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 bihar board 8th class sanskrit notes | मंगलम्

bihar board 8th class sanskrit notes | मंगलम्

bihar board 8th class sanskrit notes

वर्ग – 8

विषय – संस्कृत

पाठ 1 – मंगलम्

मंगलम्
( उपसर्ग , अयादि संधि                    [ भारत की प्राचीन………….. कामना की गई है।]

संगच्छध्वं………………..…………  उपासते ।।
अर्थ – शिष्यो ! तुम सब साथ चलो , साथ बोलो , तुम सब समान रूप से मन में चिन्तन करो । जैसे प्राचीन काल में देवता लोग अपने हिस्से ( भाग ) का ही हविष्यान्न को ग्रहण करते थे उसी प्रकार तुम सब भी मिल – जुलकर भोग्य वस्तु का उपभोग करो ।
सह नाववतु सह ………………. विद्विषावहै ।

अर्थ – भगवान हम दोनों ( गुरु – शिष्य ) को एक साथ ( समान रूप से ) रक्षा करें । हम दोनों एक साथ ( समान रूप से ) किसी चीज का उपभोग करें । हमदोनों समान रूप से पराक्रम ( परिश्रम ) करें । अध्ययनकृत ज्ञान से हम दोनों में तेजस्विता का गुण आवे । हम दोनों परस्पर ( एक – दूसरों से ) विद्वेष न करें ।
शब्दार्थ –

संगच्छध्वम् = तुमलोग साथ चलो । संवदध्वम् = तुम सब साथ बोलो । वो ( वः ) = तुम्हारे । मनांसि = मन ( बहुवचन ) । संजानताम् = एक साथ चिन्तन करें । देवाः = श्रेष्ठ पुरुष । पूर्वे = प्राचीन काल के । भागम् = अपने प्राप्य अंश को । सञ्जानानाः = समान चित्त वाले । सह = साथ । नौ = हमदोनों । उपासते = समीप रहते हैं , ग्रहण करते हैं । भुनक्तु = भोजन करे , भोगे । अधीतम् = ज्ञान , पढ़ा हुआ विषय । मा = नहीं । विद्विषावहै = ( हमदोनों ) विद्वेष करें । नाववतु ( नौ + अवतु ) = हमदोनों की रक्षा करें ।
व्याकरणम्

सन्धि – विच्छेदः –

नाववतु = नौ + अवतु । नावधीतमस्तु = नौ + अधीतम् + अस्तु ।
अभ्यासः

मौखिक-

1. मन्त्रौ श्रावयत ( दोनों मन्त्रों को सुनाओ । )
2. स्वस्मरणेन कञ्चित् मंगलश्लोकं श्रावयत । ( अपने स्मरण से कोई मंगल श्लोक को सुनाओ । ) 3. उच्चैः गायत ( जोर से गाओ )
( क ) मंगलं भगवान ……………।
…………………. हरिः ।।

4 . रिक्त स्थानानि पूरयत –

( क ) …….. संवदध्वं सं ……… जानताम् । देवा भागं………सञ्जानाना…….।
उत्तर -संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम् । देवा भागं यथा पूर्वे सञ्जानाना उपासते ।।
( ख ) पावकः = पौ + अकः
नायकः = नै + …………..
नयनम् = ………… + अनम्
नाविक =…………+…………..
पवनः = ………….+………..
भवनम् =भो+…………..
उत्तर ( ख ) पावकः = पौ + अकः । नायकः = नै + अकः । नयनम् = ने + अनम् । नाविकः = नौ + इक । पवनः = पो + अन । भवनम् = भो + अनम् ।

5. संस्कृते अनुवादं कुरुत ( संस्कृत में अनुवाद करें )

( क ) वह प्रतिदिन विद्यालय जाता है ।
( ख ) मेरे साथ तुम भी जाओगे ।
( ग ) सभी सुखी हो ।
( घ ) संसार ही परिवार है ।
( ङ ) दिल्ली भारत की राजधानी है ।

उत्तरम् ( क ) सः प्रतिदिनं विद्यालयं गच्छति ।
( ख ) मया सह त्वं अपि गमिष्यसि ।
( ग ) सर्वे भवन्तु सुखिनः ।
( घ ) वसुधैव कुटुम्बकम् ।
( ङ ) दिल्ली भारतस्य राजधानी अस्ति ।

6. वाक्यानि रचयत   :-

यथा – ऋतुराज : =वसन्तः ऋतुराजः कथ्यते।
(क) दृष्ट्वा = चौरः राजपुरुषं दृष्ट्वा अपलायत् ।
( ख ) महोत्सवः = दीपावली महोत्सवः भवति । ( ग ) शनैः शनैः = वायुः शनैः शनैः चलति ।
( घ ) गच्छन्ति= बालकाः गृहं गच्छन्ति ।
( ङ ) वेदेषु= वेदेषु ऋग्वेदः श्रेष्ठः अस्ति ।

7. उदाहरणानुसारं पदानि पृथक् कुरुत

यथा – सर्वेषामेव = सर्वेषाम् + एव ।
अधीतमस्तु = अधीतम् + अस्तु ।
अध्ययनमेव = अध्ययनम् + एव ।
वर्षमस्ति = वर्षम् + अस्ति ।
समुद्रमिव =समुद्रम् + इव ।

8. भिन्न प्रकृतिकं पदं चिनुत-

( क ) सिंहः , कुक्कुरः , गर्दभः , भल्लूकः , शुकः । ( ख ) जम्बुः , आमम् , नारिकेलम् , ओदनम् , अमृतफलम् ।
( ग ) रजकः , नापितः , लौहकारः , स्वर्णकारः , वस्त्रम् ।
( घ ) मस्तकम् , ग्रीवा , ओष्ठः , पौत्रः , कपोलः । ( ङ ) दशाननः , सप्त , शतम् , विंशतिः , द्वादश । उत्तरम्= ( क ) शुकः । ( ख ) ओदनम् । ( ग ) वस्त्रम् । ( घ ) पौत्रः । ( ङ ) दशाननः । ( क ) दृष्ट्वा

9. कोष्ठे दत्तानां लट्पाणां लग रूपाणि ( एकवचन लिखत ) –

यथा– ( उज्जवलः पुस्तकं पठति ) उज्जवल : पुस्तकम् अपठत् ।
( क ) शाम्भवी जलं ( पिबति ) उत्तरम् – शाम्भवी जलं अपिबत् ।
( ख ) आलोकः उच्चैः ( हसति ) उत्तरम् -आलोकः उच्चैः अहसत् ।
( ग ) इकबालः पत्र ( लिखति ) उत्तरम् – इकबालः पत्रं अलिखित् ।
( घ ) आफताबः कुत्र ( गच्छति ) उत्तरम् – आफताबः कुत्र अगच्छत् ।
( ङ ) अनुष्का श्लोकं ( वदति ) उत्तरम् – अनुष्का श्लोकं अवदत् ।

10. भवान् / भवती विद्यालयस्य प्राङ्गणस्य चित्रे किं किं पश्यति ?

यथा -1 . अहं चित्रे एक वृक्षं पश्यामि ।
2. अहं चित्रे एक नल कुपं पश्यामि ।
3. अहं चित्रे एक खेल क्षेत्रं पश्यामि ।
4. अहं चित्रे विद्यालयस्य भवनं पश्यामि ।
5. अहं चित्रे बालकान् पश्यामि ।
6. अहं चित्रे शिक्षकान् पश्यामि ।

               योग्यता – विस्तारः

भारतवर्ष की धार्मिक परम्परा में ऐसा विश्वास रहा है कि किसी कार्य को आरम्भ करते समय तथा उसके समापन के समय माङ्गलिक वचनों का उच्चारण किया जाये । वैयाकरण पतञ्जलि ने कहा है — मङ्गलादीनि मङ्गलान्तानि शास्त्रणि प्रथन्ते । अर्थात् जिन शास्त्रों के आरम्भ और अंत में मङ्गल कार्य होते हैं वे बहुत दूर तक और बहुत दिनों तक प्रचलित रहते हैं । इसलिए कार्य के स्थायित्व एवं लोकप्रिय होने के लिए आरम्भ में मङ्गलाचरण आवश्यक है । इसमें किसी देवता या आराध्य व्यक्ति की वन्दना की जाती है अथवा संसार के सुखी होने की कामना की जाती है । यद्यपि यह मङ्गल कार्य शास्त्रीय दृष्टि से प्रचलित हुआ था किन्तु आगे चलकर सभी कार्यों के लिए आवश्यक माना गया । तभी तो किसी भवन के निर्माण के पूर्व वास्तुपूजा , गृहप्रवेश में सत्यनारायण आदि की पूजा की जाती है । मध्यकाल में कार्य की निर्विघ्न समाप्ति के लिए मङ्गलाचरण आवश्यक माना गया ।
भौतिकवादी युग में भी किसी – न – किसी रूप में शिलान्यास , उद्घाटन इत्यादि के कार्य मङ्गल समझकर ही किये जाते हैं । संस्कृत में भी कहा गया था कि ग्रन्थ में नमस्कार या आशीर्वाद की कामना न होने पर भी कथानक को केवल सूचना दे देना ( वस्तुनिर्देश ) भी मङ्गल का स्वरूप है । वस्तुतः मङ्गल इस आस्था पर आश्रित है कि हमारा कार्य विघ्न – बाधा के बिना पूरा हो जाए ।
प्रस्तुत पाठ में ऋग्वेद के अन्तिम सूक्त का एक मंत्र है जिसमें सभी लोगों के मिल – जुलकर रहने , समान हृदय , समान विचार तथा सामञ्जस्य की कामना है । एकता का संकेत इससे मिलता है । दूसरा मन्त्र कुछ उपनिषदों के मङ्गल पाठ के रूप में है जिसमें गुरु – शिष्य के बीच सौहार्द्र तथा विद्या के आदान – प्रदान की भास्वरता की सुन्दर कामना है । ।

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