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 सरोगेसी (Surrogacy)



● सरोगेसी एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से कोई नि:संतान दंपति संतान सुख की प्राप्ति कर सकता है। जब कोई महिला ऐसे दंपति (युगल) के बच्चे को अपने पेट में पालती है जो शारीरिक या चिकित्सकीय कारणों से या तो गर्भ धारण करने में या उसे पेट में पालने में असमर्थ है, तो इसे 'सरोगेसी' की संज्ञा दी जाती है।
● सरोगेसी को दूसरे शब्दों में 'किराये की कोख' भी कहते हैं क्योंकि इसमें उस महिला और दंपति के बीच एग्रीमेंट होता है जिसके तहत
महिला बच्चे को अपनी कोख में पालती है और बच्चे के जन्म लेने के बाद वह उसे दंपति को सौंप देती है। इस तरह बच्चे को जन्म देने वाली महिला को 'सरोगेट मदर' कहा जाता है।

सरोगेसी के प्रकार

● परंपरागत सरोगेसी (Traditional Surrogacy): परंपरागत सरोगेसी में प्राकृतिक और कृत्रिम निषेचन किया जाता है, जिसमें बच्चे के
पिता के शुक्राणुओं का सरोगेट मदर के अंडाणुओं के साथ निषेचन कराया जाता है, जिसकी वजह से जन्म लेने वाले बच्चों का जेनेटिक
रूप से संबंध अपने पिता और सरोगेट मदर के साथ होता है। लेकिन यदि इस प्रक्रिया के लिये दाता शुक्राणु (Donor Sperm) का प्रयोग
किया जाता है तो जन्म लेने वाले का संबंध अपने पिता से तो नहीं होगा, लेकिन सरोगेट मदर से होगा। इसलिये इस तरीके को अपनाने के लिये पिता के शुक्राणुओं का इस्तेमाल बेहतर समझा जाता है।
● जेस्टेशनल सरोगेसी (Gestational  Surrogacy): इस प्रक्रिया के अंतर्गत जन्म लेने वाले बच्चे के माता-पिता के अंडाणु व शुक्राणुओं का IVF ट्रीटमेंट के ज़रिये  मेल करवाकर भ्रूण को सरोगेट मदर के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप जन्म लेने वाले बच्चे का जेनेटिक संबंध अपने माता-पिता दोनों  से होता है। लेकिन इस विधि के द्वारा जन्म लेने वाले बच्चे का कोई भी संबंध सरोगेट
मदर से नहीं होता है।

विशेष
●सरोगेसी की सुविधा कुछ विशेष एजेंसियों द्वारा उपलब्ध करवाई जाती है। इन एजेंसियों को ARTClinics' कहा जाता है, जो इंडियन
काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के दिशा-निर्देशों को अमल करती हैं।
●भारत के विधि आयोग की 228वीं रिपोर्ट में वाणिज्यिक सरोगेसी के निषेध और उचित विधायी कार्य द्वारा नैतिक परोपकारी सरोगेसी
की अनुमति की सिफारिश की गई है।
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