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 थ्री पैरेंट बेबी टेक्नोलॉजी / माइटोकॉण्ड्रियल रीप्लेसमेंट थेरेपी


(Three Parent Baby Technology/Mitochondrial Replacement Therapy)

'थ्री पैरेंट बेबी' अर्थात् वह बच्चा जिसमें डी.एन.ए, का अधिकांश भाग उसके माता एवं पिता से आता है तथा कुछ भाग किसी महिला
प्रदाता से प्राप्त होता है। थ्री पैरेंट बेबी टेक्नोलॉजी को आईवीएफ (IVF) टेक्नोलॉजी का ही विकसित रूप माना जा सकता है। इसके अंतर्गत पिता के शुक्राणु के साथ माता के अंडाणु एवं एक अन्य महिला (Donor) के अंडाणु को शामिल किया जाता है।
थ्री पैरेंट बेबी टेक्नोलॉजी में माता के खराब माइटोकॉण्ड्रिया (Defective Mitochondria) को दाता (Donor) महिला के स्वस्थ
माइटोकॉण्ड्रिया के द्वारा बदला जाता है। उसके बाद इनविट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) तकनीक के द्वारा अंडाणु (Ovum) को सहयोगी के शुक्राणु (Sperm) के साथ निषेचन करवाकर प्राप्त युग्मनज (Zygote) का प्रारंभिक भ्रूणीय विकास आरंभ कराया जाता है तथा भ्रूण को माता या सरोगेट मदर के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया जाता है। इस टेक्नोलॉजी का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे विकारयुक्त माइटोकॉण्ड्रियल डी.एन.ए. को दुरुस्त किया जा सकता है तथा स्वस्थ बच्चे के जन्म को संभव बनाया जा सकता है।

विशेषताएँ

• थ्री पैरेंट बेबी टेक्नोलॉजी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके माध्यम से विकारयुक्त माइटोकॉण्ड्रिया जैसी समस्या से बचा जा
सकता है। विकारयुक्त माइटोकॉण्ड्रिया के कारण कई अन्य बीमारियाँ (Muscular Dystrophy, Leigh Syndrome आदि) भी उत्पन्न हो
जाती हैं। ज्ञातव्य है कि प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में बच्चे विकारयुक्त माइटोकॉण्ड्रियल डी.एन.ए. के साथ जन्म लेते हैं। यह टेक्नोलॉजी माइटोकॉण्ड्रियल (जेनेटिक) बीमारी को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरण से रोकती है।
• उल्लेखनीय है कि माइटोकॉण्ड्रिया को 'कोशिका का ऊर्जा घर' कहा जाता है। यदि माइटोकॉण्ड्रिया ही विकार युक्त होगी तो ऊर्जा का समुचित उत्पादन नहीं हो सकेगा। धीरेंट बेबी टेक्नोलॉजी इस समस्या से बचाने में अहम भूमिका निभाती है।

चुनौतियाँ

• थ्री पैरेंट बेबी टेक्नोलॉजी से यद्यपि विकारयुक्त माइटोकॉण्ड्रियल डी.एन.ए. की समस्या को हल किया जा सकता है किंतु इस टेक्नोलॉजी के द्वारा उत्पन्न संतान की लगातार निगरानी करनी पड़ती है। लगातार निगरानी का प्रमुख कारण यह है कि इस टेक्नोलॉजी के प्रयोग से उत्पन्न संतान के जीवन में कभी भी अवांछित आनुवंशिक परिवर्तन आ सकते हैं तथा वह गंभीर बीमारी से ग्रस्त हो सकता है।
• जीन में छेड़छाड़ कर भविष्य में 'डिजाइनर बेबी' के खतरे की आशंका है।

नोट: ब्रिटेन थ्री पैरेंट बेबी टेक्नोलॉजी को कानूनी तौर पर मान्यता प्रदान करने वाला दुनिया का पहला देश है।

CRISPR-Cas 9 प्रौद्योगिकी (CRISPR-Cas 9 Technology)

• CRISPR-Cas9 एक अनोखी तकनीक है जो आनुवंशिकीविदों और चिकित्सा शोधकर्ताओं को जीनोम के कुछ भागों को डी.एन.ए,
अनुक्रमों से निकालने, जोड़ने या बदलने में सक्षम बनाती है।
• वर्तमान में यह आनुवंशिक हेर-फेर का सरलतम, बहुमुखी और सबसे सटीक तरीका है, इसलिये यह विज्ञान की दुनिया में चर्चा का विषय
बना हुआ है।
• उल्लेखनीय है कि 'क्रिस्पर' तकनीक के तहत वैज्ञानिक खराब जीन को डी.एन.ए. से डिलीट कर देते हैं एवं डी.एन.ए, में बेहतर गुणवत्ता
भी जोड़ सकते हैं।

कार्य पद्धति

CRISPR-Cas9 प्रणाली में दो प्रमुख अणु शामिल होते हैं जो डी.एन.ए. में एक परिवर्तन (उत्परिवर्तन) पेश करते हैं, ये हैं :
• Cas 9: यह एक एंजाइम है तथा यह आणविक कैंची की तरह कार्य करता है जो कि जीनोम में डी.एन.ए. के स्टैंड को एक विशिष्ट
स्थान पर काट सकता है ताकि डी.एन.ए, के टुकड़े को जोड़ा या हटाया जा सके।
• गाइड आर.एन.ए, (gRNA): इसमें पूर्व आर.एन.ए, अनुक्रम का एक छोटा-सा टुकड़ा होता है (लगभग 20 बेस पेयर लंबा) जो लंबे आर.एन.ए, प्लेटफॉर्म पर अवस्थित रहता है।
• गाइड आर.एन.ए, का कार्य डी.एन.ए, के विशिष्ट अनुक्रम को ढूंढना तथा उसके साथ बांधना होता है। गाइड आर.एन.ए, में आर.एन.ए, बेस होता है जो जीनोम में टारगेटेड डी.एन.ए, अनुक्रम का पूरक होता है अर्थात् गाइड आर.एन.ए, केवल टारगेट अनुक्रम से जुड़ा रहता है।
• Cas 9 डी.एन.ए, अनुक्रम में उसी स्थान पर गाइड आर.एन.ए, का अनुपालन करता है और डी.एन.ए, के दोनों स्टैंड को काटता है।
• इस स्तर पर कोशिका क्षतिग्रस्त डी.एन.ए. की पहचान करके उसे सुधारने की कोशिश करती है।
• वैज्ञानिक एक कोशिका के जीनोम में एक या एक से अधिक जीनों में बदलाव लाने के लिये डी.एन.ए. मरम्मत मशीनरी का उपयोग कर
सकते हैं। उल्लेखनीय है कि CRISPR प्रणाली जीवाणुओं में पाया जाता है। यह जीवाणुओं के जीनोम का एक हिस्सा है जो अपनी अभिव्यक्ति के द्वारा gRNA का निर्माण करता है। CRISPR प्रणाली के द्वारा ही जीवाणु विषाणुओं के प्रति प्रतिरक्षा प्राप्त करते हैं।

उपयोगिता एवं निहितार्थ

• CRISPR-Cas 9 तकनीक द्वारा कैंसर, हेपाटाइटिस बी या उच्च कोलेस्ट्रॉल सहित आनुवंशिक रोगों के इलाज की काफी संभावनाएं हैं।
• जर्मलाइन कोशिका में कोई भी बदलाव एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में चला जाता है जो कि एक महत्त्वपूर्ण नैतिक उलझन है। यही कारण है कि जर्मलाइन कोशिकाओं में जीन एडिटिंग करना वर्तमान में ब्रिटेन तथा कई अन्य देशों में अवैध है। इसके विपरीत, सोमैटिक कोशिका में CRISPR-Cas 9 तथा अन्य जीन एडिटिंग टेक्नोलॉजी का उपयोग अविवादास्पद है।
• इस तकनीक से आँखों से जुड़ी लेबर कॉन्जिनाइटल इमॉरोसिस (Leber Congenital Amaurosis-LCA) बीमारी का इलाज संभव होगा। उल्लेखनीय है कि एलसीए आँख से जुड़ी एक आनुवंशिक बीमारी है जो रेटिना को प्रभावित करती है। फेफड़े, किडनी, आँत, अग्न्याशय व लीवर को प्रभावित करने वाली सिस्टिक फाइब्रोसिस और तंत्रिका तंत्र से जुड़ी बीमारी 'हंटिग्टन डिज़ीज़' के उपचार में भी यह खासी कारगर साबित होगी।

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