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 bihar board class 12 sociology notes | सरंचनात्मक परिवर्तन

bihar board class 12 sociology notes सरंचनात्मक परिवर्तन

bihar board class 12 sociology notes सरंचनात्मक परिवर्तन

सरंचनात्मक परिवर्तन (Introducing Indian Society)

 

*स्मरणीय तथ्य संविदात्मक संबंध : यह दो या दो अधिक पक्षों के बीच होने वाला औपचारिक समझौता है। इसमें भाग लेने वाले पक्ष समझौते की शर्तों को तोड़े बिना अपने हिस्से में अधिक लाभ ले लेते हैं।

*मौसमी प्रवसन : यह कृषि श्रमिकों किया जानेवाला प्रवास है जिसे वे विशेष रूप से फसल के समय काम की खोज में करते हैं।

*उपनिवेशवाद : एक स्तर पर एक देश के द्वारा दूसरे देश पर शासन को उपनिवेशवाद माना जाता है। ब्रितानी उपनिवेशवाद : ब्रिटेन द्वारा दूसरे देशों पर शासन।

*नगरीकरण : कस्बों या गाँवों का नगरों के रूप में बदल जाना नगरीकरण कहलाता है।

*औद्योगीकरण : उद्योगों में अधिक से अधिक वृद्धि औद्योगीकरण कहलाती है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

(Objective Questions)

  1. आधुनिकीकरण की अवधारणा किसने दी ?

(क) डेनियल लर्नर

(ख) डेनियल बेल

(ग) डेनियल थॉर्नर

(घ) डेनियल गूच

उत्तर-(क) 

  1. उपनिवेशवाद का संबंध निम्न में किससे है ? .

(क) राष्ट्रवाद

(ख) प्रजातिवाद

(ग) साम्राज्यवाद

(घ) पूँजीवाद

उत्तर-(घ) 

  1. भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद की स्थापना तथा विस्तार में कौन सहायक था?

(क) लॉर्ड कार्नवालिस

(ख) लॉर्ड क्लाइव

(ग) वारेन हेस्टिंग्ज

(घ) उपर्युक्त सभी उत्तर-(घ)

  1. सन् 1995 में भारत में मलिन बस्तियों में रहनेवाले लोगों की संख्या कितनी थी ?                                                                                                                                                                                                                                                                           (क) 250 लाख

(ख) 450 लाख

(ग) 300 लाख

(घ) 500 लाख

उत्तर-(ख) 

  1. वर्तमान स्थिति में किसी भी प्रकार के और किसी भी स्तर के बदलाव को कहते हैं                                                                                                                                                                                                                                                                             (क) परिवर्तन

(ख) मौसमी प्रवसन

(ग) नगरीकरण

(घ) औद्योगीकरण

उत्तर-(क) 

  1. यूरोप और अमेरिका की सभ्यताओं की संस्कृति से प्रभावित होकर होनेवाले परिवर्तन को कहते हैं

(क) उपनिवेशवाद

(ख) मौसमी परिवर्तन (ग) पश्चिमीकरण

(घ) मलिन बस्तियाँ उत्तर-(ग)

4.”सामाजिक परिवर्तन से तात्पर्य सामाजिक ढाँचे के परिवर्तन से है” यह कथन किसका था ?                                                                      (क) जॉनसन

(ख) गिलिन तथा गिलिन

(ग) डॉ. मजूमदार

(घ) मैकाइवर तथा पेज

उत्तर-(क) 

  1. भारत में औद्योगीकरण लगभग कितना वर्ष पुराना है ?                                                                                                                 (क) 200

(ख) 300

(ग) 400

(घ) 100

उत्तर-(घ) 

(ख) रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:

(1) सामाजिक परिवर्तन लाने में …………. की विशेष भूमिका रहती है।

(2) प्रौद्योगिकी और सामाजिक परिवर्तन का ……………. संबंध है।

(3) नगरों का विकास हो जाने से भारत में संयुक्त परिवारों का तेजी से ………….. हो

रहा है।

(4) योजना आयोग का गठन …………… ई. में हुआ।

(5) अंग्रेजी आज भी …………… प्रतीक है।

उत्तर-(1) प्रौद्योगिकी, (2) घनिष्ठ, (3) विघटन, (4) 1950, (5) विशेषाधिकारों। 

(ग) निम्नलिखित कथनों में सत्य एवं असत्य बताइये:

(1) हमारा सड़कों पर बाएँ चलना भी ब्रिटिश नियमों का अनुकरण है।

(2) औद्योगीकरण तथा नगरीकरण दोनों प्रक्रियाएँ परस्पर संबंधित हैं।

(3) आधुनिकीकरण के कारण समाज में नैतिकता का उत्थान हो रहा है।

(4). 19 सदी के मध्य में भारत में पश्चिमी शिक्षा प्रणाली लागू किया गया।

 उत्तर-(1) सत्य, (2) सत्य, (3) असत्य, (4) सत्य।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

(Very Short Answer Type Questions)

 प्रश्न: 1. परिवर्तन से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर– वर्तमान स्थिति में बदलाव परिवर्तन कहलाता है।

प्रश्न 2. सामाजिक परिवर्तन से क्या अभिप्राय है ?

उत्तर-समाज के सदस्य जब निश्चत तरीकों से हटकर कुछ सोचते हैं और काम करते हैं तो उसे समाजिक परिवर्तन कहते हैं।

प्रश्न 3. संरचनात्मक परिवर्तन से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर-सामाजिक संबंधों में होने वाले परिवर्तनों को संरचनात्मक परिवर्तन कहते हैं। परिवार, विवाह, नातेदारी और व्यावसायिक समूह संरचनात्मक परिवर्तन कहलाता है।

प्रश्न 4. उपनिवेशीकरण क्या है?

उत्तर-साम्राज्यवादी देशों द्वारा अपने लाभ के लिए अन्य (अविकसित) देशों पर कब्जा करना उपनिवेशीकरण कहलाता है।

प्रश्न 5. औद्योगीकरण से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर-औद्योगीकरण प्रौद्योगिक उन्नति की वह प्रक्रिया है जो सामान्य उपकरणों से चलने वाली घरेलू उत्पादन से लेकर वृहद्स्तरीय कारखानों के उत्पादन तक संपन्न होती है।

प्रश्न 6. नगरीकरण से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर– नगरीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें गाँव की स्थिति में परिवर्तन होते हुए वह नगर में परिवर्तित हो जाता है और रहन-सहन में शहरीपन आ जाता है।

 

 प्रश्न 7. नगरीकरण की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं ?

उत्तर-अत्यधिक गतिशीलता, समय की कमी, उन्नत प्रौद्योगिकी पर आधारित जीवन, भाग-दौड़, मलिन बस्तियाँ, परिवहन की समस्या, बिजली-पानी जैसी अपवश्यकताओं की कमी, एकाकी परिवार आदि।

प्रश्न 8. आधुनिकीकरण से क्या अभिप्राय है ?

उत्तर-आधुनिकीकरण. एक बहुआयामी आर्थिक, राजनैतिक, समाजिक और सांस्कृतिक प्रक्रिया है जो समाज के सदस्यों के जीवन को एक नया रूप प्रदान करती है।

प्रश्न 9. आधुनिकीकरण के लिए आवश्यक शर्ते क्या हैं?

उत्तर– शिक्ष, संचार माध्यम, यातायात क साधनों की वृद्धि, लोकतांत्रिक राजनैतिक संस्थाएँ, गतिशील जनसंख्या, संयुक्त परिवार के स्थान पर एकाकी परिवार आधुनिकीकरण के लिए आवश्यक हैं।

प्रश्न 10: तकनीकी आविष्कारों का जनसाधारण के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा है ?

उत्तर– गैस चूल्हों, बायो गैस, खेती में मशीनों का प्रयोग, सड़कों का निर्माण, संचार साधनों में वृद्धि, रेल व्यवस्था में सुधार, बिजली का प्रयोग आदि ने आम लोगों के जीवन में बहुत अधिक सुधार किया है। लोगों की मानसिकता में परिवर्तन आया है तथा जीवन में गुणात्मक सुधार हुआ है।

प्रश्न 11. आधुनिकीकरण की प्रक्रिया से धर्म पर क्या प्रभाव पड़ रहा है ?

उत्तर– आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप दूरदर्शन धर्म और धार्मिक भावनाओं का विस्तार करने में सहायक हो रहा है। कई पारंपारिक संस्थाएँ और गतिविधियाँ फिर से शुरू हो गई हैं। आस्था, संस्कार, साधना चैनल पूरी तरह धर्म प्रचार के लिए समर्पित हैं। धर्म प्रवचन भक्तों को आध्यात्मिकता की ओर प्रेरित कर रहे हैं। योग के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है।

प्रश्न 12. आधुनिकीकरण के नकारात्मक प्रभाव बताइए।

उत्तर– आधुनिकीकरण समाज में कुछ नकारात्मक प्रभाव लाने के लिए भी उत्तरदायी है। संयुक्त परिवार टूट रहे हैं। वृद्धों के प्रति अनादर की भावना पनप रही है। नैतिकता का पतन देखने को मिल रहा है। समाज में भौतिकवाद और विलासिता बढ़ रही है। व्यक्तिवाद पनप रहा है। दूरदर्शन के चैनल अश्लीलता फैलाने में लगे हैं। भारतीय संस्कृति का आध्यात्मिक पक्ष बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। ____प्रश्न 13. आधुनिकता की प्रक्रिया का ग्रामीण जीवन पर क्या प्रभाव पड़ रहा है? – उत्तर- आधुनिकता की प्रक्रिया आज भारतीय ग्रामीण समुदायों में क्रियाशील है। गाँवों में किसान नयं वैज्ञानिक तरीकों को प्रयोग में लाकर उन्नत कृषि में लगा है। सिंचाई, बिजली, उन्नत बीज, ट्रैक्टर, हारवेस्टर, कीटनाशकों, उर्वरकों का प्रयोग बढ़ रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में स्त्री शिक्षा और प्रौढ़ शिक्षा का विस्तार किया जा रहा है। पुरानी कुरीतियाँ धीरे-धीरे कम हो रही हैं। सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि हो रही है।

प्रश्न 14. भारत में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को संक्षेप में समझाइए।

उत्तर-भारतीय समाजशास्त्री एम. एन. श्रीनिवास का मत है कि भारत में आधुनिकता की उपस्थिति ब्रिटिश काल से समझी जा सकती है। अंग्रेज इस देश में एक व्यापारी की तरह आए लेकिन जब उन्होंने यहाँ राज. सत्ता पर अधिकार कर लिया तो प्रभावी प्रशासन चलाने के लिए उन्होंने आधुनिकता को जन्म दिया। मुद्रण के लिए वे प्रिंटिंग प्रेस लाये, रेलगाड़ियाँ, संचार साधन और आधुनिक शिक्षा प्रणाली का विकास किया। आधुनिकता में तीव्रता लाने में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम भी महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ। लोगों में राष्ट्रीय चेतना उत्पन्न हुई। स्वतंत्रता, समानता, भ्रातृत्व की भावना ने लोगों में एकता और राष्ट्रीयता को जन्म दिया। अस्पृश्यता के विरुद्ध आवाज उठाई गई। उपनिवेशवादी ताकतों ने नगरीकरण और प्रौद्योगिकी को जन्म दिया।

 प्रश्न 15. आधुनिकता का वैश्वीकरण, उदारीकरण और निजीकरण से क्या संबंध है ?

उत्तर-कुछ समाजशास्त्रियों का विचार है कि वैश्वीकरण उदारीकरण और निजीकरण को प्रोत्साहित करता है। आधुनिकता का कोई भी स्वरूप क्यों न हो इसमें हमें पूँजीवाद, औद्योगीकरण, प्रजातंत्र और विवेक या बुद्धिसंगत, केन्द्रीय लक्षणों के रूप में दिखाई देते हैं।

  •                            लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Type Questions) 

प्रश्न 1. सामाजिक परिवर्तन से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर-सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया का संबंध सामाजिक संबंधों तथा समाज की व्यवस्था में होने वाले परिवर्तन से हैं। गिलिन तथा गिलीन के अनुसार, “सामाजिक परिवर्तन जीवन के स्वीकृति प्रकारों में परिवर्तन है। भले ही ये परिवर्तन भौगोलिक दशाओं में हुए हों या सांस्कृतिक साधनों पर जनसंख्या की रचना या सिद्धांतों के परिवर्तन से हुए हों या प्रचार से या समूह के अंदर आविष्कार से हुए हों।

जानसन के अनुसार, “सामाजिक परिवर्तन से तात्पर्य सामाजिक ढाँचे में परिवर्तन से है।”

प्रत्येक परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन नहीं कहलाता वरन् केवल सामाजिक संबंधों, सामाजिक संस्थाओं तथा संस्थाओं के परस्पर संबंधों में होने वाला परिवर्तन ही सामाजिक परिवर्तन की श्रेणी में आता है।

प्रश्न 2. संरचनात्मक परिवर्तन से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर-सामजशास्त्रियों ने सामाजिक परिवर्तन को दो भागों में विभाजित किया है-संरचनात्मक प्रक्रिया और सांस्कृतिक प्रक्रिया। परिवर्तन की प्रक्रिया संरचनात्मक सामाजिक संबंधों जाति, नातेदारी, परिवार और पेशेगत समूह के निर्माण से है। इनमें परिवर्तन संरचनात्मक परिवर्तन कहलाता है। उदाहरण के लिए कृषि कार्य जिसमें परिवार के सदस्य मिलकर खेती करते हैं, कृषि का परंपरागत तरीका है, परंतु जब तरीका बदलता है तो भाड़े पर श्रमिक लगाकर बाजार में बिक्री के लिए उत्पादन किया जाता है तो इसे हम संरचनात्मक परिवर्तन कहते हैं। संयुक्त परिवार प्रणाली के विघटन और एकाकी परिवार में परिवर्तन होना संरचनात्मक परिवर्तन है। संयुक्त परिवार परंपरागत थे। इनमें बच्चों का लालन-पालन, शिक्षा, व्यवसाय, सामाजिक सुरक्षा स्वयं ही प्राप्त हो जाती थी परंतु एकाकी परिवार (nuclear family) के प्रचलन से ये सभी क्रियाएँ विभिन्न संगठनों व संस्थाओं के द्वारा संपन्न की जाती हैं। स्कूल, आर्थिक संगठन, सरकारी विभाग और अन्य संस्थाएँ इन कार्यों को करती हैं। सामाजिक परिवर्तन लाने में औद्योगीकरण, आधुनिकीकरण और पश्चिमीकरण का विशेष योगदान है।

प्रश्न 3. स्वतंत्रता के पश्चात् उद्योग के क्षेत्र में क्या महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं ?

उत्तर-स्वतंत्रता के पश्चात् औद्योगीकरण की गति में तेजी से परिवर्तन हुए हैं। कई नए उद्योगों की स्थापना की गई। औद्योगिक संरचना में विविधता देखने को मिली। 1951 में भारत में इस्पात का उत्पादन करने वाली केवल दो प्रमुख इकाइयाँ थीं जो 1980 में बढ़कर 6 हो गई तथा उत्पादन क्षमता 80 लाख टन हो गई। देश में नए उद्योगों के क्षेत्र में ट्रैक्टर, इलैक्ट्रॉनिक यंत्रों, उर्वरकों आदि के उत्पादन में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई। सिंथेटिक वस्त्र उद्योगों की बड़ी-बड़ी इकाइयाँ स्थापित की गई जो इस्पात, कोयला, भारी और हल्के इंजीनियरिंग यंत्र, रेल-इंजन, हवाई-जहाज, पेट्रोलियम उत्पाद तथा उर्वरकों का उत्पादन करती हैं।

प्रश्न 4. नगरीकरण एवं नगरीयता में अंतर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-नगरीकरण (Urbanisation): नगरीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें लोग गाँवों में रहने के बजाय कस्बों व शहरों में रहना शुरू कर देते हैं। वे ऐसे तरीकों का प्रयोग करते हैं कि कृषि आधारित निवास क्षेत्र गैर-कृषि शहरी निवास क्षेत्र में परिवर्तित हो जाता है। शहरी केन्द्रों का विकास बढ़ी हुई औद्योगिक व व्यावसायिक गतिविधियों का परिणाम है। कस्बों और नगरों की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है और ये गैर-कृषि परिवारों की संख्या में वृद्धि के कारण हैं।

नगरीयता (Urbanism): लुई वर्थ के अनुसार नगरीय परिवेश एक विशिष्ट प्रकार के सामाजिक जीवन का निर्माण करता है जिसे नगरीयता कहते हैं। नगरों में सामाजिक जीवन अधिक

औपचारिक और अवैयक्तिक होता है और आपसी संबंध जटिल श्रम-विभाजन पर आधारित होते हैं और इनकी प्रवृत्ति अनुबंधात्मक होती है।

प्रश्न 5, भारत में नगरीकरण की प्रवृत्ति क्यों बढ़ रही है?

उत्तर-भारत में नगरीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति के पीछे नगरों की ओर प्रवसन की भूमिका महत्वपूर्ण है। बड़ी संख्या में लोग गाँव को छोड़कर सिर्फ बड़े नगरों में ही नहीं छोटे और मध्यम नगरों में आ रहे हैं। यह प्रवसन उत्पादन व नौकरी से संबंधित है। अकुशल मजदूरों में मौसमी प्रवसन की प्रवृत्ति भी आम हो गई है। मजदूर मौसमी प्रवसन करते हैं और बाद में अपनी पसंद के क्षेत्रों में स्थायी रूप से बस जाते हैं।

प्रश्न 6. नगरीय जीवन की मुख्य समस्याएँ क्या हैं ?

उत्तर– भारत में नगरीकरण तेज गति से बढ़ रहा है। इसने मानव जीवन को कई प्रकार से प्रभावित किया है। नगरीय केन्द्रों के विस्तार ने विविध प्रकार की समस्याओं को भी बढ़ाया है। नगरों में अत्यधिक भीड़भाड़, प्रदूषण, आवास तथा झोपड़पट्टी, अपराध, बाल अपराध, शराबखोरी तथा मादक द्रव्यों का सेवन आदि कुछ प्रमुख समस्याएँ हैं। नगरों में अत्यधिक भीड़-भाड़ के कारण इसका प्रभाव आवास, जल आपूर्ति, साफ-सफाई, यातायात, विद्युत आपूर्ति तथा रोजगार के अवसरों में होने वाली गिरावट पर स्पष्ट देखा जा सकता है। आवासविहीन लोगों की बढ़ती हुई संख्या, घर के किरायों में अत्यधिक वृद्धि हुई और छोटे-छोटे मकानों में पूरे परिवार के साथ रहना मुख्य समस्याएं हैं।

प्रश्न 7. मलिन बस्तियों की समस्या पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

उत्तर-भारत में मलिन बस्तियों की समस्या आवास तथा अत्यधिक भीड़भाड़ से संबंधित समस्या है। मलिन बस्तियाँ टूटे-फूटे उपेक्षित घरों का वह इलाका है जहाँ लोग आवश्यक जन सुविधाओं के बिना अत्यधिक गरीबी में रहते हैं। सन् 1995 में मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों की संख्या लगभग 450 लाख थी। मलिन बस्तियों में रहने वाली भारतीय जनसंख्या विश्व के 107 देशों की कुल जनसंख्या से अधिक है।

प्रश्न 8. उपनिवेशवाद के कारण भारत के आर्थिक क्षेत्र में क्या परिवर्तन आए ?

उत्तर-ब्रिटेन की औद्योगिक काति ने उसकी अर्थव्यवस्था तथा भारत के साथ उसके आर्थिक संबंधों को पूरी तरह बदलकर रख दिया। 18वीं सदी के उत्तरार्द्ध तथा 19वीं सदी के पहले कुछ दशकों में ब्रिटेन में महत्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक रूपांतरण हुए। आधुनिक मशीनों, कारखाना प्रणाली तथा पूँजीवाद के आधार पर ब्रिटिश उद्योगों का तेजी से विकास और प्रसार हुआ। इससे भारत में भी आर्थिक परिदृश्य बदला। कपड़े के उत्पादन में मशीनी कांति आ गई। सस्ते श्रम की आपूर्ति के लिए यहाँ अच्छे श्रमिक उपलब्ध थे। देश में नगरीकरण भी तेजी से होने लगा।

 प्रश्न 9. औद्योगीकरण का सामाजिक प्रभाव बताइये।

अथवाभारतीय समाज पर औद्योगिकरण के प्रभाव बताएँ।

उत्तर-औद्योगीकरण के कारण आज हमारी सामाजिक संरचना में अंतर आ गया है। पहले भारतीय समाज में जमींदारों और कृषकों का ही वर्ग था और सामाजिक वर्गों के आधार पर धर्म और जाति थे। आज समाज में वर्गों के आधार पर व्यवसाय बन गए हैं। व्यवसाय तथा आय के आधार पर आज भारतीय समाज में पूँजीपति वर्ग, श्रमिक वर्ग और मध्यम वर्ग देखे जा सकते हैं। औद्योगिक विकास ने भारतीय गाँवों में जाति प्रथा, संयुक्त परिवार प्रथा एवं विवाह प्रथा को प्रभावित किया है।

औद्योगीकरण से पूर्व ग्रामीण समुदाय के लोग अपने पुराने रीति-रिवाजों से चिपटे हुए थे किन्तु औद्योगीकरण का आरंभ होने से उनका दृष्टिकोण व्यापक हो रहा है। पहले कृषि को

आजीविका का महत्वपूर्ण साधन माना जाता था अत: वहाँ के लोग अपना स्थान छोड़कर अन्य स्थानों पर रोजगार की तलाश में जाने लगे। औद्योगीकरण ने समाज में रोजगार के नये अवसर खोले हैं। यातायात के साधनों का विस्तार होने से श्रम की गतिशीलता में वृद्धि हुई है। वास्तव में समाज का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं बचता जिस पर औद्योगीकरण का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव न पड़ा हो।

प्रश्न 10. सामाजिक परिवर्तन में आर्थिक कारकों का प्रभाव बताइये।

उत्तर-सामाजिक परिवर्तन, सामाजिक संबंधों, सामाजिक संरचना, सामाजिक संस्थाओं अथवा संस्थाओं के परस्पर संबंधों में होने वाला परिवर्तन है। सामाजिक परिवर्तन के अनेक कारक हैं जिनमें जनसंख्यात्मक कारक, जैविकीय कारक, सांस्कृतिक, भौगोलिक और मनोवैज्ञानिक कारक प्रमुख हैं। सामाजिक परिवर्तन में आर्थिक कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पूँजीवाद का विकास, श्रम विभाजन और विशेषीकरण, जीवन का उच्च स्तर, आर्थिक संकट, बेरोजगारी और निर्धनता प्रमुख आर्थिक कारक हैं। आर्थिक कारकों का समाज पर काफी प्रभाव पड़ता है। कार्ल मार्क्स ने सामाजिक पविर्तन की व्याख्या आर्थिक आधारों पर ही की है। उनके अनुसार उत्पादन के साधनों में परिवर्तन से उत्पादन की शक्तियों और संबंधों में भी परिवर्तन होते रहते हैं जिनसे आर्थिक संरचना प्रभावित होती है। आर्थिक संरचना सभी प्रकार के संबंधों को निर्धारित करती है।

 प्रश्न 11. नगरीकरण से क्या अभिप्राय है ?

अथवानगरीकरण की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।

उत्तर-जब ग्रामीण जनता काम की खोज में नगरों की ओर प्रस्थान करने लगती है तो नगरों की जनसंख्या बढ़ने लगती है। इसे ही नगरीकरण कहते हैं। नगरीकरण का अर्थ नगरों के विकास से लिया जाता है। यह वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से ग्रामीण समाज नगरीय समाज में परिवर्तित होता है। इसे औद्योगीकरण का परिणाम और कारण दोनों ही कह सकते हैं। औद्योगीकरण के कारण नगरों का विकास होता है। श्रीनिवास के अनुसार, “नगरीकरण से अभिप्राय केवल संकुचित क्षेत्र में अधिक जनसंख्या से नहीं होता बल्कि सामाजिक-आर्थिक संबंधों से परिवर्तन से भी होता है।”

प्रश्न 12. नगरीकरण के मुख्य तत्व कौन से हैं ?

उत्तर-नगरीकरण वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से नगरीय तत्वों या शहरीपन का विकास एवं प्रसार होता है। सामान्य रूप से जनसंख्या के घनत्व एवं आकार में वृद्धि, सामाजिक संबंधों में विषमता एवं औपचारिकता का आधिक्य, सामाजिक गतिशीलता एवं परिवर्तनशीलता में वृद्धि, व्यक्तिवादी जीवन दर्शन का बोलबाला तथा सांस्कृतिक विविधता को नगरीय तत्व माना जाता है। इन तत्वों में वृद्धि एवं प्रसार ही नगरीकरण है।

 प्रश्न 13, औद्योगीकरण और नगरीकरण का क्या परस्पर संबंध है? विचार करें।

उत्तर-नगरीकरण एवं औद्योगीकरण में पाए जाने वाला पारस्परिक संबंध सदैव विवाद का विषय रहा है। अधिकतर विद्वानों का मत है कि नगरीकरण के लिए औद्योगीकरण आवश्यक है।

औद्योगीकरण में उद्योगों का विकास होता है उसके लिए कच्चा माल, शक्ति के साधन, श्रमिकों के आने-जाने के लिए परिवहन और यातायात के साधन आवश्यक हैं। औद्योगीकरण के कारण ये सुविधाएँ छोटे नगरों को बड़े नगरों में बदल देती हैं। कभी-कभी औद्योगीकरण नए सिरे से नगरों को विकसित करने में भी सहायक है। ऐसे नगरों को औद्योगिक नगर कहा जाता है। अत: हम कह सकते हैं कि नगरीकरण के लिए औद्योगीकरण आवश्यक है। जहाँ उद्योगों का विकास होता है वहाँ नगरों का भी विकास होता है। किसी स्थान पर जनसंख्या के केन्द्रीभूत होने के लिएतकनीकी विकास आवश्यक है जिसका संबंध औद्योगीकरण की प्रक्रिया से संबंधित है। औद्योगीकरण तथा नगरीकरण दोनों प्रक्रियाएँ परस्पर संबंधित हैं।

प्रश्न 14. “औद्योगीकरण और नगरीकरण में अनिवार्य सहसंबंध नहीं है।” स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-समाजशास्त्रियों का मत है कि औद्योगीकरण और नगरीकरण की प्रक्रियाएँ यद्यपि परस्पर संबंधित हो सकती हैं फिर भी इनमें अनिवार्य या पूर्ण सहसंबंध नहीं है। दोनों प्रक्रियाएँ एक-दूसरे से स्वतंत्र हैं। भारत में मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, पाटलिपुत्र, नालंदा, वाराणसी तथा दिल्ली अति प्राचीन नगर हैं। इन नगरों का विकास औद्योगीकरण से काफी पहले हुआ था। विकसित देशों में भी ईसा पूर्व नगरों के अस्तित्व के उदाहरण हैं। कुछ ऐसे भी केन्द्र हैं जो केवल औद्योगिक केन्द्र हैं। वहाँ नगरीय जनसंख्या में अधिक वृद्धि नहीं हुई है। यह सत्य है औद्योगीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ होने पर नगरों का विकास बहुत तेज गति से होता है लेकिन भारत में औद्योगीकरण से पूर्व नगरों का अस्तित्व यह सिद्ध करता है कि ये दोनों स्वतंत्र क्रियाएँ हैं।

प्रश्न 15. आधुनिकीकरण क्या है ?

उत्तर-आधुनिकीकरण परिवर्तन की एक प्रक्रिया है जिसमें एक देश अल्पविकसित अवस्था से विकास की ओर अग्रसर होता है। यह आर्थिक विकास के लिए सामाजिक वातावरण तैयार करता है। आधुनिकीकरण में औद्योगिक विकास, नगरीकरण, राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय को विकास के सूचक माना जाता है। आधुनिककीरण सामाजिक परिवर्तन की वह प्रक्रिया है जिसमें आर्थिक विकास की गति तेज होती है। कुछ समाजशास्त्री आर्थिक विकास को पर्याप्त नहीं मानते। उनके अनुसार गैर-आर्थिक विकास भी एक आवश्यक तत्व है। आधुनिकीकरण में संरचनात्मक परिवर्तन भी आवश्यक है। मूल्यों और प्रवृत्तियों में भी परिवर्तन आवश्यक है जो संसार में मान्य हों। आधुनिकीकरण में तकनीकी विकास और आर्थिक संवृद्धि ही पर्याप्त नहीं है। आधुनिकीकरण परंपराओं के विपरीत अवधारणा है। सभी विकासशील देशों को परंपरागत और विकसित देशों को आधुनिक कहा जा सकता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Type Questions)

 प्रश्न 1. सामाजिक परिवर्तन में प्रौद्योगिकी की भूमिका बताइये।

उत्तर-सामाजिक परिवर्तन लाने में प्रौद्योगिकी की विशेष भूमिका रहती है। प्रौद्योगिकी एक व्यवस्थित ज्ञान है जिसमें यंत्रों और उपकरणों का प्रयोग किया जाता है। इसमें वे सभी कुशलताएँ और ज्ञान व क्रियाएं शामिल हैं जिनके द्वारा सामाजिक समूह अपने भौतिक और सामाजिक ढाँचे में परिवर्तन लाते हैं।

__प्रौद्योगिकी और सामाजिक परिवर्तन का घनिष्ठ संबंध है। प्रौद्योगिकी परिवर्तनों के साथ-साथ सामाजिक संबंधों में भी परिवर्तन होते रहते हैं। नई प्रौद्योगिकी जीवन की नई स्थितियों और नवीन अवसरों को उत्पन्न करती है। जीवन की नई स्थितियाँ बहुत दूर तक जीवन के नये अवसरों के अनुकूल हो जाती हैं। उत्पादन की नई विधियों के प्रयोग से कारखाना पद्धति का उदय हुआ है। समाज में वर्ग भेद को जन्म मिला। नवीन विचारधाराओं और आंदोलनों को जन्म मिला, स्त्रियों का कार्यभार कम हुआ है परंतु औद्योगिक केन्द्रों में गंदी बस्तियाँ बस गईं और श्रमिकों को नारकीय जीवन जीने पर विवश होना पड़ा।

_ प्रौद्योगिकी ने सामाजिक जीवन को अत्यधिक प्रभावित किया है। प्रौद्योगिकीय कारकों का जीवन के मूल्यों पर बहुत प्रभाव पड़ा है। मनुष्य के विचारों, प्रवृत्तियों और विश्वासों में परिवर्तन आये हैं। भारतीय जाति व्यवस्था, संस्कार और धार्मिक विश्वासों के स्वरूप में उल्लेखनीय परिवर्तन आये हैं। परिवार के कार्यों को विभिन्न संस्थाओं और समितियों ने ले लिया है। संयुक्त परिवार का तेजी से विघटन हो रहा है, उसके स्थान पर एकाकी परिवारों का चलन बढ़ गया है। विवाह

बंधनों में शिथिलता आई है। राज्य का स्वरूप धर्म निरपेक्ष होता जा रहा है। धार्मिक संकीर्णता समाप्त हो रही है। प्रौद्योगिकी का सबसे अधिक प्रभाव नागरिक जीवन पर पड़ा है। बीमारियाँ बढ़ रही हैं। पारिवारिक नियंत्रण में कमी आई है। नैतिकता का स्तर गिरा है। स्त्री-पुरुषों की जनसंख्या में विषमता आ रही है।

प्रश्न 2. भारत में औद्योगीकरण की प्रगति का उल्लेख कीजिए।

उत्तर-भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना से पूर्व घरेलू और कुटीर उद्योगों का जाल बिछा हुआ था। यूरोप में औद्योगिक क्रांति के पश्चात् उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में बड़े पैमाने पर उत्पादन करने वाली औद्योगिक इकाइयों की स्थापना की जाने लगी। लगभग 1850 के आस-पास भारत में बड़ी औद्योगिक इकाइयों की स्थापना की जाने लगी। 1914 में भारत में जूट की सबसे बड़ी उत्पादक इकाई आरंभ की गई। सूती कपड़ा बनाने के कारखाने खुलते गये तथा रेलवे प्रणाली का विकास हुआ। स्वतंत्रता से पूर्व भारत में लगभग एक सौ वर्ष तक बड़े पैमाने पर उत्पादन कार्य चलता रहा।

__ स्वतंत्रता के पश्चात् पंचवर्षीय याजनाओं के अंतर्गत औद्योगीकरण की गति में तेजी आई। भारत में औद्योगिक क्षेत्र का विस्तार और विविधीकरण बड़े पैमान पर हुआ। 1951 में इस्पात उत्पादन करने वाली केवल दो इकाइयाँ थीं 1980 तक इनकी संख्या बढ़कर 6 हो गई। अनेक ऐसे उद्योग स्थापित हुए जो 1951 से पूर्व भारत में नहीं थे। कृषि कार्य के लिए ट्रैक्टर, इलेक्ट्रोनिक्स, उर्वरक आदि क्षेत्रों में अनेक उत्पादक इकाइयाँ आरंभी की गईं। अब सूती कपड़ा और जूट उत्पादन के अतिरिक्त सिन्थेटिक कपड़ा बनाने की अनेक इकाइयाँ स्थापित की गईं। स्वतंत्रता के पश्चात् सार्वजनिक क्षेत्र का तेजी से विकास किया गया। सार्वजनिक कक्षेत्र में कोयला, भारी और हल्के इंजीनियरिंग पदार्थ, रेलवे इंजन, हवाई जहाज, पेट्रोलियम उत्पाद और उर्वरक के कारखाने खोले गये। स्वतंत्रता के पश्चात् देश में तेजी से औद्योगीकरण हुआ है और भारत संसार के औद्योगिक देशों में गिना जाने लगा है।

प्रश्न 3. औद्योगीकरण के सामाजिक-आर्थिक परिणामों का विश्लेषण करें।

उत्तर-औद्योगीकरण ने हमारे आर्थिक और सामाजिक जीवन पर गहरा प्रभाव डाला है। औद्योगीकरण के कारण हमारी आर्थिक संरचना में परिवर्तन आया है। औद्योगीकरण ने हमारे घरेलू उत्पादन को पूरी तरह बदल दिया है। कारखानों में बड़े पैमाने पर उत्पादन होने लगा। विशेषज्ञों

और औद्योगिक श्रमिकों का एक बड़ा वर्ग विकसित हुआ है। औद्योगिक ढांचे में परिवर्तन आया है। कृषि कार्य के तरीकों में परिवर्तन आने के कारण कृषिकार्य करने वालों के आपसी संबंधों में भी परिवर्तन आया है। महिलाएं खेतों, कारखानों और व्यावसायिक संस्थानों में कार्य करने लगी हैं। परिवार के विभिन्न सदस्य अब भिन्न-भिन्न प्रकार के व्यवसाय करने लगे हैं। संयुक्त परिवार प्रथा जो अब तक आर्थिक, शैक्षिक, समाजीकरण और मनोरंजन जैसे कार्य करती रही है उसका विघटन हो रहा है। ये कार्य अब अन्य संस्थाओं ने ले लिए हैं। यातायात और संचार के साधनों के विकास से लोग बड़ी संख्या में ग्रामों से नगरों की ओर पलायन कर रहे हैं जहाँ उन्हें बेहतर अवसर उपलब्ध हैं।

जाति व्यवस्था जो भारतीय सामाजिक व्यवस्था की महत्वपूर्ण स्थिति है उसमें भी परिवर्तन आ रहा है। अनेक जातियों ने अपना व्यवसाय छोड़ा है। व्यावसायिक विविधता ने तमाम व्यवसायों को जाति के बंधन से मुक्त कर दिया है। ऊँची समझी जाने वाली जातियाँ उन व्यवसायों के लिए आगे आ रही हैं जो पहले अच्छे नहीं समझे जाते थे। छोटी समझी जाने वाली जातियाँ अब उन कार्यों को कर रही हैं जो कि पहले समाज के उच्च वर्ग के लोग करते थे। व्यवसाय तथा आय के आधार पर आज भारतीय समाज में पूँजीपति वर्ग, श्रमिक वर्ग और मध्यम वर्ग देखे जा सकते हैं। औद्योगिक विकास ने भारतीय गाँवों में जाति प्रथा, संयुक्त परिवार प्रथा और विवाह प्रथा कोप्रभावित किया है। औद्योगीकरण से पुराने ग्रामीण रीति-रिवाजों में तेजी से परिवर्तन आ रहे हैं। यातायात के साधनों के विकास से श्रम की गतिशीलता बढ़ रही है।

प्रश्न 4. भारत में औद्योगीकरण के प्रभावों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर–भारत में औद्योगीकरण लगभग 100 वर्ष पुराना है। औद्योगीकरण ने भारत के सामाजिक-आर्थिक जीवन में विशेष प्रभाव डाला है। औद्योगीकरण के प्रभावों को हम निम्न आधार पर स्पष्ट कर सकते हैं :

  1. नगरीकरण : औद्योगीकरण के कारण अनेक नये औद्योगिक नगर विकसित हुए हैं। कारखानों में हजारों श्रमिकों को काम मिलने लगा है। गांवों से असंख्य किसान काम की तलाश में नगरों में आते हैं। इनकी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अनेक होटलों, दुकानों, स्कूलों, कॉलेज, बैंक तथा मकानों का निर्माण व्यापक पैमाने पर होता है। जहाँ बड़े कारखाने स्थापित होते हैं, वहाँ नये-नये नगर बस जाते हैं।
  2. समाज में वर्ग-भेद : औद्योगीकरण का सबसे बड़ा प्रभाव यह है कि इससे समाज में वर्ग-भेद उत्पन्न हो जाता है। धनी और निर्धन के बीच अंतर बढ़ जाता है। श्रमिकों और पूँजीपतियों के बीच संघर्ष का कारण यह औद्योगीकरण ही है।

____3. नवीन विचारधाराओं का जन्म : औद्योगिक वर्ग संघर्ष तथा नगरीकरण से नवीन विचारधाराओं का उदय हुआ है। जिन कमरों में बड़े कारखाने हैं वहाँ साम्यवादी विचारधारा का बोलबाला है। हड़ताल और तालाबंदी की स्थिति देखने को मिलती है।

  1. गंदी और घनी बस्तियाँ : औद्योगिक नगरों में कारखानों के आस-पास गंदी बस्तियाँ बस जाती हैं। उनका युवक-युवतियों और बच्चों पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
  2. स्त्रियों के कार्यभार में कमी : मशीनों के उपयोग से स्त्रियों का काम सरल और कम परिश्रम वाला हो गया है। उन्हें भी पुरुषों के समान व्यावसायिक कार्य के लिए पर्याप्त समय मिलने लगा है।
  3. यातायात के साधनों का प्रभाव : सामाजिक संबंधों की स्थापना पर संदेशवाहन के साधनों का विशेष प्रभाव पड़ता है। विभिन्न उद्योगों में मशीनों के प्रयोग से व्यापार का विकास हुआ है। आवागमन के साधनों ने व्यापार को बढ़ाने और बाजार का विस्तार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यातायात के साधनों के कारण अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन को बढ़ावा मिला है और सांस्कृतिक आदान-प्रदान में वृद्धि हुई है।
  4. कारखाना पद्धति का विकास : बड़े कारखानों की स्थापना से कुटीर उद्योगों का पतन हुआ है और उनके स्थान पर बड़े कारखानों की स्थापना हुई जिससे वहाँ कार्य करने वाले लोगों के रहन-सहन पर प्रभाव पड़ा है। कारखानों ने संबंधित व्यक्तियों के आपसी संबंधों को औपचारिक बना दिया है।

प्रश्न 5. औद्योगीकरण का सामाजिक जीवन पर प्रभाव बताइये।

उत्तर-औद्योगीकरण ने सामाजिक जीवन को बहुत अधिक प्रभावित किया है। इसका सामाजिक संबंधों पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ता है :

___ 1. परिवार संस्था पर प्रभाव : औद्योगीकरण के फलस्वरूप परिवार क्षेत्र के बहुत से कार्यों को विभिन्न संस्थाओं और समितियों ने ले लिया है। आज संयुक्त परिवार प्रणाली का विघटन हो रहा है, उसके स्थान पर एकाकी परिवारों का चलन तेजी से बढ़ रहा है। परिवार की संरचना भी तेजी से बदल रही है। परिवार में अब कर्ता का निरंकुश शासन नहीं रहा है और न ही स्त्रियों की स्थिति इतनी निम्न है।

  1. विवाह संस्था पर प्रभाव : औद्योगीकरण के फलस्वरूप नये नगरों की स्थापना हो रही है। विवाह बंधन अब शिथिल पड़ गये हैं। विवाह जो एक धार्मिक संस्कार था, अब एक सामाजिक समझौते का रूप ग्रहण करता जा रहा है। प्रेम विवाहों का महत्व बढ़ रहा है।

 

  1. धार्मिक संस्थाओं पर प्रभाव : धर्म के प्रति लोगों की भावना कम हो रही है, वैज्ञानिक आविष्कारों ने मनुष्य को प्रकृति पर विजय प्राप्त करने की क्षमता को बढ़ाया है। राज्य भी धर्म निरपेक्षता का पालन करते हैं। धार्मिक कट्टरता अब धीरे-धीरे कम हो रही है।

___4. स्त्रियों की सामाजिक स्थिति में परिवर्तन : स्त्रियाँ अब घर की चारदीवारी से बाहर निकलकर पुरुषों के समान विभिन्न व्यवसायों को करने लगी हैं।

  1. नागरिक जीवन पर प्रभाव : प्रौद्योगिकी की उन्नति से सामाजिक जीवन पर विभिन्न प्रकार के प्रभाव पड़ रहे हैं। सामुदायिक भावना की कमी, समय का मूल्य बढ़ जाना, बीमारियों

विषमता जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।

  1. मूल्यों और विश्वास में परिवर्तन : औद्योगीकरण के फलस्वरूप जीवन के मूल्यों में कान्तिकारी परिवर्तन होते हैं। लोकतंत्र के विकास, फैशन के प्रचार, नगरीकरण, नये विश्वास और. नये विचार देखने को मिलते हैं। भारतीय जाति व्यवस्था, संस्कार व धार्मिक विश्वासों में परिवर्तन आ रहे हैं।

प्रश्न 6. औद्योगीकरण का परिवार संस्था पर क्या प्रभाव पड़ रहा है ?

उत्तर-औद्योगीकरण ने परिवार संस्था को अत्यधिक प्रभावित किया है। परिवार के बहुत से कार्यों को विभिन्न संस्थाओं और समितियों ने अपना लिया है। संयुक्त परिवारों का तेजी से विघटन हो रहा है और उनके स्थान पर एकाकी परिवारों का चलन बढ़ रहा है। औद्योगिक केन्द्रों में आवास की उचित व्यवस्था न होने से प्रवासी श्रमिकों के लिए उन स्थानों पर अपने परिवारों को रखना कठिन होता है। अतः अकेले रहने वाले श्रमिकों की संख्या बढ़ रही है। ___ अब विवाह के स्वरूप में भी परिवर्तन आ रहा है। अब सिविल मैरिज तथा देरी से विवाह करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है।

व्यक्ति कारखानों में काम करने के लिए अपने गांवों से बाहर चले जाते हैं। व्यक्तिवादिता में वृद्धि हो रही है और पारिवारिक विघटन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

__ औद्योगीकरण के कारण कम संतान को अच्छा माना जाने लगा है और परिवार नियोजन को मान्यता दी जाने लगी है। परिवार के पुराने प्रतिमान बदल गए हैं।

प्रश्न 7. भारतीय समाज पर नगरीकरण के प्रभाव की चर्चा कीजिए।

उत्तर-नगरीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति ग्रामीण क्षेत्रों से निकलकर नगरों में जाकर निवास करने लगते हैं। ग्रामीण समाज नगरीय समाज में परिवर्तित हो जाता है। नगरीकरण की प्रक्रिया द्वारा उद्योगों का विकास होता है। औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप नगरों का भी विकास होता है।

भारतीय समाज पर नगरीकरण के प्रभाव : भारतीय समाज पर नगरीकरण के निम्नलिखित प्रभाव पड़ रहे हैं :

– 1. औद्योगीकरण : नगरों के विकास हो जाने के कारण औद्योगीकरण की प्रक्रिया बढ़ गई है। ग्रामीण उद्योगों के समाप्त होने और नये उद्योग धंधों का विकास के कारण भारत में सामाजिक

गतिशीलता में वृद्धि हो गई है। कारखानों की स्थापना से गंदी बस्तियों का विस्तार, हड़ताल, बिजली, पानी, यातायात, निवास और भोजन की समस्याएँ आदि उत्पन्न हो जाती हैं।

  1. एकाकी परिवारों में वृद्धि : नगरों का विकास हो जाने से भारत में संयुक्त परिवारों का तेजी से विघटन हो रहा है। नगरों में एकाकी परिवारों को प्रोत्साहन मिलता है। संयुक्त परिवार की भावना धीरे-धीरे समाप्त हो रही है।
  2. संबंधों में औपचारिकता : नगरों की जनसंख्या अधिक होती है। आमने-सामने के घनिष्ठ और औपचारिक
  3. फैशन में वृद्धि : नगरीकरण के कारण सामाजिक जीवन में बनावट आ गई है। नगरों में चमक-दमक, सजावट व आकर्षण का महत्व बढ़ गया है। सामाजिक रहन-सहन के स्तर में परिवर्तन आ रहा है।
  4. सामाजिक विजातीयता : नगर के लोग स्थायी संबंधों की स्थापना करने में असफल रहे हैं। नगर के लोगों में पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाले संबंधों का अभाव पाया जाता है। नगरों में विभिन्न प्रकार के व्यक्ति निवास करते हैं जो उद्देश्यों तथा संस्कृति में समान नहीं होते।
  5. द्वितीयक समूहों की प्रधानता : नगरीकरण के कारण भारत में परिवार, पड़ोस आदि प्राथमिक समूह प्रभावहीन होते जा रहे हैं। वहाँ पर समितियों, संस्थाओं और विभिन्न सामाजिक संगठनों के द्वारा ही सामाजिक संबंधों की स्थापना होती है। ये संबंध अस्थायी होते हैं।
  6. सामाजिक नियंत्रण का अभाव : नगरीकरण के कारण व्यक्तिवादी विचारों और भावनाओं का विकास हुआ है। प्राचीन रीति-रिवाज प्रभावहीन हो गये हैं। रीति-रिवाजों, प्रथाओं और परंपराओं के अनुसार लोग काम करते थे, लेकिन नगरीकरण के कारण परिवार, प्रथाएँ, धर्म आदि प्रभावहीन हो गए हैं।
  7. भौतिकवादी विचारधारा का विकास : अभी तक भारत में अध्यात्मवाद की भावना पर अधिक बल दिया जाता था, परंतु नगरों का विकास होने पर लोगों में भौतिकवाद की भावना का विकास हुआ है। इस भौतिकवादी दृष्टिकोण के कारण भारत में वैयक्तिक संबंधों का अभाव पाया जाता है। समाज में सहयोग की भावना कम हो रही है और विभेदीकरण की प्रक्रिया अधिक प्रभावशाली होती जा रही है।
  8. श्रम विभाजन और विशिष्टीकरण : नगरीकरण और औद्योगीकरण के विकास के कारण आज विभिन्न देशों में कुशल कारीगरों का महत्व बढ़ रहा है। श्रम विभाजन और विशिष्टीकरण का प्रभाव बढ़ रहा है।
  9. सामाजिक गतिशीलता : नगरीकरण ने सामाजिक गतिशीलता को प्रोत्साहन दिया है। यातायात और संचार साधनों के विकसित होने से लोग काम और व्यापार के सिलसिले में एक स्थान से दूसरे स्थान पर आ-जा सकते हैं। सामाजिक गतिशीलता में तेजी से परिवर्तन हो रहा है।
  10. जातीय नियंत्रण का अभाव : अभी तक भारतीय समाज में जाति प्रथा, बाल विवाह, स्त्रियों की निम्न सामाजिक स्थिति, विवाह संस्कार, तीर्थ स्थानों की पवित्रता, ब्राह्मण, गाय, गंगा के प्रति विश्वास और धार्मिक संस्थाओं की मान्यता थी। परिवार की सामाजिक स्थिति का ध्यान रखा जाता था, लेकिन अब जातीय और सामाजिक नियंत्रण समाप्त हो रहे हैं। शिक्षा का प्रसार, विवाह संबंधी अधिनियम का पास होना, विवाह की आयु का निर्धारण आदि होने पर परिवर्तन

आ रहे हैं। सामाजिक अधिनियमों में स्त्रियों और निम्न जातियों की स्थिति में सुधार किया गया है। अस्पृश्यता कम हो रही है। । अतः स्पष्ट है कि नगरीकरण से भारत में अनेक परिवर्तन हुए हैं।

प्रश्न 8. भारत में नगरीकरण के प्रमुख कारण बताइये।

उत्तर-नगरीकरण : यह वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से ग्रामीण समाज नगरीय समाज में परिवर्तित होता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी भी देश में नगरीय जनसंख्या में वृद्धि होने लगती है। नगरीकरण सामाजिक परिवर्तन की एक जटिल प्रक्रिया है। नगरीकरण वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से नगरीय तत्वों का विकास और प्रसार होता है।

भारत में नगरीकरण के कारण :

  1. जनसंख्या में वृद्धि और औद्योगीकरण : भारत में जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। यह बढ़ी हुई जनसंख्या अपनी आजीविका की खोज में नगरों की ओर गतिशील हो जाती है।
  2. औद्योगीकरण : वैज्ञानिक आविष्कारों के कारण उद्योग-धंधों का तेजी से विकास हुआ है। इसके परिणामस्वरूप नगरों का विकास हुआ। जिन स्थानों पर उद्योग लगे, वहाँ नये नगर विकसित हो गये।
  3. यातायात और संदेश वाहन के साधनों का विकास : यातायात के साधनों के विकास के कारण जनसंख्या एक स्थान से दूसरे स्थान पर सरलता से आ-जा सकती है। संदेशवाहन के. साधनों के विकास से सामाजिक गतिशीलता और नगरों के विकास को प्रोत्साहन मिला है।
  4. शिक्षा और मनोरंजन के साधन : आधुनिक युग में शिक्षण संस्थाएँ ज्ञान का केन्द्र बनीं

और दूर-दूर स्थानों से विद्यार्थी आकर इन शिक्षा संस्थानों में शिक्षा पाने लगे। नगरों में सिनेमा, थियेटर आदि अनेक मनोरंजन के साधनों ने नगरों के विकास में सहयोग दिया।

  1. व्यापारिक क्षेत्र में उन्नति, राजनीतिक दलों का विकास, प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली का विकास, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के विकास, नये आर्थिक संगठनों के जन्म और अनुकूल भौतिक परिस्थितियों के कारण नगरीकरण की प्रवृत्ति में वृद्धि हो रही है।

 प्रश्न 9. आधुनिकीकरण को निर्धारित करने वाले तत्व बताइये।

अथवा,

आधुनिकीकरण के लिए आवश्यक शर्ते क्या हैं ?

उत्तर-पूँजीवादी विचारकों के अनुसार आधुनिकीकरण नई तकनीक और ज्ञान पर निर्भर करता है। आधुनिकीकरण को निर्धारित करने वाले कई सामाजिक-राजनीतिक कारकों का उल्लेख किया जा सकता है जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं :

  1. शिक्षा स्तर में वृद्धि होना।
  2. जनसंचार के साधनों का विकास।
  3. परिवहन और संचार साधनों का विकास।
  4. प्रजातांत्रिक राजनीतिक संस्थाओं का विकास।
  5. नगरों का विकास और जनसंख्या की गतिशीलता।
  6. संयुक्त परिवारों के स्थान पर एकाकी परिवार।
  7. जटिल श्रम विभाजन।
  8. धार्मिक प्रभाव की कमी।
  9. वस्तुओं और सेवाओं की खरीद के लिए बाजारों का विकसित होना जिससे परंपरागत वस्तु विनिमय प्रणाली की समाप्ति हो सके।

इस प्रकार हम देखते हैं कि समाजिक परिवर्तन और आधुनिकीकरण के लिए उपर्युक्त कारकों का होना आवश्यक है।

प्रश्न 10. भारत में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का विश्लेषण कीजिए।

उत्तर-ऐतिहासिक दृष्टि से आधुनिकीकरण की प्रक्रिया भारत में ब्रिटिश शासन से आरंभ हुई। यह प्रक्रिया स्वतंत्रता के पश्चात् भी जारी है। भारत में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया हमें दो भागों में अध्ययन करनी चाहिए-स्वतंत्रता से पूर्व औपनिवेशिक काल में तथा स्वतंत्रता के पश्चात्। भारत में ब्रिटिश शासन के आरंभ होने के बाद पश्चिमी विचारों का भारतीय समाज पर प्रभाव पड़ना आरंभ हुआ। इससे सामाजिक ढाँचे और सांस्कृतिक संस्थाओं पर प्रभाव पड़ा। जीवन के प्रायः सभी क्षेत्रों पर परिवर्तन दिखाई देने लगा। अंग्रेजी प्रशासन से कानून, कृषि, प्रशासन के क्षेत्र पर गहरा प्रभाव पड़ा। प्रशासन और कानून के क्षेत्र में जो नई विचारधारा सामने आई उसने परंपरागत भारतीय न्याय व्यवस्था को बदल डाला। शिक्षा और कृषि के क्षेत्र में बहुत परिवर्तन आया। उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में भारत में पश्चिमी शिक्षा प्रणाली को लागू किया गया और इसके बाद भी उसका विस्तार किया जाता रहा। लगान की नई प्रणालियाँ जमींदारी, रैयतवारी और महालवारी लागू की गई है।

प्रश्न 11. उपनिवेशवाद का हमारे जीवन पर किस प्रकार प्रभाव पड़ा है ? आप या तो किसी एक पक्ष जैसे संस्कृति और राजनीति को केन्द्र में रखकर या सारे पक्षों को जोड़कर विश्लेषण कर सकते हैं ?

उत्तर-एक स्तर पर, एक देश के द्वारा दूसरे देश पर शासन को उपनिवेशवाद माना जाता है। आधुनिक काल में पश्चिमी उपनिवेशवाद का सबसे ज्यादा प्रभाव रहा है। भारत के इतिहास से यह स्पष्ट होता है कि यहाँ काल और स्थान के अनुसार विभिन्न प्रकार के समूहों का उन विभिन्न क्षेत्रों पर शासन रहा जो आज के आधुनिक भारत को निर्मित करते हैं, लेकिन औपनिवेशिक शासन किसी अन्य शासन से अलग और अधिक प्रभावशाली रहा। इसके कारण जो परिवर्तन आए वह अत्यधिक गहरे और भेदभावपूर्ण रहे हैं। ये परिवर्तन या प्रभाव निम्न हैं:

राजनीतिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में प्रभाव : हमारे देश में स्थापित संसदीय, विधि एवं शिक्षा व्यवस्था ब्रिटिश प्रारूप व प्रतिमानों पर आधारित है। यहाँ तक कि हमारा सड़कों पर बाएँ चलना भी ब्रिटिश नियमों का अनुरकरण ही है। सड़क के किनारे रेहड़ी व गाड़ियों पर हमें ‘ब्रेड-ऑमलेट’ और ‘कटलेट’ जैसी खाने की चीजें आमतौर पर मिलती हैं। और तो और, एक प्रसिद्ध बिस्कुट निर्माता कंपनी का नाम भी ‘ब्रिटेन’ से संबद्ध है। अनेक स्कूलों में ‘नेक-टाई’ पोशाक का एक अनिवार्य हिस्सा बन गई है। कितनी पाश्चात्यता है हमारे दैनिक जीवन में उपयोग में आनेवाली इन चीजों में। हम प्रायः पश्चिम की प्रशंसा करते हैं, लेकिन अक्सर विरोध भी करते हैं। ऐसे बहुत से उदाहरण हमें अपने दैनिक जीवन में देखने को मिलते हैं। इन उदाहरणों से पता लता है कि ब्रिटिश उपनिवेशवाद अब भी हमारे जीवन का एक जटिल अंग है।

हम अंग्रेजी भाषा का उदाहरण भी ले सकते हैं, जिसके बहुआयामी और विरोधात्मक प्रभाव से हम सभी परिचित हैं। उपयोग में आने वाली अंग्रेजी मात्र भाषा नहीं है बल्कि हम देखते हैं कि बहुत से भारतीयों ने अंग्रेजी भाषा में उत्कृष्ट साहित्यिक रचनाएँ भी लिखी हैं। अंग्रेजी के ज्ञान के कारण भारत को भूमंडलीकृत अंतर्राष्ट्रीय बाजार में एक विशष स्थान प्राप्त हुआ है। लेकिन यह भी नहीं भूला जा सकता है कि अंग्रेजी आज भी विशेषाधिकारों की प्रतीक है। जिसे अंग्रेजी का ज्ञान नहीं होता है उसे रोजगार के क्षेत्र में परेशानियों का सामना करना पड़ता है। लेकिन दूसरी

ओर अंग्रेजी भाषा का ज्ञान अनेक चित समूहों के लिए लाभकारी सिद्ध हुआ है। दलितों के संदर्भ में ये बातें उपयुक्त हैं। परंपरागत व्यवस्था में दलितों को औपचारिक शिक्षा से वंचित रहना पड़ा था। अंग्रेजी के ज्ञान से अब दलितों के लिए भी अंवसरों के द्वार खुल गए हैं।

प्रश्न 12. किसी ऐसे शहर या नगर को चुनें जिससे आप भलीभांति परिचित हों, उस शहर/नगर के इतिहास, उसके उद्भव और विकास तथा समसामयिक स्थिति का विवरण.

उत्तर-अध्यापक की सहायता से छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 13. आप एक छोटे कस्बे में या बहुत बड़े शहर, या अध्रनगरीय स्थान, या एक गाँव में रहते हैं :

* जहाँ आप रहेत हैं उस जगह का वर्णन करें।

* वहाँ की विशेषताएँ क्या हैं, आपको क्यों लगता है कि वह एक कस्बा है शहर नहीं, एक है कस्बा नहीं या शहर है गाँव नहीं ?

* जहाँ आप रहते हैं क्या वहाँ कोई कारखाना है ?

* क्या लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती है ?

* क्या व्यवसाय वहाँ निर्णायक रूप में प्रभावशाली है ?

*क्या वहाँ इमारतें हैं ?

* क्या वहाँ शिक्षा की सुविधाएँ उपलब्ध हैं ?

* लोग कैसे रहते और व्यवहार करते हैं ?

* लोग किस तरह बात करते और कैसे कपड़े पहनते हैं ?

उत्तर-अध्यापक की सहायता से छात्र स्वयं करें।

*

प्रश्न 14. पूँजीवादी संरचना पर प्रकाश डालिए। 

उत्तर-उपनिवेशवाद के आयामों व तीव्रता को भलीभांति समझने के लिए यह आवश्यक है कि पूँजीवाद की संरचना को समझा जाए। पूँजीवाद ऐसी आर्थिक अर्थव्यवस्था है जिसमें उत्पादन के साधनों का स्वामित्व कुछ विशेष लोगों के हाथों में होता है और इसमें ज्यादा-से-ज्यादा लाभ कमाने पर जोर दिया जाता है। पश्चिम में पूँजीवाद का प्रारंभ एक जटिल प्रक्रिया के फलस्वरूप हुआ था। इस प्रक्रिया में मुख्य रूप से यूरोप द्वारा शेष दुनिया की खोज, गैर-यूरोपीय देशों की सपत्ति और संसाधनों का दोहन, विज्ञान और तकनीक का अद्वितीय विकास और इसके उपयोग से उद्योग एवं कृषि में रूपांतरण आदि सम्मिलित हैं।

पूँजीवाद को प्रारंभ से ही इसकी गतिशीलता, वृद्धि की संभावनाएँ, प्रसार, नवीनीकरण, तकनीक और श्रम के बेहतर उपयोग के लिए जाना गया। इन्ही गुणों के कारण पूँजीवाद अधिक-से-अधिक लाभ सुनिश्चित करता है। पूँजीवादी दृष्टिकोण से बाजार को एक वृहद-भूमंडलीकृत रूप में देखा गया। पश्चिमी उपनिवेशवाद का पश्चिमी पूँजीवाद के विकास से अन्योन्याश्रित संबंध है। यही बात औपनिवेशिक भारत के संदर्भ में भी कही जा सकती है। भारत में भी पूँजीवाद के विकास के कारण उपनिवेशवाद स्थापित हुआ है और इस प्रक्रिया के दूरगामी प्रभाव भारत को सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक संरचना पर पड़े।

प्रश्न 15. स्वतंत्रता से पूर्व प्रथम राष्ट्रपति योजना समिति का गठन कब हुआ? इसके विचाराधीन क्षेत्र कौन से थे?

उत्तर-सन् 1938. में, स्वतंत्रता के तकरीबन एक दशक पहले, राष्ट्रीय योजना समिति (नेशनल प्लानिंग कमेटी) का गठन किया गया जिसके अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू और संपादक के. टी. शाह थे। यह गठन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा किया गया था। सन् 1939 से समिति ने अपना कार्य आरंभ किया लेकिन यह ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाई क्योंकि इसके अध्यक्ष नेहरू को ब्रिटिश सरकार ने गिरफ्तार कर लिया और बाद में विश्वयुद्ध भी छिड़ गया। इन व्यवधानों के बावजूद 29 सह-समितियों का गठन हुआ जिन्हें आठ उप-समूहों के विभाजित किया गया था

और जिसके कार्य क्षेत्र में पूर्वनियोजित तरीके से, राष्ट्रीय जीवन के विभिन्न पहलू थे। समिति के विचाराधीन क्षेत्र निम्नलिखित थे:

(क) कृषि और उत्पादन के अन्य प्राथमिक साधन।

(ख) उद्योग और उत्पादन के द्वितीयक साधन।

(ग) मानवीय कारक-श्रम व आबादी।

(घ) वित्त और विनिमय। .

(ङ) सार्वजनिक उपयोगिता-आवागमन और संचार।

(च) सामाजिक सेवा-स्वास्थ्य और आवास।

(छ) शिक्षा-सामान्य और तकनीकी।

(ज) नियोजित अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भूमिका। ‘

अनेक सह-समितियों ने अपने प्रतिवेदन सौंपे और अंतरिम प्रतिवेदनों को भी समर्पित किया गया। यह सब भारत की स्वाधीनता के पूर्व हुआ। सन् 1948-49 में अनेक प्रतिवेदन प्रकाशित हुए। मार्च 1950 में भारत सरकार के प्रस्ताव पर योजना आयोग का गठन हुआ जो आयोग के क्रियाकलापों के लिए प्रमुख बिन्दुओं को परिभाषित करता है।

प्रश्न 16. आधुनिकीकरण से आप क्या समझते हैं ? क्या भारतीय समाज का आधुनिकीकरण हो रहा है?

उत्तर-आधुनिकीकरण की अवधारणा की चर्चा सर्वप्रथम लर्नर ने की। आधुनिकीकरण का संबंध विवेकीकरण की प्रक्रिया से है। दरअसल आधुनिकीकरण हम उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसके द्वारा कोई भी परम्परागत या अर्धपरम्परागत समाज उच्च तकनीकी पर आधारित समाज की ओर अग्रसर होता है और इस दरम्यान उसकी तकनीकी अवस्था, मूल्य व्यवस्था, वैचारिकी एवं सामाजिक संरचना में बदलाव आता है। आधुनिकीकरण की कई विशेषताएँ हैं जैसे-वैज्ञानिक मिजाज, बुद्धि एवं तर्कवाद, उच्च सहभागिता, सामजिक गतिशीलता, परिवर्तन की वांछनीयता में विश्वास, जोखिम उठाने की प्रवृति इत्यादि।

भारतीय समाज का आधुनिकीकरण ब्रिटिश काल से ही शुरू हो गया जब अंग्रेजों ने यहाँ नई आधुनिक शिक्षा व्यवस्था, नई प्रशासनिक व्यवस्था एवं भारतीय दण्डसंहिता आदि को लागू किया। योगेन्द्र सिंह का कहना है कि भारत एक परंपरागत, देश रहा है अतः यहाँ परंपरा का आधुनिकीकरण हो रहा है। भारत में आज आधुनिकीकरण की प्रक्रिया चल रही है क्योंकि लोगों का मिजाज वैज्ञानिक हो रहा है। परंपरागत मूल्यों की जगह आज आधुनिक मूल्यों को तेजी से अपनाया जा रहा है। भोजन के ढंग, पोषाक, आचार-व्यवहार आदि सभी क्षेत्रों में आधुनिकता के प्रभाव को देखा जा सकता है। न केवल विज्ञान एवं तकनीकी में वृद्धि हो रही है जिसके कारण वृहद पैमाने पर वस्तुओं का उत्पादन एवं क्रय-विक्रय हो रहा है। बल्कि सामाजिक धरातल पर विषमता का उन्मूलन हो रहा है। न केवल समानता एवं सामाजिक न्याय को बढ़ावा दिया जा रहा है बल्कि शांतिपूर्ण सहअस्तित्व को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। हम कह सकते हैं कि भारतीय समाज आधुनिकीकरण की प्रक्रिया से गुजर रहा है।

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