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 वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (CSIR)



वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् भारत में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर अनुसंधान एवं विकास संबंधी सबसे बड़ा संस्थान है। इसकी स्थापना 1942 में हुई थी। यद्यपि इसका वित्तीय प्रबंध भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा होता है, फिर भी यह एक स्वायत्त संस्था है। इसका पंजीकरण सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के अंतर्गत हुआ है। भारत के प्रधानमंत्री सीएसआईआर के अध्यक्ष हैं। सीएसआईआर रेडियो और अंतरिक्ष भौतिकी, महासागर विज्ञान, भूभौतिकी, रसायन, औषध, जैव प्रौद्योगिकी और नैनो प्रौद्योगिकी से खनन, वैमानिकी, उपकरणन, पर्यावरणीय इंजीनियरी तथा सूचना प्रौद्योगिकी तक के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के व्यापक विषयों व क्षेत्रों में कार्य कर रहा है। यह सामाजिक प्रयासों से जुड़े अनेक क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकीय अंतराक्षेपण उपलब्ध कराता है, जिसमें पर्यावरण, स्वास्थ्य, पेयजल, खाद्य, आवास, ऊर्जा, कृषि एवं गैर-कृषि क्षेत्र शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, वैज्ञानिक एवं तकनीकी मानव संसाधन विकास में सीएसआईआर की भूमिका उल्लेखनीय है।

सीएसआईआर का प्रमुख उद्देश्य है- "ऐसा वैज्ञानिक औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास उपलब्ध कराना जिससे भारत की जनता को अधिकतम आर्थिक, पर्यावरणीय एवं सामाजिक लाभ होते हों।" सीएसआईआर ने नवीन विज्ञान और उन्नत ज्ञान के क्षेत्रों में अग्रणी कार्य किया है। सीएसआईआर का वैज्ञानिक स्टाफ भारत की वैज्ञानिक जनशक्ति का लगभग 3-4 प्रतिशत है किंतु भारत के वैज्ञानिक निर्गत में उनका योगदान लगभग 10 प्रतिशत है। सीएसआईआर प्रतिवर्ष औसतन लगभग 200 भारतीय पेटेंट और 250 विदेशी पेटेंट फाइल करता है। सीएसआईआर के लगभग 13.86 प्रतिशत पेटेंट को लाइसेंस प्राप्त है, जो वैश्विक औसत से अधिक है।
सीएसआईआर ने उद्यमशीलता को प्रोत्साहन देने के लिये वांछित क्रियाविधि तैयार की है जिससे नए आर्थिक क्षेत्रों के विकास को नया आधार बनाते हुए मूल और वृहद् नवोन्मेषों के सृजन और वाणिज्यीकरण को प्रोत्साहन दिया जा सकेगा।
गौरतलब है कि वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकीय मानव संसाधन विकास के लिये सीएसआईआर के अग्रणी सतत योगदान को राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया है। सीएसआईआर का एक प्रभाग, मानव संसाधन विकास समूह (HRDG) इस उद्देश्य को विभिन्न अनुदानों, फेलोशिप स्कीमों आदि के माध्यम से साकार करता है। मानव संसाधन विकास समूह जिज्ञासु समाज एवं तेजी से विकसित होने वाली ज्ञान अर्थव्यवस्था का निर्माण करने के लिये महत्त्वपूर्ण योगदान देता रहा है। इसकी अनेक स्कीमों में वैज्ञानिकों की व्यापक श्रेणियाँ (15 से 65 वर्ष की आयु) शामिल हैं।

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