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 Bihar Board Class 7 Sanskrit व्याकरण कारक

Bihar Board Class 7 Sanskrit व्याकरण कारक

किसी क्रिया के साथ जिसका प्रत्यक्ष संबंध होता है, उसे ‘कारक’ कहते हैं । ‘कारक’ के छह भेद होते हैं- कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान एवं अधिकरण । ‘क्रिया’ के साथ प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं रहने के कारण संस्कृत भाषा में ‘सम्बन्ध’ और ‘सम्बोधन’ कारक नहीं कहलाते हैं । इन्हें मात्र ‘विभक्ति’ माना जाता है, जबकि उपर्युक्त छह को कारक-विभक्ति । हिन्दी भाषा में इन आठों को ही ‘कारक’ माना जाता है ।

आगे की पंक्तियों में इन सभी कारकों पर अलग-अलग संक्षेप में सोदाहरण विचार किया जाता है ।

कर्ता कारक

किसी ‘क्रिया’ को करने वाले को ‘कर्ता कारक’ कहा जाता है। कर्तवाच्य और कर्मवाच्य, दोनों में ही कर्ता-पद प्रधान होता है । कर्तवाच्य में कर्ता-पद प्रधान होता है और कर्म-पद गौण । कर्मवाच्य में कर्ता-पद गौण होता है और कर्मपद प्रधान । उदाहरण के लिए नीचे के वाक्यों को देखा जा सकता है

  • कर्तवाच्य – रामः फलम् खादति । (राम फल खाता है ।)
  • कर्तृवाच्य- रामेण फलम् खाद्यते । (राम द्वारा फल खाया जाता है ।)

कर्तृवाच्य के कर्ताकारक में प्रथमा विभक्ति होती है । यथा-बालक: खादति । (बालक खाता है ।) यहाँ ‘खादति’ क्रिया का सम्पादक ‘बालक’ है, इसलिए ‘बालक’ कर्ता हुआ और उसमें प्रथमा विभक्ति हुई। ऐसे ही-सीता पठति, रमा गच्छति आदि में समझना चाहिए । सम्बोधन में भी प्रथमा विभक्ति होती है । यथा- हे बालक । (हे बालक) अयि सीते (हे सीते) । अरे बालकाः (ओ लड़के) इत्यादि ।

‘कर्ता कारक’ के वाक्यों के अन्य उदाहरण हैं –

  1. बालकः क्रीडति । (लड़का खेलता है।)
  2. मयूरः नृत्यति । (मोर नाचता है ।)
  3. नदी प्रवहति । (नदी बहता है ।)
  4. धेनुः रचति । (गाय चरती है।)
  5. फलम् पतति । (फल गिरता है ।)
  6. पत्रम् तरति । (पत्ता तैरता है।)

करण कारक

कोई क्रिया करने में जो अत्यन्त सहायक हो, उसे ‘करण कारक’ कहते हैं। ‘करण-कारक’ में तृतीया विभक्ति होती है । यथा- रामः लगडेन ताडयति । (राम पैने से मारता है ।) यहाँ ‘ताडयति’ क्रिया का अत्यन्त सहायक . ‘लगुड’ (पैना) है, इसीलिए यह करण कारक हुआ और इसमें तृतीया विभक्ति

‘सह’, ‘साकम्’, ‘सार्द्धम्’ (साथ) जैसे शब्दों में योग में भी तृतीया विभक्ति होती है । यथा- भ्रात्रा सह सोहनः आगच्छति (भाई के साथ सोहन आता है ।) त्वया साकं गीता गमिष्यति’। (तुम्हारे साथ गीता जायेगी ।) यहाँ ‘सह’ का योग रहने के कारण ‘भ्राता’ और ‘त्वया’ में तृतीया विभक्ति हुई है।

‘करण कारक’ के अन्य उदाहरण:लेखक:

  1. लेखन्या पत्रं लिखति । (लेखक कलम से चिट्ठी लिखता है।)
  2. रवीन्द्रः नयनाभ्यां चन्द्रं पश्यति । (रवीन्द्र आँखों से चन्द्रमा को देखता है।)
  3. अश्वः पादैः चलति । (घोड़ा पैरों से चलता है ।)
  4. त्वं कर्णाभ्यां शृणोषि । (तुम कानों से सुनते हैं ।)
  5. भवान् कराभ्यां गृह्णाति । (आप हाथों से ग्रहण करते हैं ।)
  6. सः शस्त्रेण छिन्दति । (वह शस्त्र से काटता है।)

सम्प्रदान कारक

जिस व्यक्ति को कुछ दिया जाय, उसे ‘सम्प्रदान’ कहते हैं । सम्प्रदान में चतुर्थी विभक्ति होती है। यथा- विप्राय गां देहि (ब्राह्मण को गाय दो ।) यहाँ ‘ब्राह्मण’ (व्यक्ति) को कुछ (गाय) दिया रहा है।

अत: इसमें चतुर्थी विभक्ति हुई है।

नमः स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा आदि के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है; जैसे

  • श्री महादेवाय नमः । (महादेव जी को प्रणाम है ।)
  • अग्नये स्वाहा । (अग्निदेव को समिधा स्वीकार हो ।)

सम्प्रदान कारक के अन्य उदाहरण:-

  1. बालकाय मोदकं देहि । – (लडके को लड्डू दो ।)
  2. भिक्षुकाय अन्नं देहि । (भिक्षुक को अन्न दो ।)
  3. दरिद्राय धनं देहि । (दरिद्र को धन दो.)
  4. श्रीहरये नमः (श्रीहरि को नमस्कार है।)
  5. सोमाय स्वाहा । (सोम देवता को समिधा स्वीकार हो ।)
  6. विवादाय अलम् । (विवाद करना बेकार है ।)

अपादान कारक

जहाँ व्यक्ति, वस्तु, स्थान आदि को किसी व्यक्ति, वस्तु आदि का अलग होना या उत्पन्न होना सूचित हो, उसे ‘आपादान कारक’ कहते हैं । अपादान कारक में पंचमी विभक्ति होती है । यथा- वृक्षात् फलं पतति । (पेड़ से फल गिरता है।) यहाँ वृक्ष से फल गिरकर अलग होता है, इसीलिए ‘वृक्ष’ में पंचमी विभक्ति हुई है । ऐसे ही-ज्ञानात् सुखं भवति । (ज्ञान से सुख होता है।) दुग्धात् दधि जायते । (दूध से दही तैयार होता है।) आदि वाक्यों में समझना चाहिए।’

‘आपादान कारक’ के अन्य उदाहरण:-

  1. वृक्षात् पत्राणि पतन्ति । (पेड़ से पत्ते गिरते हैं ।)
  2. सः पाटलिपुत्रात् आगच्छति । (वह पटने से आता है ।)
  3. गंगा हिमालयात प्रभवति । (गंगा हिमालय से निकलती है।)
  4. ते काशीत: गच्छन्ति । (वे काशी से जाते हैं ।)

सम्बन्ध (विभक्ति)

संस्कृत भाषा में ‘सम्बन्ध’ को कारक नहीं माना जाता । कारण कर्ता कारक से इसका सीधा सम्बन्ध नहीं होता । इससे किसी व्यक्ति, वस्तु, भाव आदि का दूसरे व्यक्ति, वस्तु, भाव आदि से संबंध ही सूचित होता है । अतः

‘सम्बन्ध’ में षष्ठी विभक्ति होती है । यथा- गोपालस्य भ्राता अस्ति । (गोपाल का भाई है।) यहाँ गोपाल के साथ ‘भाई’ का सम्बन्ध है, अतः ‘गोपाल’ में षष्ठी विभक्ति हुई है । ऐसे ही ‘तव पुस्तिका’ (तुम्हारी पुस्तिका), ‘मम उद्यानम्’, (मेरा बगीचा), तस्य गृहम् (उसका घर), ‘राधाया आभूषणम्’ (राधा का आभूषण) आदि उदाहरणों को देखा जा सकता है।

सम्बन्ध-विभक्ति के अन्य उदाहरण-

  1. अस्मांक देशः भारतवर्षम् (हमलोगों का देश भारतवर्ष है।)
  2. गायत्री शिवशंकरस्य भगिनी । (गायत्री शिवशंकर की बहन है ।)
  3. सुग्रीवस्य मित्रं गच्छति । (सुग्रीव का मित्र जाता है ।)
  4. उद्यानस्य पुष्पाणि विकसन्ति । (उद्यान के फूल खिलते हैं।)
  5. गोपेशस्य पुस्तकानि सन्ति । (गोपेश की पुस्तकें हैं ।)

अधिकरण कारक

किसी भी क्रिया, वस्तु, भाव आदि के आधार को ‘अधिकरण’ कहते हैं। अधिकरण कारक में सप्तमी विभक्ति होती है । यथा ‘शिक्षक’ विद्यालये अस्ति ।’ (विद्यालय में शिक्षक है ।) यहाँ ‘शिक्षक’ का आधार या पढ़ाने का अधिष्ठान विद्यालय है। इसीलिए यह अधिकरण कारक हुआ तथा इसमें सप्तमी विभक्ति हुई है । ऐसे ही ‘स्वर्णपात्रे दुग्धम् अस्ति ।’ (स्वर्णपात्र में दुध है।) ‘कृषक: गृहे तिष्ठति ।’ (किसान घर में रहता है ।) आदि उदाहरणों को देखा जा सकता है।

अधिकरण कारके के कुछ आदर्श उदाहरण:-

  1. जनाः गृहे वसन्ति । (लोग घर में रहते हैं ।)
  2. छात्राः कक्षायां पठति । (छात्र वर्ग में पढ़ते हैं )
  3. मत्स्याः नद्यां तरन्ति । (मछलियाँ नदी में तैरती हैं
  4. अश्वाः पथि धावन्ति । (घोड़े सड़क पर दौड़ते हैं ।)
  5. रथाः मार्गे चलन्ति । (रथ रास्ते पर चलते हैं ।)

सूत्रों का सोदाहरण अर्थ-लेखन

1. कर्तरि प्रथमा-कर्तृवाच्य में जहाँ कर्ता उक्त अर्थात् कर्ता के अनुसार क्रिया के लिंग, वचन और पुरुष हों, तो ऐसे कर्ता में प्रथमा विभक्ति होती है। यथा-बालकः विद्यालयं गच्छति ।

2. कर्मणि द्वितीया-कर्मकारक को द्वितीया विभक्ति होती है। यथा-रामः महाभारतं पठति

3. क्रियाविशेषणे द्वितीया-क्रिया-विशेषण में द्वितीय विभक्ति होती है। क्रियाविशेषण शब्द सदा द्वितीया विभक्ति में एकवचनान्त और नपुंसकलिंग वाला होता है। यथा-सा, मन्द-मन्दं धावति ।

4. करणे तृतीया-क्रिया की सिद्धि में कर्ता के साधक को ‘करण’ कहते हैं और करण कारक में तृतीया विभक्ति होती है। यथा-बालकः लेखन्या लिखिति।

5. योनगाङ्गविकारः-जिस अंग के विकार में वर्णित अंगों का विकार प्रकट हो, उस विकृतं अंगवाचक शब्द में तृतीया विभक्ति होती है। यथा-सः पादेन खञ्जः अस्ति ।

6. ‘ध्रुवमपायेऽपादानम्’-‘अपाय’ में अर्थात् पृथक् या अलग होने में जिस निश्चित (ध्रुव) वस्तु से कोई पृथक् होती है, वह अपादान कारक होती है। जैसे-बालकः ग्रामात् आयाति । (बालक गाँव से आता है।) यहाँ ‘ग्रामात्’ में पंचमी कारक-विभक्ति है।

7. प्रकृत्यादिभ्यः उपसंख्यानम्-प्रकृति, जाति, आकृति, गोत्र, नाम आदि के वाचक शब्दों के योग में तृतीया विभक्ति होती है। यथा-गोत्रेण वत्सः

8. हेतौ तृतीया-किसी कार्य के हेतु अर्थात् कारण में तृतीया विभक्ति होती है। यथा-दण्डेन घटः भवति ।

9. सहयुक्तेऽप्रधाने-‘सह’ अथवा ‘सह’ (साथ) के अर्थवाले शब्दों के योग में जो ‘अप्रधान’ (गौण) व्यक्ति होता है, उसके बोधक पद के साथ तृतीया विभक्ति होती है। जैसे-पुत्रेण सह पिता गच्छति ।

10. सम्प्रदाने चतुर्थी-सम्प्रदान कारक में चतुर्थी वभिक्ति होती है। यथा-सः विप्राय भोजनं पचति ।।

11. स्पृहेरीप्सिततः-‘स्पृह्’ धातु के योग में जिस वस्तु की इच्छा की जाए, उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। यथा-योगिनः ज्ञानाय स्पृह्यति।

12. यतश्च निर्धारणम्-किसी व्यक्ति या व्यक्ति-समूह समुदायवाचक शब्द में षष्ठी अथवा सप्तमी विभक्ति होती है। यथा-नदीषु नदीनां वा गंगा पवित्रतमा । अथवा कविषु कविनां वा कालिदासः श्रेष्ठः।

13. दानार्थे चतुर्थी-(यस्मै दानं सम्प्रदानम्)-जिसे कोई वस्तु दानस्वरूप दी जाए, उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। यथा-नृपः विप्राय धनं ददाति ।

14. इत्थं भूतलक्षणे-किसी विशेष चिह्न से यदि किसी की पहचान की जाती है तो उसके लिए प्रयुक्त शब्द के साथ तृतीया विभक्ति होती है। यथा-जहाभिः तापसः।

15. अपवर्गे तृतीया-क्रिया की समाप्ति और फल की प्राप्ति के होने पर ‘काल’ वाचक और ‘मार्ग’ वाचक शब्दों के साथ तृतीया विभक्ति होती है। यथा-सोहनः मासेन व्याकरणं पठितवान् । क्रोशेन कथा समाप्ता जाता।

16. रुच्यर्थानां प्रीयमाण:-‘रुच्’ धातु और उसके समानार्थक धातुओं के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है। यथा बालकाय मोदकं रोचते । हरयं भक्तिः रोचते।

17. भीत्रार्थानां भयहेतुः-भयार्थक और सार्थक धातुओं के योग में जो ‘भय’ ‘ का कारण हो, उसमें पचमी विभक्ति होती है। यथा-मनुष्यः व्याघ्रात् बिभेति ।

18. अपादाने पञ्चमी-अपादान कारक में पज्ञमी विभक्ति हुआ करती है। यथा-‘वृक्षात्’ फलानि पतन्ति ।

19. सप्तम्यधिकरणे च (आधारोऽधिकरणम्)-कर्ता और कर्म के आश्रय को अधिकरण’ कहते हैं। जिस स्थान पर क्रिया होती है, उसे ‘आधार’ कहते हैं। आधार के साथ सप्तमी विभक्ति होती है। यथा-छात्राः विद्यालये पठन्ति ।।

20. ‘धारि’ धातु के साथ उत्तमर्ण (साहुकार या ऋण देनेवाल) सम्प्रदान कारक होता है। जैसे-रामः श्यामाय शतं धारयति (राम श्याम के सौ रुपये कर्ज धारता है।) यहाँ कर्ज देनेवाला श्याम सम्प्रदाय कारक (श्यामाय) है। किया.

21. भावे सप्तमी ( यस्य च भावेन भावलक्षणम्)-यदि किसी पूर्वकालिक क्रिया के काल से दूसरी क्रिया और उसके कर्ता में सप्तमी विभक्ति लगती है। यथा-‘अस्तं गते सूर्ये बालकाः स्वगृहान् अगच्छन्।

कारक-संबंधी प्रश्न एवं उनके उत्तर-

प्रश्न 1.
‘कोशं दुटिला नदी-इस वाक्य में ‘क्रोशं’ पद में कौन-सी विभक्ति है और किस सूत्र के आधार पर यह विभक्ति है और किस सूत्र के आधार यह विभक्ति हुई है ? विभक्ति एवं सूत्र लिखें।
उत्तर-
‘क्रोश’ कुटिला नदी के ‘क्रोशं’ पद में द्वितीया विभक्ति है और वह ‘कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे’ सूत्र के अनुसार हुई है। अत्यन्त संयोग होने पर ‘मार्ग”के वाचक को द्वितीया विभक्ति होती है।

प्रश्न 2.
पुत्रेण सह पिता विपणिम् अगच्छत् ।’-इस वाक्य में ‘पुत्रेण’ पद में कौन-सी विभक्ति है?
(क) प्रथमा विभक्ति
(ख) तृतीया विभक्ति
(ग) पञ्चमी विभक्ति
(घ) षष्ठी विभक्ति
उत्तर-
(ख) तृतीया विभक्ति

प्रश्न 3.
(क) रामः पित्रा सह विद्यालयं गच्छति’-इस वाक्य में ‘पित्रा’ पद में कौन-विभक्ति है ? यह विभक्ति किस सूत्र के आधार पर हुई है। उस सूत्र को लिखें।
उत्तर-
‘पित्रा’ में तृतीया विभक्ति हुई है। यहाँ ‘सहार्थे तृतीया’ इस सूत्र के आधार पर ‘पित्रा’ में तृतीया विभक्ति हुई है।

(ख) ‘राभ: सीतया लक्ष्मणेन सह वनम् अगच्छत् ।-इस वाक्य के
‘सीतया’ शब्द में कौन-सी विभक्ति है और यह विभक्ति किस कारक-सूत्र के अनुसार हुई है?
उत्तर –
तृतीया विभक्ति है और ‘सहार्थे तृतीया’ इस सूत्र के अनुसार

प्रश्न 4.
कविना कालिदासः श्रेष्ठः।’-इस वाक्य में ‘कवीनां’ पद में कौन-सी विभक्ति है ?
(क) पञ्चमी
(ख) तृतीया
(ग) षष्ठी
(घ) द्वितीया
उत्तर-
(ग) षष्ठी

प्रश्न 5.
‘बालिका मन्द-मन्दं गायति ।-इस वाक्य में ‘मन्द-मन्दं’ पद में कौन-सी विभक्ति है ?
(क) प्रथमा विभक्ति
(ख) सप्तमी विभक्ति
(ग) तृतीया विभक्ति
(घ) द्वितीया विभक्ति
उत्तर-
(क) प्रथमा विभक्ति

प्रश्न 6.
‘बालकाय फलं रोचते।’-इस वाक्य में ‘बालकाय’ पद में कौन-सी विभक्ति लगी है और ऐसा किस कारक-सूत्र के अनुसार हुआ है।
उत्तर-
चतुर्थी विभक्ति,-‘रुच्याणां प्रीयमाणः’ इस सूत्र के आधार पर ।

प्रश्न 7.
गोपालः सर्पात् विभेति ।’-इस वाक्य में ‘सत्’ पद में कौन-सी विभदित लगी है और ऐसा किस कारक-सूत्र के आधार पर हुआ है?
उत्तर-
पचमी विभक्ति – ‘भीत्राणां भयहेतुः’ इस सूत्र के आधार पर ।

प्रश्न 8.
‘श्रमेण विना विद्या न भवति।’-इस वाक्य में ‘श्रमेण’ पद में कौन-सी विभक्ति है और किस सूत्र के आधार पर हुई है ?
उत्तर-
‘श्रमेण’ में तृतीया विभक्ति लगी हुई है, जो ‘पृथकविनानानाभ-स्तृतीयान्यतरस्याम’ सूत्र के आधार पर हुई है।

प्रश्न 9.
‘ल्यब्लोपे कर्मण्यधिकरणे।’ सत्र की सोदाहरण व्याख्या करें।
उत्तर-
ल्यप्-प्रत्ययान्त शब्दों के लोप होने पर कर्म और अधिकरण कारक में पंचमी विभक्ति होती है। जैसे-गणेशः प्रासादात् पश्यति ।

प्रश्न 10.
‘ईश्वरः पापात् त्रायते -इस वाक्य में ‘पापात्’ में कौन-सी विभक्ति है?
उत्तर-
‘पपात्’ में पंचमी विभक्ति है, जो ‘भीत्राणां भयहेतुः’ से

प्रश्न 11.
‘ग्रामम् अभितः वृक्षाः सन्ति’-इस वाक्य में ‘ग्रामम्’ शब्द में कौन-सी विभक्ति है ?
उत्तर-
‘ग्रामम्’ में द्वितीया विभक्ति है।

प्रश्न 12.
‘सः मोहनाय शतं धारयति’-इस वाक्य में ‘मोहनाय’ में कौन-सी विभक्ति हैं तथा किस सूत्र से हुई है ?
उत्तर-
‘मोहनाय’ में चतुर्थ विभक्ति है तथा यह धारेत्तमर्णः’ सूत्र के आधार पर हुई है।

प्रश्न 13.
‘यस्य भावेन भावलक्षणम्’ सत्र की सोदाहरण व्याख्या करें।
उत्तर-
जब एक कार्य के पूर्ण होने के बाद दूसरा कार्य होता हो तो जो कार्य हो चुका है उसमें षष्ठी या सप्तमी विभक्ति होती है। जैसे-उदिते उदितस्य वा सूर्ये सूर्यस्य वा सः गृहात् प्रस्थितः।

प्रश्न 14.
‘अस्तं गते सूर्ये सः आगतः’-इस वाक्य में ‘अस्तं गते’ में कौन-सी विभक्ति लगी हुई है?
उत्तर-
सप्तमी विभक्ति । ‘यस्य भावेन भावलक्षणम्’ के आधार पर।

प्रश्न 15.
‘उपाध्यायादधीते’ इस वाक्य में ‘उपाध्यायात’ पद में कौन-सी विभक्ति है और यह विभक्ति किस सूत्र के आधार पर हुई है?
उत्तर-
‘उपाध्यायात् अधीते’ में ‘उपाध्यायात्’ में पज्ञमी विभक्ति है और यह ‘आख्यातोपयोगे’ सूत्र के आधार पर हुई है। उपाध्याय’ आख्यात है और । उससे पञ्चमी विभक्ति हुई है।

प्रश्न 16.
(क) ‘पितृभ्यः स्वधा’-इस वाक्य के पितृभ्यः पद में कौन-सी
विभक्ति है और यह विभक्ति किस सूत्र के आधार पर हुई है? (उस सूत्र को लिखें।)
उत्तर-
पितृभ्यः स्वधा’ इस वाक्य में चतुर्थी विभक्ति है और वह ‘नमः स्वस्तिस्वाहा – स्वधालंवषट् योगाच्च’ इस सत्र के कारण हुई है।

(ख) ‘हनुमते नमः’ इस वाक्य के ‘हनुमते’ पद में कौन-सी विभक्ति है ? यह विभक्ति किस सूत्र के आधार पर हुई है ?
उत्तर-
हनुमते’ में चतुर्थी विभक्ति होती है और ‘नमः स्वस्ति-स्वाहास्वधा’, सूत्र के अनुसार होती है।

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