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 Bihar board SST notes class 8th civics chapter 7 सहकारिता

Bihar board SST notes class 8th civics chapter 7 सहकारिता

Bihar board SST notes class  8th civics chapter 7

                                                             सहकारिता
पाठ का सारांश- कई कामों को लोग अकेले चाहकर भी नहीं कर पाते । वैसे कामों को लोग समूह में करते हैं जो कभी-कभी संगठन का रूप ले लेता है। इसी को सहकारिता कहते हैं। सहकारिता शब्द दो शब्दों के योग से बना है-सह तथा कारिता । सह का अर्थ है ‘मिलकर’ तथा ‘कार’ का अर्थ है कार्य । इस प्रकार सहकारिता का अर्थ हुआ मिल-जुलकर काम करना ।
इसके तहत लोग अपने आर्थिक हितों की पूर्ति एवं उन्नति के लिए अपनी इच्छा से, परस्पर मिल-जुलकर काम करते हैं।

प्राथमिक कृषि साख समिति (पैक्स)– सरकार ने पैक्स (Primary Agricultural Credit Co-operative Society) का गठन कृषकों के कल्याण तथा उनकी कृषि सम्बन्धी जरूरतों को पूरा करने के लिए किया है। कोई भी किसान निर्धारित सदस्यता शुल्क और एक शेयर की राशि देकर इसका सदस्य बन सकता है। पैक्स अपने सदस्यों के लिए बैंक का कार्य
करता है जहाँ किसान अपनी बचत जमा करते हैं।

उपभोक्ता सहकारी समिति—इस प्रकार की समिति की स्थापना का उद्देश्य थोक व्यापारी अथवा उत्पादकों से सीधे अधिक मात्रा में माल खरीदकर अपने सदस्यों को सस्ते दर पर उपलब्ध कराना है। ये समितियाँ वित्तीय आधार पर कमजोर लोगों को व्यापारियों व दलालों द्वारा किये जाने वाले शोषण से बचाती हैं। अत: सहकारी समितियों की स्थापना किसी भी क्षेत्र में पारस्परिक समस्याओं का समाधान निकालने और वहाँ के लोगों की जीविका या रोजमर्रा के जीवन से. सम्बन्धित समस्याओं या मुश्किलों को कम करने के लिए किया जाता है ।

सहकारी समिति की विशेषताएँ एवं कमजोरियाँ—इनका काम निजी व्यवसाय से अलग है। इसमें व्यक्तिगत लाभ के स्थान पर सामूहिक हित पर जोर दिया जाता है।

सबके लिए सदस्यता—इसमें किसी भी वर्ग का व्यक्ति अपनी इच्छा से सम्मिलित हो सकता है। पर, इससे कुछ गलत लोग भी इन समितियों में शामिल हो जाते हैं। ये अपना व्यक्तिगत स्वार्थ सिद्ध कर लाभ का बड़ा हिस्सा स्वयं हड़प करना चाहते हैं।

समानता :- सहकारी समिति के सभी सदस्यों को समान अधिकार प्राप्त होते हैं। इसकी व्यवस्था में सदस्यों की भागीदारी पर जोर दिया जाता है। इसमें कार्यकारिणी होती है। सदस्यों का चुनाव आम सभा के मतों के आधार पर होता है। प्रत्येक सदस्य को मत देने का अधिकार होता है । सदस्यों की संख्या अधिक होने से गलत लोग भी इसमें आ जाते हैं तो इसका लोकतांत्रिक स्वरूप नष्ट हो जाता है।

लाभ का विभाजन—इसमें लाभ का विभाजन न्यायपूर्ण ढंग से होता है।
ये समितियाँ समाज के गरीब, पिछड़े तथा सीमित साधनों वाले लोगों के विकास में पूरा सहयोग देती हैं।
                                                पाठ में आए प्रश्नों के उत्तर
1.         (1)                    (2)
…………….        …………….
……………….      ……………….
* ऊपर दिये गये स्थान में दो ऐसे कार्यों को दर्शाएँ जो आप (1) अकेले करते हैं (2) जिसे औरों के साथ मिलकर ज्यादा आसानी से किया जा सकता है।
उत्तर-
(1) अकेले करते हैं                         (2) औरों के साथ मिलकर
नौकरी करना                                           खेल खेलना
बच्चों को पढ़ाना                                     समारोह मनाना
दर्जी का काम                                     दुग्ध उत्पादक सहयोग
नाई का काम                                          समिति बनाना
लेख लिखना                                         कोई संस्था बनाना
निशानेबाजी करना                                    बैंक चलाना
तैरना                                                 सरकार का गठन करना
दौड़ना                                               सहकारी समिति बनाना
व्यक्तिगत व्यापार                                   सामूहिक व्यापार
तानाशाही                                                  लोकतंत्र
कंचे खेलना                                            क्रिकेट खेलना
2. मधुरापुर में मधुरापुर महिला दुग्ध उत्पादक सहयोग समिति बनने से पहले दूध बेचने व खरीदने की क्या व्यवस्था थी?
उत्तर-तब, दुग्ध उत्पादक अपने दूध को पास के बाजार में या शहर में बेचने ले जाते थे जहां मुख्य तौर पर शहर के निवासी या मिठाई दुकानदार दूध खरीदते थे।
3. सहकारी समिति को चलाने के लिए कार्यकारिणी क्यों बनाई जाती है?
उत्तर-ऐसा, समिति के कार्यों का उचित रूप से संचालन करने और समिति के अंदर लोकतांत्रिक व्यवस्था को सुचारू रखने के उद्देश्य से किया जाता है।
4. दुग्ध उत्पादक सहयोग समिति बनने के बाद दूध उत्पादक परिवारों की जिंदगियों में क्या परिवर्तन आया?
उत्तर-दुग्ध उत्पादक सहयोग समिति बनने के बाद वहाँ के दुग्ध उत्पादक परिवारों और किसानों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में निरंतर सुधार होने लगा। उन्हें अपने दूध का निश्चित ग्राहक भी मिल गया और दूध की पूरी और सही कीमत भी मिलने लगी।
5. क्या आपके आस-पास इस प्रकार की कोई दुग्ध समिति है ? वर्णन करें ।
उत्तर-संकेत : यदि आपके आस-पास है कोई दुग्ध समिति है तो आपका उत्तर हाँ में होगा, यदि नहीं है तो आपका उत्तर ना में होगा।
6. पैक्स के सदस्य कौन होते हैं ?
उत्तर-कृषक।
7. ऋण देने के लिए पैक्स के पास पैसा कहाँ से आता है ?
उत्तर-सरकार द्वारा।
8. ऋण देने के अलावा पैक्स और कौन से कार्य करती है ?
उत्तर(i) किसानों की बचत का संचय कर बैंक का काम करना ।
(ii) उचित दर पर खाद उपलब्ध कराना ।
(iii) बीज भी उचित दर पर देना।
(iv) यह सुनिश्चित करना कि किसानों की फसलों को सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदा जाय।
9. पैक्स के कारण किसानों को महाजनों के चंगुल से मुक्ति कैसे मिलती है ?
उत्तर-आवश्यकता होने पर पैक्स के सदस्य किसानों को सस्ते दर पर ऋण मिल जाता है। इससे किसानों को महाजनों के चंगुल में फंस जाने से मुक्ति मिलती है।
10. पैक्स द्वारा फसल खरीदने से किसानों को क्या फायदा होता है ?
उत्तर-पैक्स द्वारा फसल खरीदने से किसानों को उचित दर पर वे फसल मिल जाती हैं।
11. पैक्स के सदस्य किस साझा उद्देश्य के लिए एकजुट होते हैं ?
उत्तर-(i) किसानों की कृषि सम्बन्धी जरूरतें पूरी होती हैं।
(ii) सस्ते दर पर ऋण मिल जाता है।
(iii) उचित दर पर खाद और बीज मिल जाते हैं।
(iv) अच्छे मूल्य पर फसल बिक जाती है।
12. सरकार कमजोर वर्गों को पैक्स में हिस्सेदारी दिलाने के लिए क्या करती है ? अपनी शिक्षक/शिक्षिका के साथ चर्चा कीजिए।
उत्तर-कोई भी किसान निर्धारित सदस्यता-शुल्क और एक शेयर की राशि देकर पैक्स का सदस्य बन सकता है।
13. उपभोक्ता सहकारी समिति जैसी समितियाँ क्यों बनाई जाती हैं ?
उत्तर–उपभोक्ता सहकारी समिति की स्थापना का उद्देश्य थोक व्यापारी अथवा उत्पादकों से सीधे अधिक मात्रा में माल खरीदकर अपने सदस्यों को सस्ते दर पर उपलब्ध कराना है। ये समितियाँ वित्तीय आधार पर कमजोर लोगों को व्यापारियों व दलालों द्वारा किये जाने वाले शोषण से बचाती हैं। लोगों की पारस्परिक समस्याओं का समाधान निकालने और उस क्षेत्र के लोगों की जीविका या रोजमर्रा के जीवन से सम्बन्धित समस्याओं या मुश्किलों को कम करने के उद्देश्य से ही उपभोक्ता सहकारी समिति जैसी समितियाँ बनाई जाती हैं।
14. इसके सदस्य बनने के लिए क्या अनिवार्य है?
उत्तर-इसकी सदस्यता स्वैच्छिक होती है यानी कोई भी व्यक्ति स्वेच्छा से किसी सहकारी समिति का सदस्य बन सकता है।
15. थोक व्यापारी या उत्पादक से अधिक मात्रा में सामग्री खरीदने के लिए पूँजी कहाँ से आती है?
उत्तर–समिति के सदस्यों द्वारा जमा राशि से जो पूँजी इकट्ठा होती है, उससे अधिक मात्रा में थोक व्यापारी या उत्पादकों से सीधे सामग्री खरीदी जाती है। इस प्रकार खुदरा बाजार से काफी कम मूल्य पर सामग्री मिल जाती है।
16. चर्चा कर पता करें – थोक व्यापारी या उत्पादक से खरीदी गई वस्तु बाजार से सस्ते मूल्य पर क्यों उपलब्ध होती है ?
उत्तर-थोक व्यापारी से या सीधे उत्पादकों से बड़ी मात्रा में वस्तुएँ खरीदने के कारण ही वस्तुएँ बाजार से सस्ते मूल्य पर उपलब्ध होती हैं।
17. आपके इलाके में किस प्रकार की सहकारी समितियाँ हैं ? एक सूची बनाएँ । फिर टोली बनाकर नीचे दिए गए बिन्दुओं पर इनके बारे में जानकारी ढूंढ़िये और अपनी रिपोर्ट बनाकर कक्षा में पेश कीजिये ।
(i) आपके इलाके की सहकारी समिति के सदस्य कौन हैं ?
(ii) सदस्य मिलकर क्या करते हैं?
(iii) इससे क्या लाभ होता है?
(iv) समिति के सामने किस तरह की समस्याएं आती हैं ?
उत्तर–मेरे इलाके में जो सहकारी समिति है उसके सदस्य मेरे क्षेत्र में रहने वाले किसान भाई हैं। सहकारी समिति के सदस्य मिलकर अपने सदस्यों के हितों व उनकी आर्थिक उन्नति के लिए कई प्रकार के प्रयास करती हैं। इन समितियों का काम निजी व्यवसाय से अलग है। इसमें व्यक्तिगत लाभ के स्थान पर सामूहिक हित पर विशेष जोर दिया जाता है।
इन समितियों के बनने से किसानों को कई प्रकार के लाभ होते हैं। जरूरत पड़ने पर उन्हें सस्ते दर पर ऋण मिल जाता है। इससे वे महाजनों के चंगुल में फंसने से बच जाते हैं। सस्ते दर पर वस्तुएँ मिल जाती हैं। उनकी फसल का अच्छा दाम मिल जाता है। यानी उन्हें फायदा ही फायदा होता है। शोषण से मुक्ति मिल जाती है। इससे उनकी आर्थिक दशा सुधर जाती है।
ऐसी समिति की सदस्यता स्वैच्छिक और खुली होने से कुछ स्वार्थी तत्व इसमें आसानी से प्रवेश कर जाते हैं। फिर वे अपना स्वार्थ सिद्ध करने की तिकड़म भिड़ाने में लग जाते हैं। ज्यादा मुनाफा वे खुद हड़प करने की जुगत भिड़ाते रहते हैं। जब दूसरे सदस्य इसका विरोध करते हैं तो समिति में आए दिन झगड़ा-कोहराम मचने लगता है। इससे समिति का विकास होने के बदले उसके अस्तित्व पर ही संकट के बादल मँडराने लगते हैं। बिहार में मत्स्यजीवी सहयोग समिति और व्यापार मंडल की असफलता के पीछे भी यही कारण थे। पर, हमारे क्षेत्र की सहकारी समिति में ऐसी समस्या फिलहाल नहीं है। गलत व्यक्ति को सदस्य बनाया ही नहीं जाता । इससे अभी इस समिति में शांति और उन्नति ही है।
18. अपनी शिक्षिका व घर के सदस्यों से चर्चा करके बिहार मत्स्यजीवी सहयोग समिति और व्यापार मंडल की असफलता के कारण ढूंढ़िए ।
उत्तर-गलत व स्वार्थी लोगों द्वारा इन समितियों की सदस्यता लेने व उनके द्वारा निजी लाभ उठाने और अन्य सदस्यों की हकमारी करने से ही ये समितियाँ असफलता का शिकार हो गईं।
19. संचित कोष की जरूरत क्यों है ?
उत्तर-संचित कोष के माध्यम से समिति की बेहतरी के लिए नई मशीनें या सामग्री खरीदने तथा आकस्मिक खर्चों को पूरा करने की सुविधा मिल जाती है।
20. आपके अनुसार दुग्ध उत्पादक समितियाँ किस प्रकार की योजनाओं पर खर्च करती हैं ?
उत्तर-(i) नई मशीनें या नई सामग्री खरीदने के लिए।
(ii) अन्य कल्याणकारी योजनाओं, जैसे अपने सदस्यों को सस्ते में जरूरत पड़ने पर ऋण दिलाना, व थोक में सामान खरीद सदस्यों को सस्ते दर पर उपलब्ध कराना, जैसे चारा, खल्ली आदि ।
(iii) किसानों को लाभ में से बोनस देना ।
21. दूधिया का काम और समिति के काम में क्या अंतर है ?
उत्तर-दूधिया सिर्फ अपने अकेले के निचली व्यापार की बात सोचता है। उसका काम उसी से शुरू होकर उसी पर खत्म हो जाता है। अपने काम के पूरे लाभ व पूरी हानि का भागीदार वह स्वयं होता है। जबकि समिति सामूहिक व्यापार व सामूहिक हितों व लाभ का समान वितरण के बारे में सोचती है। समिति एक बैंक की तरह भी काम करती है और सरकार के एक अत्यन्त छोटी इकाई की तरह भी काम करती है। जिसका उद्देश्य अपने सभी सदस्यों की मुश्किलों को दूर करना व उनका संरक्षक बन संकट में उन्हें पिता की तरह बल देना है। समिति सामूहिक हित पर ध्यान देती है जबकि दूधिया निजी हित पर।
                                                अभ्यास के प्रश्नोत्तर
1. सहकारी समिति के सदस्य कौन होते हैं ? वे मिलकर क्या करते हैं ? इससे क्या लाभ होता है ?
उत्तर-सहकारी समिति का सदस्य कोई भी उत्पादक हो सकता है। जिन उत्पादकों के हितों के लिए समिति बनती है उन्हीं से जुड़े उत्पादक उस समिति के सदस्य बनते हैं। जैसे- दुग्ध उत्पादक सहयोग समिति में केवल दुग्ध उत्पादक ही सदस्य बन सकते हैं ये सदस्य मिलकर अपने हितों व अपनी आर्थिक उन्नति के लिए मिल-जुलकर प्रयास करते हैं ।
इससे लाभ यह होता है कि समिति के सदस्य शोषण, व्यर्थ की परेशानियों और अपने उत्पाद को बेचने के भागमभाग से बच जाते हैं। उनकी आर्थिक दशा सुधरने लगती है।
2. सहकारिता से आप क्या समझते हैं ? एक उदाहरण देकर समझाइए । सहकारी समितियाँ बनने से पहले, इनसे सम्बन्धित लोगों को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था? इनके बनने के बाद, ये कठिनाइयाँ कैसे दूर हो पाईं ?
उत्तर–आपस में मिल-जुलकर समूह में, एक समिति गठित कर कार्य-व्यापार करने को सहकारिता कहते हैं। जैसे-पाठ में, मधुरापुर में महिला दुग्ध उत्पादक सहयोग समिति’ नामक एक सहकारी समिति गठित की गई। यह समिति जिला स्तर पर वैशाली पाटलिपुत्र दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ लिमिटेड, जिसे हम पटना डेयरी के नाम से भी जानते हैं, के साथ जुड़कर काम करती है। सहकारी समितियाँ बनने से पहले, इनसे सम्बन्धित उत्पादकों को अपना उत्पाद बेचने के लिए दूर-दराज के इलाकों में जाकर अपने ग्राहक ढूँढ़ने पड़ते थे। उन्हें उचित दाम भी नहीं मिल पाता था।
इन समितियों के बनने के बाद उनसे जुड़े उत्पादकों को अपने उत्पाद एक जगह बेचने की सुविधा मिल गयी और वह भी उचित मूल्य पर । साथ ही, जरूरत पड़ने पर उन्हें समिति से ऋण लेने की सुविधा भी मिल गयी, वह भी सस्ते दर पर । इससे वे महाजनों के चंगुल में फंसने से बच गये ।
3. अध्याय में जिन तीन सहकारी समितियों की बात की गई है, उनमें से आप किस सहकारी समिति को सबसे अधिक उपयोगी मानते हैं और क्यों?
उत्तर—अध्याय में वर्णित तीन सहकारी समितियों में से मुझे ‘दुग्ध उत्पादक सहयोग समिति’ सर्वाधिक उपयोगी जान पड़ती है। कारण कि ऐसी समिति के गठन से अच्छी गुणवत्ता का दूध उचित मूल्य पर शहरों में, घर-घर तक उपलब्ध हो जाता है, जिसके बिना हमारा काम नहीं चल सकता । गाँवों में तो दूध की उपलब्धता खटालों से हो भी जाती है पर शहरों में उतने खटाल
होना संभव ही नहीं हैं जो पूरे शहर की दुग्ध आवश्यकताओं की पूर्ति कर पाएँ । वह भी अच्छी क्वालिटी का और उचित दर पर और निर्धारित समय पर । दुग्ध बूथों पर फौरन पैकेट का दूध ले लेने से खटाल में जाकर देर तक गाय दुहाने तक इंतजार करने का समय भी बच जाता है।
4. सहकारी समितियों के काम-काज में कौन-कौन-सी मुश्किलें आती हैं ? आपके विचार में इन मुश्किलों को हल करने के लिए क्या-क्या किया जा सकता है ? मान लीजिए आप मधुरापुर महिला दुग्ध उत्पादन समिति के अध्यक्ष हैं। अपनी समिति को अच्छी तरह से चलाने और उसमें अधिक-से-अधिक लोगों को जोड़ने के लिए आप क्या-क्या कोशिशें करेंगे?
उत्तर-सहकारी समितियों के काम-काज में मुश्किलें तब आने लगती हैं जब उनमें स्वार्थी चरित्र के व्यक्ति प्रवेश कर जाते हैं । वे स्वार्थी व्यक्ति अपने हितों के लिए समिति के गठन का उद्देश्य भी प्रभावित करने लगते हैं। ऐसे सदस्य समिति के माध्यम से अपना व्यक्तिगत स्वार्थ सिद्ध करने लगते हैं। इससे जो लाभ सबको मिलना चाहिए वह कुछ लोगों को ही प्राप्त हो पाता है। जब दूसरे सदस्य इसका विरोध करते हैं तो आपसी झगड़े होना शुरू हो जाते हैं। तब, समिति का अस्तित्व ही खतरे में पड़ सकता है।
इन मुश्किलों को हल करने के लिए नये सदस्यों की जांच-पड़ताल करके ही उन्हें समिति का सदस्य बनाना चाहिए। यदि किसी व्यक्ति के बारे में कोई शंकास्पद बात मालूम हो तो उसे समिति से निकाल दिया जाना चाहिए।
यदि मैं मधुरापुर महिला दुग्ध उत्पादन समिति का अध्यक्ष होता, तो समिति को अच्छी तरह से चलाने के लिए मैं उसमें गलत व्यक्ति को प्रवेश नहीं लेने देता । यदि बाद में पता चलता कि कोई व्यक्ति संगठन में गलत है तो उसे फौरन निकाल देता । अधिक से अधिक लोगों को अपनी समिति से जोड़ने के लिए मैं समिति का अच्छी तरह से प्रचार करता । समिति के कार्यों का प्रदर्शन कर उसे जनता से जोड़ता ताकि समिति का अधिक-से-अधिक प्रचार हो और अधिक-से-अधिक लोग मेरी समिति से जुड़ सकें।
5. शिक्षिका की सहायता से निम्न तालिका को भरें :

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