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 Bihar Board Class 7 Sanskrit व्याकरण समास

BSEB Bihar Board Class 7 Sanskrit व्याकरण समास

अनेक पदों का मिलाकर एक पद हो जाना ‘समास’ कहलाता है । संस्कृत में समास की परिभाषा देते हुए कहा गया है- “समसनम् अनेकेषां पदानाम एकपदी भवन् समासः” ।

उदाहरण के लिए एक समस्तपद लें- “राजपुरुषः” । इसमें दो पद – शामिल हैं, जो ये हैं- “राज्ञः (राजा का) एवं “पुरुषः” (पुरुष या आदमी ।)

संस्कृत में समास के प्रमुख भेद निम्नांकित हैं

  1. तत्पुरुष समास- जैसे, राजपुरुषः आचारनिपुणः ।
  2. अव्ययीभाव समास- जैसे, उपनदम, यथाशक्तिः ।
  3. कर्मधारय समास- जैसे, महाकविः नीलोत्पलम् ।
  4. मध्यपदलोपी समास- जैसे, गुडधानाः, सिंहासनम् ।
  5. बहुव्रीहि समास- जैसे, चन्द्रशेखरः, शूलपाणिः ।
  6. अलुक् समास- जैसे, आत्मनेपदम्, परस्मैपदम् ।
  7. द्विगु समास- जैसे, अस्वस्थः, अनागतः ।
  8. नञ् समास- जैसे, अस्वस्थः, अनागतः ।
  9. द्वन्द्व समास- जैसे, रामकृष्णौ, पुण्यपापे ।
  10. उपपद समास- जैसे, कुम्भकारः, विहगः ।

स्मरणीयः

समस्त पद – विग्रह

  1. अतिनिद्रम् – निद्रा सम्प्रति न युज्यते
  2. अनुगृहम् – गृहस्य पश्चात्
  3. अतिहिमम् – हिमस्य अत्यय:
  4. अनुरूपम् – रूपस्य योग्यम्
  5. अनभिज्ञः – न अभिज्ञः
  6. अयोग्यम् – न योग्यम्
  7. अन्यायः – न न्यायः
  8. अभाव: – न भाव:
  9. अनन्तः – न अन्तः
  10. अनाहारः – न आहारः
  11. उपगृहम् – गृहस्य समीपम्
  12. उपकृष्णम् – कृष्णस्य समीपम्
  13. उपगङ्गम् – गङ्गायाः समीपम्
  14. कर्मकुशल: – कर्मणि कुशल:
  15. कषोतराजः – कपोतानां राजा
  16. कृष्णसर्पः – कृष्णः सर्पः
  17. कापुरुषः – कुत्सितः पुरुषः
  18. कुपथम् – कुत्सितं पथम्
  19. कमलनयनम् – कमल इव नयनं यस्य
  20. गङ्गाजलम् – गङ्गायाः जलम्
  21. गिरिधरः – गिरि धरति यः सः
  22. गौरीशंकरः – गौरी च शंकरः च
  23. घनश्यामः – घन इव श्यामः
  24. चन्द्रशेखरः – चन्द्रः शेखरे यस्य सः
  25. चन्द्रोदय: – चन्द्रस्य उदयः
  26. चरणकमलम् – चरणे कमले इव
  27. चक्रपाणि: – चक्रं पाणी यस्य सः
  28. जितेन्द्रियः – जितानि इन्द्रियाणि येन सः
  29. जायापती – जाया च पतिश्च
  30. त्रिलोकी – त्रयाणां लोकानां समाहार;
  31. देवभाषा – देवानां भाषा
  32. द्रुतगामी – द्रुतं गच्छति यः
  33. धर्मच्युतः – धर्मात् च्युत
  34. नीलकण्ठः – मोलः कण्ठः यस्य सः
  35. नीलकमलम् – नीलं कमलम्
  36. नीलोत्पलम् – नीलम् उत्पलम्
  37. निर्जनम् – जनानाम् अभाव:
  38. निर्मक्षिकम् – मक्षिकाणाम् अभाव:
  39. प्रतिदिनम् – दिनं दिनं प्रति
  40. प्रत्येकम् – एकम् एकम् प्रति
  41. पितापुत्री – पिता च पुत्रश्च
  42. पीताम्बरः – पीतम् अम्बरं यस्य सः
  43. भवसागरः – भव एव सागरः
  44. मातापितरौ – पिता च माताश्च
  45. मुखकलम् – मुखं कमलम् इव
  46. महाराजः – महान् चासौ राजा
  47. महात्मा – महान् चासौ आत्मा
  48. महाजन: – महान् चासो जनः
  49. महापुरुषः – महान् चासौ पुरुषः
  50. यथाशक्तिः – शक्तिमनतिक्रम्य

संस्कृत अनुवाद के कुछ सामान्य नियम

(1) किसी वाक्य का कर्ता-पद यदि अन्य पुरुष एकवचन हो तो उसका क्रिया-पद भी अन्यपरुष एकवचन ही होगा । उदाहरण

हिन्दी – संस्कृत

  1. हरिण चरता है । – हरिणः चरति ।
  2. राम पढ़ता है। – रामः पठति ।
  3. घोड़ा दौड़ता है। – घोटक: धावति
  4. बालक पढ़ता है। – बालकः पठति ।
  5. सिंह गरजता है। – सिंह गर्जति ।
  6. मोहन खेलता है। – मोहन: क्रीडति ।
  7. कोयल कूकती है। – कोकिल: कूजति ।
  8. हंस तैरता है। – हंसः तरति ।
  9. मोर नाचता है। – मयूरः नृत्यति ।
  10. वह खाता है । – सः खादति |
  11. फल गिरता है। – फलम् पतति ।
  12. पत्ता है। – पत्रम् अस्ति ।

(2) किस वाक्य का कर्ता-पद भी अन्य पुरुष द्विवचन में हो तो उसका क्रिया पद भी अन्य पुरुष द्विवचन में होगा । उदाहरण

हिन्दी – संस्कृत

  1. (दो) हरिण चरते हैं। – हरिणौ चरतः ।
  2. (दो) घोड़े दौड़ते हैं। – घोटको धावतः :
  3. (दो) बालक पढते हैं। – बालको पठतः ।
  4. (दो) सिंह गजरते हैं। – सिंहौ गर्जतः ।
  5. (दो) मोहन खेलते हैं। मोहनौ खेलतेः ।
  6. (दो) कोयलें कूकती हैं। – कोकिलौ कूजतः ।
  7. (दो) हंस तैरते हैं। – हंसौ तरतः ।
  8. (दो) मोर नाचते हैं । – मयूरौ नृत्यतः ।
  9. (वे) दोनों खाते हैं । – तौ खादतः ।
  10. (वे) दोनों खाती हैं। – ते खादतः ।
  11. (दो) फल गिरते हैं। – फले पततः ।
  12. (दो) पत्ते हैं। – पत्रे स्तः

(3) किसी वाक्य का कर्ता-पद यदि अन्य बहुवचन में हो तो उसका क्रिया-पद भी अन्यपुरुष बहुवचन में ही होगा । उदाहरण

हिन्दी – संस्कृत

  1. (अनेक) हरिण चरते हैं। – हरिणाः चरन्ति ।
  2. (अनेक) घोड़े दौड़ते हैं। – घोटकाः धावन्ति ।
  3. (अनेक) बालक पढ़ते हैं। – बालकाः पठन्ति ।
  4. (अनेक) सिंह गरजते हैं। – सिंहाः गर्जन्ति ।
  5. (अनेक) मोहन खेलते हैं। – मोहनाः क्रीडन्तिः ।
  6. (अनेक) कोयलें कूकती हैं। – कोकिला: कूजन्ति ।
  7. (अनेक) हंस तैरते हैं। – हंसाः तरन्ति ।
  8. (अनेक) मोर नाचते हैं । – मयूराः नृत्यन्ति ।
  9. वे खाते हैं। – ते खादन्ति ।
  10. वे खाती हैं । – ताः खादन्ति ।
  11. (अनेक) फल गिरते हैं। – फलानि पतन्ति ।
  12. (अनेक) पत्ते हैं । – पत्राणि सन्ति ।

(4) किसी वाक्य का कर्ता-पद यदि मध्यमपुरुष एकवचन में हो तो उसका क्रिया-पद भी मध्यम पुरुष एकवचन में ही होगा । उदाहरण

हिन्दी – संस्कृत

  1. तुम जाते हो। – त्वम् गच्छसि ।
  2. तुम पढ़ते हो। – त्वम् पठसि ।
  3. तुम खाते हो । – त्वम् खादसि ।
  4. तुम हँसते हो । – त्वम् हससि ।
  5. तुम लिखते हो। – त्वम् लिखसि ।

(5) किसी वाक्य का कर्ता-पद यदि मध्यमपरुष द्विवचन में हो तो उसका क्रिया-पद भी मनपुरुष द्विवचन में ही होगा । उदाहरण

हिन्दी – संस्कृत

  1. तुम दोनों जाते हो। – युवां गच्छथः ।
  2. तुम दोनों पढ़ते हो। – युवा पठथः ।
  3. तुम दोनों खाते हो । – युवां खादथः ।
  4. तुम दोनों हँसते हो । – युवां हसथः ।
  5. तुम दोनों लिखते हो । – युवां लिखथः ।

(6) किसी वाक्य का कर्ता-पद यदि मध्यम पुरुष बहुवचन में हो तो उसका क्रिया-पद भी मध्यमपुरुष बहुवचन में होगा । उदाहरण

हिन्दी – संस्कृत

  1. तुमलोग जाते हो । – यूयं गच्छथ ।
  2. तुमलोग पढ़ते हो । – यूयं पठथ ।
  3. तुमलोग खाते हो। – यूयं खादथ ।
  4. तुमलोग हँसते हो । – यूयं हसथ ।
  5. तुमलोग लिखते हो। – यूयं लिखथ ।

(7) किसी वाक्य का कर्ता-पद यदि उत्तमपुरुष, एकवचन में हो उसका क्रिया-पद भी उसमपुरुष एकवचन में ही होगा । उदाहरण

हिन्दी – संस्कृत

  1. मैं जाता हूँ। – अहं गच्छामि ।
  2. मैं पढ़ता हूँ। – अहं पठामि ।
  3. मैं खाता है । – अहं खदामि ।
  4. मैं हँसता हूँ। – अहं हसामि ।
  5. मैं लिखता हूँ। – अहं लिखामि ।

(8) किसी वाक्य का कर्ता-पद यदि उत्तमपुरुष, द्विवचन में हो तो उसका क्रिया-पद भी उत्तम पुरुष, द्विवचन में ही होगा । उदाहरण

हिन्दी – संस्कृत

  1. हम दोनों जाते हैं। – आवां गच्छावः ।
  2. हम दोनों पढ़ते हैं। – आवां पठावः ।
  3. हम दोनों खाते हैं। – आवां खादवः ।
  4. हम दोनों हँसते हैं। – आवां हसावः ।
  5. हम दोनों लिखते हैं। – आवां लिखावः ।

(9) किसी वाक्य का कर्ता-पद यदि उत्तमपुरुष बहुवचन में हो तो । उसका क्रिया-पद भी उत्तमपुरुष बहुवचन में होगा । उदाहरण

हिन्दी – संस्कृत

  1. हमलोग जाते हैं। – वयं गच्छामः ।
  2. हमलोग पढ़ते हैं। – वयं पठामः ।
  3. हमलोग खाते हैं । – वयं खादामः |
  4. हमलोख लिखते हैं। – वयं लिखामः ।

(10) कोई भी वाक्य काल-भेद की दृष्टि से तीन रूपों में लिखा जा सकता है-हिन्दी भाषा में और संस्कृत भाषा में भी । ये काल-भेद हैंवर्तमानकाल, भूतकाल एवं भविष्यत्काल । वर्तमान काल के लिए संस्कृत में लट् लकार के क्रिया-रूप का प्रयोग होता है। उदाहरण

हिन्दी – संस्कृत

  1. राम जाता है। – रामः गच्छति ।
  2. वह जाता है। – सः गच्छति ।
  3. वह जाती है। – सा गच्छति ।
  4. तुम जाते हो। – त्वं गच्छसि ।
  5. मैं जाता हूँ। – अहं गच्छामि ।

ऊपर अनुवाद के लिए व्यावहारिक नियम-संख्या (1) से (10) तक दिये गये सभी उदाहरण वर्तमानकाल (लट् लकार) के हैं।

(11) संस्कृत में भूतकाल के वाक्य के लिए यों तो एक से अधिक लकार हैं, पर उनमें अधिक लोकप्रिय तथा प्रयोग की दृष्टि से सरल ‘लङ्ग लकार’ ही है । ‘लङ्’ लकार में अन्यपुरुष-मध्यमपुरुष के तीनों वचनों में उदाहरण नीचे दिये जाते हैं

हिन्दी – संस्कृत

  1. (एक) लड़का गया । – बालकः अगच्छत् ।
  2. (एक) लड़की गयी । – बालिका अगच्छत् ।
  3. (दो) लड़का गया । – बालकौ अगच्छताम् ।
  4. (दो) लड़कियाँ गयीं । – बालिके अगच्छताम् ।
  5. (अनेक) लड़के गये । – बालकाः अगच्छन् ।
  6. (अनेक) लड़कियाँ गयीं । – बालिकाः अगच्छन् ।
  7. तुम गये । – त्वम् अगच्छः ।
  8. तुम दोनों गये । – युवाम् अगच्छतम् ।
  9. तुमलोग गये । – यूयम् अगच्छत ।
  10. मैं गया । – अहम् अगच्छम ।
  11. हम दोनों गये । – आवाम् अगच्छाव ।।
  12. हमलोग गये । – वयम् अगच्छाम ।

(12) संस्कृत में भविष्यत्काल के वाक्य के लिए भी एक से अधि। क लकार है, पर उनमें सबसे अधिक लोकप्रिय तथा प्रयोग की दृष्टि से सरल ‘लुद्’ लकार ही है । लृट् लकार में अन्यपुरुष-मध्यम पुरुष-उत्तम पुरुष के तीनों वचनों में उदाहरण नीचे दिये जाते हैं उदाहरण

हिन्दी – संस्कृत

  1. (एक) लड़का पढ़ेगा । – बालकः पठिष्यति ।
  2. (एक) लड़की पढ़ेगी। – बालिका पठिष्यति ।
  3. (दो) लड़के पढ़ेंगे । – बालको पठिष्यतः ।
  4. (दो) लड़कियाँ पढेंगी। – बालिके: पठिष्यतः ।
  5. (अनेक) लड़कें पढेंगे । – बालकाः पठिष्यन्ति ।
  6. (पुं०) वह पढ़ेगा । – सः पठिष्यति ।
  7. (स्त्री०) वह पढ़ेगी । – सा पठिष्यति ।
  8. (पुं०) वे दोनों पढ़ेगी। – तो पठिष्यतः ।
  9. (स्त्री०) वे दोनों पढेंगी। – ते पठिष्यतः ।
  10. (पुं०) वे लोग पढ़ेंगे। – ते पठिष्यन्ति ।
  11. (स्त्री०) वे लोग पढेंगी । – ताः पठिष्यन्ति ।
  12. (पुं०) तुमलोग पढ़ोगे । – यूयं पठिष्यथः ।
  13. (स्त्री०) तुमलोग पढ़ोगी । – यूयं पठिष्यथः ।
  14. (पुं०) मैं पूढूँगा । – अहं पठिष्यामि ।
  15. (पुं०) हम दोनों पढेंगे । – आवां पठिष्यावः ।
  16. (पुं०) हमलोग पढ़ेंगे । – वयं पठिष्यावः ।
  17. (स्त्री०) हमलोग पढ़ेंगी । – वयं पठिष्यामः ।

उपर्युक्त वाक्यों में आये क्रिया-पदों के अनुसार ही अन्य क्रिया-पदों के भी रूप चलेंगे । हिन्दी में वाक्य रचना के वक्ता या लेखक के पुल्लिग या

स्त्रीलिंग होने की सूचना तो मिलती है, पर संस्कृत में नहीं मिलता- वह पुंल्लिग है या स्त्रीलिंग- इस पर सम्बद्ध वाक्य का अर्थ निर्भर करता है।

(13) संस्कृत में आदेशवाचक या अनुज्ञावाचक वाक्य ‘लोट् लकार में लिखे जाते हैं । लोट् लकार में अन्यपुरुष-मध्यमपुरुष-उत्तमपुरुष के तीनों वचनों में उदाहरण नीचे दिये जाते हैं उदाहरण

हिन्दी – संस्कृत

  1. (एक) बालक पढ़ें। – बालकः पठतु ।
  2. (एक) बालिका पढ़ें। – बालिका पठतु ।
  3. (दो) बालक पढ़ें। – बालको पठताम् ।।
  4. (दो) बालिकाएँ पढ़ें। – बालिके पठताम् ।
  5. (अनेक) बालक पढ़ें। – बालकाः पठन्ताम् ।
  6. (अनेक) बालिकाएँ पढ़ें। – बालिकाः पठन्ताम् ।
  7. (पुं०) वह पढ़े । – सः पठतु ।
  8. (स्त्री०) वह पढ़े । – सा पठतु ।
  9. (पुं०) वे दोनों पढ़ें । – तौ पठताम् ।
  10. (स्त्री०) वे दोनों पढ़ें । – ते पठताम् ।
  11. (स्त्री०) वे लोग पढ़ें । – ते पठन्तु ।
  12. (स्त्री०) वे लोग पढ़ें । – ताः पठन्तु ।
  13. (स्त्री०) हमलोग पढ़ें । – वयं पठाम ।

(14) वाक्य में आनेवाले ‘उद्देश्य’ के कर्ता-पद और ‘विधेय’ के क्रिया-पद के अलावे जो भी शब्द आते हैं, वे इनके ही पूरक या विस्तार के क्रम होते हैं और उनका सम्बन्ध कारक-विभक्तियों द्वारा दिखाया जाता है। जैसे

  1. रामः गच्छनि । – (राम जाता है ।)- कर्ताकारक
  2. रामः विद्यालयं गच्छति । – (राम विद्यालय जाता है। कर्मकारक
  3. रामः पादाभ्यां गच्छति । – (राम पैरों से जाता है ।)- करणकारक
  4. रामः पठनाय गच्छति । – (राम पढने के लिए जाता है।) -साम्प्रदान कारक
  5. रामः गृहा गच्छति । – (राम घर से जाता है ।)- अपादानकारक
  6. सोहनस्य भ्राता रामः गच्छति । – (सोहन का भाई राम जाता है ।) – सम्बन्ध विभक्ति । रामः प्रातः
  7. वेलायां गच्छति । – (राम सुबह में जाता है ।) – अधिकरणकारक
  8. हे गोपाल ! रामः प्रतिदिनं गच्छति (हे गोपाल ! राम प्रति देन जाता है ।) । -सम्बोधन-विभक्ति

उपर्युक्त नियमानुसार ही वाक्यों में आये कर्ता-पदों और क्रिया-पदों के अलावा आये शब्दों की कारक-विभक्ति के विचार से अनुवाद किया जाना चाहिए ।

(15) हिन्दी से संस्कृत भाषा में अनुवार करते समय यह भी ध्यान रखना चाहिए कि ‘विशेष्य’ (जिसकी कुछ विशेषता बतलायी जाती है) का जो लिंग, वचन और कारक होता है वही ‘विशेषण’ पदों (जिनसे कुछ विशेषता बतलायी जाती है) का भी लिंग, वचन और कारक होता है।
उदाहरण-

  1. सुशीलः बालकः पठति । – (सुशील लड़का पढ़ता है ।)
  2. सुशीलाः बालिका पठति । – (सुशीला लड़की पढ़ती है ।)
  3. कृष्णाः घोटक: अतिशोभन: भवति । – (काला घोड़ा बहुत सुन्दर होता है।
  4. पक्वानि फलानि पतन्ति । – (पके फल गिरता है ।)
  5. पीतानि पत्राणि पतन्ति । – (पीले पत्ते गिरते हैं ।)

वयम् अस्य महान् राष्ट्रस्य नागरिकाः स्म । (हमलोग इस महान् देश के नागरिक हैं ।)

अस्याः नद्यायाः जलं पवित्रं निर्मलं च वर्तते । (इस नदी का जल स्वच्छ और पवित्र है।
उपुर्यक्त वाक्यों में काले अक्षरों में छपे शब्द विशेषण-पद हैं और उनके लिंग, वचन और कारक वही हैं, जो उनके विशेष्य-पदों (क्रमश: बालकः, गौ, फलम, फलानि, पत्राणि, राष्ट्रस्य, नद्यायाः और जलम) के हैं।

(16) हिन्दी भाषा के वाक्यों में आनेवाले क्रियाविशेषण-शब्दों में कौन-सी विभक्ति लगी है, पता नहीं चलता-किन्तु संस्कृत भाषा के वाक्यों में क्रियाविशेषण शब्द हमेशा द्वितीया विभक्ति के एकवचन में होते हैं और उनपर कर्ता पद के लिंग-वचन-पुरुष आदि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
उदाहरण-

  1. सः मन्दं मन्दं गच्छति । – (वह धीरे-धीरे जाता है।)
  2. सा मन्दं मन्दं गच्छति । – (वह धीरे-धीरे जाती है ।)
  3. त्वं मन्दं मन्दं गच्छसि । – (तुम धीरे-धीरे जाते हो ।)
  4. अहं मन्दं मन्दं गच्छामि । – (में धीरे-धीरे जाता हूँ।)

(17) संस्कृत में अनुवाद करते समय अव्यय-पद बड़े सहायक होते हैं । जैसे- अत्र ( यहाँ), तत्र (वहाँ), इतः ( यहाँ से), ततः (वहाँ से), सर्वत्र (सभी जगह), सर्वदा (हमेशा) आदि ।
उदाहरण –

  1. अहम् इतः गमिष्यामि । – (मैं यहाँ से जाऊँगा ।) :
  2. सः इतस्ततः भ्रमति । – (वह इधर-उधर घूमता है ।)
  3. गोपाल । अत्र आगच्छ । – (गोपाल यहाँ आओ ।)
  4. ते ततः आगमिष्यन्ति । – (वे वहाँ से आएँगे ।)
  5. त्वं तत्र गच्छ । – (तुम वहाँ जाओ ।)
  6. बालकाः वृक्षस्य अधः पठन्ति । – (लड़के वृक्ष के नीचे पढ़ते हैं ।)
  7. भवान् अन्यत्र गच्छतु । – (आप दूसरी जगह जाएँ ।)
  8. रमेश: अग्रे धावति । – (रमेश आगे दौड़ता है ।)
  9. सा इदानीम् आंग्लाभाषा पठति । – (वह इस समय अंग्रेजी भाषा पढ़ती है ।)
  10. गोपालः पीठिकामुपरि उपविशति । – (गोपाल पीढ़े पर बैठता है ।)
  11. ईश्वर सर्वत्र तिष्ठति । – (ईश्वर सब जगह विद्यमान हैं ।)
  12. गृहस्य पश्चात् पुष्पवाटिका वर्तते । – (घर के पीछे फुलवाड़ी है ।)
  13. तदा अस्माकं शिक्षक: अवोचत् । – (तब हम लोगों के शिक्षक बोले ।)
  14. त्व कदा पश्यसि ? (तुम कब देखोगे ?)
  15. यदा व तत्र गमिष्यसि तदा अहम् अत्र आगमिष्यामि । – (जब तुम वहाँ जाओगे तब मैं यहाँ आऊँगा !)

(18) मूलधातु में ‘तुमुन्’ लगाने से ‘निमित्तार्थक’ (के लिए) का अर्थ देने वाले क्रिया बनती है । ‘तुभुन्’ में ‘उन्’ का लोप हो जाता है और मात्र “तुम्’ रह जाता है । जैसे

  • गम् + तुमुन् = गम् + तुम् = गन्तुम (जाने के लिए)
  • पठ् + तुमुन् = पठ् + तुम् – (पढ़ने के लिए)

प्रयोग- मः गृहं गन्तुम् उद्यतः अस्तिः । (वह घर जाने के लिए तैयार हैं।)

सा रामायणं पठितुम् इच्छति । (वह रामायण पढ़ना चाहती है ।)

(19) पूर्वकालिक क्रिया (असमापिका क्रिया) का निर्माण मूल धातू में ‘कत्वा’ अथवा ‘ल्यप्’ प्रत्यय लगाकर किया जाता है । जैसे

  1. कृ + क्ला – कृ + त्वा = कृत्वा (करके)
  2. श्रु + क्त्वा = श्रु + त्वा – श्रुत्वा (सुनकर के)
  3. वि + क्री + ल्यप् – वि + क्री + य = विक्रीय (बेचकर)
  4. वि + ज्ञा + ल्यप् = वि + ज्ञा. + य – विज्ञाय (जानकर)

प्रयोग – गोपालः कृत्वा विद्यालयं गच्छति । (गोपाल भोजन करके विद्यालय जाता है ।)
राधा प्रवचनं श्रुत्वा भोजनं करिष्यति । (राधा प्रवचन सुनकर भोजन करेगी।) वस्तूनि विक्रीय कृषकः गृहं गमिष्यति । (सामनों को बेचकर किसान घर जाएगा ।

(20) संस्कृत में ‘स्म’ एक अव्यय-पद हैं जो भूतकाल के अर्थ में प्रयुक्त होता है और ‘था’ का अर्थ देता है । पर यह केवल वर्तमानकाल (लट् लकार) की क्रियाओं के साथ ही अन्यपुरुष के तीनों वचनों में जोड़ा जाता है।
उदाहरण –

  1. गच्छति – जाता है । गच्छति स्म = जाता था ।
  2. गच्छन्ति – जाते हैं । गच्छन्ति स्म – जाते थे।
  3. प्रयोग- सोहनं पठनाय विद्यालयं गच्छति स्म । (सोहन पदने के लिए विद्यालय जाता था ।)

क्रीडानाय क्रीडाक्षेत्रं गच्छन्ति स्म । (लड़के खेलने के लिए खेल के मैदान में जाते थे ।)

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