आधुनिक भारत के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक - सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर (1910-1995)

 


सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर 20वीं सदी के महानतम वैज्ञानिकों में से एक थे। उन्होंने खगोलशास्त्र, भौतिकी और अप्लाइड मैथमेटिक्स में सराहनीय कार्य किया।
चंद्रशेखर का उल्लेखनीय कार्य 'चंद्रशेखर लिमिट' के नाम से जाना जाता है, जो तारों के अंत से संबंधित है। दरअसल, किसी भी तारे की एक निश्चित आयु होती है जिसके पश्चात् उसका अंत हो जाता है। तारों में नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया से ऊर्जा पैदा होती रहती है। हाइड्रोजन के नाभिक आपस में जुड़कर हीलियम के नाभिक बनाते रहते हैं। विज्ञान के अनुसार अपनी मृत्यु के बाद तारा न्यूट्रॉन स्टार (Neutron Star) या ब्लैक होल (Black Hole) या फिर सफेद बौने तारे (White Dwarf Star) में परिवर्तित हो जाता है। यदि तारे का द्रव्यमान चंद्रशेखर लिमिट (सूर्य के द्रव्यमान से 1.44 गुना अधिक) से कम है तो वह मृत्यु के बाद सफेद बौने अर्थात् टिमटिमाते चिराग में बदल जाता है और अगर उसका द्रव्यमान चंद्रशेखर लिमिट से ज़्यादा है तो एक महाविस्फोट सुपरनोवा (Supermova) के बाद वह 'न्यूट्रॉन स्टार' या फिर 'ब्लैक होल' में परिवर्तित हो जाता है।
अपनी गणनाओं द्वारा पहली बार चंद्रशेखर ने ब्लैक होल का भौतिक अस्तित्व सिद्ध किया। इससे पहले इसे एक काल्पनिक पिंड समझा जाता था। ज्ञात रहे कि ब्लैक होल एक ऐसे पिंड को कहते हैं जिसका घनत्व असीमित व गुरुत्वाकर्षण इतना अधिक होता है कि वह प्रकाश किरणों को भी अपने अंदर समेट लेता है। 
अपनी रिसर्च के आरंभिक दिनों में चंद्रशेखर ने बैलिस्टिक मिसाइलों पर उल्लेखनीय कार्य किया। बाद में उन्होंने 'क्वांटम भौतिकी' तथा 'सापेक्षता के सिद्धांत' पर भी काफी कार्य किया। सितारों की सैद्धांतिक संरचना व उसके विकास पर उनके उल्लेखनीय कार्य के लिये उन्हें सन् 1983 का 'भौतिकी का नोबेल' पुरस्कार विलियम ए. फाउलर के साथ संयुक्त रूप से प्रदान किया गया।


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