आधुनिक भारत के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक - प्रफुल्ल चंद्र राय (1861-1944)
प्रफुल्ल चंद्र राय (1861-1944)
'बंगाल केमिकल्स' के संस्थापक आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय को 'भारतीय रसायनशास्त्र का पिता' कहा जाता है। उनके उल्लेखनीय कार्यों में 'हिंदू रसायनशास्त्र का इतिहास' शामिल था।
दो खंडों में प्रकाशित उनकी आत्मकथा 'लाइफ एंड एक्सपीरियंसेज ऑफ ए बंगाली केमिस्ट' उनके सर्वश्रेष्ट कामों में शामिल है। यह आत्मकथा उनके जीवन और समय पर प्रकाश डालने के अलावा विशेषतः बंगाल और सामान्यतः भारत के बौद्धिक इतिहास को बताता है।
वे गिलक्राइस्ट स्कॉलरशिप पाने वाले प्रारंभिक छात्रों में से थे। 1887 में उन्होंने डॉक्टर ऑफ साइंस की उपाधि पाई। मेंडलीफ की आवर्त सारणी के कई गुमनाम तत्त्वों को खोजने के लिये इंटरमीडिएट के रूप में जल में घुलनशील मरक्यूरस नाइट्रेट तैयार करने के दौरान उन्होंने अनेक दुर्लभ खनिजों का व्यवस्थित रासायनिक विश्लेषण किया।
इसी दौरान उन्होंने 1896 में मरक्यूरस नाइट्राइट को खोजा और उसे वैज्ञानिक समुदाय के सामने लाए। उस समय इसे केवल एक यौगिक
माना जाता था। उन्होंने बाद में लिखा भी कि मरक्यूरस नाइट्राइट की खोज ने मेरे जीवन के नए अध्याय की शुरुआत कर दी। उनका एक
और उल्लेखनीय योगदान अमोनियम नाइट्राइट का शुद्ध रूप में निर्माण रहा।
1911 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 'नाइट' की उपाधि से सम्मानित किया। 1933 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय ने आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय को डी.एस.सी. की मानद उपाधि से विभूषित किया। वे महान वैज्ञानिक एवं शिक्षाशास्त्री थे। वे
आधुनिक भारत के शिल्पकारों में मूर्धन्य थे।