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 Bihar board class 12th notes sociology सांस्कृतिक परिवर्तन

Bihar board class 12th notes sociology

Bihar board class 12th notes sociology

सांस्कृतिक परिवर्तन

 (Cultural Change)

  स्मरणीय तथ्य 

*धर्मनिरपेक्षीकरण : यह सामाजिक परिवर्तन की व प्रक्रिया है जिसके द्वारा सार्वजनिक मामलों में धर्म का प्रभाव कम होता जाता है।

[B.M.2009A].

*आधुनिकीकरण : परंपराओं को त्यागकर नए विचारों को ग्रहण करना।

*संस्कृतिकरण : प्रभावी समूह का अधीनस्थ समूह पर प्रभाव। | एन.सी.ई.आर.टी. पाठ्यपुस्तक एवं अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

   वस्तुनिष्ठ प्रश्न

   (Objective Questions) 

  1. भारत में निम्न प्रांतों में किसमें पश्चिमीकरण की प्रक्रिया सर्वप्रथम प्रारंभ हुई ?

[M.Q.2009A]

(क) महाराष्ट्र

(ख) केरल

(ग) तमिलनाडु

(घ) पश्चिम बंगाल

उत्तर-(घ) 

  1. निम्नलिखित में किसने ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना की ?

[M.Q.2009A]

(क) दयानंद सरस्वती

(ख) ज्योतिबा फूले

(ग) बी० आर० अम्बेडकर

(घ) केशवचन्द्र सेन

उत्तर-(ख) 

  1. संस्कृतिकरण की अवधारणा किसके द्वारा दी गई है ?

(क) एम. एन. श्रीनिवास –

(ख) योगेन्द्र सिंह

(ग) योगेश अटल

(घ) श्यामाचरण दूबे

उत्तर-(क) 

  1. आर्य समाज के संस्थापक निम्नलिखित में से कौन थे? [M.0.2009A]

(क) स्वामी सहजानंद सरस्वती

(ख) स्वामी दयानंद सरस्वती

(ग) बी. एन. सरस्वती

(घ) इनमें कोई नहीं

उत्तर-(ख) 

  1. आत्मसम्मान आंदोलन के प्रणेता कौन थे?

[M.Q.2009A]

(क) राममनोहर लोहिया

(ख) रामास्वामी नायकर

(ग) कर्पूरी ठाकुर

(घ) कांशीराम

उत्तर-(ख) 

  1. धर्मनिरपेक्षता का क्या अर्थ होता है ?

[M.Q.2009A]

(क) धर्म को नहीं मानना

(ख) अपने धर्म का सम्मान करना

उत्तर-(ग) 

  1. सती प्रथा के खिलाफ आवाज सर्वप्रथम किसने उठायी? [M.Q.2009A] 

(क) बाल गंगाधर तिलक

(ख) रामकृष्ण परमहंस

(ग) स्वामी विवेकानन्द

(घ) राजाराम मोहन राय –

उत्तर-(घ) 

  1. इनमें कौन राष्ट्रवादी थे ?

[M.Q.2009A]

(क) बालगंगाधर तिलक

(ख) मदनमोहन मालवीय (ग) जवाहरलाल नेहरू

(घ). ये सभी

उत्तर-(घ) 

  1. मुस्लिम समाज में व्यापक पैमाने पर सुधार आंदोलन कार्य किसने किया ?

[M.Q.2009A]

(क) मौलाना अबुल कलाम आजाद

(ख) डॉ. जाकिर हुसैन ।

(ग) सैयद अहमद खाँ।

(घ) ए.पी.जे.अब्दुल कलाम

उत्तर-(ग) 

  1. Modernization of India Tradition नामक पुस्तक के लेखक कौन हैं ?

[M.Q.2009A]

(क) प्रो० एम० एन० श्रीनिवास .

(ख) प्रोन्टी० के ओमान

(ग) प्रो० योगेन्द्र सिंह

.(घ) प्रो० ए० आर० देसाई

उत्तर-(ग) 

  1. एम० एन० श्रीनिवास ने पश्चिमीकरण की अवधारणा की विस्तृत व्याख्या अपनी पुस्तक।

[M.Q.2009 A]

(क) मेथड इन सोशल एंथ्रोपॉलोजी में की

(ख) सोशल चेंज इन मॉडर्न इंडिया में की

(ग) द डोमिनेंट कास्ट एंड अदर एस्सेज में की

(घ) किनशिप ऑर्गेनाइजेशन इन इंडिया में की

उत्तर-(ख)

  1. एम० एन० श्रीनिवास ने 150 वर्षों के ब्रिटिश शासन के फलस्वरूप भारतीय समाज और संस्कृति में होनेवाले परिवर्तनों की व्याख्या के लिए किस शब्द का प्रयोग किया

[M.Q.2009A]

(क) औद्योगिकरण

(ख) नगरीकरण

(ग) संस्कृतिकरण

(घ) पश्चिमीकरण

उत्तर-(घ) 

  1. भारतीय समाज की कौन सबसे प्रमुख विशेषता है ?

[M.Q.2009A]

(क) अनेकता में एकता

(ख) वर्ण व्यवस्था

(ग) जजमानी व्यवस्था

(घ) उपर्युक्त सभी उत्तर-(घ)

14. संस्कृतिकरण की अवधारणा किसने विकसित की?

[M.Q.2009A] (क) एच. सी. दूबे

(ख) एम. एन. श्रीनिवास

(ग) परेटो

उत्तर-(ख) 

  1. पश्चिमीकरण की अवधारणा किसने विकसित की ?

[M.Q.2009A]

(क) एम. एन. श्रीनिवास

(ख) एच. सी. दूबे

(ग) मर्टन

(घ) परेटो

उत्तर-(क) 

  1. भारत में निम्नलिखित धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों में से जनसंख्या के आधार पर सबसे बड़ा कौन है ?

[M.Q.2009A]

(क) ईसाई

(ख) सिक्ख

(ग) बौद्ध

(घ) मुस्लिम

उत्तर-(घ) 

  1. धर्मनिरपेक्षीकरण के आवश्यक तत्त्व निम्न में कौन-से हैं ? [M.Q.2009A] 

(क) तार्किकता

(ख) विभेदीकरण की प्रक्रिया

(ग) धार्मिक संकीर्णता का हास

(घ) उपर्युक्त सभी

उत्तर–(घ) 

  1. ब्रह्म समाज के संस्थापक कौन थे?

[M.Q.2009A]

(क) दयानंद सरस्वती

(ख) स्वामी सहजानंद

(ग) विवेकानंद

(घ) राजाराम मोहन राय

उत्तर-(घ) 

  1. परंपराओं को त्यागकर नए विचारों को ग्रहण करना कहलाता है

(क) कार्य निरपेक्षीकरण

(ख) आधुनिकीकरण

(ग) संस्कृतिकरण

(घ) समाजीकरण

उत्तर-(ख) 

  1. विधवा विवाह संघ की स्थापना किसने की थी? 

(क) महादेव गोविंद रानाडे

(ख) स्वामी दयानंद

(ग) केशवचन्द्र सेन

(घ) राजा राम मोहन राय

उत्तर-(क) 

  1. ब्रह्म समाज की स्थापना कब की गई थी ? 

(क) 1832

(ख) 1840

(ग) 1825

(घ) 1828

उत्तर-(घ) 22. मूल शंकर किसके बचपन का नाम था ? (क) गाँधीजी

(ख) स्वामी दयानन्द (ग) राजा राम मोहन राय

(घ) केशवचन्द्र

उत्तर-(ख) 

  1. ‘सर्वोदय’ शब्द किसकी देन है ? 

(क) स्वामी विवेकानन्द

(ख) राजा राम मोहन राय

(ग) स्वामी दयानन्द

(घ) गाँधीजी

उत्तर-(घ) 

(ख) रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:

(1) अलीगढ़ आंदोलन के नेता ………… थे।

(2) रामकृष्ण मिशन की स्थापना सन् …………… में की गई थी।

(3) भारत में सुधार आंदोलन के प्रवर्तक ………….. थे।

(4) नवीन समाज की स्थापना ……………. ने की थी।

(5) सिक्ख धर्म में उत्पन्न बुराइयों को समाप्त करने के लिए ………. की स्थापना की गई।

उत्तर-(1). सर सैय्यद अहमद खाँ, (2) 1857, (3) राजा राम मोहन राय, (4)

केशवचन्द्र सेन, (5) शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति। 

 

(ग) निम्नलिखित कथनों में सत्य एवं असत्य बताइये: 

(1) गाँधीजी ने 1922 में छुआछूत की भावना को दूर करने के लिए अस्पृश्यता आंदोलन

चलाया था।

(2) “संसार के अन्य देशों से हमारा अलगाव हमारे अध: पतन का कारण है” यह कथन

स्वामी विवेकानन्द के हैं।

(3) श्रीमती एनी बेसेंट 1835 ई० में भारत आयीं और उन्होंने थियोसोफिकल सोसाइटी का

नेतृत्व सँभाला।

(4) रामकृष्ण परमहंस कोलकाता के काली मंदिर के मुख्य पुजारी थे।

(5) राजा राम मोहन राय ने आर्य समाज की स्थापना की थी।

उत्तर-(1) सत्य, (2) सत्य, (3) असत्य, (4) सत्य, (5) असत्य।

 

 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

(Very Short Answer Type Questions) 

प्रश्न 1. प्राचीन काल में सुधारवादी आंदोलन का आधार क्या था ? 

उत्तर-प्राचीनकाल में सुधारवादी आंदोलन का आधार धर्म था जिसे लेकर अनेक आंदोलन हुए।

प्रश्न 2. विधवा विवाह संघ की स्थापना किसने की थी? 

उत्तर-विधवा विवाह संघ की स्थापना न्यायाधीश महादेव गोविन्द रानाडे ने 1861 में की थी।

प्रश्न 3. ब्रह्म समाज की स्थापना किसने और कब की थी ? 

उत्तर-ब्रह्म समाज की स्थापना राजा राममोहन राय ने सन् 1828 में की थी।

प्रश्न 4. आर्य समाज की स्थापना किसने और कब की थी ? 

उत्तर-सन् 1875 में मुम्बई में स्वामी दयानन्द ने आर्य समाज की स्थापना की थी।

प्रश्न 5. थियोसोफिकल सोसायटी का मुख्य उद्देश्य क्या था ? 

उत्तर-समस्त विश्व के धर्मों में मूलभूत एकता स्थापित करना इसका मुख्य उद्देश्य था।

प्रश्न 6. नवीन समाज की स्थापना किसने की थी ? 

उत्तर-नवीन समाज की स्थापना केशवचन्द्र सेन ने की थी।

प्रश्न 7. नारी उत्थान हेतु किस विदेशी महिला ने काम किया ? 

उत्तर-भारत में नारी उत्थान के लिए डॉ. एनी बेसेंट ने कार्य किया।

प्रश्न 8. मूलशंकर किसके बचपन का नाम था ? 

उत्तर-मूलशंकर स्वामी दयानन्द के बचपन का नाम था।

 प्रश्न 9. ‘दी सर्वेट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी’ की स्थापना किसने और कब की थी?

उत्तर-गोपालकृष्ण गोखले, ने सन् 1905 में दि सर्वेट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी (भारत सेवक समाज) की स्थापना की थी।

प्रश्न 10. भारत में सुधार आन्दोलन के प्रवर्तक कौन थे? 

उत्तर-भारत में सुधार आंदोलन के प्रवर्तक राजा राममोहन राय थे।

प्रश्न 11. भारत के किन्हीं तीन समाज सुधारकों के नाम लिखिए। 

उत्तर-(i) राजा राममोहन राय, (ii) स्वामी दयानन्द, (iii) स्वामी विवेकानन्द।

प्रश्न 12. किन्हीं तीन सामाजिक आंदोलनों के नाम लिखिए। 

उत्तर-(i) भक्ति आंदोलन, (ii) स्वदेशी आंदोलन, (iii) ब्राह्मण विरोधी नाडार आंदोलन। .

 प्रश्न 13. गाँधी जी ने हरिजनों (दलितों) के लिए अस्पृश्यता आंदोलन कब चलाया था?

उत्तर-गाँधी जी ने 1922 में छूआछूत की भावना को दूर करने के लिए अस्पृश्यता आंदोलन चलाया था।

प्रश्न 14. ‘सर्वोदय’ शब्द किसकी देन है ? इसका एक मुख्य सिद्धांत बताएँ।

उत्तर-‘सर्वोदय’ शब्द की रचना महात्मा गाँधी ने की थी। इसका प्रमुख सिद्धांत यह है कि सिद्धांतवादी व्यक्ति दूसरों को जिंदा रखने के लिए स्वयं मर जाता है।

प्रश्न 15. सिक्ख धर्म में उत्पन्न बुराइयों को समाप्त करने के लिए कौन सी समिति की स्थापना की गई ?

उत्तर-सिक्ख धर्म में उत्पन्न बुराइयों को समाप्त करने के लिए शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति की स्थापना की गई।

प्रश्न 16. अलीगढ़ आंदोलन के नेता कौन थे?

उत्तर-सर सैय्यद अहमद खाँ अलीगढ़ आंदोलन के नेता थे।

प्रश्न 17. रामकृष्ण मिशन की स्थापना कब और किसने की थी ? 

उत्तर-सन् 1897 में स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी।

प्रश्न 18. आधुनिकीकरण से क्या आशय है ? 

उत्तर-परंपराओं को त्याग कर नए विचारों, तथ्यों को ग्रहण करना आधुनिकीकरण कहलाता है। प्रश्न 19. संस्कृतिकरण से आप क्या समझते हैं ?

[B.M.2009 A]

उत्तर-संस्कृतिकरण एक प्रक्रिया है जिसमें एक निम्न हिन्दू जाति या कोई आदिवासी या अन्य समूह अपनी परंपरा, रीति-रिवाज, सिद्धांत और जीवन शैली को एक उच्च और द्विज जाति के नियमों में परिवर्तित कर देता है। इससे जाति अनुक्रम के अंदर बदलाव आता है परंतु जाति व्यवस्था अपने आप में नहीं बदलती।

प्रश्न 20. पश्चिमीकरण से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर-प्रसिद्ध समाजशास्त्री श्रीनिवास के अनुसार, “इस शब्द में डेढ़ सौ वर्षों से अधिक के अंग्रेजी शासन के फलस्वरूप भारतीय समाज और संस्कृति में आये परिवर्तन तथा विभिन्न स्तरों पर प्रौद्योगिकी, संस्थाओं, विचारधारा तथा मूल्यों में आए परिवर्तन सम्मिलित हैं।” –

 प्रश्न 21. धर्म-निरपेक्षीकरण से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर-धर्म-निरपेक्षीकरण सामाजिक परिवर्तन की वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सार्वजनिक मामलों में धर्म का प्रभाव कम होता जाता है तथा उसका स्थान व्यावहारिक दृष्टि ले लेती है। जब धर्म-निरपेक्षीकरण विकसित होता है तब प्राकृतिक और सामाजिक जीवन को समझने के नजरिये के रूप में धर्म का स्थान विज्ञान ले लेता है।

प्रश्न 22. पर-संस्कृतिकरण से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर-जब एक प्रभावी समूह अपनी संस्कृति का प्रभाव अधीनस्थ समूह पर इस प्रकार डालता है कि अधीनस्थ समूह का अस्तित्व प्रभावी समूह की संस्कृति में घुल-मिल जाता है तो यह प्रक्रिया पर, संस्कृतिकरण कहलाती है।

प्रश्न 23. भारतीय समाज में प्रभु-जाति का क्या अर्थ होता है ?

उत्तर-प्रसिद्ध समाजशास्त्री श्रीनिवास के अनुसार, “स्पज में प्रमुखता प्राप्त करने के लिए किसी जाति के पास पर्याप्त मात्रा में स्थानीय कृषि योग्य भूमि, संख्या बल तथा उस क्षेत्र के सामाजिक अनुक्रम में ऊँचा स्थान होना चाहिए।” भूमि अधिकार, संख्या बल तथा. पारंपरिक प्रतिष्ठा के अतिरिक्त शिक्षा प्रशासनिक पद और आय के नगरीय स्रोतों का भी ग्रामीण क्षेत्रों में शक्ति और प्रतिष्ठा प्राप्त करने में योगदान रहता है। प्रभु-जातियों का अस्तित्व स्थानीय होता है। •

 प्रश्न 24. ऐतिहासिक दृष्टि से संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-ऐतिहासिक दृष्टि से संस्कृतिकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जो विभिन्न जातियों की प्रतिष्ठा में परिवर्तन लाती है। सांस्कृतिक परिवतन की प्रक्रिया न केवल जीवन शैली का अनुकरण करने की अनुमति देती है बल्कि वह नये विचारों और मूल्यों को भी सामने लाती है। मध्यकाल.का भक्ति आंदोलन इसका एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। इस आंदोलन ने जातिगत अत्याचारों को झकझोर दिया । और सामाजिक न्याय और समानता के मूल्यों का प्रचार-प्रसार किया।

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Type Questions) 

प्रश्न 1. समाज सुधार से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर-जब समाज के प्रतिष्ठित नागरिकों द्वारा स्वस्थ सामाजिक जीवन के लिए सामाजिक चलन में परिवर्तन करने का प्रयत्न किया जाता है, तब उसे समाज सुधार कहा जाता है। दूसरे शब्दों में समाज को स्वस्थ व प्रगतिशील बनाने के कार्य को समाज सुधार कहा जाता है तथा जो इन कार्यों को करते हैं उन्हें समाज सुधारक कहा जाता है। सामाजिक कुरीतियाँ, कुप्रथाएँ, धार्मिक अन्धविश्वास तथा सामाजिक भेदभाव आदि से समाज को मुक्त कराना एक सुधारक का प्रमुख लक्ष्य होता है।

 प्रश्न 2. समाज कल्याण का क्या अर्थ है ?

उत्तर-सामाज कल्याण के अन्तर्गत उन संगठित सामाजिक सेवाओं व प्रयासों को सम्मिलित किया जाता है जिनके द्वारा समाज के सभी सदस्यों को अपने व्यक्तित्व को संतुलित रूप से विकसित करने के अधिक अवसर व सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं। सामाजिक कल्याण सेवाएँ विकास की अन्य सेवाओं जैसे स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा, आवास, श्रमिक कल्याण आदि की पूरक हैं।

प्रश्न 3. उन्नीसवीं शताब्दी के भारतीय समाज में स्त्रियों से सम्बन्धित कौन-सी मुख्य सामाजिक कुरीतियों का प्रचलन था ?

उत्तर-उन्नीसवीं शताब्दी के भारतीय समाज में स्त्रियों से सम्बन्धित जिन प्रमुख सामाजिक कुरीतियों का प्रचलन था, वे थीं-सती, विधवापन, बाल (कन्या) विवाह, कन्या वध, पर्दा प्रथा, आसान तलाक, बहुपत्नी विवाह, नारी अशिक्षा, नारी सामाजिक विषमता, पैतृक सम्पत्ति पर पुत्रियों का अधिकार न होना आदि।

प्रश्न 4. समाज सुधारकों ने जाति प्रथा का विरोध क्यों किया था ? राष्ट्रीय आंदोलन के समय जाति प्रथा की संकीर्णता में कमी किस प्रकार आई थी?

अथवा, –

 भारतीय समाज से छुआछूत को समाप्त करने में बी. आर. अम्बेडकर की क्या भूमिका रही?

उत्तर-I. विरोध क्यों किया ? समाज सुधारकों ने जाति प्रथा का विरोध निम्न कारणों से किया था :

  1. समाज सुधारक मानते थे कि सभी मानव एक ही ईश्वर की संतान हैं तथा सभी मानव बराबर हैं।
  2. जाति प्रथा समाज में ऊँच-नीच को जन्म देती है जो प्रजातंत्र तथा मानवीय भावना के प्रतिकूल है।
  3. जाति प्रथा के कारण समाज में फूट, घृणा तथा वैमनस्य को बढ़ावा मिलता है।
  4. जाति प्रथा की आड़ में तथाकथित उच्च वर्ग के लोग अपने लिए विशेष अधिकारों की व्यवस्था किये हैं जो समाज सुधारकों की धारणा के अनुसर गलत था। .
  5. जाति प्रथा ने समाज में छुआछूत जैसे कलंक को जन्म दिया जो हिन्दू समाज के लिए हानिकारक होने के साथ-साथ समाज सुधारकों के विचारानुसार ईश्वर एवं मानवता दोनों के विरुद्ध महान अपराध था। जाति प्रथा ने भारतीय समाज को विभाजित कर दिया था। अस्पृश्यता एक सामाजिक कलंक था। – II. राष्ट्रीय आंदोलन ने जाति प्रथा को कमजोर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। महात्मा गाँधी और डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने अस्पृश्यता के खिलाफ संघर्ष किया और उन्होंने दलित वर्ग के उत्थान के लिए अपना सारा जीवन लगा दिया। गाँधी जी ने ‘भारतीय हनिजन संघ’ की स्थापना की थी तो डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने “अखिल भारतीय दलित वर्ग” संगठन बनाया था। राष्ट्रीय आंदोलन ने विभिन्न वर्ग के लोगों के अंतर को समाप्त कर उन्हें एक-दूसरे के समीप ला दिया। सार्वजनिक सभाओं और रैलियों का आयोजन किया गया और उनमें सभी जातियों के लोगों ने समान रूप से भाग लिया। यद्यपि आज भी जाति प्रथा का समाज में प्रचलन है लेकिन इसे समाप्त करने के प्रयास जारी हैं। यह मानना उचित होगा कि शहरों में पूर्णतया जाति प्रथा की कुछ बुराइयाँ समाप्त हो चुकी हैं।

प्रश्न 5. वर्तमान समाज में स्त्रियों की दशा की समीक्षा कीजिए। वे कौन-सी सामाजिक बुराइयाँ हैं जिनसे आज भी स्त्रियाँ ग्रसित हैं ?

उत्तर-1. स्वतंत्रता के बद नये भारत के संविधान लागू हो जाने के साथ ही देश में कानूनन स्त्री और पुरुष की स्थिति समान हो गयी है। भारतीय संविधान लिंग के आधार पर नर-नारी में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करता।

  1. अब स्त्रियों तथा पुरुषों को समान काम के लिए समान वेतन का सिद्धांत कानूनन अपना लिया गया है।
  2. नारी शिक्षा को पूरे जोरों से प्रोत्साहन दिया जा रहा है। अनेक राज्यों एवं संघीय प्रदेशों में नारी शिक्षा पूर्णतया निःशुल्क है। नारियों को घरेलू शिक्षा ग्रहण करने की अधिक सुविधाएँ हैं।
  3. नारी राजनीति में समान रूप में भाग ही नहीं ले सकती बल्कि अब तो अनेक चुनाव क्षेत्र तथा पद स्त्रियों के लिए रिजर्व भी कर दिये गये हैं। वे देश की विभिन्न स्थानीय सरकारों, राज्य सरकारों एवं केन्द्र सरकारों में सफल पदाधिकारियों, मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों तथा प्रधानमंत्री के पद पर कार्य कर चुकी हैं, कर रही हैं तथा भविष्य में भी कर सकती हैं।
  4. सामाजिक दृष्टिकोण में भी बदलाव आ रहा है। पुत्र के जन्म के लिए अब बहुत ज्यादा अंधा उत्साह नहीं है। पुत्रियों तथा पुत्र बराबर माने जाने लगे हैं। संतान के नाम के आगे पिता के साथ-साथ माँ का भी नाम लिखा जाने लगा है। ____
  5. पैतृक सम्पत्ति पाने का अधिकार पुत्रों के साथ-साथ पुत्रियों को भी है। आज की नारी अपने अधिकारों के लिए बहुत सगज है। वह न केवल नागरिक (सिविल) क्षेत्रों में बल्कि नौ-सेना, वायु-सेना, पुलिस तथा स्थल सेना में भी भर्ती हो रही है।

विद्यमान नारी बुराइयाँ : आज के समाज में भी कुछ बुराइयाँ विद्यमान हैं। उनमें सबसे प्रमुख है-दहेज प्रथा। दहेज के नाम पर नवविवाहितों की आत्महत्या या जलाये जाने की खबरें प्रतिदिन समाचार पत्रों में पढ़ने को मिलती है। ..

आज की अधिकतर स्त्रियाँ आर्थिक दृष्टि से पुरुषों पर निर्भर हैं। पैतृक सम्पत्ति में भाई अपने स्वार्थ के लिए बहनों के हितों की हत्या कर देते हैं। पुत्र के जन्म को अभी भी प्राथमिकता दी जाती है। आसान तलाक तथा बहुपत्नी विवाह कुछ लोगों में प्रचलित है।

प्रश्न 6. संस्कार और पंथनिरपेक्षीकरण पर लघु निबंध लिखें। (NCERT T.B. Q.4)

उत्तर-वर्तमान में हम सामाजिक-सांस्कृतिक व्यवहार को एक सरलीकृत उत्तर देने का प्रयास करते हैं जबकि इनके अपने निर्धारित सत्य हैं। इस प्रकार से जटिलता को सरल बनाने की प्रवृत्ति उचित नहीं हैं। यथार्थ में इससे ये भी भ्राति उत्पन्न होती है कि भारत में एक ही तरह की परंपराओं का समुच्चय है अथवा था। हमने पहले ही देखा है कि भारत में इन परंपराओं की पहचान दो मुख्य गुणों से होती है बाहुलता एवं तर्क-वितर्क की परंपरा। भारतीय परंपराओं में निरंतर परिवर्तन होते रहे हैं और उन्हें पुनर्परिभाषित करने की सामाजिक-बौद्धिक चेष्टा कभी नहीं रुकी है। हमने इसका साक्ष्य 19वीं सदी के समाज सुधारकों और उनके आंदोलनों में देखा। ये प्रक्रियाएँ आज भी जीत हैं। ___

आधुनिक पश्चिम में पंथनिरपेक्षीकरण का मतलब ऐसी प्रक्रिया है जिसमें धर्म के सभी प्रतिपादक विचारकों की मान्यता रही है कि आधुनिक समाज अधिक-से-अधिक पंथनिरपेक्ष होता है। पंथनिरपेक्ष करण के सभी सूचक मानव में धार्मिक व्यवहार, उनका धार्मिक संस्थानों से संबंध (जैसे चर्च में उनकी उपस्थिति), धार्मिक संस्थानों का सामाजिक तथा भौतिक प्रभाव और लोगों के धर्म में विश्वास करने की सीमा को विचार में लेते हैं। यह स्वीकार किया जाता है कि पंथनिरेपक्षीकरण के सभी सूचक आधुनिक समाज में धार्मिक संस्थानों और लोगों के बीच बढ़ती दूरी के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं।

प्रश्न 7. जाति और पंथनिरपेक्षीकरण पर लघु निबंध लिखें। (NCERTT.B. Q.5)

उत्तर-जैसे-जैसे आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में तेजी आई और विकास की गति बढ़ी, धर्म तथा विभिन्न प्रकार के उत्सवों, त्योहारों को मनाना, विभिन्न धार्मिक कृत्यों, विभिन्न समारोहों के आयोजनों, इन समारोहों से जुड़े निषेध विभिन्न प्रकार के दान. एवं उनके मूल्य इत्यादि में निरंतर परिवर्तन आया विशेष रूप से यह परिवर्तन निरंतर बढ़ते और परिवर्तित होते हुए नगरीय क्षेत्र में अधिक दिखाई देता है।

Grammar

इस परिवर्तनात्मक दबाव में जनजातीय पहचान की अवधारणा में एक प्रतिक्रिया हुई। एक जनजाति के होने के नाते पारंपरिक व्यवहारों और उनमें निहित मूल्यों के संरक्षण को आवश्यक समझा जाने लगा। आधुनिकीकरकण के तहत जो नारे बुलंद किए गए थे-जैसे, ‘संस्कृति समाप्त, पहचान समाप्त’-उसे एक प्रकार का उत्तर मिला जिसे समाज में हो रहे पारंपरिक चेतना के नवजागरण के रूप में देखा जाता है। त्योहारों का समूहिक तौर पर मनाया जाना तथा रीति-रिवाजों के प्रति रुझान को इसी सामाजिक प्रतिक्रिया के रूप में समझा जा सकता है। वर्तमान जनजातीय समाज में यह बहुत स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

पहले पारंपरिक तरीके से सामाजिक समूह त्योहारों को मनाते थे। उस समूह की सामाजिक मान्यता भी होती थी और उसमें एक प्रकार की अनौपचारिकता भी थी। अब उनके स्थान पर त्योहार मनाने के लिए समितियाँ बनने लगी हैं जिसकी संरचना में एक प्रकार की आधुनिकता होती है। परंपरागत रूप से, त्योहारों के दिन मौसम-चक के आधार पर तय किए जाते थे। अब उत्सव के दिन औपचारिक तरीके से सरकारी कैलेंडर के द्वारा निश्चित कर दिए जाते हैं।

इन त्योहारों को मनाने में झंडे की कोई विशेष डिजाइन नहीं होती, न ही कोई मुख्य अतिथि के भाषण होते हैं न ही मिस उत्सव प्रतियोगिता होती थी लेकिन अब ये सब नई आवश्यकताएँ बन गई हैं। जैसे-जैसे तार्किक अवधारणाएँ एवं विश्व दृष्टि जनजातियों के दिमाग में जगह बनाती जा रही है वैसे-वैसे पुराने व्यवहार और समारोह पर प्रश्न उठते जा रहे हैं।

 प्रश्न 8. पश्चिमीकरण ने भारत में राजनीतिक विचारों को किस प्रकार प्रभावित किया ?

अथवा,

भारत में पश्चिमीकरण के प्रभावों की व्याख्या कीजिए। [B.M.2009 A]

उत्तर-राष्ट्रीयता (Nationalism) तथा लोकतंत्र (Democracy) इन दो विचारों का उदय पश्चिम में हुआ और शीघ्र ही इन विचारों ने सारे संसार को प्रभावित किया। भारत में ये विचार पश्चिमीकरण के माध्यम से आये। राष्ट्रीयता की भावना का उदय उन्नीसवीं शताब्दी में हुआ। परंपरागत भारतीय समाज में फैली हुई कुरीतियों को दूर करने के लिए प्रयास तेज हुए। 1828 ई. में बंगाल में राजा राममोहन राय द्वारा ‘ब्रह्म समाज’ की स्थापना की गई। 1875 में स्वामी दयानंद सरस्वती ने ‘आर्य समाज’ की स्थापना की।

भारत में सुधारवादी आंदोलनों का उद्देश्य, भारतीय समाज में फैली हुई कुरीतियों; जैसे-जाति प्रथा, सती प्रथा, महिलाओं की निम्न स्थिति, कन्या हत्या, अशिक्षा, बाल विवाह, दहेज प्रथा आदि को दूर करना था। यूरोप के इतिहास और अंग्रेजी साहित्य के अध्ययन ने शिक्षित व्यक्तियों में भारतीयता, राष्ट्रीयता और राजनैतिक चेतना उत्पन्न की। धीरे-धीरे स्वतंत्रता की माँग जोर पकड़ने लगी। भारत में राष्ट्रीयता, लोकतंत्रीय राज व्यवस्था और धर्म निरपेक्षता के आदर्श भारत में ऐतिहासिक संदर्भ में आये और इनसे सांस्कृतिक चेतना और आधुनिकता की भावना का उदय हुआ।

प्रश्न 9. धर्म-निरपेक्षीकरण से क्या अभिप्राय है ? इसने भारतीय समाज को किस प्रकार प्रभावित किया ?

– अथवा,

धर्म-निरपेक्षीकरण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।

B.M.2009A]

उत्तर-धर्मनिपेक्षीकरण (Secularisation) : यह सामाजिक परिवर्तन की वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सार्वजनिक मामलों में धर्म का प्रभाव कम होता चला जाता है और उसका स्थान व्यावहारिक दृष्टि ले लेती है। जब धर्म निरपेक्षीकरण का विकास होता है तो प्राकृतिक और सामाजिक जीवन को समझन के लिए धर्म के स्थान पर विज्ञान का प्रयोग होने लगता है। ___

धर्म निरपेक्षीकरण की भावना का विकास भारत के पश्चिमी संस्कृति के संपर्क में आने से विकसित हुई। यातायात और संचार के साधनों के विकास से इसमें तीव्रता आई। औद्योगीकरण और नगरीकरण ने इसे गतिशील बनाया। जैसे-जैसे औद्योगीकरण की गति तीव्र हुई, ग्रामीण क्षेत्रों

के लोग निकलकर नगरों की ओर आये। शिक्षा के प्रसार-प्रचार ने धर्म निरपेक्षीकरण की भावना को आगे बढ़ाया।

धर्म निपेक्षीकरण ने भारतीयों को बहुत अधिक प्रभावित किया है। धर्म निरपेक्षीकरण नगरीय तथा शिक्षित समूहों में अधिक क्रियाशील है। भारत में सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से होने वाले परिवर्तनों से धर्म निरपेक्षीकरण अधिक तीव्र हुआ है। स्वतंत्रता के लिए संघर्ष में महात्मा गाँधी द्वारा चलाये गए सविनय अवज्ञा आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन आदि ने जनशक्ति को संगठित किया और उसमें व्याप्त छुआछूत की भावना को कम करने का कार्य किया।

प्रश्न 10. समाजशात्रियों द्वारा आधुनिकीकरण के स्थान पर पश्चिमीकरण को क्यों अधिक महत्व प्रदान किया गया ? समझाइये।

उत्तर-पश्चिमीकरण : इस शब्द को प्रसिद्ध समाजशास्त्री एम. एन. श्रीनिवास ने लोकप्रिय बनाया। इसका प्रयोग समकालीन भारत में सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन के स्रोतों का विश्लेषण करने के लिए किया गया। इसके द्वारा भारत में अंग्रेजों के दो सौ वर्ष के शासन के फलस्वरूप भारतीय समाज और संस्कृति में आए परिवर्तन तथा विभिन्न स्तरों पर प्रौद्योगिकी, संस्थाओं, विचारधारा तथा मूल्यों में आए परिवर्तन शामिल हैं। आधुनिकीकरण के स्थान पर पश्चिमीकरण को समाजशास्त्रियों ने अधिक महत्व प्रदान किया क्योंकि इस शब्द में तटस्थता का गुण है। यह अच्छे या बुरे का संकेत नहीं करता। पश्चिमीकरण शब्द भारतीय संस्कृति पर अंग्रेजों के प्रभाव की व्याख्या करने के लिए उपयुक्त शब्द है।

प्रश्न 11. अंग्रेजों ने भारत में कौन-कौन से सुधार किये ?

उत्तर-1. अठारहवीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में कृषि-व्यवस्था में नई प्रणालियों को अपनाया गया। ये प्रणालियाँ थीं-जमींदारी, रैयतवाड़ी और महालवाड़ी। भूमि के क्षेत्रों तथा स्वामित्व के विवरण का लेखा-जोखा रखने के लिए भूकर मानचित्र बनाए गए।

  1. अंग्रेजों ने सेना को आधुनिक बनाने, पुलिस और प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार करने के लिए आधुनिक न्यायिक व्यवस्था को लागू किया।
  2. देश में परंपरागत शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन किया गया। देश में स्कूलों, कॉलेजों की स्थापना की गई। शिक्षा जो अब तक केवल सीमित लोगों के लिए थी, अब गरीब-अमीर सभी के लिए सुलभ हो गई।
  3. अंग्रेज अपने साथ मुद्रण यंत्र लाये जिससे समाचार पत्रों, पुस्तकों, पत्रिकाओं का प्रकाशन संभव हुआ।
  4. सन् 1852 में मुंबई, कोलकाता और चेन्नई में तीन विश्वविद्यालय आरंभ किए गए जिससे उच्च शिक्षा के रास्ते खुल गये।

प्रश्न 12. मानवतावाद की अवधारणा से क्या अभिप्राय है ?

उत्तर-पश्चिमीकरण के द्वारा जो नये विचार और सिद्धांत सामने आये उनमें सबसे महत्वपूर्ण विचार था मानवतावाद। यह सभी मनुष्यों के कल्याण के साथ संबंधित था। इसमें किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए, चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, आयु तथा लिंग का क्यों न हो। स्वतंत्रता, समानता और धर्म निरपेक्षता की अवधारणाएँ मानवतावाद की मूल अवधारणा में सम्मिलित हैं।

वास्तव में पश्चिमीकरण में मानवतावाद निहित है जिसने उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में भारत में एक नई चेतना को जन्म दिया और कई सुधारों को संभव बनाया। भारत में उस समय फैली हुई सती प्रथा, कन्या-शिशु हत्या तथा दास प्रथा पर रोक लगाने के लिए आवाज उठाई गई। राजा राममोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, दयानंद सरस्वती आदि समाज सुधारकों ने समाज को एक नई दिशा प्रदान की। राजा राममोहन राय के प्रयासों से सती प्रथा का अंत करने के लिए कानून बनाए गये।

प्रश्न 13, पश्चिमीकरण का व्यवसायी वर्ग पर किस प्रकार का प्रभाव पड़ा ?

उत्तर-पश्चिमीकरण का व्यवसायी वर्ग पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा। जिन क्षेत्रों में अंग्रेजों का प्रभाव अधिक था, उन क्षेत्रों में व्यवसायी मध्य वर्ग तथा व्यापारी वर्ग का उदय हुआ। पारंपरिक ढंग के व्यवसायों और कार्य पद्धति से भिन्न व्यवसायों को जन्म मिला। इनमें कार्य करने वाले लोगों में दक्षता और कुशलता की आवश्यकता थी। ये व्यवसायी सांस्कृतिक दृष्टि से पश्चिमी रंग में रंगे हुए नहीं थे परंतु पश्चिमी संस्कृति से उनका निकट का संबंध था। भविष्य में इसी वर्ग से व्यावसायिक लोगों और शिक्षित समूहों की एक नई पीढ़ी का उदय हुआ।

प्रश्न 14. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए। [B.M.2009 A]

उत्तर-समाजशास्त्री एम. एन. श्रीनिवास के अनुसार, “संस्कृतिकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोई निम्न हिन्दू जाति या कोई जनजाति अथवा अन्य समूह किसी उच्च और प्रायः द्विज जाति की दशा में अपने रीति-रिवाज, कर्मकांड, विचारधारा और जीवन पद्धति को बदलता है।”

संस्कृतिकरण में नए विचारों और मूल्यों को ग्रहण किया जाता है। निम्न जातियाँ अपनी स्थिति को ऊपर उठाने के लिए ब्राह्मणों के तौर-तरीकों को अपनाती हैं और अपवित्र समझे जाने वाले मांस-मदिरा के सेवन को त्याग देती हैं। इन कार्यों से ये निम्न जातियाँ स्थानीय अनुक्रम में ऊँचे स्थान की अधिकारी हो गई हैं। इस प्रकार संस्कृतिकरण नये और उत्तम विचार, आदर्श मूल्य, आदत तथा कर्मकांडों को अपनी जीवन स्थिति को ऊँचा और परिमार्जित बनाने की क्रिया है। संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में स्थिति में परिवर्तन होता है। इसमें संरचनात्मक परिवर्तन नहीं होता। जाति व्यवस्थी अपने आप नहीं बदलती। संस्कृतिकरण की प्रक्रिया जातियों में ही नहीं बल्कि जनजातियों और अन्य समूहों में भी पाई जाती है। भारतीय ग्रामीण समुदायों में संस्कृतिकरण की प्रक्रिया प्रभु-जाति की भूमिका का कार्य करती हैं। यदि किसी क्षेत्र में ब्राह्मण प्रभु-जाति है तो वह ब्राह्मणवादी विशेषताओं को फैला देगा। जब निचली जातियाँ ऊँची जातियों के विशिष्ट चरित्र को अपनाने लगती हैं तो उनका कड़ा विरोध होता है। कभी-कभी ग्रामों में इसके लिए झगड़े भी हो जाते हैं। संस्कृतिकरण की प्रक्रिया बहुत पहले से चली आ रही है। इसके लिए ब्राह्मणों का वैधीकरण आवश्यक है।

प्रश्न 15. पाश्चात्यीकरण की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।

उत्तर-समाजशास्त्री डॉ. श्रीनिवास ने पश्चिमीकरण की अवधारणा को लोकप्रिय बनाया है। पश्चिमीकरण के संदर्भ में उनका विचार है कि “पश्चिमीकरण शब्द अंग्रेजों के शासनकाल के 150 वर्षों से अधिक के परिणामस्वरूप भारतीय समाज व संस्कृति में होने वाले परिवर्तनों को व्यक्त करता है और इस शब्द में प्रौद्योगिक संस्थाओं, विचारधारा, मूल्यों आदि के विभिन्न स्तरों में घटित होने वाले परिवर्तनों का समावेश रहता है।”

पश्चिमीकरण का तात्पर्य देश में उस भौतिक सामाजिक जीवन का विकास होता है जिसके अंकुर पश्चिमी धरती पर प्रकट हुए और जो पश्चिमी व यूरोपीय व्यक्तियों के विस्तार के साथ-साथ विश्व के विभिन्न कोनों में अविराम गति से बढ़ता है।

पश्चिमीकरण को आधुनिकीकरण भी कह सकते हैं लेकिन अनेक समानताएँ होते हुए भी पश्चिमीकरण और आधुनिकीकरण दो अलग-अलग प्रक्रियाएँ हैं। पश्चिमीकरण के लिए पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति से संपर्क होना आवश्यक है। पश्चिमीकरण एक तटस्थ प्रक्रिया है। इसमें किसी संस्कृति के अच्छे या बुरे होने का आभास नहीं होता। भारत में पश्चिमीकरण के फलस्वरूप जाति प्रथा में पाये जाने वाले ऊँच-नीच के भेद समाप्त हो रहे हैं। नगरीकरण ने जाति प्रथा पर सीधा प्रहार किया है। यातायात के साधनों के विकसित होने से, अंग्रेजी शिक्षा के प्रसार से सभी जातियों का रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाज आदि एक जैसे हो गये हैं। महिलाओं पर पाश्चात्य शिक्षा और संस्कृति का व्यापक प्रभाव पड़ा है। विवाह की संस्था में अब लचीलापन देखने को मिलता है। विवाह पद्धति में परिवर्तन आ रहे हैं। बाल विवाह का बहिष्कार बढ़ रहा है। अन्तर्जातीय

विवाह नगरों में बढ़ रहे हैं। संयुक्त परिवार प्रथा का पतन भी देखने को मिल रहा है। रीति-रिवाज और खान-पान भी पश्चिमीकरण से प्रभावित हुआ है।

प्रश्न 16. धर्म-निरपेक्षीकरण से क्या अभिप्राय है ?

उत्तर-आज व्यक्तिगत व्यवहार और कार्यों में तार्किकता का महत्व तेजी से बढ़ रहा है। जब धर्म का स्थान विज्ञान ले लेता है तो व्यक्ति के सोचने का ढंग बदल जाता है। धर्म-निरपेक्षीकरण से अभिप्राय उस सामाजिक प्रवृत्ति से है जिसके अंतर्गत धार्मिक प्रधानता और परंपरागत व्यवहारों में तार्किकता और व्यावहारिकता लाने का प्रयास किया जाता है।

धर्म-निरपेक्षीकरण से धार्मिक कट्टरपन व संकीर्णता दूर होती है और दूसरे धर्म के प्रति सहनशीलता और उदारता की भावना पनपने लगती है। धार्मिक व्यवहारों और क्रियाओं को पारलौकिक या आध्यात्मिक उद्देश्यों से नहीं अपितु सामाजिक उद्देश्यों व व्यावहारिक लाभ के लिए किया जाता है।

स्वतंत्रता के लिए किए गए संघर्ष में कई ऐसी ताकतों को बल मिला जिन्होंने धर्म-निरपेक्षीकरण को आगे बढ़ाया। महात्मा गांधी द्वारा प्रारंभ किए गए सविनय अवज्ञा आंदोलन ने जनशक्ति को संगठित किया। हिन्दू समाज में प्रचलित अस्पृश्यता जैसी सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध जनता को प्रेरित करने से धर्म-निरपेक्षीकरण को बल मिला। धर्म-निरपेक्षीकरण की प्रक्रिया ने पवित्रता और अपवित्रता की धारणा को काफी कमजोर किया है। नगरों में जाति और धर्म के प्रभाव की तुलना में पेशे और व्यवसाय का अधिक प्रभाव रहता है। धर्म-निरपेक्षीकरण के बढ़ते प्रभाव के कारण जाति और धर्म के रूढ़िवादी तत्व धीरे-धीरे अपनी प्रतिष्ठा खो रहे हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1. ब्रहन सामाज ने सुधार हेतु क्या कदम  उठाये विवेचना कीजिये .

अथवा, भारतीय समाज सुधार आन्दोलन के प्रणेता राजा राममोहन राय थे। विवेचना कीजिए।

उत्तर–सन् 1828 में राजा राममोहन राय ने ‘ब्रह्म-समाज’ की स्थापना की थी जिसका उद्देश्य हिन्दू समाज को भिन्न-भिन्न धार्मिक अन्धविश्वासों से मुक्त कराना था। यह एक ऐसा समाज था जिसमें वे सब व्यक्ति इकट्ठे थे जो एक ईश्वर में विश्वास करते थे और मूर्ति पूजा का विरोध करते थे। राजा राममोहन राय ने अपना एक निजी भवन इस सभा के लिए दे दिया था। ब्रह्म समाज इस प्रकार से ब्राह्मणों का समाज था जिसमें अन्य जातियों के व्यक्ति नहीं जा सकते थे। ब्रह्म समाज में प्रमुख समाज सुधारक तथा उनके सुधारात्मक प्रयत्नों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है :

राजा रमामोहन राय और ब्रह्म समाज : राजा राममोहन राय को भारतीय समाज-सुधार आन्दोलन का प्रणेता माना जाता है। वे बंगाल के बर्दवान जिल के राधानगर ग्राम में एक ब्राह्मण जमींदार के घर उत्पन्न हुए थे। ये अरबी, फारसी, संस्कृति से इतने प्रभावित हुए कि इनके वस्त्र

राजा राममोहन राय ने अपने उपर्युक्त लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए लेटिन, ग्रीक, हिब्रू आदि भाषाओं का भी ज्ञान प्राप्त किया। कोलकाता में जैन, हिन्दू, मुस्लिम तथा विभिन्न मतावलम्बियों के साथ धार्मिक विषयों पर उनका विचार-विमर्श चलता रहता था। इसी काल में नौकरी से अवकाश प्राप्त करने के बाद उन्होंने आत्मीय सभा तथा वेदान्त कॉलेज की स्थापना की।

राजा राममोहन राय ने हिन्दू समाज में प्रचलित मूर्ति पूजा तथा अनेक देवताओं की आराधना का बरोध किया। उन्होंने एकेश्वरवाद का प्रचार किया और यह घोषणा की कि उनके विचार

सवि… हिन्दू ग्रंथों पर आधारित हैं। अंधविश्वासों के कारण लोग इन प्राचीन विचारों को भूल गए हैं। ब्रह्म समाज के माध्यम से राजा राममोहन राय ने अपनी विचारधारा को देश के विभिन्न

भागों में पहुँचाया। उन्होंने अंग्रेजी शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया। उन्होंने कलकत्ता (कोलकाता) में संस्कृत कॉलेज की स्थापना का विरोध किया। राजा राममोहन राय की इच्छा थे कि भारतवर्ष में ऐसी शिक्षा हो जिससे नवयुवक गणित तथा प्राकृतिक विज्ञान इत्यादि आधुनिक विषयों का अध्ययन कर सकें।

जाति प्रथा के दोषों तथा स्त्रियों की पतित अवस्था को दूर करने के लिए राजा राममोहन राय विशेष रूप से प्रयत्नशील रहे थे। वे सती-प्रथा के विरुद्ध थे। हिन्दू विधवा की दशा से दु:खी होकर वे स्त्रियों के लिए ऐसे नियमों की व्यवस्था करना चाहते थे जिससे उन्हें उत्तराधिकार प्राप्त हो सके और विधवाओं की स्थिति सुधर सके। राजा राममेहन राय ने कुछ परिस्थितियों में विधवा विवाह को भी प्रोत्साहन देने का प्रयत्न किया। वे स्त्रियों की शिक्षा को उचित मानते थे। उन्होंने ब्रिटिश सरकार से सती प्रथा के विरुद्ध कानून बनाने के लिए अनुरोध किया। उन्हीं के प्रयत्नों के फलस्वरूप सती प्रथा के विरुद्ध कानून बना। राजा राममोहन राय धार्मिक संकीर्णता में विश्वास नहीं करते थे। राजनीति और न्याय-व्यवस्था में वे धर्म को महत्व नहीं देते थे।

राजा राममोहन राय ने “राजनीतिक क्षेत्र में भी नवीन विचारों का प्रतिपादन किया।” वे स्वतंत्रता को समाज के लिए आवश्यक समझते थे। उनके विचारों का प्रभाव भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विकास पर भी दिखाई देता है। वे भारत के लोगों को राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में तथा शिक्षा और विज्ञान की दृष्टि से पश्चिम के प्रगतिशील देशों के निवासियों की तरह बनाना चाहते थे। वे जमींदारी प्रथा के विरोधी थे। देश के किसानों की स्थिति से वे बड़े चिन्तित थे। उन्होंने भूमि का किराया और लगान कम करने का ब्रिटिश सरकार से अनुरोध किया। उन्होंने अंग्रेज जिलाधिकारी के स्थान पर कम वेतन देकर भारतीय जिलाधिकारी की नियुक्ति का अनुरोध किया। भारतीय सेना और न्यायपालिका का भारतीयकरण करने के लिए कहा। अपने जीवन के अन्तिम काल में राजा राममोहन राय इंग्लैंड चले गए, जहाँ सन् 1833 में उनकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि राजा राममोहन राय भारत में सुधार आन्दोलन के प्रवर्तक थे और ब्रह्म समाज आधुनिक युग का प्रथम सुधारवादी संगठन था।

प्रश्न 2. समाज सुधार आंदोलन के इतिहास में आर्य समाज आंदोलन की भूमिका लिखिए।

अथवा,

आर्य समाज के विषय में आप क्या जानते हैं ? संक्षेप में लिखिए।

उत्तर-भारत में समाज सुधार आन्दोलन के इतिहास में आर्य समाज तथा उसके प्रवर्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती का नाम अविस्मरणीय रहेगा। महर्षि दयानन्द का जन्म सन् 1824 में गुजरात के एक धनी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनका बचपन का नाम मूलशंकर था। इनके पिता भगवान शिव के भक्त थे और वेदशास्त्रों के ज्ञाता थे। मूलशंकर ने बचपन से ही वेद ग्रंथों का अध्ययन किया था। शिवरात्रि को मूलशंकर ने अपने पिता की आज्ञा से व्रत रखा। इस व्रत के अनुसार उन्हें रातभर शिवमूर्ति के सामने जागरण करना था। रात के समय पूजा के पश्चात् शिव के सभी भक्त ऊँघने लगे किन्तु बालक मूलशंकर, जो अपने नियम पद दृढ़ था, निरंतर जागता रहा। अर्धरात्रि की शांति में एक चूहा चुपचाप आया और शिवलिंग पर घूमकर चढ़ा हुआ नैवेद्य खाने लगा। यह देखकर मूलशंकर आश्चर्यचकित रह गए। उनके मन में पाखंड और अंधी पूजा के प्रति घृणा उत्पन्न हो गई। मूलशंकर को यह अनुभव हुआ कि रात भर जागने और पत्थर पर फल-फूल चढ़ाने से परमात्मा की प्राप्ति नहीं होती। उसने अनुभव किया कि जो शिव छोटे चूहे को भी अपने ऊपर चढ़ा प्रसाद खाने से नहीं रोक सकता वह अपने सेवकों की क्या रक्षा करेगा ? उसी समय उन्होंने अपने मन में वास्तविक ज्ञान प्राप्त करने का संकल्प किया और सच्चे भगवान की खोज प्रारंभ करने का निश्चय किया।

मूलशंकर के पिता मूलशंकर के विचारों को समझकर उनका विवाह करने की व्यवस्था करने लगे। 21 वर्ष की आयु में जब उनके विवाह का पूर्ण प्रबन्ध हो गया तो वे घर से निकल गए

भागों में पहुँचाया। उन्होंने अंग्रेजी शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया। उन्होंने कलकत्ता (कोलकाता) में संस्कृत कॉलेज की स्थापना का विरोध किया। राजा राममोहन राय की इच्छा थे कि भारतवर्ष में ऐसी शिक्षा हो जिससे नवयुवक गणित तथा प्राकृतिक विज्ञान इत्यादि आधुनिक विषयों का अध्ययन कर सकें।

जाति प्रथा के दोषों तथा स्त्रियों की पतित अवस्था को दूर करने के लिए राजा राममोहन राय विशेष रूप से प्रयत्नशील रहे थे। वे सती-प्रथा के विरुद्ध थे। हिन्दू विधवा की दशा से दु:खी होकर वे स्त्रियों के लिए ऐसे नियमों की व्यवस्था करना चाहते थे जिससे उन्हें उत्तराधिकार प्राप्त हो सके और विधवाओं की स्थिति सुधर सके। राजा राममेहन राय ने कुछ परिस्थितियों में विधवा विवाह को भी प्रोत्साहन देने का प्रयत्न किया। वे स्त्रियों की शिक्षा को उचित मानते थे। उन्होंने ब्रिटिश सरकार से सती प्रथा के विरुद्ध कानून बनाने के लिए अनुरोध किया। उन्हीं के प्रयत्नों के फलस्वरूप सती प्रथा के विरुद्ध कानून बना। राजा राममोहन राय धार्मिक संकीर्णता में विश्वास नहीं करते थे। राजनीति और न्याय-व्यवस्था में वे धर्म को महत्व नहीं देते थे।

राजा राममोहन राय ने “राजनीतिक क्षेत्र में भी नवीन विचारों का प्रतिपादन किया।” वे स्वतंत्रता को समाज के लिए आवश्यक समझते थे। उनके विचारों का प्रभाव भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विकास पर भी दिखाई देता है। वे भारत के लोगों को राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में तथा शिक्षा और विज्ञान की दृष्टि से पश्चिम के प्रगतिशील देशों के निवासियों की तरह बनाना चाहते थे। वे जमींदारी प्रथा के विरोधी थे। देश के किसानों की स्थिति से वे बड़े चिन्तित थे। उन्होंने भूमि का किराया और लगान कम करने का ब्रिटिश सरकार से अनुरोध किया। उन्होंने अंग्रेज जिलाधिकारी के स्थान पर कम वेतन देकर भारतीय जिलाधिकारी की नियुक्ति का अनुरोध किया। भारतीय सेना और न्यायपालिका का भारतीयकरण करने के लिए कहा। अपने जीवन के अन्तिम काल में राजा राममोहन राय इंग्लैंड चले गए, जहाँ सन् 1833 में उनकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि राजा राममोहन राय भारत में सुधार आन्दोलन के प्रवर्तक थे और ब्रह्म समाज आधुनिक युग का प्रथम सुधारवादी संगठन था।

प्रश्न 2. समाज सुधार आंदोलन के इतिहास में आर्य समाज आंदोलन की भूमिका लिखिए।

अथवा,

आर्य समाज के विषय में आप क्या जानते हैं ? संक्षेप में लिखिए।

उत्तर-भारत में समाज सुधार आन्दोलन के इतिहास में आर्य समाज तथा उसके प्रवर्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती का नाम अविस्मरणीय रहेगा। महर्षि दयानन्द का जन्म सन् 1824 में गुजरात के एक धनी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनका बचपन का नाम मूलशंकर था। इनके पिता भगवान शिव के भक्त थे और वेदशास्त्रों के ज्ञाता थे। मूलशंकर ने बचपन से ही वेद ग्रंथों का अध्ययन किया था। शिवरात्रि को मूलशंकर ने अपने पिता की आज्ञा से व्रत रखा। इस व्रत के अनुसार उन्हें रातभर शिवमूर्ति के सामने जागरण करना था। रात के समय पूजा के पश्चात् शिव के सभी भक्त ऊँघने लगे किन्तु बालक मूलशंकर, जो अपने नियम पद दृढ़ था, निरंतर जागता रहा। अर्धरात्रि की शांति में एक चूहा चुपचाप आया और शिवलिंग पर घूमकर चढ़ा हुआ नैवेद्य खाने लगा। यह देखकर मूलशंकर आश्चर्यचकित रह गए। उनके मन में पाखंड और अंधी पूजा के प्रति घृणा उत्पन्न हो गई। मूलशंकर को यह अनुभव हुआ कि रात भर जागने और पत्थर पर फल-फूल चढ़ाने से परमात्मा की प्राप्ति नहीं होती। उसने अनुभव किया कि जो शिव छोटे चूहे को भी अपने ऊपर चढ़ा प्रसाद खाने से नहीं रोक सकता वह अपने सेवकों की क्या रक्षा करेगा ? उसी समय उन्होंने अपने मन में वास्तविक ज्ञान प्राप्त करने का संकल्प किया और सच्चे भगवान की खोज प्रारंभ करने का निश्चय किया।

मूलशंकर के पिता मूलशंकर के विचारों को समझकर उनका विवाह करने की व्यवस्था करने लगे। 21 वर्ष की आयु में जब उनके विवाह का पूर्ण प्रबन्ध हो गया तो वे घर से निकल गए

और ब्रह्मचारी मूलशंकर संन्यासी बन गए। संन्यासी के रूप में उन्होंने बड़े-बड़े पंडितों से शिक्षा ग्रहण की। वे हिमालय की कन्दराओं में घूमे और अन्त में स्वामी बिरजानन्द के संरक्षण में उन्होंने वैदिक जीवन-पद्धति के आधार पर भारतीय समाज का नव-निर्माण करने का संकल्प लिया। सन् 1875 में उन्होंने बम्बई (मुंबई) में आर्य समाज की स्थापना की जिसके उद्देश्य और कार्यक्रम आर्य समाज के निम्नलिखित दस सिद्धान्तों में संकलित हैं :

  1. सब सत्य विद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं उन सबका आदि मूल परमेश्वर है।
  2. ईश्वर, सच्चिदानन्द स्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनन्त, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वन्यायी, अजर, अमर, अभय, नित्य पवित्र और सृष्टिकर्ता है, उसी की उपासना करना योग्य है।
  3. वेद सब सत्य विधाओं का मूल है। वेद का पढ़ना-पढ़ाना और सुनना-सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है।
  4. सत्य को ग्रहण करने और असत्य को छोड़ने में सर्वदा उद्यत रहना चाहिए।
  5. सब काम धर्मानुसार अर्थात् सत्य और असत्य का विचार करके करने चाहिए।
  6. संसार का उपकार करना अर्थात् शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति करना इस समाज का मुख्य उद्देश्य है। .
  7. सबसे प्रीतिपूर्वक, धर्मानुसार, यथायोग्य व्यवहार करना चाहिए।
  8. अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि करनी चाहिए।
  9. प्रत्येक को अपनी ही उन्नति से संतुष्ट नहीं रहना चाहिए बल्कि सबकी उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिए।
  10. सब मनुष्यों को सामाजिक सर्वहितकारी नियम पालने में परतंत्र रहना चाहिए और प्रत्येक हितकारी नियम में सब स्वतंत्र रहें।

एक ओर जहाँ धार्मिक क्षेत्र में महर्षि दयानन्द ने विभिन्न प्रकार के सुधार को प्रोत्साहन दिया वहाँ दूसरी ओर सामाजिक क्षेत्र में भी उनके प्रयत्न सराहनीय रहे। वे स्त्री-शिक्षा, विधवा-विवाह, ईसाई और मुसलमान इत्यादि दूसरे धर्मों के व्यक्तियों की शुद्धि और हिन्दू-धर्म में दीक्षा पर बल देते थे। हिन्दू समाज से निकले हुए, लोभ या जबरदस्ती से विधर्मी बने हुए अनेक व्यक्तियों को पुनः हिन्दू समाज में वापस लाने की दृष्टि से शुद्धि आंदोलन एक विशेष महत्व का विषय है। उन्होंने पर्दा प्रथा, विदेश यात्रा निषेध के विरुद्ध प्रचार-प्रसार किया। भाषा की दृष्टि से वे हिन्दी को व्यावहारिक रूप में राष्ट्र भाषा के रूप में मान्यता देने वाले प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने अपने समस्त ग्रन्थ हिन्दी में लिखे। भारतीय समाज में हजारों वर्षों की गुलामी और फूट से राष्ट्रीय भावना का लोप हो गया था। स्वामी दयानन्द ने विदेशी शासन के युग में भी निर्भीकता के साथ स्वधर्म, स्वभाषा और स्वराष्ट्र का उद्घोष किया। उन्होंने राष्ट्रीयता की भावना का वास्तव में सूत्रपात किया। श्री अरविन्द घोष ने स्वामी दयानन्द की प्रशंसा में ठीक ही कहा है कि “स्वामी जी परमात्मा की इस विचित्र सृष्टि के एक अद्वितीय योद्धा तथा मनुष्य और मानवीय संस्थाओं का संस्कार करने वाले अद्भुत शिल्पी थे।”

महर्षि दयानन्द के प्रयत्नों के फलस्वरूप भारत के विभिन्न क्षेत्रों में आर्य समाज की स्थापना हुई। अनेक विद्वान और समाजसेवी महर्षि दयानन्दं के अनुयायी बन गए। स्थान-स्थान पर आर्य समाज ने डी. ए. वी. कॉलेज और स्कूल खोले, कन्या पाठशालाएँ स्थापित की और गुरुकुलों का संचालन किया। अछूतों के उद्धार की दृष्टि से भी आर्य समाज ने महत्वपूर्ण कार्य किया। लाला लाजपतराय, लाला हंसराज, स्वामी श्रद्धानन्द, पंडित लेखराज इत्यादि महान विभूतियों ने अपने त्याग

और बलिदान से आर्य समाज के सुधार कार्यों में निरंतर वृद्धि की। स्वतंत्रता संग्राम में जिन लोगें ने कांग्रेस के माध्यम से बड़े-बड़े सत्याग्रह और आन्दोलन किए उनमें अधिकांश लोग आर्य समाजी ही थे। इस प्रकार धार्मिक क्षेत्र में, सामाजिक क्षेत्र में, शिक्षा के क्षेत्र में, राष्ट्रीयता और

उपेक्षित वर्गों के कल्याण के क्षेत्र में आर्य समाज के विकास का युग भारत में समाज सुधार आन्दोलन का स्वर्ण युग कहा जा सकता है।

प्रश्न 3. समाज सुधार आंदोलन के रूप में रामकृष्ण मिशन की भूमिका की विवेचना

कीजिए।

उत्तर-विश्व-प्रसिद्ध स्वामी विवेकानन्द के गुरु रामकृष्ण के नाम पर स्थापित रामकृष्ण मिशन समाज सुधार आन्दोलन के क्षेत्र में अपना पृथक् अस्तित्व रखता है। यह मिशन शिक्षा तथा समाज सेवा के क्षेत्र में निःस्वार्थ भाव से मानव मात्र के कल्याण के लिए क्रियाशील है। रामकृष्ण परमहंस सन् 1835 में बंगाल के एक गाँव में जन्मे थे। बचपन में ही इन्हें संगीत और कविता का बहुत शौक था। ये इतने कल्पनाशील थे कि देवी-देवताओं की पूजा करते समय समाधिस्थ हो जाते थे। वे नाटकों में अभिनय भी करते थे। अभिनय में उन्हें परमानन्द का अनुभव प्राप्त होता था। रामकृष्ण परमहंस कलकत्ता (कोलकाता) के काली मंदिर के मुख्य पुजारी थे। वे काली के अनन्य भक्त थे। निरंतर देवी के ध्यान योग में वे लगे रहते थे। रामकृष्ण की आत्मिक शक्ति इतनी अधिक बढ़ गई थी कि उन्होंने देवी का, राम और कृष्ण का साक्षात्कार किया था। कुछ दिन के लिए वे अपने गाँव गए और विवाह के पश्चात् पुनः मंदिर में आ गए। यहां उन्होंने वैष्णव धर्म, बौद्ध धर्म, ईसाई धर्म, इस्लाम इत्यादि के विभिन्न सिद्धान्तों का प्रयोग किया। रामकृष्ण ने सामान्य लोगों के लाभ की दृष्टि से कहानियों के माध्यम से दर्शनशास्त्रों की व्याख्या की है। वे आधुनिक परिस्थितियों के संदर्भ में धार्मिक रूपरेखा प्रस्तुत करना चाहते थे। उन्होंने घोषणा की कि दु:खी मानव की सेवा करना ही वास्तव में परमात्मा की पूजा करना है। प्रत्येक मनुष्य में ईश्वर विद्यमान है; नम्रता, स्वार्थ, त्याग, पवित्रता और सबसे अधिक मनुष्य मात्र से प्रेम-भावना ही सच्ची भक्ति है। रामकृष्ण परमहंस ने अपनी आत्मिक-शक्ति और व्यावहारिक अध्यात्मवाद से एक ऐसे महापुरुष की सृष्टि की जिसने भारत की दासता के दिनों में भी पाश्चात्य संसार के प्रत्येक छोटे-बड़े लोगों को इतना प्रभावित किया कि वे भारतमाता के उस सपूत के सामने नतमस्तक हो गए। यह महापुरुष स्वामी विवेकानन्द थे।

स्वामी विवेकानन्द ने अपनी पहले भेंट में रामकृष्ण प्रमहंस से पूछा था कि क्या आपने ईश्वर देखा है ? उत्तर मिला, “हाँ, मैंने उसी प्रकार ईश्वर को देखा है जिस प्रकार मैं तुम्हें देख रहा हूँ।” परमहंस ने विवेकानन्द को बताया कि यदि मनुष्य परमात्मा से मिलने के लिए हृदय से तड़पने लगे तो वह निश्चित ही परमात्मा के दर्शन कर सकता है। स्वामी विवेकानन्द परमहंस के शिष्य बन गए।

स्वामी विवेकानन्द ने सन् 1886 में अपने गुरु की मृत्यु के पश्चात् रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। विवेकानन्द की तीव्र बुद्धि, तेज और वाक् शक्ति से मोहित होकर देश-विदेश के अनेक लोग इस मिशन के सदस्य बन गए। विवेकानन्द ने अमेरिका में विश्व धर्म सम्मेलन में वेदान्त पर जो भाषण दिया वह भारतवर्ष के गौरव के इतिहास में स्मरणीय रहेगा। इस भाषण से मुग्ध होकर अनेक दार्शनिक, विद्वान इनके भक्त हो गए। यूरोप और अमेरिका के अनेक स्थानों पर विवेकानन्द ने भारतीय संस्कृति का प्रचार और प्रसार किया। विवेकानन्द केवल धार्मिक पुजारी नहीं थे। उन्होंने आध्यात्मिकता और राष्ट्रीयता का अद्भुत समन्वय करके भारतवासियों के मन में अपने देश, अपने धर्म, अपनी संस्कृति के प्रति निष्ठा और आस्था उत्पन्न की। वास्तव में हजारों वर्षों के पश्चात् स्वामी विवेकानन्द ने विदेशों में भारतीय सभ्यता और संस्कृति को पुनः प्रतिष्ठा प्राप्त कराने का सफल प्रयास किया। वे ढोंग और आडंबर नहीं करते थे। उन्होंने भारतवासियों को निद्रा त्यागने और जागृत होकर अपने देश को अपनी शक्ति और सामर्थ्य के आधार पर एक उन्नत राष्ट्र के रूप में खड़ा करने का आह्वान किया।

प्रश्न 4. मुस्लिम, सिक्ख तथा पारसियों में समाज सुधार की भावना की विवेचना कीजिए।

उत्तर-मुसलमानों में सुधार आंदोलन : अब तक के हिन्दू धार्मिक नेताओं के समाज सुधार प्रयत्नों को देखकर मुसलमान लोगों में भी एक नयी चेतना और जागृति आई। अत: मुस्लिम समाज

की धार्मिक और सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के उद्देश्य से कई आन्दोलन प्रारंभ हुई उन्नीसवीं सदी में उदारतावादी सुधारक सर सैयद अमद खाँ ने मुसलमानों को एक सूत्र में संगठित करने तथा पिछड़ेपन की स्थिति सुधारने के लिए सन् 1875 में एक शिक्षा संस्था की स्थापना की जो कि बाद में सन् 1910 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के नाम से विश्वविख्यात हुई। इनके द्वारा ‘मुस्लिम समाज सुधार’ नामक एक पत्रिका भी जारी की गई। इन्हीं को मुसलमानों में सामान्य रूप से तथा विशेषकर मुसलमान स्त्रियों और लड़कियों में शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने का श्रेय प्राप्त है। इतनी अधिक जटिल पर्दा प्रथा होते हुए भी, इनकी महिलाओं में शिक्षा प्रचार हो जाना वास्तव में एक कठिन कार्य था।

अलीगढ़ आन्दोलन के अतिरिक्त मुसलमानों में “अहमदिया आंदोलन” मिर्जा गुलाम अहमद कादिमी के नेतृत्व में प्रारंभ हुआ। इन्होंने ‘कदियानी सम्प्रदाय’ की नींव डाली तथा सभी धर्मों में सुधार को अपना लक्ष्य बनाया। इस आन्दोलनं का प्रभाव पंजाब में अधिक पड़ा सन् 1885 में अंजुमन-ए-हिमायत-इस्लाम की स्थापना हुई जिसका उद्देश्य मुसलमानों की सामाजिक, नैतिक व बौद्धिक उन्नति करना था। सन् 1894 में इसी प्रकार की एक अन्य संस्था स्थापित की गई जिसका नाम नदवाद-उल-उलेमा था। इन सुधार आन्दोलनों का प्रभाव बीसवीं सदी के राजनीति पर भी पड़ा। खान अब्दुल गफ्फार खान के नेतृत्व में ‘खुदाई खिदमतगार’ आन्दोलन चलाया गया और मुस्लिम लीग ने मुसलमानों में एकता, जागृति और सुधार का सबसे अधिक प्रचार-प्रसार किया। इतना ही नहीं, लीग के नेतृत्व में मुसलमानों में जो धार्मिक व राजनैतिक जागृति आई उसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान के इस्लामिक गणतंत्र की स्थापना हुई।

सिक्खों में सुधार आन्दोलन : हिन्दू तथा. मुस्लिम धर्म की भाँति सिक्ख धर्म में भी अनेक बुराइयाँ प्रवेश कर गई थीं, गुरुद्वारों में भ्रष्टाचार का प्रवेश हो चुका था। इसे दूर करने के लिए ‘शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्ध समिति’ (Siromani Gurudwara Prabandh Samiti) की स्थापना की गई। इस समिति ने सिक्खों में अनेक कारगर सुधार कार्यक्रम चलाए जो आज तक थोड़े-बहुत परिवर्तनों के साथ सिक्ख समाज की धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक व नैतिक प्रगति में सहायक हो रहे हैं। शिक्षा के क्षेत्र में सिक्खों द्वारा देश भर में स्कूल, कॉलेज तथा उच्च शिक्षा-संस्थाएँ स्थापित की गई हैं और इस प्रकार शिक्षा के प्रचार-प्रसार का कार्य तीव्र गति से चल रहा है। अमृतसर का खालसा कॉलेज विख्यात है।

इतना ही नहीं, सिक्ख जनता में राजनीतिक चेतना का दृढतापूर्वक विकास करने एवं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहने में भी गुरुद्वारा प्रबन्ध समिति का कार्य प्रशंसनीय है, आर्थिक दृष्टि से कमजोर सिक्ख लोगों को समय-समय पर आर्थिक सहायता भी प्रदान की जाती है। दिल्ली में 1894 के दंगा पीड़ित सिक्ख भाई-बहनों के लिए विभिन्न क्षेत्रीय व केन्द्रीय गुरुद्वारा प्रबन्ध समितियों ने पर्याप्त आर्थिक सहायता प्रदान की है। इस प्रकार सिक्ख समाज में समाज-सुधार व समाज-सेवा दोनों ही कार्यक्रम तालमेल से चल रहे हैं। आशा है कि भविष्य में इस दिशा में और प्रगति हो सकेगी।

पारसियों में सुधार आंदोलन : पारसी धर्म भी सुधारवादी आन्दोलनों से अछूता नहीं रहा है। इस धर्म के समाज-सुधारकों में दादाभाई नौरोजी, जे. बी. वाचा. एच. जी. बंगाली, करशेद जी रुस्तम जी आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। सन् 1851 में पारसी लोगों के संरक्षण में ‘मजदायासन सभा’ नामक सुधारवादी संगठन की स्थापना की गई। इस संगठन का उद्देश्य पारसी धर्म को पुनर्जीवित करना एवं उसमें समाज सुधार लाना था। वर्ष 1900 में धार्मिक सुधार हेतु पारसियों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया। पारसी समाज-सुधारकों ने ‘जरथुष्ट्र धर्म’ को पुनर्जागृत किया तथा इसमें अनेक सुधार लाए। शिक्षा के क्षेत्र में भी पारसियों का विशेष योगदान रहा है, आज अनेक महत्वपूर्ण शिक्षा-संस्थानों के माध्यम से पारसी लोग शिक्षा में अपनी पकड़

मजबूत बना रहे हैं, परिणामस्वरूप आज पारसी जनता सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक आदि दृष्टि से प्रगति की ओर अग्रसर हो रही है।

प्रश्न 5. संस्कृतिकरण पर एक आलोचनात्मक लेख लिखें। (NCERTT.B.D. 1)

उत्तर-संस्कृतिकरण एक ऐसी प्रक्रिया का संकेतक है जिसमें व्यक्ति सांस्कृतिकदृष्टि से प्रतिष्ठित समूहों के रीति-रिवाज एवं नामों का अनुकरण कर अपनी प्रस्थिति को उच्च बनाते हैं। संदर्भ प्रारूप अधिकतर आर्थिक रूप में बेहतर होता है। दोनों ही स्थितियों में यह संकेत विद्यमान है कि जब व्यक्ति धनवान होने लगते हैं तो उनकी आकांक्षाओं और इच्छाओं को प्रतिष्ठित समूह भी स्वीकारने लगते हैं। संस्कृतिकरण की अवधारणा की अनेक स्तरों पर आलोचना की गई है।

(i) सामाजिक गतिशीलता निम्न जाति का ऊर्ध्वगामी परिवर्तन करती है : सर्वप्रथम, इस अवधारणा की आलोचना में यह कहा जाता है कि इसमें सामाजिक गतिशीलता निम्न जाति का सामाजिक स्तरीकरण में ऊर्ध्वगामी परिवर्तन करती है। इस प्रक्रिया से कोई संरचनात्मक परिवर्तन न होकर केवल कुछ व्यक्तियों का स्थिति परिवर्तन होर है। दूसरे शब्दों में इसका अर्थ यह है कि कुछ व्यक्ति, असमानता पर आधारित सामाजिक संरचना में, अपनी स्थिति में सुधार कर लेते हैं लेकिन इससे समाज में व्याप्त असमानता व भदभाव नहीं हो जाते।

(ii) जीवनशैली के अनुकरण की इच्छा : दूसरा, आलोचनात्मक पक्ष यह है कि अवधारणा की विचारधारा में उच्च जाति की जीवनशैली उच्च एवं निम्न जाति के लोगों की जीवनशैली निम्न है। अत: उच्च जाति के लोगों की जीवनशैली का अनुकरण करने की इच्छा को वांछनीय और प्राकृतिक मान लिया गया है।

(iii) असमानता एवं अपवर्जन की बात : तीसरी आलोचना यह है कि संस्कृतिकरण की अवधारणा एक ऐसे प्रारूप को सही ठहराती है जो दरअसल असमानता और अपवर्जन पर आधारित है। इससे संकेत मिलता है कि पवित्रता और अपवित्रता के जातिगत पक्षों को उपयुक्त माना जाए और इसलिए ये लगता है कि उच्च जाति द्वारा निम्न जाति के प्रति भेदभाव एक प्रकार का विशेषाधिकार है। इस प्रकार के दृष्टिकोण वाले समाज में, समानता की कल्पना कठिन है। निम्नांकित उद्धरण से पता चलता है कि समाज पवित्रता-अपवित्रता को कितना महत्व देता है। ___यद्यपि सुनार मुझसे ऊँचे दर्जे की जाति है, फिर भी हमारी जाति में सुनार से भोजन या पानी ग्रहण करना वर्जित है। हम ये मानते हैं कि सुनार इतने लोभी होते हैं कि वे मल-मूत्र में भी सोना ढूँढ निकालते हैं। वैसे तो जाति में ऊँचे हैं लेकिन वे हमसे ज्यादा अपवित्र हैं। हम अन्य उच्च जातियों से भोजन नहीं लेते जो अपवित्र काम करते हैं : धोबी, जो गंदे कपड़ा को धोता है, तेली जो बीज को पीसकर तेल निकालता है।

इससे पता चलता है कि कैसे भेदभाव उत्पन्न करने वाले विचार जीवन का अहम हिस्सा बन गए। समानता वाले समाज की आकांक्षा की बजाय वर्जित समाज एवं भेदभाव को अपने-अपने तरीके से अर्थ देकर वर्जनीय (बहिष्कृत) पदों को स्थापित किया गया। दूसरे शब्दों में यह कि जिन्हें समानता का दर्जा नहीं मिला हुआ है वे भी अपने से नीचे वाले को भेदभाव के नजरिए से देखना चाहते हैं। इससे समाज में गहराई तक विद्यमान लोकतंत्र विरोधी सोच का पता चलता है। ___

(iv) जातिगत भेदभाव : चौथी आलोचना में यह कहा जाता है कि उच्च जाति के अनुष्ठानों, रिवाजों और व्यवहार को संस्कृतिकरण के कारण स्वीकृति मिलने से लड़कियों और महिलाओं को असमानता की सीढ़ी में सबसे नीचे धकेल दिया जाता है। इससे कन्यामूल के स्थान पर दहेज प्रथा और अन्य समूहों के साथ जातिगत भेदभाव इत्यादि बढ़ गए हैं।

(v) दलितों को पिछड़ा मानना : पाँचवीं दलित संस्कृति एवं दलित समाज के मूलभूत पक्षों को भी पिछड़ापन मान लिया जाता है। उदाहरण के लिए, निम्न जाति के लोगों द्वारा किए गए श्रम को भी निम्न एवं शर्मदायक माना जाता है। उन कार्यों को सभ्य नहीं माना जाता है जिन्हें निम्न जाति के लोग करते हैं। उनसे जुड़े सभी कार्यों जैसे शिल्प तकनीकी योग्यता, विभिन्न औषधियों की जानकारी, पर्यावरण का ज्ञान, कृषि ज्ञान, पशुपालन संबंधी जानकारी इत्यादि को औद्योगिक युग में गैर-उपयोगी मान लिया गया है।

ब्राह्मण-विरोधी आंदोलन एवं क्षेत्रीय स्वचेतना के विकास ने 20वीं शताब्दी में ऐसे प्रयासों को जन्म दिया जिसके अन्तर्गत अनेक भारतीय भाषाओं से संस्कृत के शब्दों एवं मुहावरों को हटा दिया गया। पिछड़े वर्गों के आंदोलनों का एक निर्णायक परिणाम यह हुआ कि जातीय समूह एवं व्यतियों की ऊर्ध्वगामी गतिशीलता में पंथनिरपेक्ष कारकों की भूमिका पर बल दिया जाने लगा। प्रभुत्व-जाति की दृष्टि से यह कहा जा सकता है कि अब वैश्य, क्षत्रिय एवं ब्राह्मण वर्ण से संबंधित लोगों को जाति पहचान बताने की कोई इच्छा नहीं थी। बल्कि दूसरी ओर प्रभुत्व जाति की सदस्यता प्रतिष्ठा का सूचक बन गई है। विगत वर्षों में ऐसी ही भावना दलितों में भी आई है जो अपने को दलित बताने में प्रतिष्ठा अनुभव करते हैं। हालांकि दलित जातीय समूहों में सबसे ज्यादा गरीब एवं सीमांत लोग अपनी जातिगत पहचान के आधार पर अन्य क्षेत्रों में उनके दबे-कुचले होने की क्षतिपूर्ति भी करते हैं। अर्थात् दूसरे शब्दों में उन्होंने कुछ प्रतिष्ठा एवं आत्मविश्वास अर्जित किया है अन्यथा वे भेदभाव एवं अपवर्जन का शिकार हैं।

प्रश्न 6. पश्चिमीकरण का साधारणतः मतलब होता है पश्चिमी पोशाकों व जीवन शैली का अनुकरण। क्या पश्चिमीकरण के दूसरे पक्ष भी हैं ? क्या पश्चिमीकरण का मतलब आधुनिकीकरण है ? चर्चा कीजिए।

(NCERT T.B.Q.2)

उत्तर-समाजशास्त्री एम. एन. श्रीनिवास ने पश्चिमीकरण की परिभाषा देते हुए कहा कि यह भारतीय समाज और संस्कृति में, लगभग 150 सालों के ब्रिटिश शासन के परिणामस्वरूप आए परिवर्तन हैं, जिसमें विभिन्न पहलू आते हैं….. जैसे प्रौद्योगिकी, संस्था, विचारधारा और मूल्य। _ पश्चिमीकरण के अनेक प्रकार रहे हैं। एक प्रकार के पश्चिमीकरण का मतलब उस पश्चिमी उप सांस्कृतिक प्रतिमान से है जिसे भारतीयों के उस छोटे समूह ने ग्रहण किया जो पहली बार पश्चिमी संस्कृति के संपर्क में आए हैं। इसमें भारतीय बुद्धिजीवियों की उपसंस्कृति भी सम्मिलित थी। इन्होंने न केवल पश्चिमी प्रतिमान चिंतन के प्रकारों, स्वरूपों एवं जीवनशैली को स्वीकारा बल्कि इनका समर्थन एवं विस्तार किया। 19वीं सदी के अनेक समाज सुधारक इसी प्रकार के थे।

अतः हम पाते हैं कि ऐसे लोग कम ही थे जो पश्चिमी जीवनशैली को अपना चुके थे या जिन्होंने पश्चिमी दृष्टिकोण से सोचना प्रारंभ कर दिया था। इसके अलावा अन्य पश्चिमी सांस्कृतिक तत्वों जैसे नए उपकरणों का प्रयोग, पोशाक, खाद्य-पदार्थ तथा आम लोगों की आदतों

और तौर-तरीकों में परिवर्तन आदि थे। हम देखते हैं कि पूरे देश में मध्य वर्ग के एक बड़े हिस्से के परिवारों में टेलीविजन, फ्रिज, सोफा सेट, खाने की मेज और उठने-बैठने के कमरे में कुर्सी आदि साधारण बात है। पश्चिमीकरण में किसी संस्कृति-विशेष के बाह्य तत्वों के अनुकरण की प्रवृत्ति भी दिखाई देती है। परंतु आवश्यक नहीं कि वे प्रजातंत्र और सामाजिक समानता जैसे आधुनिक मूल्यों में भी विश्वास रखते हों।

जीवन शैली एवं चिंतन के अलावा भारतीय कला और साहित्य पर भी पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव पड़ा है। अनेक कलाकार जैसे रवि वर्मा, रवनींद्रनाथ टैगोर, चंदू मेनन और बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय सभी औपनिवेशिक स्थितियों के साथ अनेक प्रकार की प्रतिक्रियाएँ कर रहे थे।

उपरोक्त विवेचना और उदाहरणों से यह पता चलता है कि सांस्कृतिक परिवर्तन विभिन्न स्तरों पर हुआ और इसके मूल में हमारा औपनिवेशिक काल में पश्चिम से परिचय था। आज के युग में पीढ़ियों के बीच संघर्ष और मतभेद को एक प्रकार के सांस्कृतिक संघर्ष और मतभेद के रूप में भी देखा जाता है जो कि पश्चिमीकरण का परिणाम है।

श्रीनिवास के अनुसार, निम्न जाति के लोग संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को अपनाते हैं। जबकि उच्च जाति के लोग पश्चिमीकरण को। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में, इस तरह का सामान्यीकरण अनुपयुक्त है। केरल की एक निम्न जाति थिय्या के अध्ययन से पता लगता है कि वे भी पश्चिमीकरण की इच्छा रखते हैं और भरसक प्रयास भी करते हैं। अभिजात थिय्याओं ने ब्रिटिश संस्कृति को स्वीकार किया और एक ऐसी विश्वजनीन जीवन-शैली की महत्वाकांक्षा की

जो जाति व्यवस्था की आलोचना करती है। ठीक इसी तरह पश्चिमी शिक्षा से लगता है कि उत्तर पूर्वी क्षेत्र में विभिन्न समूहों के लोगों के लिए नवीन अवसर उत्पन्न होंगे।

प्रश्न 7. धर्मनिरपेक्षता से आप क्या समझते हैं ? धर्मनिरपेक्षता के मार्ग में बाधक कारकों की चर्चा करें।

[M.Q.2009A]

उत्तर-धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि भारतीय राज्य सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखेगा और धार्मिक मामलों में राज्य कोई विभेद नहीं करेगा। स्पष्टतः धार्मिक मामलों में राज्य द्वारा अहस्तक्षेप एवं अविभेद ही धर्मनिरपेक्षता का मूलमंत्र है। दूसरे शब्दों में, हम इसे सर्वधर्म संभाव ही कह सकते हैं। भारत में धर्मनिरपेक्षता न केवल हमारी सांस्कृतिक विरासत है बल्कि वर्तमान में यह हमारा संवैधानिक दायित्व भी है।

यद्यपि भारतीय संविधान में भारत को एक धर्मनिरपेक्ष और अब पंथनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया है पर हकीकत यह है कि जो हमारे धर्मनिरपेक्ष मस्तिष्क पर कलंक का टीका है। सच देखा जाय तो साम्प्रदायिकता हमारी राष्ट्रीय पहचान का अपमान है। स्वतंत्र भारत में हिन्दू-मुस्लिम, हिन्दू-सिख, मुस्लिम-सिख और हिन्दू-इसाई संबंधों में कटुता देखी जा सकती है। नि:संदेह यह कटुता हमारी धर्मनिरपेक्षता के मार्ग में बाधक है। बाधक कारक और कई हैं, जैसे-साक्षरता निम्न स्तर पड़ोसी राष्ट्र से तनावपूर्ण संबंध, अतीत की कड़वी यादें, राजनेताओं की चालबाजियाँ एवं निहित स्वार्थ, प्रेम की नकारात्मक भूमिका आदि।

प्रश्न 8, भारत में धार्मिक और सामाजिक सुधार लाने में राजा राममोहन राय ने क्या भूमिका निभाई ?

अथवा,

राजा राममोहन राय के भारत के सामाजिक और सांस्कृतिक जागरण में योगदान का वर्णन कीजिए।

अथवा,

धार्मिक सुधार के लिए ब्रह्म समाज के योगदान की व्याख्या कीजिए।

उत्तर-राजा राममोहन राय का जन्म 1774 ई. में बंगाल के उच्च घराने में हुआ था। वे संस्कृत, फारसी, अरबी, अंग्रेजी आदि भाषाओं के प्रकांड प्रडित थे। उन्होंने कई तरह के सुधार किए, तभी तो उन्हें ‘आधुनिक भारत का निर्माता’ कहा जाता है। __ 1. धार्मिक सुधार : राजा राममोहन राय का सभी धर्मों की मौलिक एकता में विश्वास था। उन्होंने वेद, उपनिषद्, शास्त्र आदि का अध्ययन किया। अंत में इसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि मनुष्य को सच्चाई का साथ देना चाहिए। वे मूर्ति पूजा के विरोधी थे। इन्होंने ‘ब्रह्म समाज’ की स्थापना की। इस समाज के मुख्य सिद्धांत निम्नलिखित थे :

(क) ब्रह्म एक है और वह अजन्मा है।

(ख) ब्रह्म सब गुणों का भंडार है।

(ग) कोई भी पुस्तक दैवी कृति नहीं है।

(घ) ब्रह्म सच्चे मन से ही की गई प्रार्थना को सुनता है।

(ङ) पूजा करने का अधिकार सब को है। यह मन से होती है अतः पूजा के लिए मंदिर की आवश्यकता नहीं होती। —

  1. सामाजिक सुधार : (क) उन्होंने सती प्रथा को बन्द करवाने के लिए जनमत तैयार किया। 1829 ई. में सती प्रथा को गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिक द्वारा कानून बनवाकर इस बुराई को अवैध करार दिलवाने या बन्द करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

(ख) स्त्रियों की दशा सुधारने के उद्देश्य से उनकी शिक्षा का प्रबन्ध करवाया। पर्दा प्रथा का विरोध किया।

(ग) छुआछूत और जाति-पाँति का विरोध किया।

(घ) बहु-विवाह का विरोध किया। विधवा पुनर्विवाह पर बल दिया।

  1. शिक्षा सम्बन्धी सुधार : राजा राममोहन राय संस्कृत के प्रकांड प्रडित थे, परंतु के पाश्चात्य शिक्षा के समर्थक थे। उनका विचार था कि पाश्चात्य शिक्षा के ज्ञान ने हमारे साहित्य और विज्ञान की जानकारी को बढ़ाया। अंग्रेजी शिक्षा के द्वारा ही हमें सामाजिक बुराइयों से लड़नें; अंधविश्वासों, प्राचीन रूढ़ियों आदि से लड़ने तथा शोषण समाप्त करने में सहायता मिलती है। उन्होंने बंगला, हिन्दी, फारसी तथा अंग्रेजी में कई पत्रिकाएँ निकाली। 1817 में उन्होंने कलकत्ता (कोलकाता) में अपना धन लगाकर एक इंगलिश स्कूल खोला।
  2. राजनीतिक चेतना : राजा राममोहन राय ने सर्वप्रथम किसानों के हितों को लेकर आवाज उठाई। उन्होंने उच्च सरकारी सेवाओं में भारतीय की भर्ती पर जोर दिया। योग्यता के आधार पर भारतीयों को उच्च सेवा में लेने की वकालत की। स्वतंत्रता, समानता तथा भ्रातृत्व के पूर्ण समर्थक थे।

राजा राममोहन राय को आधुनिक भारत का जन्मदाता कहना पूर्णतः न्यायसंगत है क्योंकि उन्होंने धर्म, समाज, शिक्षा और राजनीतिक क्षेत्र में नयी लहर लाकर भारतीयों को रूढ़ियों तथा अंधविश्वासों की दलदल से निकाला, भारतीयों को उस मार्ग पर लाकर खड़ा कर दिया जहाँ से स्वतंत्रता का मार्ग सरल व सीधा था।

प्रश्न 9. आर्य समाज की स्थापना किसने की थी? इस संगठन के मुख्य सिद्धांत क्या थे?

अथवा,

आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद की मुख्य शिक्षाओं और कार्यों या आर्य समाज के प्रमुख सिद्धांतों का वर्णन कीजिए।

।                                                             अथवा,

आर्य समाज प्रगतिशील और प्रतिक्रियावादी दोनों था। स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-I. स्थापना : आर्य समाज की स्थापना सन् 1875 ई. में स्वामी दयानंद सरस्वती ने की थी।

  1. स्वामी दयानंद सरस्वती की मुख्य शिक्षाएँ या आर्य समाज के सिद्धांत : ___
  2. स्वामी दयानंद सरस्वती वेदों की सर्वश्रेष्ठता एवं सर्वोच्चता में विश्वास करते हुए मानते थे कि ये ज्ञान से भरे हुए हैं तथा ये ईश्वरीय शक्ति हैं। सभी हिन्दुओं को इन्हें अपने धार्मिक ग्रन्थों के रूप में मान्यता देनी चाहिए।
  3. स्वामी दयानन्द सभी मानवों को बराबर मानते थे तथा वे ब्राह्मणों की श्रेष्ठता या ब्राह्मणवाद के विरोधी थे।
  4. उन्होंने वेदों की तार्किक आधार पर व्याख्या की तथा उन्हीं के अनुसार आर्य समाज के सिद्धांत बनाये।
  5. उन्होंने जातिवाद का विरोध किया। मूर्ति पूजा में उनका विश्वास नहीं था, वे सभी प्रकार के धार्मिक अंधविश्वासों एवं बहुदेववाद के विरोधी थे।
  6. उन्होंने पश्चिमी विज्ञानों के अध्ययन का समर्थन किया तथा कहा कि इससे देश में नया ज्ञान आयेगा एवं लोगों का दृष्टिकोण प्रगतिशील एवं वैज्ञानिक बनेगा।
  7. उन्होंने हर प्रकार की शिक्षा के विकास में योगदान दिया। वे मानते थे कि स्त्रियों को भी शिक्षा दी जानी चाहिए। उन्हीं के प्रेरणा तथा निर्देशानुसार देश में आर्य समाज (जिसकी स्थापना स्वयं स्वामी जी ने 1875 ई. में की) ने जगह-जगह डी. ए. वी. स्कूल तथा कॉलेज खोले। आर्य समाज ने सह शिक्षा तथा बालक एवं बालिकाओं के लिए अलग-अलग स्कूल खोले। प्राचीन भारतीय शिक्षा व्यवस्था के ढाँचे पर कई स्थानों पर गुरुकुल एवं गुरुकुल विद्यालय, छात्रावास, वाचनालय, पुस्तकालय भी खोले गये। इस संस्था ने शिक्षा के क्षेत्र में जितना कार्य करने की प्रेरणा लोगों की दी, शायद ही किसी संस्था ने ऐसा किया हो।
  8. स्वामी दयानन्द सरस्वती ने सामाजिक सुधारों के क्षेत्र में भी कार्य किया। वह नारी समानता के समर्थक थे। उन्होंने विधवा विवाह का समर्थन किया। स्वामी जी विवाह आदि अवसरों पर की जाने वाली फिजूलखर्ची के विरोधी थे।

प्रश्न 10. “संसार के अन्य देशों से हमारा अलगाव हमारे अध:पतन का कारण है।” इस कथन में किस सुधारक के विचारों की झलक मिलती है ? आप इस कथन से कहाँ तक सहमत हैं ? कारण दीजिए।

अथवा,

तीन प्रमाणों द्वारा सिद्ध कीजिए कि नरेन्द्र नाथ दत्त (विवेकानंद) ने अपने गुरु की शिक्षाओं को मूर्त रूप दिया।

अथवा

रामकृष्ण मिशन की स्थापना किसने की, इसके मुख्य सिद्धांत क्या थे?

उत्तर-“संसार के अन्य देशों से हमारा अलगाव हमारे अधःपतन का कारण है” यह कथन महान सुधारक स्वामी विवेकानन्द के विचारों की झलक देता है। हम इस कथन से पूर्णतया सहमत हैं। विवेकानंद ‘रामकृष्ण मिशन’ के संस्थापक थे। उन्होंने इस संस्था के माध्यम से अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के विचारों को फैलाया। विवेकदानंद के विचारानुसार जातिप्रथा, छुआछूत व्यर्थ है तथा नारी को सम्मान एवं समानता मिलनी चाहिए। मानवसेवा ही ईश्वर सेवा है। वैदिक धर्म सर्वश्रेष्ठ है। यह सभी लोगों का धर्म होना चाहिए। नया ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। ज्ञान आदान-प्रदान प्रगति का आधार है।

स्वामी विवेकानंद ने अनुभव किया कि भारतवासी दलित और शोषित थे। तथापि इसके लिए उन्होंने स्वयं भारतवासियों को ही उत्तरदायी ठहराया क्योंकि उनमें गतिहीनता आ गई थी। उन्होंने लिखा, “भारतवासियों के दलित होने का कारण संसार के अन्य देशों से अलग-थलग रहना है। इससे बचने का एकमात्र उपाय है कि वह संसार की मुख्यधारा में आ जाए। गति ही जीवन का प्रतीक है।”

विवेकानंद भारत की आध्यात्मिक धरोहर पर गर्व करते थे और उनका विश्वास था कि कोई भी व्यक्ति या राष्ट्र समाज की मुख्य धारा से अलग नहीं रह सकता है।

प्रश्न 11. “भारत में थियोसिोफिकल सोसाइटी के क्या क्रियाकलाप थे? इस संस्था की स्थापना का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा था?

अथवा,

थियोसोफिकल सोसाइटी के संस्थापक कौन थे? इस सोसाइटी ने सामाजिक सुधार में क्या भूमिका निभायी ?

अथवा,

थियोसोफिकल सोसाइटी के प्राचीन भारतीय धर्म को उन्नत करने के प्रयास को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-मूलतः थियोसोफिल सोसाइटी की स्थापना संयुक्त राज्य अमेरिका में मैडम एच. डी. ब्लावात्सकी एवं कर्नल एच. एस. ओलकार द्वारा की गई थी। बाद में ये लोग भारत आ गए तथा सन् 1886 ई. में मद्रास (चेन्नई) के समीप अडयार में उन्होंने थियोसिोफिकल सोसाइटी, का हेडक्वाटर्स (मुख्य कार्यालय) स्थापित किया।

श्रीमती एनी बेसेंट सन् 1893 ई. में भारत आयीं और उन्होंने थियोसोफिल सोसाइटी का नेतृत्व सँभाला। इस सोसाइटी ने निम्न विचारों एवं सिद्धान्तों का प्रचार-प्रसार किया :

  1. थियोसोफिस्ट प्रचार करते थे कि हिन्दुत्व/जराथुस्त्र मत (पारसी धर्म), बौद्ध धर्म प्राचीन धर्मों को पुनर्स्थापित एवं सुदृढ़ किया जाए।
  2. उन्होंने आत्म के पुनरागमन के सिद्धांत का भी प्रचार किया।
  3. धार्मिक पुनर्स्थापनवादियों के रूप में कार्य करते हुए उन्होंने भारतीय धर्मों के साथ-साथ भारतीय दार्शनिक परम्परा का महिमा मंडन भी किया।
  4. भारत में श्रीमती एनीबेसेंट के प्रमुख कार्यों में एक था-बनारस में केन्द्रीय हिन्दू विद्यालय की स्थापना, जिसे कालान्तर में मदनमोहन मालवीय ने बनारस हिन्दू विश्व विद्यलय के रूप में विकसित किया। __ आलोचना एवं मूल्यांकन : थियोसोफिकल सोसाइटी को धार्मिक पुनर्स्थापनवादियों के रूप में अधिक सफलता प्राप्त नहीं हुई, लेकिन अधुनिक भारत के घटनाक्रम में उसका एक विशिष्ट योगदान रहा। यह पश्चिमी देशों के ऐसे लोगों द्वारा चलाया जा रहा एक आंदोलन था जो भारतीय दर्शन एवं धर्मों की प्रशंसा किया करते थे। इससे भारतीयों को अपना खोया आत्मविश्वास पुनः प्राप्त करने में मदद प्राप्त हुई। यद्यपि इससे अतीत की महानता का झूठा गर्व भी उनके अन्दर उत्पन्न हुआ। इस संस्था ने संस्कृत भाषा में लिखी अनेक प्राचीन एवं मूल्यवान पुस्तकों का संग्रह करके एक विशाल पुस्तकालय खोला।

प्रश्न 12. मुसलमानों की दशा सुधारने के लिए सैयद अहमद खाँ ने क्या सुधार कार्य किए ?

अथवा,

मुसलमानों की स्थिति सुधारने के लिए सैयद अहमद खाँ द्वारा उठाए गए कदमों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर-सैयद अहमद खाँ द्वारा मुसलमानों की दशा सुधारने के लिए किये गये कार्य

  1. सर सैयद अहमद खाँ शिक्षा को बहुत महत्व देते थे। उनका विचार था कि मुसलमानों के सामाजिक और धार्मिक जीवन में सुधार केवल पाश्चात्य शिक्षा और संस्कृति को ग्रहण करके ही लाया जा सकता है। उनके अनुसार मुसलमान हर क्षेत्र में पिछड़े हुए हैं। उनमें व्याप्त कुरीतियाँ पर्दा-प्रथा, बहु-विवाह, तलाक का आसानी से मिल जाना आदि भी अज्ञान के कारण ही हैं। इसलिए उन्होंने मुसलमानों में व्याप्त अज्ञान के अंधकार को पाश्चात्य शिक्षा के प्रकाश से दूर करने का प्रयत्न किया। अतः आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने कई नगरों में विद्यालय खुलवाए औऔर पाश्चात्य शिक्षा को लोकप्रिय बनाने के लिए पाश्चात्य पुस्तकों का उर्दू में अनुवाद करवाया। उन्होंने 1875 ई. में मुम्मडन-एंग्लो ओरियण्टल कॉलेज की स्थापना अलीगढ़ में की। आजकल यह कॉलेज अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के नाम से प्रसिद्ध है।
  2. सर सैयद अहमद खाँ धार्मिक सद्भावना और एकता में विश्वास रखते थे। वे साम्प्रदायिकता के कट्टर विरोधी थे। हिन्दू-मुस्लिम एकता पर उन्होंने बल दिया। उन्होंने कहा कि “पारस्परिक असहमति, जिद और विरोध तथा दुर्भावना हमारा विनाश निश्चितं रूप से कर देंगे।”
  3. सैयद अहमद खाँ भारत में अंग्रेजी शासन के बड़े पक्षपाती थे। उनके विचार में मुसलमानों का उद्धार और सुधार अंग्रेजी सरकार के सहयोग के बिना संभव नहीं। उनका दृढ़ विश्वास था कि अंग्रेजी सरकार को भारत से हटाया नहीं जा सकता, इसलिए उनका विरोध करने का अर्थ होगा मुसलमानों में शिक्षा एवं सुधार कार्य को ठप्प करना। इस प्रकार जहाँ तक हो सका, सर सैयद अहमद खाँ ने अंग्रेजी सरकार को अपना पूर्ण समर्थन दिया।
  4. सर सैयद अहमद खाँ राष्ट्रीय आन्दोलन में मुसलमानों द्वारा भाग लिए जाने के विरोधी थे। अपने जीवन के अंतिम काल में उन्होंने मुसलमानों को राष्ट्रवादी आन्दोलन में शामिल होने से रोका।
  5. सर सैयद अहमद खाँ ने तत्कालीन मुस्लिम समाज में व्याप्त कुरीतियों पर कुठाराघात किया। उन्होंने नारी शिक्षा पर जोर दिया। पर्दा प्रथा, बहु विवाह और आसानी से तलाक मिल जाने का विरोध किया।

प्रश्न 13. स्त्री उत्थान के लिए (क) राजा राममोहन राय (ख) ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने क्या भूमिका अदा की थी ?

अथवा, 

नारी विमुक्ति के लिए समाज सुधारकों ने क्या उपाय किए ?

उत्तर-(क) राजा राममोहन राय द्वारा स्त्री उत्थान के लिए प्रयास :

  1. सती प्रथा की समाप्ति के लिए राजा राममोहन राय ने सर्वाधिक परिश्रम किया और उन्हीं के प्रयत्न से इस पर कानूनी रोक लगी।
  2. स्त्रियों की शिक्षा के प्रसार एवं उनकी हीन स्थिति सुधारने के लिए भी राजा राममोहन राय ने बहुत काम किया।

(ख) ईश्वरचन्द्र विद्यासागर द्वारा स्त्री उत्थान के लिए प्रयास : भारतीय समाज की बुराइयों को दूर करने के लिए विद्यासागर ने संघर्ष किया। विधवा विवाह का समर्थन किया जिसे 1856 ई. में कानून बनाकर मान्यता दी गई। बाल विवाह तथा बहु विवाह का विरोध किया, नारी शिक्षा पर बल दिया। रूढ़िवादी हिन्दुओं ने उनके प्रयासों की आलोचना की, परंतु उन्होंने स्कूलों के सरकारी निरीक्षण के पद पर कार्य करते हुए 35 बालिका विद्यालयों को शुरू किया।

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