Advertica

 क्लोनिंग (Cloning)



क्लोनिंग का सामान्य अर्थ है- हमशक्ल तैयार करना। क्लोन एक ऐसी जैविक रचना है, जो एकमात्र जनक (माता अथवा पिता) से अलैंगिक
विधि (Asexual Method) द्वारा उत्पन्न होती है। उत्पादित क्लोन अपने जनक से शारीरिक और आनुवंशिक रूप से पूर्णत: समरूप होता है। अत: किसी भी जीव का प्रतिरूप तैयार करना ही 'क्लोनिंग' है।

क्लोनिंग के प्रकार (Types of Cloning)

जीन क्लोनिंग या आणविक क्लोनिंग (Gene Cloning or Molecular Cloning): इसके अंतर्गत पहले जीन अभियांत्रिकी का प्रयोग कर ट्रांसजेनिक सूक्ष्म जीव, जैसे- ट्रांसजेनिक बैक्टीरिया आदि का निर्माण किया जाता है। फिर उचित वातावरण का निर्माण कर उस जेनेटिकली मॉडिफायड बैक्टीरिया के क्लोन प्राप्त किये जाते हैं, जिनका उपयोग अनेक कार्यों, जैसे- मानवोपयोगी प्रोटीन (इंसुलिन आदि) निर्माण
में किया जाता है। रीप्रोडक्टिव क्लोनिंग (Reproductive Cloning): इस तकनीक में अलैंगिक विधि द्वारा एकल जनक से नया जीव तैयार किया जाता है। इस प्रक्रिया में सोमैटिक सेल न्यूक्लियर ट्रांसफर (SCNT) तकनीक का प्रयोग किया जाता है। इसमें शारीरिक एवं आनुवंशिक रूप से क्लोन जीव पूर्ण रूप से अपने जनक के समान होता है। इसके तहत नाभिकीय अंतरण विधि का प्रयोग किया जाता है जिसमें कोशिका के नाभिक को यांत्रिक विधि से निकालकर नाभिक रहित अंडाणु में प्रतिस्थापित कर दिया जाता है। इसके बाद उस निषेचन पर हल्की विद्युत तरंगों को प्रवाहित कर क्रिया कराई जाती है, जिसके उपरांत कोशिका का तीव्र विभाजन शुरू हो जाता है। इस प्रक्रिया के बाद पूर्ण विकसित अंडाणु को प्रतिनियुक्त माँ (सरोगेट मदर) के गर्भ में आरोपित कर दिया जाता है। इसके साथ ही गर्भाधान, बच्चे का विकास तथा उसका जन्म होता है।

विशेष

वर्ष 1996 में डॉ. इयान विल्मुट और उनके सहयोगियों ने सोमैटिक सेल न्यूक्लियर ट्रांसफर टेक्नोलॉजी का प्रयोग करके 'डॉली' नामक भेड़ का क्लोन तैयार किया। लेकिन वैज्ञानिकों ने इसकी जानकारी सार्वजनिक रूप से 1997 में दी।

नोटः स्तनपायी जीवों में भ्रूण (Embryo) का बनना मादा की अंड कोशिका (Ovum) के साथ नर के शुक्राणु (Sperm) के सम्मिलन
पर निर्भर है। यही प्राकृतिक नियम है लेकिन डॉ. विल्मुट ने इस प्राकृतिक नियम का अतिरेक कर दिया। उन्होंने एक फिनलैंडी मादा
भेड़ के थन से कायिक कोशिका निकालकर, एक स्कॉटिश मादा भेड़ की नाभिक रहित अंडकोशिका का विद्युत आवेश की मदद से योग
करा देने में सफलता प्राप्त की और प्रायः 6 दिन बाद (Blastocyst Stage) इस भ्रूण को उसी स्कॉटिश मादा भेड़ के गर्भाशय में स्थापित
कर दिया, यद्यपि यह सब इतना सहज नहीं था। विल्मुट और उनके सहयोगियों को निरंतर 277 प्रयासों के बाद मात्र 29 भ्रूण प्राप्त हुए
जो 6 दिनों से अधिक समय तक जीवित रहे। इनमें से भी एक को छोड़कर शेष सभी काल-कवलित हो गए। एकमात्र भ्रूण जो जीवित
बचा, उसी से पाँच महीनों के बाद दुनिया की प्रथम स्तनपायी क्लोनित भेड़ 'डॉली' जन्मी।
●  2003 में फेफड़ों के बढ़ते संक्रमण के कारण 'डॉली' की मौत हो गई। थेराप्यूटिक क्लोनिंग (Therapeutic Cloning): इसमें क्षतिग्रस्त
- ऊतकों या अंगों (Organs) को स्थानांतरित करने या उनमें सुधार करने के लिये भ्रूणीय (Embryonic) स्तंभ कोशिकाओं का उत्पादन किया जाता है। इसके लिये किसी युग्मित नाभिक को शरीर की एक कोशिका से नाभिक रहित अंडाणु में स्थानांतरित किया जाता है। इस विधि से मानवीय अनुसंधान हेतु मानव भ्रूण तैयार किया जाता है। भ्रूण के तैयार होने की आरंभिक अवस्था (ब्लास्टोसिस्ट) में उससे स्टेम सेल को अलग कर लिया जाता है। बाद में इस सेल से आवश्यक मानवीय कोशिकाओं का विकास किया जाता है।

क्लोनिंग से लाभ (Advantages of Cloning)

● क्लोनिंग की सहायता से विशेष ऊतकों व अंगों का निर्माण कर वैसी असाध्य व आनुवंशिक बीमारियों को दूर किया जा सकता है,
जो परंपरागत चिकित्सकीय विधियों से ठीक नहीं हो सकतीं।
● कैंसर के उपचार में इसका विशेष महत्त्व है क्योंकि कैंसर में कोशिकाएँ विभाजित होने लगती हैं, जिसमें कुछ कोशिकाएँ तो
पुनर्रचित हो जाती हैं किंतु अन्य नहीं। क्लोनिंग के द्वारा इन कोशिकाओं की पुनर्रचना की जा सकेगी, विशेषतः हृदय व मस्तिष्क की
कोशिकाओं की रचना।
● जेनोट्रांसप्लांटेशन (Xenotransplantation) की न्यून सफलता को देखते हुए अंग प्रत्यारोपण के क्षेत्र में क्लोनिंग क्रांति ला सकती है।
उल्लेखनीय है कि थेराप्यूटिक क्लोनिंग के द्वारा लीवर, किडनी आदि का निर्माण कर अंग प्रत्यारोपण में मदद मिलेगी।
● क्लोनिंग द्वारा विशेष प्रकार की वनस्पतियों व जीवों का क्लोन बनाया जा सकता है, जिससे महत्त्वपूर्ण औषधियों का निर्माण तथा जैवविविधता का भी संरक्षण किया जा सके।
● आणविक क्लोनिंग के उपयोग से अनेक मानवोपयोगी प्रोटीनों, जैसे- इंसुलिन आदि का निर्माण किया जा रहा है।

क्लोनिंग के नुकसान (Disadvantages of Cloning)

● मानव क्लोन से अपराध बढ़ने की आशंका है। जिस जीव की कोशिका का केंद्रक लिया जाता है, क्लोन उसकी कार्बन कॉपी होता है यानी क्लोनिंग से एक ही तरह के कई लोग पैदा हो सकते हैं। क्लोन सैनिक तैयार कर पुनः विकसित व धनी देश साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद की अवधारणा को जीवित कर सकते हैं तथा वैश्विक आतंकवाद के रूप में, मानव बम के रूप में इसका प्रयोग किया जा सकता है।
● क्लोनिंग से बड़े पैमाने पर भ्रूण हत्या होगी क्योंकि इसमें सफलता का प्रतिशत बहुत कम है। इस प्रक्रिया में जेनेटिक त्रुटियाँ भी उपस्थित
हो रही हैं और कई प्रयोगों में प्रिमैच्योर एजिंग (Premature Ageing) की समस्या देखी जा रही है।
● वर्तमान सामाजिक संरचना, जैसे-पारिवारिक संस्था प्रभावित होगी क्योंकि क्लोनिंग के लिये एकल जनक ही उत्तरदायी होगा।
● क्लोनिंग द्वारा उत्पन्न बच्चे और सरोगेट मदर में क्या रिश्ता होगा, इसका निर्धारण करना भी दुष्कर होगा।
● मानव अंगों के व्यापार होने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता।
● मानव जीवन की महत्ता में कमी आएगी।

नोट: इन्हीं सब चिंताओं को देखते हुए पूरे विश्व में मानव क्लोनिंग को प्रतिबंधित किया गया है।

Previous Post Next Post