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 Bihar Board Class 12th Geography Notes Chapter 19 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

Bihar Board Class 12th Geography Notes Chapter 19 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास

→ नियोजन का अर्थ और उपगमन

  • किसी भी समस्या का समाधान करने के लिए सोच-विचार करना, कामों व प्राथमिकताओं का क्रम विकसित करना तथा उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कठोर परिश्रम करना, ‘नियोजन’ कहलाता है।
  • सामान्य नियोजन के दो उपगमन होते हैं
    (1) खण्डीय नियोजन एवं (2) क्षेत्रीय नियोजन।

→ भारत में नियोजन परिप्रेक्ष्य

  • भारत में केन्द्रीकृत नियोजन है। भारत सरकार ने नियोजन का कार्य योजना आयोग को सौंप रखा है।
  • योजना आयोग एक वैधानिक संस्था है जिसका अध्यक्ष प्रधानमन्त्री है।
  • भारत में नियोजन पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से किया जाता है।
  • पहली पंचवर्षीय योजना 1951-1956 तक चली।
  • 1966-67 और 1968-69 में योजना नहीं बनी, अत: इसे ‘योजना अवकाश’ का समय कहते हैं। इस अवधि में वार्षिक योजनाएँ लागू रहीं जिन्हें ‘रोलिंग प्लान’ भी कहा गया है।
  • पाँचवीं पंचवर्षीय योजना समय पूर्व 1977-78 में ही समाप्त कर दी गई।
  • राजनीतिक अस्थिरता और उदारीकरण की नीति की शुरुआत के कारण आठवीं पंचवर्षीय योजना देरी से आरम्भ हुई।
  • 12वीं पंचवर्षीय योजना 2012 से शुरू की गई। योजना का मुख्य उपागम प्रपत्र तीव्रता के साथ और अधिक सम्मिलित तथा सतत वृद्धि था।
  • नीति आयोग का गठन 1 जनवरी, 2015 को भारत के योजना आयोग को प्रतिस्थापित करके किया गया है।

→ लक्ष्य क्षेत्र नियोजन

  • क्षेत्रीय असन्तुलन को दूर करने के लिए योजना आयोग ने लक्ष्य क्षेत्र तथा लक्ष्य समूह योजना उपागमों को प्रस्तुत किया।
  • लक्ष्य क्षेत्र कार्यक्रमों के उदाहरण-कमान नियन्त्रित क्षेत्र विकास कार्यक्रम, पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम, सूखा सम्भावी क्षेत्र विकास कार्यक्रम आदि।
  • आठवीं योजना में पर्वतीय क्षेत्रों तथा उत्तर-पूर्वी राज्यों, जनजातीय एवं पिछड़े क्षेत्रों में अवसंरचना को विकसित करने के लिए विशिष्ट । क्षेत्र योजना को तैयार किया गया।

→ पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम

  • कार्यक्रम पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में आरम्भ हुआ। इसमें उत्तराखण्ड, मिकिर पहाड़ी और असम की उत्तरी कछार की पहाड़ियाँ, पश्चिम बंगाल का दार्जिलिंग जिला तथा तमिलनाडु के नीलगिरि इत्यादि को मिलाकर 15 जिले शामिल हैं।
  • कार्यक्रम का उद्देश्य स्थानीय लोगों को स्वरोजगार का प्रशिक्षण देकर तथा उन्हें इन कार्यक्रमों में शामिल करके स्थानीय संसाधनों का दोहन करना था।

→ सूखा सम्भावी क्षेत्र विकास कार्यक्रम (DPAP)

कार्यक्रम चौथी पंचवर्षीय योजना (1969-74) में आरम्भ हुआ। कार्यक्रम का उद्देश्य संसाधनों के अभाव वाले सूखा सम्भावी क्षेत्रों में सूखे के प्रभाव अर्थात् गरीबी को दूर करने के लिए रोजगार के
अवसर पैदा करना था।

→ जनजातीय विकास कार्यक्रम

  • कार्यक्रम उन जिलों के लिए तैयार किए गए थे जिनकी आधी या उससे अधिक जनसंख्या जनजातीय है।
  • कार्यक्रम मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, महाराष्ट्र, गुजरात, आन्ध्र प्रदेश, झारखण्ड और राजस्थान – के कुछ चुने हुए क्षेत्रों में लागू किए गए थे।
  • ये कार्यक्रम समाज के सबसे कमजोर वर्ग के लोगों के उत्थान के लिए बनाए गए थे।

→ केस अध्ययन : भरमौर क्षेत्र में समन्वित जनजातीय विकास कार्यक्रम

  • हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिले की भरमौर तहसील गद्दी आदिवासियों का निवास क्षेत्र है। .
  • भरमौर को जनजातीय क्षेत्र के रूप में अधिसूचना 21 नवम्बर 1975 को की गई थी।
  • भरमौर में विकास की प्रक्रिया सन् 1974 में तब शुरू हुई जब यहाँ पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में
    जनजातीय उपयोजना शुरू हुई और भरमौर को हिमाचल प्रदेश में पाँच में से एक समन्वित जनजातीय विकास परियोजना (ITDP) का दर्जा मिला।
  • योजना में पशुपालन, कृषि व इससे जुड़ी क्रियाओं तथा सामाजिक व सामुदायिक सेवाओं के विकास को सर्वाधिक प्राथमिकता दी गई।
  • भरमौर में जनजातीय समन्वित विकास उपयोजना लागू होने से आदिवासियों को होने वाले लाभ हैं (1) साक्षरता, (2) अर्थव्यवस्था, (3) प्रवास एवं (4) जीवन-स्तर।

→ सतत पोषणीय विकास

  • ‘विकास’ का अभिप्राय समाज विशेष की भौतिक एवं सांस्कृतिक उपलब्धियों से विश्व में बनी उसकी स्थिति तथा अनुभव किए गए परिवर्तन की प्रक्रिया से है।
  • विकास एक बहुआयामी संकल्पना है जो इस बात का द्योतक है कि अर्थव्यवस्था, समाज और
    पर्यावरण में सकारात्मक परिवर्तन होता है और यह परिवर्तन पलटा नहीं जा सकता।
  • विकास गत्यात्मक है।
  • ब्रंटलैण्ड रिपोर्ट के अनुसार, “सतत पोषणीय विकास वह विकास है जो भावी पीढ़ियों को अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने की योग्यता के साथ समझौता किए बिना ही वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करे।”

→ सतत पोषणीय विकास के प्रमुख तत्त्व

  1. मानव व जीवन के अन्य सभी रूपों का जीवित रहना।
  2. सभी जीवों, मुख्यतया मनुष्य की आधारभूत आवश्यकताओं को पूरा करना।
  3. जीवों की भौतिक उत्पादकता का अनुरक्षण।
  4. मनुष्य की आर्थिक क्षमता एवं विकास।
  5. पर्यावरण तथा पारिस्थितिक तन्त्र का संरक्षण।
  6. अन्तर तथा अन्तरा पीढ़ी समानता।
  7. सामाजिक न्याय और स्वावलम्बन।
  8. आम लोगों की प्रतिभागिता।
  9. जनसंख्या वृद्धि दर में स्थिरता।
  10. जीवन मूल्यों का पालन।

→ इन्दिरा गांधी नहर क्षेत्र में सतत पोषणीय विकास को बढ़ावा देने के उपाय

  1. जल प्रबन्धन नीति,
  2. अधिक जल में बोने वाली फसलें न बोना,
  3. जल की बर्बादी रोकना,
  4. जल भराव और लवणीय भूमि का उद्धार,
  5. पारि-विकास,
  6. सामाजिक सतत पोषणीयता, एवं
  7. अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों से सम्बन्ध आवश्यक।

→ क्षेत्रीय नियोजन-क्षेत्रीय नियोजन का अर्थ है-कृषि और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में विभिन्न कार्यक्रमों को लागू करना।

→ क्षेत्रीय विकास क्षेत्रीय विकास में विभिन्न भाग जो आर्थिक दृष्टि से समान नहीं हैं; का विकास किया जाता है।

→ विकास-विकास, परिवर्तन की वह प्रक्रिया है जो जनसंख्या के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाती है।

→ सतत विकास-यह विकास की नई संकल्पना है जिसमें वर्तमान तथा भावी पीढ़ियों की आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रावधान होता है।

→ विकास नियोजन-सामाजिक उद्देश्यों के अनुरूप अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए संसाधनों का इष्टतम उपयोग।

→ योजना आयोग–यह एक वैधानिक संस्था है जिसका अध्यक्ष प्रधानमन्त्री होता है।

→ विशिष्ट क्षेत्र विकास कार्यक्रम-आठवीं योजना में उत्तर-पूर्वी राज्यों, जनजातीय क्षेत्रों एवं पिछड़े क्षेत्रों में ढाँचागत सुविधाओं का विकास करने के लिए लागू कार्यक्रम।

→ सूखा सम्भावी क्षेत्र विकास कार्यक्रम-चौथी योजना शुरू। इस कार्यक्रम का उद्देश्य संसाधनों के अभाव वाले सूखा प्रभावी क्षेत्रों में सूखे के प्रभाव अर्थात् गरीबी को दूर करने के लिए रोजगार के अवसर पैदा करना था।

→ जनजातीय विकास कार्यक्रम कार्यक्रम उन जिलों के लिए तैयार किए गए थे जिनकी आधी या उससे अधिक जनसंख्या जनजातीय है। कार्यक्रम समाज के सबसे कमजोर वर्ग के लोगों के उत्थान के लिए . बनाए गए थे।

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