आधुनिक भारत के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक - बीरबल साहनी (1891-1949)


  
बीरबल साहनी (1891-1949)

भारत में जब भी पुरा-वनस्पति विज्ञान की बात होती है तो प्रो. बीरबल साहनी का नाम सबसे पहले लिया जाता
है। उन्होंने दुनिया के वैज्ञानिकों का परिचय भारत की अद्भुत वनस्पतियों से कराया। बीरबल साहनी को भारतीय पुरा-वनस्पति विज्ञान (इंडियन पैलियोबॉटनी) का जनक माना जाता है। 

प्रो. साहनी ने भारत में
पौधों की उत्पत्ति तथा पौधों के जीवाश्म पर महत्त्वपूर्ण खोज की। पौधों के जीवाश्म पर उनके शोध मुख्य रूप से जीव विज्ञान की विभिन्न
शाखाओं पर आधारित थे। उनके योगदान का क्षेत्र इतना विस्तृत था कि भारत में पुरा-वनस्पति विज्ञान का कोई भी पहलू उनसे अछूता नहीं रहा है। 
प्रो. साहनी ने वनस्पति विज्ञान पर अनेक पुस्तकें लिखीं और उनके अनेक शोध पत्र विभिन्न वैज्ञानिक जर्नलों में प्रकाशित हुए।
उल्लेखनीय है कि जीवाश्म वनस्पतियों पर अनुसंधान के लिये वर्ष 1919 में उन्हें लंदन विश्वविद्यालय से डॉक्टर ऑफ साइंस' (DSc) की
की उपाधि प्रदान की गई। प्रो. साहनी की पुरातत्त्व विज्ञान में भी गहरी रुचि थी। 
भू-विज्ञान का भी उन्होंने गहन अध्ययन किया था। प्राचीन भारत में सिक्कों की ढलाई की तकनीक पर उनके शोधकार्य ने भारत में पुरातात्त्विक अनुसंधान के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। प्रो. साहनी के कार्यों के महत्त्व को देखते हुए वर्ष 1936 में उन्हें लंदन की रॉयल सोसायटी का सदस्य चुना गया। 

उनके द्वारा लखनऊ में जिस संस्थान की नींव रखी गई थी, उसे आज हम ‘बीरबल साहनी पुरा-वनस्पति विज्ञान संस्थान' के नाम से
जानते हैं। इस संस्थान का उद्घाटन भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने वर्ष 1949 में किया था।
प्रो. साहनी केवल वैज्ञानिक ही नहीं थे, बल्कि वे चित्रकला और संगीत के भी प्रेमी थे। भारतीय विज्ञान कॉन्ग्रेस ने उनके सम्मान में
'बीरबल साहनी अवॉर्ड' की स्थापना की है, जो भारत के सर्वश्रेष्ठ वनस्पति वैज्ञानिक को दिया जाता है।


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