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 Bihar Board Class 12th Geography Notes Chapter 6 द्वितीयक क्रियाएँ

Bihar Board Class 12th Geography Notes Chapter 6 द्वितीयक क्रियाएँ

→ द्वितीयक क्रियाएँ
द्वितीयक क्रियाओं द्वारा प्राकृतिक संसाधनों के मूल्य में वृद्धि होती है। इसमें प्रकृति में पाए जाने वाले कच्चे माल का रूप बदलकर उन्हें मूल्यवान बनाया जाता है। उदाहरण-कपास के द्वारा सूती वस्त्र का निर्माण आदि।

→ विनिर्माण

  • विनिर्माण का अर्थ किसी भी वस्तु के उत्पादन से है। इसमें हाथ व मशीनों (दोनों) से बनी वस्तुओं को शामिल किया जाता है।
  • विनिर्माण की सामान्य विशेषताएँ-शक्ति का प्रयोग, एक ही वस्तु का विशाल उत्पादन एवं कारखानों में विशिष्ट श्रमिक जो मानक वस्तुओं का उत्पादन करते हैं आदि।

→ आधुनिक बड़े पैमाने पर होने वाले विनिर्माण की विशेषताएँ
आधुनिक बड़े पैमाने पर होने वाले विनिर्माण की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

    1. कौशल का विशिष्टीकरण / उत्पादन की विधियाँ,
    2. यन्त्रीकरण,
    3. प्रौद्योगिकीय नवाचार,
    4. संगठनात्मक ढाँचा एवं स्तरीकरण,
    5. अनियमित भौगोलिक वितरण।

→ उद्योगों की अवस्थिति (स्थानीयकरण) को प्रभावित करने वाले कारक –
उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं –

  1. बाजार,
  2. कच्चे माल की प्राप्ति,
  3. श्रम आपूर्ति,
  4. शक्ति के साधन,
  5. परिवहन एवं संचार की सुविधा,
  6. सरकारी नीति,
  7. उद्योगों के मध्य सम्बन्ध।

→ विनिर्माण उद्योगों का वर्गीकरण
विनिर्माण उद्योगों के वर्गीकरण के आधार निम्नलिखित हैं –

  1. आकार,
  2. कच्चा माल,
  3. उत्पाद एवं
  4. स्वामित्व के आधार पर।

→ (1) आकार पर आधारित उद्योग-किसी उद्योग का आकार उसमें लगी हुई पूँजी, कार्यरत श्रमिकों की संख्या एवं उत्पादन की मात्रा पर निर्भर करता है। आकार के आधार पर उद्योगों के तीन प्रकार हैं –

  • कुटीर (घरेलू) उद्योग,
  • छोटे पैमाने के उद्योग, एवं :
  • बड़े पैमाने के उद्योग।

→ (2) कच्चे माल पर आधारित उद्योग-कच्चे माल के आधार पर उद्योगों के पाँच प्रकार हैं

  • कृषि आधारित उद्योग,
  • खनिज आधारित उद्योग,
  • रसायन आधारित उद्योग,
  • वनों पर आधारित उद्योग, एवं
  • पशु आधारित उद्योग।

→ (3) उत्पाद / उत्पादन आधारित उद्योग-उत्पाद । उत्पादन के आधार पर उद्योगों के दो प्रकार हैं

  • आधारभूत उद्योग, एवं
  • उपभोक्ता वस्तु उद्योग।

→ (4) स्वामित्व आधारित उद्योग-स्वामित्व के आधार पर उद्योगों के तीन प्रकार हैं

  1. सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग,
  2. निजी क्षेत्र के उद्योग, एवं
  3. संयुक्त क्षेत्र के उद्योग।

→ जर्मनी का रूहर कोयला क्षेत्र

  • रूहर क्षेत्र न केवल जर्मनी का बल्कि यूरोप का महत्त्वपूर्ण औद्योगिक क्षेत्र रहा है। यहाँ की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कोयला, लोहा एवं इस्पात रहा है।
  • रूहर क्षेत्र में भविष्य की सम्पन्नता कोयला, लोहा एवं इस्पात के बजाय नए उद्योग यथा-ओपेन कार बनाने का कारखाना, नए रासायनिक संयन्त्र, विश्वविद्यालय आदि पर आधारित है। अब यहाँ ‘नया रूहर’ विकसित हो रहा है।

→ उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग की संकल्पना

  • उच्च प्रौद्योगिकी विनिर्माण क्रियाकलापों में नवीनतम पीढ़ी है। इसमें उन्नत वैज्ञानिक एवं इंजीनियरिंग उत्पादों का निर्माण गहन शोध एवं विकास के प्रयोग द्वारा किया जाता है।
  • उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग में यन्त्र मानव, कम्प्यूटर आधारित डिजाइन तथा निर्माण, धातु पिघलाने एवं शोधन के इलेक्ट्रॉनिक नियन्त्रण एवं नए रासायनिक व औषधीय उत्पाद प्रमुख स्थान रखते हैं।

→ प्रौद्योगिक ध्रुव
एक प्रौद्योगिक ध्रुव एक संकेन्द्रित क्षेत्र के भीतर नई प्रौद्योगिकी व उद्योगों से सम्बन्धित उत्पादन के लिए नियोजित विकास है। प्रौद्योगिक ध्रुव के अन्तर्गत विज्ञान व प्रौद्योगिकी पार्क, विज्ञान नगर (साइंस सिटी) तथा अन्य उच्च तकनीकी औद्योगिक संकुल शामिल किए जाते हैं।

→ लौह-इस्पात उद्योग

  • लौह-इस्पात उद्योग को ‘आधारभूत उद्योग’ भी कहा जाता है। यह उद्योग अन्य उद्योगों के लिए कच्चा माल उपलब्ध करवाता है। इसे ‘भारी उद्योग’ भी कहा जाता है।
  • आवश्यक कच्चा माल-लौह अयस्क, कोक, चूना पत्थर एवं इस्पात!
  • अवस्थिति के कारक-कच्चे माल की उपलब्धता, बाजार की समीपता, सस्ती विद्युत की उपलब्धता, जल, श्रम आदि।
  • वितरण-उत्तरी अमेरिका में संयुक्त राज्य अमेरिका में, यूरोप में ग्रेट-ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, सोवियत रूस आदि में, एशिया में जापान, चीन, भारत आदि में लौह-इस्पात उद्योग के प्रमुख केन्द्र हैं। :

→ सूती वस्त्र उद्योग

  • अवस्थिति के कारक-आर्द्र जलवायु, कच्चे माल की उपलब्धता, स्वच्छ जल की आपूर्ति, प्रशिक्षित श्रम, पूँजी, सस्ती जलविद्युत, बाजार. की समीपता एवं सस्ते व उत्तम परिवहन का साधन आदि।
  • सूती वस्त्र उद्योग के क्षेत्र –
    (1) हथकरघा, (2) बिजली करघा एवं (3) मिल सेक्टर।
  • सूती वस्त्र उद्योग का वितरण-सूती वस्त्र बनाने वाले प्रमुख देश भारत, चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका, पाकिस्तान, उज्बेकिस्तान तथा मिस्र हैं।

→ पूँजीवादी अर्थव्यवस्था-पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादन के साधनों पर वैयक्तिक स्वामित्व होता है।

→ साम्यवादी अर्थव्यवस्था साम्यवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादन के साधनों पर सार्वजनिक स्वामित्व होता है। अत: उद्योग पर सरकारी नियन्त्रण होता है।

→ मिश्रित अर्थव्यवस्था-मिश्रित अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रों का सह-अस्तित्व माना
जाता है।

→ औद्योगिक प्रदेश अथवा संकुल-जब एक जैसे अथवा एक-दूसरे से अन्तःसम्बन्ध उद्योगों का एक गुच्छा अथवा समूह विकसित होता है तो उसे ‘औद्योगिक प्रदेश अथवा संकुल’ कहा जाता है।

→ उद्योग-लाभदायक या उत्पादी उद्यमों का एक वर्ग, जिसमें उत्पादन के समान प्रौद्योगिकीय तकनीकों का उपयोग किया जाता है और जिससे उपयोगी सामान, सेवाएँ अथवा आय के साधन उपलब्ध होते हैं, ‘उद्योग’ कहलाते हैं।

→ औद्योगिक जडत्व-किसी उद्योग की उस स्थान पर अपनी क्रिया बनाए रखने की प्रवृत्ति, जहाँ पर उसके स्थापित होने के कारण महत्त्वहीन हैं अथवा समाप्त हो चुके हैं, ‘औद्योगिक जड़त्व’ कहलाता है।

→ औद्योगिक समूहन-अनुकूल दशाओं के कारण जब एक ही स्थान पर अनेक प्रकार के उद्योग स्थापित हो जाएँ तो उसे ‘औद्योगिक समूहन’ कहा जाता है।

→ भार ह्रासमान पदार्थ-ऐसा कच्चा माल, जिसके कुल भार में से निर्मित माल बहुत थोड़ा बन पाए (जैसे-10 टन गन्ना केवल एक टन चीनी बनाता है) ‘भार ह्रासमान पदार्थ’ कहलाता है।

→ शुद्ध कच्चा माल-ऐसे पदार्थ जिनके कुल भार के बराबर या थोड़ा-सा कम निर्मित माल बनता है
‘शुद्ध कच्चा माल’ कहलाते हैं।

→ विनिर्माण-हाथों अथवा मशीनों द्वारा वस्तुओं को बनाने का प्रक्रम।

→ कृषि आधारित उद्योग-ऐसे उद्योग जो कृषि से प्राप्त कच्चे माल पर आधारित होते हैं।

→ विनिर्माण उद्योग-श्रम विभाजन तथा मशीनों के अधिक-से-अधिक प्रयोग द्वारा उत्पादन।

→ आधारभूत उद्योग-जिन उद्योगों के उत्पादों (मशीनों, उपकरणों) को अन्य उद्योगों में प्रयोग किया जाता है, ‘आधारभूत उद्योग’ कहलाते हैं; जैसे-लोहा-इस्पात उद्योग, रसायन उद्योग आदि।

→ उपभोक्ता वस्तु उद्योग-वे उद्योग जिनका तैयार माल सीधे उपभोग किया जाता है ‘उपभोक्ता वस्तु उद्योग’ कहलाते हैं; जैसे-चीनी, खाद्य तेल, चाय, ब्रेड आदि।

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