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 bseb class 8th science notes | कपड़े तरह-तरह के : रेशे तरह-तरह के

bseb class 8th science notes | कपड़े तरह-तरह के : रेशे तरह-तरह के

कपड़े तरह-तरह के : रेशे तरह-तरह के

अध्ययन सामग्री:
* रोटी, कपड़ा और मकान ये तीन मानव के न्यूनतम आवश्यकताओं में से एक है। जिस तरह
रोटी हमारे जीवन का आधार है ठीक उसी तरह जाड़ा, गर्मी, वर्षा आदि से कपड़ा मेरी रक्षा
कर जीवन को आगे बढ़ाने का काम करता है। अलग-अलग मौसम में अलग-अलग तरह
के वस्त्र धारण कर हम अपने शरीर की रक्षा करते हैं।
* वस्त्र को बनाने के लिए जिन पदार्थों का प्रयोग किया जाता है उसे हम तन्तु कहते हैं। वैसे
तन्तु जो पौधों एवं जन्तुओं से प्राप्त होते हैं उसे प्राकृतिक तन्तु कहते हैं।
कपास, रेशम, ऊन आदि इसके अलावे केले के पत्ते एवं तने, बांस से भी तन्तु प्राप्त किया जाता है। वे सभी तन्तु जो पौधे व जन्तु से न प्राप्त कर रासायनिक पदार्थों से बनाए जाते हैं उसे मानव
निर्मित तन्तु कहते हैं। जैसे—पॉलिस्टर, नायलॉन, एक्रिलिक आदि। .
* वस्त्र के निर्माण में तन्तु से लेकर वस्त्र तक अनेक प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। जैसे-
कताई, बुनाई, बंधाई आदि । रेशों से तागा बनाने की प्रक्रिया को कताई कहते हैं। इस प्रक्रिया
में, रूई के एक पुंज से रेशों को खींचकर ऐंठते हैं। ऐसा करने से रेशे आस-पास आ जाते
हैं और तागा बन जाता है। कताई के लिए तकली तथा चरखा आदि जैसी युक्तियों का प्रयोग
किया जाता है। कताई के बाद बुनाई तथा उसके बाद बंधाई प्रक्रिया के बाद वस्त्र का निर्माण
होता है। वर्तमान में ये सभी प्रक्रिया अब मशीन से होती है।
* तन्तुओं के प्रकार-तन्तु दो प्रकार के होते हैं-
(1) प्राकृतिक तन्तु और (2) संश्लिष्ट या मानव निर्मित तन्तु ।
(1) प्राकृतिक तन्तु-वैसे तन्तु जो पौधे एवं जन्तु से प्राप्त होते हैं, उसे प्राकृतिक तन्तु कहते
हैं। जैसे-रेशम, ऊन, जूट, सूत आदि ।
(2) संशलिष्ट तन्तु या मानव निर्मित तन्तु–वैसे तन्तु जो पौधों एवं जन्तुओं से न प्राप्त
कर रासायनिक पदार्थों से बनाए जाते हैं, उसे मानव निर्मित तन्तु या संश्लिष्ट तन्तु कहते
हैं। जैसे—पॉलिस्टर, नायलॉन, एक्रिलिक आदि ।
* कताई-तन्तुओं से तागा बनाने की प्रक्रिया को कताई कहते हैं। कताई में तकली, चरखा,
कताई मशीन आदि उपकरणों का प्रयोग किया जाता है। तागे से वस्त्र बनाने की कई विधियाँ
प्रचलित हैं। इनमें से दो प्रमुख विधियाँ बुनाई तथा बंधाई हैं।
                                             अभ्यास
1. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
(i) संश्लेषित रेशे………..अथवा……….रेशे भी कहलाते हैं।
(ii) सूती वस्त्र जलने पर………… के जलने जैसी गंध आती है जबकि नाइलॉन से
उबलती हुई………….. के समान गंध निकलती है।
(iii) सूती और नाइलॉन के वस्त्र को फाड़ने पर………… वस्त्र आसानी से फटते हैं।
(iv) …………..रेशा सेलुलोज के रासायनिक क्रियाओं द्वारा प्राप्त किए जाते हैं।
उत्तर-(i) कृत्रिम, मानव निर्मित, (ii) कागज, फली, (iii) सूती, (iv) रेयॉन ।
2. मिलान कीजिए-
कॉलम क                            कॉलम ख
(i) रेशम                             (क) संश्लेषित रेशा
(ii) पैराशूट                          (ख) रेयॉन
(iii) कृत्रिम रेशम                   (ग) प्राकृतिक रेशा
(iv) टेरिलीन                         (घ) नाइलॉन
उत्तर-(i) (ग), (ii) (घ), (iii) (ख), (iv) (क)।
3. कुछ रेशे संश्लेषित क्यों कहलाते हैं ?
उत्तर-कपड़ा मानव सभ्यता के विकास की देन है। कपड़ा मानव सभ्यता और संस्कृति
के सूचक है। प्राचीन काल से ही मानव तन ढंकने का प्रयल करता रहा है। इस काम के लिए
उसने आदिम युग में घास-फूस, पेड़-पौधे, पत्ते-छाल तथा मृत पशुओं की खाल आदि का प्रयोग
किया। परंतु जिज्ञासु मानव इतने से कब संतुष्ट होने वाला था। मानव की जिज्ञासा तथा तीव्र
बुद्धि ने वस्त्रों की उत्पत्ति के साधन एवं वस्त्रों के निर्माण कला को यहाँ तक पहुंचा दिया।
पौधों तथा जन्तुओं से प्राप्त होने वाले रेशों से बने कपड़े के गुण जैसे जल्दी गंदा होना,
धोने से सिलवट पड़ने, रख-रखाव में परेशानी तथा इसकी सीमित उत्पादन ने तथा विज्ञान के
विकास ने एक नए रेशे के आविष्कार में मुख्य भूमिका अदा किए । आज रासायनिक संश्लेषण
प्रक्रिया के द्वारा रेशों का निर्माण होने लगा है। इस प्रकार के रेशा को संश्लेषित रेशा कहते हैं।
जैसे-नायलॉन, रेयॉन, टेरिलीन, टेरीकॉट इत्यादि।
इस प्रकार रेशों को दो तरह से प्राप्त किया जाता है। एक पेड़-पौधों तथा जानवरों से तो दूसरा
मानव निर्मित यानी संश्लेषित रेशा, यही कारण है कि कुछ रेशों को संश्लेषित रेशा कहा जाता है।
4. नाइलॉन रेशों से निर्मित दो वस्तुओं के नाम बताइए जो नाइलॉन रेशे की प्रबलता दर्शाती है।
उत्तर-ऐसे तो नाइलॉन से बहुत सारी वस्तुएंँ बनती हैं। परन्तु इसकी प्रबलता को दर्शाने
वाले दो प्रमुख वस्तुएँ-पैराशुट, चट्टानों या पहाड़ों पर चढ़ने हेतु रस्से ।
5. रसोई घर में संश्लेषित वस्त्र पहनने की सलाह नहीं दी जाती है। क्यों?
उत्तर-संश्लेषित वस्त्र काफी हल्के होते हैं जिसके कारण थोड़ी-सी शारीरिक हलचल या
हवा से इधर से उधर हो जाते हैं। जिसके कारण आग के चपेट में आ जाते हैं। इतना ही नहीं,
यह आग को भी बहुत जल्दी पकड़ लेता है और साथ ही इसमें आग बहुत जल्दी-जल्दी आगे
बढ़ता चला जाता है। परिणामस्वरूप किसी दुर्घटना होने की संभावना प्रबल होती है इसलिए
रसोईघर में संश्लेषित वस्त्र पहनने की सलाह नहीं दी जाती है।
6. रेयॉन को “नकली रेशम” क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-सबसे पहले प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते हुए कृत्रिम रूप से रेशा का निर्माण
किया गया। रेयॉन उन्हीं में से एक है।
रेयॉन, लकड़ी के लुग्दी द्वारा कृत्रिम रेशा प्राप्त किया गया। जिसका गुण रेशम के समान
होता है। यही कारण है कि रेयॉन को कृत्रिम या नकली रेशम कहा जाता है।
7. संश्लेषित वस्त्र गर्मी के मौसम में आरामदेह नहीं होते हैं क्यों ?
उत्तर-संश्लेषित वस्त्र में जलग्रहण करने की क्षमता बहुत कम होती है तथा ऊष्मा का
सुचालक होता है यानि धूप या प्रकाश को ग्रहण कर काफी गर्म हो जाता है। जब गर्मी के दिनों
में संश्लेषित कपड़ा पहनते हैं तो काफी गर्मी महसूस होता है। साथ ही पसीना को भी नहीं सोंख
पाता है। इन्हीं कारणों से ये गर्मी में आरामदायक नहीं होते हैं।
8. एक्रिलिक के दो उपयोग लिखिए।
उत्तर-एक्रिलिक के दो उपयोग–(i) स्वेटर बनाने में । (ii) कम्बल बनाने में।
9. रेशा का नाम बताइए जो-
(i) जलने पर जलते हुए कागज का गंध देता हो । (ii) जलने पर जलते हुए बाल
का गंध देता हो । (iii) जलने पर उबलती हुई फली का गंध देता हो।
उत्तर-(i) वह रेशा जो जलने पर जलते हुए कागज का गंध देता हो वह सूती कहलाता है।
(ii) वह रेशा जो जलने पर जलते हुए बाल का गंध देता है वह रेशम कहलाता है।
(iii) वह रेशा जो जलने पर उबलती हुई फली का गंध देता हो वह नाइलॉन कहलाता है।
10. संश्लेषित रेशों का औद्योगिक निर्माण वास्तव में वनों के संरक्षण में सहायक रहा है।
टिप्पणी दीजिए।
उत्तर-प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक रेशों के निर्माण में पेड़ों का भरपूर उपयोग
हुआ । आधुनिक काल में रेयॉन बनाने में लकड़ी का लुगदी का प्रयोग किया जाता रहा परन्तु रेयॉन के बाद नायलॉन, पॉलिस्टर टेरीकॉट एक्रिलिक में लकड़ी का उपयोग नहीं हुआ और आज सम्पूर्ण आवश्यकता की पूर्ति सिर्फ वस्त्र के रूप में ही नहीं बल्कि जरूरत की अन्य सामग्री जैसे कुर्सी, टेबुल आदि भी कृत्रिम रेशों से बनाए जाने लगे। इस प्रकार संश्लेषित रेशों का औद्योगिक निर्माण वनों के संरक्षण में सहायक रहा।
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