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 Bihar Board Class 12th Political Science Notes Chapter 10 राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ

Bihar Board Class 12th Political Science Notes Chapter 10 राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ

→ 14-15 अगस्त, 1947 की मध्यरात्रि को भारत स्वतन्त्र हुआ।

→ स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू ने इस रात (14-15 अगस्त, 1947) संविधान सभा के एक विशेष सत्र को सम्बोधित किया था। उनके द्वारा दिया गया यह प्रसिद्ध भाषण ‘भाग्यवधू से चिर-प्रतीक्षित भेंट’ या ‘ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ के नाम से जाना जाता है।

→ स्वतन्त्रता प्राप्ति के साथ ही देश का विभाजन दो राष्ट्रों-भारत और पाकिस्तान में हुआ।

→ स्वतन्त्र भारत के समक्ष निम्नलिखित चुनौतियाँ (बाधाएँ) थीं –

  1. भारत की क्षेत्रीय अखण्डता को बनाए रखना,
  2. लोकतान्त्रिक व्यवस्था को सफलतापूर्वक लागू करना,
  3. आर्थिक विकास तथा गरीबी को समाप्त करने हेतु नीति-निर्धारित करना,
  4. शरणार्थियों का पुनर्वास करना।

→ स्वतन्त्रता के तुरन्त पश्चात् राष्ट्र-निर्माण की चुनौती सबसे प्रमुख चुनौती थी। अत: राष्ट्रीय एकता और सुरक्षा का प्रश्न सबसे प्रमुख चुनौती के रूप में उभरकर सामने आया।

→ खान अब्दुल गफ्फार खाँ जिन्हें ‘सीमान्त गांधी’ के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त थी, पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त के निर्विवाद नेता थे तथा ‘द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त’ के विरोध में थे।

→ ‘ब्रिटिश इण्डिया’ के मुस्लिम बहुल प्रान्त पंजाब और बंगाल के अनेक हिस्से बहुसंख्यक गैर-मुस्लिम आबादी वाले थे। अत: फैसला हुआ कि इन दोनों प्रान्तों में भी विभाजन धार्मिक बहुसंख्यकों के आधार पर होगा। पंजाब और बंगाल का विभाजन देश के बँटवारे की सबसे बड़ी त्रासदी साबित हुआ।

→ पहले जिसे पूर्वी बंगाल कहा जाता था, वही आज बंगलादेश है। इसी कारण वर्तमान में भारत के बंगाल को ‘पश्चिमी बंगाल’ कहा जाता है।

→ अल्पसंख्यकों की समस्या विभाजन की सबसे बड़ी कठिनाई थी। सीमा के दोनो तरफ ‘अल्पसंख्यक’ थे।

→ विभाजन के परिणामस्वरूप एक स्थान की आबादी दूसरे स्थान पर जाने को मजबूर हुई। आबादी का यह स्थानान्तरण आकस्मिक,अनियोजित तथा त्रासदी से पूर्ण था। मानव इतिहास के अब तक ज्ञात स्थानान्तरणों में से यह एक था।

→ बँटवारे के फलस्वरूप शरणार्थियों की समस्या उत्पन्न हो गयी। लाखों लोग बेघर हो गए एवं लाखों की संख्या में शरणार्थी भारत आए जिनको पुनर्वास की समस्या का सामना करना पड़ा।

→ बँटवारे के परिणामस्वरूप विरासत के रूप में हमें जो दूसरी सबसे बड़ी समस्या मिली थी, वह थी रजवाड़ों (रियासतों) का स्वतन्त्र भारत में विलय करना।

→ स्वतन्त्रता प्राप्ति से पूर्व भारत दो भागों में विभक्त था। एक भाग में ब्रिटिश प्रभुत्व वाले भारतीय प्रान्त थे – तथा दूसरे भाग में देसी रजवाड़े।

→ ब्रिटिश सरकार ने भारतीय उपमहाद्वीप की 565 देसी रियासतों को यह अधिकार प्रदान कर दिया था कि वे भारत अथवा पाकिस्तान में स्वेच्छा से शामिल हो जाएँ या अपना स्वतन्त्र अस्तित्व बनाए रखें।

→ देसी रियासतों की जनता संविधान सभा में प्रतिनिधित्व एवं राजनीतिक अधिकारों की आकांक्षा प्रकट कर रही थी, कुछ देसी रियासतों के शासक महत्त्वांकाक्षी थे, जो अपना स्वतन्त्र अस्तित्व बनाए रखने के लिए कृत संकल्प थे।

→ पाकिस्तान राष्ट्र के निर्माता मुहम्मद अली जिन्ना देसी रियासतों को पाकिस्तान में मिलने के लिए प्रलोभित कर रहे थे। ऐसी विषम परिस्थितियों में अन्तरिम सरकार के गृहमन्त्री सरदर वल्लभभाई पटेल ने साहस व धैर्य के साथ भारत के एकीकरण का मार्ग प्रशस्त किया।

→ सरदार पटेल ने देसी रियासतों की भौगोलिक, आर्थिक स्थिति एवं प्रजा की इच्छाओं को दृष्टि में रखकर नीतिगत कार्य किया और अपनी कुशल व शीघ्र कार्यशैली के फलस्वरूप 15 अगस्त, 1947 से पूर्व ही कश्मीर, हैदराबाद एवं जूनागढ़ को छोड़कर अन्य सभी देसी रियासतों को भारत में शामिल होने के पक्ष में कर लिया।

→ जूनागढ़ रियासत का शासक पाकिस्तान में शामिल होना चाहता था, परन्तु जूनागढ़ रियासत की जनता भारत में शामिल होने के पक्ष में थी। ऐसी स्थिति मे जनता के डर से जूनागढ़ का शासक पाकिस्तान भाग गया तथा जूनागढ़ रियासत का भारत में विलय हो गया।

→ हैदराबाद का शासक (निजाम) अपना स्वतन्त्र अस्तित्व बनाए रखना चाहता था। भारत सरकार ने हैदराबाद पर बल प्रयोग किया। अन्तत: हैदराबाद के निजाम ने विवश होकर सन् 1948 में भारतीय संघ में अपने को सम्मिलित कर लिया।

→ कश्मीर रियासत के राजा हरिसिंह ने भी प्रारम्भ में अपना स्वतन्त्र अस्तित्व बनाए रखने का निश्चय किया,परन्तु पाकिस्तान ने जब बलात् कश्मीर पर अधिकार करने का प्रयास किया और पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया तो महाराज हरिसिंह ने भारतीय संघ में सम्मिलित होने एवं सैन्य सहायता की माँग भारत सरकार से की।

→ अन्तत: 26 अक्टूबर, 1947 को कश्मीर के महाराजा हरिसिंह ने औपचारिक रूप से भारतीय संघ में अपने को शामिल कर लिया।

→ भारतीय प्रान्तों की आन्तरिक सीमाओं को तय करने की चुनौती भी देश के समक्ष थी। केन्द्र सरकार ने भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन किया।

→ सन् 1953 में केन्द्र सरकार ने राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया। इस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर सन् 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित किया गया। इस आधार पर 14 राज्य व 6 केन्द्रशासित प्रदेश बनाए गए। इस अधिनियम में राज्यों के पुनर्गठन का आधार भाषा को बनाया गया।

→ ट्रिस्ट विद डेस्टिनी-स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरू ने 14-15 अगस्त,
1947 की मध्यरात्रि को संविधान सभा के एक विशेष सत्र को सम्बोधित किया था। उनका यह प्रसिद्ध भाषण ‘भाग्यवधू से चिर-प्रतीक्षित भेंट’ या ‘ट्रिस्ट विद् डेस्टनी’ के नाम से जाना जाता है।

→ लोकतान्त्रिक संविधान-लोकतान्त्रिक संविधान में उन नियमों का संग्रह किया जाता है जिनके आधार . पर समस्त नागरिकों के साथ समानता का व्यवहार किया जाता है।

→ राज्य के नीति-निदेशक सिद्धान्त-राज्य के नीति-निदेशक सिद्धान्त संविधान के चौथे भाग में वर्णित हैं। ये सिद्धान्त संघ और राज्यों की सरकार के लिए शासन के सिद्धान्त निश्चित करते हैं। इन सिद्धान्तों का उद्देश्य भारत में आर्थिक व सामाजिक लोकतन्त्र की स्थापना करना है।

→ द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त-द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त की बात मुस्लिम लीग ने की थी। इस सिद्धान्त के अनुसार भारत किसी एक कौम (जाति) का नहीं बल्कि ‘हिन्दू’ और ‘मुसलमान’ नाम की दो कौमों का देश था और इसी कारण मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए एक अलग देश अर्थात् पाकिस्तान की मांग की थी।

→ साम्प्रदायिकता-अपने सम्प्रदाय को दूसरे से ऊँचा समझना तथा दूसरे सम्प्रदाय वालों से घृणा करना एवं येन-केन प्रकारेण हानि पहुँचाना साम्प्रदायिकता कहलाता है।

→ धर्मनिरपेक्ष राज्य-धर्मनिरपेक्ष राज्य से आशय एक ऐसे राज्य से है जो धर्म के आधार पर नागरिकों में कोई भेदभाव नहीं करता तथा उसका दृष्टिकोण सर्वधर्म समभाव होता है। भारतीय संविधान द्वारा देश में धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना की गयी।

→ रजवाड़ा/रियासत-ब्रिटिश इण्डिया में छोटे-बड़े आकार के कुछ और राज्य थे। इन्हें रजवाड़ा या रियासत कहा जाता था। रजवाड़ों पर राजाओं का शासन था।

→ अलगाववाद-जब एक समुदाय या सम्प्रदाय संकीर्ण भावना से ग्रस्त होकर अलग एवं स्वतन्त्र राज्य बनाने की माँग करे तो उसे अलगाववाद कहा जाता है।

→ सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार से तात्पर्य मतदान करने की ऐसी प्रणाली से है जिसमें एक निश्चित अवस्था प्राप्त करने पर बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक नागरिक को चुनाव में मत देने का अधिकार दिया जाता है। भारत में वयस्क मताधिकार की आयु 18 वर्ष है।

→ महात्मा गांधी-सत्य-अंहिसा के पुजारी, भारत को अंग्रेजी दासता से स्वतन्त्र कराने में उल्लेखनीय योगदान दिया। 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे द्वारा दिल्ली में गोली मारकर इनकी हत्या कर दी गयी।

→ पं० जवाहरलाल नेहरू-स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री बने। इन्होंने 14-15 अगस्त, 1947 की मध्यरात्रि को संविधान सभा के एक विशेष सत्र को सम्बोधित किया। इनका यह प्रसिद्ध भाषण ‘ट्रिस्ट विद् डेस्टिनी’ के नाम से जाना जाता है।

→ सरदार वल्लभभाई पटेल-स्वतन्त्र भारत के प्रथम उप-प्रधानमन्त्री व प्रथम गृहमन्त्री। इनके नेतृत्व में ही देसी रियासतों का भारत में विलय हुआ।

→ मुहम्मद अली जिन्ना-पाकिस्तान के निर्माता। इन्होंने भारत विभाजन में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया।

→ खान अब्दुल गफ्फार खाँ-‘सीमान्त गांधी’ के नाम से प्रसिद्ध। द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त के विरोधी थे। ये पश्चिमोत्तर सीमान्त प्रान्त के निर्विवाद नेता थे।

→ फैज अहमद फैज-प्रसिद्ध कवि। विभाजन के बाद पाकिस्तान में ही रहे। ‘नक्शे फरियादी’, ‘दस्त-ए-सबा’ तथा ‘जिन्दानामा’ इनके प्रमुख कविता संग्रह थे।

→ अमृता प्रीतम-पंजाबी भाषा की प्रमुख कवयित्री और कथाकार। जीवन के अन्तिम समय तक पंजाबी की साहित्यिक पत्रिका ‘नागमणि’ का सम्पादन किया।

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