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 Bihar board SST civics notes class 8th chapter 6  न्यायिक प्रक्रिया

Bihar board SST civics notes class 8th chapter 6  न्यायिक प्रक्रिया

Bihar board SST civics notes class 8th chapter 6

                                         न्यायिक प्रक्रिया
पाठ का सारांश-न्यायिक प्रक्रिया में पुलिस, वकील और न्यायाधीश की अपनी-अपनी भूमिका होती है। जहाँ न्याय दिलाने की प्रक्रिया में पुलिस पहली कड़ी है, वहीं न्यायाधीश का निर्णय एक अंतिम कड़ी।

थाने में रिपोर्ट :- किसी विवाद के उग्र होने पर या कोई संगीन अपराध घटित होने पर लोगों को पहले थाना जाना होता है। वहाँ मामले का एफ. आई. आर. (प्रथम दृष्ट्या रिपोर्ट) कराना होता है। थाना प्रभारी से एफ. आई. आर. की नकल-प्रति निःशुल्क मिलती है जो ले लेनी चाहिए। यदि कोई थानेदार एफ. आई. आर. दर्ज करने से इनकार करता है तो डाक और इंटरनेट के माध्यम से भी पुलिस अधिकारी और मजिस्ट्रेट को एफ. आई. आर. दर्ज करवाई जा सकती है। एफ. आई. आर. उसी थाना क्षेत्र में दर्ज करवाई जाती है जिस थाना क्षेत्र में घटना हुई है।

मामले की छानबीन:—एफ. आई. आर. दर्ज होने के बाद पुलिस मामले की छानबीन करती है। घटना स्थल का निरीक्षण और आस-पास के लोगों से मामले की पूछताछ करती है।

गिरफ्तारी:-मामले की छानबीन से यदि पुलिस को लगे कि जिस व्यक्ति के खिलाफ एफ. आई. आर. दर्ज करवाई गई है, वह प्रथम दृष्टा या दोषी लगता है, तो पुलिस उस व्यक्ति को गिरफ्तार कर लेती है। बिना अपराध बताए किसी को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर सकती है। किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी के 24 घंटे के अंदर उसे मजिस्ट्रेट के सामने प्रस्तुत करना पुलिस के लिए आवश्यक है।

जुर्म कबूल:-थाने में किसी के जुर्म कबूल करने का कोई अर्थ नहीं होता। इससे सजा नहीं होती। सजा तब होगी जब कोई मजिस्ट्रेट के सामने अपना जुर्म कबूल करे ।

पुलिस का काम:–पुलिस का काम सिर्फ मामले की छानबीन करना, गिरफ्तारी करना और न्यायालय में सबूत पेश करना है।

वकील का काम:-मामला अदालत में जाने पर मुकदमे से जुड़े पक्ष और विपक्ष दोनों लोग अपने-अपने वकील ठीक करते हैं। वकीलों का काम अपने-अपने पक्ष के मुवक्किलों के पक्ष में दलीलें पेश करना, तर्क-वितर्क करना है।

न्यायाधीश का काम:–न्यायाधीश वकीलों के तर्क सुनकर अपनी राय बनाते हैं। फिर वे कानून के अनुसार न्याय करते हुए अपना फैसला सुनाते हैं।
मजिस्ट्रेट के फैसले के खिलाफ सत्र न्यायाधीश में अपील की जा सकती है और सत्र न्यायालय के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है। उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है। उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में सत्र न्यायालय के फैसले के खिलाफ सुनवाई नहीं होती, अभियुक्त या गवाह नहीं बुलाये जाते । वहाँ तो केवल मामले की जानकारी की फाइल के आधार पर ही फैसला होता है। हमारे राज्य का उच्च न्यायालय, राज्य की राजधानी पटना में है।
                                      पाठ में आए प्रश्नों के उत्तर
1. आपके अनुसार पुलिस के क्या-क्या काम होते हैं ? लिखकर या चित्र बनाकर बताइये।
उत्तर-पुलिस का काम एफ. आई. आर. दर्ज करना, मामले की छानबीन करना, गिरफ्तारी करना और गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को 24 घंटे के अंदर मजिस्ट्रेट के सामने प्रस्तुत करना है। फिर अदालत में संबंधित मामले के लिए दोषी व्यक्ति के खिलाफ सबूत जुटाकर पेश करना होता है।
2. ग्राम कचहरी ने अपना फैसला अवधेश के पक्ष में क्यों सुनाया ? चर्चा
कीजिए ।
उत्तर–ग्राम कचहरी ने अवधेश के जमीन के कागजात देखकर अवधेश की बात को सही माना । इसलिए ग्राम कचहरी ने अपना फैसला अवधेश के पक्ष में सुनाया।
3. क्या विनोद को अवधेश की पिटाई करनी चाहिए थी?
उत्तर-नहीं। ऐसा कर विनोद ने अपराध किया और स्वयं को दंड का भागी बना लिया।
4. अगर विनोद ग्राम कचहरी के फैसले से संतुष्ट नहीं था तो उसे क्या करना चाहिए था ?
उत्तर-तब विनोद को सत्र न्यायालय में अपना मामला लेकर जाना चाहिए था।
5. थाने में रिपोर्ट लिखवाना क्यों जरूरी है ?
उत्तर-बिना थाने में रिपोर्ट लिखवाये पुलिस किसी प्रकार की मदद नहीं कर सकती। यह वैसा ही है जैसे ट्रेन में बैठने के लिए टिकट लेना होता है
6. अगर आपके घर में चोरी हो जाये तो आप कैसे रिपोर्ट लिखवाएँगे? विवरण लिखिए ।
उत्तर–अगर हमारे घर में चोरी हो जाए तो हम थाने जाएंगे और थानेदार से एफ. आई. आर. लिखने को कहेंगे। फिर हम एफ. आई. आर. की नकल प्रति मांगेंगे। यदि थानेदार एफ. आई. आर. दर्ज न करे तो डाक या इंटरनेट के माध्यम से बड़े पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट को एफ. आई. आर दर्ज करवायेंगे।
7. एफ. आई. आर. की कॉपी क्यों जरूरी है?
उत्तर—अपने पास भी तो प्रमाण चाहिए कि हमने एफ. आई. आर. दर्ज करवाई है। क्या भरोसा, कॉपी (नकल) न लेने पर पुलिस. एफ. आई. आर को फाड़ दे या किसी के दबाव में उसमें फेर-बदल कर दें। इसलिए हमारे पास एफ. आई. आर. की कॉपी (नकल) होनी जरूरी है।
8. अगर कोई थानेदार आपकी एफ. आई. आर. दर्ज न करे तो आप क्या कर सकते हैं?
उत्तर—अगर कोई थानेदार हमारी एफ. आई. आर. दर्ज न करे, तो हम डाक या इंटरनेट के माध्यम से पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट को एफ. आई. आर. दर्ज करा सकते हैं।
9. एफ. आई. आर. की शिकायत के मामले में पुलिस छानबीन से क्या पता लगाने की कोशिश करती है?
उत्तर-पुलिस यह पता लगाती है कि एफ. आई. आर. में लिखाई गई बातें सत्य हैं या नहीं यानी जिस व्यक्ति को दोषी बताया गया है, वह वाकई में दोषी है भी या नहीं। कहीं एफ. आई. आर. में झूठी बात तो नहीं लिखाई गई। पुलिस यही सब छानबीन करती है।
10. मामले की छानबीन के लिए पुलिस को मार-पिटाई का प्रयोग क्यों नहीं करना चाहिए?
उत्तर-ऐसा करना कानून के खिलाफ होता है। इसलिए मामले की छानबीन पुलिस को सभ्य तरीके से करना चाहिए न कि मार-पीट करके।
11. किसी भी अपराधी द्वारा थाने में अपना जुर्म कबूल करने पर उसे वहीं पर ही सजा क्यों नहीं सुनाई जा सकती ?
उत्तर-मजिस्ट्रेट के सामने अपना जुर्म कबूल करने पर ही व्यक्ति को यानी दोषी को सजा हो सकती है। क्योंकि मजिस्ट्रेट के यहाँ मार-पीट नहीं होती और वह प्रथम न्यायाधीश होता है।
जबकि पुलिस तो मारपीट कर जबर्दस्ती भी किसी व्यक्ति से अपना जुर्म कबूल करवा सकती है। इसीलिए थाने में अपना जुर्म कबूल करने पर भी किसी अपराधी को वहीं सजा नहीं सुनाई जा सकती चूँकि सजा सुनाने का काम अदालत का है।
12. क्या छानबीन की प्रक्रिया को कोई व्यक्ति प्रभावित कर सकता है? कैसे ? आपस में चर्चा कीजिए।
उत्तर-पैसे के बल पर या उच्च राजनीतिक पहुंच के बल पर कोई समर्थ व्यक्ति पुलिसिया छानबीन की प्रक्रिया को आसानी से प्रभावित कर सकता है। पर, यदि पुलिस अधिकारी ईमानदार हो तो उसे प्रभावित करना इतना आसान नहीं होता।
13. जमानत का प्रावधान क्यों रखा गया है?
उत्तर–व्यक्ति अपने मामले का मुकदमा अदालत में खुद लड़ सके इसके लिए जमानत का प्रावधान रखा गया है
14. इस कहानी में विनोद का जुर्म जमानती है या गैर-जमानती?
उत्तर-इस कहानी में विनोद का जुर्म ज़मानती है। क्योंकि उसका मुकदमा ‘फौजदारी मुकदमा’ था जो भारतीय दण्ड संहिता की धारा 326 के अंतर्गत आता है। यह मजिस्ट्रेट के ऊपर निर्भर है कि वह जमानत मंजूर करें या इनकार कर दें।
15. चोरी, डकैती, कत्ल जैसे जुर्मों को गैर जमानती क्यों माना गया है ?
उत्तर-ऐसे जुर्मों से समाज की शांति और व्यवस्था भंग होती है इसलिए ऐसे जुर्मों को गैर जमानती माना गया है।
16. आरोपी को आरोप पत्र की कॉपी मिलता क्यों जरूरी है?
उत्तर-आरोपी के पास भी इस बात की जानकारी होनी जरूरी है कि उसके खिलाफ पुलिस ने क्या अभियोग या इल्जाम लगाया है। साथ ही यह कि उसके विरुद्ध क्या जानकारी इकट्ठी की गई है जिससे कि वह अदालत में अपने पक्ष में बचाव कर सके । आरोपी को भी न्यायालय में अपना बचाव करने का कानूनी अधिकार है।
17. किसी भी मामले में दोनों पक्षों के वकील का होना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर–ताकि दोनों पक्षों की दलील न्यायाधीश के सामने पेश हो पाये और उन्हें सुनकर न्यायाधीश को पूरे मामले की जानकारी हो पाए ।
18. किसी भी मुकदमे में गवाहों को पेश करना व उनसे पूछताछ करना क्यों जरूरी है ?
उत्तर—मामले को पूरी तरह से अदालत में सच-सच सामने लाने के लिए किसी भी मुकदमे में गवाहों को पेश करना व उनसे पूछताछ करना जरूरी है।
19. पुलिस और मजिस्ट्रेट के काम में क्या अंतर है ?
उत्तर-पुलिस का काम मामले की छानबीन करना और गिरफ्तार करना है जबकि मजिस्ट्रेट का काम फैसला सुनाना है।
20. अपील के प्रावधान का क्या उद्देश्य है ?
उत्तर-यदि किसी आरोपी को निचली अदालत के फैसले से असंतोष हो तो वह उच्च न्यायालय में फैसले के पुनर्निरीक्षण के लिए जा सके यही अपील के प्रावधान का उद्देश्य है।
21. ऊपर की अदालतों द्वारा अपील के मामले में दिये गये फैसले नीचे की अदालत को क्यों मानने पड़ते हैं ?
उत्तर–यह संविधान का नियम है कि ऊपर की अदालतों द्वारा अपील के मामले में दिये गये फैसले नीचे की अदालत को मानने पड़ते हैं।
22. कई मुकदमे कई साल तक चलते हैं। ऐसा क्यों होता है ?
उत्तर-अदालतों में न्यायाधीश की कमी का होना और वकीलों द्वारा अपनी कमाई बढ़ाने के उद्देश्य से जान-बूझकर कागजी प्रक्रिया को लंबित किये रहना, कुछ कारण हैं जिससे कई मुकदमे कई साल तक चलते हैं।
                                                  अभ्यास के प्रश्नोत्तर
1. इस पाठ को पढ़ने के बाद क्या आपको न्यायिक प्रक्रिया निष्पक्ष लगी? यदि हाँ तो. उन बिन्दुओं की सूची बनाइये जिससे न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता का पता चलती है।
उत्तर–हाँ, इस पाठ को पढ़ने के बाद मुझे न्यायिक प्रक्रिया निष्पक्ष लगी। पाठ में विनोद और अवधेश के बीच विवाद का ब्यौरा दिया गया है। अवधेश ने जमीन के मामले में विनोद की पिटाई कर उसका हाथ तोड़ दिया। पुलिसिया कार्रवाई के बाद अवधेश को मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया। प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट की कचहरी में उसकी पेशी हुई फिर कई पेशियों के बाद मजिस्ट्रेट ने अवधेश को विनोद की गंभीर पिटाई का दोषी मानकर उसे चार साल की कैद की सजा सुनाई।
विनोद ने अपने वकील की सलाह पर मजिस्ट्रेट के ऊपर के सत्र न्यायालय में अपील की जहाँ उसकी सजा चार साल से तीन साल कर दी गयी।
फिर इस फैसले से भी असंतुष्ट होकर विनोद ने उच्च न्यायालय में अपील की जहाँ उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने सत्र न्यायाधीश के फैसले को बरकरार रखा । अंत में विनोद को जेल जाना पड़ा। इस पूरे प्रकरण से न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता का पता चलता है।
2. क्या न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता को प्रभावित किया जा सकता है ? अपने उत्तर को कारण सहित लिखिए।
उत्तर–हाँ, कई मामलों में न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता को प्रभावित किया जा सकता है। जैसे मान लिया कि किसी केन्द्रीय मंत्री का भाई किसी संगीन जुर्म में गिरफ्तार होकर अदालत के सामने लाया जाता है। मंत्री मामले से संबंधित न्यायाधीश को तरक्की का प्रलोभन देकर न्यायाधीश की निष्पक्षता को प्रभावित कर अपने भाई को बेगुनाह साबित करवा लेता है। यह  उदाहरण न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता को प्रभावित करने का है।
3. पाठ के आधार पर निम्नलिखित कामों के बारे में तालिका को पूरा कीजिये । आप यह भी बताइए कि न्याय दिलाने के मामले में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका किसकी है और क्यों?
(i).दीवानी पुलिस:-
प्रथम रिपोर्ट दर्ज करना
……………..
…………………
(ii).वकील:-
अपने-अपने पक्ष में सबूत पेश करना व उनकी जांच-पड़ताल करना ।
……………..
……………..
(iii).न्यायाधीश:-
मुकदमे को सुनाना
………………
……………….
उत्तर
(i).दीवानी पुलिस
प्रथम रिपोर्ट दर्ज (एफ. आई. आर.) करना
मामले की छानबीन करना
अभियुक्त को गिरफ्तार करना
आरोपी के खिलाफ सबूत जमा करना
(ii).वकील
अपने-अपने पक्ष
में सबूत पेश करना व उनको जाँच-पड़ताल करना।
अदालत में दलील पेश करना ।
अपने पक्ष का बचाव करना।
अगली पेशी के लिए तारीख लेना ।
अदालत में कागजी कार्रवाई को अंजाम देना।
(iii).न्यायाधीश
मुकदमे को सुनना।
गवाहों के बयान सुनना।
मुकदमे का अगली पेशी की तारीख देना।
पूरे मुकदमे को सुनकर अपना फैसला सुनाना ।
4. अध्याय में दी गयी जानकारी के आधार पर निम्न तालिका को भरिये।
दीवानी मामले                फौजदारी मामले
……………..               ……………….
……………..               ……………….
उत्तर
दीवानी मामले:-          
(i).जमीन-जायदाद के झगड़े
(ii) मजदूर-मालिक के बीच
मजदूरी को लेकर विवाद
(iii) पैसे के लेन-देन के झगड़े
(iv) व्यापार के झगड़े
(v) किराया
(vi) तलाक
फौजदारी मामले
(i).चोरी
(ii).डकैती
(iii).हत्या
(iv).बलात्कार
(v).रिश्वत
(vi) दंगा
5. मान लें आप एक उच्च न्यायालय में न्यायाधीश हैं । न्याय देते समय आप किन-किन बातों का ध्यान रखेंगे?
उत्तर-एक उच्च न्यायालय का न्यायाधीश होते हुए मैं इस बात का खास ध्यान रखूगा कि किसी बेगुनाह को सजा न मिले और कोई दोषी कानून की नजर से बचकर न निकल सके।
6. भारत में अपनायी जाने वाली न्यायिक प्रक्रिया में क्या-क्या कमियाँ हैं ? इन कमियों को दूर करने के लिए क्या-क्या करना चाहिए?
उत्तर :- भारत में अपनायी जाने वाली न्यायिक प्रक्रिया में कई कमियाँ हैं। उनमें से कुछ निम्नांकित हैं-
(i) अदालतों का जनसंख्या की बढ़ोतरी के हिसाब से बेहद कम होना ।
(ii) अदालत में न्यायाधीशों की कमी होना ।
(iii) कागजी प्रक्रिया बेहद जटिल होना ।
(iv) कानूनी प्रक्रिया बहुत खर्चीली होना ।
(v) किसी मामले की सुनवाई होने और फैसला लेने की प्रक्रिया में बहुत ज्यादा समय लगना। 

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