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 सहायक जनन प्रौद्योगिकी | Assisted Reproductive Technology-ART



सहायक जनन प्रौद्योगिकी का उपयोग मुख्यतः बाँझपन के उपचार (Infertility Treatment) के लिये किया जाता है। गर्भधारण हेतु सहायक
जनन प्रौद्योगिकी में प्रजनन दवाओं (Fertility Drugs) के माध्यम से उपचार, कृत्रिम गर्भाधान (Artificial Insemination), पात्रे निषेचन (In
Vitro Fertilization), सरोगेसी (Surrogacy) आदि प्रमुख हैं। इंट्रासाइटोप्लामिक स्पर्म इंजेक्शन (ICSI), क्रायोप्रिजरवेशन आदि को भी
इसमें शामिल किया जाता है।

पात्रे निषेचन (In Vitro Fertilization-IVF)

पात्रे निषेचन या इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) निषेचन की एक कृत्रिम प्रक्रिया है जिसके माध्यम से महिलाओं में कृत्रिम गर्भधारण कराया
जाता है। इस विधि को लोकप्रिय रूप से 'टेस्ट ट्यूब बेबी कार्यक्रम' के नाम से जाना जाता है। इसमें प्रयोगशाला में पत्नी का या दाता स्त्री के
अंडे से पति अथवा दाता पुरुष से प्राप्त किये गए शुक्राणुओं को एकत्र करके प्रयोगशाला में अनुरूपी परिस्थितियों में युग्मनज (Zygote) बनने के लिये प्रेरित किया जाता है। तत्पश्चात् इस युग्मनज या प्रारंभिक भ्रूण (8 ब्लास्टोमेयर तक) को फैलोपी नलिकाओं (Fallopian Tube) में स्थानांतरित किया जाता है जिसे युग्मनज अंत:डिबवाहिनी (फैलोपी) स्थानांतरण अर्थात् जाइगोट इंट्रा फैलोपियन ट्रांसफर (ZIFT) कहते हैं
और जो भ्रूण 8 ब्लास्टोमेयर से अधिक का होता है तो उसे परिवर्द्धन हेतु गर्भाशय में स्थानांतरित कर दिया जाता है। इसे इंट्रा-यूटेराइन ट्रांसफर (JUT) कहते हैं। उल्लेखनीय है कि जिन स्त्रियों में गर्भधारण की समस्या रहती है उनकी सहायता के लिये जीवे निषेचन (इन-विवो
फर्टिलाइजेशन-स्त्री के भीतर ही युग्मकों का संलयन) से बनने वाले भ्रूणों को भी स्थानांतरण के लिये प्रयोग में लाया जा सकता है। ऐसे मामले में जहाँ स्त्रियाँ अंडाणु उत्पन्न नहीं कर सकती हैं, लेकिन जो निषेचन और भ्रूण के परिवर्द्धन के लिये उपयुक्त वातावरण प्रदान कर सकती हैं, उनके लिये एक अन्य तरीका अपनाया जा सकता है। इसमें दाता से अंडाणु लेकर उन स्त्रियों की फैलोपी नलिका में स्थानांतरित (Gamete Intrafallopian Transfer-GIFT) कर दिया जाता है। प्रयोगशाला में भ्रूण बनाने के लिये अंत:कोशिकीय शुक्राणु निक्षेपण (Intracytoplasmic Sperm Injection - ICSI) दूसरी विशिष्ट प्रक्रिया है जिसमें शुक्राणु को सीधे ही अंडाणु में अंत:क्षेपित किया जाता है।
बंध्यता (Infertility) के ऐसे मामलों में जिसमें पुरुष साथी स्त्री को वीर्यसेचित कर सकने के योग्य नहीं है अथवा जिसके स्खलित वीर्य में
शुक्राणुओं की संख्या बहुत ही कम है, ऐसे दोष का निवारण कृत्रिम वीर्यसेचन (Artificial Insemination-AI) तकनीक से किया जा सकता है। दरअसल, इस तकनीक में पति या स्वस्थ दाता से शुक्राणु लेकर कृत्रिम रूप से या तो स्त्री की योनि में अथवा उसके गर्भाशय में प्रविष्ट
किया जाता है। अतः इसे अंत:गर्भाशय वीर्यसेचन (Intrauterine Insemination-IUI) कहते हैं। ध्यातव्य है कि वीर्य को तरल नाइट्रोजन
की सहायता से शीघ्रतापूर्वक जमाकर शुक्राणु बैंक (Sperm Banks) में संगृहीत कर लिया जाता है जिससे यह कई वर्षों तक जननक्षम (Fertile) बना रहता है। प्रयोग में लाने के लिये इसे द्रवीभूत करके एक स्त्री के गर्भाशय में पिचकारी की सहायता से उस समय प्रविष्ट कराया जाता है जब अंडोत्सर्ग हो रहा होता है। वहीं कुछ स्त्रियों के जनन क्षेत्र में ग्राफी पुटिका (Graafian Follicles) उत्पन्न परिपक्व अंडों को निर्मुक्त करने के लिये अंडाशय असमर्थ होता है। ऐसी बंध्य (Sterile) स्त्री में फॉलिकल स्टिम्युलेटिंग हॉर्मोन (Follicle Stimulating Hormone-FSH) के इंजेक्शन की सहायता से कृत्रिम उद्दीपन द्वारा पुटिका उत्पादन संभव हो पाया है।

नोट: 1978 में इंग्लैंड में सर्वप्रथम इस तकनीक का उपयोग कर लुईस ब्राउन नामक बच्चे का जन्म हुआ था। इस तकनीक का विकास
करने वाले रॉबर्ट एडवर्ड को 2010 में चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार दिया गया।

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