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 Bihar Board Class 12th Geography Notes Chapter 9 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

Bihar Board Class 12th Geography Notes Chapter 9 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

→ व्यापार

  • व्यापार, तृतीयक क्रियाकलाप है।
  • व्यापार का तात्पर्य वस्तुओं और सेवाओं के स्वैच्छिक आदान-प्रदान से है।
  • व्यापार के दो स्तर – (1) अन्तर्राष्ट्रीय एवं (2) राष्ट्रीय व्यापार।
  • अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार–विभिन्न राष्ट्रों के बीच वस्तुओं व सेवाओं के आदान-प्रदान को कहते हैं।
  • राष्ट्रीय व्यापार-देश के आन्तरिक भागों के बीच वस्तुओं व सेवाओं के आदान-प्रदान को कहते हैं।

→ विनिमय व्यवस्था
आदिम समाज में वस्तु-विनिमय व्यवस्था थी जबकि आधुनिक समाज में मुद्रा विनिमय व्यवस्था है।

→ अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का इतिहास

  • प्राचीन काल में व्यापार स्थानीय स्तर तक ही सीमित था।
  • अधिकांश संसाधनों का प्रयोग मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया जाता था।
  • 6000 किमी रेशम मार्ग रोम को चीन से जोड़ता था। इस मार्ग से होकर जाने वाले कारवाँ चीन के रेशम, रोम की ऊन, लोहे की वस्तुओं, बहुमूल्य वस्तुओं तथा भारत, पर्शिया एवं मध्य एशिया से अन्य महँगी वस्तुओं का व्यापार करते थे।
  • सन् 1780 से सन् 1820 के बीच औद्योगिक क्रान्ति के बाद अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में एक नया मोड़ आया और अनाज, मांस तथा ऊन की माँग में वृद्धि हुई, लेकिन निर्मित वस्तुओं की तुलना में उनका मौद्रिक मूल्य कम हो गया। औद्योगीकृत देशों ने कच्चे माल का
    आयात तथा निर्मित वस्तुओं का निर्यात करना शुरू कर दिया।
  • विश्वयुद्ध के बाद के समय के दौरान GATT जैसी संस्थाओं (बाद में WTO बना) ने शुल्क को घटाने में सहायता की।

→ अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का अस्तित्व क्यों?
प्रत्येक देश अपनी आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का निर्यात करता है तथा अन्य वस्तुओं का आयात करता है।

→ अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के आधार
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के आधार निम्नलिखित हैं –

(1) प्राकृतिक संसाधनों में विषमता

  • भू-वैज्ञानिक संरचना,
  • खनिज, एवं
  • जलवायु।

(2) जनसंख्या कारक

  • सांस्कृतिक कारक, एवं
  • जनसंख्या का आकार।

(3) आर्थिक विकास की प्रावस्था,
(4) विदेशी निवेश की सीमा, एवं
(5) परिवहन तथा संचार का विकास।

→ अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के महत्त्वपूर्ण पक्ष
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के तीन महत्त्वपूर्ण पक्ष निम्नलिखित हैं

  1. व्यापार का परिमाण
  2. व्यापार संयोजन, एवं
  3. व्यापार की दिशा।

→ अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रकार
• अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के दो प्रकार निम्नलिखित हैं
(1) द्विपक्षीय व्यापार, एवं (2) बहुपक्षीय व्यापार।

→ व्यापार सन्तुलन

  • आयात तथा निर्यात के बीच मूल्यों के अन्तर को ‘व्यापार सन्तुलन’ कहते हैं।
  • व्यापार सन्तुलन के दो प्रकार हैं
    (1) अनुकूल व्यापार सन्तुलन, एवं (2) असन्तुलित व्यापार सन्तुलन।

→ मुक्त व्यापार
व्यापार हेतु अर्थव्यवस्थाओं को खोलने की प्रक्रिया को ‘मुक्त व्यापार’ अथवा ‘व्यापार उदारीकरण’ कहते हैं।

→ विश्व व्यापार संगठन (WTO)
1948 में गैट (GATT) की स्थापना जिनेवा में हुई। 1 जनवरी, 1995 को गैट का रूप बदलकर विश्व व्यापार संगठन बन गया। यह संगठन व्यापार को नियन्त्रित करने के साथ-साथ व्यापारिक झगड़ों का निपटास भी करता है।

→ प्रादेशिक व्यापार समूह
प्रादेशिक व्यापार समूह का मुख्य उद्देश्य संरक्षणवाद को कम करना तथा सदस्य देशों के बीच आर्थिक सम्बन्धों में वृद्धि करना है। प्रमुख प्रादेशिक व्यापार समूह निम्नलिखित हैं

  1. दक्षिण-पूर्वी एशियाई राष्ट्रों का संगठन (आसियान-ASEAN)
  2. सी०आई०एस० (CIS)
  3. यूरोपीय संघ (E.U.)
  4. लैटिन अमेरिकन इण्टीग्रेशन एसोसिएशन (LAIA)
  5. नॉर्थ अमेरिकन फ्री ट्रेड एसोसिएशन (नॉफ्टा-NAFTA)
  6. ऑर्गेनाइजेशन ऑफ पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज (ओपेक-OPEC)
  7. साउथ एशियन फ्री ट्रेड एग्रीमेण्ट (साफ्टा-SAFTA)।

→ पत्तन व इसके प्रकार ।

‘पत्तन’ वह तटीय स्थल है, जहाँ से जहाज अपनी यात्रा आरम्भ करते हैं या आकर यात्रा समाप्त करते हैं। ये सागरीय व्यापार के द्वार होते हैं, जहाँ जहाजों के ठहरने का उचित प्रबन्ध होता है। जहाजों से सामान उतारने तथा उन पर सामान लादने की भी उचित व्यवस्था होती है, अत: पत्तन को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के द्वार कहते हैं।

पत्तनों के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं –
(I) निपटाए गए नौभार के अनुसार पत्तनों के प्रकार
(i) औद्योगिक पत्तन, (ii) वाणिज्यिक पत्तन, एवं (iii) विस्तृत पत्तन।

(II) अवस्थिति के आधार पर पत्तनों के प्रकार
(i) अन्तर्देशीय पत्तन, एवं (ii) बाह्य पत्तन।

(III) विशिष्टीकृत कार्यकलापों के आधार पर पत्तनों के प्रकार
(i) तैल पत्तन, (ii) मार्ग पत्तन, (iii) पैकेट स्टेशन, (iv) आन्त्रपो पत्तन, एवं (v) नौसेना पत्तन।

→ व्यापार–वस्तुओं और सेवाओं का अधिशेष क्षेत्र से अभाव वाले क्षेत्रों में स्वैच्छिक आदान-प्रदान।

→ राष्ट्रीय व्यापार-देश के भीतर ही देश के विभिन्न भागों के बीच होने वाला व्यापार।

→  अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार-पदार्थों, सेवाओं, कच्चे माल तथा उत्पादित माल आदि का देश की सीमाओं के बाहर आदान-प्रदान।

→  विदेशी मुद्रा विनिमय-वह प्रणाली जिसके अनुसार एक देश की मुद्रा का दूसरे देश की मुद्रा से विनिमय किया जाता है।

→  व्यापार का सन्तुलन-किसी समयावधि में किसी देश के निर्यात और आयात के अन्तर को व्यापार का सन्तुलन कहते हैं।

→ व्यापार की संरचना-व्यापार में वस्तुओं तथा सेवाओं के प्रकार।

→ द्विपक्षीय व्यापार-दो देशों के बीच वस्तुओं का विनिमय।

→ बहुपक्षीय व्यापार-वस्तुओं और सेवाओं का अनेक देशों के बीच विनिमय।

→ वस्तु-विनिमय-किसी पदार्थ का दूसरे पदार्थ में बदलना वस्तु-विनिमय कहलाता है।

→  पत्तन-पोताश्रय का व्यापार करने वाला भाग, जहाँ जहाजों का सामान लादने, उतारने व उसे सुरक्षित रखने तथा यात्रियों के चढ़ने-उतरने और उनके ठहरने के लिए सुविधाएँ हों।

→ बाह्य पत्तन-गहरे पानी के पत्तन जो वास्तविक से दूर गहरे समुद्र में बनाए जाते हैं।

→ आन्त्रोपो पत्तन-वे पत्तन जो एक देश का माल दूसरे देश को भेजते हैं। ऐसे पत्तनों पर आने वाले माल का गन्तव्य अन्य देश होते हैं। सिंगापुर ऐसा ही पत्तन है।

→ पोर्ट ऑफ कॉल-जलपोत ईंधन, पानी तथा खाना आदि लेने के लिए ठहरते हैं और फिर गन्तव्य के लिए चल देते हैं। ऐसे पत्तनों को ‘पोर्ट ऑफ कॉल’ कहते हैं जैसे-होनोलुल।

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