भक्त का सहारा लेना पड़ता है।

प्रश्न 6. कविता किसके द्वारा किसे संबोधित है? आप क्या सोचते हैं?
उत्तर-कविता भक्त द्वारा भगवान को संबोधित है। यहाँ भक्त कामगार है और भगवान पूँजीपति हैं। भगवान की कार्यविधि निर्धारित होती है किन्तु समन्वयन कामगारों के द्वारा होता है। यदि काम करनेवाले ही नहीं रहे तो काम कैसे संभव हो पायेगा । शासित होनेवाले ही न हों तो शासन कैसे होगा? वस्तुत: यहाँ उस विराट सत्य को प्रदर्शित किया है जिसका साम्राज्य स्थापित हो गया है किन्तु संचालन का दायित्व संचालक पर है।

प्रश्न 7. मनुष्य के नश्वर जीवन की महिमा और गौरव का यह कविता कैसे बखान करती है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-प्रस्तुत कविता में कवि भक्त और भगवान के द्वारा सत्य को उद्घाटित किया है। ईश्वर परमसत्ता पर आसीन होकर भी भक्त पर आश्रित रहता है। भक्त ही ईश्वर का वृत्ति और वेश है। ईश्वर की पराकाष्ठता भक्त के द्वारा ही सुनी जाती है। यह नश्वर शरीर भी यदा-कदा अपना गौरव गाथा का विश्लेषण करता है। अवश्य ईश्वर नश्वर जीवन पर आधारित है। बिना भक्त के भगवान भी एकाकी और निरूपाय है।

प्रश्न 8. कविता के आधार पर भक्त और भगवान के बीच के संबंध पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-भक्त और भगवान दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। यह पृथक नहीं किये जा सकते हैं। परमसत्ता पर आसीन होनेवाले ईश्वर भी भक्त के समक्ष नतमस्तक हैं। भक्त के बिना ईश्वर भी एकाकी और निरूपाय हैं। उनकी भगवत्ता भी भक्त की सत्ता पर ही निर्भर करती है। व्यक्ति और विराट सत्य एक-दूसरे पर निर्भर हैं। भगवान की महिमा भक्त के द्वारा ही गायी जाती है। भक्त ही ईश्वर की वृत्ति और वेश है। भक्त खोकर ईश्वर अपने अस्तित्व को भी खो देगा। भक्त बिना गृहहीन होकर भगवान इधर-उधर भटकते रहेंगे। भक्त ही ईश्वर की चरण-पादुका है।

*भाषा की बात:-
प्रश्न 1. कविता से तत्सम शब्दों का चयन करें एवं उनका स्वतंत्र वाक्यों में प्रयोग करें।
उत्तर-स्वयं करें।

प्रश्न 2. कविता में प्रयुक्त क्रियाओं का स्वतंत्र वाक्यों में प्रयोग करें।
उत्तर-स्वयं कर।

प्रश्न 3. कविता से अव्यय पद चुनें।
उत्तर-जब, तब, टूटकर, बिना, दूर ।

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