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 Bihar Board Class 7 Social Science Civics Solutions Chapter 9 बाजार श्रृंखला खरीदने और बेचने की कड़ियाँ

Bihar Board Class 7 Social Science बाजार श्रृंखला खरीदने और बेचने की कड़ियाँ Text Book Questions and Answers

पाठगत प्रश्नोत्तर

प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
सलमा को सहकारी समिति से तालाब क्यों नहीं मिला ?
उत्तर-
सलमा को सहकारी समिति से तालाब इसलिए नहीं मिला क्योंकि सहकारी समितियाँ छोटे मछुआरे को छोटे तालाब नहीं देती। इन लोगों को बड़े तालाबों का हिस्सा ही लेना होता है, जिसके लिए अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है और सलमा इतने पैसे नहीं दे सकती है।

प्रश्न 2.
सलमा सहकारी समिति से तालाब लेती तो क्या फर्क पडता?
उत्तर-
सलमा अगर सहकारी समिति से तालाब लेती तो उसे बड़े आकार में तालाब लेना पड़ता, जिससे उसे दूसरे से ज्यादा कर्ज लेना पड़ता । सहकारी समितियाँ छोटे मछुआरों को तालाब नहीं देती, क्योंकि वो हमेशा तालाब का बड़ा टुकड़ा देती है, जिसे लेना छोटे किसानों के लिए मुश्किल होता है।

प्रश्न 3.
सलमा को इस बार अच्छे फसल की उम्मीद क्यों थी?
उत्तर-
पिछले साल बाढ़ आने की वजह से तालाब में से मखाना के बीज बह गए थे, जिस वजह से मखाना का उत्पादन बहुत कम हुआ था। पर इस बाढ़ नहीं आयी थी और फिर सलमा ने मखाना उपजाने में बहुत मेहनत की थी। उसने समय पर कीटनाशक, खाद तथा पानी का उचित इंतजाम किया था। इसलिए सलमा को इस बार अच्छे फसल की उम्मीद थी।

प्रश्न 4.
सलमा ने मखाने की फसल के लिए क्या-क्या तैयारी की?
उत्तर-
सलमा ने मखाने की फसल के लिए अच्छे खाद की व्यवस्था की। उसने कीटनाशक तथा पानी की भी उचित व्यवस्था की और इन सबके अलावे सलमा ने मखाने की उपज में बहुत मेहनत भी की और उसे उम्मीद थी कि इस बार मखाने की अच्छी उत्पादन होगी।

प्रश्न 5.
तालाब से गुडी निकालने का काम कौन करता है?
उत्तर-
तालाब से गुड़ी निकालने का काम मछुआरे ही करते हैं, जो कि इस काम में बहुत कुशल होते हैं। तालाब से गुड़ी निकालने के लिए एक साथ कई लोगों की आवश्यकता होती है। ये लोग तालाब के अंदर से गडी निकालते हैं। यह काम तीन बार में होता है। पहली बार में अधिक गडिया निकलती है पर दूसरी और तीसरी बार में गुड़ी की संख्या कम हो जाती है, इसलिए अधिक मेहनत करनी पड़ती है।

प्रश्न 6.
गुड़ी में मखाना कैसे बनाया जाता है? अपने शब्दों में समझाओ।
उत्तर-
गुड़ी से मखाना बनाने के लिए खास कुशलता और मेहनत की आवश्यकता होती है। गुंड़ी से मखाना बनाने के लिए पहले गुड़ियों को कराही में बालू डालकर भुना जाता है। फिर जब यह बहुत गर्म हो जाता है तब इसे कड़ाही में से निकालकर पीठ पर रखते हैं और फिर लकड़ी के हथौड़े से जोड़ से पीटा जाता है। ऐसे करने पर उन गुड़ियों से लावा निकलता है, जिसे हम मखाना कहते हैं।

प्रश्न 7.
मखाने बनाने तक सलमा ने किन-किन चीजों पर खर्च किया। सची बनाओ।
उत्तर-
मखाने बनाने तक सलमा ने निम्न चीजों पर खर्च किया। सबसे पहले उसने 15 कट्टे तालाब को 400 रु० सलाना की दर से किराए पर लिया। इसके लिए उसे अपने रिश्तेदारों से कर्ज लेना पड़ा। उसने खाद, कीटनाशक की व्यवस्था की। फिर उसने तालाब से गुडिया निकलवाने के लिए मजदूरों को 6800 रुपये मजदूरी दी और फिर गुड़ियों से लावा निकलवाने पर भी उसका काफी पैसा खर्च हुआ।

प्रश्न 8.
सलमा को मखाना बेचने की जल्दी क्यों थी?
उत्तर-
सलाम को मखाना बेचने की जल्दी इसलिए थी, क्योंकि उसके पास जगह की कमी थी और इस वजह से वह मूल्य बढ़ने तक मखाने को अपने पास नहीं रख सकती थी। फिर उसे रिश्तेदारों के कर्ज भी वापस करने थे, जो उसने तालाब किराए पर लेने के लिए उनसे ली थी। उसे तालाब के मालिक को तालाब का किराया भी देना था।

प्रश्न 9.
सलमा ने जो सोचा था क्या उसे वह पूरा कर सकती है? चर्चा करें।
उत्तर-
सलाम ने सोचा था कि इस बार बाढ़ नहीं आने की वजह से मखाना की उपज अच्छी होगी। उसने इसकी उपज पर काफी मेहनत भी की थी। फिर उसने सुना था कि मखाना का बाजार निरन्तर बढ़ रहा है। मखाना आधारित उद्योगों में मखाना से विभिन्न प्रकार कीमती उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं, इसका लाभ उसे भी मिलेगा और उसे इस बार मखाने की अच्छी कीमत मिलेगी और अधिक पैसा मिलने पर वह अपने टूटे घर की मरम्मत भी करवा – लंगी और अगले साल बिंना कर्ज लिए ही मखाना ही खेती कर लेगी।

पर जब उसने आढ़तिया को अपना मखाना दिया तो आढ़तिया ने उसे 200 किलो मखाना के लिए 100 रु प्रति किलो के हिसाब से 2000 रु. दिए और उसने बताया कि मखाना का उत्पादन बहुत अच्छा हआ है. इसलिए मखाना का मूल्य नहीं बढ़ा । इस कारण अब वह अपना सोचा हुआ काम जैसे-घर की मरम्मत और बिना कर्ज के मखाने की खेती नहीं कर पाएगी। क्योंकि 20000 में से 15000 का खर्च उसे मखाना की खेती पर आया उसे सिर्फ 500 रूका फायदा हुआ।

प्रश्न 10.
अपने आस-पास के अनुभवों द्वारा पता करें कि छोटे किसान अपना उत्पादन किन्हें बेचते हैं ? उन्हें किन समस्याओं का सामना करना होता है ?
उत्तर-
छोटे किसान ज्यादातर अपना उत्पाद आढ़तिया को ही बेचते हैं। क्योंकि सीधे मंडी में अपना उत्पाद बेचने का साधन नहीं होता और उनके पास इतने पैसे नहीं होता और उन्हें अपना कर्ज चुकाने के लिए तुरंत पैसे की आवश्यकता होती है।

इससे उन्हें अपने उत्पाद का सही मूल्य नहीं मिलता। आढ़तिया उनके उत्पादों को मंडी में ले जाकर ऊँचे मूल्यों पर बेचता है और इनसे प्राप्त रुपये में से 6 से 8 प्रतिशत तक अपना कमीशन काटकर शेष पैसा किसानों को देता है। कई बार आढ़तिया कम दामों पर किसानों से उनका उत्पाद खरीद लेता है और फिर मूल्य बढ़ने पर उन्हें बेचकर ज्यादा लाभ कमाता है।

प्रश्न 11.
मखाने की खेती करने वाले किसान अपनी फसल को खुद मंडी में ले जाकर क्यों नहीं बेचते?
उत्तर-
मखाने की खेती करने वाले किसानों के पास ज्यादातर अपना तालाब नहीं होता है, वे किराए पर तालाब लेकर मखाने की खेती करते हैं। उसके बाद फिर इसके लिए खाद, कीटनाशक आदि की व्यवस्था करना, गुड़ी निकलवाना, फिर गड़ियों से लावा निकलवाने आदि में उनका काफी खर्च आता है। जिस कारण उन्हें पैसे की तुरंत जरूरत होती है। फिर मखाने को मंडी तक लाने में लगने वाला भाड़ा, फिर मखानों की पैकिंग का खर्च भी अधिक होता है। इसलिए वे लोग मखाने को आढतिया को ही बेच देते हैं।

प्रश्न 12.
थोक व्यापारी और खुदरा व्यापारी में क्या अंतर है?
उत्तर-
थोक व्यापारी एक बार में ही बहुत अधिक समान खरीद लेते हैं और फिर खुदरा दुकानदारों को प्रति किलो 10 से 12 रु. लाभ लेकर सामान बेचते हैं। थोक व्यापारी लाभ भी अधिक कमाते हैं क्योंकि ये लोग बड़ी मात्रा में खरीद-बिक्री करते हैं।

खुदरा दुकान थोक व्यापारी से एक बार में अधिक समान खरीद लेते हैं और फिर उपभोक्ताओं को 30 से 40 रु. प्रति किलो या इससे कम लाभ पर सामान बेचते हैं। खुदरा दुकानदार का लाभ थोक व्यापारी की अपेक्षा कम होता है क्योंकि ये छोटी मात्रा में खरीद-बिक्री करते हैं।

प्रश्न 13.
थोक व्यापारी और खुदरा व्यापारी में कौन अधिक लाभ कमाता है और क्यों?
उत्तर-
थोक व्यापारी और खुदरा व्यापारी में थोक व्यापारी अधिक लाभ कमाता है। क्योंकि थोक व्यापारी बडी मात्रा में सामानों की खरीद-बिक्री करता है और खुदरा व्यापारी छोटी मात्रा में सामानों की खरीद-बिक्री करता

प्रश्न 14.
आपके घर पर उपयोग की जाने वाली किन्हीं दो वस्तओं के बारे में पता करें कि वे किन कड़ियों से गजरकर आपके पास पहुँचती है?
उत्तर-
(i) चावल → किसान → छोटे मिल में चावल → स्थानीय छोटे व्यापारी → स्थानीय मंत्री के थोक व्यापारी → बड़े शहर के थोक विक्रेता । → खुदरा विक्रेता → उपभोक्ता । चावल → किसान → चावल मिल → बड़े शहर के थोक विक्रेता → खुदरा विक्रेता → उपभोक्ता।

(ii) गेहूँ→किसान → स्थानीय छोटे व्यापारी स्थानीय मंडी के थोक विक्रेता → बड़े शहर के थोक विक्रेता → खुदरा विक्रेता → उपभोक्ता ।

प्रश्न 15.
क्या इस बेहतर भाव का लाभ उत्पादक को प्राप्त हो सकता है? यदि हाँ तो कैसे?
उत्तर-
हाँ, इस बेहतर भाव का लाभ उत्पादक को भी प्राप्त हो सकता है। अगर वह अपने उत्पादक को सीधे शहर के थोक विक्रेताओं को बेचे, क्योंकि आढ़तिए को उत्पाद बेचने से वे किसानों को उनके उत्पादों का सही कीमत भी नहीं देता है। जिससे इनलोगों को अपने उत्पाद का सही कीमत नहीं मिलता है।

अभ्यास के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
क्या सलमा को अपने मेहनत का उचित पारिश्रमिक प्राप्त हुआ? यदि नहीं तो क्यों?
उत्तर-
नहीं, सलमा को अपने मेहनत का उचित परिश्रमिक प्राप्त नहीं हुआ। क्योंकि सलमा ने मखाने को खुद मंडी में न बेचकर आढतियाँ को बेचा था, जिसकी वजह से उसे मखाने का उचित मूल्य नहीं मिला । उसे पैसे की

जरूरत थी क्योंकि उसे अपने रिश्तेदार का चर्क चुकाना था। तालाब के मालिक को किराया देना था। अपने टूटे घर की मरम्मत करानी थी और फिर उसके पास जगह की कमी थी, इस कारण वह मखाने को अपने पास रखकर मूल्य बढ़ने पर उसे बेचकर मुनाफा भी नहीं कमा सकती थी। आढ़तिया को मखाना बेचने से उसे मखाने का कम मूल्य मिला और आढ़तिए ने कहा कि अच्छी फसल होने की वजह से मखाने का मूल्य नहीं बढ़ा।

प्रश्न 2.
आर्थिक रूप से सम्पन्न बड़े मखाना उत्पादक किसान अपने फसल को कहाँ बेचेंगे ?
उत्तर-
आर्थिक रूप से सम्पन्न बड़े मखाना उत्पादक किसान अपने फसल को शहर के बड़े मंडियों में बेचेंगे। इससे उन्हें अपने उत्पाद की सही कीमत प्राप्त होगी। उन्हें उनके मेहनत का सही फल मिलेगा। बड़े मखाना उत्पादकों के पास सुविधा होने की वजह से वे लोग आसानी से अपने मखाने को लेकर शहर की मंडी में आ सकते हैं और अपने मखाने को बेचकर मुनाफा कमा सकते हैं। वे लोग अपने मखाने को अपने पास रख सकते हैं और मूल्य बढ़ने पर इन्हें बेच सकते हैं, जिससे उन्हें अधिक लाभ होगा।

प्रश्न 3.
मखाना उत्पादक किसान एवं उनसे जुड़े मजदूरों के काम के हालात और उन्हें प्राप्त होने वाले लाभ या मजदूरी का वर्णन करें ? क्या आप सोचते हैं कि उनके साथ न्याय होता है?
उत्तर-
मखाना उत्पादक किसान एवं उनसे जुड़े मजदूरों के काम बहुत कठिन होते हैं। मखाना उत्पादन करना, उनकी गुंडियों तालाब से निकालकर फिर उनका लावा तैयार करना बहुत मुश्किल का काम होता है, इसके लिए मजदूरों का कुशल होना आवश्यक है। कुछ छोटे किसान ही कर्ज लेकर मखाना उत्पादन करते हैं।

छोटे किसानों को पैसे की आवश्यकता तुरंत होती है और उनके पास जगह की कमी के कारण वे मखाने को अपने पास रखकर मूल्य बढ़ने पर बेच भी नहीं सकते। इसी कारण वे लोग अपना मखाना आढ़तिए को बेच देते हैं, जिससे उन्हें मखाने का सही मूल्य नहीं मिलता। जिससे उन्हें बहुत नुकसान होता है और उन्हें अपने मेहनत का फल भी नहीं मिलता ।

इसी तरह गुड़ियो से लावा निकालने का काम करने वालों और गुड़ियो से लावा निकालने वाली को भी उनकी मेहनत के हिसाब से मजदूरी नहीं मिलती। 2.5 किलो गुड़ी का लावा निकालने पर उन्हें आधा किलो गुड़ी दी जाती है। नहीं उनके साथ न्याय नहीं होता, उन्हें उनके मेहनत के हिसाब से लाभ या मजदूरी नहीं मिलती।

प्रश्न 4.
पीने के लिए चाय बनाने में चीनी ध तथा चाय पत्ती का प्रयोग होता है। आपस में चर्चा करें कि ये वस्तुएँ बाजार की किस शृंखला से होते हुए आप तक पहुँचती है ? क्या आप उन सब लोगों के बारे में सोच सकते हैं जिन्होंने इन वस्तुओं के उत्पदन एवं व्यापार में मदद की होगी?
उत्तर-
चीनी गन्नों के द्वारा चीनी मिल में बनाई जाती है, फिर वहाँ से चीनी थोक मंडी में पहुँचती है वहाँ से खुदरा व्यापारी के पास पहुँचती है और वहाँ से उपभोक्ता के पास। चाय की खेती मुख्यतः आसाम में होती है। यह पत्ते के रूप में उपजाई जाती है, फिर इसे मन में डालकर छोटे-छोटे दानों का रूप देते हैं, पर इसे पैक कर थोक व्यापारियों के पास भेजा जाता है, वहाँ से खुदरा दुकान के पास और वहाँ से उपभोक्ता के पास। । दूध उत्पादन ग्वाले करते हैं और फिर ये हमारे घर पर आकर दूध देते हैं या फिर बाजारों में भी पाश्च्युकृत किया हुआ दूध पैकेटों में उपलब्ध होता है।

प्रश्न 5.
यहाँ दिये गये कथनों का सही क्रम में सजाएं और फिर नीचे बने गोलों में सही क्रम के अंक भर दें। प्रथम दो गोलों में आपके लिए पहले से ही अंक भर दिये गये हैं।

  1. सलमा मखाना उपजाती है।
  2. स्थानीय आढ़तिया पटना के थोक व्यापारी को बेचता है।
  3. आशापुर में मखाना का लावा बनवाने लाती है।
  4. खाड़ी देशों को निर्यात करते हैं।
  5. दिल्ली के व्यापारियों को बेचते हैं।
  6. मजदूर गुड़ियों को इकट्ठा हलते हैं।
  7. सलमा आशापुर के आढ़तियों को मखाना बेचती है।
  8. आशापुर में गुड़िया से लावा बनाया जाता है।
  9. खुदरा व्यापारी को बेचते हैं।
  10. उपभोक्ता को प्राप्त होता है।

उत्तर-

  1. सलमा मखाना उपजाती है ।
  2. आशापुर में गुड़ियों से लावा बनाया जाता है।
  3. मजदूर गुड़िया इकट्ठा करते हैं।
  4. आशापुर में मखाना का लावा बनवाने लाती है।
  5. सलमा आशापुर के आढ़तियों को मखाना बेचती है।
  6. आढ़तिया पटना के थोक व्यापारी को मखाना बेचती है।
  7. दिल्ली के व्यापारियों को बेचते हैं।
  8. खाड़ी देशों को निर्यात करते हैं।
  9. खुदरा व्यापारी को बेचते हैं ।
  10. उपभोक्ता को प्राप्त होता है।

Bihar Board Class 7 Social Science बाजार श्रृंखला खरीदने और बेचने की कड़ियाँ Notes

पाठ का सार संक्षेप

किसी भी वस्तु को उसके उत्पादक से उपभोक्ता तक पहुँचने में बहत-सी – कड़ियों से गुजरना पड़ता है। ये कड़ियाँ कैसे बनती है ? और इन कड़ियों से जुड़े लोगों को एक सा लाभ प्राप्त हो पाता है ? इस अध्याय में हम इन्हीं बातों को समझने की कोशिश करेंगे मखाना की उपज, किसान तथा बाजार की श्रृंखला के उदाहरण द्वारा।”

मखाना – मखाना की खेती तालाब में की जाती है। इसकी खेती प्रायः मछुआरों द्वारा की जाती है। तालाबों का 60 प्रतिशत हिस्सा सरकार का तथा 40 प्रतिशत हिस्सा निजी व्यक्तियों का होता है। मखाना की खेती के ये तालाब मछुआरों द्वारा बनाई गई सहकारी समितियों को तीन से सात साल के लिए एक निश्चित लगान पर दी जाती है। मखना की खेती हर कोई नहीं कर सकता है। क्योंकि मखाना के उत्पादन एवं उसका लावा बनाने में जिस कुशलता की आवश्यकता होती है, वह मछुआरों के एक खास समूह में पायी जाती है।

पटना के बाजार – कुछ व्यापारी आढ़तियों से मखाना खरीदकर शहरों के थोक मंडी में बेचते हैं। फिर किसी दूसरे शहर के व्यापारी इन मंडियों से मखाना खरीदकर ले जाते हैं। इस क्रम में वे खरीदे गए मखाने का मूल्य, परिवहन का खर्च तथा पैकिंग का खर्च सभी जोड़ लेते हैं और अपने शहर की थोक मंडियों में वे 10 रु. प्रति किलो के लाभ पर बेचता है।

थोक विक्रेता बड़ी मात्रा में खरीद-बिक्री करता है इसलिए वह अधिक कमा लेता है। खुदरा व्यापारी प्रति किलो 30 से 40 रु. लाभ पर बेचता है। इस प्रकार शहरी उपभोक्ता को मिलने तक उसकी कीमत अधिक हो जाती है। इससे हमें पता चलता है कि किसानों को सबसे अधिक मेहनत करने के बावजूद उचित लाभ नहीं मिल पाता।

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