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 Bihar Board Class 12th Geography Notes Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

Bihar Board Class 12th Geography Notes Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

→ आर्थिक क्रिया

  • मानव के वह क्रियाकलाप जिनसे आय प्राप्त होती है उन्हें ‘आर्थिक . क्रिया’ कहा जाता है।
  • आर्थिक क्रियाओं को मुख्यत: चार वर्गों में विभक्त किया जाता है (1) प्राथमिक, (2) द्वितीयक, (3) तृतीयक एवं (4) चतुर्थक क्रियाएँ।
  • प्राथमिक क्रियाएँ प्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण पर निर्भर हैं। प्राथमिक क्रियाओं में भोजन संग्रह, आखेट, पशुचारण, मछली पकड़ना, वनों से लकड़ी काटना, कृषि व खनन कार्य शामिल किए जाते हैं।

→ आखेट एवं भोजन संग्रह।

  • भोजन संग्रह एवं आखेट प्राचीनतम ज्ञात आर्थिक क्रियाएँ हैं।
  • यह कार्य कठोर जलवायु दशाओं में अधिकांशतः आदिमकालीन समाज के लोग करते हैं।
  • आदिमकालीन समाज के लोग भोजन, वस्त्र तथा आवास की आवश्यकता की पूर्ति के लिए पशुओं एवं वनस्पति को संगृहीत करते हैं।
  • आधुनिक समय में भोजन संग्रह के कार्य का कुछ भागों में वाणिज्यीकरण भी हो गया है।
  • विश्व स्तर पर भोजन संग्रहण का विशेष महत्त्व नहीं है।

→ पशुचारण

  • आखेट से जब जीवन का भरण-पोषण नहीं किया जा सका, तब मानव ने पशुपालन व्यवसाय के बारे में सोचा। .
  • पशुचारण के दो प्रकार निम्नलिखित हैं –
    (1) चलवासी पशुचारण एवं (2) वाणिज्य पशुधन पालन।

→ 1. चलवासी पशुचारण

  • चलवासी पशुचारण में पशुचारक भोजन, वस्त्र, आवास, औजार व परिवहन के लिए पशुओं पर निर्भर करते हैं।
  • चरागाह व जल की खोज में पशुचारक अपने पालतू पशुओं के साथ स्थानान्तरित होते रहते हैं।
  • नए चरागाहों की खोज में ये पशुचारक समतल भागों एवं पर्वतीय भागों में लम्बी दूरियाँ तय करते हैं।
  • चलवासी पशुचारकों की संख्या व इनके द्वारा उपयोग में लाए गए क्षेत्र में निरन्तर कमी हो रही है।

→ 2. वाणिज्य पशुधन पालन

  • वाणिज्य पशुधन पालन अपेक्षाकृत अधिक व्यवस्थित एवं पूँजी प्रधान है।
  • वाणिज्य पशुधन पालन पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित है एवं इसके फार्म विशाल क्षेत्र में फैले हैं व स्थायी हैं।
  • इसमें एक ही प्रकार के पशु पाले जाते हैं। पशुओं से मांस, खाल व ऊन आदि प्राप्त करके निर्यात किया जाता है।
  • न्यूजीलैण्ड, ऑस्ट्रेलिया, अर्जेण्टीना, उरुग्वे एवं संयुक्त राज्य अमेरिका में वाणिज्य पशुधन पालन किया जाता है।

→ कृषि
कृषि को प्रभावित करने वाली दशाएँ हैं- भौतिक, सामाजिक व आर्थिक दशाएँ। इसी कारण विभिन्न कृषि प्रणालियाँ देखी जाती हैं।

→ कृषि की प्रमुख प्रणालियाँ (प्रकार)

→ 1. निर्वाह कृषि

  • निर्वाह कृषि में कृषि उत्पादों का सम्पूर्ण अथवा लगभग उपयोग हो जाता है। इसके दो प्रकार हैं (i) आदिकालीन निर्वाह कृषि एवं (ii) गहन निर्वाह कृषि।

(i) आदिकालीन निर्वाह कृषि-आदिकालीन निर्वाह कृषि को ‘स्थानान्तरणशील कृषि’ भी कहते हैं। यह आदिम जाति के द्वारा उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में की जाती है।

  • इस कृषि में वनों को काटकर, जलाकर, साफ करके परम्परागत औजारों से कुछ समय तक कृषि की जाती है।
  • भारत में उत्तर-पूर्वी राज्यों में इसे ‘झूमिंग’, मध्य अमेरिका एवं मैक्सिको में ‘मिल्पा’ एवं मलयेशिया व इण्डोनेशिया में ‘लदांग’ कहा जाता है।

(ii) गहन निर्वाह कृषि

  • गहन निर्वाह कृषि मानसून एशिया के घने बसे क्षेत्रों में की जाती है।
  • इस कृषि के दो प्रकार हैं
    (अ) चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषि एवं
    (ब) चावल रहित गहन निर्वाह कृषि।

→ 2. रोपण कृषि (बागाती कृषि)

  • रोपण कृषि वृहद् स्तर पर लाभ प्रदान करने वाली प्रणाली है।
  • यूरोपीय उपनिवेशों ने अपने अधीन उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में चाय, कॉफी, कोको, कपास, रबड़, गन्ना, केले एवं अनन्नास की पौध लगाई।
  • इस कृषि की प्रमुख विशेषता है-विस्तृत क्षेत्र, अधिक पूँजी, उच्च प्रबन्ध, तकनीकी आधार तथा वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग आदि।
  • यह एकफसली कृषि है।।
  • ब्राजील में कॉफी के बागानों को ‘फैजेण्डा’ कहा जाता है।
  • वर्तमान में अधिकांश बागानों पर देश की सरकार अथवा नागरिकों का नियन्त्रण है।

→ 3. विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि

  • विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि मध्य अक्षांशों के आन्तरिक अर्द्ध-शुष्क प्रदेशों में की जाती है। इस कृषि की मुख्य फसल गेहूँ है।
  • इस कृषि की प्रमुख विशेषता है-खेतों का बड़ा आकार, सभी कृषि कार्य यन्त्रों से, प्रति एकड़ कम उत्पादन एवं प्रति व्यक्ति अधिक उत्पादन आदि।
  • यह कृषि प्रेयरीज, पम्पास, स्टैपीज, वेल्डस, डाउन्स व केंटरबरी के घास के मैदानों में की जाती है।

→ 4.मिश्रित कृषि

  • मिश्रित कृषि में फसलों को उगाने के साथ-साथ पशुपालन भी किया जाता है।
  • यह कृषि विश्व के अत्यधिक विकसित क्षेत्रों (यथा-उत्तर-पश्चिमी यूरोप, उत्तरी अमेरिका का पूर्वी भाग, यूरेशिया के कुछ भाग एवं दक्षिणी महाद्वीपों के समशीतोष्ण अक्षांश वाले भागों) में इसका विस्तार है।
  • इस कृषि में खेतों का आकार मध्यम होता है।
  • इस कृषि की प्रमुख विशेषताएँ हैं—चारे की फसल, विकसित कृषि यन्त्र, रासायनिक व वनस्पति खाद का गहन उपयोग आदि पर अधिक पूँजी व्यय, कृषकों की कुशलता आदि।

→ 5. डेयरी कृषि

  • डेयरी कृषि दुधारू पशुओं के पालन-पोषण का सबसे अधिक उन्नत एवं दक्ष प्रकार है।
  • इस कृषि में अपेक्षाकृत अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है।
  • इस कृषि में गहन श्रम की आवश्यकता होती है।
  • डेयरी कृषि का कार्य इसके खपत केन्द्रों के समीप ही किया जाता है।
  • डेयरी कृषि के विकास के कारण-उन्नत परिवहन साधन, प्रशीतकों का उपयोग, पाश्चुरीकरण की सुविधा आदि।
  • डेयरी कृषि के तीन प्रमुख क्षेत्र—(1) उत्तर-पूर्वी यूरोप, (2) कनाडा एवं (3) न्यूजीलैण्ड, दक्षिण-पूर्वी ऑस्ट्रेलिया एवं तस्मानिया।

→ 6. भूमध्यसागरीय कृषि

  • भूमध्यसागरीय कृषि एक अति विशिष्ट प्रकार की वाणिज्यिक कृषि है। इसका विस्तार भूमध्यसागर के समीपवर्ती क्षेत्रों में है।
  • इस कृषि में अंगूर, अंजीर एवं जैतून की कृषि की जाती है।
  • अंगूर की कृषि भूमध्यसागरीय क्षेत्र की विशेषता है। अंगूर से मदिरा, मुनक्का व किशमिश बनाई जाती है।

→ 7. बाजारों के लिए सब्जी खेती (ट्रक कृषि) एवं उद्यान कृषि

  • इस कृषि में अधिक मुद्रा मिलने वाली फसलें यथा-सब्जियाँ, फल एवं पुष्प लगाए जाते हैं जिनके खपत क्षेत्र नगरीय क्षेत्र होते हैं।
  • इस कृषि की प्रमुख विशेषताएँ हैं-खेतों का छोटा आकार, उन्नत यातायात साधन, गहन श्रम, अधिक पूँजी की आवश्यकता, सिंचाई, उर्वरक, उत्तम बीज, कीटनाशक, हरित गृह, शीत क्षेत्रों में कृत्रिम तांप आदि।
  • जिन प्रदेशों में कृषक केवल सब्जियाँ उत्पादित करता है वहाँ इस कृषि को ‘ट्रक कृषि’ नाम दिया गया है।
  • पश्चिमी यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका के औद्योगिक क्षेत्रों में उद्यान कृषि के अतिरिक्त कारखाना कृषि भी की जाती है। इस कृषि में पशुधन पाला जाता है।

→ 8. सहकारी कृषि

  • कृषकों का एक समूह अपनी कृषि से अधिक लाभ कमाने हेतु अपनी इच्छा से एक सहकारी संस्था – बनाकर कृषि कार्य सम्पन्न करे तो उसे ‘सहकारी कृषि’ कहते हैं।
  • इस व्यवस्था में व्यक्तिगत कार्य अक्षुण्ण रहते हुए कृषि सहकारी रूप से की जाती है।
  • सहकारी संस्था कृषकों की सभी तरह से सहायता करती है।
  • सहकारी कृषि को सर्वाधिक सफलता डेनमार्क में मिली जहाँ प्रत्येक कृषक इसका सदस्य है।

→ 9. सामूहिक कृषि

  • • सामूहिक कृषि इस सिद्धान्त पर की जाती है कि उत्पादन के साधनों पर समाज का अधिकार है और इसलिए सभी किसान अपने संसाधन जैसे भूमि, पशुधन, मशीनें व श्रम को मिलाकर खेती करें।
  • कृषि का यह प्रकार पूर्व सोवियत संघ में प्रारम्भ हुआ था जहाँ कृषि की दशा सुधारने एवं उत्पादन में वृद्धि व आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए यह कृषि प्रारम्भ की गई।
  • सोवियत संघ में सामूहिक कृषि को ‘कोलखहोज’ के नाम से जाना जाता है।

→ खनन

  • मानव विकास के इतिहास में खनिजों की खोज की अवस्थाएँ हैं—ताम्र युग, कांस्य युग एवं लौह युग। .
  • खनिजों का वास्तविक विकास औद्योगिक क्रान्ति के बाद ही सम्भव हुआ।

→ खनन को प्रभावित करने वाले कारक

  • खनन को प्रभावित करने वाले दो कारक निम्नलिखित हैं
    1. भौतिक कारक-खनिज निक्षेपों का आकार, श्रेणी एवं उपस्थिति की अवस्था।
    2. आर्थिक कारक-खनिज की माँग, विद्यमान तकनीकी ज्ञान एवं उसका उपयोग, उपलब्ध पूँजी, यातायात एवं श्रम पर होने वाला व्यय।

→ खनन की विधियाँ ।
खनन की निम्नलिखित दो विधियाँ हैं –
(1) धरातलीय (सतही) खनन, एवं (2) भूमिगत खनन।

  1. धरातलीय (सतही) खनन—इस विधि में धरातल की मिट्टी, चट्टानों आदि को हटाकर खनिज की परतों को खोदा, काटा या विस्फोटित किया जाता है। यह खनन का सबसे आसान व सस्ता तरीका है।
  2. भूमिगत खनन-जब अयस्क धरातल के नीचे गहराई में होता है तब भूमिगत (कूपकी) खनन विधि का प्रयोग किया जाता है। भूमिगत खनन अपेक्षाकृत जोखिम भरा होता है।

→ चरवाही जीवन-मनुष्य द्वारा जीवन-निर्वाह के लिए जन्तुओं को पालतू बनाए बिना उनका शिकार करके और पौधों को स्वयं उगाए बिना उन्हें काटकर भोजन के रूप में प्रयोग करना।

→ संग्रहण-आदिकालीन मानव द्वारा भोजन के लिए वनों से पौधों की जड़ें, पत्तियाँ, छाल व बीज और फल इत्यादि एकत्र करना।

→ ऋतु प्रवास-चरवाहे कबीलों द्वारा ऋतुओं के अनुसार अपने पशुओं के साथ प्रवास।

→ मिश्रित कृषि–वह कृषि जिसमें फसलों को उगाने के साथ-साथ पशुओं को पालने का कार्य भी किया जाता है।

→ डेयरी फार्मिंग-जिस कृषि पद्धति में दूध व दुग्ध पदार्थों की नगरीय माँग को पूरा करने के लिए पशुओं, विशेष रूप से गायों के पालन और प्रजनन पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

→ ट्रक कृषि-नकदी कमाने अथवा व्यापार के उद्देश्य से सब्जियों व फलों की विशेषीकृत कृषि जो नगरों से काफी दर सुगम मार्गों से जुड़े स्थानों पर की जाती है और जिसमें परिवहन की आवश्यकता पड़ती है।

→ प्राथमिक क्रियाएँ-प्राथमिक क्रियाएँ प्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण पर निर्भर हैं। इसमें आखेट, भोजन संग्रह, पशुचारण, मछली पकड़ना, वनों से लकड़ी काटना, कृषि व खनन कार्य शामिल किए जाते हैं।

→ खनन-भूपर्पटी से मूल्यवान धात्विक व अधात्विक खनिजों के निकालने की प्रक्रिया।

→ कोलखहोज–सामूहिक कृषि का सोवियत संघ द्वारा दिया गया नाम।

→ सहकारी कृषि-जब कृषकों का एक समूह अपनी कृषि से अधिक लाभ कमाने के लिए स्वेच्छा से एक सहकारी संस्था बनाकर कृषि कार्य सम्पन्न करे।

→ आखेट-वनों से जंगली जानवरों का शिकार करना तथा जल से मछली व सील इत्यादि जन्तुओं को पकड़ना।

→ कृषि-विभिन्न प्रकार की फसलों का बोया जाना तथा पशुपालन कृषि के अन्तर्गत आता है।

→ गहन कृषि उत्तम बीज, अधिक श्रम, वैज्ञानिक उपकरणों तथा रासायनिक खाद आदि के प्रयोग से प्रति इकाई क्षेत्र में अधिक उत्पादन देने वाली खेती गहन कृषि कहलाती है।

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