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 Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 9 बाल-लीला

Bihar Board Class 6 Hindi बाल-लीला Text Book Questions and Answers

प्रश्न-अभ्यास

पाठ से –

प्रश्न 1.
अपने साथियों द्वारा लगाये आरोपों को झठा बताने के लिये कृष्ण अपनी माँ के सामने कौन-कौन से तर्क रखते हैं?
उत्तर:
श्रीकृष्ण भाँति-भाँति तर्क देकर अपनी माँ को आश्वस्त करना चाहते हैं कि उन्होंने माखन नहीं खाये। कन्हैया का पहला तर्क है कि माँ, तुम तो मुझे सुबह होते ही गौवों की रखवाली के लिये मधुवन भेज देती हो। फिर मैं तो गौवों के साथ शाम को ही घर लौट पाता हूँ। फिर मैं माखन कब चुराता हूँ? दूसरी बड़ी बात तो यह है कि मक्खन का मटका.तो छींके पर लटकता है। वहाँ तक मेरी छोटी बाँह पहुँच ही नहीं पायेगी। तीसरी बात तो मैया यह है कि ग्वाल-बाल मुझे बदनाम करने के लिये मक्खन मेरे मुँह में लगा देते हैं _और तुम तो इतनी भोली हो कि इनकी बातों में आ जाती हो। कन्हैया अपने बचाव में अन्तिम अस्त्र फेंकते हैं और कहते हैं कि तुम्हारे मन में भी कुछ भेद है क्योंकि मैं तो तेरा बेटा हूँ नहीं। मुझे जन्म देने वाली माँ तो और है – फिर तुम मुझ पर कैसे विश्वास करोगी?

प्रश्न 2.
नीचे कुछ पंक्तियाँ दी हुयी हैं। इन पंक्तियों से बाल-लीला के पदों को छाँटकर लिखिये जिनका भावार्थ उन पंक्तियों में दिया गया है।

(क) माँ मैं अभी बहुत छोटा हूँ, छोटी-छोटी मेरी बाहें हैं। सींका (छींका) मैं किस तरह पा सकता हूँ। माँ मेरे दोस्त अभी दुश्मन बन बैठे हैं। मेरे मुँह पर जबरदस्ती माखन लगा दिये हैं
उत्तर:
में बालक बहियन को छोटो. छींको केहि विधि पायो।
ग्वाल-बाल सन बैर पड़े हैं, बरबस मुख लपटायो।।

(ख) माँ, अपनी यह लाठी और कम्बल लो । तूने मुझे बहुत परेशान किया है। इस पर यशोदा हँसकर कृष्ण को गले से लगा लेती है।
उत्तर:
सूरदास, तब बिहंसी जसोदा, लै उर कंठ लगायो ।।

पाठ से आगे –

प्रश्न 1.
अपने बचपन की कोई भी मजेदार घटना लिखिए –
उत्तर:
अपने बचपन की एक मजेदार कहानी लिखता हूँ। मैं नानी के घर गया था। बचपन में नटखट जैसा मेरा स्वभाव था। मैंने अपने चाचा का एक रेडियो छिपाकर रख दिया । खांज शुरू हुई लेकिन बिना साक्षी के वे मुझसे कुछ नहीं कह सके । कई दिन बीत गये तांत्रिक आये ज्योतिषी आये, सबों ने बताया रेडियो घर से बाहर चला गया लेकिन रेडियो उन्हीं के घर में था। लेकिन चोरी दूसरे के दरवाजे से मैंने की थी।

अंत में मैंने 100 रुपये की मिठाई पर रेडियो खोज निकालने की बात तय की। मिठाई आया हमने वहाँ के सभी लोगों में मिठाई बाँटी और स्वयं भी खायी। बात तो पक्की थी कुछ ही क्षणों में रेडियो उनके घर से निकालकर उनके सामने रखा और मिठाई खाने के विचार से रेडियो छिपाने की बात सबों के सामने रखीं।

वस्तुतः हमें तब मजा आता था जब ज्योतिषियों ने रेडियो नहीं मिलने की बात बताते थे तथा तांत्रिकों का झूठा कथन सुनकर मुझे आनन्द आता था।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पद का अर्थ अपनी मातृभाषा में कीजिए।

(क) मैं बालक बहियन को छोटो, छींको केहि विधि पायो।
ग्वाल-बाल सब बैर परे हैं, बरबस मुख लपटायो॥
उत्तर:
माँ, मैं तो बच्चा हूँ, मेरे हाथ भी छोटे-छोटे हैं ऊँचे सींक को मैं कैसे प्राप्त कर सकता हूँ। ये ग्वाल के बच्चे मुझसे दुश्मनी पाल रखे हैं। माखन खाये वे तथा जबर्दस्ती मेरे मुँह में माखन लगा दिये जिससे मैं चोर साबित हो जाऊँ।

(ख) तू जननी मन की अति भोरी, इनके कहि पतियायो।
जिय तेरे कछु भेद उपजिहैं, जानि परायो जायो ।
उत्तर:
माँ तो मन की अति भोली है इसीसे तो इनकी बातों पर विश्वास कर ली है। तुम्हारे हृदय में मेरे प्रति कुछ भेद उत्पन्न हो गया है क्योंकि तुम मुझको पराय का पुत्र मान रही हो।

व्याकरण –

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों को स्थानीय बोली में क्या कहते हैं ? लिखिए।
भटक्यो, बहियन, छींको, परायो, लुकटी।
उत्तर:
भटक्यो = भटकते रहा।
बहियन = बाँह ।
छींको = सीका।
परायो = पराया।
लुकटी = डण्डा।

कुछ करने को –

प्रश्न 1.
प्रस्तुत कविता में कृष्ण के 6-7 वर्ष की उम्र का वर्णन है। अपने याददास्त के आधार पर लिखिए कि जब आप इस उम्र के थे तो उस समय आपकी माँ आपके लिए क्या-क्या करती थी ?
उत्तर:
जब हम 6-7 वर्ष के थे तो माँ हमारे लिए खाना बनाती थी। अपने साथ खिलाती थी। हमें सुलाती थी। कुछ कहानी भी सुनाती थी। कुछ पढ़ाती भी थी।

प्रश्न 2.
सूरदास की कोई दूसरी रचना को भी खोजिए और पढ़िए ।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

बाल-लीला Summary in Hindi

पाठ का सार-संक्षेप

सूरदास एक सन्त कवि थे और श्रीकृष्ण उनके आराध्य कहते हैं वे जन्म से अन्धे थे पर उनके हृदय में श्रीकृष्ण की मनोहारी छवि सदा बसती थी। श्रीकृष्ण की लीला का अत्यन्त विस्तार से उन्होंने अपने पदों (काव्य रचनाओं) में वर्णन किया है। पर श्रीकृष्ण के बालरूप पर वे मोहित थे और बाल-लीला संबंधी सूरदास के पदों में बाल-लीला, बाल-क्रीड़ा का अत्यन्त सजीव चित्रण मिलता है। इस पाठ्य पुस्तक में बाल-लीला संबंधी पद संकलित हैं जिनका भावार्थ नीचे दिया जा रहा है। ये पद ब्रजभाषा में लिखे गये हैं और ब्रजभाषा की मिठास का दर्शन अग्रलिखित पदों में मिलता है –

भावार्थ – बाल कन्हैया थोड़े बड़े हो जाते हैं और अपने संगी-साथी, हमजोलियों के साथ खेलने लगते हैं। आस-पड़ोस की ग्वाल-बालायें, यशोदा मैया के पास यह उलाहना लेकर आती हैं कि तेरे पुत्र ने मेरे माखन चुराकर खा लिये। यशोदा मैया के मन को ठेस पहुँचती है। वह तिलमिला उठती है और बाल कन्हैया के इस आचरण पर क्षोभ प्रकट करती है। वह कन्हैया को डाँट बताती है और छोटा-सा कन्हैया – माँ को अपनी तुतली बोली में सफाई देता है- “मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो।” मैया मैंने माखन चुराकर नहीं खाये। अब देखो ना माँ – तू तो भोर होते ही गौओं के साथ जंगल (मधुवन) भेज देती हो। मैं तो सुबह से शाम तक उन गौंओं के पीछे भटकता रहता हूँ और फिर शाम ढलने पर ही वापस आता हूँ। फिर देखो ना माँ, मेरे हाथ तो छोटे-छोटे हैं – फिर छींके तक मेरी बाँह कैसे पहुँच जायेंगे। छींका तो ऊँचाई पर लटका है। ये ग्वाल-बाल मुझसे वैर (भेद-भाव, दुश्मनी) रखते हैं। इन्होंने मक्खन स्वयं चुराकर खाये और जबरदस्ती मेरे मुँह में लपेट दिया ताकि मैं ही पकड़ा जाऊँ। और फिर माँ तू भी कितनी भोली-भाली है कि इनकी बातों को तुमने सच मान लिया। मुझे तो अब लगता है कि तुम्हारे मन में भी कुछ खोट (भेद) पैदा हो गया है क्योंकि मैं तेरा बेटा नहीं हूँ। तू जानती है कि मेरा जन्म देने वाली माँ तो कोई और है।

फिर कन्हैया तमक कर, रूष्ट होकर यशोदा मैया को कहते हैं – तु अपनी यह लकुटी (छोटी छड़ी) और काली कम्बल ले ले। तूने माँ, मुझे बहुत सताया। आगे से मैं तेरी कोई बात नहीं मानूँगा।

कन्हैया के इस बाल सुलभ कौतुक से माँ यशोदा का मन पसीज जाता है और वह कन्हैया को गोद में उठाकर अपने गले में लगा लेती है।

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